Site icon Dharam Rahasya

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 100

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 100

१. अलग अलग धर्मो में आत्मा को अमर बताया है और मरने के बाद आत्मा एक शरीर को छोड़ कर दूसरा शरीर धारण करती है ?

उत्तर:- यह सत्य है की सभी धर्मो ने आत्मा के अस्तित्व को माना है | कुछ धर्मो ने  माना है की आत्मा एक शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करती है, जैसे हमारा सनातन धर्म इस बात की पुष्टि करता है की व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसकी आत्मा नए शरीर प्रवेश कर लेती है | लेकिन कई धर्मो में ऐसा नहीं माना जाता उनकी मान्यता है की आत्मा केवल एक बार ही मानव शरीर धारण करती है  फिर उस व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसकी आत्मा का फैसला किया जाता है | फैसले वाली बात भी सभी धर्म स्वीकर करते है की मृत्यु के बाद आपके अस्तित्व का फैसला किया जाता है | इसलिए अधिकतर आपने सुना है की मृत्यु के बाद हमारे कर्मो के हिसाब से हमें गति प्राप्त होती है लेकिन यह गति सिर्फ स्वर्ग लोक तक या निचे के लोको तक ही सीमित नहीं है | अगर आपकी आत्मा में अधिक पुण्य शक्ति है या यूँ कहे की आपकी साधनात्मक शक्ति जैसे जैसे बढ़ते जाती है आप स्वर्ग लोक से भी ऊपर जा सकते है, कई प्रकार के लोको में गमन कर सकते है या प्रेत योनि में भटकते रहते है |

२. कुछ आत्माएं भटकती क्यों रहती है ? अधूरी इच्छा ?

उत्तर:- जहा तक हिन्दू परमपरा की बात है तो शास्त्रों में वर्णन आता है जब तक आप जन्म नहीं ले लेते है तब तक आपको किसी विशेष योनि में भटकना होता है | भूत प्रेत योनि में भटकेना का अर्थ है की आपका जो कर्म है वो अधिक पाप ग्रस्त है और आपने कभी अपनी आत्मा की आध्यात्मिक उन्नति की नहीं जिसके वजह से वो उच्च कोटी  के लोक और शरीर में प्रवेश कर सके |  जब कोई व्यक्ति स्वयं ही आत्म हत्या कर बैठता है तो ऐसे व्यक्ति सीधे ही प्रेत योनि में भटकते रहते है, जब तक उनका समय समाप्त नहीं हो जाता है |  फिर मुश्किल से किसी निम्न गर्ब में वो आत्मा जन्म लेती है और किसी दुर्घटना में भी किसी की मृत्यु हो जाए तो भी उसका आत्मा प्रेत योनि में विचरण करेगी क्युकी उस अमुक व्यक्ति की आयु अगर १०० वर्ष है और ५० वर्ष में ही अगर उसकी मृत्यु हो जाती है तो बाकी का जीवन वो प्रेत योनि में भटकेगी और इसमें भेद होता है की ये आवश्यक नहीं प्रेत योनि में एक वर्ष की समय अवधि हमारे समय अवधि के अनुरूप हो |  इसलिए प्रेत योनि बहुत लम्बे समय तक चलती है और यह भौतिक शरीर का ही शूक्ष्म रूप होता है इसलिए उनमे भी इक्षा कामना बारबार रहती है और यह आत्माएँ निरन्तर ये प्रयास में रहती है की किसी व्यक्ति के द्वारा हम अपनी इक्षा पूर्ण कर सके  | क्युकी मानव शरीर में यह क्षमता रहती है की वो अपनी इक्षा पूर्ण कर सके लेकिन शूक्ष्म शरीर में यह क्षमता नहीं रहती इसलिए वो निरन्तर इस प्रयास में रहते है की किसी माध्यम से वो संपर्क करे और व्यक्ति जितना संवेदनसील होता है वो उतना ही अच्छा माध्यम होता है |

३. बह्रामंड (यूनिवर्स) की उत्पत्ति से संभंधित धर्म और विज्ञान में अलग अलग धारणाएं है ?

उत्तर:-  धर्म आध्यात्मिक दृष्टि से देखता है और विज्ञान भौतिक दृष्टि से देखता है | धर्म आत्मा परमत्मा अन्य शक्तियों की बात करता है और विज्ञान भौतिक चीज़ो के माध्यम से रहस्यों को खोजने का प्रयास करता है | विज्ञान कहेगा की पहला ग्रह आखिर बना कैसे और उसकी सारी खोज इसी विषय में ही होगी | लेकिन धर्म उस चीज़ को शूक्ष्म रूप से जानने की कोशिश करेगा और शून्य के माध्यम से इस सृष्टि की रचना कैसी हुई होगी और यही पर विज्ञान और वेदो में अंतर आ जाता है | जहा विज्ञान भौतिक पदार्थ तक सीमित रह जाता है वही धर्म अध्यात्म की गेहराई में चला जाता है और उसके रहस्यों को खोजने की कोशिश करता है | अगर हम ध्यान से देखे तो हमें मालूम पड़ेगा की यह सारा संसार अणुओ के माध्यम से बना है | लेकिन अगर हम अणुओ को देखिये तो यह असल में एक ध्वनि है विशेष प्रकार की ध्वनि है जिसके माध्यम से अणु का निर्माण होता है लेकिन मूलता या सारा संसार और सारा ब्रह्माण्ड  केवल एक ध्वनि का परिणाम है और आपका शरीर भी एक विशेष प्रकार की ध्वनियों से ही निर्मित है | और जो कुछ आप देखते समझते है वास्तव में वह चीज़ का अस्तित्व ही नहीं है बल्कि आपका दिमाग उस चीज़ को दिखा रहा है क्युकी सबके मूल में विशेष प्रकार की ध्वनि है | इसलिए संसार में कुछ solid नहीं है यह बात विज्ञान कहता है लेकिन हमारे ऋषि और मुनि भी बिलकुल यही बात कहते है की यह सारा ब्रह्माण्ड मंत्र आबद्ध है | प्राणी मात्र का छोटा सा छोटा कार्य मंत्र संचालित है और मंत्रो के माध्यम से ही जीवन हो सकता है, बिना मंत्रो के तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं | और अगर हमारे ऋषि मुनि ये बात कह रहे है तो कोई विशेष अंतर दोनों में नहीं है | दोनों एक ही बात कह रहे है और ऋषियों ने तो “शब्दं वै ब्रह्मा” शब्द ही ब्रह्म है शब्दों को ब्रह्म की संज्ञा दी है | जब सब चीज़ मंत्र के माध्यम से है ध्वनि के माध्यम से है तो ऋषियों उन विशेष प्रकार के मंत्रो की रचना की जिसके उच्चारण से एक विशेष ध्वनि निःसृत हो और हमारा कार्य सिद्ध हो सके और ध्वनि के माध्यम से कोई भी पदार्थ का निर्मण और एक पदार्थ को दुशरे पदार्थ में  परिवर्तित किया जा सकता है | खैर अभी उतना गहराई में जाने की आवश्यकता नहीं है लेकिन मूलता ब्रम्हांड एक विशेष ध्वनियों का संग्रह है और इसलिए ऋषियों ने कहा जो कुछ संसार में है वो माया है |

अधिक जानकारी के लिए विडियो देखे –

 

Exit mobile version