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वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 1

वज्रयोगिनी मंदिर की विधाधारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । आज बात करेंगे विद्याधरा शक्ति के बारे में ऐसी कहानी जो आप ने नहीं सुनी होगी । विद्याधारणी जो होती है एक ऐसी प्रजाति है जो हिमालय के क्षेत्रों में रहती है  । और यह जो है भगवान शिव के सहचर माने जाते हैं । इनके पास चमत्कारिक शक्तियां होती है बौद्ध धर्म में भी विद्याधरो का उल्लेख आता है । और शिवओ के हजार गण है उनमें शिवजी की जो है उनके साथ में इनकी पूजा की जाती थी । तो यह शक्तियां बहुत काल पहले अपने आप को गुप्त कर ली यानी या यूं कहिए अपने आप को छुपा ली । क्योंकि संसार में इन चीजों का वर्चस्व अपने आप को दिखाने से यह लोग छुपाते थे । तो असल में यह धरती पर रहते थे और उप देव के रूप में इनको विख्याती प्राप्त थी । उपदेव का मतलब होता है जैसे कि देवता होते हैं देवता के ऐसे स्वरूप जो धरती पर रह रहे हैं । लेकिन इनके पास बहुत सारी शक्तियां हैं इन्हें देवता जैसा ही समझा जाने लगता है । यह देवता है जैसे कि कोई अगर बहुत बड़ा तांत्रिक हो गया और बहुत बड़ा सिद्ध योगी हो गया तो उसको हम देवता ही मानने लगते हैं । जीवित देवता उसी तरह जीवित देवता के रूप में विद्याधरो को माना जाता था ।    तो आज मैं आपको जो कहानी बताने जा रहा हूं वह है वज्रयोगिनी मंदिर । जो है नेपाल में स्थित है यह सांखो में स्थित मंदिर है । यहीं पर एक मठ हुआ करता था और उस मठ की शक्तिशाली एक प्रिय्यमदा नाम की विद्या धारणी स्त्री हुई । उसने बहुत ही ज्यादा तहलका मचाया उस क्षेत्र में  । हालांकि गोपनीय हो करके वह अपने जीवन से उसने जो जो कार्य किए वह सारी बातें आज के इस कहानी में मैं बताऊंगा । इस सीरीज को हम आगे लेकर चलेंगे । इस बात के लिए बहुत सारे बातें कही जा रही थी कि आप विद्याधरा शक्ति के बारे में भी बताइए । तो विद्याधर कौन होते हैं विद्याधर क्या होते हैं और उनकी क्या क्या शक्तियां और समर्थ है ।

तो यह एक विशेष गोपनीय क्षेत्र है इसीलिए आज मैं आपके लिए विद्याधर शक्तियों के बारे में बताने के लिए आया हूं । तो सबसे पहले जान लीजिए कि विद्याधर होते कौन हैं विद्या का मतलब ऐसी शक्ति पाकर मालिक जो विशेष प्रकार की सिद्धि उनके पास होती है । इस वजह से वह विद्या को धारण करने वाले को विद्याधर कहलाते हैं । तो विद्याधर ऐसे ही एक विद्या धारणी एक स्त्री हुई । जिसका नाम था प्रिय्यमदा । वह वज्र योगिनी मंदिर की शक्तिशाली विद्या धारणी थी । उससे जो वहां कभी कोई मठ रहा होगा तो सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि यह जगह है कहां पर और यहां पर कभी तांत्रिक मठ था । तो कैसा था वज्र योगिनी मंदिर जो है वह नेपाल में ही स्थित है और यह काठमांडू की घाटी के सांखू जगह है । वहां पर एक तांत्रिक मंदिर के रूप में विख्यात है । इसको माना जाता है इसे बोधिसत्व के रूप में भी जाना जाता है । यह एक प्रकार का मंदिर परिसर कहते हैं । इसको और इसका जो निर्माण है सोलहवीं शताब्दी में राजा प्रताप मल के द्वारा बनाया गया था । ऐसा कहा जाता है वज्र योगिनी देवी के बारे में वर्णन आता है कि यह तांत्रिक देवी है । तांत्रिक देवता के रूप में इनको जाना जाता है । और बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म दोनों लोगों में इनको मान्यता प्राप्त है । यह उग्र रूपी है उग्र तारा के रूप से भी इनको कहा जाता है । और यह जो मंदिर है बौद्ध और हिंदुओं में प्रसिद्ध है तो यह तो हो गई स्थान की बात की कहां की यह कहानी है । उसी स्थान पर प्राचीन समय में एक मठ रहा था । अब यह कितने हजार साल पहले की बात है ।

यह कब की बात है इसके संबंध में कोई ज्ञान नहीं है । लेकिन इस कहानी के माध्यम से आप विद्याधराओ की शक्तियों के बारे में जान पाएंगे । और सभी चीजों के बारे में यहां वर्णन किया जाएगा । तो सबसे पहले जानते हैं कि कहानी की शुरुआत होती कहां से है । वज्र योगिनी मंदिर में एक पंडित जी थे वह पूजा करने के लिए इस मंदिर में आया करते थे उनका नाम था शंभू नाथ । तो शंभू नाथ अधिकतर मंदिर में आकर के पूजा किया करते थे देवी को सिद्ध करने उनकी चेष्टा थी कोशिश रहती थी । की देवी वज्रयोगिनी को अपनी साधना के द्वारा सिद्ध कर ले । तो इसलिए उन देवी को वह जपते थे और बाद में यहां मंदिर बना तो वहां पर वह अधिकतर जाकर के देवी वज्रयोगिनी की साधना किया करते थे । भगवान शिव के काफी बड़े भक्त थे । वह इसी प्रकार वह वज्रयोगिनी देवी की साधना एक बार कर रहे थे गुप्त तरीके से गुप्त साधना में बैठे हुए थे । तभी वहां पर एक लाल सिंदूर से सनी हुई बहुत ही तीव्र ज्वाला प्रकट किए हुए । एक देवी सी वहां पर लड़की जो छोटी सी बच्ची उनके सामने से आ गई । और वह जा रही थी तो उसको देख कर के अचानक से इनकी आंखें खुल गई और इन्होंने अपनी साधना वहीं पर रोक दी वह उसके पीछे-पीछे चलने लगे । वह तारा रूपणी देवी वज्रयोगिनी ही थी । और वह उनके पीछे पीछे जा रहे थे तभी देवी तालाब के किनारे पहुंची । और उस तालाब में वह प्रवेश कर गई । उस तालाब में प्रवेश करने के बाद उनके पीछे पीछे यह भी तालाब के अंदर जाने की कोशिश करने लगे । तभी वहां पर एक बड़े से अजगर सर्प ने इनके हाथ को डस लिया । और अपने शक्तिशाली जो है कुंडली में उनके हाथ को पूरा लपेट लिया । और धीरे-धीरे करके उनके पूरे शरीर को लपेटने की कोशिश करने लगा ।

इस वक्त वह चिल्लाने लगे और उनके मुंह से उन्हीं देवी का नाम निकलने लगा । अपने उस स्वरूप को देखकर के अचानक से उनके मन में ममता जाग गई । और क्योंकि उग्रतारा के रूप में देवी उस जलाशय के अंदर प्रवेश की थी । वहीं से वह बाहर निकल आई और उन्होंने बहुत ही क्रोधित होकर के उसी वक्त उस अजगर को पकड़कर के बीच से चीर दिया उसका नाश कर दिया । छोटी लड़की के रूप में उनके सामने आई और उनको अपनी गोदी में उठाकर उड़ती हुई उसी जगह पर लेकर आई । जिस जगह पर वह साधना कर रहे थे उन्होंने जब अपनी आंखें खोली । तो उन्होंने देखा उनके सामने एक छोटी सी बच्ची बैठी हुई है । उस बच्ची को देख करके उनके मन में बहुत ही प्रेम भाव जागृत हुआ । और उनसे पूछने लगे कि तुम कौन हो मैं तो तालाब के किनारे जो है पढ़ा हुआ था वहां मुझे अजगर ने पकड़ लिया था । तो फिर वह देवी बोली आपको उस अजगर से एक देवी ने बचाया है । और उनकी कृपा से ही तुम जो है बच पाए हो उनकी साधना और उपासना करो । उन्हें प्रसन्न करो निश्चित रूप से तुमको वरदान देंगी । इस पर वह बोलने लगे कि अब वरदान क्या लेना है । मुझे मैं तो केवल साधना और उपासना उनकी किया करता हूं उनकी भक्ति चाहता हूं  ।उनकी साधना करके उनको प्रसन्न करना चाहता हूं । अगर कुछ देना ही होगा तुम्हारी जैसी प्यारी बच्ची मुझे दे देंगी और जिसके पास अद्भुत शक्तियां हो ऐसी कोई कन्या मुझे प्रदान करें । तो उस समय देवी ने तुरंत ही वहां उन्हें दर्शन दिए और विशालकाय रूप बनाते हुए कहा कि तुम्हारी अगर इच्छा है । तो मैं तुम्हें एक कन्या देने जा रही हूं लेकिन तुमको जिस सर्प ने काटा असल में वह एक राक्षस था । इस कारण से तुम्हारा रक्त भी दूषित हो चुका है अगर तुम कोई भी कन्या पैदा करोगे । तो उसके अंदर एक महान दुर्गुण होगा उस महान दुर्गुण से वह कभी नहीं बचेगी । उस महान दुर्गुण को उससे तुम्हें उसकी रक्षा करनी होगी ।

उसे समझाना बुझाना होगा और उससे तुम्हें हमेशा उसे बचा कर रखना होगा । तो फिर उस बात पर खुश होकर के शंभू नाथ मैं कहा माता आपकी कृपा से भला किसी का क्या बुरा होगा । इसलिए अवश्य ही मैं अच्छी से अच्छी कन्या का  पिता बनू ऐसा मुझे वरदान दीजिए । इस पर वह प्रसन्न होकर के उग्रतारा देवी ने जो कि वज्रयोगिनी के नाम से जानी जाती है । और बहुत ही बड़ी तांत्रिक देवी के रूप में भी उन्हें माना जाता है उन्होंने प्रसन्न होकर के कहा अवश्य ही तुम्हारे सामने तो स्त्रियां आएंगी उनमें से चयन करना अगर तुमने सही स्त्री का चयन किया तो तुम्हें अति पवित्र कन्या प्राप्त होगी । और अगर तुमने दूसरी स्त्री का चयन किया तो फिर तुम्हें कन्या तो प्राप्त होगी लेकिन उसमें शक्तियां भी होगी लेकिन उसका दुर्गुण दूर नहीं होगा । वह एक दुर्गुण से भरी रहेगी । इस प्रकार देवी यह कहकर के अदृश्य हो गई अब चुकी शंभूनाथ ने सोचा कि अब उनको माने आशीर्वाद दिया है । तो निश्चित रूप से उनको आने वाले समय में दो स्त्रियों की प्राप्ति होने वाली है इन दोनों स्त्रियों में से मुझे एक का चयन करना होगा । और अपनी समझदारी दिखानी होगी क्योंकि अगर मैंने गलती की तो मुझे जो कन्या मिलेगी उसमें दुर्गुण होगा अगर वह दुर्गुण चला जाता है । तो ऐसी कन्या स्वयं देवी स्वरूप होगी और मैं उसका पिता होगा इसलिए मैं बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हो जाऊंगा और शक्तियों से भर जाऊंगा । क्योंकि ऐसे पुत्री का पिता होना बहुत ही बड़े सौभाग्य की बात है । यह बात सोच कर के वह अपनी साधना में इसी प्रकार लीन हो गए करीब 1 वर्ष तक उन्होंने इसी प्रकार से साधना की और अपनी साधना में एक दिन लीन होकर के बैठे हुए थे । तभी वहां जोरों से बारिश आ गई बहुत तीव्र बारिश आने की वजह से अब उनको किसी जगह स्थान लेना था ।

जहां पर जा करके वह अपनी बारिश से बच सकते थे तो वह भागते हुए जा रहे थे । क्योंकि उस जगह गुरु ने साधना संपन्न की थी साधना संपन्न करने के कारण से वह जगह को उन्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि बारिश तेजी से हो रही थी । तो सब चीजें धूल जाने वाली थी और आसपास ऐसा स्थान नहीं था जहां पर वह शरण ले पाते वह भागते हुए से जा रहे थे । तभी सामने उन्हें एक पेड़ के नीचे एक बैठी हुई स्त्री दिखाई पड़ी उसको देख कर के वह वहीं पर रुक गए और उससे कहने लगे कि आप यहां पर क्यों बैठी है । पेड़ से भी तो पानी नीचे आता रहेगा और पत्तियां कितना बचाएगी आपको तो वह कहने लगी नहीं मैं अपने इसी स्थान पर रहूंगी और आप जाना चाहे तो आगे जा सकते हैं । लेकिन चयन आपका होगा उसकी बात को सुनकर के उन्होंने कहा ठीक है मैं आगे जाता हूं और आप अपने इसी स्थान पर बैठे रहिए । तो उस स्त्री ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा मत जाइए कोशिश करिए । कि आप यहीं रुक जाए पर उन्होंने उनकी बात को नहीं माना और वह भागते हुए आगे चले गए । इसके बाद थोड़ी ही दूर पर एक छोटी सी कोठी बनी हुई थी और उस कुटी के सामने एक कन्या बैठी हुई थी । जैसे कि पेड़ के सामने एक बैठी थी ठीक उसी तरह वहां पर भी एक कन्या बैठी हुई थी । वह बहुत ही ज्यादा सुंदर नजर आ रही थी उसने दूर से ही उन्हें हाथ दिखा कर बुलाना शुरू कर दिया यह कुछ समझे नहीं और उसकी ओर दौड़ते हुए चले गए । जब वह उसके पास पहुंचे तो उसने कहा कि आप अंदर आ जाइए क्योंकि आप बारिश में भीगते हुए नजर आ रहे हैं । अगर आप ज्यादा देर भीगेंगे तो निश्चित रूप से बीमार पड़ सकते हैं उसकी बात को सुनकर के उनको अच्छा लगा कि चलो उसने मुझे बुलाया है ।

और वह उसके साथ अंदर बैठ गए तभी उन्होंने कहा कि आप के लिए मैं अपने पिता के सारे वस्त्र दे देती हो उनको आप पहन लीजिए । और अपने कपड़े बदल लीजिए इस प्रकार से जब उन्होंने उसको कहा तो उन्होंने कहा ठीक है अच्छी बात है और वह उनके पास में जाकर क्योंकि उन्होंने आग भी अंदर जलाई हुई थी । वह पास पास बैठ कर के एक दूसरे को देखने लगे । क्योंकि कन्या बहुत ही ज्यादा सुंदर थी तो उसको देख कर के शंभू नाथ के मन में प्रेम उत्पन्न होने लगा । शंभू नाथ ने सोचा कि यह कन्या अगर इतनी मददगार है । तो क्यों ना मैं इससे ही विवाह कर लूं तो उन्होंने सोचा कि हां । उन्होंने उससे धीरे-धीरे करके बातचीत करना प्रारंभ कर दी । वह कन्या भी पूरी तरह से आतुर थी । थोड़ी देर बाद उसने भोजन पकाया और तभी उसे भोजन में अजीब सी महक आने लगी शंभू नाथ ने कहा क्या पकाया है । तो उन्होंने कहा आप खा लीजिए यह मत सोचिए कि क्या बनाया है क्योंकि यह सब सोचने विचारने से चीजें बिगड़ जाती है । उन्होंने उनकी बात को ध्यान नहीं दिया और उस रसीले पदार्थ को पीलिया उसको पी लेने के बाद में उन्होंने कहा मैंने हिरण का जो है । मास पकाया था उसको पूरी तरह से तरल में बदल दिया था । इसकी वजह से आपने उसको पिया है और बहुत ही ज्यादा आपको स्वादिष्ट भी लगा । शंभू नाथ ने कहा यह तुमने क्या किया मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था कि मैं हिरण के मांस को खाऊंगा । मैं तो शुद्ध शाकाहारी हूं और यही सोचता था की शुद्ध शाकाहारी ही मुझे रहना है । क्योंकि भोलेनाथ का मैं भक्त हूं सिर्फ देवी को प्रसन्न करने के लिए जो है उनकी साधना और उपासना किया करता हूं । पर मेरा शाकाहार में ही विश्वास है और मैं मांसाहार नहीं खाता हूं यह आपने क्या किया है तब उस कन्या ने कहा कि अगर आप ऐसा सोचेंगे तो फिर आपकी जो गलती आप से हो गई है । उसको कभी भी नहीं सुधार पाएंगे इस बात को छोड़ दीजिए जो हो गया सो हो गया आप मेरे पिता के वस्त्रों को पहन लीजिए ।

और इस प्रकार से उन्होंने उसके पिता के लिए हुए वस्त्रों को पहन लिया अब बात रात्रि में सोने की आई । उन्होंने कहा मैं कहां पर सोऊ तो वह कहने लगी कि मैंने घास फूस बिछा दिया है और क्यों की जगह कम है इसलिए मैं आपके साथ ही आपके ही बगल में लेट जाऊंगी आप इस बात से बिल्कुल भी घबराइए गा नहीं । और ना ही इस बात के लिए कभी संकोच कीजिएगा कि आप मुझे नहीं जानते है । उसकी बातों में इतना अधिक आकर्षण था कि शंभू नाथ ने यह सोचे बिना वह किसी अकेली स्त्री के घर में इस प्रकार से उसके साथ व्यवहार कर रहा है । वह उस घास फूस में लेट गया साथ ही वह स्त्री भी उसके साथ उसके बगल में लेट गई चारों ओर का वातावरण धीरे-धीरे करके बदलने लगा और उसी दौरान ऐसा हुआ जिसकी वजह से दोनों के बीच में संबंध बन गए इन संबंधों के कारण से ही सुबह जब संभूनाथ उठा तो कहने लगा हाय मैंने यह क्या कर दिया । तो वह कन्या बोलने लगी अब आपने जो किया सो किया अब आपको मुझसे विवाह कर लेना चाहिए । फिर शंभू नाथ ने कहा अवश्य ही मैं तुम्हें धोखा नहीं दे सकता हूं इसलिए मैं तुमसे विवाह करने की बात मानता हूं और शंभू नाथ ने उसकी मांग भर दी । फिर दोनों का विवाह हो गया दोनों का विवाह हो गया और साथ ही साथ वह दोनों बहुत ही खुशी से रहने लगे । तभी एक दिन दरवाजे पर कटकट आहट हुई शंभू नाथ ने दरवाजा खोला तो देखा कि वहां पर वही लड़की खड़ी है जो 1 दिन वृक्ष के नीचे बैठी हुई थी । और वह जो है मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोकने की कोशिश कर रही थी उसको देख कर के ही अचानक से संभूनाथ को आश्चर्य हो गया शंभू नाथ ने कहा कि आप यहां पर किस लिए आई है । उसने कहा मैं आपकी रक्षा करने आई हूं ।

आप जिस स्त्री के साथ में रह रहे हैं वह एक राक्षसी है और बहुत सारी विद्याओं में महारत उसको हासिल है आपने कहीं उससे विवाह तो नहीं कर लिया है क्योंकि वह अधिकतर वह विवाह कर लेने के बाद में पुरुषों का वध कर देती है । तब संभूनाथ को होश आया और शंभू नाथ ने सोचा कि इस संबंध में देवी ने उसे पहले ही बता दिया था कि तुम्हारी जिंदगी में दो स्त्रियां आएंगी अगर तुमने गलत चुनाव किया तो तुम इस बात को भुक्तोगे । मुझे यह सोचना चाहिए था कि अकेली स्त्री मुझे क्यों बुलाएगी और इस तरह की लज्जा हीन स्त्री के साथ में मैंने कैसे विवाह कर लिया । और ऐसी स्थिति पैदा हो गई शंभू नाथ ने कहा यह तो बहुत बड़ी गलती हो गई मुझे लग रहा है कुछ ना कुछ बहुत गलत होने वाला है । तब स्त्री बोली गलत होने वाला नहीं है गलत हो हो चुका है और मैं सिर्फ आपके प्राणों की रक्षा करने आई हूं । मुझे भी देवी का वरदान मिला था कि अगर तुमने जब भी कोई तुम्हारी इच्छा अनुसार तुम्हें सुंदर पुरुष मिलेगा । अगर तुमने उसका हाथ पकड़ा और वह रुक गया तो तुम उसकी पत्नी बन जाओगी  । और उसकी पत्नी जब बन जाओगी तुम कुछ समय बाद एक सुंदर पुत्री को जन्म दोगी अगर तुम ऐसा कर पाई तो वरना तुम्हें सिद्धि भी नहीं मिलेगी । और पति भी नहीं मिलेगा इसीलिए मैंने आपका हाथ पकड़ा था लेकिन देखिए समय का खेल आपने एक राक्षसी को चुना । मुझ जैसी एक मानवी को नहीं चुना इस प्रकार शंभूनाथ में अद्भुत आश्चर्य किया और कहा यह क्या है ।

यह तो बहुत ही गलत हो गया तभी उन्होंने देखा कि वहां पर जो उसकी पत्नी बनी हुई राक्षसी थी । वह तुरंत ही सूअर के रूप में बदली और वहां से तीव्रता से भाग गई शंभूनाथ चिल्लाता हुआ उसे पुकारने लगा । लेकिन वह सूअर के रूप में वहां से भागती चली जा रही थी उसके बड़े बड़े दांत थे । उसकी गति को देखकर शंभू नाथ समझ गया कि निश्चित रूप से मैंने बहुत बड़ी गलती की है । अब उस स्त्री से बोलने लगा क्या इसका कोई विकल्प नहीं है । तब उसने कहा विकल्प नहीं है यह तो है ही है सबसे बड़ी समस्या यह आ चुकी है । कहीं अगर आपने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए होंगे । तो फिर आपको एक संतान की प्राप्ति होगी । और वह संतान आपको जंगल में वह छोड़ कर के चली जाएगी शंभूनाथ में हाय तौबा मचाने शुरू कर दी । अब उन्हें सारी बात याद आ गई की देवी ने क्या-क्या कहा था अब उन्हें यह भी पता था कि अब जो पुत्री उन्हें प्राप्त होगी उसके अंदर एक दोस होगा । तभी अगले दिन शंभू नाथ उसी कुटिया में रहते हुए उस स्त्री के साथ में बहुत ही ज्यादा परेशानी में थे । वह स्त्री उन्हें काफी कुछ समझाने की चेष्टा कर रही थी । लेकिन वह बहुत ही ज्यादा दुख में थे । तभी दूर किसी बच्चे की रोने की आवाज सुनाई पड़ी उस और शंभू नाथ और वह स्त्री बढें । तो उन्होंने देखा कि एक बहुत ही विशालकाय पेड़ है । उसके नीचे एक कन्या जो नवजात कन्या है वह पढ़ी हुई है उसको देखकर शंभूनाथ की आंखों में आंसू आ गए । आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 2

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