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विश्वावसु गंधर्व साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज मैं आपके लिए एक अत्यंत ही विचित्र, शक्तिशाली और गुप्त साधना लेकर उपस्थित हुआ हूं। यह साधना है गंधर्व राज विश्वावसु की साधना। यह राजा अपनी शक्ति से आपको दिव्य शक्तियां प्रदान कर सकता है और गंधर्व होने के कारण आपके जीवन में प्रेम सौंदर्य, सुंदर पत्नी और सुंदर पति की प्राप्ति भी करवाता है।शक्तिशाली और सबसे अधिक उत्तम गंधर्व राज होने की वजह से इनकी महिमा! विद्या उस समय के दुर्लभ ग्रंथों में भी प्राप्त होती है। तो चलिए जानते हैं पहले इनके विषय में और फिर इनकी साधना के पीडीएफ को आप इंस्टामोजो से डाउनलोड भी कर पाएंगे।असल में इन्हें दक्ष गंधर्व राज विश्वावसु कहा जाता है। महर्षि कश्यप और मां प्राधा

के संबंध से ही इनका हम वर्णन प्राप्त करते हैं।

प्राचीन काल में गंधर्व लोक में महर्षि कश्यप और प्राधा से उत्पन्न पुत्रों में विश्वावसु नाम के एक महान ज्ञानी संगीतज्ञ और शास्त्रों को जानने वाले गंधर्व राज का वर्णन मिलता है जिन्हें भिन्न माया शास्त्रों के साथ जासूसी चाक्षुषी विद्या में भी निपुणता हासिल थी। यह चाक्षुषी विद्या को इन्होंने भगवान सोमदेव यानी चंद्रमा से प्राप्त किया था। और सोमदेव ने इस विद्या को स्वयंभू मनु से प्राप्त किया था। इसके बाद इसी चाक्षुषी विद्या को विश्वा बसु ने अपने मित्र! अंगार चित्ररथ गंधर्व को प्रदान किया था। महाभारत के काल में धनुर्धारी अर्जुन ने इसी चाक्षुषी विद्या को चित्ररथ से प्राप्त करके सीखा था। इस विद्या को जानने वाला तीनों लोकों में होने वाली घटनाओं को अपनी दिव्य दृष्टि से पहले ही देख लेता है और प्राप्त कर लेता है। इसलिए उस कालखंड में उस समय में गंधर्व शक्तियों का एक व्यापक प्रभाव मौजूद था। गंधर्व राज  विश्ववसु की एक सुंदर कन्या थी और उसका नाम मदालसा था। क्योंकि यह उसके पिता थे।

मदालसा, संगीत साहित्य कला और अन्य विद्या में निपुण थी। उसने आध्यात्मिक की शिक्षा भी प्राप्त की थी तथा ब्रह्म के रूप की भाग प्रकांड विख्यात भी थी। इसका विवाह पराक्रमी राजा रितु ध्वज के साथ हुआ था। पुराणों में चित्ररथ गंधर्व को गंधर्व राज विश्वावसु का पुत्र बताया जाता है। गंधर्व तथा अप्सराओं द्वारा गंधर्व मनु प्राप्त करने के लिए किए गए पृथ्वी दोहन में विश्वावसु को वत्स भी बनाया गया था। इंद्र और नामुचि के बीच हुए युद्ध में इंद्र के पक्ष में यह शामिल हुए थे। याज्ञवल्क्य ऋषि के साथ उन्होंने आध्यात्मिक विषयक चर्चा भी की थी जिसमें उन्होंने याज्ञवल्क्य ऋषि से 24 प्रश्न पूछे थे। अप्सरा मेनका से इन्हें? प्रमद्वरा द्वारा नामक कन्या उत्पन्न भी हुई थी।

अप्सरा मेनका से इनका विवाह हुआ था। चित्र से नामक एक गंधर्व इनका पुत्र भी था जैसा कि हम जानते ही हैं माता-पिता द्वारा। प्रमद्वरा को ठुकरा दिए जाने के बाद उसका लालन पोषण स्थूल के ऋषि ने अपनी पुत्री मान करके किया था और उसके बाद में इसका विवाह उन्होंने च्यवन ऋषि के पुत्र रूरू से करवा दिया था।

मान्यता के अनुसार गंधर्व राज विश्वा बसु को गंधर्व लोक के अन्य गंधर्व राजाओं, चित्रसेन व तुमवरू गुरु से विशिष्ट पद पर माना जाता है। स्वयंभू मनु की पुत्री। कर्दम प्रजापति पत्नी देवहुति से इनका प्रथम दर्शन में ही प्रेम हुआ था। अतः वह मनोमय कोश में पुरुष जब अपनी उन मन शक्ति द्वारा ध्यान अवस्था में विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष में जाता है। तब विज्ञानमय कोष की आत्मा से एक ही भाव को प्राप्त हुआ वह गंधर्व बन जाता है और विश्ववासु स्वरूप धारण करता है।

तो आप समझ रहे होंगे कि यह कोई साधारण गंधर्व नहीं है। यह बहुत ही उच्च कोटि के देवता माने जा सकते हैं। माधुरी अथवा सौंदर्य के भावों का मूल काम है और काम इच्छा और भावनाओं में पर प्रेम की अनुभूति को गंधर्व शक्तियां संभालती हैं और इसके विपरीत भाव को अप्सरा शब्द के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं मनोमय का आत्मा गंधर्व है तो गंध इसकी पत्नी होती है। तेतरीय आरण्यक में विश्वा बसु सोम गंधर्व के बारे में कहा गया है। तैत्तिरीय आरण्यक में विश्वावसु सोमगंधर्व के बारे में कहा गया है “इन्द्रो दक्षं परि जानादहिनम्” अर्थात इन्द्र उस दक्ष को जाने जो अहीन है, जो हीनता से परे है, अत: दक्ष विश्वावसु जो संपूर्ण ज्ञानोन्मुख है, जो देवराज इन्द्र के जितेन्द्रिय इच्छाओं के भी शिक्षक योग्य सर्वज्ञ हैं।भगवान बुध पुत्र पूर्वा व अप्सरा उर्वशी के प्रेम विरह के कारक विश्वसु गंधर्व ही थे। जब इन्होंने राजा पुरवा के पालतू भेड़ों को चुपके से भगा ले जाने का काम किया तो यह जानकर निद्रा से हताश जान पुरवा नग्न अवस्था में ही उर्वशी के समक्ष आकर खड़े हो गए थे और इस कारण पुरवा का उर्वशी को दिया गया प्रणव टूट गया था और उर्वशी पूर्वा को अकेला छोड़कर फिर इंद्रलोक चली गई थी।

कालांतर में ब्राह्मण के श्राप के कारण विश्ववासु का पृथ्वी लोक में कबंध नामक राक्षस के रूप में जन्म भी हुआ था जो आगे चलकर दशरथ नंदन भगवान श्री राम के हाथों मारा गया था और उसकी मुक्ति हुई थी और फिर जाकर यह अपने मूल स्वरूप गंधर्व को प्राप्त किया था। यह तब घटित हुआ था जब वनवास के समय सीता मैया की खोज में रामचंद्र और लक्ष्मण के साथ वन में भटक रहे थे।

जिस का चाक्षुषी को यह प्रदान करते हैं उसके संबंध में भी मैं आपको बताता हूं। रामायण के बाद घटित इस महाभारत कथा में।

महाभारत काल में पांडवों के साथ माता कुंती ने पांचाल देश की ओर प्रस्थान किया था। मार्ग में गंगा के किनारे सोमा श्रेयान नामक एक तीर्थ पढ़ता था। रात्रि की बेला में वह वहां से जा निकले। उस समय गंगा में गंधर्व राज अंगारपड़ा चित्ररथ अपनी पत्नी के साथ जल क्रीड़ा कर रहे थे। उस एकांत में पांडवों की पदचाप को सुनकर के वह क्रोधित हो गए। पांडवो में सबसे आगे हाथ में माशाल लिए अर्जुन थे। चित्ररथ ने कहा, रात्रि का समय गंधर्व यक्ष और राक्षसों के विचरण के लिए ही निश्चित किया गया है। अतः मानव प्राणियों को यहां आना अनुचित ही है। ऐसा जानकर चित्ररथ ने अर्जुन पर प्रहार कर दिया तो जवाब में अर्जुन ने उस पर अग्नियास्त्र भी छोड़े। उनके अस्त्रों से वह मूर्छित हो गए चित्र की पत्नी! कुंभी नसी ने युधिष्ठिर की शरण ग्रहण की थी। तब पांडवों ने चित्र को छोड़ दिया था। चित्ररथ ने कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए उन्हें चाक्षुषी विद्या सिखाई इस विद्या के प्रभाव में नेत्रकेंद्रों में यानी आंखों में दिव्य दृष्टि की क्षमता स्थापित हो जाती है। साथ ही चित्ररथ ने प्रत्येक पांडव को गंधर्व लोक के 100-100 घोड़े भी प्रदान किए थे जो स्वेच्छा से आकार प्रकार और रंग बदलने में समर्थ है। वह घोड़े कभी भी स्मरण करने पर उपस्थित हो जाते थे। अर्जुन ने चित्ररथ को दिव्यास्त्र अग्नियास्त्र की विद्या भी प्रदान की थी। चित्ररथ का रथ उस युद्ध में खंडित हो गया था  उसने अपना नाम चित्ररथ के स्थान पर “दग्धरथ” रख रख लिया था।

इससे आप जान सकते हैं कि? कैसे अर्जुन को चाक्षुषी विध्या चित्ररथ के माध्यम से प्राप्त हुई थी इस विद्या को जानने वाला व्यक्ति।

आंखें बंद करके। और इसके अलावा अपने ज्ञान के कारण किसी भी लोक में घटित हो चुकी या होने वाली। जो भी घटनाएं होती हैं, उनको पहले ही जान लेता है और इतनी अधिक शक्ति उसके अंदर आ जाती है कि वह विभिन्न प्रकार की दिव्य ऊर्जा को महसूस करता हुआ। भविष्य में घटित होने वाली किसी भी लोक की कोई भी घटना वह देख सकता है। पहले से ही वह जानता होता है। इसी को चाक्षुषी विद्या के नाम से जाना जाता है।

इस साधना का दूसरा सबसे बड़ा फायदा वह यह है कि इस साधना को करने वाला व्यक्ति।

सुंदर पत्नी और स्त्री सुंदर पति प्राप्त करती है और पत्नी को वश मे रखती है। पति को वशीकरण रखती है स्त्री और पुरुष को वशीकरण।

प्राप्त करने की एक विद्या भी इसके माध्यम से व्यक्ति को प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति किसी को भी अपने वश में कर सकता है खासतौर से भोग सुखों की अगर बात की जाए तो असीम आनंद की प्राप्ति इनकी साधना की वजह से होती है क्योंकि यह इस विद्या में व्यक्ति। या स्त्री को निपुण बना देते हैं, इसीलिए बहुत ही अधिक आनंद की प्राप्ति भोग सुखों में व्यक्ति को प्राप्त होने लगती है। इसके अलावा!

नृत्य गायन। क्रीडा! और ललित कलाओं कि विद्या व्यक्ति को स्वयं ही मिलने लग जाती है जो लोग भी सुंदर बनना चाहते हैं। मॉडलिंग के क्षेत्र में जाना चाहते हैं अपने चेहरे को दिखा कर। या यूं कहिए ब्लॉगिंग करना चाहते हैं? ऐसे लोगों के लिए यह साधना बहुत ही उत्तम है और इनके। विद्या शक्ति के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलता है और अद्भुत शक्ति की प्राप्ति होती है और जीवन बदल जाता है। इस साधना को खरीदने के लिए आप मेरे नीचे दिए गए लिंक जो कि मैंने वीडियो के डिस्क्रिप्शन में दे रखा है। वहां से क्लिक करके इंस्टामोजो अकाउंट में जाकर के खरीद सकते हैं और इनकी साधना कोऔर कर सकते हैं। इनके मंत्र का 200 बार रोजाना उच्चारण करना पड़ता है। और यही इनका मूल मंत्र भी है तो इनके मंत्र और साधना के विषय में संपूर्ण जानकारी के लिए आप नीचे इंस्टामोजो अकाउंट भी जाइए और वहां से इनकी इस गुप्त विद्या को प्राप्त कीजिए और सरल और इस सात्विक साधना को अवश्य ही करिए ताकि आपके अंदर भी विभिन्न प्रकार की कलाएं आएं और गंधर्व राज की कृपा से आपके जीवन में खुशियां सुख और समृद्धि की प्राप्ति हो। तो यह कि आज की है साधना और इनका विवरण अगर आपको यह साधना और विवरण पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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