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श्री दुर्गा चालीसा पाठ साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य  से चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज मैं आप लोगों के लिए लेकर आया हू मां भगवती की चालीसा साधना जिसकी मांग मुझे कमेंट बॉक्स में भी की गई थी और यह सरल भी है इसलिए मैं आप लोगों के लिए आज लेकर आया हूं । यह एक सरल और सहज साधना है जिसको कोई भी व्यक्ति सरलता पूर्वक कर सकता है यह 41 दिन की साधना है आपको इसमें 4०बार रोज जाप करना होगा इसमें ज्यादा नियम कानून नहीं है और माँ आपकी इच्छाओं को पूरी करती हैं माता आप के जीवन की कठिनाइयों को नष्ट करती हैं और आपके जीवन को शुभ बनाती हैं ।
चालीसा साधना में गुरु की आवश्यकता नहीं होती केवल  माता से प्रार्थना कर सकते हैं माता मैं आपकी चालीसा साधना करने जा रहा हूं मेरा मार्गदर्शन करें और मुझ पर कृपा दृष्टि  बनाई रखिए मैं आपकी चालीसा की चौपाइयां को रोज 40 बार 41 दिन तक जपूंगा और आपको ही समर्पित कर दूंगा।
अपने हाथ में जल लेकर भूमि पर गिरा देगे और  माता की प्रतिमा को बाजोट पर स्थापित करेंगे । उस पर लाल कपड़ा बिछाकर रख ले आप बाजार से माता की एक ऐसी प्रतिमा को लेकर आइए जो एक हाथ से छोटी हो और अंदर से पूरी तरह भरी पूरी हो, ज्यादातर लोग गलती करते हैं कि प्रतिमा ले लेते हैं और ध्यान नहीं देते कि वह अंदर से खोखली तो नहीं है इस बात का को विशेष रुप से ध्यान देना होगा उसके बाद आप माता के समक्ष एक दीपक जलाएंगे अगर अखंड दीपक जला सकते हैं तो यह बहुत ही शुभ होगा ।
अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो एक ऐसा दीपक जलाए जो कि जब तक कि आपकी साधना चले तब तक दीपक जलता रहे है अगर आप अखंड दीपक जलाते हैं तो माता के समक्ष कामना करते हुए किसी भी चीज की उनसे प्रार्थना करिए ।
अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो माता से प्रार्थना करिए हे माता मुझे समस्त सुख संपत्ति वैभव प्रदान करने की कृपा करें दुर्गा चालीसा एक सरल और सात्विक अनुष्ठान माना जाता है यह  भयंकर प्रयोग में नहीं आता क्योंकि यह चोपाईओ के रूप में आता है इसलिए मैं पहले आपको दुर्गा चालीसा पढ़ कर सुना देता हूं उसके बाद आपको  प्रत्येक चोपाई का अर्थ समझाऊंगा तो चलिए शुरु करते हैं।


दुर्गा चालीसा: नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तन बीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
आभा पुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥


शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥ 
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥


सुरज प्रताप शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥


अब एक एक करके मैं आपको चोपाईयो  का अर्थ समझाऊंगा
सुख प्रदान करनेे वाली हेे मां दुर्गा आपको नमन है दुखोंं का नाश करनेे वाली मां अंबे आपको नमन है आपकी ज्योति का कोई आकार नहींं है वह निराकार हैै आपकी ज्योति तीनोंं लोगों को प्रकाश प्रदान करती  हे। आपके माथे पर चंद्रमा हैं आपका मुख अति विशाल है आपकी आंखेंं लाल है हे मां मां आपका रूप अति सुंदर और सुहाना है जिसका दर्शन करने से सुखों की प्राप्ति होती है हे मां आपने ही इस संसार में शक्ति का संचार किया है आपने मनुष्यों के जीवन हेतु अन् और जल प्रदान किया है।  जग की पालक होने के कारण आप ही अन्नपूर्णा कहलाती है आप ही जगत को पैदा करने आदि सुंदरी बाला हो ।प्रलय काल में आप ही सब कुछ नष्ट कर देती हैं आप ही तो भगवान शिव की गौरी हे। भगवान शिव के साथ समस्त योगी आपका ही ध्यान करते हैं बह्रमा विष्णु भी आप ही का चिंतन करते हैं। हे मा आपने ही अंबा का रूप धारण करके खंभे  को फाड़ कर के प्रहलाद की रक्षा की और हिरण्यकशप का वध किया था। आपने ही लक्ष्मी का रुप धारण करके भगवान श्री नारायण की पत्नी बनी आप ही क्षीर सागर में निवास करने वाली है यानी दूध के सागर में रहने वाली हैं आप अत्यंत ही कृपा माय दयालु हैं मेरी आशाओं को पूर्ण करें आप ही हिगंलाज में भवानी के रूप में विराजमान है। आपकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता मातंगी धूमावती बगलामुखी भुवनेश्वरी सभी सुख को प्रदान करने वाली माता भैरवी आप ही हैं आप ही सबको तारण करने वाली माता तारा आप ही  दुखो का नाश करने वाले माता  छीन्न मस्ता है। हे मां आप शेर की सवारी करती हैं आपकी अगवानी करने के लिए हनुमान जी स्वयं आगे रहते हैं आपके हाथों में तलवार और  खप्पर है जिसे देखकर यमराज और काल को भी भय हो जाता है। आपके पास हथियार और त्रिशूल है जिसको देखकर शत्रु भय से कापने लगते हैं। नगरकोट में आप ही विराजमान हैं तीनो लोको में आपका ही डंका बजता है। आपने शुभ निशुंभ  जैसे राक्षसों का वध किया था आपने रक्तबीज जीसे की वरदान प्राप्त था कि उसकी रक्त की एक बूंद से हजारों रक्तबीज उत्पन्न हो जाएं आपने उसका अभी वध कर दिया था महिषासुर जिसके भय से धरती पर पाप बढ़ गया था आपने विकराल कालिका रूप लेकर उसका संघहार किया था।  हे मा सच्चाई का साथ देने वाले लोगों पर जब भी कोई संकट आता है तब आप उनकी सहायता के लिए जरूर आती है  अमर पुरी के साथ-साथ अन्य लोक आपके महिमा से शोक रहित रहते हैं हे मा ज्वाला जी के ऊपर आप ही विराजमान है और नर और नारी सदैव आपका पूजन करते हैं जो भी आपका सच्चे मन से ध्यान लगाता है उसके जन और मृत्यु  बंधन छुट जाते हैं। यानी मोक्ष मिल जाता है योगी सुर नर मुनि सब आपकी साधना को सार्थक करना चाहते हैं क्योंकि बिना आपके योग नहीं तात्पर्य यह है कि बिना आपकी शक्ति के कोई भी साधना नहीं हो सकती है आदि गुरु शंकराचार्य ने जो बहुत ही कठोर तपस्या की थी तब उन्होंने काम और क्रोध को जीत लिया था उन्होंने दिन रात केवल भगवान शिव को ही स्मरण किया आपका ध्यान नहीं किया उन्होंने आपके शक्ति रूप के महत्व को नहीं समझा लेकिन जब उनके पास से जब शक्ति चली गई तब वह बहुत ज्यादा पछताए और आपके शरण लेकर आपका गुणगान किया हे तब आपने प्रसन्न होकर शंकराचार्य को शक्तियां प्रदान की थी इस प्रकार  से इसका अर्थ है ।
अगर आपको यह साधना पसंद  हो तो धन्यवाद।।
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