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शाकंभरी माता शक्तिशाली कवच और कथा

शाकंभरी माता शक्तिशाली कवच और कथा

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग माता शाकंभरी के 1 रहस्यमई कवच की साधना के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। जिसके माध्यम से स्वयं भगवान स्कंद जो कि उनके पुत्र भी है ने अपनी सुरक्षा को बढ़ा दिया था, जिसकी वजह से तारकासुर ने भी उनका कोई अहित नहीं कर पाया था। तो सबसे पहले? माता की संक्षिप्त कथा के विषय में जानते हैं और उसके बाद इनके कवच को जानेंगे जिसका रोजाना पाठ करने से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है और फिर उस व्यक्ति के ऊपर तांत्रिक क्रियाएं भी कार्य नहीं करती है। माता शाकंभरी को शाक भवानी के नाम से भी जाना जाता है और माता शाक यानी वनस्पति की देवी भी मानी जाती है। इसी अवतार में दुर्गम नामक महा दैत्य का वध करने के कारण दुर्गा देवी के रूप में इनकी पूजा की जाती है। शाकंभरी नवरात्रि 9 दिनों तक मनाया जाने वाला एक त्यौहार है जो पौष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर माता के प्रकट दिवस यानी मास की पूर्णिमा के दिन जिसे हम शाकंभरी जयंती उत्सव के रूप में भी जानते हैं इनकी कथा के अनुसार प्राचीन समय में दुर्गम नाम के एक महान दैत्य ने बहुत उत्पात मचाया था। उस दुष्ट आत्मा के पिता का नाम रूरू था। दैत्य के मन में यह विचार आया कि देवता का बल जो है, वह वेद है और उसी से उनकी सत्ता स्थापित है। अगर वेद लुप्त हो जाएं तो देवता भी नहीं रहेंगे। इसमें कोई संशय नहीं है। इसलिए पहले वेदों को ही नष्ट कर देना चाहिए।

यही सोचकर वह दैत्य तपस्या करने के विचार से हिमालय पर्वत पर चला गया। ब्रह्मा जी के मंत्रों द्वारा। उनका! सिद्धि करण प्रयास करने लगा। वह केवल वायु का रस पीकर ही जीवित रहा। उसने 1000 वर्ष तक बड़ी कठिन तपस्या की। उसके तेज से देवता दानव सहित संपूर्ण पृथ्वी आश्चर्यचकित हो गई थी तब ब्रह्माजी! चतुर्मुख स्वरूप में वहां पर हंस पर सवार होकर वरदान देने के लिए दुर्गम दैत्य के सम्मुख प्रकट हो गए और बोले तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन में जो भी वरदान पाने की इच्छा हो, वह मांग लो। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां आने को विवश हो गया हूं। ब्रह्मा जी के मुख से यह वाणी सुनकर दुर्गम ने कहा, देव मुझे संपूर्ण वेद प्रदान करने की कृपा कीजिए। साथ ही मुझे वह बल दीजिए, जिससे मैं समस्त देवताओं को परास्त कर सकूं। दुर्गम की बात सुनकर चारों वेदों के अधिष्ठाता ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर ब्रह्मलोक की ओर चले जाते हैं। तब सभी वेदों को कैद करके संपूर्ण पृथ्वी से वेदों को नष्ट करने का कार्य करने लगता है। ब्राम्हण वेद अध्ययन भूल जाते हैं। वेदों की कारण समस्त क्रियाएं और ब्राह्मण अपना धर्म त्याग कर भ्रष्ट आचरण करने लगते हैं। इससे स्थिति भयंकर हो जाती है देवताओं को हवि।

ना मिलने के कारण उनका बल नष्ट होने लगता है इससे। वर्षा ऋतु बंद हो जाती है, अकाल पड़ जाता है। तब इस भीषण परिस्थिति से बचने के लिए सभी देवता, ब्राम्हण इत्यादि हिमालय के शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर चले जाते हैं। वहां पर समाधि ध्यान के पूजन द्वारा देवी की स्तुति करते हैं। वह सत्यव्रत 9 दिन तक करते हैं। तब सबके भीतर निवास करने वाली महाशक्ति! वहां पर प्रकट हो जाती है और तब उन्हें।

सभी प्रणाम करके उनसे। यह कहते हैं कि हे माता आप आज नीलकमल के समान रंग लिए कमलपुष्प पर सुशोभित होकर आई हो। आपका यह स्वरूप आयोनिजा है करोड़ों सूर्य के समान चमकने वाला आपका यह करुण स्वरूप अपार।

करुणा का सागर है आप जगत की रक्षा कीजिए। और जगत को देखिए अपनी मां के बिना यह कितना सूना हो गया है? कितने कष्ट यहां आ गए हैं तब माता स्वयं अपनी आंखों से समस्त पृथ्वी को देखती हैं। कोई स्थान छूट न जाए, इसलिए वह सहस्त्र नेत्रों से जगत को देखने लगती है। उनके यह हजारों नेत्र जब देखते हैं तो। वह रोने लगती है। उनकी आंखों से जलधाराएं पृथ्वी पर गिरने लगती है और इसी से भयंकर वर्षा शुरू हो जाती है। तब वह शताक्षी स्वरूपा। समस्त जीवो को जल के कारण भोजन देने वाली और अपने शरीर से विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट फल साग सब्जियां पृथ्वी पर उत्पन्न करने वाली बन जाती है। इसी कारण से इनका नाम शाकंभरी पड़ता है। यह देखकर कि पृथ्वी पर देवी शक्ति प्रकट हुई है। उनसे लड़ने के लिए दुर्गम वहां आ जाता है तब देवी शाकंभरी और दुर्गामासुर में भीषण युद्ध होने लगता है। 21 दिन तक लगातार लड़ाई चलती है। 21 दिन माता जगदंबा शाकंभरी अपने पांच बाणों से दुर्गम की छाती को छेद देती है। और वह प्राण हीन होकर नीचे गिर जाता है। समस्त वेद स्वतंत्र हो जाते हैं और तब सभी दुर्गामासुर के नाश करने के कारण देवी को दुर्गा नाम देते हैं। और? हमेशा देवी का यह स्वरूप अत्यंत करुणा में होने के कारण संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि देने वाला होता है। इतना ही नहीं देवी के इसी स्वरूप के कवच के पाठ के द्वारा स्वयं स्कंध ने त्रिपुरासुर पर विजय प्राप्त की। उनके चारों तरफ माता शाकंभरी का कवच विद्यमान था। जिसके कारण।

त्रिपुरासुर उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाया और अंततोगत्वा उनकी विजय हुई थी। इसी कारण से भी शाकंभरी की इस कवच का जो भी पाठ करता है उसको अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं। तो चलिए पढ़ते हैं इस पाठ को और जानते हैं। इसके विधान के विषय में। सबसे पहले। माता शाकंभरी की प्रतिमा को स्थापित करके पंचोपचार से उसका पूजन करें।

और स्वयं नीले वस्त्र धारण करके।

रुद्राक्ष की माला अथवा। नीलमाला, हकीक की नीले रंग की माला से भी माता की साधना कर सकता है।

और रोजाना 108 बार पाठ करें। 51 दिन ऐसा करें तो कवच पूर्ण सिद्ध हो जाता है और फिर ऐसे साधक का कोई भी तंत्र नुकसान नहीं कर सकता है।

शक्र उवाच –

शाकम्भर्यास्तु कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।

यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे कथय षण्मुख ॥ १॥

स्कन्द उवाच –

शक्र शाकम्भरीदेव्याः कवचं सिद्धिदायकम् ।

कथयामि महाभाग श्रुणु सर्वशुभावहम् ॥ २॥

 

अस्य श्री शाकम्भरी कवचस्य स्कन्द ऋषिः ।

शाकम्भरी देवता । अनुष्टुप्छन्दः ।

चतुर्विधपुरुषार्थसिद्‍ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

 

ध्यानम् ।

शूलं खड्गं च डमरुं दधानामभयप्रदम् ।

सिंहासनस्थां ध्यायामि देवी शाकम्भरीमहम् ॥ ३॥

 

अथ कवचम् ।

शाकम्भरी शिरः पातु नेत्रे मे रक्तदन्तिका ।

कर्णो रमे नन्दजः पातु नासिकां पातु पार्वती ॥ ४॥

 

ओष्ठौ पातु महाकाली महालक्ष्मीश्च मे मुखम् ।

महासरस्वती जिह्वां चामुण्डाऽवतु मे रदाम् ॥ ५॥

 

कालकण्ठसती कण्ठं भद्रकाली करद्वयम् ।

हृदयं पातु कौमारी कुक्षिं मे पातु वैष्णवी ॥ ६॥

 

नाभिं मेऽवतु वाराही ब्राह्मी पार्श्वे ममावतु ।

पृष्ठं मे नारसिंही च योगीशा पातु मे कटिम् ॥ ७॥

 

ऊरु मे पातु वामोरुर्जानुनी जगदम्बिका ।

जङ्घे मे चण्डिकां पातु पादौ मे पातु शाम्भवी ॥ ८॥

 

शिरःप्रभृति पादान्तं पातु मां सर्वमङ्गला ।

रात्रौ पातु दिवा पातु त्रिसन्ध्यं पातु मां शिवा ॥ ९॥

 

गच्छन्तं पातु तिष्ठन्तं शयानं पातु शूलिनी ।

राजद्वारे च कान्तारे खड्गिनी पातु मां पथि ॥ १०॥

 

सङ्ग्रामे सङ्कटे वादे नद्युत्तारे महावने ।

भ्रामणेनात्मशूलस्य पातु मां परमेश्वरी ॥ ११॥

 

गृहं पातु कुटुम्बं मे पशुक्षेत्रधनादिकम् ।

योगक्षैमं च सततं पातु मे बनशङ्करी ॥ १२॥

 

इतीदं कवचं पुण्यं शाकम्भर्याः प्रकीर्तितम् ।

यस्त्रिसन्ध्यं पठेच्छक्र सर्वापद्भिः स मुच्यते ॥ १३॥

 

तुष्टिं पुष्टिं तथारोग्यं सन्ततिं सम्पदं च शम् ।

शत्रुक्षयं समाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः ॥ १४॥

 

शाकिनीडाकिनीभूत बालग्रहमहाग्रहाः ।

नश्यन्ति दर्शनात्त्रस्ताः कवचं पठतस्त्विदम् ॥ १५॥

 

सर्वत्र जयमाप्नोति धनलाभं च पुष्कलम् ।

विद्यां वाक्पटुतां चापि शाकम्भर्याः प्रसादतः ॥ १६॥

 

आवर्तनसहस्रेण कवचस्यास्य वासव ।

यद्यत्कामयतेऽभीष्टं तत्सर्वं प्राप्नुयाद् ध्रुवम् ॥ १७॥

 

॥ इति श्री स्कन्दपुराणे स्कन्दप्रोक्तं शाकम्भरी कवचं सम्पूर्णम् ॥

यह था माता शाकंभरी का कवच का पाठ रोजाना करने से अनेक लाभ होते हैं। धर्म अर्थ काम मोक्ष सभी की प्राप्ति होती है और तीनों संध्या जाप करने से माता का सानिध्य प्राप्त होता है। साथ!

जैसे मैंने बताया, इसका एक माला रोजाना 51 दिनों तक करने से माता के यहां सिद्धि प्राप्ति होती है। सिद्धि के विभिन्न स्तर हैं जिनसे अलग-अलग साधक को प्राप्त होता है तो यह था माता का कवच जो कि एक प्राथमिक साधना है और कोई भी इसे कर सकता है। माता बहुत करुणामई है और सदैव प्रसन्न रहती हैं और अपने भक्तों की हर पीड़ा किसी भी परेशानी को नष्ट कर ही देती हैं। जैसे इन्होंने जगत में आए हुए महान संकट को नष्ट कर दिया था। यह था आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

 

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