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साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 168

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 168

प्रश्न १  :- गुरु जी शक्तिपात क्या होता और आज के इस कलयुग में प्रत्यक्ष शक्ति पात संभव है या नही ?

उत्तर:- शक्तिपात २ तरीके से संपन्न होता है |

१. शक्तिपात एक दीक्षा की तरह ही होता है, जिसको मंत्र के माध्यम से संपन्न किया जाता है |

२.  गुरु अपनी शक्ति के माध्यम से शिष्य को उर्ध्वगामी बनाता है अर्थात उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत करता है|

शक्तिपात का सरल अर्थ होता है की एक गुरु अपने तप से संचित शक्ति के माध्यम से   अपने शिष्य  का आध्यात्मिक उन्नति करता है| गुरु अगर शक्तिपात करता है तो ४ तरीके से करता है, दृष्टि के माध्यम से, स्पर्श के माध्यम से, विशेष मंत्र के माध्यम और  संकल्प के माध्यम से अपनी शक्ति शिष्य के शरीर में प्रवाहित करता है|

प्रश्न २ :- भक्ति मार्ग और तंत्र मार्ग इन दोनो में से सर्वोत्तम मार्ग कौन सा है ?

उत्तर:- भक्ति मार्ग मोक्ष के लिए होता है, भौतिक जीवन के लिए नहीं होता है| अगर तंत्र के बारे में सरल शब्दों में कहे तो तंत्र एक माध्यम है ब्रह्मांड पर नियंत्रण प्राप्त  करने का, शक्तियों पर नियंत्रण प्राप्त करने का और हमारे ऋषि पूर्ण तांत्रिक रहे है और मंत्र के माध्यम से उन्होंने पुरे ब्रह्माण्ड पर नियंत्रण प्राप्त किया है और उसके रहस्यों को समझा है  इसलिए तंत्र के माध्यम से जहाँ पूर्ण भौतिकता प्राप्त होती है वही पूर्ण आध्यात्मिकता भी प्राप्त होती है | तंत्र मार्ग से की जाने वाली भक्ति मार्ग अपने आप में उत्तम होता है |

पुरे भारतीय संस्कृति का एक ही मूल आधार है जिसको ऋषियों ने एक सूत्र में  समझाया है ” पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ”

पूर्ण में से अगर पूर्ण निकाल भी दे तो उसमे किसी प्रकार की कमी नहीं आती है | शून्य में से अगर कुछ निकाल  दे तो भी शून्य ही रहेगा और उसमे कुछ जोड़ भी दे तो भी  शून्य ही रहेगा |  इसी प्रकार पूर्ण में से अगर कुछ निकाल भी दे तो उसमे किसी प्रकार की कमी नहीं आ सकती | ऋषियों ने जो कहाँ है की व्यक्ति को पूर्णत्व प्राप्त होना चाहिए तो यह पूर्णत्व क्या है? हम में क्या अपूर्ण है |

यह शाश्वत बात है की इस ब्रह्माण्ड में जितनी भी वस्तु है, जितनी भी भावना है और जो कुछ भी पदार्थ है उसमे एक समय बाद कुछ न कुछ कमी आने लगती है काल चक्र के कारण, चाहे वह कुछ भी हो मानव शरीर हो या कोई भावना ही क्यों न  हो उसमे कुछ न कुछ कमी जरूर आती है|  जब प्रत्येक स्थिति में कमी आती है तो फिर पूर्ण क्या है ?

शास्त्रों में प्रेम को पूर्ण कहा गया है | यही एक ऐसी भावना है, ऐसी चेतना है, ऐसा आकर है जिसमे किसी प्रकार की कमी नहीं आ सकती और इसका तात्पर्य हुआ की पूर्णत्व प्रेममय है, प्रेम के माध्यम से ही हम पूर्णत्व प्राप्त कर सकते है क्युकी पूर्णत्व का आधार अपने आप में प्रेम है | प्रेम क्या है?

प्रेम में किसी प्रकार का अवरोध नहीं होता, प्रेम के बीच कोई विवधान नहीं आ सकता, प्रेम कोई लेन देन का  व्यवसाय नहीं  है| प्रेम तो अपने आप को  समर्पित करने की और अपना सब कुछ विसर्जित कर देने की भावना है और जो अपना सब कुछ विसर्जित कर सकता  है वह बहुत कुछ प्राप्त कर लेता है | मनुष्य अपने आप को केवल बचाना जनता है लेकिन जिस समय वह अपना सब कुछ पूर्णत्व में विसर्जित कर देगा उस समय वह बहुत कुछ प्राप्त कर जाएगा और पूर्णत्व केवल भगवती पराशक्ति है |

अगर भगवती पूर्णत्व है तो फिर उसका आधार क्या है? उसका आधार प्रेम है और प्रेम के माध्यम से ही उनको प्राप्त किया जा सकता है | प्रेम भावना कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि संसार में केवल यही एक ऐसी भावना है, ऐसी चेतना है जो चिर नवीन और चिर शाश्वत है | प्रेम भावना सीधा चित पर प्रभाव डालता है और कोई भी भावना चित्त पर सीधा प्रभाव नहीं डालती बाकि अंगो पर डालती है |

प्रेम की कोई परिभाषा नहीं है क्युकी प्रेम उसको कहते है जिसमें नवीनता बनी रहती है और जो नित्य नवीन रहता है उसकी परिभाषा नहीं हो सकती | इसलिए भक्ति का जो मूल तत्त्व है और भक्ति मार्ग का जो आधार है वह प्रेम ही है इसलिए भक्ति काल में जितने भी कवी हुए है उन सब ने प्रेम के माध्यम से ही ईश्वर को प्राप्त किया है| अगर इस चिंतन को गहराई के साथ में समझ लिया जाए तो फिर कोई भी साधना और बढ़ी से बढ़ी साधना भी सरलता से  शरीर में समाहित हो सकती है  क्युकी मंत्र भी अपने आप में प्रेममय है और जब उस  मंत्र का व्यक्ति के चित्त पर सीधा प्रभाव पड़ेगा तो सिद्धि का प्रादुर्भाव होगा ही, सिद्धि की उत्त्पति होगा ही |

प्रश्न ३ :- अगर घर के कुलदेवी देवता का बंधन कर दिया गया हो तो उन्हे कैसे बंधन मुक्त करे?

उत्तर:- अगर किसी ने आपके घर के कुलदेवी देवता का बंधन कर दिया है तो उन्हें उस बंधन से मुक्त कराने का एक सरल विधान है, अगर आप गुरु मंत्र की साधना करते है तो फिर आपको अपने कुल देवता को स्थापित कर विशेष तरीके से गुरु मंत्र के माध्यम से उनका पूजन करना होता है फिर उस मंत्र की शक्ति से उनका बंधन स्वतः नष्ट हो जाता है |

अधिक जानकारी के लिए नीचे का यूट्यूब विडियो जरूर देखे –

https://youtu.be/e0ZfdnyWIU4

 

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