Site icon Dharam Rahasya

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 164

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 164

प्रश्न १ :- भगवान का अवतार लेना या उनका प्रकट होना इन स्थितियों में क्या अंतर है?
उत्तर:- जब ईश्वर का अंश इस पृथ्वी पर आता है और उसका कोई कार्य होता है जिसको पूर्ण करने के लिए वह जन्मा होता है तो इस स्थिति में हम उनको ईश्वर का अवतार कहते है | जब ईश्वर अपनी पूर्ण ऊर्जा के साथ किसी को वरदान देने या कोई विशेष आवाहन करने पर प्रकट होते है तो इस स्थिति में हम कहते है की ईश्वर का प्राकट्य करण हुआ है | मूल रूप से दोनों ही स्थितियों में यही अंतर होता है |
प्रश्न २:- भगवान शिव के क्रोध स्वरूप काल भैरव और रूद्र स्वरूप हनुमान में क्या अंतर है?
उत्तर:- भगवान शिव जब क्रोधित होते है तो उनका क्रोध स्वरुप जागृत होता है जिसका उद्देश्य होता है नष्ट करना या शत्रु पर नियंत्रण प्राप्त करना | भगवान शिव काल भैरव के रूप में दुष्ट शक्तियों को नष्ट करने के लिए प्रकट होते है |
 जब भगवान शिव का रूद्र स्वरुप प्रकट हुआ था तो उन्होंने उस स्वरुप में गर्जना की थी या रुदन किया था, रुदन का मतलब होता है गर्जना या चिलाना| जब उन्होंने गर्जना की तो पुरे ब्रह्मांड में एक हलचल मच गई और रूद्र शक्ति का जो स्वरुप है, वह सारे के सारे अपने विशेष कार्य के लिए प्राकट्य हुए थे इसमें अंतर यह है की रूद्र स्वरुप कोई क्रोध स्वरुप नहीं है क्रोध भैरव स्वरुप की तरह इस स्वरूप में हर प्रकार के भावना समाहित होते है |
प्रश्न ३ :- हनुमान जी को 11 रुद्र अवतार क्यों कहा जाता है?
उत्तर: जब भगवान विष्णु राम जी का अवतार ले रहे थे तो उन्होंने संकल्प लिया था कि वह रामा अवतार में भगवान शिव की भक्ति करेंगे| जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई तो वह प्रसन्न हुए और उन्होंने भी भगवान विष्णु के राम अवतार में उनकी सहायता करने के लिए तत्पर हो गए | इसलिए भगवान शिव ने अपना ११ रूद्र स्वरुप प्रकट किया जिसको हम हनुमान जी के नाम से जानते है | इस सम्बंद में और भी विवरण और प्रमाण देखने को मिलते है |
अधिक जानकारी के लिए नीचे का यूट्यूब विडियो अवश्य देखे –
Exit mobile version