Site icon Dharam Rahasya

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 101

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 101

१. दीपावली की तांत्रिक पूजा का क्या महत्व है ?

उत्तर:- तंत्र में  चार रात्रि को अत्यंत शुभ माना जाता है | जिसको हम मोह रात्रि, काल रात्रि आदि आदि नामो से जानते है और इन चारो रात्रियो में से एक दीपावली की  रात्रि भी होती है, जो तंत्र और साधना छेत्र में विशेष महत्व रखती है | इस रात्रि अगर कोई साधना की जाती है तो प्रभाव निश्चित रूप से होता ही है और सिद्धि प्राप्त हो जाती है | दीपावली की रात्रि में तांत्रिक शक्तियां जागृत रहती है और माता महालक्ष्मी की कृपया प्राप्त होती है और माता काली की सर्व शक्तियाँ इस रात्रि को जागृत रहती है | इसलिए अगर आप दीपावली के दिन साधना करते है तो इसका विशेष प्रभाव आपको देखने को मिल सकता है| क्युकी कुछ समय और कुछ क्षण इतने विशेष होते है की अगर आप उस क्षण और समय को पहचानने में सफल हो पाते तो आप निश्चित रूप  से सफलता प्राप्त कर सकते है | क्युकी यह अत्यंत महत्वपूर्ण समय होता है और साल में केवल एक बार ही ऐसी स्थिति या समय बनता है इसलिए इन विशेष क्षणों का प्रयोग करना चाहिए |

२.   दीपावली की सुबह क्या माता लक्ष्मी आती है ?

उत्तर:- यह सत्य है की माता लक्ष्मी अपने अंशावतार में धरती पर विचरण करती है और वह अपने भिन्न भिन्न रूपों और स्वरूपों  में विचरन करती है | इन रूपों के माध्यम से माता साधक की भक्ति, उसकी भावना और उसके कर्म के अनुसार उनके घरो में अवतरित हो जाती है | जिन घरो में माता प्रवेश करती है वह घर अपने आप में लक्ष्मीवान हो जाता है | उसके जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रह जाती  इसलिए यह परंपरा स्थापित हुई की  माता को उस विशेष समय में पुकारा जाए |

३. भूत भविष्य वर्तमान बताने वाली सात्विक साधना ?

उत्तर:- देखिये हमारे शरीर में कई प्रकार की ग्रन्थिया है जिसमे से हम कुछ  को जान पाए है, लेकिन  मुलता 108 ग्रंथिया है | आँख एक ग्रन्थि है जिसके माध्यम से हम संसार को देख पाते है, कान एक ग्रंथि है जिसकी विधुत प्रवह से हम सुन पाते है, नाक एक ग्रंथि है जिसके माध्यम से हम सुगन्ध ले पाते है इस प्रकार अगर आपकी आँख की ग्रंथि अगर काम करना बंद कर दे या इसमें जड़ता आ जाए तो आप कुछ देख नहीं सकते है |  इसी प्रकार हमारे शरीर में एक ग्रंथि होती है जिसके माध्यम से हम भुत और भविष्य को देख पाने  सक्षम हो पाते है |

एक हठ योगी २० वर्षो तक अपना दाहिना हाथ आकाश की और रख कर तपस्या करता है लेकिन फिर बाद में वह हाथ को निचे नहीं कर पाता  क्युकी वहाँ स्थित नाड़ियो का गुच्छा अपने में निष्क्रिय हो जाता  है  क्युकी उस योगी ने २० वर्षो तक उसका प्रयोग नहीं किया था इसलिए वह ग्रंथि काम करना बंद कर देती है | हमारी जो ग्रंथि है जिसके  माध्यम से त्रिकाल देखना संभव हो पता है वह निष्क्रिय है क्युकी हमने अपने जीवन में कभी उसका उपयोग किया नहीं और उपयोग नहीं किया तो वह ग्रंथि में जड़ता आ गई है और जैसे ही यह ग्रंथि जागृत होगी इसका काम ही भूत भविष्य को देखना है |

एक ऋषि का पुत्र एक ऋषि ही होता था और एक लोहार का लड़का लोहार का कार्य अच्छे से कर सकता है लेकिन अगर हमें कहा जाए की हम लोहार का कार्य करे तो हम नहीं कर पाएंगे क्युकी हमें उस चीज़ का ज्ञान ही नहीं है | इस प्रकार इस ग्रंथि को जागृत करने की क्रिया हमारे ऋषियों के पास थी लेकिन वो जो बीच की कड़ी थी वो टूट गई और आज ऐसे बहुत ही काम योगी और साधक है जिनकी यह ग्रंथि जागृत है | लेकिन अगर हम उस ग्रंथि को थोड़ा सा छेड़ेंगे तो वह चेतना युक्त होगी और जागृत होने लगेगी और उस ग्रंथि को जागृत करने के लिए उसको स्पंदन युक्त बनाने के लिए कई प्रकार की विधियाँ और साधनाए प्रचलित है | इन साधनाओ में कर्ण पिशाचिनी है लेकिन ये आपको सिर्फ भूत काल को ही स्पष्ट करती है, सटिक भविष्य नहीं बताती | दूसरी पंचांगुली साधना है जो आपको भूत और भविष्य दोनों का ज्ञान करवाती है | कर्ण पिशाचिनी के बदले उचित यही होगा की आप पंचांगुली साधना सिद्ध करे क्युकी कर्ण पिशाचिनी साधना में तकलीफ हो सकती है |

एक गोपनीय प्रयोग है आप यह  प्रयोग कर सकते है | आपको अपने नेत्र  के मध्य भाग (आज्ञा चक्र)  में ध्यान लगाते हुई “ॐ नमः शिवाय” का मानसिक मंत्र जाप करना है और आपकी जीभ कंठ के तालु पर स्थित होनी चहिये, जिसको खेचरी  मुद्रा कहा जाता है और आपको आँख बंद कर नेत्र के मध्य भाग  जहा आज्ञा चक्र स्थित है उस भाग पर ध्यान केंद्रित करना है|  लेकिन उससे पूर्व आपको कुछ और अभ्यास करना चाहिए जिससे आप सफलता प्राप्त सके | सबसे पहले आपको  अपनी नाक के अग्र भाग पर एक बिंदु लगा कर उसको एक-तक देखना का प्रयास करे जब आप सफल हो जाए तो आप अपने नेत्र के मध्य भाग जहा आज्ञा चक्र स्थित है वहाँ एक बिंदु लगा दे और अपने दोनों खुले नेत्रों से उस बिंदु  का देखने का प्रयास करे और जब आप सफल हो जाए तब आप नेत्र बंद कर खेचरी मुद्रा लगते हुए मंत्र का जाप करते हुए अंदर से उस स्थान पर ध्यान केंद्रित करना है और इस प्रकार आपका वो ग्रंथि जिसको आज्ञा चक्र कहते है वो जागृत होने लग जाती है | इस प्रयोग में आपको असीम धैर्य  आवश्यक है और गुरु के सानिध्य में इसका अभ्यास करना चाहिए |

अधिक जानकारी के लिए नीचे का विडियो देखे –

Exit mobile version