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सुंदरवन की आदमखोर सुंदरियाँ भाग 4

सुंदरवन की आदमखोर सुंदरियाँ भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। पिछली बार की कहानी को आगे बढ़ाते हुए अब आगे की कथा के विषय में जानते हैं। अब क्योंकि श्वेत भैरव ने उन कन्याओं को इस रहस्य के विषय में समझाना था क्योंकि वह खुद भी उन कन्याओं के गुरु के रूप में वहां पर मौजूद थे। इसलिए श्वेत भैरव ने कहा। अब क्योंकि तुम श्वेत रति भैरवी की साधना के विषय में जानना चाहती हो। इसीलिए श्वेत रति भैरवी को जानना और उनकी कथा का भी ज्ञान होना जरुरी हो जाता है। क्योंकि अगर आपको यह पूरा ज्ञान नहीं होगा। तो भला आप कैसे इस साधना से फायदा उठा पाएंगे? तब दोनों कन्याओं ने हामी भरते हुए कहा कि आप इनकी कथा भी हमें सुनाइए।

तब?
भैरव कहा, आखिर श्वेता रति भैरवी ही इन्हें क्यों कहा जाता है? क्योंकि असल में श्वेता का मतलब होता है जो सफेद रंग की हो गोरी हो अत्यधिक और बनी हो इसीलिए इनको श्वेता कहा जाता है और रति शब्द जुड़ा हुआ है। काम की मर्यादा में रहने वाले प्रेम देने वाली, रतिक्रिया को पसंद करने वाली शक्ति के माध्यम से। जिसके अंदर यह दोनों गुण अर्थात जो रति पसंद करें और श्वेत बनी हो उसे श्वेता रति भैरवी भी कहा जाता है। इन की कथा का वर्णन इस प्रकार से आता है जो कि मुझ से भी जुड़ा हुआ है।

मैं आपको बताता हूं। आपको यह बात तो पता होगी कि मां भगवती दुर्गा के रूपों में अलग-अलग स्थानों पर पूजी जाती है। मां दुर्गा के नौ स्वरूप प्रमुख माने जाते हैं जिसमें से माता महागौरी का भी नाम आता है। महागौरी देवी मां का शांत और उत्तम स्वरूप है जिनके दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कहा जाता है श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबर धरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा । इनकी जो स्थिति है। इनका जो रंग है बहुत पूर्ण गौर माना जाता है। अत्यधिक गौरवर्णी होने के कारण सिर्फ गौरी नहीं किंतु इन्हें महागौरी के नाम से पुकारा जाता है। मतलब की एक ऐसी देवी जो महागौरी है अर्थात संसार में इससे ज्यादा गौर स्त्री मौजूद नहीं है। इन से अधिक गोरी स्त्री कहीं पर भी मौजूद नहीं है। इसीलिए इनकी जो उपमा है। जब की जाती है तो उपमा शंख से की जाती है। इनकी उपमा चंद्रमा से की जाती है और कुंद का एक फूल होता है। उससे की जाती है अर्थात जैसा शंख दिखाई देता है। जैसा चंद्रमा नजर आता है और जैसा कुंद का फूल होता है। वही रंग इनका माना जाता है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितनी अधिक गौरवर्णी इन्हें माना जाता है। कहते हैं जो भी कन्या 8 वर्ष की हो जाती है। उसे गौरी स्वरूप में पूजा करना चाहिए। देवी मां के समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत माने जाते हैं। माता की चार भुजाएं हैं। इनका जो वाहन है, वह भी श्वेत वृषभ ही है जिसे हम प्यार करते हैं। दाहिने हाथ में अभय मुद्रा है। दाहिने हाथ के नीचे हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में मुद्रा। अत्यंत! शांति स्वरूप में नजर आती है और देवताओं की प्रार्थना करने पर ही यह प्रकट होती है।

आखिर श्वेतारति भैरवी का प्रादुर्भाव! इनसे संबंधित क्यों है इसके विषय में यह कथा है कि एक बार? भगवान शिव और माता पार्वती दोनों वाद और विवाद में तल्लीन थे। कि तभी भगवान शिव ने कहा, तुम तो? काली हो? भला तुम्हारी और लोग ज्यादा देर तक क्यों देखेंगे यह बात माता को अत्यधिक दुखी और वह गुस्से में वहां से चली गई। फिर उन्होंने पार्वती स्वरूप में कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी क्योंकि भगवान शिव ने उन्हें काला कह दिया था। इसी कारण से तपस्या में साधना के कारण इनका शरीर भी जलने लगा। इस प्रकार करोड़ों वर्ष तक कठोर तपस्या करती रही। भगवान शिव उनके पास पहुंचे और उन्हें देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। यहां पर माता पार्वती अत्यंत ही काली वर्ण की हो चुकी हैं क्योंकि धूप, धूल और तपस्या की ऊर्जा के कारण उनका शरीर कारण। पूरी तरह काला हो चुका था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा देवी अपनी तपस्या बंद कीजिए। मैं आपसे प्रसन्न हूं। मैंने तो यूं ही आपको काली कहा था ताकि जगत आपके काली स्वरूप को भी जान पाए। आप तो स्वयं महाकाली हैं। अब समय आ चुका है। इस संसार में सबसे ज्यादा गौर वर्ण में आपको प्रदान करु। इस प्रकार! माता की आंखें खोलते हैं भगवान शिव ने स्वयं गंगा जी से कहा कि आप इन्हें स्नान करवाए हैं मैं स्वयं इन्हें। स्नान करवाता हूं। और जैसे जैसे पवित्र गंगा जी का जल और भगवान शिव के हाथों से जिस जिस अंग का स्पर्श होता गया। विद्युत के समान अत्यंत ही श्वेत और चमकीला होता गया। इतना अधिक गोरा वर्ण हो गया। कि तब भगवान शिव ने कहा, आज से आप माता महागौरी के नाम से जानी जाएंगी। आपका यह स्वरूप अत्यंत ही शांत स्वभाव वाला होगा। भगवान शिव के इस प्रकार प्रेम पूर्वक कहे गए वचनों से प्रभावित होकर माता के मन में भी उनके प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया। उस वक्त उनके शरीर को नहलाए जाने के कारण शरीर से जो पानी और मैल यह सारा वह कर नीचे पर्वत श्रंखला से आने लगा।

तब एक स्थान था जहां पर मैं बैठकर तपस्या कर रहा था। मैं भगवान शिव को प्रसन्न करने में लगा हुआ था। पूर्व जन्म में मैं एक ऋषि था, तब मैंने तपस्या के द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया था और भगवान शिव ने मुझे श्वेत भैरव बनाया तपस्या करने के लिए कहा था। तब मैं श्वेत भैरव बनकर सदैव भैरव के रूप में इस पृथ्वी पर विचरण करता रहा और यहीं आकर तपस्या करने लगा। उस दिन जब मैं तपस्या कर रहा था, पानी की तेज धार में शरीर से आकर लगी। मेरी तपस्या का तत्व भी उस जल में मिल गया। तब मैंने अपनी आंखें खोल कर देखा। वहां पर जो तत्व था, वह माता का ही तत्व था। क्योंकि माता महागौरी के शरीर का काला रंग। मिला हुआ पानी मेरे शरीर से टकरा रहा था। तब मैंने देखा कि वह पानी एक जगह इकट्ठा होकर देवी का स्वरूप धारण कर लिया और वही देवी श्वेतारति भैरवी के स्वरूप में वहां पर मेरे सामने साक्षात 16 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई।

तब मैंने देवी को प्रणाम किया। मैंने देखा देवी के अंदर! श्वेत! माता महागौरी का अंश विराजमान था और माता के काली स्वरूप का भी। जब देवी क्रोधित होती है तो काल के समान है और काली है। अगर देवी प्रसन्न होती है तो स्वयं माता महागौरी का अंश होने के कारण उन्हीं के समान वरदान देने वाली शक्तिशाली तत्व धारण करने वाली देवी है। उनके अंदर मेरा तत्व भी है इसीलिए यह भैरवी कहलाती है। मुझसे भी कई 100 गुना अधिक शक्तिशाली यह देवी को प्राप्त करो। अगर तुम इन्हें प्रसन्न करने गई तो? तुम्हें शक्तिशाली भैरवी बनकर इनके साथ निवास करने को मिलेगा। साक्षात शिव लोक की प्राप्ति तुम दोनों को हो जाएगी।

इसीलिए! देवी को प्रसन्न करो। यह सुनकर दोनों कन्याए बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने कहा, लेकिन इन देवी की सिद्धि से हमें क्या क्या प्राप्त होगा। दोनों ने श्वेत भैरव से पूछा।

तब श्वेत भैरव ने कहा। तुम्हारा!

बुद्धि का जो अनुमान है उससे कहीं अधिक शक्ति और सिद्धि देने में यह भैरवी उत्तम मानी जाती हैं। लेकिन तुम्हारे अंदर! साधना के दौरान ही प्रेम और।

रति की इच्छा जागेगी इसीलिए इस बात से सदैव सावधान रहना। जब तक कि तुम्हें तुम्हारे अनुकूल साथी ना मिले तब तक किसी के भी प्रेम में नहीं फंसना। अगर तुम यह कर पाई तो इन देवी की सिद्धि से सब कुछ प्राप्त करने की सामर्थ होगी।

तब श्वेत भैरव ने कहा, मेरा कार्य यहां से समाप्त होता है। मैं तुम्हें इनका गोपनीय मंत्र देकर जा रहा हूं। विधान मैंने तुम्हें समझा दिया है। अब तुम दोनों यहां पर साधना करो। और इस देवी को प्रसन्न कर जीवन को। उत्तम बना लो फिर संसार में। ना तो तुम्हें कोई पराजित कर पाएगा ना ही तुम्हारा किसी प्रकार से शोषण कर पाएगा। मेरा भी तपस्या करने का?

समय हो चुका है, मैं हिमालय पर जा रहा हूं।

और फिर कई वर्षों तक वहां तपस्या करूंगा? मेरी बात को सावधानीपूर्वक की याद रखना। साधना के दौरान देवी किसी भी प्रकार से आप की तपस्या को भंग करने की भी कोशिश कर सकती हैं। या फिर उनकी शक्तियां भी आपकी तपस्या को भंग करने के माध्यमबनेगी? आपको विचलित हुए बिना।

तन मन से समर्पित होते हुए इन देवी को प्राप्त करना चाहिए।

यह कहकर श्वेत भैरव आशीर्वाद देकर वहां से गायब हो जाते हैं। यह दोनों कन्याये अपनी तपस्या में बैठ जाती हैं।

इन दोनों को तपस्या करते देख कुछ साधु दूर से। बड़े ही अचरज में पड़ जाते हैं कितनी सुंदर स्त्रियां। कैसे? पहाड़ पर घोर तपस्या कर रही हैं।

वह बातें अन्य लोगों को बता देते हैं। इधर राजा! उत्सव से।

प्रसन्न हुआ इनके पास वापस आता है। पूरे नगर में खोज खबर लेने के बाद भी वह इन्हें ढूंढता रह जाता है। पर इनका कहीं पता ही नहीं चलता।

तब राजा ने विशेष तांत्रिकों को बुलाया। किंतु तांत्रिक भी।

इनका! पता लगाने में असफल रहे कारण।

इनकी तपस्या के कारण। यह स्वयं को गोपनीय रख पा रही थी।

तब साधुओं के द्वारा तांत्रिकों को पता चला। तांत्रिकों ने पता लगाया। तब तांत्रिकों ने मिलकर राजा के पास जाकर एक विशेष बात उन्हें ,बताई राजा को कहा। पर्वत शिखर पर दो अति सुंदर कन्याएं हैं। जो कि किसी महान शक्ति की उपासना कर रही हैं। इनकी साधना और प्रभाव से उनके अंदर अतुलनीय बल की प्राप्ति उन्हें होगी। ऐसा समझ में आता है।

अगर!

आप इन्हें अपने? संबंधी बना पाए तो यह सिद्धियां सदैव आपके साथ विद्यमान हो जाएंगी।

तांत्रिकों ने कहा। आपका?

जो सबसे बड़ा पुत्र है।

वह काफी सुंदर बलवान है। अगर इन दोनों कन्याओं में से किसी एक अथवा दोनों का विवाह उससे करवा ले। तो?

वह सदैव के लिए।

महान से भी महान बन जाएगा। क्योंकि ऐसा तांत्रिक शक्तियों के माध्यम से पता चल रहा है कि जल्दी ही इन कन्याओं को।

पति की प्राप्ति की तीव्र इच्छा इनके अंदर आ जाएगी और इनकी सिद्धि का उपयोग और उपभोग उसका पति भी कर पाएगा। राजा ने कहा, क्या मैं यह नहीं कर सकता मेरा विवाह अगर उस कन्या से हो जाए? चाहे पहली वाली या दूसरी वाली। तब तांत्रिकों ने कहा।

आपके अंदर इतनी तक की ऊर्जा मौजूद नहीं है आपका यह पुत्र बचपन से। देवी शक्ति का उपासक रहा है।

केवल यही ऐसा कर सकता है। तब राजा ने अपने पुत्र को बुलाया। और उससे कहा तुम्हें किसी भी प्रकार से पर्वत शिखर पर तपस्या कर रही दो कन्याओं को? अपने वशीकरण में लेकर उनसे विवाह करना है।

तुम्हारी पत्नी बन कर तुम्हें वह। अद्भुत सिद्धिवान बना देंगी। और मैं भी! उनकी सिद्धियों का उपयोग कर पाऊंगा।

ऐसी उत्तम कन्याओं को प्राप्त करना।

बहुत ही दुर्लभ है।

राजा के पुत्र को यह बात समझ में आ चुकी थी।

वह तुरंत ही पर्वत शिखर की ओर चला गया। और जब उसने पहली बार दोनों कन्याओं को देखा! तो अपना ह्रदय हार बैठा और उसके अंदर तीव्र! ज्वाला कामाग्नि की पैदा हो गई। किंतु बचपन से ही सिद्ध साधक होने के कारण। अब उसने उस ऊर्जा को! रोक कर!

उन दोनों को। पत्नी रूप में प्राप्त करने की इच्छा को बलवान बनाया। इसके लिए अब उनके साथ रहना उनसे जुड़ना आवश्यक था।

अपनी माया का प्रयोग उसने किया क्योंकि वह भी बचपन से छुटपुट सिद्धियों को प्राप्त कर चुका था।

इसके लिए। उसने सूर्य के ताप को अधिक बढ़ावा दिया। जिससे कन्याओं को प्यास लग जाए।

ऐसा उसने क्यों किया जानेंगे हम लोग अगले भाग में। इसके अलावा जो भी व्यक्ति श्वेतारति भैरवी साधना को करना चाहता है उस साधना का लिंक मैंने इस वीडियो के नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दे रखा है। वहां से क्लिक करके आप इंस्टामोजो स्टोर में जाकर इस साधना को। डाउनलोड कर सकते हैं और?

इस साधना को करके अद्भुत लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं।

कहानी में आगे क्या घटित हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में।

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सुंदरवन की आदमखोर सुंदरियाँ भाग 5

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