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वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा 5वां अंतिम भाग

वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा 5वां अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । वज्रयोगिनी मंदिर की विद्या धारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 4 अभी तक आप जान चुके हैं । यह पांचवा और अंतिम भाग है । कहानी जैसा कि चली रही है आप लोग जानते हैं । कि किस प्रकार से प्रियंवदा बहुत ही शक्तिशाली हो चुकी हैं और साथ ही साथ उसके अंदर विभिन्न प्रकार के राक्षसी भाव भी आ चुके हैं । और उसका सामना करना वैसे भी किसी में संभव नहीं है । लेकिन उसकी मां की प्रेरणा से अब वह पंचतत्वो को अपने अधीन के बारे में सोचने लगती है । उनकी साधना के बारे में उनकी उपासना के बारे में और उनके साथ संबंध बनाके उनकी योग ऊर्जा को अपने अधीन करके पंच तत्वों की रानी बनने के बारे में सोच रही थी । इधर शंभू नाथ अपनी देवी शक्ति वज्रयोगिनी की पूजा कर रहे थे । देवी वज्रयोगिनी सारे रहस्य को जानती थी । और उन्होंने प्रकट होकर के शंभूनाथ को सब कुछ सत्य सत्य बता दिया । शंभूनाथ के सामने अब कोई मार्ग नहीं था । अब उन्होंने वज्र योगिनी देवी की माया से जो कार्य सौंपा है । उन्होंने वह कार्य करने के लिए अब वह वहां से निकलने के बारे में पूछते हैं । शंभूनाथ कहते हैं कि अगर मैं प्रियंवदा को रोकूगा तो भला कैसे रुक पाऊंगा । इस पर वज्रयोगिनी कहती है मैं तुम्हें रूपांतरण विद्या देती हूं । क्योंकि तुम स्वयं एक विद्या धारणी के पिता हो इसलिए तुम्हारे पास भी रूप परिवर्तन विद्या आनी चाहिए । तुमको मैं ऐसी रूप परिवर्तन विद्या दूंगी जिससे तुम जिसका चाहो उसका रूप ले सकोगे । और जा करके उससे बात करो । और मैंने तुम्हें जो जो मार्ग बताया है वह सारा समझाओ । अगर वह ऐसा करती है तो तुम्हारी पुत्री ना सिर्फ बच जाएगी बल्कि तुम प्रसिद्ध भी होंगे । और साथ ही साथ महान से महान कार्यों का संपादन भी होगा ।

वह भी किसी गलत दिशा में जाएं बिना देवी वज्र योगिनी के । इस प्रकार कहने पर शंभू नाथ ने कहा देवी मुझे गोपनीय मंत्र दीजिए । देवी वज्रयोगिनी उनके कान के अंदर प्रवेश करके उन्हें सारे रहस्य उन्हें बता देती है । शंभू नाथ रूपांतरण विद्या को सीख जाते हैं । और चलते हुए कुछ दूर को पहुंचते हैं । जहां पर राक्षसी बैठी हुई थी । सूअर के रूप में बैठी राक्षसी को देख कर के शंभूनाथ को क्रोध आता है । लेकिन शंभू नाथ जानते थे कि इस प्रकार से कार्य नहीं होगा । कार्य को करने के लिए मुझे कुछ विशेष ही प्रकार का प्रपंच रचना होगा । वह वहां पर एक महा राक्षसी का रूप बना लेते हैं । और अपने कदमों को बढ़ाकर बड़े-बड़े कर लेते हैं । जब वह पैर धरते जमीन पर जमीन वहां पर की कांपने लगती वह जगह वह जमीन वह स्थान हिलने सा लगता । अर्थात उनके अंदर बहुत सी शक्ति दिखाई पड़ती थी । जब वह इस प्रकार से चलते रहे जैसे ही वह प्रियंवदा के मां के नजदीक पहुंचे । वहां पर उनकी पद चापों को सुनकर राक्षसी घबरा गई । उसने सोचा कि मुझसे भी कोई विशालकाय राक्षसी आ रही है । इसलिए मुझे तुरंत अपने वास्तविक रूप में आ जाना चाहिए । और उससे प्रार्थना करना चाहिए कि वह किसी प्रकार की हानि उसे या उसकी पुत्री को ना पहुंचाएं । तुरंत ही अपने असली रूप में आकर के राक्षसी उस महा विशालकाय राक्षसी को प्रणाम करती है । जो वास्तव में शंभूनाथ थे । रूपांतरण विद्या के द्वारा और देवी वज्रयोगिनी शक्ति के कारण उनके अंदर इतने सामर्थ और प्रभाव दिखाई पड़ रहा था । वह प्रणाम करती है और पूछती है कि देवी आप कौन हैं । और आपका मेरे क्षेत्र में किस प्रकार से आना संभव हुआ । मैं आपकी क्या सेवा सत्कार करू । वह विशालकाय राक्षसी कहती है मैं तो सोचते हुए ही आ रही थी मैं यह पता करना चाह रही थी कि संसार में ऐसी कौन सी शक्तिशाली मां है जिसने एक बहुत ही शक्तिशाली पुत्री को पैदा किया है ।

मैंने अपने तंत्रज्ञान से पता किया है कि तूने एक ऐसी कन्या को पैदा किया है जो पंच भूतों पर राज करेगी । मुझ में बहुत सी शक्तियां है मैं भविष्य देख सकती हूं । ऐसा सुनते ही प्रियंवदा की मां उस राक्षसी बड़ा ही प्रेम आने लगा उस राक्षसी के ऊपर । क्योंकि वह वो बातें बता रही थी जो वह सपने में सोचा करती है । उसने तुरंत ही उन्हें प्रणाम किया और कहा आप बैठिए मैं आपके लिए भोजन पानी का प्रबंध करती हूं । विशालकाय राक्षसी ने कहा नहीं मुझे अपनी पुत्री से बस तू मिलवा दे । मैं उसे कुछ गोपनीय मंत्र शक्तियां देना चाहती हूं । उन शक्तियों और मंत्र साधनाओं के द्वारा वह इस कार्य को आसानी से संपन्न कर लेगी । और मेरे भी कुल का नाम होगा । क्योंकि मैं तेरे ही कुल से आती हूं तेरा कुल मेरा कुल समान है । अब वह मुझे अपनी मौसी मान सकती है । इस पर बहुत ही प्रसन्न होते हुए वह राक्षसी ने कहा ठीक है । मैं तुरंत ही प्रियंवदा के पास जाती हूं । राक्षसी तुरंत ही सूअर का रूप धर करके बहुत ही तेजी से दौड़ती हुई प्रियंवदा की ओर जाने लगी । इधर प्रियंवदा अकेले बैठे हुए सोच रही थी कि किस प्रकार से उसे इन पांच नाथो को अपने बस में करना होगा । वह क्या प्रपंच रचे वह ऐसा सोच ही रही थी कि । तभी अचानक से उसकी मां उसके सामने सूअर के रूप में प्रकट हो गई । और कहने लगी बेटी तुझसे मिलने के लिए कोई आया है तू तुरंत चल ।  इस पर उसने कहा ठीक है और दोनों ही तुरंत उस महा विशालकाय राक्षसी के सामने पहुंच गई । राक्षसी ने कहा प्रियंवदा मैं तुम्हें गोपनीय मंत्र देती हूं । इस मंत्र का जाप करके तु एक देवी को प्रकट कर लेगी । उसका नाम है वज्रयोगिनी देवी वज्रयोगिनी की सहायता से तू पंच महा भूतों को अपने अधीन कर पाएगी । क्योंकि तू जल नाथ वायु नाथ अग्नि नाथ भुवन नाथ और अंतरिक्ष नाथ को अपने अधीन कर लेगी ।

यह सुनकर प्रियंवदा बहुत ही खुश हुई और उसने कहा मुझे वह विद्या सिखाइए । फिर उस विशालकाय राक्षसी ने कहा आप मेरे हाथ पर चढ़ जा और वह उसके हाथ पर चढ़ गई । और उसे अपने मुंह के पास ले जाकर के उसे कुछ मंत्र सिखाएं । कुछ देर बाद शंभूनाथ उस महान राक्षसी के रूप में वहां से वापस लौट गए । बहुत ही खुश प्रियंवदा ने सोचा कि इस साधना को करके वह जल्द ही वज्रयोगिनी देवी को प्रकट कर लेगी । और उनसे अपना मार्गदर्शन प्राप्त करेगी । और साथ ही साथ पंचमहाभूतो की साधना के बारे में भी जानेगी कि किस प्रकार से वह अन्य शक्तियों को अपने अधीन कर सकती है । उसने उस रात को ही वह साधना शुरू कर दी सुबह होते होते वज्र योगिनी देवी प्रकट हो गई । फिर प्रियंवदा ने कहा हे देवी आप मुझे वह गोपनीय मार्ग बताएं जिससे मैं जल नाथ अग्नि नाथ वायु नाथ भुवन नाथ और अंतरिक्ष नाथ को अपने वश में कर लूं । उनके साथ शारीरिक संबंध बनाकर उनकी समस्त ऊर्जाओ को अपने अधीन कर लूं । और इसी के साथ संसार की सबसे शक्तिशाली स्त्री बन जाऊं । वज्र योगिनी देवी ने कहा अवश्य लेकिन मैं तुम्हें एक बात बताती हूं । अगर तुम जल नाथ के पास अग्नि नाथ वायु नाथ भुवन नाथ या अंतरिक्ष नाथ इनमें से किसी एक नाथ के पास जाओगी । तो उनकी शक्तियों के कारण तुम वैसी ही बन जाओगी । जब तुम जैसी बन जाओगी तो यह सबसे बड़ी समस्या तुम्हारे सामने है जिसको तुम नहीं जानती हो । और वह सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर तुमने उनके जैसा रूप अगर धर लिया तो फिर किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध नहीं बना पाओगी । क्योंकि जल तत्व को ग्रहण करके तुम जल जैसी हो जाओगी । वायु तत्व को ग्रहण करके तुम वायु जैसी हो जाओगी । पृथ्वी को ग्रहण करके तुम पृथ्वी जैसी हो जाओगी ।

इसलिए इसका एक मार्ग है बहुत ही आश्चर्य । प्रियंवदा ने पूछा हां तुरंत मुझे वह मार्ग बताइए । तब देवी वज्रयोगिनी ने उन्हें कहा कि तुझे किसी पुरुष को सामने बिठा कर के उसके अंदर उन पांचों तत्वों को उपस्थित कराना होगा । क्योंकि यह पांच तत्व अलग-अलग है शरीर के रूप में ही केवल और केवल शरीर के रूप में ही । और वह भी मानव के शरीर में यह पांचों तत्व आपस में मिलकर एक हो जाते हैं । ऐसा संसार में कहीं और घटित नहीं होता है । वरना यह तत्व पृथक है तुम स्वयं देखो अग्नि जल से दूर रहती है वायु भुवन से दूर रहती है भुवन अंतरिक्ष से दूर रहता है । यह सब शक्तियां कैसे एक साथ इकट्ठा हो जाएगी । केवल और केवल मानव का शरीर ही ऐसा होता है जिसके अंदर यह पांचों तत्व एक साथ आकर इकट्ठा हो जाते हैं । और एक दूसरे से मिल जाते हैं । आश्चर्य से प्रियंवदा ने कहा आपकी बात तो बहुत ही सत्य है । मैं कभी भी सफल नहीं हो पाती इसका मतलब अब आप मुझे बताइए । कि मैं क्या कर सकती हूं । तो उसने कहा मैंने एक पुरुष को जीवित कर दिया है अब तुम्हें उस पुरुष को अपने सामने बिठा कर के उसके अंदर इन पांचों नाथो को वशीकृत करके लाना होगा । इनके अंदर लाते ही वह जागृत हो जाएंगे और उन महानतम महान शक्तियां के साथ तुम्हें विवाह करना होगा । वह महाशक्ति जब उनके शरीर के अंदर प्रकट होगी वह त्रिशूल धारी महानतम देव है । इस प्रकार कहने पर प्रियंवदा ने कहा वह कौन है । तब वज्र योगिनी ने कहा वह देवों के देव है अगर वह उस पुरुष के शरीर के अंदर आ गए और फिर तुमने उनसे जो कुछ मांगा वह तुम्हें सब कुछ दे देंगे । इस प्रकार कहने पर प्रसन्न प्रियंवदा ने कहा अवश्य ही मैं आपकी दी हुई बात को पूरी तरह से मान लेती हूं । कि इस पर मै कार्य करूंगी ।

आप मुझे उनका कोई अत्यंत ही गोपनीय मंत्र दीजिए । इस प्रकार से उन्होंने उन्हें गोपनीय मंत्र प्रदान किया । ओम श्रीम महा भूतेश्वराए शंभूनाथाए नमो नमः । इस प्रकार से वह मंत्र देने पर उन्होंने उस मंत्र का जाप शुरू किया । पांच रात्रि तक उन्हें यह जाप करना था । पहली रात्रि पहले तत्वों के लिए उन्हें सामने बिठाए हुए उस पुरुष को जो कि शंभू नाथ ही थे यानी कि उसके पिता ही थे । वह वज्रयोगिनी की माया से एक सुंदर पुरुष और उनके सामने बैठ गए थे । और वज्रयोगिनी ने जैसा बताया था उसी अनुसार वह अपने आगे बैठा करके साधना वह करने लगी । उनके बीच में एक हवन कुंड था और वह इस प्रकार से तांत्रिक क्रिया करती जा रही थी । जल तत्व को अग्नि तत्व को वायु तत्व को भुवन तत्व और अंतरिक्ष तत्व को अपने अधीन करना चाहती थी । सबसे पहले उन्हें वज्र योगिनी देवी उन्हें बताया कि सबसे पहले तुम भुवन तत्वों को अपने अधीन करो । यानी कि पृथ्वी तत्व को । इसके लिए तुम स्थिर समाधि ग्रहण करो । बिल्कुल भी हिला नहीं जैसे कि पृथ्वी स्थिर है हिलती डुलती नहीं है । क्योंकि वह हिले डुले तो सब कुछ नाश हो जायेगा । इसलिए तुम्हें बिल्कुल स्थिर हो जाना है । पांचो दिन तुम्हें इसी प्रकार स्थिर अवस्था में रहना है । अपनी रीड की हड्डी को बिल्कुल भी हिलने डुलने नहीं देना है । तभी तुम पृथ्वी तत्व को विजयी करोगी । प्रियंवदा स्वयं में शक्तिवान थी । और उसने वह क्रिया आसानी से कर ली । अब वह पांचों दिन ना हिलने वाली थी इसी प्रकार उसके अंदर पृथ्वी तत्वों का समावेश हो गया ।  सामने बैठे उस पुरुष के अंदर भी पुरुष तत्वों का समागम हो गया । पहला तत्व प्राप्त होने पर दूसरा तत्व के लिए उसने वायु तत्व को करने की सोची । वायु तत्व को पुकारने के साथ ही उसके शरीर के अंदर से पसीना और भाप शरीर के अंदर से निकलने लगी । वह भाप वायु तत्व थी । इस प्रकार उसने वायु तत्व को भी अपने अधीन कुछ ही समय में कर लिया । दूसरा दिन खत्म हो गया । तीसरे दिन अग्नि तत्व शरीर उसका बहुत ही ज्यादा गर्म हो गया ।

सामने बैठे व्यक्ति का भी शरीर बहुत ही ज्यादा तपने लगा । इस प्रकार से अग्नि तत्व उसके अंदर प्रकट हुआ । शरीर की त्वचा लाल पड़ने लगी और भीषण गर्मी को झेलते हुए । शरीर में अग्नि का पैदा होना । अग्नि तत्व की जीत का दर्शाता था । इस प्रकार अग्नि तत्व की विजयी हो गई । तीसरे दिन हो गई । चौथे दिन जल तत्व के कारण उसके आंखों से आंसू गिरने लगे । सामने बैठे व्यक्ति को देखकर के उसके मन में भाव बदलने लगे उसे देख कर के अत्यंत ही आंसू आ रहे थे । वह रोती चली जा रही थी और शरीर से पसीना तेजी के साथ बह रहा था । यानी कि जल तत्व शरीर से बाहर निकल रहा था । जल तत्व की विजय होने के कारण जल तत्व की शक्ति बढ़ती जा रही थी  । वह जल तत्व शरीर से बाहर निकलकर शुद्ध होता जा रहा था । और इसी के साथ प्रियंवदा का शरीर भी शुद्ध होता चला जा रहा था । चौथे तत्व जल तत्व की विजय के साथ ही उसके मन में ऐसी भावनाएं आने लगी कि वह यह क्यों कर रही है । यह सब करके उसे क्या हासिल होगा और वह लगातार रोती चली जा रही थी । पांचवा दिन अंतरिक्ष तत्व की विजय करने के लिए जैसे ही अंतरिक्ष तत्व को विजय की जीत करने के लिए जैसे ही अंतरिक्ष तत्वों को जीतने की जैसे ही चेष्टा की । अत्यंत ही शुन्य अवस्था में उसका मस्तिष्क चला गया । अंतरिक्ष का मतलब होता है शून्यता पूरी तरह से शून्यता । उसका मस्तिष्क में ग्रहण हो गई इधर अचानक से शंभू नाथ की जगह पर स्वयं महादेव प्रगट हो गए । महादेव प्रकट होकर बहुत ही ज्यादा मुस्कुराते हुए उसके सामने उसे दिखने लगे । उनको देखकर के प्रियंवदा शांत पड़ गई । उन महादेव ने प्रसन्न होकर विशाल रूप धारण करके पंचतत्व को अपने पांच हाथों में धारण कर रखा था । और उससे कहने लगे हे प्रियंवदा तुझे इन पांचों तत्वों को मैं तेरे शरीर में प्रवेश करा दूंगा । बता तेरी क्या इच्छा है क्या तू इन पांचों तत्वों को अपने अधीन करना चाहती है । प्रियंवदा उनके मुखार बिंद को देखकर उनके चेहरे को देखकर उनके शांति उनके तेज को देख करके ऐसे प्रभावित हुई ।

के रोते हुए कहने लगे हे प्रभु मैं नहीं जानती कि आप कौन हैं । मैं आप का वर्णन नहीं जानती पर सिर्फ इतना जानती हूं कि मेरा मन मस्तिष्क शांत हो चुका है । मेरे अंदर कोई इच्छा ही नहीं रह गई है । आपको देखने के बाद में । अजीब सी भावनाएं मेरे शरीर से निकल चुकी है ना मेरे अंदर काम भाव है ना क्रोध भाव है ना किसी प्रकार का कोई भाव है । यह अंतरिक्ष तत्व विजित होने के बाद मेरे अंदर के समस्त दुर्गुण निकल चुके हैं । मेरे लिए कोई पुरुष कामुक पुरुष नहीं हो सकता । मैं अग्नि विजित करके क्या करूंगी मेरी स्वास ऐसा लगता है किसी और के नाम हो गई है । मैं वायु तत्व को अपने अधीन करके क्या करूंगी । मैं स्थिति करके क्या करूं । मैं इस धरती के समान क्योंकि पत्थर पड़े रहने से क्या फायदा है । मेरे आंसू लगातार बह रहे जल के कारण मेरा शरीर पवित्र हो चुका है । मैं इस जल तत्व को धारण करके क्या करूंगी । और इस अंतरिक्ष तत्वों को देखने के बाद अपने मन में पूर्णता सुन्यता महसूस कर रही हूं । मैं सुन्न हो चुकी हूं । मेरा अस्तित्व ही नहीं रहा अब मैं क्या करूं । मैं आपको अपना समस्त सर्वस्व समर्पित करती हूं । आप कौन है देव मुझे अपना परिचय दीजिए । और मुझे इस मोह माया के जाल से मुक्त कीजिए । क्योंकि मैं समझ नहीं पा रही हूं कि मैं क्यों रो रही हूं । उन महादेव जी ने स्वयं को पंचमुखी महादेव के रूप में प्रकट कर महान तेज प्रकट किया । उनके देखने मात्र से लोगों के मोक्ष हो जाते हैं । वह सामने प्रियंवदा के खड़े होकर उससे कहने लगे । हे पुत्री तो अभी तक माया के जाल में फंसी हुई थी वास्तव में तू एक विद्याधरा है । विसमस्त विद्याधर मेरी ही शक्तियों से मेरी ही सेवा में हजारों वर्षों से रहते हैं । मेरे हजारों गणो में विद्याधरो का नाम भी सम्मिलित है ।

तू भी विद्याधरणी थी । और अपने किसी बुरे कर्म की वजह से तूने सशरीर यहां जन्म लिया है । यहां जन्म लेकर के तूने अपनी माता से बुरे संस्कारों को प्राप्त किया है । और इसी कारण तेरे मन में इस तरह की भावनाएं आई । तूने अपने पिता को मारने की कोशिश की तूने सब कुछ करने की कोशिश की । लेकिन पंचतत्व को उपासना करने के दौरान तूने वास्तविक सत्य को जान लिया । कि इन पांच तत्वों का सम्मिलित स्वरूप मनुष्य का शरीर ही होता है । और यही समय होता है कि वह इन पांच तत्वों से मुक्त हो जाए । इन्हें ग्रहण करके इन्हें अपने अधीन करने के चक्कर में ना पड़े । बल्कि स्वयं को मुक्ति का द्वार खोल ले । तू जान चुकी है और इस कार्य में तेरी देवी वज्र योगिनी ने विशेष सहायता की है । मैं वज्र योगिनी को भी आशीर्वाद देता हूं  कि उनकी भक्ति और तंत्र से निश्चित रूप से लोगों के कार्य सिद्ध होंगे । और तुझे अपने शिव गणों में सम्मिलित करता हूं । इस प्रकार से प्रियंवदा ने महा देव के चरण छुए । और क्षमा मांगी कि मैंने अपने पिता के लिए ऐसा करने की कोशिश की । शंभूनाथ भी वहां पर आ गए । उन्होंने अपनी पुत्री को अपने गले से लगाया । और कहा की है विद्याधरा शक्ति वास्तव में तुम ही हो जिसकी वजह से मुझे देवी वज्रयोगिनी की कृपा और भगवान महादेव के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए । अब मैं तो मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूं । मेरा अब कोई उद्देश्य नहीं रह गया है । इस प्रकार भगवान शिव ने शंभूनाथ को मोक्ष प्रदान कर दिया । प्रियंवदा विद्याधरा शक्ति बन करके शिव के गणों में सम्मिलित हो गई । और इस प्रकार से यह कहानी यहीं पर समाप्त हो गई । आशा करता हूं कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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