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साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 150

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 150

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज दर्शकों के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को लेंगे। यह भाग 150 है। इस सीरीज में आज हम लोग जो महत्वपूर्ण प्रश्न लेने वाले हैं, इस प्रकार से हैं कि ब्रह्मचर्य रक्षा मंत्र आखिर कौन से होते हैं ? अप्सरा से कौन से वचन ले सिद्धि के दौरान ? तंत्र साधना आखिर कब से शुरू करें ? गुरु मंत्र और तांत्रिक मंत्र में क्या भेद होता है? तांत्रिक साधना में अगर सफलता नहीं मिलती है तो क्या वह साधना नष्ट हो जाती है ? यह आज के कुछ मुख्य प्रश्न है जो दर्शकों के द्वारा पूछे गए हैं चलिए शुरू करते हैं तो सबसे पहला प्रश्न यही है कि क्या ब्रह्मचर्य रक्षा करने के लिए कोई मंत्र भी होते हैं अगर होते हैं तो उनका क्या विधान है और क्या सिर्फ मंत्रों से इसकी रक्षा हो सकती है?

तो मै स्पष्ट रूप से आपको यहां पर बताना चाहूंगा कि मंत्र अवश्य ही कार्य करेंगे। लेकिन जब तक आप अपने मस्तिष्क को और मस्तिष्क के भी अंदर एक बटन होता है जिसको हम मस्तिष्क का वह भाग कहते हैं जहां से हमारी अनिच्छा या यूं कहिए कि स्पष्ट निर्देश होने वाली क्रियाएं संचालित होती हैं और उनके भी कुछ ऐसे पहलू है जो अपने आप संचालित होते हैं, लेकिन मस्तिष्क उन्हें एक कंप्यूटर की तरह फीड करके रखता है।

ऐसी ही कुछ क्रियाएं हैं जिसमें हम उत्तेजना या सेक्स के लिए तैयार होना भी कहते हैं। शरीर स्वयं यह कहता है उसे वीर्य का उत्पादन करना है या स्त्री में रज का निर्माण करना है। इसके लिए वह आपसे बिना पूछे ही अपने हिसाब से शरीर को तैयार करता है तो इस पर कुछ मंत्र जो है, अपना असर दिखाते हैं, रोकने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब तक आपका मस्तिष्क आपके पूर्ण नियंत्रण में नहीं होगा तब तक आप इस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यह हम लाखों सालों से देखते चले आ रहे हैं।

क्योंकि मन को जब तक आप नियंत्रित करना नहीं सीखेंगे, मंत्र भी कार्य नहीं कर पाएंगे। इसलिए अगर कामवासना पर नियंत्रण चाहिए तो आपका अपने शरीर पर पूर्ण नियंत्रण न सिर्फ जागृत अवस्था में बल्कि सोते वक्त भी होना चाहिए और यह तभी होगा जब आप स्वयं को बहुत ही तीव्रता से नियंत्रित करने की शक्ति रखते होंगे। तो मै नाथ संप्रदाय का एक मंत्र आपको सुनाता हूं जो ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसके अलावा। एक और मंत्र के विषय में भी बात करेंगे जैसे नाथ संप्रदाय में एक मंत्र आता है।

सत नमो आदेश ! गुरूजी को आदेश ! पारा पारा महापारा पारा पहुंचा दशमे द्वारा दशमे द्वारे कौन पहुंचाए ? गुरु गोरखनाथ पहुचाये, जो न पहुंचाए तो हनुमान का ब्रहमचर्य खंडित हो जाये, माता अन्जनी की आन चले, गुरु गोरख का वान चले, मेरा ब्रहमचर्य जाये तो हनुमान त्रिया राज्य में रानी मैनाकनी को भोग के आये ! दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ आओ जैसे हनुमान का ब्रहमचर्य रखा हमारी भी लाज बचाओ ! ॐ गुरूजी भग में लिंग, लिंग में पारा जो राखे वही गुरु हमारा ! काम कामनी की यह आग इसे मिटावे गोरखनाथ माया का पर्दा देयो हटा दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ! दुहाई दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की ! आदेश गुरु गोरख के ! नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश !

कहते हैं। रात को सोते समय इस मंत्र का 21 बार जप करें और लाल रंग की लंगोट धारण करें। लंगोट धारण करते वक्त भी इस मंत्र का जाप करें तो ब्रह्मचर्य रक्षा होती है। इसी प्रकार! ॐ अर्यमायै नम:’

इस मंत्र का भी उच्चारण करने से

हनुमान जी के मंदिर जा कर के तो ब्रह्मचर्य पालन में शक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा एक ब्रह्मचारी रक्षा मंत्र और है। जैसे ॐ नमो भगवते महाबले पराक्रमाय मनोभिलाषितं मनः स्तंभ कुरु कुरु स्वाहा |

तो यह कुछ मंत्र है जिनके माध्यम से आप ब्रम्हचर्य रक्षा कर सकते हैं। वैसे तो ब्रह्मचर्य का रक्षण केवल वही कर सकता है जिसका खुद पर पूर्ण नियंत्रण हो। मंत्र भी रक्षा पूरी तरह नहीं कर पाते हैं, लेकिन इनसे आप फायदा उठा सकते हैं और अपनी रक्षा करने का प्रयास कर सकते। अगर बहुत ज्यादा परेशान है तो ।

अब अगला प्रश्न है की अप्सरा से कौन से वचन ले तो जब अप्सरा आपके सामने प्रत्यक्ष प्रकट हो। या अप्रत्यक्ष रूप से स्वप्न में आकर के सिद्धि प्रदान करें तब उससे कहे कि मैं जब भी आपको बुला लूंगा, आपको आना होगा।

आप मुझसे बिना पूछे कोई कार्य नहीं करेंगी और सदैव मेरी रक्षा करेंगी। यह तीन वचन आपको लेने होते हैं। तभी अप्सरा आपके नियंत्रण में रहेगी।

कुछ लोग अंगूठी के माध्यम से कुछ विशेष मंत्र या क्रिया के माध्यम से अप्सरा को बुलाने का न्योता देते हैं। यह अप्सरा और आपके वचन के बीच की बात है कि मैंने अपने अंगूठी पर उसे रगड़ा और 7 बार उसके मंत्र का उच्चारण किया और वह प्रकट हो गई तो यह सब उस दिन होगा। जिस दिन आपके सामने वह दर्शन देगी तो आपको उसे वचनों में तुरंत ही बांध लेना है। बिना वचन लिए कोई साधना पूरी सफलता नहीं दे सकती। इसका साधक को विशेष ध्यान देना होता है।

जब सिद्धि प्राप्त हो जाए तो उससे वचन जरूर लेना चाहिए ताकि वह शक्ति आपके नियंत्रण में रहे और खासतौर से अगर तामसिक शक्ति है तो यह कार्य अनिवार्य हो जाता है। अन्यथा वह शक्ति आपको छोड़कर जब उसकी इच्छा होगी, चली जाएगी। कोई गलती हो तो भी वह आपसे रूठ कर चली जा सकती है। अब अगला प्रश्न पूछा गया है कि तंत्र साधना कब शुरू करें? मैंने इसके संबंध में स्पष्ट बताया है। हालांकि आप अपने गुरु से अगर आपके गुरु कोई और है तो उनसे निर्देशित हो सकते हैं। जान सकते हैं लेकिन मैं अपनी स्वयं की बात करता हूं तो तंत्र साधना शुरू करने के लिए मैंने जो नियमावली बनाई है, उसके हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण है। आपका गुरु मंत्र जाप 900000 बार हो चुका हो दशांश हवन सहित, इससे आपके अंदर इतनी ऊर्जा बन जाती है। कि अगर तांत्रिक साधना शुरू करते हैं तो कोई भी तांत्रिक साधना में आपका नुकसान नहीं होगा। वह शक्ति आप पर कब्जा

नहीं कर पाएगी। क्योंकि सबसे ज्यादा शक्ति की ऊर्जा को न सह पाने वाले साधकों के लिए होता है जो उसके वश में हो कर के बहुत सारे गलत काम शुरू कर देते हैं और उसे नियंत्रण में नहीं ले पाने की वजह से पागल हो सकते हैं। मृत्यु को भी प्राप्त हो सकते हैं तो पहले गुरु मंत्र की दीक्षा लीजिए। सबसे पहले यही कर्म है। उसके बाद गुरु मंत्र का दशांश हवन सहित जो संकल्प है, उसे पूरा कीजिए और फिर तंत्र साधना की शुरुआत कीजिए। शुरुआत में हल्की साधना एक छोटे स्तर के साधनाओ से शुरू कीजिए और धीरे-धीरे करके पारंगत होने लगेंगे। एक बार में सफलता नहीं मिलेगी। लेकिन धीरे-धीरे आप जब पारंगत हो जाएंगे तो फिर कामयाब होने लगेंगे।

अब अगला प्रश्न पूछा गया है कि गुरु मंत्र और तांत्रिक मंत्र में आखिर क्या भेद होता है ? तो देखिए गुरु मंत्र रक्षा कवच है। इस दुनिया से मुक्ति दिलाने वाला मंत्र है। आपके जो परमात्मा स्वरुप है, वहां तक पहुंचाने का रास्ता है। और ब्रह्मांड से गुरु ऊर्जा को खींचने वाली शक्ति है जो कि तंत्र साधकों के लिए मतलब पूरी तरह के हम समझे की अनिवार्य वस्तु। गुरु मंत्र स्वयं तंत्र में प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन मैं इसके लिए सभी साधकों को नहीं तैयार करवाता हूं क्योंकि फिर आप अपने मूल लक्ष्य मोक्ष को छोड़ देंगे।

जो आपका मूल लक्ष्य मोक्ष है, उसको प्राप्त करना सबसे अधिक अनिवार्य है और आप तांत्रिक साधना चाहे कितनी भी कीजिए। आप केवल एक जंजाल में ही फ़सते हैं क्योंकि कोई भी शक्ति हो, आप उसकी ताकत बढ़ाते हैं और स्वयं की शक्ति बनाते हैं तो कहीं ना कहीं फिर गलती मनुष्य करता ही है। साधक अधिक शक्ति प्राप्त होने पर भी अपने नियंत्रण में संसार को लेने लगता है। और आप चाहे राजा बन जाएंगे या कुछ भी बनते है। आखिर आपकी अंततोगत्वा मृत्यु तो हो नहीं है। यह जीवन यात्रा समाप्त करनी ही है। चाहे आप रावण जैसे महा विद्वान और महा सिद्धियों के स्वामी बन जाए। इसलिए अंतिम लक्ष्य जो है, इसे मुक्ति कहते हैं, वह आपका छूटना नहीं चाहिए। इसीलिए गुरु मंत्र आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। हर समय आपको गुरु मंत्र का जाप करते रहना चाहिए और उसके साथ जीवन में तांत्रिक साधनाएं भी जरूर करनी चाहिए क्योंकि! अगर जीवन के गोपनीय रहस्य को नहीं जानेंगे। दूसरी दुनिया है, इस तरह से नहीं समझेंगे तो फिर आप इस दुनिया में भौतिक जीवन में ही भटक जाएंगे। और इसी दुनिया को सच मानकर। साधारण जानवरों की तरह जीवन जीकर यहीं से मृत्यु को प्राप्त होकर चले जाएंगे। इसीलिए उस दुनिया के रहस्य को जानने और मोक्ष भी प्राप्त करना दोनों जरूरी है। इसमे गुरु मंत्र अनिवार्य है और उसके साथ तांत्रिक साधनाएं भी बीच में करते रहना चाहिए। लेकिन सिद्धियों के जंजाल में नहीं फंसना सिद्धियों को अपने नियंत्रण में रखना है और मानव जाति का कल्याण करना है।

आखिरी प्रश्न पूछा गया है कि क्या तांत्रिक साधना में सफलता नहीं मिलने पर वह साधना उसका प्रभाव उसका फल नष्ट हो जाता है। अगर आपने गुरु मंत्र लिया हुआ है और किसी तांत्रिक साधना में आप सफलता प्राप्त नहीं करते हैं। बार-बार प्रयास करने पर भी किसी कारणवश सफलता नहीं मिलती है तो भी आपकी साधना का फल नष्ट नहीं होता है। इस जन्म में ना सही अगले जन्म में आपको अपने आप सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।मृत्यु के बाद आपके साथ सिद्धि आपकी सेविका बनकर चलती है।

ऐसा बहुत उदाहरणों में देखने को मिलता है। स्वर्ग जाने पर आप के नीचे बहुत सारी अप्सराएं कई तरह के सेवक शक्तियां सेविका शक्तियां योगिनीया इत्यादि बहुत सी ऐसी शक्तियां है जो आप के अधीन आपको स्वता ही प्राप्त हो जाती है। आपकी सेवा में दौड़ती रहती हैं। ऐसा तब होता है जब आपने जिंदगी में कई सारी तांत्रिक साधना की होती है। वही शक्तियां हैं जो इस जीवन में सही प्रकार से आपने सिद्धि नहीं प्राप्त की। लेकिन मृत्यु के बाद तो वह आपकी सेवक बनकर अवश्य ही प्रकट हो जाते हैं। स्वर्ग में आप देवता बनते हैं और देवता के नीचे बहुत सारी शक्तियां सेवक के रूप में उसे प्राप्त हो जाती हैं। इसके अलावा नया जन्म लेने पर भी बहुत सारी गोपनीय सिद्धियां उस साधक को प्राप्त रहती हैं। आप लोगों ने देखा होगा। कई व्यक्ति कुछ भी साधना नहीं करते लेकिन वह जो कहते हैं, वह सत्य हो जाता है। इसके अलावा वह कोई कार्य करते हैं, उसमें कोई उनकी अचानक से मदद कर देता है। और कुछ को तो हल्की-फुल्की सिद्धियां अपने आप प्राप्त रहती हैं।

यह सब इसलिए होता है क्योंकि पूर्व जन्मों में उन्होंने तांत्रिक साधना की होती है। इस जन्म में अगर कोई साधना आप सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं तो उसके कई कारण होते हैं। आपके चारों तरफ का माहौल शक्ति को आने में संकट ऐसे लोगों से आपका जुड़ाव जिनके ऊर्जा स्तर बहुत ही निम्न कोटि के हैं, शक्ति इसीलिए आपके साथ नहीं जुड़ सकती है। क्योंकि वह शक्ति जो आप से जुड़कर आपके शरीर को प्राप्त कर रही है और आपकी ही बनकर आपके साथ रह रही है। उसके लायक माहौल आपके चारों तरफ नहीं है। आज सबसे बड़ा सिद्धि न मिलने का कारण यही है। पुराने समय में सिद्ध साधक इसीलिए जंगलों में वनों में गुफाओं में जाकर साधना करते थे और जीवन से संपर्क ही काट लेते थे। तभी उनकी सिद्धि बची रहती थी। वरना वही हाल होता है कि आप अगर गृहस्थ जीवन में है तो फिर आप अपनी सिद्धि को कैसे बचाएंगे? क्योंकि वह तो एक देवीय ऊर्जा है और चारों तरफ आपके नेगेटिव ऊर्जाए दुनिया भर की फैली हुई है। इसी कारण से आप की सिद्धि आपके साथ टिक नहीं पाती है।

यही कारण है कि साधकों को झुकना पड़ता है। अगर वह अपनी सिद्धि को बचाए रखना चाहते हैं। जैसे ही वह दुनिया के सामने पूरी तरह से स्पष्ट रूप से आ जाएंगे। उनकी सिद्धि नहीं बच सकती है। उनकी सिद्धि चली ही जाती है क्योंकि हर एक व्यक्ति अलग-अलग ऊर्जा स्तर का बना हुआ है। और कुछ लोग तो इतने अधिक नकारात्मक शक्ति से भरे होते हैं कि वह दूसरे की शक्ति नष्ट कर सकते हैं। खुद कोई सिद्धि प्राप्त कर ही नहीं सकते। इसी कारण से तांत्रिक साधना में सफलता नहीं मिलती है लेकिन जो भी गुरु मंत्र का साधक होता है। वह अपनी सिद्धि को कुछ हद तक बचा सकता है।

इसमें वह केवल कुछ देर के लिए सिद्धि को बुलाकर उसके बाद वह सिद्धि चली जाए। ऐसी प्रक्रिया को संभाले रख सकता है, लेकिन उसमें भी उसको बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा! अगर साधक शादीशुदा है तो पत्नी भी गुरु मंत्र दीक्षित अनिवार्य रूप से हो जिससे कि दोनों एक दूसरे को अपनी ऊर्जाये देते रहें और बैलेंस बनाए रखें।

दोनों जब एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध भी बनाते हैं तो भी एक दूसरे की ऊर्जा नष्ट नहीं होती है। क्योंकि उसने अपनी उर्जा उसे प्रदान की और उसने अपनी उर्जा दूसरे को प्रदान की। इसलिए गुरु मंत्र सभी लोग ले उसका जाप करें। आजीवन कभी न छोड़िए ना हीं और गलती से 1 महीने का गैप हो जाता है तो फिर से गुरु मंत्र दीक्षा ले लीजिए और तांत्रिक साधना छोटी-छोटी करते रहे। प्रयास जारी रखें। सिद्धियां भी मिलेंगी और जीवन में सफलता भी प्राप्त होगी और आखरी जो मूल सफलता है, वह मोक्ष ही है क्योंकि शरीर तो नष्ट होने के लिए ही बना है और चाहे देवता हो या स्वयं ईश्वर ही अवतार रूप में प्रकट हो, उसे भी शरीर छोड़ना पड़ता है।

आशा करता हूं। आपको आज के यह प्रश्न पसंद आए होंगे। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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