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श्री खाटूश्यामजी की कथा और साधना

नमस्कार दोस्तो धर्म  रहस्य चैनल पर  आपका एक बार फिर से स्वागत आज मैं आपके लिए मोरबी नंदन खाटू श्याम जी कि कहानी और उसके साथ साथ  उनकी साधना भी लेकर आया हु और इन्ही  चीजें मैं आपको साथ साथ बताऊंगा चले शुरू करते हैं मोरबी नंदन खाटू जी श्याम की दिव्य कथा का वर्णन श्री वेद व्यास जी ने  सकँद पुराण के माहेश्वर द्तीय खंड  कौमारीका मे दिया है बहुत ही अलौकिक ढंग से किया है और इसके बारे में जो वर्णन  आता है वो सब मै आपको बताऊंगा कहते हैं ईश्वर के बहुत से अवतार हुई है भीमसेन के पपौत्र घटोत्कच के पुत्र मौरवीनँदन वीर शिरोमणि बर्बरीक जी भी आते हैं

पांडव नंदन भीम ने हिडिंबा से गंधर्व विवाह रचाया था हिडिंबा के गर्भ से वीर घटोत्कच नामक विर योद्धा का जन्म हुआ था कालांतर में घटोत्कच अपनी माता हिडिंबा की आज्ञा से महाबली पिता भीम भी श्री कृष्ण युधिष्ठिर अर्जुन नकुल सहदेव सभी के दर्शन के लिए इंद्रप्रस्थ आया भगवान श्री कृष्ण  वीर घटोत्कच को देखकर भगवान श्री कृष्ण बोले  इस वीर योद्धा का विवाह शीघ्र कराओ   पांडवों ने कहा भगवान यहां विवाह संबंध कैसे स्थापित हो  आप  ही बताएं भगवान श्री कृष्ण ने कहा इसके समान बुद्धिमान एवं वीर मुर दैत्य कि अति सुंदर बाला काम कँटका,  मुर नामक दैत्य  कि औरस पुत्री है इस शुभ योद्धा के लिए वही अनुुुुकुल मानी जाऐगी घटोत्क्च अपनी विवेक विघा के द्बारा  उस शास्त्र विघाा को परस्त कर सकता है 

मैं घटोत्कच को स्वयंं दीक्षित करके उस मृत्यु स्वरुप नारी  के  वरण के लिए भेजुुुुगा श्री  कृष्ण के हाथोंं दिक्षित होकर घटोत्कच मुर दैत्य  कि कंन्या  को वरण  करने के लिए चल पडा रास्ते में अनेकोंं नदियों नालो पहाड़ जंगलों को पार करता हुआ खूंखार राक्षसो को परास्त  करते हुए कामकँटका  के दिव्य महल पहुचा महल के चारो पहरी युवतीयो ने सौम्य रुप से घटोत्कच को कहा हे  भद्र पुरुष तुम यहां क्यों आए, क्या तुम अपनी मृत्यु का वरण करने आए हो क्या तुम्हें महल के द्वार पर लटकती  हुई मुंडमालाएं नहीं दिखती क्या तुम अपना शीश उन बँदरवानो को चढवाना चाहते हो अपना शीश  कटवाकर लगवाना चाहते, तुम शीघ्र  ही यहाँ से वापस लौट जाओ और अपनी प्राणों की रक्षा  करो पहरी दैत्य  बालाओं की बात  को सुनकर  घटोत्कच ने कहा  हे  देवियों में कायर पुरुष नहीं हूं जो तुम्हारे कहने से वापस लौट जाऊंगा जाओ अपनी महारानी से कहो कि एक वीर पुरुष तुमसे भेट  करने हैं आया है

 तुम से विवाह करना चाहता है घटोत्कच की वीरता को देखकर उन ।दैत्य बालाओं ने घटोत्कच को महल  के अंतर पुर मैं जाने हेतु मार्ग दे दिया,  घटोत्कच महारानी कामकँटका  मोरवी के समक्ष उपस्थित हुआ महारानी घटोत्कच को देखकर मोहित हुई और माता कामाख्या को धन्यवाद दिया कि क्या ईसी  सूरवीर कि  सेवा करने हेतु भगवान  कृष्ण के चक्कर से बचाया था, मोरवी ने सोचा ये तो कोई  दिव्य पुरुष फिर भी उनकी  परीक्षा लेने के लिए तैयार हो गई, मौरवी ने घटोत्कच से अनेक प्रकार के प्रश्न पूछे मौरवी ने कहा क्या यहां आने से पूर्व अपने मेरी प्रतिज्ञा के बारे में जाना  क्या आप अपने विवेक व  बल के पराक्रम से मुझे परास्त करने का  सामर्थ्य रखते हैं ।

क्या आपको अपने प्राण का मोह  नहीं है क्या आपने महल के प्रवेश द्वार पर कर नर मूडो की माला नहीं देखी मैं तुम पर तरस खाती हूं और कहती हूं ।कि लौट जाओ और अपने प्राणों के रक्षा करो  घटोत्कच ने कहा है मृत्यु स्वरुप नारी मैंने तुम्हारा संपूर्रण विधान पढा है अब तुम अपने अस्त्र शस्त्र का कौशल मेरे सामने दिखाओ मोरबी नेे प्रतिउत्तर दिया कि तुम विद्या का कोई ऐसा प्रयोग दिखाओ कि तुम मुझे नियंत्रित कर सको, घटोत्कच ने कहा सूमति कीसी व्यक्ति के यहां एक कन्या ने जन्म लिया, कन्या  के जन्म के पश्चात उसकी मां चल बसी कन्या के पिता ने उसे पाल पोस कर बड़ा किया जब कन्या बड़ी हुई तो पिता की बुद्धि भ्रष्ट हो गई, वह अपनी पुत्री से बोला कि मैं तुम्हें आज्ञात स्थान से  पाकर लाया हूं और अब तूम  मुझसे विवाह करो वह बोला मैंने तुम्हारा पालन पोषण किया है और अब तो मुझसे विवाह रचा कर मेरी कामना पूरी करो संपूर्ण वृतांत से अनभिज्ञ वह कन्या आपने पिता से विवाह कर लेती है    जिससे कन्या की उत्पत्ति होती है अब हे शुभद्वै  अब तुम ही बताओ वह उस नीच कामी कुकर्मी  से उत्पन्न  कन्या उसकी क्या लगेगी वह उसकी पुत्री हुई या उसकी द्वौहित्री घटोत्कच का यह प्रश्न सुनकर मोरवी निरुत्तर हो गई उसने आवेश में आकर स्वयं को निरुत्तर करने वाले को। शस्त्र के द्वारा परास्त करना चाहा और अपना खड़क उठाने का प्रयास किया और तभी घटोत्कच ने मोरवी को अपनी बाहों में से फसा कर बांधकर पृथ्वी पर पटक दिया ।

मोरवी घटोत्कच के हाथों अस्त्र और शस्त्र दोनों विद्याओं में पराजित  हो चुकी थी चुकी थी  उसने अपनी पराजय स्वीकार करते हुए पांडव नंदन घटोत्कच पर अपना सर्वस्व निछावर कर दिया घटोत्कच ने कहा शुभद्बै  उच्च कुल के लोग चोरी छिपे विवाह नहीं करते तुम आकाश गामिनी हो मुझे अपने पीठ पर बिठाकर मेरे परिजनों के समीप  ले चलो हम दोनों का विवाह उन लोग के सामने ही होगा, मोरवी  घटोत्कच की आज्ञा का पालन किया वह अपने पीठ पर बिठाकर उन्हें अपने परिजनों के समीप ले गई यहां श्री कृष्ण ने पांडवों की उपस्थिति में घटोत्कच का विवाह संपूर्ण रीती रिवाज के साथ संपन्न किया । द्रोपदी ने नववधू को आशीर्वाद दिया घटोत्कच मोरवी के साथ अपने  महल  मैं लौट आए फिर घटोत्कच कुछ दिन यहां रहने के पश्चात अपनी पत्नी के साथ यहां से चला गया कुछ समय पश्चात मोरवी ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया घटोत्कच ने उसका नाम बब्बर शेर के तरह घुंघराले बाल होने के कारण बर्बरीक रखा ।

जन्म लेने के पश्चात उस बालक को पूर्ण विकसित देखकर महाबली घटोत्कच भगवान  कृष्ण के समक्ष उपस्थित हुए भगवान कृष्ण ने महाबली घटोत्कच और वीर बर्बरीक को देख कर अभिवादन करते हुए कहा हे पुत्र मोरवी पूछो तुम्हें क्या पूछना जिस तरह मुझे घटोत्कच प्यारा है उसी तरह मुझे तुम भी प्यारे हो तत्पश्चात बर्बरीक ने पूछा है प्रभु इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग क्या है बालक बरबरी कैं निश्चल  प्रश्न सूनकर भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे पुत्र इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग परोपकार और निर्बल का साथी बन कर  सदैव धर्म के साथ दृढ़ बनकर रहने का है जिसके लिए तुम्हें बल और शक्तिया अर्जित करनी होगी इसके लिए तुम्हें महिसागर छेत्र जहां  सिद्ध अंबिकाऔ  और नौ दुर्गा की आराधना क्षेत्र है शक्ति को अर्जित करो भगवान श्री कृष्ण के कहने पर बालक वीर बर्बरीक ने भगवान को प्रणाम किया एवं भगवान श्री कृष्ण ने वीर बरबरीक के सरल ह्रदय को देख कर उसे सूंह्रदय नाम से अलंकृत किया तत्पश्चात वीर बर्बरीक ने असत्र शस्त्र विद्या प्राप्त कर महिसागर क्षेत्र में सिद्ध अंबिकाओ की आराधना की ।

सच्ची निष्ठा और तप से प्रसन्न होकर भगवती जगदंबा ने  बर्बरीक के सम्मुख प्रकट  होकर तीन बाण और नई  कई तरह की शक्तियां प्रदान  की जिससे तीनों लोको  में विजय प्राप्त की जा सकती थी एवं उन्हें गुप्त नाम से अलंकृत किया  तत्पश्चात सिद्ध अंबिकाओ ने बर्बरीक को उस क्षेत्र में जहां  परम भक्त विजय नामक का   एक  ब्राह्मण की सिद्धि को संपूर्ण कराने का निर्देश देकर अंतर्ध्यान  हो गई कुछ समय पश्चात जब वीजय ब्राह्मण का आगमन हुआ और वह वीर बर्बरीक की सुरक्षा में सिद्धि प्राप्ति हेतु यज्ञ करने लगे तो वीर बर्बरीक ने उस यज्ञ मे विघ्न डालने वाले आप पेँगल रैपैनदरे दृह दृह और  नव कोटि मांस बख्शी पलासी राक्षस  के जंगल रूपी समूह को अग्नि रुपी ज्वाला  के भाँति भस्म करके उनके यज्ञ को सफल कराया, विजय नाम के उस ब्राह्मण का यज्ञ संपूर्ण कराने  पर देवता और देवियां ने  वीर बर्बरीक से बहुत प्रसन्न हुई और यज्ञ रुपी भस्म मे शक्तियां प्रदान की वीर बर्बरीक को आशीर्वाद प्रदान करके वहां से अंतर्ध्यान हो गए वीर बर्बरीक  ने पृथ्वी और पाताल के बीच के नाग कन्याओं के विवाह के प्रस्ताव को  यह कह कर ठुकरा दिया की उन्होंने सदैव ब्रहमचारी रहने  और निर्बल और असहाय लोगों की  सहायता का व्रत लिया है ।

एक दिन पांडव वनवास में भूखे प्यासे उस तालाब के पास पहुंच जिसका जल  से वीर बर्बरीक अंबिकाओ  के पूजन के लिए जल लिया करते थे महाबली भीम प्यास के कारण बिना हाथ पैर धुले  उस तालाब में प्रवेश कर गए बर्बरीक ने उन्हें ऐसा करते हुए देख लिया और उन्हें अनेक अपशब्द कहे दोनों में  घमासान युद्ध हुआ वीर बर्बरीक ने भीम को अपने हाथ में उठा लिया और उन्हें  सागर में फेंकना चाहा  तभी सिद्ध अंबिकाऐ आयी  और उन्होंने महाबली भीम का वीर बर्बरीक से वास्तविक परिचय करवाया  बरबरीक को  अपार पश्चाताप हुआ वह अपने प्राणो का अँत करने के लिए उद्वित हुवा तभी सिद्ध अंबिकाऔ  एवं भगवान शंकर ने बरबरीक का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें महाबली भीम के चरण स्पर्श करके छमा मांगने का सुझाव दिया महाबली भीम ने अपने प्रपौत्र  के पराक्रम को देखकर अत्यंत प्रसन्ना हुआ और अपने प्रपौत्र  बर्बरीक को आशीष देकर विदा हो गया ।

धृतराष्ट्र पुत्रों ने पांडव से छल कपट करके उनका सर्वस्व  छीन लिए पांडव  वन वन भटकने को विवश हुए परिणाम स्वरुप महाभारत के महासंग्राम का समय आ गया वीर बर्बरीक को  संग्राम की सूचना मिली तो वह अपनी माता मोरवी को और आराध्य  शक्तियो कि आज्ञा लेकर युद्ध भूमि में जा पहुंचा नीले अश्व  पर अरुण होकर  वीर बर्बरीक ने  पांडव की सेना के निकट अपने अश्व रोका और  संवाद ध्यान से सुनने लगे  पास ही कौरव पक्ष की चर्चा हो रही थी कि कौन-कौन  कितने समय में किस-किस सहयोग से  कितने दिन में युद्ध जीत सकता है भीष्म पितामह कृपाचार्य युथ एक  एक महीने में द्रोणाचार्य अश्वत्थामा 15 दिन में करण मात्र छह दिनों में ही जीत सकते हैं इधर पांडव के खेमे में चर्चा का विषय का स्वर सुने जा रहे थे  अर्जुन गर्व युक्त वाणी में कह रहे थे कि वह अकेले एक दिन में ही  यह  युद्ध जीत सकता हैअर्जुन  की यह वाणी सुनकर बर्बरीक ने चर्चा के बीच में ही बोल दिया कि आप मे से किसी को भी युद्ध लड़ने की आवश्यकता नहीं है मैं स्वयं अकेला ही अपने अजेय आयुधो के साथ एक पल में ही विजय प्राप्त कर लूंगा आपको विश्वास नहीं है तो  मेरी पराक्रम की परीक्षा ले लो  इसे सुनकर अर्जुन बहुत  लज्जित और श्री कृष्ण की तरफ देखने लगे   इस पर श्री कृष्ण ने कहा हे नव आगंतुक  ठीक कहता है ।

पूर्व काल में इसने पाताल लोक जाकर नौ करोड पलासी दैत्यों का  कर दिया था  श्रीकृष्ण ने अब उस वीर के पराक्रम को जानना चाहा और कहा   भीष्म।  द्वौण  र्अश्वत्थामा दुर्योधन आदि महारथी द्वारा सुरक्षित सेना पर भगवान शंकर द्वारा ही विजय पाना संभव है  तेरे इन नन्हे बाणों से क्या होगा इतना सुनते ही वीर बर्बरीक ने अपने तरुणी से बाण  निकाला  और उसने अपने सिंदूरी जैसे भस्म को भर दिया धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खींचकर छोड़ दिया और इस बाण से जो भस्म उड़ा उस भस्म ने समस्त वीरो के  मर्म स्थल को छू लिया  केवल 5 पांडव अश्वत्थामा कृपाचार्य  पर उस बाण का प्रभाव नहीं हो पाया  वीर बर्बरीक ने कहा देखो मैंने इस बाण  के प्रभाव से युद्ध स्थल  में उपस्थित सभी योद्धाओं के मर्म को जान  लिया है अब इस दूसरे बाण से मैं इन सभी को यमलोक पहुंचा दूंगा सावधान आप  मे से किसी ने भी अपना शास्त्र उठाया तो आपको अपने धर्म की सौगंध है  वीर बर्बरीक ने जैसे ही उपयुक्त बात कही  वैसे ही श्रीकृष्ण ने  कुपित्त होकर सुदर्शन चक्र द्वारा वीर बरबरीक का सिर काट दिया वहां उपस्थित सभी लोगों को इस घटना से बड़ा ही विस्मय हुआ घटोत्कच यह दृश्य देख कर मूर्छित हो गए  पांडव में हाहाकार छा गया तभी वहां 14 सिद्ध अंबिकाऐ  प्रकट हुई और पुत्र शोक से सन्पत शोक  घटोत्कच  को सांत्वना   देने लगी   सिद्ध अंबिकाऐ  उच्च स्वर् में सिर् छेदन के रहस्य को  उजागर करते हुए बोली –

देव सभा में यह वीर अभिचर सूर्य वरचा नामक एक यक्ष था अपने पूर्व अभिमान वश देव सभा से निकाला गया  स्वर्ग से निष्कासित कर उसने बर्बरीक  का जन्म लिया ब्रहमा जी के अभिशाप वश इसका सिर छेद  भगवान श्री कृष्ण के हाथों हुआ है  अत: आप लोग किसी प्रकार की चिंता ना करें और  अब इसकथा को आप सभी विस्तार से सुनिए मुर दैत्य के अत्याचारों से व्यथित हो  कार पृथ्वी अपने गौ रुप मे  देव सभा  में उपस्थिति  हुई  और बोलि हे  देवगण मैं सभी पाप सँताप सहन  करने में सक्षम हूँ पहाड़ नदी नाले समस्त मानव जाति का भार सहन करते हुए अपनी दैनिक क्रियाओं का पालन करने मे सक्षम हु पर मै मुर दैत्य  के अत्याचारों के कारण मैं बहुत दुखी हूं और मैं आपकी  शरण् मे  आई हूं गौ रुपा  धरा की बात सुनकर  समस्त देव सभा में सन्नाटा छा गया थोड़ी देर पश्चात  ब्रह्मा जीने कहां अब तो इससे छुटकारा पाने का एक ही उपाय  एकमात्र है कि हम सभी को भगवान विष्णु की शरण में जाना चाहिए  पृथ्वी के इस संकट निवारण हेतू  उन से प्रार्थना करनी चाहिए सभा में विराजमान यक्ष  राजसूर्यावर्चा  ने अपनी तेजस्वी वाणी में कहा हे देव गड दैत्य मूर इतना पराक्रमी भी नहीं कि़ उसका संघार भगवान विष्णु ही कर सके हर एक बात के लिए उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए अगर आप लोग मुझे आज्ञा दे तो मैं स्वयं ही उसका वध कर सकता हूं इतना सुनकर ब्रहमा जी ने कहा नादान मैं तेरा पराक्रम  जानता हूं तूने अभिमान वश इस देव सभा को चुनौती  दी है इसका दंड तुझे अवश्य मिलेगा ।

अपने आप को भगवान विष्णु से श्रेष्ठ समझने वाले अज्ञानी इसी समय तू धरती पे जा गिरेगा और राक्षस  कुल  मे  तेरा जन्म होगा तेरा सिरोछेदन एक  ब्रम्ह युद्ध के ठीक पहले भगवान विष्णु के हाथों ही होगा तुम सदा के लिए राक्षस बने रहोगे ब्रहमा जी के इस श्राप के कारण देव सूर्यवर्चा का  अभिमान भी चूर चूर  हो गया  तत्पश्चात वह भगवान ब्रहमा  के चरणों में गिर कर बोला हे भगवान  भूल बस निकले शब्दों के लिए मैं  छमा प्रार्थी हूं त्राहिमाम  त्राहिमाम भगवान रक्षा करो भगवान रक्षा करे   यह  सुनकर भगवान ब्रह्मा करुण सवर में बोले वत्स अभिमान वश तूने इस सभा का अपमान किया  इसलिए मैं अभी श्राप तो वापस नहीं ले सकता पर कुछ सशोधन कर सकता हूं  स्वयं भगवान   श्री कृष्ण तुम्हारा सिर छेदन अपने सुदर्शन चक्र से करेंगे और देवियो  द्वारा तुम्हारे सिर का अभीसीचन  होगा तुम्हें देवताओं के समान पूजयमान होने का अधिकार प्राप्त होगा  फलत:  तुम्हें देवताओं के समान पूजनीय  होने का अधिकार प्राप्त होगा ।

भगवान श्री हरि विष्णु ने सुवरचा से कहा उस का भावार्थ स्कंध पुराण में मिलता है  उस समय देवताओं की सभा में प्यारी निकाय व उस समय देवताओं की सभा में  श्री हरि ने कहा तुम्हारी शीश की पूजा  होगी  तुम देव रूप में  पूजित  होगे कालांतर में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया और मुर दैत्य का वध  किया तब उनका नाम मुरारी पुकारा गया जैसे पिता के वध के समय मुर दैत्य कि पुत्री कामकँटका को पता चला कि मुर मृत्यु  को प्राप्त हुवा तो वो  भगवान श्री कृष्ण ने से अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर  भगवान से युद्ध करने लगी वह दैत्या  अजय  खेटक यानी चंद्राकर  तलवार से भगवान  के सारंग  धनुष से निकलने वाले हर बाण को काट देती दोनों के बीच घोर संग्राम छिड़ गया अब भगवान श्री कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र के अलावा स्वयं को सुरक्षित करने के लिए कोई शस्त्र नहीं बचाता अंत: जैसे  हि कृष्ण ने अपना अमोघ अस्त्र   अपने हाथ मेंलिया  तभी  माता कामाख्या अपने भक्तन  मोरवी के रक्षा हेतु  वहा   उपस्थित होकर भगवान श्रीकृष्ण को बताया कि है  मौरवी जिस भगवान कृष्ण से तु युद्ध कर रही है ये ही तेरे भावी  ससुर होगा  तुम शांत हो जाओ इन के आशीर्वाद से तुम्हें  मनचाहा वरदान प्राप्त होगा माता कामाख्या से अपने कल्याणमई  वचनों के सूनकर  मोरवी शांति हुई और भगवान श्री कृष्ण के चरणों में गिर पड़ी युद्ध स्थल से देवियों आशीर्वाद लेते हुए अपने निवास स्थान को लौट गई ।

वहा  उपस्थित लोगों को इतना वृतांत सुनाकर देवी चंडीका ने कहा  अपने अभिशाप को वरदान में प्रणीत देख यशराज सूर्यवर्चा  उस देव सभा में से अदृश्य हो गए और कालांतर में इस पृथ्वी लोक में महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के रूप में जन्म लिया  इसलिए आप लोगों को इस बात का  कोई भी शोक नहीं करना चाहिए इसमे  श्री कृष्ण का कोई दोष नहीं इतना कहकर चंडिका देवी ने उस  भक्त शिरोमणि कै शीश को   अमृत से छिड़क कर राहु के शीश की तरह अजर अमर बना दिया और इस नवीन जागृत शीश  मैं उन सभी को प्रणाम किया और कहा कि मैं यह युद्ध देखना चाहता हूं आप लोग इस की स्वीकृति दीजीए  तत्पश्चात मेघ  के समान श्री कृष्ण ने कहा जव तक ये पृथ्वी ग्रह नक्षत्र सूर्य चंद्रमा है तब तक तुम लोगों के द्वारा पूजनीय रहोगे और दश देवियों के स्थान में देवियों के समान हीं विचरण करोगे और अपने भक्त जनों की समुदाय कुल देवियों की तरह यश  बनाए रखोगे इस प्रकार वीर बर्बरीक अनेक रुप लेकर आज भी इनकि पूजासाधना आज भी कि  जाती है अब मैं आपको बताता हूं इन के संबंध में जो इनका  मंदिर 1027 ई0 मे  रुप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनवाया गया था और मारवाड़ी राजा ठाकुर के दीवान अभय  सिंह ठाकुर के निर्देश में जो वर्तमान मंदिर की शिलालेख 1720 ई0 मे रखी गई  इतिहास कार पंडित झावरमल के  अनुसार 1698 मे  औरंगजेब के सैनिकों ने मंदिर को नष्ट कर दिया था मंदिर की रक्षा के लिए अनेक राजपूतों ने अपने प्राणसन भी किया था यह खाटू जी श्याम.भारत के  राजस्थान के राजय सीकर जिले मैं यहां स्थित हैं जो 17 किलोमीटर दूर है,  बाबा श्याम का जग विख्यात मंदिर और खाटू श्याम के नाम से यहां जाने जाते हैं यहां से हर महीने की कार्तिक एकादशी जन्मोत्सव  यहां बहुत सारी भीड़ लगती है और हर साल फाल्गुन मास के एकादशी में भी मेला लगता है ।

अब इनकी  पूजा साधना  साधारण पूजा की जाती है उसके बारे में  भी जान लीजिए आप पूजन के लिए खाटू जी की एक फोटो ले आइए  जो सिर छेद हो  अब आप गंधा यानी खुशबू दीपक पुष्प  नैवेद्य  अर्चना आदि को रखकर भी साधना करें फोटो  शीशमूरत को पंचामृत में से स्नान कराएं  या दूध दही से स्नान करके रेशम के कपड़े से इनको साफ कर पुष्प  माला से मूर्ति को अलंकृत करें पूजा करने से पूर्व श्याम जी की जो ज्योति जला ले बाबा श्याम को दूध बहुत प्रिय है इसलिए इन्हें कच्चा दूध का भोग लगाएं, श्री बाबा श्याम को भोग लगाएं भोग मैं दाल बाटी चूरमा और मावे के पेड़े को काम में ले सकते हैं बाबा श्याम की आरती करें बाबा श्याम की यह 11 जयकारे अवश्य लगाएं  जय श्री श्याम जय श्री खाटू वाले श्याम  जय हो शीश के दानी जय हो कलयुग देव की जय हो खाटू नरेश जय हो खाटू वाले नाथ की जय हो मोरवी जय हो मौरवी नंदन श्याम नीले के अशवार  की जय जय हो लखदाता कि जय हारे के सहारे कि जय ।

अब गौ माता के भोजन का भाग निकालकर गौ मा को को खिलाने के बाद आगे की प्रक्रिया कर सकते हैं इनके जो मंत्र जाप हैं और वह मैं आपको बता देता हूं यह आपको करना है, किसी एकांत स्थानीय घर में भी कर सकते है वहां पर आपको इनकी मंत्र की  51 माला  का जाप 51 दिन तक करना होगा साधक पीले वस्त्र धारण करें और पीले वस्त्र  ही  पहने  ऊपर से नीचे तक और साथ ही साथ उसके पीले वस्त्र का आसन भी होना चाहिए पीले रंग का आसन का प्रयोग  करेगा, यह  साधना रात्रिकालीन है 51 रात्री तक यह साधना  करनी होगी इनके दर्शन आपको सपने में भी या प्रत्यक्ष रुप में भी हो सकते है जैसी आपकी आस्था  होगी उसी प्रकार से आपको दर्शन होंगे उनका मंत्र इस प्रकार है ये  गायत्री मंत्र है ओम मोरवी नंदनाय  विदमहे  श्याम देवाय धीमहि तन्नोबर्बरीक प्रचोदयात:।। इस मंत्र का जाप आपको 51 माला करना है 51 दिन तक,   जैसे मैंने आपको विधि बताई है  आप उसी प्रकार से साधना करेंगे और भगवान श्री कृष्ण के मंत्र का पहले एक माला जाप करेंगे,  भगवान शिव  और माता जगदंबा के मंत्रों की एक-एक माला भी अवश्य करेंगे जब भी आप साधना करना चाहेंगे  तो इन मंत्र एक माला अवश्य पहले  जरुर करें और जैसे के नियम होता है पहले गणेश मँत्र फिर गुरु मंत्र उसके बाद माता भवानी के एक माला का मंत्र भगवान शिव के एक माला का मंत्र फिर भगवान से कृष्ण कि एक माला करे धन्यवाद

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