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शमशान भूमि में पिशाचिनी साधना

शमशान भूमि में पिशाचिनी साधना

चलिए शुरू करते हैं इस पहले पॉडकास्ट से एक ऐसे तांत्रिक की कहानी जिसने। पहली बार पिशाचिनी को सिद्ध किया। उसके जीवन में क्या क्या अनुभव हुए? वह सारे वहाँ। आपको इस ऑडियो पोस्टकार्ड के माध्यम से सुनने को मिलेंगे। ये कहानी लगभग आज से। 1200 वर्ष पुरानी है। यह उस समय का दौर था जब हमारे यहाँ अभी। शुरूआत ही हो रही थी। ओर रजवाड़ों का समय था। एक ऐसा समय जब पहली बार इस्लामी आक्रमण भी भारत में शुरू होता है। लेकिन इसके संदर्भ में वहाँ की जनता को कुछ भी मालूम नहीं था। और न ही जनता इन सब चीजों के लिए कभी भी तैयार होती थी। मतलब नहीं था की उनका शासक कौन होगा? उन्हें तो सिर्फ। उसके प्रति वफादार रहना है। इसी बहुत बड़ी बात का फायदा विदेशी आक्रमणकारियों ने उठाया था क्योंकि वह यह बात जानते थे कि जनता में से कोई भी व्यक्ति कभी भी राजा नहीं बन सकता। केवल राजा का पुत्र ही राजा बनता है। और या फिर किसी दूसरे राजा का पुत्र जो वहाँ पर हमला करके कब्ज़ा कर ले? इसी वजह से हमारे देश को गुलाम बनाने में बड़ी आसानी हुई। क्योंकि ऐसी मान्यताओं के कारण। कोई भी व्यक्ति विरोध के लिए खड़ा ही नहीं हुआ। जो जैसा जी रहा था वह वैसा ही जीता रहा। राजा आए और राजा बदलते रहे। ऐसे ही समय में। एक बार की बात है एक व्यक्ति। एक गुरु के पास जाता है। उनके पास पहुँचकर उनसे वार्तालाप करता है। वह एक रहस्यमय गुरु थे। उनका आश्रम राज्य के बिलकुल अपने बालों को आखिर वह क्यों नहीं बांधती थी, यह एक सच में रहस्य है। लेकिन। यह देखकर सारे लोग आश्चर्य में वहाँ पर आ जाते थे और उन गुरु के आश्रम में आकर अपनी अपनी समस्याओं को उन्हें बताया करते थे। लेकिन समस्या कभी भी। अगर हल हो जाती। तो फिर वह उन गुरू को दान और दक्षिणा भी देते थे। वहाँ के गुरु का यह भी कहना था। कि समाज में कोई भी कन्या स्त्री अगर अकेली हो चुकी है तो वह उनके पास आ जाये। और अगर वह उनके पास आती है तो वह उसका पूरा समर्थन करेंगे। उसे अपने पास रखेंगे। और उसे बस आश्रम में रहना है। और गुरु के कार्यों को करते रहना है। इसी वजह से कई लोग वहाँ पर गलत। कार्यों के लिए भी आते थे, लेकिन गुरु जी की सख्ती के कारण। उनकी कोई भी योजना सफल नहीं होती थी। स्त्रियों को अपने पास रखना सदैव ही। मुश्किल भरा होता है। अगर वह जवान है तो। इस बात को वहाँ के गुरु जी अच्छी प्रकार से जानते थे। इसीलिए उन्होंने सख्त निर्देश दे रखे थे। कि कोई भी स्त्री अकेले किसी भी पुरुष से नहीं मिलेंगी। जब भी स्त्रियाँ। किसी भी पुरुष के पास जाएंगी तो कम से कम 8-10 की एक गुट में वहाँ पर जाएंगी। यह सारी बातें उनके नियम में थी। शायद इसी वजह से राष्ट्र आश्रम पूरी तरह से स्वच्छ था। अब। वह व्यक्ति उन गुरु के पास पहुँचता है। और उनसे कहता है। गुरु जी। मैं तंत्र विद्या सीखना चाहता हूँ। क्योंकि मैंने सुना है कि तंत्र विद्या के माध्यम से हम संसार की। अद्भुत चीजों के बारे में जान सकते हैं। ऐसा भी सुना है कि ऐसी शक्ति यो से आप वार्तालाप भी कर सकते हैं। क्या आप मुझे ऐसी कोई विद्या सिखाएंगे? तब उन गुरूजी ने कहा। आकर गुरु से कहना बड़ा ही सरल होता है। लेकिन यह कार्य इतना भी आसान नहीं है। सबसे पहले गुरुमंत्र की दीक्षा लोन, जो कि मैं तुम्हें एक सात्विक मंत्र दूंगा। इसके माध्यम से मैं तुम्हें पवित्र करूँगा, तुम्हारे पूर्व जन्मों के पाप नष्ट होंगे। अगर तुम में योग्यता मुझे नजर आईं तब कहीं जाकर मैं तुम्हें तंत्र विद्या सिखाऊंगा। उसने पूछा गुरु जी मैं गुरुमंत्र आपसे लेने के लिए क्या मुझे आश्रम में सदैव रहना पड़ेगा? तब उन्होंने कहा। इसकी भी आवश्यकता नहीं है। तुम इसका मंत्र जाप अभी अपने घर में रहकर करो। और जब इसका पूरा विधान, जैसा कि मैंने बताया है। पूरा हो जाए तब तुम मेरे पास है ना? मैं तुम्हें विशेष प्रकार से दीक्षित करूँगा। एक ऐसी तांत्रिक साधना के लिए। जिससे तुम कर पाओ। तुम्हारी सामर्थ्य को समझते हुए तुम्हारी स्थिति को जानते हुए। यह बात सुनकर वह व्यक्ति। अपने गुरु के रूप में। उन्हें स्वीकार करता है। गुरूजी ने उसे वह दिव्य मंत्र दिया जिसका जाप वह वर्षों से करते आ रहे थे। और उनसे पहले उनके गुरु करते थे। मंत्र को प्राप्त कर वह अपने आपको धन्य समझता हुआ। अपने वापस गांव में आ जाता है। इस व्यक्ति के पास धन की कोई कमी नहीं थी। माँ बाप का एकलौता लड़का। लेकिन माँ बाप? हमेशा अपने बच्चे के लिए चिंतित रहते हैं। ओर जल्दी से जल्दी उसे गृहस्थ जीवन में लेकर आना चाहते हैं। ताकि उनका बुढ़ापा भी आनंद से कटे और उनका पुत्र भी। सांसारिक जीवन को अच्छी प्रकार से जीता हुआ आगे का कदम बढ़ाएं। तो माँ ने उससे कहा तुम मंत्र जाप पूजा पाठ इन सबके चक्कर में। क्यों पड़े हो? अभी तो तुम जवान हो। तुम्हारा उद्देश्य शादी करना होना चाहिए। और शादी कर लेने के बाद से तुम्हे जीवन के सारे सुख अपने आप मिलने लगेंगे। हम भी। पोता पोती का मुँह देखेंगे। और हमारा परिवार आगे बढ़ेगा। इसे छोड़कर पूजा पाठ वगैरह। नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके कारण। तुम्हारा यह जीवन बिगड़ जाएगा। और सबसे बड़ी समस्या यह है। की जवानी में अगर इस प्रकार करोगे? तो फिर सन्यासी होकर भटक जाओगे। तब वह। परेशान होकर अपने गुरु के पास फिर से जाता है। और माता से हुए वार्तालाप को उन्हें कहता है। उनसे पूछता है गुरु जी? क्या यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है? कि वह। शादी करें। बच्चे पैदा करें। और अपने जीवन को इसी प्रकार जी ये जैसे उसके माँ बाप ने जिया था। गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा। जीवन में प्रत्येक व्यक्ति अपने उद्देश्य स्वयं निर्धारित करता है। कि उसे करना क्या है? साधारण व्यक्ति जो चल रहा है। उसी को सत्य समझता है। उसके परे जाने की उसकी इच्छा कभी नहीं होती। वह अपने जीवन को बचा कर और रक्षा के लिए। संयमित होकर जीता है। सारे सुखों का उपभोग। वह करना चाहता है। लेकिन साधारण व्यक्ति कभी इस रहस्य को नहीं समझ पाता है कि जीवन इसके परे भी है। जीवन सिर्फ स्वयं के लिए जीना। पशु की तरह होता है। जैसे एक पशु। दूसरे पशु को अपना खाना खाने नहीं देता। इसी प्रकार संसार में मनुष्य। स्वार्थ के लिए दूसरों का अहित भी कर देता है। अब ऐसे मैं तुम्हें यह बात समझनी होगी कि तुम्हारे जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या है? प्रत्येक व्यक्ति को। वेदों में बताया गया है। कि उसे पुरुषार्थ करने चाहिए। तब उस व्यक्ति ने पूछा गुरु जी, यह पुरुषार्थ क्या होता है? और इसका क्या महत्त्व है? तब उनके गुरु जी ने कहा सुनो। पुरुषार्थ होने का अर्थ है। जैसे पुरुष के रूप में तुमने जन्म लिया है। तो जीवन का जो उद्देश्य है, उसे पूरा करना ही पुरुषार्थ कहलाता है। और यह चार प्रकार से पूरा किया जाता है। प्रथम हैं धर्म। दूसरा हैं अर्थ। तीसरा है काम। और चौथा है मोक्ष। पहला कार्य व्यक्ति को धर्म पर चलकर अपने जीवन को संयमित होकर जीना चाहिए और सदैव अपने इस सनातन धर्म को आगे बढ़ाने का कार्य भी करते रहना चाहिए। धर्म धारण करने की वस्तु है अर्थात धर्म से ही जीवन चलता है। हर प्रकार से नैतिक व्यवहार करना। नीतिपरक उद्देश्यों को रखकर आगे बढ़ना। किसी का भी अहित नहीं करना। स्वयं के सुख, परिवार के सुख, समाज के सुख, स्वयं के देश के सुख और मानव जाति। के सुख? के लिए ही समस्त कर्म करने चाहिए। यही वास्तविक धर्म है। दूसरा है। अर्थ। जिसका मतलब होता है संसार की समस्त भौतिक सुख सुविधाओं को भोगना। और अपने जीवन का। पूर्ण सदुपयोग करना। मनुष्य शरीर। सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त कर सकता है। और यह सारे उद्देश्य। माता लक्ष्मी को प्रसन्न करके व्यक्ति अवश्य प्राप्त करें और अपने भौतिक जीवन की सुख सुविधाएं, सम्पन्नता, वैभव। सब कुछ प्राप्त करें। और इसे आगे भी बढ़ाए। मनुष्य। अपने स्तर तक सीमित न रहे। अपने कल्याण के स्तर को वृहद करें। यही अर्थ है। तीसरा। उद्देश्य होता है काम। काम का अर्थ है अपनी वासनाओं को नियंत्रण में रखते हुए। अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति भी करना। जिसमे। हम।*** ***** के आधार पर स्त्री पुरुष के प्रेम को देखते हैं। इस प्रेम के माध्यम से हम जीवन को आगे बढ़ाते हैं। एक दूसरे के प्रति लगाव लगातार इसी *** ***** के कारण बना रहता है। और इसी के कारण। जीवन आगे बढ़ता है। नए जीव के रूप में एक नई संतान पृथ्वी पर आती है। और यह वंश परम्परा। आगे बढ़ती रहती है। जो कार्य तुम्हारे पिता ने किया? जिसके कारण तुम्हारी उत्पत्ति हुई। यह तुम्हारा भी उद्देश्य है कि वही कार्य तुम भी करो ताकि। जो भी जीवात्मा जन्म लेकर मुक्ति को प्राप्त करना चाहती है वह इस जीवन को आकर। जीए और आगे बढ़ाएँ। उसे अच्छे संस्कार देते हुए। आप उसकी मुक्ति का मार्ग प्रदर्शित कर सकते हैं। इसीलिए चौथा और महत्वपूर्ण होता है। मोक्ष? जिसकी चर्चा कोई नहीं करना चाहता, लेकिन सबसे बड़ा और अंतिम उद्देश्य मोक्ष ही होता है। तुम्हारी माता। शुरू के इन्हीं तीनों उद्देश्यों के लिए तुम्हें भाषण दे रही थी। लेकिन चौथे उद्देश्य के लिए कोई भी तैयार नहीं है। व्यक्ति बार बार यह भूल जाता है। की अंतिम सत्य मृत्यु ही है। आप चाहे कितना भी धन, राशि, रुपया, पैसा। बड़ी संपत्ति? पुत्र स्त्रियाँ वैभव। सब कुछ प्राप्त कर लें। आप राजा की तरह जीवन जीएं। किंतु। अंतिम सत्य मृत्यु ही है। इस मृत्यु। उसके बाद की अवस्था क्या होगी? इस का निर्धारण करना भी आपके ही हाथ में है। जैसे। अगर कल आपको कहीं यात्रा पर जाना है आज उसके लिए आप पहले अपने कपड़े। यात्रा के लिए वाहन। और जाने के लिए पूरी तैयारी। कर लेते हैं। ठीक उसी तरह। मोक्ष के लिए भी व्यक्ति को तैयारी करनी चाहिए। यह तैयारी। गुरु मंत्र के माध्यम से। साधना के माध्यम से। अपनी ईष्ट देवी देवता के प्रति समर्पण के माध्यम से। अच्छा सदाचारी जीवन जीते हुए। लगातार साधना में रत रहते हुए। आगे बढ़ना ही। इसी का मूल उद्देश्य है। ताकि। अगर हम किसी गलती के कारण दोबारा मनुष्य का जन्म ले तो भी हमारे अंदर पूर्वजन्म के संस्कार, पूजा पाठ इत्यादि। विद्यमान रहे। और अगर हम समझदार हुए तो यही हमारा अंतिम जन्म होगा। तब। उस व्यक्ति ने पूछा आखिर? यह होता क्या है? और व्यक्ति बार बार जनम क्यों लेता है? गुरु जी इसके बारे में बताइए? तब उन्होंने कहा। ध्यान से सुनो जीवन का। यह उद्देश्य है। की। आप जैसे कर्म करेंगे उसी के अनुरूप आपका आगे का। भाग्य निर्मित होता जाता है। लेकिन इच्छाओं के कारण आगे अब उसी इच्छा को पूर्ति करने के लिए। विभिन्न प्रकार के कर्म करते रहते हैं। लेकिन सारी इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती। यह अंतिम सत्य है। इन्हीं इच्छाओं के कारण बार बार व्यक्ति को जन्म लेना पड़ता है। ओर फिर से आकर इस दुनिया के प्रपंच में फंसकर। इन्हीं इच्छाओं के पीछे दौड़ते रहना पड़ता है। केवल साधना। उपासना गुरु मंत्र का जाप इत्यादि। इसके कारण हमारे अंदर बैराग्य आ जाता है। और फिर अंतिम समय में भी हम विचलित नहीं होते। मृत्यु के समय हम अपने ईष्ट। मुझको याद करते हैं। क्योंकि यह कहा जाता है। क्योंकि जब अंतिम समय आता है। तो पूरा जीवन आपके सामने फिर से लौटकर आता है। और इस। उसके कारण। आप बहुत ज्यादा विचलित हो जाते हैं। आपको याद ही नहीं रहता कि इस समय आपको अपना ध्यान। अपने देवी या देवता में लगाना चाहिए। यह उस वक्त की सबसे बड़ी माया होती है। इससे बचने का उपाय केवल यही है क्या आपने जीवनभर? पूजा पाठ, साधना, उपासना। की हो क्योंकि ऐसा होने पर वह दृश्य भी आपके समक्ष निश्चित रूप से आएगा। और तब व्यक्ति को याद आ जाएगा कि उसे क्या ध्यान करना है। कहते हैं मृत्यु के समय जो भी व्यक्ति। जिंस भी चीज़ का ध्यान करता है। उसी को प्राप्त कर जाता है। इसीलिए उस वक्त भागवत साक्षात्कार की इच्छा रखते हुए। उस देवी शक्ति को याद करना चाहिए। क्योंकि उसी को प्राप्त करना मूल उद्देश्य है। और ऐसा करने पर साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। बार बार। पृथ्वी पर कष्ट भोगने के लिए। जन्म नहीं लेना पड़ता है। क्योंकि यहाँ पर सब कुछ सीमित है शरीर के रूप में आप। पूरी तरह सीमित है। यह बातें सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, मैं यह सारी बात समझ गया लेकिन माँ बाप परिवार को कौन समझाए और वह कैसे समझ पाएंगे। क्योंकि जो चीज़ नहीं दिखती उस पर व्यक्ति विश्वास भी नहीं करता है। तब गुरु जी ने कहा। तुम्हारा जीवन तुम्हारा है। तुम्हारे जीवन के लिए कोई दूसरा जिम्मेदार नहीं हो सकता है जैसे। अगर तुम कहो माता मुझे भूख लगी है मेरी जगह आप भोजन कर लेना मेरा पेट भर जाएगा। और माँ यह कहे ठीक है, मैं तेरे जगह भोजन कर लूँगी। तू चिंता मत कर, तेरी जिम्मेदारी मैं लेती हूँ। क्या यह संभव है? उस व्यक्ति ने कहा। आपने सही बात कही है गुरूजी। यह तो संभव है ही नहीं। गुरु ने कहा। यही तो मैं समझा रहा हूँ। क्या आपके अपने जीवन के उद्देश्यों और कर्मों के लिए आप ही ज़िम्मेदार है? दूसरा कोई नहीं? अगर आपको कोई दूसरा कुछ ना करने को कहता है तो उससे पूछें कि इसे करने से क्या होगा, ना करने से क्या होगा? उसे समझाएं कि जीवन में मूल उद्देश्य क्या है? आपने जीवन। को प्राप्त किया है। तो वेदों में वर्णित पुरुषार्थों को करने के लिए आप तैयार हो गए लेकिन अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति के लिए आपने कॉमन सा तरीका अपनाया है। अब यह बात व्यक्ति को अच्छी तरह समझ में आ चुकी थी। इसलिए उसने परिवार वालों की बातों की ओर कोई भी ध्यान नहीं दिया। और अपनी गुरु मंत्र के अनुष्ठान को। पूरा करके अपने गुरु के पास लौटकर आ गया। गुरूजी ने कहा, क्या तुम तांत्रिक साधनाओं के लिए? लालायित हो या फिर केवल मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा से हो। तब उसने कहा, गुरूजी। यह तो मुझे पता हो गया है कि अंतिम सत्य मोक्ष की प्राप्ति ही है। लेकिन। मीरा भटकाऊ ना हो। मैं जीवन के अन्य गुप्त रहस्यों को जान पाऊं। इस जीवन के अलावा भी कोई अन्य जीवन है? यह समझ, पाउ। और। इससे जानना इसलिए भी आवश्यक है गुरु जी। क्योंकि अगर कोई। यथार्थवादी व्यक्ति मुझसे तर्क करेगा। तो उससे मैं क्या बता पाऊंगा? जबकि मैं कुछ जानता ही नहीं। सिर्फ इतना की मुझे मोक्ष प्राप्त करना है। और अगर कोई व्यक्ति ये कहें। कि मोक्ष जैसी कोई चीज़ नहीं होती है। मरने के बाद तुम भस्म हो जाओगे, जलकर राख हो जाओगे। इस लिए अपना जीवन खुशी के लिए जियो। जो चाहते हो वह प्राप्त करो। चाहे उसके लिए किसी को जान से ही मारना क्यों न पड़े, किसी की संपत्ति हो, उसे छीन लो। क्योंकि अंतिम सत्य तो मृत्यु ही है। गुरु ने कहा तुम्हारी बात बिलकुल सत्य है। मैं समझ गया। तुम तांत्रिक साधनाओं को सिद्ध करके यह समझना चाहते हो की इस जीवन के अलावा भी। एक पारलौकिक जीवन है। जहाँ मरने के बाद व्यक्ति प्रवेश करता है। और यह बात केवल साधना करने वाला व्यक्ति ही समझ सकता है। इसीलिए अब तुम साधना करने के लिए उपयुक्त हो। लेकिन। इसमें तुम्हारी परीक्षा भी होगी। काम। क्रोध *****। सभी प्रकार के दोष। इन सब की। परीक्षा ली जा सकती है। इसलिए सबसे पहले तो मैं तुम्हारी परीक्षा ले लेता हूँ। ताकि मुझे विश्वास हो कि तुम। कौन सी साधना कर पाओगे? तब उसने कहा गुरु जी। मुझे पिशाचिनी साधना सिखाइए। क्योंकि मैंने सुना है यह शक्ति जल्द ही सिद्ध होती है। पता नहीं वर्षों तक मैं कौन सी साधना करूँ? और मैं अपना सब्र खो दू। और अगर सब्र टूट गया। तो मैं खुद भी विश्वास नहीं करूँगा कि जीवन में कुछ भी होता है, इसलिए सबसे छोटे स्तर की तीव्र शक्ति पिशाचिनी को ही सिद्ध करना मैं चाहता हूँ। ताकि जल्दी से। इस दुनिया के रहस्य को जान पाऊं। तब। प्रेमपूर्वक गुरूजी ने कहा। इसलिए। सबसे पहले, मैं तुम्हारी। भय की परीक्षा लूँगा। क्योंकि बाकी चीजें तो तुम स्वयं संभाल लोगे। लेकिन। भय यानी कि डर। सबसे बड़ा विषय है पिशाचिनी साधनाओं में यह शक्तियां बहुत भयानक होती है और आहिद करने में तनिक सी भी देर नहीं लगाती है। इसलिए आवश्यक हो जाता है। कि तुम्हारी परीक्षा ली जाए। देखो। पास के ही। श्मशान भूमि में तुम्हे? एक पूरी रात्रि गुजारनी होगी। और यहाँ रात अमावस्या की रात होगी। क्योंकि इस दिन। बुरी शक्तियां जाग्रत रहती है। जाओ। और श्मशान में जाकर विश्राम करते हुए सो जाओ। अगले दिन सुबह मेरे पास आना। जो अनुभव हुआ मेरे अतिरिक्त किसी अन्य को नहीं बताना। क्योंकि ऐसा करने से आपकी प्रक्रिया दूषित हो जाती है। तब उस व्यक्ति ने कहा ठीक है। आपने सही कहा, लेकिन गुरु जी माना कि मैं शमशान भूमि में रात को जाऊंगा। लेकिन वहाँ मेरी रक्षा कौन करेगा? तब गुरु जी ने कहा। वही गुरु मंत्र। जिसे मैंने तुम्हें दिया था। वही तुम्हारी रक्षा करेगा। और। जितना हो सके भयभीत मत होना। क्योंकि अगर तुम पूरी रात्रि वहाँ गुजार पाए। तो जब वापस आओगे? तो तुम इस साधना के लिए उपयुक्त हो चूके होंगे। तुमने अपना पहला चरण। सभी प्रकार से सिद्ध कर लिया होगा। यह बात सुनकर। मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति ने अपने गुरु के पैर छुए और। उठाया अपना झोला चल दिया गांव के बाहर के उस शमशान भूमि में। यह श्मशान भूमि बहुत ही खतरनाक दिखने में लगती थी। 1000 साल से यहाँ पर चिताएं जलाई जा रही थी। यहाँ एक दिव्य स्थान था। लेकिन उसे जिसे यह बात समझ में आये। शमशान भूमि के द्वार पर पहुंचते हुए ही। उसने देखा वहाँ अभी भी कई चिताएं जल रही है। एक भयंकर। बिलकुल गंदा। हाथ में डंडा लिए हुए एक व्यक्ति उसे दिखाई दिया। जो कि उसकी और बड़ी तेजी से आ रहा था। वो इतना ज्यादा गंदा था। कि उससे दूर से ही बदबू आ रही थी। वह काला भुजंग व्यक्ति। जिसकी आंखें लाल लाल थी। शरीर काला दिखता था, उसके पास पहुँच गया। जिसे देख कर एक क्षण के लिए तो व्यक्ति डर गया

 

वह देखता है कि एक भया ही गंदे काले रंग का। भुजंग व्यक्ति जिसकी आंखें लाल थीं और शरीर पूरी तरह काला था। बड़ी तेजी के साथ इनके पास आता है और जैसे ही वह इनके पास पहुंचता है। गुस्से में कहता है। तू कौन यहाँ तेरा क्या काम? तब यह कहते हैं। मैं यहाँ पर एक तांत्रिक साधना के लिए। रात्रि बिताने आया हूँ। पूरी बात मैं आपको नहीं बता सकता, लेकिन आज की रात गुरु के कहने पर मैं यहाँ पर रहकरके बिताना चाहता हूँ। आप कृपया मुझे इसकी अनुमति दीजिए। चाहे आप जो भी हो। वह बड़े गुस्से से रौबदार अंदाज में। इसे देखता है और कहता है। तो यहाँ पर साधना करने आया है। पर यहाँ पर तो चिताएं जलाई जाती है। जहाँ पर शरीर राख हो जाता है। कही तू भी राख बन गया। मारा गया। तब तेरा क्या होगा? यह सुनकर व्यक्ति थोड़ा सा घबराता है। और वहाँ उस व्यक्ति को गौर से देख कर बोलता है। तांत्रिक साधनाओं के लिए। भय से वह व्यक्ति उस व्यक्ति को हाथ पकड़कर शम्स। धान की सैर करवाने के लिए। आगे की ओर आ गया। और उसका हाथ पकड़ा और कहा देखो यह 1000 साल पुराना श्मशान है। यहाँ पर रोजाना चिताएं जलती रहती है। अभी चल तुझे मैं। एक। जलती हुई चिता के पास लेकर चलता हूँ। और वह व्यक्ति उस व्यक्ति को लेकर एक जलती हुई चिता के पास पहुंचा। वहाँ पर एक लाल रंग की साड़ी का टुकड़ा पड़ा हुआ था। इसे देखकर व्यक्ति ने पूछा। यह क्या है? तब वह कहने लगा, अरे? अभी एक नव विवाहिता वधू। की मृत्यु हो गई तो उसे सजा धजाकर के जलाने के लिए लाया गया था। उसी का टुकड़ा शायद जलकर इधर हवा में उड़कर आ गया होगा। चल तुझे दिखाता हूँ। वह कैसी? दिख रही है। यह कहकर वह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगता है। और उस व्यक्ति को उस चिंता के पास ले जाता है। किताबी। वहाँ पर एक खोपड़ी नीचे आकर गिरती है। चिता से जलती हुई वह खोपड़ी बाहर गिर गई थी। यह देखकर व्यक्ति घबरा जाता है। और वह कालाभुजंग व्यक्ति। हंसकर कहने लगता है देख। वह औरत पहले कितनी खूबसूरत थीं और इस वक्त। देख सिर्फ उसका कपाल बचा है। वह भी जलने को तैयार नहीं है। बेचारा व्यक्ति अपनी इच्छाओं को छोड़ना नहीं चाहता, लेकिन शरीर? इतनी उष्मा सहबी तो नहीं सकता, चलो अपना काम मैं पूरा करता हूँ। और उसने। लकड़ी की सहायता से। उस आँधी जली खोपड़ी को उठाकर फिर से उस शमशान की चिंता में डाल दिया। यह देखकर व्यक्ति के मन में थोड़ा भय आया। और वह कहने लगा। क्या आप बिलकुल भी डरते नहीं है? तब वहाँ हंसकर कहने लगा। अरे यह तो मेरा रोज़ का काम है। मैं इस बात के लिए। कभी भी। परेशान नहीं होता। रोजाना इतनी सारी लाशें आती है। अब भला में किस किस से डरूं? तब वह व्यक्ति उस व्यक्ति से। पूछता है। आप यह बताइए? क्या शमशान में सच में बहुत प्रेत दिखाई देते हैं? क्योंकि आप यहाँ पर। भूत प्रेतों के बीच में ही रहते है। आपको तो कुछ न कुछ अवश्य ही दिखता होगा। तब वह व्यक्ति एक बार फिर हंसकर बोला। अरे इसमें इतना सोचने की क्या बात है? जो? जीवित अवस्था में। दिखाई पड़ता है। मरने के बाद अगर वह दिख भी जाएं तो क्या समस्या है? जीवित इंसान ज्यादा खतरनाक होता है। मरने के बाद तो वैसे भी उसकी इच्छाएं बहुत कम रह जाती है। लेकिन जो तू पूछ रहा है उसे चल, मैं बता ही देता हूँ। अगर शमशान में लगातार विचरण करते रहो। तो कभी ना कभी तुम्हे। ऐसी आत्माएं दिख जाती है। जो अपने आप को। दिखाना चाहती हूँ। जब तक आप। उनसे जुड़ने का प्रयास नहीं करेंगे। वह दूसरी दुनिया के। पर्दे में बंद है। वह पर्दा ईश्वर की तरफ से डाला गया है। इंसानी शरीर खत्म हो जाता है। लेकिन इंसानी शरीर के खत्म होने पर भी शरीर में रहने वाली आत्मा खत्म नहीं होती है। वह हमेशा विद्यमान रहती है। कुछ ऐसे हैं जो। इसे दुनिया के पार। उस दुनिया में ऐसे चले जाते हैं कि यहाँ वह कभी थे ही नहीं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो इस दुनिया और उस दुनिया के बीच में फंस जाते हैं। और वही परदे के बीच में रहते हैं, पर्दा हटाओ, उन्हें देख लो। पर्दा गिरा व् वह दिखाई नहीं देंगे। यह बातें सुनकर वह व्यक्ति। बड़ी गौर से उसका ले भोजन व्यक्ति को देखता है। और उनसे कहता है, आप सच में बहुत ज्ञानी व्यक्ति नजर आते हैं। लेकिन मुझे इसके बारे में गहराई से बताइए। आखिर ये पर्दा है क्या और यह पर्दा कैसे काम करता है? इसे कौन बनाने वाला है? तब वह व्यक्ति फिर से हंसा और कहने लगा, अरे? इस पर्दे को बनाने वाला खुद ईश्वर है। लेकिन इस पर्दे को हटाने वाला मनुष्य है। जब तक मनुष्य नहीं चाहेगा, यह पर्दा हट नहीं सकता और इस को हटाना भी आसान नहीं है। क्योंकि जब तक कोई व्यक्ति अच्छी प्रकार से प्रयास नहीं करेगा। इन आत्माओं को देखने की कोशिश नहीं करेगा। तब तक उसे यह चीजें दिखाई नहीं पड़ती है। यह दूसरी दुनिया की चीजें देखने के लिए या तो व्यक्ति के पास। साधना के द्वारा दिव्यदृष्टि प्राप्त हो गयी हो। या फिर इनके बीच रहते रहते इनके जैसे गुण उस व्यक्ति में आ गया हो? और या फिर कोई व्यक्ति स्वयं इन्हें देखने की। कोई सिद्धि प्राप्त करें। ओर सबसे आखरी होता है। वह शक्ति जो इस दुनिया और उस दुनिया के बीच फंस गई है स्वयं अपने आप को दिखाने की कोशिश करें। और ज्यादातर। इस आखिरी वाले। बिन्दु में ही सबसे बड़ा रहस्य है। जब आत्मा स्वयं अपने आप को। सबके सामने प्रदर्शित करने की कोशिश करती है। तब बड़ी आसानी के साथ व्यक्ति उसे देख लेता है। तब इस व्यक्ति ने बड़ी गंभीरता पूर्वक पूछा। आपके ज्ञान से मैं पूरी तरह अचंभित हूँ। ऐसी बातें आज तक मुझे किसी ने भी नहीं बताई। मुझे सोच समझ के ही शायद मेरे गुरु ने आप के पास भेजा है। आप बताईये। कि जब आत्मा स्वयं को प्रकट करती है। तो आखिर कैसे प्रकट करती है? ओर उसके क्या रहस्य होते हैं? मैं इस विषय को गहराई से समझने की कोशिश करना चाहता हूँ। क्योंकि साधना में सिद्धि प्राप्ति के लिए यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि आपको शक्ति यों की गहराई का पूरा ज्ञान हो। वह व्यक्ति कहता है। अच्छा इतना सब तू मुझसे पूछ रहा है? तो मेरे लिए तू क्या लाया है? यह सुनकर व्यक्ति फिर से अचंभित हो गया। ओर सोचने लगा। सच में मैंने इनसे ज्ञान प्राप्त किया। इनसे सब कुछ। रहस्यमयी तरीके से जान पा रहा हूँ। लेकिन इन्हें मैंने कुछ भी प्रदान नहीं किया। किसी भी प्रकार से से आगर ज्ञान प्राप्त करते हैं तो उसे दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। नहीं तो ज्ञान। का पूरा। प्रभाव वह व्यक्ति प्राप्त नहीं कर पाता है। उसको वह ज्ञान आधा अधूरा ही मिलता है। तब उसने कहा। मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। लेकिन अगर आप चाहे तो मैं जो आप कहेंगे वह करके ला सकता हूँ। तब वह काले भुजंग व्यक्ति ने हंसते हुए कहा अच्छा ठीक है। ऐसा कर। यही से पास में। दक्षिण दिशा की ओर एक कुटिया है। वहाँ पर। शराब की तीन चार बोतलें। कुटिया के अंदर पड़ी होंगी। जाओ वहाँ से मदिरा लेकर आ जाओ। वह व्यक्ति तुरंत बिना कोई देर किए तेजी से। उस ओवर बढ़ा। कुटिया में। वह। उन मदिरा को देखता है। और वहाँ मदिरा लेकर आ जाता है। इस व्यक्ति को वह मदिरा सौंप देता है व्यक्ति मदिरा पीते हुए जो़र ज़ोर से हंसने लगता है। तब यह व्यक्ति। उस व्यक्ति से पूछता है। आपके इस प्रकार हंसने का क्या? कारण है। इसके संदर्भ में मुझे कुछ तो बताइए? तो वह कहता है तेरा गुरु बड़ा चतुर हैं। पर। उसका शिष्य सच में इसे योग्य है। कोई बात नहीं। अब मैं तुझे आत्मा के विषय में बताता हूँ। शरीर में रहने वाली आत्मा आपके मूल रूप से शरीर को। मस्तिष्क में रहकर ग्रहण करती है। और उस तरह का उसका एक शरीर बन जाता है, जैसे बर्तन में पानी डालने पर। पानी का आकार बर्तन के जैसा ही हो जाता है, ठीक वैसे ही यहाँ आत्मा शरीर में रहते हुए शरीर जैसी हो जाती है। यही सूक्ष्म शरीर बन जाता है। मरने के बाद यही शरीर बाहर निकल आता है। ओर। इच्छाओं से भरा हुआ यह शरीर। तभी मुक्त हो सकता है जब वह पूर्ण रूप से अपने मूल स्वरूप को जानता हो। खैर यह बात है तो गहरी हो जाएंगी। मैं तुझे केवल भूत प्रेतों के बारे में ही बताता हूँ। इच्छा से भरे हुए यह शरीर मरने के बाद अपनी तीव्र इच्छा के कारण किसी भी मार्ग में नहीं जाता है। मार्ग चाहे पित्र यानी हो चाहे देवयानी। या फिर निम्न कोटि की ओर जाता हो। वह कहीं भी नहीं जाता। यहीं रुक जाता है। कोशिश करता है कि वापस वह अपने शरीर में प्रवेश कर जाए। परन्तु सर ये तो सड़ने लगता है। इस सड़ते हुए शरीर वह दोबारा प्रवेश नहीं कर पाता। इस प्रकार आत्मा यही रह जाती है। लेकिन यह आत्मा? को दूसरे लोग ना देख पाए इसलिए ईश्वर का पर्दा पड़ जाता है। तब यह आत्मा बेचैन रहती है। कोशिश करती है कि कोई तो मिले। जो या तो उसे उस दुनिया में भेज दे या फिर। इस दुनिया में ले कर आ जाए। अगर इस दुनिया में आई तो भी वह अपने सुखों को और इच्छाओं को भोग पाएगी और उस दुनिया में चली गई तो वहाँ की आत्माओं के साथ। रहकर आगे की यात्रा करेगी। तब व्यक्ति ने पूछा। तो आत्मा कैसे अपने आप को प्रदर्शित करती है? तब उस व्यक्ति ने कहा ऐसी आत्माएं निम्न कोटि की। और इच्छाओं से भरी होती है इनके अंदर।***** कामेच्छा। भोग की इच्छा। भूख। और विभिन्न प्रकार की तामसिक। शक्तियां और इच्छाएं विराजमान होती है। इसी कारण से। वह कोशिश करती रहती है। जब भी अमावस। या फिर ग्रह नक्षत्र तारों के माध्यम से। बुरा समय। नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रवाह बढ़ जाता है। उस वक्त। इन्हें शक्तियां प्राप्त होती है। इन शक्ति यों के प्राप्त होने पर यह। थोड़ी देर के लिए उस ऊर्जा के माध्यम से। अपना शरीर किसी को भी दिखा सकती है। और अपनी माया उस वक्त रचकर उस माया में। व्यक्ति विशेष को फंसाने की कोशिश करती है। और उसके माध्यम से अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती है। अच्छा। तुझे यह बात? अच्छी प्रकार से समझाने के लिए। लेकर चलता हूँ। इस श्मशान के दक्षिणी भाग में। और वह व्यक्ति। उस व्यक्ति को लेकर शमशान भूमि के दक्षिण की ओर जाने लगता है। वहाँ पर। वो देखता है। एक बहुत सुंदर। सजी धजी लाल रंग के वस्त्र पहने। जिसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। ओर रो रही थी ऐसी स्त्री? दिखाई पड़ती है। वहाँ बहुत सुंदर दिखाई पड़ रही थी। शरीर पर गहने, वस्त्र, आभूषण सभी कुछ। सजे धजे थे जैसे किसी नवविवाहिता वधू के होते हैं। यह देखकर व्यक्ति ने पूछा यह कौन स्त्री है? ओर इस शमशान भूमि में क्या कर रही है? व्यक्ति हंसने लगता है और कहता है स्वयं जाकर ही पूछो मैं यही से खड़े होकर देखता हूँ। क्यों वह तुम्हें क्या बताती है? और इस प्रकार वह व्यक्ति उस स्त्री के पास पहुँच जाता है। उससे कहता है आप क्यों रो रही है? तब स्त्री। इस व्यक्ति की आवाज पर कोई ध्यान नहीं देती। व्यक्ति दोबारा पूछता है आप क्यों रो रही है? तब भी वह स्त्री कुछ भी नहीं बोलती। व्यक्ति तीसरी बार पूछता है। आप इस प्रकार क्यों रो रही है? और वह व्यक्ति जैसे ही यह तीसरी बार पूछता है। वहाँ। स्त्री खड़ी हो जाती है। और। इस व्यक्ति के गले लगकर रोने लगती हैं।

एक व्यक्ति कैसे एक। शमशान भूमि में अपने गुरु के कहने पर जाता है। वहाँ पर एक स्त्री। उसके गले लगकर रोने लगती हैं। तब। वह आश्चर्य से भर कर उससे पूछता है। आप कौन हैं? और इस प्रकार रोने की क्या जरूरत है? तब वह कहती हैं। इतने दिनों बाद अगर कोई मिले। ओर आपको वह प्राप्त हो जाए तो क्या खुशी नहीं होगी? तब वहाँ व्यक्ति कहता है ऐसा क्या हुआ जिसके कारण से आपको ऐसा लगता है? तब वहाँ। मुस्कुराते हुए अपनी आंखें झुका कर वहीं पर बैठ जाती है। और कहती है। इससे पहले कि मैं अपने मुँह से कुछ बोलूं आपको मैं कुछ देना चाहती हूँ। तब वह व्यक्ति पूछता है आप मुझे क्या देना चाहती है? तब वह कहती हैं, मना मत कीजिएगा। और वह। एक। बहुत ही खूबसूरत मंगलसूत्र उसके हाथ में रख देती है। और कहती है। इसकी वजह से ही मैं यहाँ पर रुकी हुई हूँ। कि कब आप आएँगे, मुझे पहनाएंगे और मैं आपसे हमेशा के लिए जुड़ जाऊँगी। यह सुनकर व्यक्ति। और भी ज्यादा। आश्चर्य मैं आ जाता है। उसे यकीन नहीं हो रहा। की एक अनजान स्त्री? उससे इस तरह की बातें कह सकती है। इससे पहले कि वह कुछ बोलें, वह स्त्री फिर से बोली। अब देर भी मत कीजिए, इसे पहना दीजिए। कब से मैं आपका यहाँ इंतज़ार कर रही थी? की कब आ पाएंगे? और कब मुझे यह पहनाएंगे? बिना। मंगलसूत्र के कोई सुहागन स्त्री। पूरी नहीं मानी जाती है। आपको तो यह बात पता ही होगी। तब यह व्यक्ति। बड़े ही अचरज से। उसे गौर से देखता है। और कहता है। पर मेरा तो विवाह भी नहीं हुआ है। आप कौन हैं मैं? आपको जानता भी नहीं हूँ। आप इस प्रकार से बातें क्यों कर रही है? तब वह कहती हैं, देखिये मुझे मजाक करना पसंद नहीं है। इसलिए पहले तो एक काम कीजिए, इसे मेरे गले में पहना दीजिए। उसके बाद ही मैं। आपको आगे की बाते बताऊँगा। व्यक्ति। कहता है। एक पति ही केवल अपनी पत्नी को मंगलसूत्र खुद पहना सकता है। यह तो बहुत अजीब बात है। मैं तो आपको जानता भी नहीं। क्या आप इस शमशान भूमि में क्या कर रही है? और आप कह रही है कि मैं आपको मंगलसूत्र पहना दूँ? यह मुझसे नहीं हो पायेगा। यह सुनकर वह स्त्री क्रोधित होकर कहने लगी। मैंने कहा ना पहले मुझे। यह मंगलसूत्र पहना दो, उसके बाद मैं तुम्हें आगे की बात बताऊंगी, इसमें देरी मत करो। वरना मुझे गुस्सा आएगा। तब व्यक्ति सोचने लगा कि आखिर यह स्त्री इस प्रकार से उसके साथ में वार्तालाप क्यों कर रही है? वह उससे कहता है। सुनिए, आपको भले ही बुरा लगे, लेकिन मैं आपको यह मंगलसूत्र नहीं पहनानेवाला। इतना सुनते ही वह क्रोधित हो जाती है। और उस जगह पर जहाँ पर एक खूबसूरत नवविवाहिता। गहनों से लदी हुई स्त्री बैठी हुई थी। उसकी जगह भयानक बिखरे बाल वाली। मुँह में। पान चबाती हुई। जिससे एक तरफ से लाल रंग टपक रहा था। ओर। पूरी तरह निर्वस्त्र एक स्त्री दिखाई पड़ती है। जिससे पूरे शरीर से। मांस के सड़ने की गंध आ रही थी। और। वह जैसे पुरुष को लपकने के लिए तैयार बैठी हो। इतनी भयानक चेहरे वाली कि शरीर के आधे हिस्से? को जला हुआ, आधे हिस्से को सड़ा हुआ। ओर शरीर से। टपकता हुआ कहीं कहीं खून। मांस के लोथड़े, यह सारी चीजे दिखाई पड़ रही थी। यह देखकर अचानक से बहुत ज्यादा वह व्यक्ति भयभीत हो जाता है। व्यक्ति इतना ज्यादा डर जाता है कि उसे कुछ समझ में नहीं आता। वह तेजी से पलट कर भागता है। तभी वह फिर से सामने आकर खड़ी हो जाती है। व्यक्ति फिर दूसरी दिशा में भागता है। वहाँ पर भी वह सामने आकर हंसने लगती है और कहती है मुझसे शादी नहीं करोगे क्या मुझसे? रती सुख प्राप्त नहीं करना चाहते हो। मैं तुम्हें आनंदित कर दूंगी। तुम ने सोचा भी नहीं होगा इतना आनंद दूंगी। यह सारी बातें बोलकर वह बार बार सामने उसी भयानक रूप में आ जाती थी। लेकिन तब यह सारी बातें उसके लिए बहुत ही ज्यादा भयानक और डरावनी थी। तो वह उसी स्थान की और भागता है जहाँ पर वह कालाभुजंग। व्यक्ति खड़ा था। उसके पास पहुँचकर उसके पैरों में गिरकर प्रार्थना करता है। आप मेरी रक्षा कीजिए, मेरे पीछे एक भयानक शक्ति पड़ गयी है, यह कौन है? तब वह व्यक्ति कहता है ये तो अभी शुरुआत है। क्या तुम इस श्मशान भूमि में साधना करना चाहते हो या अपने इस विचार को त्यागते हो? तब व्यक्ति ने कहा। मैं साधना करना चाहता हूँ, लेकिन पहले आप इस मुसीबत से मुझे बचाइए। तब वह व्यक्ति हंसकर कहने लगता है। ज़रा उस ओर उस स्त्री को देखो। और व्यक्ति फिर पलट कर देखता है। तो साफ दिखाई पड़ता है। वह। एक नव विवाहिता स्त्री थी। जो कि उनकी चिंता के ऊपर बैठी हुई दिखाई पड़ती है जिससे चिता को। अभी वह भुजंग व्यक्ति। हटा रहा था। वहाँ पर रखी हुई खोपड़ी को जो आँधी जल गयी थी। तब। यह व्यक्ति अचरज से इस काले व्यक्ति से पूछता है। इसका क्या रहस्य है, यह तो अभी मुझे वहाँ पर बैठी हुई नजर आयी थी। लेकिन यहाँ पर तो यह चिंता के उपर जलती हुई बैठी हुई है। यह जल भी नहीं रही है। अाधी अधूरी है। शरीर सड़ा हुआ है, आधा जला हुआ है और मुझसे शादी करने मंगलसूत्र पहनाने की बात कर रही है। इसका पूरा रहस्य मुझे अच्छी प्रकार समझाइए ताकि मैं जान पाऊं कि शमशान भूमि में यह सब कैसी माया हैं? तब हुआ व्यक्ति कहता है। सुनो। यह एक नवविवाहिता। कि आत्मा है। जिसके मन की इच्छाएं नहीं मरी। क्योंकि नई नई शादी इस लड़की की हुई थी। इस कारण से अपने पति से सुख प्राप्त करना चाहती थी। इसके मन में कई तरह की कल्पनाएं थी जिसमें रति सुख के साथ साथ। पति का प्रेम शामिल था। लेकिन। जब। आज समय अचानक से इसकी मृत्यु दुर्घटना में हो गयी। तब से यह। मृत्यु के बाद इसी दुनिया में रह गई क्योंकि इसकी इच्छाएं इस पर बहुत ज्यादा हावी थी और इस प्रकार यह भूतनी बनकर। इस श्मशान भूमि में ही रह गई है। इसी की लाश जल रही थी। शरीर तो समाप्त हो चुका है। लेकिन आत्मा कहा समाप्त होती है। उसे तो आगे बढ़ना चाहिए था, लेकिन अपनी इच्छाओं की वजह से यह यहीं पर रह गई है। इसकी मुक्ति का। मार्ग। यही है या तो यह रहस्य को समझें कि यह आत्मा है और आगे बढ़ जाए। अथवा इसकी इच्छा की पूर्ति हो जाए। दो ही सूरतों में यह इस शरम शान भूमि को छोड़ पाएगी अन्यथा यहीं भटकती रहेंगी और अपने प्रेमी प्रियतम पति की तलाश करती रहेंगी। कोई भी पुरुष इसे अपना पति ही नजर आता है। क्योंकि। आत्माओं की सोचने समझने और पूर्वजन्म की याद नष्ट हो जाती है। उसे सिर्फ अपनी पूर्व की इच्छाएं ही याद रहती है। और यह इच्छाएं। मूल रूप से उस जन्म की तड़प है। वह तड़प जिसमें। रती, सुख, पति का प्रेम, मंगलसूत्र पहनना। सज धज कर नए वस्त्र धारण करना। ताकि सबसे बड़ी इच्छा होती है। इसीलिए इसके मन में यह इच्छा इतनी तीव्र है कि मरने के बाद भी यह इच्छा इसके अंदर पूरी तरह विद्यमान हैं। अब अगर कोई पुरुष। इसे। पूजा करके सिद्ध कर लें। अपनी पत्नी का स्थान दे तो यह उसके साथ सिद्धि बन कर रहे गी। और इसके समस्त कार्य उसी प्रकार करेगी जैसे कि एक नव विवाहिता। स्त्री अपने। पति के लिए करती है। पति जो भी आदेश उसे देता है। वह सारे कर्म। नव विवाहिता स्त्री। अवश्य करेगी। इसी को हम सिद्धि कहते हैं। इसे हम भूतनी को सिद्ध करना कहेंगे। अगर तुम इसे सिद्ध करना चाहते हो? तो सिर्फ इसकी चिंता पर। इसके सामने बैठकर कुछ विशेष मंत्रों का जाप करना होगा। जब तक कि यह तुम से पूरी तरह सिद्ध नहीं हो जाती है। और जब यह पूरी तरह से तुम से सिद्ध हो जाएंगी। तो फिर पत्नी की तरह तुम्हारे साथ रहेंगी। तब यह व्यक्ति कहता है वह सब तो ठीक है, लेकिन मैं इसका वास्तविक रूप जानता हूँ। इतना गंदा, जला हुआ शरीर। जिसने मांस के लोथड़े हो। इतनी भयानक दिखने वाली स्त्री के साथ? कैसे कोई प्रेम कर सकता है? तब व्यक्ति हंसते हुए कहता है। बीच की अवस्था होने के कारण। शरीर नहीं होने के कारण। जैसी अवस्था में इसे जागृति हुई उसी अवस्था का इसका सुषम शरीर हो गया है। लेकिन अगर कोई इस से विवाह कर लेता है तो यह अपने आत्मा से वैसा ही शरीर बना लेगी। वह बहुत ही सुंदर होगा जैसा कि तुमने अभी देखा। यह बहुत सुंदर नजर आ रही थी। ओर ऐसे ही सुंदर स्वरूप में यह हमेशा विद्यमान रहे गी। इसके प्रति प्रेम रहेगा। और व्यक्ति को भी ऐसा भयानक स्वरूप देखने को नहीं मिलेगा। केवल जब यह क्रोधित हो गी तब ऐसा कोई स्वरूप धारण कर सकती है क्योंकि इच्छा के अनुसार यह जैसा चाहे वैसा रूप बना सकती है। इसलिए। अगर तुम चाहो तो इसकी सीधी कर सकते हो। पर व्यक्ति बोला न भाई, न। मेरे बस का नहीं है इसका ऐसा रूप और भयानक स्वरूप देखने के बाद। मुझे नहीं लगता कि मैं इस से विवाह कर पाऊंगा। मुझे इसकी सिद्धि नहीं चाहिए। मैं बस यहाँ पर एक रात्रि बिताना चाहता हूँ। आगे क्या होगा मैं नहीं जानता, लेकिन आपने मेरा मार्गदर्शन बहुत अच्छी प्रकार किया है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैं आपको अपने क्षमता के अनुसार कुछ देना चाहता हूँ। तब उस व्यक्ति ने कहा कोई बात नहीं। शराब की बोतल। ओर ले आना। मैं उसे फिर से पी लूँगा। यह कहकर वह व्यक्ति फिर से हंसने लगा। अब इस व्यक्ति को यह बात तो अच्छी प्रकार समझ में आ चुकी थी। की श्मशान भूमि। कोई। हांसी खेल की जगह नहीं है, यहाँ पर मृत्यु होती है। व्यक्ति के शरीर का परिवर्तन हो जाता है। भौतिक शरीर। इन्हीं पंच महाभूतों में विलीन हो कर। नष्ट हो जाता है, बचती है तो इस शरीर के अंदर रहने वाली वह दिव्य ज्योति स्वरूपा आत्मा। लेकिन। जीवन में किये गए संस्कार कर्म के आधार पर इच्छा का शरीर वैसी इच्छाएं अपने अंदर रखता है। जैसा वह जीवन भर रहा है। इसीलिए वैराग्य सबसे महत्वपूर्ण है। भगवान शिव भी इसीलिए बैरागी है और शमशान भूमि में बैरागी की तरह दिखाई पड़ते हैं इस सत्य को बताने के लिए। अन्यथा इच्छाएं आपको। नए भवन में ढाल सकती है। इस प्रकार। अब व्यक्ति ने। कहा। चलिए मुझे श्मशान भूमि की ओर भी सैर करवाइए। क्योंकि मुझे तो रात भर यहीं रुकना है। मैं चाहता हूँ कि मुझे शमशान भूमि के सभी प्रकार के रहस्य पता चल जाए। तब व्यक्ति हंसते हुए कहता है ठीक है। चलो इस श्मशान भूमि के उत्तर की तरफ एक नदी बह रही है, वहीं चलते हैं। इस प्रकार वह व्यक्ति और वह कालाभुजंग व्यक्ति। एक ऐसे नदी की तरफ बढ़ने लगते हैं। जो कि श्मशान भूमि से लगी हुई थी। ज्यादातर लोग लाशों को जलाने के बाद उसे नदी में ही स्नान करते थे। और। वह व्यक्ति। जल्दी ही उस नदी के बिल्कुल करीब पहुँच जाता है। नदी के पास पहुंचने पर वह तीन चार लोगों को। पानी में स्नान करते हुए देखता है। यह देखकर उस काले व्यक्ति से वह पूछता है। इतनी रात को यह कौन लोग स्नान करने के लिए आए हैं? तब। वह कालाभुजंग व्यक्ति कहता है। अगर किसी प्रश्न का जवाब चाहते हो? तो स्वयं। प्रयास करना चाहिए। सब कुछ अगर मुझसे पूछ लोगे तो स्वयं क्या जानोगे? जाओ उन्हीं से पूछो। और व्यक्ति धीरे धीरे नदी के उस कोने की ओर बढ़ने लगता है जहाँ पर वो सारे व्यक्ति स्नान कर रहे थे। जब उनके पास पहुंचता है तो उन्हें कहता है भाई लोग। लाशें तो? दिन में जलाई जाती है। और ज्यादातर लोग। दिन में ही स्नान करके निकल जाते हैं। आप लोग कौन हैं? और इस प्रकार रात्रि के समय। इस नदी में स्नान क्यों कर रहे हैं? तब उनमें से एक व्यक्ति। बड़े गौर से इन्हें देखता है, लेकिन कोई जवाब नहीं देता। व्यक्ति। थोड़ी देर चुप रहता है। पिछली वाली घटना से उसके मन में डर पैदा था। और। इस डर से। निकलने के लिए। यह आवश्यक था। कि वह व्यक्ति। थोड़ी देर चुप रह के फिर से वही प्रश्न करे। और वह व्यक्ति एक बार फिर से वही प्रश्न करता है। हुआ व्यक्ति और बाकी लोग। पलटकर इसे देखते हैं। वह सारे लोग कहते हैं। हमारा जाने का समय हो गया है। हमारे लिए। किसी ने भी कुछ नहीं किया। क्या तुम कुछ कर सकते हो? जिससे। हमें कुछ शांति मिले। तब यह व्यक्ति पूछता है ऐसी कौन सी बात है? आप मुझे बताईये। मेरी जो भी। सामर्थ्य होगी। उसी के अनुरूप आपकी मदद अवश्य करूँगा। तो वह कहते हैं। यह पानी। को आप। अपनी अंजुली में भरकर। इस नदी में गिर आये और कहिये। इन सभी को ले जाइए। और यहाँ तीन बार कहियेगा। यह सब। अभी मत पूछिए की क्यों? वह व्यक्ति कहता है ठीक है और वह नदी में उतरकर। कमर भर जल में खड़ा होकर। अंजुली में नदी का जल लेता है और उसे नदी को अर्पित करते हुए कहता है इन्हें ले जाइए। दुबारा वही कार्य करता है और तीसरी बार भी वैसा ही करता है। की अचानक से। वह सारे लोग जो़र ज़ोर से हंसने लगते हैं। और कहते हैं। कल्याण हो तुम्हारा? यह सुनकर वह व्यक्ति फिर से आचंभित हो जाता है। और वह सामने से। बड़ी तेजी से नदी से होते हुए आकाश की ओर हवा में। उड़ते हुए जाने लगते हैं। वह सारे लोग काफी प्रसन्न थे। पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और वहाँ से इस प्रकार जाते हुए जैसे पक्षी उड़ते हुए नदी के ऊपर से आकाश में चले जाते हैं और फिर गायब हो जाते हैं क्योंकि आंखो की देखने की क्षमता। कुछ दूर तक ही होती है। और व्यक्ति खड़ा खड़ा उन लोगों को देखता रहा। वह सारे व्यक्ति नदी के ऊपर से उड़ते हुए आकाश में जा रहे थे। और इस प्रकार वह अदृश्य हो गए। यह बात भी इस व्यक्ति को समझ में नहीं आयी। तब यह व्यक्ति सोचने लगा। इस श्मशान भूमि में बड़े अचरज है। चलो हमारे प्रश्नों के उत्तर एक ही व्यक्ति दे सकता है। उसी के पास चलता हूँ। और वह। उस जगह पहुँच गया दुबारा से जहाँ पर वह कालाभुजंग व्यक्ति खड़ा था। उनके पास पहुँचकर व्यक्ति ने कहा, आप ने मुझसे कहा था कि किसी भी? बात को जानने के लिए। उसमें उतरना पड़ता है। मैं नदी तक मैं उतरा। लेकिन। इस रहस्य को नहीं जान पाया। ये सभी लोग कौन थे? कृपया आप मुझे बताइए। तब वह। कालाभुजंग व्यक्ति कहता है। सुनो, यह सभी पित्र थे। ओर इनके। जितनें भी वंशी है। जो कि वंश परंपरा में। उनका कर्तव्य था कि इनका। समुचित प्रकार में। तर्पण करें पित्र जीतने भी होते हैं वह तर्पण के लिए। बहुत ज़्यादा लालायित होते हैं। जल के माध्यम से इन का तर्पण किया जाता है। और। जब वंश परंपरा में। जो भी। बच्चे पैदा होते हैं। उनका और उनकी भी वंश परंपरा में आगे आने वाली पीढियां उनका कर्तव्य होता है कि अपने पूर्वजों का तर्पण करें अन्यथा वह पितरों आत्माएं बनकर वही विचारे घूमते रहते है। यह सभी। इस बात के लिए बड़े ही परेशान थे। और तब से इसी श्मशान भूमि में। इस बात का स्वयं प्रयास कर रहे थे, किंतु शरीर नहीं होने के कारण यह कोई करम? अगर करते भी है तो वह लागू नहीं होता है। केवल शरीरधारी के कर्म का ही फल शरीर धारी को मिलता है। यह रोजाना नदी में स्वयं के लिए तर्पण करने की कोशिश करते थे। लेकिन कभी भी ऐसा नहीं कर पाए। इस इंतजार में कि शायद कोई आए। उनका कोई? वंशी हो? जिसने इन का तर्पण कर दिया। और इस प्रकार। वहाँ मुक्ति को प्राप्त कर लें। लेकिन कोई नहीं आया। आज तुम पहले व्यक्ति हो। तुमने? हालांकि इनके वंश से तुम्हारा कोई भी संत बंद नहीं है। ओर बिना संबंध के होते हुए भी तुमने इनके लिए तर्पण किया है। इसी कारण से यह आत्माएं आज इस शमशान के बंधन से मुक्त होती है। ओर। आज ये पित्र लोग की ओर चली गई है। या तुम्हें आशीर्वाद भी देकर गई है तुम्हारे जीवन में कल्याण होगा। क्योंकि तुमने पितरों का तर्पण किया है। वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति। का कोई न कोई पित्र होता ही है क्योंकि सभी मनुष्य? मनुर शतरूपा से उत्पन्न हुए वंश परंपरा से ही आगे बढ़ते हुए आए हैं। इसीलिए तुम्हारे द्वारा दिया गया तर्पण भी इनके लिए। पूर्ण हो गया। तब व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है और कहता है। मेरे कारण कुछ का भला तो हुआ। अब आगे का मुझे रहस्य समझाइए। और इस श्मशान में कहीं और लेकर चलिए। दक्षिण दिशा। ओर। उत्तर दिशा। कंप्लीट हो चुकी है। आप मुझे किसी अन्य दिशा की ओर ले कर जाइए। और वह। कालाभुजंग व्यक्ति उन्हें पूर्व की दिशा की ओर ले कर गया। तभी वहाँ पर जो दृश्य दिखाई दिया। वह बिल्कुल अद्भुत था।

अब वह पूर्व दिशा की ओर पहुँच चुका था। और साथ में वही काला भोजन व्यक्ति भी था जो उसकी हर प्रकार से अभी तक मदद कर रहा था। तब व्यक्ति ने पूछा यह पूर्व दिशा? मूल रूप से श्मशान में। किस प्रकार से महत्वपूर्ण है? कुछ तो बताईये। वह व्यक्ति कहता है अच्छा देखो हमेशा सूर्य पूर्व दिशा की ओर से ही उगता हुआ दिखाई देता है। इसलिए यह पूर्व शिक्षा देवताओं मानी जाती है। यहाँ की जो भी आत्माएं होंगी वह सभी देवता लोग जाने की तैयारी कर रही होंगी। लेकिन ज्यादा तभी पाएंगी जब उनके कर्म ऐसे हो लेकिन फिर भी देखो। कि तभी वहाँ पर एक बूढ़ी स्त्री? दिखाई पड़ती है जो कि बैठी हुई। आंखो में आंसू लिए हुए। किसी का जैसे इंतजार कर रही हो? और यह? एक। स्त्री को देखकर लगता था। जैसे कि वहाँ किसी का बड़े ही पुराने समय से इंतजार कर रही हो। स्पा और पूछता है माता जी आप कौन हैं और यहाँ पर सफेद कपड़े पहनकर बैठने का क्या औचित्य है? ऐसा लगता है जैसे कि आप किसी का इंतजार कर रही हूँ। आप इस प्रकार से। किसी के लिए यहाँ पर बैठ। अभी हुई प्रतीत हो रही है। इसका कोई विशेष कारण हो तो बताइए अथवा हम आपकी क्या सहायता कर सकते हैं, इसके विषय में भी हमें बताइये। तब वह औरत। बड़े ही गौर से इन दोनों को देखती हैं। कालाभुजंग व्यक्ति। तुरंत दो कदम पीछे हट जाता है। तब। यह बुरी स्त्री इस व्यक्ति से पूछती है। तुम। इस। शमशान भूमि में आखिर क्या कर रहे हो? इस प्रकार यहाँ पर। आने का क्या औचित्य है? पहले तुम्हें यह बताना होगा। क्योंकि मैं तो सदैव से यही विराजमान हूँ। और अपने पति। के बी योग में यहाँ पर बैठी हुई हूँ। साधक कहता है, माताजी। आपके पति। के साथ क्या हुआ है, इसके विषय में बताएं। तब वह कहती हैं कि एक बार मैं बहुत ज्यादा क्रोधित हो गई। ओर क्रोध में मैंने अपने पति को ही खा लिया। यह सुनकर व्यक्ति अचंभित हुआ। बड़े गौर से उन्हें देखता है। और कहता है आप निश्चित रूप से मजाक कर रही है। भला कोई पत्नी अपने पति को कैसे खा सकती हैं? कोई वस्तु थोड़ी है जो मुँह में डाला और खा लिया। एक पूरा। इंसान? बहुत ज्यादा बड़ा होता है। तब वह कहने लगी। अब मैं क्या करूँ? मुझे ज्यादा क्रोध आ गया था। और इस क्रोध के कारण मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। क्या करती? आखिर क्रोधित हो गई और फिर। मैंने उन्हें निगल लिया, उन्हें खा लिया। खाने के बाद मुझे यह आभास हुआ कि मैंने तो बहुत ही गलत कर दिया है। बस इसी कारण से यहाँ बैठकर विलाप कर रही हूँ कि शायद वह वापस आ जाए। और मेरी बात सुने, मेरी बातों को समझें। मुझे क्षमा भी करें। क्योंकि गुरु वधू में नियंत्रण व्यक्ति खो देता है। तब। इस व्यक्ति ने पूछा, माताजी? आपकी। इस प्रकार की बातों से मुझे मन ही मन हँसी आ रही है। आप इस बात के लिए मुझे क्षमा कीजिए गा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आप किसी आदमी को निगल सकती है। आदमी को निगलने के लिए तो बहुत विशालकाय मुँह होना चाहिए। और यहाँ पर तो ऐसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा है, हालांकि अभी उत्तर और दक्षिणी दिशा से हो कर आया हूँ। तब मैंने बहुत सारे चमत्कार देखे हैं। लेकिन यहाँ पर। जो बातें आप बता रही है यह बिल्कुल भी संभव नहीं है। इसलिए आप यहाँ पर क्यों विराजमान हैं? वास्तविक रूप में बताइए। क्योंकि कोई भी कारण हो मैं सुनने को तैयार हूँ। साथ ही मैं आपकी मदद भी कर सकता हूँ। तब उन्होंने कहा ठीक है। तुम्हें मेरी बात पर विश्वास तो नहीं हो रहा होगा? लेकिन चलो। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी मदद करो। क्या तुम मेरे लिए कुछ कर सकते हो? तब वह व्यक्ति बोला ठीक है माता जी आप आदेश कीजिये। मेरी सामर्थ्य होगी तो मैं अवश्य ही वैसा करूँगा। तब उन्होंने कहा जाओ नदी में स्नान करके आओ और सर्वथा निर्वस्त्र होकर यहाँ आकर मेरे सामने बैठो। मैं तुमसे जो कार्य बोलू, वह तुम्हें करना पड़ेगा। यह सुनकर व्यक्ति और भी ज्यादा अचंभित हो गया। क्योंकि ऐसा कुछ करने की बारे में सोचना उसके लिये बहुत ही विरल था। वह तुरंत। अपने उस मित्र काले भुजंग व्यक्ति की ओर देखता है जो कि उससे काफी दूर खड़ा था। वह उससे बुलाता है मित्र इधर आओ। मेरी मदद करो। लेकिन वह व्यक्ति। इसकी बात को अनसुना कर देता है। आखिर उसने। इनकी बातों को अनसुना क्यों किया था? इसके पीछे का कारण क्या था? उसे कुछ समझ में नहीं आया। उसने सोचा यह व्यक्ति यहाँ पर नहीं आना चाहता है। कुछ तो राज़ होगा। अब मैं क्या करूँ? इसका मतलब यही है कि यह भी कोई शक्ति ही है। अगर इनकी बात मैंने नहीं मानी तो पता नहीं क्या हो? इस नव विवाहिता स्त्री की आत्मा को देखने के बाद यहाँ पर मुझे लगता है कुछ भी हो सकता है। मुझे लगता है इनकी बातें मान लेनी चाहिए। वह कहता है, ठीक है, माताजी। आप जैसा कहती हैं मैं वैसा ही करूँगा। और वहाँ शमशान भूमि के ओर। सी उस दिशा की ओर चला गया जहाँ पर नदी थी। नदी में जहाँ कर अच्छी प्रकार। वह नहाने लगा। नहाते नहाते। वहाँ आनंद मग्न होने लगा। और फिर वह वापस लौटकर आ गया। सामने व बूढ़ी स्त्री कहने लगी। मैंने तुमसे कहा था सर्वथा निर्वस्त्र होकर ही यहाँ मेरे सामने बैठना पर तुम तो। कपड़े पहनकर ही आ गए हो। तब व्यक्ति ने कहा माता क्षमा कीजिये लेकिन मैं किसी परायी स्त्री के सामने। सर्वथा निर्वस्त्र होकर। नहीं रह सकता। ये। बहुत ज्यादा विडंबना वाली बात है और मैं नहीं चाहता। कि आपका। अपमान मेरे द्वारा हो। इसीलिए मैं वस्त्र पहनकर आ गया हूँ। तब उस स्त्री ने दोबारा कहा, मैंने जो कहा वह मान लो। शायद तुम्हारा भला हो जाए। तुम्हारा सौभाग्य है। जो आज ऐसा दिन है। लेकिन व्यक्ति ने कहा मुझे क्षमा कीजिए माता, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूँ। इस प्रकार कहने के कारण अब वह व्यक्ति। किसी भी प्रकार से उस बूढ़ी स्त्री की बात को मानने को तैयार नहीं था। बॉडी स्त्री अब ज़ोर ज़ोर से। हंसने लगी। वह कहने लगी। चलो, कोई बात नहीं तुम्हारे अंदर मर्यादा है। देखो। मैं। अब अपने असली रूप में आ जाती हूँ। तुरंत ही वह स्त्री बहुत ही ज्यादा सुन्दर। स्त्री के रूप में बदल गईं जिसकी उम्र। केवल 24-25 वर्ष की थी। इसकी सुन्दरता असीम थी। संसार में शायद ही कोई स्त्री उसके जैसी सुंदर होगी। उसकी सुंदरता जैसे देवताओं और अफसरों इन सभी को मात करने वाली थी। इतनी ज्यादा सुंदर स्त्री को देखकर। उस व्यक्ति ने कहा, यह सब क्या है? आप कौन हैं? तब उन्होंने कहा, ठीक है, मैं तुमसे दोबारा कहती हूँ। तुम दोबारा नहाने के लिए जाओ और सर्वथा निर्वस्त्र होकर मेरे सामने आकर बैठ जाओ। तब व्यक्ति ने कहा अब तो यह मेरे लिए पूरी तरह मुश्किल है। पहले तो बूढ़ी औरत के रूप में। मैं शायद। कर भी सकता था किंतु आप तो जवान है। और इस प्रकार मैं यह करने के लिए पूरी तरह। मना करता हूँ। आप मुझे क्षमा कीजिए गा। तब वह हंसते हुए कहने लगी। अरे मुर्ख। आंखो का बंधन महत्वपूर्ण होता है। मस्तिष्क का बंधन महत्वपूर्ण होता है। अगर इसे नहीं कर पाते हो। तो तो बाकी चीजों का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इससे जीवन में। जो भी व्यक्ति आता है वह सर्वथा नग्न होकर ही ही आता है और जाता भी सर्वथा **** होकर के ही हैं। चलो कोई बात नहीं। मैं तुम्हें अपना नग्न स्वरूप ही दिखा देती हूँ। और उन्होंने वहाँ पर। अपना स्वरूप दिखाया। वो साक्षात माता काली थी। जो सर्वथा। निर्वस्त्र स्वरूप से ही वहाँ पर विद्यमान थी। और फिर वह दर्शन देकर गायब हो जाती है। यह देखकर व्यक्ति अटपटा सा जाता है। तभी वह काला व्यक्ति भाग कर आता है। और कहने लगता है तुम बहुत बड़े मूर्ख हो। तुम्हारे सामने स्वयं जगतमाता आई थी। तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। कितने भाग्यशाली हो उनके दर्शन तुम्हें हुए? शायद पूर्व जन्मों की साधनाओं का प्रभाव होगा। इसी कारण से वह तुम्हारे सामने इस तरह प्रकट हो गयी थी। और मैं बता दूँ कि पहला स्वरूप। माता का था। वह धूमावती स्वरूप में तुम्हें दर्शन दी। अगर तुम उस वक्त। उनकी बात मानकर। साधना के लिए तैयार हो जाते। तो तुम्हे। काल यानी मृत्यु को जीतने की सिद्धि मिल सकती थी। और अगर उनके महासुंदरी। त्रिपुरसुन्दरी स्वरूप। को। मन कर साधना करते। और उनकी बात मान लेते। तो तुम। बलवान शक्तिवान महा ऐश्वर्यवान् बनकर। सभी प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त कर सकते थे। पर तुमने दोनों को ही मना कर दिया। पहले बूढ़ी औरत के रूप में। तुम्हारी काम परीक्षा ली गई, फिर जवान स्त्री के रूप में। अगर कोई जवान स्त्री आपको ऐसा निमंत्रण दे तो व्यक्ति अधिकतर।*** ***** में फंसकर इस प्रकार की चीजें कर बैठता है और फिर उसका नाश हो जाता है। तुम्हारी भी मृत्यु हो जाती। लेकिन। तुमने यहाँ पर तो समझदारी दिखा ही दी। लेकिन तुम्हारे अंदर लज्जा थी। और जीवन के वास्तविक। रहस्य को नहीं जानते थे। इसीलिए उन्होंने माता काली के स्वरूप में भी इस श्मशान में दर्शन दिए थे। इस प्रकार तुम बड़े भाग्यशाली हो कि माता की तीन स्वरूपों के दर्शन बिना किसी साधना के ही तुम्हें हो गए हैं। चलो कोई बात नहीं तुमने आज जाना कि पूर्व दिशा में किस प्रकार से देवताओं का वास होता है। चलो चलते हैं आखिरी और अंतिम दिशा की ओर। जिसे हम पश्चिम की दिशा के रूप में जानते हैं। तब हुआ व्यक्ति कहने लगा, सच में आज मैंने मूर्खता कर दी। अगर मैं बात को समझ जाता तो माता को साक्षात प्राप्त कर सकता था। माने। पहले। स्वयं मृत्यु को जीतने की शक्ति। धूमावती के स्वरूप में देने की कोशिश की। फिर समस्त ऐश्वर्य और सुंदरता देने की कोशिश की। लेकिन। मैं मूर्ख ही बना रहा। सच में ये श्मशान भूमि? दो दुनिया को जोड़ने का सबसे। उपयुक्त स्थान होता है। शायद इसी वजह से इस स्थान को तांत्रिक साधनाओं के लिए इतना ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। मैं यह बात अब अच्छी तरह समझ चुका हूँ। कि क्यों अधिकतर तांत्रिक लोग श्मशान में जाकर साधना करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ से। शव का स्वरूप प्राप्त कर सकता है। शिवत्व को प्राप्त करने की सबसे उत्तम जगह होती है। और उन्होंने नहाकर आने और इस प्रकार बैठने के लिए शायद इसलिए कहा होगा ताकि वह वह विद्या दे सके। जिसके माध्यम से मैं सिद्धि को प्राप्त कर पाता। कितना भयंकर। और मूर्खतापूर्ण कार्य में कर चुका हूँ। जिनके दर्शन करने के लिए जन्मों की तपस्या लगती है। मुझे वहाँ आसानी से प्राप्त हो रहा था। चलो कोई बात नहीं जो मेरी सामर्थ्य में होगा वही मैं प्राप्त करूँगा अभी मैंने पिशाचिनी को सिद्ध करने का विचार किया हुआ है। उसी के बारे में आगे बढूंगा लेकिन उससे पहले आपके साथ पश्चिम दिशा की ओर बढ़ता हूँ। और इस प्रकार। वह काले भुजंग व्यक्ति के साथ पश्चिम दिशा की ओर आगे बढ़ गया। पश्चिम दिशा पूरी तरह से। सुनसान और शांत थी। ये तभी एक पेड़ जो कि बहुत ही पुराना शायद बरगद का पेड़ था। उस पेड़ के पास पहुँच कर। वह कालाभुजंग व्यक्ति रुक जाता है। और कहता है। सुनो ऐसा करो। इस पेड़ को अच्छी प्रकार निरीक्षण करो। तब तक मैं। थोड़ी देर बाद आता हूँ। वह व्यक्ति कहने लगा, अगर कोई समस्या हुई तो मैं क्या आपको पुकार सकता हूँ। तब उसने कहा ठीक है तो मुझे चिल्लाकर। बुला लेना। तो मैं अवश्य ही तुम्हारी मदद के लिए आ जाऊंगा। इस प्रकार वह कालाभुजंग व्यक्ति। वहाँ से चला जाता है। और यह इस पेड़ के सामने। अचरज भरी दृष्टि से उस वृक्ष को देखते हुए। उस का निरीक्षण करने लगता है। खिताबी वहाँ देखता है कि उस पेड़ की जड़ से। वहाँ पर एक सांप प्रकट हो गया। वह सांप। इसके सामने आता है। और गुस्से से फुंकारता है। इससे व्यक्ति थोड़ा डर जाता है। ओर पीछे हट जाता है। लेकिन इसके बाद। वह सांप विशालकाय स्वरूप में बढ़ता चला जाता है। उसका रूप और स्वरूप। ऐसा लग रहा था। जैसे कि कोई भयंकर विष आधार सिर्फ है। और ना सिर्फ यह सांप। कोई दैवीय सर था। बल्कि। यहाँ एक इच्छाधारी। स्वरूप वाला। एक भयानक और दुर्लभ। दिव्यशक्तियों वाला? साफ दिखाई दे रहा था। इसी वजह से। यह व्यक्ति भी घबरा जाता है। और हाथ जोड़कर उससे कहता है। आप मुझे क्षमा कीजिए अगर किसी कारण से वजह से। आप मुझसे नाराज हो रहे हो? क्योंकि यह पूरा श्मशान भूमि मेरे लिए। अजनबी सा है। मैं नहीं जानता कि किस दिशा में कौन सी शक्ति विद्यमान हैं। मैं आपको देखकर। भयभीत हो रहा हूँ इसलिए कृपया। शान्ति स्वरूप में आइए। कि वहाँ यह सब सुनकर और भी ज्यादा गुस्से में आ जाता है। और। अपनी खूंखार से भयंकर विश की वर्षा करने लगता है। उसकी फुंकार से जैसे हवा तेजी से चलती है, उसी तरह विश्व का। वायु स्वरूप बहुत तेजी से उसकी ओर बढ़ता है। उस हवा के कारण। उस व्यक्ति को बेहोशी आने लगती है। शायद यह जहर का असर था। यह कोई साधारण सर पर बिल्कुल नहीं था। यह मायावी और दैवीय शक्ति यो से भरा हुआ। कोई सर्प था। इस सर्वे की शक्तियां। अद्भुत थी। जो अपनी फुंकार से। वहाँ स्थित सभी को चौंका रहा था। वहीं पर उस व्यक्ति ने देखा कि जो भी भूत प्रेत और आत्माएं थी वह भी भागती हुई नजर आ रही थी। यानी कि उसकी विश्व फुंकार का असर। उस मनुष्य पर पड़ने के अलावा वहाँ उपस्थित विभिन्न प्रकार की आत्माओं पर भी पड़ रहा है। और सभी वह स्थान छोड़कर। बहुत तेजी से भाग रहे थे। व्यक्ति को अब कुछ भी दिखाई देना बंद हो जाता है। आंखो से आंसू निकलने लगते हैं। शरीर में भयंकर जलन होने लगती है। तेज पसीना शरीर से निकलने लगता है। व्यक्ति को ऐसा लगता है जैसे वह अंधा हो चुका है। अब आगे क्या हुआ? क्या वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त किया? यह सभी बातें जान लेंगे। हम लोग अगले भाग में। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करे, शेयर करें, सब्सक्राइब करे चैनल को अगर अभी तक आपने हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है और आनंद ले इस पॉडकास्ट का। आप सभी का दिन मंगलमय हो, जय माँ पराशक्ति।

उसने अपना भयानक रूप छोड़ दिया और सामने एक मनुष्य के रूप में।

आ करके उसने।

अपना जो दुर्लभ स्वरूप था, एक मायावी रूप था। उसे दिखाना शुरू किया। एक मनुष्य के रूप में सामने आकर उसने पूछा है मनुष्य तू यहां पर क्या कर रहा है। क्या यह नहीं जानता कि यह मेरा स्थान है? मैं किसी कारणवश?

इस श्मशान भूमि में वास करता हूं।

और यही रहता हूं।

मैं एक इच्छाधारी सर्प हूं।

मेरी शक्तियां बहुत ज्यादा है लेकिन फिर भी। मैं तुझे जीवित छोड़ रहा हूं।

मुझे किसी बाहरी? नहीं है। इसलिए यहां से तू चला जा!

अन्यथा तेरी मृत्यु हो जाएगी क्योंकि अगर मैं क्रोधित होता हूं तो यमराज भी उस व्यक्ति के प्राण नहीं बचा सकते हैं।

तब इस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा। इच्छाधारी आप कौन हैं, अपना परिचय दीजिए। आप यहां पर क्यों है यह भी बताइए? क्योंकि मैं तो सिर्फ इस शमशान भूमि का विचरण कर रहा हूं। यहां पर रहकर केवल यह जानना चाहता हूं कि इस शमशान भूमि का रहस्य क्या है?

मुझे लगता है कि मैंने यहां पर आपको किसी प्रकार से।

कार्य में कार्य में कार्य में मैं मैं संकट बना हूं इसलिए सबसे पहले मुझे के लिए क्षमा कर दीजिए।

यह सुनकर उस इच्छाधारी सर्प ने कहा। तू विनम्रता से बात कर रहा है। और तूने सच्चे हृदय से मुझे प्रणाम भी किया है इसलिए मैं तुझे माफ करता हूं पर आगे की बात बताता हूं। सुन मुझे यहां पर 500 से ज्यादा वर्ष हो गए हैं। मैं अपने धर्म की रक्षा के लिए यहां पर विद्यमान हूं।

जब इस क्षेत्र में मेरा वास्ता मैं यहां का एक राजा था। और मैंने अपना धन यहीं पर नीचे गाड़ दिया था।

लेकिन अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के चलते मैंने मृत्यु के बाद खुद को सर्प योनि में प्राप्त किया।

और इसकी वजह से आज मैं यहां पर स्थित हूं। मैं अपने धर्म की रक्षा कर रहा हूं। कोई भी इस पश्चिम दिशा में। बिना मेरी मर्जी के नहीं आ सकता है। जब तक जीवित था तब तक मेरे राज्य में मेरी ही चलती थी पर आज भी इस स्थान पर मेरी ही चलती है।

पूछा। आपकी बातें मैं समझ गया, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि आपको यहां से मुक्त होकर आगे की यात्रा करनी चाहिए? क्योंकि अभी तक मैंने जितना समझा है। एक बात तो स्पष्ट है कि इस जीवन से जुड़ी हुई इच्छाएं ही आपको दूसरी दुनिया में जाने से रोक देती हैं। आपका अपने धर्म की रक्षा करना यही उद्देश्य आज आपको स्वर्ग जाने से रोक रहा है।

और आप इसी श्मशान भूमि में फंस गए हैं।

तब वह सब कहने लगा, बात तो तेरी सही है लेकिन मुझे मुक्त करेगा कौन?

मैं तो स्वयं लोगों को मुक्त कर देता हूं। अभी भी मेरे पास इतनी ज्यादा शक्तियां मौजूद हैं। मानी जाती मानी जाती मानी जाती है है इसी कारण से मैं यहां पर धन ही निवास कर रहा हूं।

अगर कोई मुझे मुक्त करना चाहता है? तो भगवान शिव की आराधना और। सर्प सूक्त के माध्यम से।

मुझे मुक्त कर सकता है।

अवश्य कहा अवश्य कहा अवश्य कहा अवश्य मैं आपके लिए इसका पाठ अभी शुरू कर देता हूं। उस व्यक्ति ने वहां पर शिवलिंग! शमशान की मिट्टी से बना कर उसका पूजन किया। और उसके बाद!

उसने वहां पर। उस सर्प सूक्त का पाठ करना शुरू कर दिया।

थोड़ी ही देर बाद वह! सर।

मनुष्य के रूप में प्रकट हुआ और उसके सिर पर मुकुट था। प्रसन्न होकर देखते हुए वह कहने लगा। मैं यहां से जा रहा हूं। तूने मुझे मुक्त कर दिया है। अब यह धन भी मैं तुझे प्रदान करता हूं। जा इस धन को अब तू अपने लिए रखना केवल अच्छे कार्यों में ही इस धन का सदुपयोग करना। तभी तेरा जीवन निस कंटक होगा और। कोई पाप धारण नहीं करना जिसकी वजह से श्मशान भूमि में वास करना पड़े। यहां रहकर मैंने यह जाना कि कितना कष्ट?

इसी है। इसी है। इसी है। इसी कारण से मैं चाहता था कि मैं यहां से मुक्त हो जाऊं, लेकिन कोई भी जीवात्मा को वह को मुक्त नहीं कर सकती।

यह कार्य केवल कोई बाहरी पुरुष या स्त्री मनुष्य उसके लिए करें तो ही केवल वह मुक्त हो सकता है। आज तूने मुझे मुक्त किया इसलिए मैं तुझे आशीर्वाद देता हूं। यह सुनकर वह व्यक्ति प्रसन्न हुआ और अपने सामने उस दिव्य सर्प को आकाश की ओर मुड़ कर जाते हुए मुक्ति को प्राप्त करते हुए देखता। कि तभी वहां पर वही काला भुजंग लेती आ जाता है।

बहुत अच्छा बहुत अच्छा कर्म बहुत अच्छा कर्म किया है तुम यह बात समझ चुके कि मुक्ति क्यों आवश्यक है?

चलो आगे चलते हैं।

अब तुम्हारे पास!

केवल एक?

समय बचा है। उस और चलते हैं और वहां पर आगे का कार्यक्रम तुम्हारा हो जाएगा।

दिशा दिशा की दिशा की दिशा की ओर आगे बढ़ गया वहां पहुंच कर उसने देखा। यह काला इंसान कहने लगा।

ठीक हो उगते हुए सूरज को देखो जैसे रात्रि के बाद सूर्य देवता प्रकट होते हैं। वैसे ही जीवन में। दिशा से ही प्राप्त होता है? किस दिशा से प्रकाश के कारण सब कुछ स्पष्ट रूप से नजर आता है। यही देवताओं की दिशा कहलाती है तब सामने उसका ले भुजंग पर सूर्य का प्रकाश जैसे ही पड़ा। उसने देखा कि वह तो हाथ में त्रिशूल लिए साक्षात भैरव ही।

यह देखकर व्यक्ति ने दौड़कर उन्हें प्रणाम किया और!

उनसे आशीर्वाद लेने के लिए उनकी ओर दौड़ा लेकिन भैरव जी ने कहा, मेरा तो समय हो चुका है। मैं इस शमशान का रक्षक हूं। है।

तेरा है तेरा है तेरा है तेरा गुरु बहुत विद्वान है जिसके कारण कारण तुझे मेरे दर्शन हो चुके।

अब मैं यहां से जाता हूं और यह कहकर वह काला भुजंग व्यक्ति जो कि स्वयं भैरव जी थे, वहां से गायब हो जाता है। अब यह व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचता है। गुरु है गुरु है गुरु है गुरु जी आप सच में महान है आपने एक भी प्रदान कर दिया है। मैं धन्य हो गया।

आप ही के कारण मुझे धन भी प्राप्त हो चुका है जो कि पश्चिम दिशा में स्थित है।

तब गुरु ने कहा, मैंने तुझे ज्ञान दिया। मैंने तुझे धन भी प्रदान किया। क्या तुझ में अभी सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा विद्यमान है?

तब वह कहने लगा हां गुरुदेव मैं पिशाचिनी को सिद्ध करना चाहता हूं। आप मुझे आज्ञा प्रदान कीजिए। ठीक है ठीक है ठीक है है अब तू इस लायक है कि तू पीरपुर साधना कर सकता है। उसी श्मशान भूमि में। जाकर।

एक बबूल के वृक्ष के नीचे बैठकर। कर।

मिलेगी? एक ऐसी शक्ति से तेरा सामना होगा जिसे। अद्भुत रूप से।

एक दिव्य पिशाचिनी के नाम से जाना जाता है। यह अन्य प्रशासनिक शक्तियों से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली है।

अब तुम्हें निश्चित तौर पर साधना के लिए उपयुक्त तरीके से जाकर साधना करनी चाहिए।

गुरु से आज्ञा प्राप्त करके और साधना सामग्री इत्यादि जुटाकर वह व्यक्ति शाम होते उस स्थान पर पहुंच जाता है। गुरु का कहना था कि शमशान भूमि में साधना लगातार 41 दिन तक तुम्हें करनी होगी। इसीलिए वहीं पर कोठी बना लो। उसी कोठी में रहकर। करो!

वहां पर तुम्हें अद्भुत प्रकार के अनुभव होंगे और तुम्हें विभिन्न प्रकार की शक्तियों का सामना भी करना पड़ेगा। गुरु ने गोपनीय रक्षा मंत्र और बाकी सामग्री साधक को प्रदान कर दी थी। वह साधक श्मशान भूमि के पास पहुंचकर शमशान भूमि को प्रणाम करता है। उसका पूजन करता है और प्रवेश कर जाता है। उसी श्मशान भूमि में जिसमें पिछली रात्रि उसने बिताई थी।

अब वहां पर जाकर। था। आवश्यक था। आवश्यक था आवश्यक था। इसके लिए व्यक्तियों से कार्य करवाना आवश्यक था। उसके लिए भी धनराशि लगती है। लेकिन पिछली रात्रि में ही यह समस्या उसकी हल हो चुकी थी।

सोना थोड़ा सोना दिया थोड़ा सोना दिया दिया और कहा मेरे लिए एक कुटी का निर्माण इसी श्मशान भूमि में कर दो। वहां पर जहां बबूल का पेड़ स्थित है।

और बबूल के पेड़ के सामने ही एक बढ़िया सी कुटी का निर्माण बहुत जल्दी कई व्यक्तियों ने मिलकर कर दिया क्योंकि सोने। मैं इतनी अधिक शक्ति होती है कि इसे प्राप्त करने के लिए। सभी व्यक्ति जी जान से परिश्रम करते हैं। अपने सोना अपने सोना अपने सोना अपने उन साथियों को दिया था ताकि यह काम लिया जाए और इस प्रकार! तकरीबन 1 प्रहर के अंदर ही वहां पर बहुत ही दुर्लभ और बहुत सुंदर कुटी का निर्माण हो चुका था।

था। उस बबूल के वृक्ष के नीचे एक मूर्ति उसने स्थापित की जो कि पिशाचिनी देवी की थी।

उसे सबसे पहले दूध से नहलाया, उसके आगे विभिन्न प्रकार के भोग पकवान इत्यादि रखें और। सभी प्रकार की व्यवस्था कर सामने चमेली के तेल का दीपक जलाकर मंत्र जाप और आराधना रात्रि 11:00 के समय से उसने शुरू कर दी जैसा कि उनके गुरु का कहना था। इस प्रकार रोज रात्रि व उच्च प्रशासनिक मंत्र का जाप करने लगा। तिथि। प्रकार कई दिन बीत चुके थे। कि अचानक एक दिन जब रात्रि के 2:00 बजे के समय वह देखता है कि उसके कुटी के पास। एक!

12 वर्षीय कन्या। बड़ी जोर जोर से रो रही है।

व्यक्ति अपनी साधना छोड़ना नहीं चाहता था, पर वह कन्या इतना तेज रो रही थी कि साधक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह करे तो करे क्या?

उसकी रुदन की आवाज पूरी श्मशान भूमि में बहुत तेजी से आ रही थी। ऐसे में उस साधक ने अपनी साधना को विराम दिया और उठकर उस कन्या के पास पहुंचा।

लथपथ थी।

और जोर जोर से रो रही थी। हालांकि! वह! एक शब्द घर से नजर आ रही थी लेकिन इस प्रकार श्मशान भूमि में इतनी रात को आखिर वह क्या कर रही थी?उस व्यक्ति ने उस कन्या के पास जाकर उससे पूछा, तुम कौन हो और इस प्रकार इस श्मशान भूमि में रात्रि के समय क्या कर रही हो तब वह कन्या कहने लगती है। मैं बहुत ज्यादा दुखी हूं। मैं क्या करूं? मेरे माता-पिता और सगे संबंधी इस श्मशान भूमि के पास से गुजरने वाले मार्ग से होते हुए जा रहे थे। कि तभी हम पर डाकू ने हमला कर दिया। मेरी मां मुझे बचाने के लिए। कहती है जाओ अंदर भाग जाओ, मैं इन से लडूंगी। जाकर एक जाकर एक जाकर एक झाड़ी के पीछे छुप गई।

कि उन कि उन कि उन डाकुओं डाकुओं की की संख्या लगातार बढ़ रही थी। जैसे कि उन्हें सब कुछ पता हो, वह जानते थे कि यह एक व्यापारियों की बारात है। और इसमें उनके पास सभी प्रकार से धनराशि होगी। में एक में एक साथ में एक साथ बैठे हुए थे और जैसे ही हमारा सारा परिवार और नाते रिश्तेदार इस मार्ग से होते हुए गुजरे थे तभी उन्होंने हमें आते हुए देखा और फिर इस बारात को घेर लिया। और सब को पकड़ पकड़ कर जान से मारने लगे। पहुंचे। सरदार उनका सरदार उनका सरदार उनका सरदार बोला जिसके पास जितना भी सुना और चांदी सब कुछ उठाकर ले चलो। यहीं मारकर यहीं मारकर यहीं फेंक यहीं फेंक दो वैसे भी पास में श्मशान भूमि है। वहां पर इन्हें जलाने वाले मिल ही जाएंगे। ऐसा कहते हुए वह जोर जोर से हंस रहा था। इन लोगों ने लगभग सभी को जान से मारना शुरू कर दिया। मैंने अपने सामने मेरे पिता माता और भाई को प्राप्त होते हुए देखा है। डर की। मैं बहुत तेजी से इस श्मशान भूमि के अंदर भाग कर आने लगी कि तभी पास ही कीचड़ में गिर गई। की वजह की वजह की वजह से से डाकू ने चारों और मुझे ढूंढा पर कीचड़ में मैं पड़े पड़े।

इसी प्रकार बेहोश हो गई थी। और अब जाकर जब मुझे होश आया है तो सारी बात याद आई है। मैं बहुत ज्यादा दुखी हूं। और जोर जोर से रो रही हूं। मेरा तो सारा परिवार ही नष्ट हो गया। नाते रिश्तेदार सारे लोग मारे गए।

केवल अकेली मैं बची हूं। मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैं कब तक जीवित रहूंगी और इस जगह पर श्मशान भूमि में मेरे साथ क्या होगा?

कन्या पर। बहुत ज्यादा करुणा आ गई। और उसने कहा तुम चिंता मत करो, चलो मेरी कुटी के अंदर चलो।

मैं तुमसे वादा करता हूं कोई भी?

हमें परेशान करने नहीं आएगा। यह शमशान की भूमि है। यहां कोई भी नहीं आएगा। ना तो कोई डाकू आएगा।

वह कहने लगी, मुझे डर लगता है कोई ना कोई डाकू यहां पर जरूर आ जाएगा। इस बात से क्योंकि माता के कुछ गहने मेरे पास हैं। कि इन को लेकर भाग जा।

शायद उन्होंने सोचा होगा कि मेरे पास यह सुरक्षित रहेंगे।

लगा सच लगा। सच लगा। सच सच में तुम्हारी यह कहानी सुनकर मुझे भी आंखों में आंसू आ गए हैं। चलो कुटी के अंदर चलो। इस प्रकार वह कन्या और वह व्यक्ति कुटी के अंदर आ गया।

तब वह कहने लगा कि मैं तो अकेले रहकर साधना करने वाला था। अब इस लड़की की वजह से मैं साधना कर पाऊंगा या नहीं? क्या करूं? इसका भी जिंदगी में अब कोई नहीं है।

इसे किसी गांव में अपने रिश्तेदार के वहां रखवा दो।

या फिर मैं यहां रहकर पहले साधना पूर्ण करूं?

वैसे भी यह तो बच्ची है। इसे अगर मैं अभी लेकर गया तो पता नहीं यह वहां क्या करेगी?

रखता रखता रखता हूं रखता हूं। हूं शायद यह यह भोजन वगैरह बना सकती होगी। तुम मुझे कुछ सहायता मिल जाएगी। उस व्यक्ति ने उस कन्या को कहा। क्या तुम्हें खाना बनाना आता है तब वह कन्या बोली हां, मैं अच्छी प्रकार बढ़िया भोजन बना सकती हूं। तब उस व्यक्ति ने कहा, ठीक है तुम मेरे लिए भोजन बना देना।

भोजन की सारी सामग्री मैंने लाकर पहले ही रख दी है और माह में केवल एक बार ही जाकर में सामग्री पूरी उठाकर ले आता हूं ताकि!

मुझे बार-बार कहीं जाना ना पड़े।

तब वो कहने लगी मेरा जीवन! तू पूरा बर्बाद है अपनी जान बचाने के लिए आपकी सेवा करती रहूंगी इस प्रकार! वह व्यक्ति उस कन्या के साथ रहने लगा। की बारिश वहां की बारिश वहां बारिश वहां पर शुरू हो गई थी बारिश के कारण बाहर बैठकर साधना करना संभव नहीं था। इस प्रकार उस दिन की साधना को साधक को बंद करना पड़ा तब वह कन्या के पास जाकर बैठ गया। उससे बातचीत करने लगा और कहा, अपने बारे में अपने परिवार के बारे में कुछ मुझे बताओ। मैं इतने दिनों से देख रहा हूं कि तुम मेरे साथ रहकर भोजन और पानी की मेरी व्यवस्था बहुत अच्छी प्रकार करती हो।

लगी। मेरा नाम मालिनी है। और मैं! एक धनी साहूकार की बेटी थी। वह नगर में बहुत ज्यादा प्रतिष्ठित है।

हम सभी लोग वर्ष में एक बार अपनी कुल देवी के मंदिर में अवश्य जाते हैं और ज्यादातर शादी उसी समय की जाती है। इस बार भी हमारे फूफा के यहां उनके लड़के की शादी थी। इसीलिए हम सभी लोग कुलदेवी मंदिर जाने के लिए बरात को लेकर निकल रहे थे। कि तभी इन डाकू को पता नहीं कहां से पता चल गया। असल में हम जब भी कुलदेवी मंदिर चाहते हैं, तू दीदी को सोने चांदी के आभूषण अवश्य ही चढ़ाते हैं। शायद यह बात उन डाकुओं को किसी के माध्यम से पता चल गई होगी। हमारे ऊपर हमारे ऊपर हमारे ऊपर हमला हमला कर दिया अब इसमें परिवार वालों की भी कोई गलती नहीं है।

मैं क्या करूं?

माता और माता और माता और और पिता की हो गया है कैसे मैं अपना जीवन काट दूंगी? मेरा क्या होगा मैं खुद नहीं जानती? आप अगर नहीं होते तो शायद श्मशान भूमि में ही मेरी मृत्यु हो जाती।

तक इस व्यक्ति ने कहा, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम चिंता मत करो, तुम मेरे साथ यहां निश्चिंत होकर रह सकती हो। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जैसे ही मेरी साधना पूर्ण हो जाएगी मैं अपने। ओर। चला जाऊंगा।

जो कि एक गांव में है। और हमारे। परिवहन से जुड़ने का पूरा मौका दूंगा। इसकी चिंता तुम मत करो, तुम्हें मैं अपना परिवार ही समझता हूं और तुम्हारी पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं इस प्रकार! उसने! जब कहा तो उस कन्या को भी काफी अच्छा लगा। उसे ऐसा लगा शायद उसका जीवन! सफल हो गया है। पिता माता पिता माता पिता माता पिता की तरह दुर्भाग्य नहीं लिखा है लेकिन कहां कहानी किस ओर मुड लेगी? इसके विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

ऐसा ही! कुछ होने वाला था।

ऐसा कुछ जो कि बड़ा ही विचित्र था। इसकी कहानी उसी दिन लिखी जानी थी जिस दिन वह बारिश हो रही थी।

बारिश की तीव्रता की वजह से झोपड़ी का कुछ हिस्सा। से पानी बरसने लगता है और कन्या।

के साथ वह पुरुष भी थोड़ा बिक जाता है।

बारिश की वजह से। कन्या! और भी ज्यादा सुंदर लगने लगती है। उसका शरीर चमकने लगता है केवल खाट वाला स्थान। बचा है जिस पर बारिश नहीं हो रही थी।

बारिश की वजह से जगह की कमी पड़ जाती है। तब वह व्यक्ति कहता है आज तुम खाट पर। सो जाओ मैं कुछ व्यवस्था करता हूं।

है आप है आप चिंता है आप चिंता मत कीजिए आप खाट पर सो जाइए प्रकार बैठकर रात्रि बिता लूंगी।

फिर मां व्यक्ति कहता है नहीं, तुम कमजोर हो और अभी। है? इसलिए तुम इस खाट पर सो जाओ।

और वह व्यक्ति उस कन्या को खाट पर सुला देता है। थोड़ी देर बाद व्यक्ति थक जाता है और सारी जगह गीली देखकर।

वह भी उसी खाट पर उस कन्या के साथ लेट जाता है। इसके कारण से अब कन्या और वह पुरुष साथ में सोने लगते हैं। रात्रि का समय था।

दोनों जैसे एक दूसरे के प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित हो जाते हैं। हालांकि कन्या की उम्र काफी कम थी लेकिन इसके बावजूद। उसके मन में ऐसी भावनाएं आना अद्भुत था। इधर यह पुरुष भी उस कन्या को अपनी बाहों में लेकर।

रहा था रहा था रहा था था जैसे जैसे कि वह उसकी प्रेमिका हो।

जबकि वह यह बात पहले जानता था कि वह बहुत ही कम उम्र की एक लड़की है और उसे इस प्रकार उस लड़की के साथ व्यवहार रखना बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। लेकिन शरीर! कभी भी बुद्धि का साथ नहीं देता है।

और शरीर में बसी हुई कामवासना कब किस प्रकार से बदल जाए, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।

बड़ी की बड़ी की तीव्रता बड़ी की तीव्रता के साथ आकर्षित हो जाता है और। उसके अंदर की कामवासना उससे गलत कार्य करवाने के लिए बहुत ही तीव्रता के साथ प्रेरित करने लगती है। इधर भाग कन्या भी जैसे कि एक पूर्ण विकसित युवती हो उसके प्रति। वैसा ही व्यवहार करने लगती है।

जैसे कि एक नव युवती। पूरी तरह से कामवासना के लिए आतुर हो चुकी हो।

इस घटना के घटित होते समय। एक विचित्र बात और देखने में आती है। बाहर!

चमगादड़ बड़ी ही तीव्रता के साथ वहां आ जाते हैं। और वहां पर एक चमगादड़ उसके बाद दूसरा और उसके बाद वहां पर। चमगादड़ की पूरी फौज जैसे इकट्ठा हो जाती है। चमगादड़। उस कुटिया के बाहर उड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं।

उनके कारण ऐसा लग रहा था जैसे कि एक काला साया उस कुटिया के चारों तरफ बड़ी ही तीव्रता के साथ आ गया हूं। किताबी! वहां पर जोर से बिजली चमकती है। और? दोनों एक दूसरे को तीव्रता से आलिंगन देते हैं।

एक कन्या और एक पुरुष मिलन के लिए लगभग पूरी तरह से उस कुटिया के अंदर तैयार हो चुके थे जिसके चारों तरफ भयानक चमगादड़ की पूरी फौज वहां पर उपस्थित थी। ऐसा दृश्य था जैसे कि कोई भयानक पर घटने वाली है किताब! और व्यक्ति और व्यक्ति और व्यक्ति और भी ज्यादा उत्तेजना में आकर उस कन्या का चुंबन करने लगता है। कन्या भी पूरा साथ देने लगती है लेकिन तभी अचानक से उस पुरुष को ऐसा लगता है कि वह गलत कार्य कर रहा है। यह कन्या कन्या व भी बहुत छोटी है और ऐसा करना किसी पाप से कम नहीं है। आखिर अगर उसने? ऐसा किया तो भविष्य में भला कोई किसी पर क्यों विश्वास करेगा यह कन्या केवल?

उसके भरोसे पर ही यहां पर आई है। इसके जीवन में कितना बड़ा? संकट आया और उसने सहायता मांगी और मैं अब उसी का शोषण करने जा रहा हूं, इसलिए वह रुक जाता है। नहीं। अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती हूं यह सुनकर पुरुष। उसे कहता है यह गलत है तुम यहां। इस प्रकार!

मेरे साथ जीवन! और शारीरिक शोषण के लिए नहीं आई हो। यह तो बहुत ही गलत बात होगी।

मैं यह नहीं कर सकता। कि तभी वह कन्या जोर से उस व्यक्ति को पकड़ लेती है। और कहती है। तुम्हें क्या समस्या है? जो शुरू किया है उसे जारी रखो। रही कर रही कर रही कर रही हूं, पर वह कहता है पहली बात कि तुम्हें कुछ भी नहीं मालूम। शादी के बाद ही अच्छा लगता है।

ठीक है ना मैं आपसे शादी करने को तैयार बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। तब वह व्यक्ति कहता है, वह सब तो बाद की बात है। तुम्हारे और मेरे बीच में कई वर्षों का अंतर है।

तुम नहीं समझ पा रही हो, तुम अभी बच्ची हो। यह कहते ही वह जोर से हंसने लगी और कहने लगी। कामकला में। मुझसे ज्यादा प्रवीण कोई नहीं है। मैं तुम्हें इतना आनंद दूंगी जिसके विषय में तुमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी और वह कन्या फिर से उत्तेजना से उस पुरुष को भर नहीं लगती है।

लेकिन पुलिस फिर उसे रोकता है और कहता है। तुम तो मेरी बेटी के जैसी हो?

यह करना बहुत ज्यादा गलत होगा। अब वह कहती है। कि शायद तुम समझे नहीं। मैं इस कला में तुम्हारी सोच से भी ज्यादा प्रवीण हूं और तभी बिजली चमकती है। है। देखता है जिससे वह 12 जिससे वह 12 वर्ष की एक कन्या समझ रहा था एक एक पूर्ण विकसित 24-25 वर्ष की।

एक बहुत खूबसूरत कन्या है।

वह कन्या पूरी तरह नवज्योति में बदल चुकी थी। उसके शरीर पर अब वस्त्र भी नहीं थे बिजली की चमक से उसके शरीर पर। मौजूद एक भी वस्त्र वहां दिखाई ही नहीं पड़ा। आश्चर्य तो तब हुआ जब उस व्यक्ति ने देखा कि उसके शरीर पर भी एक भी वस्त्र नहीं है और वह एक दूसरे का आलिंगन किए हुए हैं। वह मुस्कुराते हुए उसके होठों पर चुंबन करते हुए बोली मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी? बनी हूं बनी हूं बनी हूं हूं और जो शुरू शुरू किया है उसे आगे बढ़ाओ। पुरुष और भी ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि उसने तो यह सोचा ही नहीं था कि कोई 12 वर्ष की कन्या पूर्ण विकसित। कन्या में कैसे बदल जाएगी? और फिर वह 12 वर्ष का रूप लेकर क्यों आई थी। अगर उसे आना ही था तो पूर्ण विकसित।

कन्या के रूप में जवान होकर उस वक्त क्यों नहीं आई इसी प्रश्न को पूछना उसने उचित समझा। और उसने कहा कि बताइए आपने अपना वास्तविक रूप क्यों नहीं दिखाया और अपना परिचय भी मुझे बताइए? तब वह कहने लगी। मैं वही पिशाचिनी हूं जिसकी साधना आप कर रहे हैं। जब आपके में जब आपके में जब आपके पास उस दिन आई थी तो मैं आपकी परीक्षा ले रही थी कि एक सुंदर कन्या को देखकर आपके मन में कामवासना अगर आ जाती है तो आपकी बस में नहीं है। किंतु इतने दिन होने के बावजूद एक बार भी आपने मुझे हाथ नहीं लगाया और तब से मैं आपको मन ही मन पूरी तरह चाहने लग गई। इस प्रकार से आज मैं आपको अपना स्वामी स्वीकार करते हुए गंधर्व विवाह कर रही हूं और हमारी श्रेणी में।

संभोग करने पर ही विवाह माना जाता है। कीजिए, जब कीजिए जब कीजिए जब जब तक मैं तृप्त नहीं होती तब तक कीजिए ऊर्जा भर दूंगी कि आप? को क्रिया को क्रिया को क्रिया को नहीं रोकेंगे तब तक आप इस फलित नहीं होंगे। मैं शक्ति आपको प्रदान करती हूं। आपका इस खनन रुक जाएगा।

यह सुनकर वह व्यक्ति और भी ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया। उसने कहा ठीक है, मैं आपकी ही साधना के लिए यहां पर आया था। हैं और हैं और जीवनभर हैं और जीवनभर सिद्धि बने सिद्धि बनी रहने का वादा करती हैं। मेरी इच्छा के अतिरिक्त कोई कार्य बिना मुझसे पूछे नहीं करने का वचन देती हैं और अपनी एक निशानी मुझे प्रदान करती हैं तो मैं आगे इस क्रिया को जारी रख सकता हूं। यह सुनकर मुस्कुराते हुए वह कहने लगी ठीक है। मैं अपना एक बार तुम्हें देती हूं और उसने अपने केस से एक बार तोड़ लिया। उस! सिर के बाल को उसने उस व्यक्ति की कलाई में बांध दिया जैसे ही कलाई में उस व्यक्ति ने। उसे पहना वह एक सोने के कड़े में बदल गया।

कहा।

आपसे जब भी आप मेरे मंत्र का? केवल एक माला उच्चारण करके बुलाएंगे। मैं आ जाऊंगी और आपके साथ रात्रि के समय आपको एक पत्नी का पूरा सुख प्रदान करूंगी। करूंगी।

मुझे यह वरदान देंगे। क्योंकि हमारी और आपकी मिलन कभी संकट ना आए इसीलिए यह आवश्यक है।

कि मैं आपसे भी प्राप्त करूं?

तब वह व्यक्ति कहने लगा, ठीक है। आप बताइए आपकी क्या इच्छा है? तब उसने कहा। आजीवन! कोई पुरुष या स्त्री बालक बालिका आपको ना छुए। जब तक कोई आपको नहीं छोड़ेगा तब तक आप की सिद्धि के रूप में मैं बनी रहूंगी। जिस दिन आपको कोई झूलेगा उस दिन मैं आपको छोड़ कर चली जाऊंगी। इस वरदान से कम मैं कुछ और नहीं चाहती हूं।

यह सुनकर व्यक्ति ने कहा ठीक है। मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छा का वरदान प्रदान करता हूं। तब उसने कहा, आप भी निशानी के रूप में मुझे कुछ दीजिए तो उस व्यक्ति ने कहा, मैं क्या दूं तब उस पिशाचिनी ने कहा, आप भी अपने शरीर का एकबाल मुझे प्रदान कीजिए और तब उस व्यक्ति ने अपने इकबाल तोड़कर उस पिशाचिनी को दिया। पिशाचिनी ने उसे अपनी उंगली में पहन लिया और वह उंगली में वह सोने की अंगूठी बन गया। तब पिशाची ने कहा, आओ मेरे प्रियतम अब जीवन के सभी प्रकार के सुख भोगो। मैं तुम्हारे साथ आज ही बनी रहूंगी। लेकिन क्योंकि मैं एक पिशाचिनी हूं इसलिए केवल सूर्य का प्रकाश। समाप्त होते ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी और सूर्य का प्रकाश निकलते ही वापस विलीन हो जाऊंगी। इस प्रकार उस व्यक्ति और उस विश आदमी ने उस पूरी रात को आनंदित होकर। भूख किया एक दूसरे को पूरी तरह संतुष्ट किया। थे प्रसन्न थे प्रसन्न थे प्रसन्न थे सुबह का प्रकाश जैसे ही निकलने को हुआ पिशाचिनी उस घाट से गायब हो गई। अब वह व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा। गुरु ने कहा, जो भी तुम्हारा वजन हो, याद रखना उसका पालन करना अनिवार्य है, अन्यथा तुम्हारी सिद्धि नष्ट हो जाएगी। तब व्यक्ति को खयाल आया। अरे मैंने तो किसी के भी छूने पर सिद्धि के नष्ट हो जाने का वचन दे दिया है। मुझे तो बहुत सावधानी रखनी पड़ेगी। है। जाता है। जाता है। माता है। माता कहती है मैं तुझे अपने हाथ से खिलाऊंगी। वह मना करता है। आप यह परिवार का कोई भी सदस्य मुझे नहीं छोड़ेगा। आप सभी को यह वचन मुझे देना होगा। तब सभी लोग उसकी बात को मान लेते हैं। इस प्रकार वह अकेला रहता स्वयं के लिए भोजन बनाता। रात्रि के समय अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेता और कहता मेरे कमरे में अब सुबह तक कोई नहीं आएगा। अगर किसी ने आने का प्रयास किया तो उसका जिम्मेदार वह खुद होगा। एक बार गांव में डाकू लोग आ जाते हैं और तब वह गांव पर हमला कर देते हैं। रात्रि का समय था। उनके घर पर भी हमला हो जाता है परिवार के सारे सदस्य डर कर घर से भाग जाते हैं अपनी जान बचाने के लिए। डाकू और उसके साथ उसके साथी इस कमरे पर बहुत तेजी में हमला करते हैं। दरवाजा नहीं खुलता है तब डाकू कहता है दरवाजा तोड़ दो और जो भी माल नीचे निकले मस्सारा अपने पास रख लो।

तब बहुत तेजी से।

तोड़ देते तोड़ देते हैं तोड़ देते हैं और अंदर का नजारा उन्हें दिखाई दिखाई देता है इसे देखकर। सभी! हैं। सामने एक स्त्री और पुरुष दोनों संभोग क्रिया में रख थे। और दोनों एक दूसरे को आनंदित कर रहे थे। वह इस्त्री बहुत ज्यादा सुंदर थी। यह देखकर डाकू कहता है। अरे वाह आज तो दुनिया का सबसे बड़ा खजाना मिल गया।

इस पुरुष को तुरंत मार दो और यह स्त्री हम सभी अपने मनोरंजन के लिए लेकर चलते हैं।

ऐसा कहना था कि सभी डाकू उस व्यक्ति पर टूट पड़े और उसे मारने लगे। तब उस व्यक्ति ने कहा तुमने सबने? अपनी मृत्यु को बुला लिया है।

पत्नी मेरी मेरी इन सभी को मृत्युदंड दो।

उसका इतना ही कहना था कि वह खूबसूरत! स्त्री भयंकर बालों वाली मुंह में दांत लिए।

हाथों में बड़े-बड़े पंजे। पैर और शरीर पर।

खून और सड़ा हुआ मांस लटका हुआ। वर्ग स्त्री वर्ग तेजी स्त्री वर्ग तेजी तेजी से उन डाकुओं की तरफ लकी।

और उन सभी की गर्दन पर अपने मुंह से।

उसी तरह बार किया जैसे कि एक शेर। किसी जानवर को पकड़ लेता है उसकी गर्दन पर ही हमला करके। खून उसका खून बहुत तेजी से चूसने लगती। जैसे कि वह बहुत ज्यादा प्यासी हो।

उसका इतना खतरनाक रूप देखने पर डाकू भयंकर डर के मारे इधर-उधर भागने लगे, लेकिन उसे 1 मिनट से भी कम लगता था। किसी भी व्यक्ति का खून चूसने में।

में भागने में भागने में भागने लगे। लगे। यह जहां भी डाकू जाता उसे पकड़ कर उसकी गर्दन पर। अपने दांत गड़ा कर बहुत तेजी से खून चूसने लगती। यह आदेश देना उस व्यक्ति के जीवन पर भारी पड़ने वाला था। इसका कारण उस व्यक्ति को थोड़ी देर से समझ में आया। लगभग 21 डाकू लोगों को। मारकर उनका खून पीने के बाद पिशाचिनी उस व्यक्ति के पास आई। और कहने लगी आपने मुझे आदेश दिया था। पर वचन के हिसाब से अब आपको भी मुझे वचन देना पड़ेगा क्योंकि पति पत्नी का हर फैसले और निर्णय में बराबर का हाथ होता है। तो उस व्यक्ति ने खुश होकर कहा, तुमने सभी डाकुओं को मार दिया है, ठीक है, मैं तुम्हें वचन देता हूं। मैं अगर मैं अगर मैं पूरी मैं पूरी कर कर पाया तो अवश्य ही करूंगा। तब पिशाचिनी कहती है।

आप? बस हां कहिए बाकी सारा काम मैं कर दूंगी।

इसी के साथ मैं आपको एक और वरदान देती हूं। अब आप किसी की भी समस्या को हल कर पाएंगे। आपके पास जो भी आएगा उसकी समस्या को मैं हल कर दूंगी। लेकिन मेरे इस वरदान को अब आपको हमेशा पूरा करना होगा। मैं थी काफी खुश था। लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि उस से कहां गलती हो चुकी है तब व्यक्ति ने पूछा ठीक है। मैं भी आपको वरदान देता हूं कि आप जो भी मांगेंगे, मैं उसे पूरा कर दूंगा। अगर मैं कर पाया तो तब पिशाचिनी ने कहा, आप अपनी हर समस्या को? समस्या को हर समस्या को हर समस्या को को सब मुझ पर छोड़ दीजिए। लेकिन मेरी शर्त को ध्यान से सुनिए। आज!

सोमवार का दिन है। इसलिए प्रत्येक सोमवार को आप मुझे मनुष्य का रक्त देंगे।

मैं?

मीठा से चुने गए किसी पुरुष का रक्त पीकर।

और ज्यादा शक्तिशाली होना चाहती हूं।

यह सुनकर व्यक्ति घबरा गया। कि मैंने यह कौन सा वरदान इस पिशाचिनी को दे दिया है?

तब व्यक्ति ने कहा, कोई और वर मांग लो। लेकिन इससे पहले मुझे यह बताओ कि ऐसी बात तुम्हारे हृदय में आखिर आई कैसे?

पहली पहली बार पहली बार पहली बार मुझे रक्त पिला दिया जब आपने कहा इन सभी को मृत्युदंड दो तब मैंने इन सभी का रक्त ज्यादा आनंद की प्राप्ति हुई।

यह तो यह तो यह तो यह है कि जिसे भी मैंने मारा यह सभी मेरी सेवा में आ गए। यह सभी मरकर पिशाच बन गए हैं और मैं इन सब की रानी हूं। अब मैं जो भी कहूंगी यह मेरी आज्ञा का पालन करेंगे प्रकार पूरी डाकुओं का गिरोह। मेरे!

सेवक बन चुके हैं इसीलिए अब हर सोमवार मैं एक मनुष्य को मारकर उसका रक्त पीना चाहती हूं।

सोमवार हर सोमवार हर सोमवार हर सोमवार एक पुरुष को लेकर आइए।
आप नहीं ला सकते हैं तो मैं खुद लेकर आ जाऊंगी। बाकी का कार्य भी मैं ही कर दूंगी। लेकिन स्वीकृति आपसे ही मुझे चाहिए क्योंकि आप मेरे पति हैं। यह सुनकर व्यक्ति घबरा गया। उसने पिशाचिनी को मना कर दिया। इस आदमी ने कहा।

आपका और मेरा रिश्ता बराबर का है इसलिए आपको मेरी बात तो माननी ही पड़ेगी। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो मेरा और आपका रिश्ता खत्म हो जाएगा। क्योंकि वचन के अनुसार पति और पत्नी का हर चीज में बराबर सहयोगी हिस्सा होता है। अगर आप मेरा सहयोग नहीं करेंगे तो फिर आप मेरे पति भी नहीं रहेंगे।

तब व्यक्ति को लगा कि मैंने उस दिन मृत्युदंड देने का निर्णय लेकर बहुत बड़ी गलती की है। कहनी बात कहनी बात कहनी बात कहनी चाहिए थी किसी भी सूरत में मृत्युदंड देना बहुत ही गलत और पैसा चित कर्म है। इसी कारण स्थिति आज हो गई है। व्यक्ति ने कहा। मुझे समय दो और तब तक मेरे घर में रहो। मैं कुछ दिनों के लिए अपने गुरु के पास जाना चाहता हूं। तब पिशाचिनी ने कहा जैसी आपकी आज्ञा मैं तो आपकी पत्नी हूं। आपकी हर आज्ञा मानना मेरी जिम्मेदारी है। और पिशाचिनी उसके घर में ही। तब तक रहने लगी। इधर, यह व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा और उससे सारी बात बताई। गुरु ने कहा, इससे पीछा नहीं छुड़ा सकते हो। एक ही रास्ता है। तुम्हें इस शक्ति को अपने जीवन से विसर्जित करना पड़ेगा। जिस प्रकार तुमने इसकी साधना इसे प्राप्त करने के लिए कि उसी प्रकार विसर्जन साधना तुम्हें करनी होगी। बात वह बात वह बात वह वह व्यक्ति समझ चुका था क्योंकि वह यह बात जानता था। अगर उसने गुरु की बात नहीं मानी तो भी संकट आ सकता है। पिशाचिनी की भूख कभी समाप्त नहीं होने वाली है।

उसे अपनी पत्नी को त्यागना ही होगा। इस प्रकार वह वहां से सीधे श्मशान भूमि में चला जाता है।

गुरु की बताई गई विद्या के अनुसार वहां पर पिशाचिनी की विसर्जन साधना व संपन्न करता है।

साधना संपन्न होते ही पिशाचिनी सामने प्रकट हो जाती है। और रोते हुए कहती है मुझसे कहा अपराध हो गया जो आपने मुझे अपनी जीवन से ही बाहर आज कर दिया है।

इच्छाएं तुम्हारी इच्छाएं तुम्हारी इच्छाएं तुम्हारी इच्छाएं समाप्त नहीं होने वाली थी इसीलिए आज मैं तुमसे अपना जीवन का जुड़ाव हटाता हूं। जाओ तुम अपनी इस प्रकार रोते हुए पिशाचिनी।

कहती है? जीवन से मुझे निकाला है।

मैं आपकी इच्छा का पालन करूंगी।

लेकिन? अब एक इच्छा मेरी भी है जब आप अगला जन्म लेंगे तो मैं आपके जीवन में सीधे आ जाऊंगी। और आपको दोबारा से प्राप्त करूंगी।

इसमें आप मुझे नहीं रोक पाएंगे। अगले जन्म तक अगले जन्म अगले जन्म तक इंतजार करूंगी इस प्रकार वह पिशाचीनी! वहां से गायब हो जाती है।

तो यह थी इस पिशाचिनी साधना की। सत्य घटना जो उस साधक ने की थी। और अपने गुरु के माध्यम से उसकी सिद्धि को प्राप्त किया और बाद में उसका विसर्जन भी किया था।

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