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हरिद्रा गणपति गणेश चतुर्थी साधना

हरिद्रा गणपति गणेश चतुर्थी साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम भगवान गणेश की स्तुति से संबंधित उनके एक स्वरूप हरिद्रा गणपति की साधना के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे। कहते हैं भगवान गणेश के बहुत सारे स्वरूप हैं और इन सभी स्वरूपों में उनके अलग अलग स्वरूप अलग-अलग कार्यों के लिए बहुत ही उत्तम माने जाते हैं। इनमें हम अगर 10 महाविद्याओं को लें तो उन के बहुत सारे स्वरूप अंग देवता के रूप में उन शक्तियों के साथ विद्यमान रहते हैं क्योंकि हम यहां पर हरिद्रा गणपति जी की बात कर रहे हैं तो यह माता बगलामुखी अंग देवता के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए जो भी साधक माता बगलामुखी की आराधना करना चाहते हैं, उन्हें हरिद्रा गणपति की साधना पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। कहते हैं इनकी साधना करने से शत्रु का ह्रदय द्रवित होकर उस साधक के वशीभूत हो जाता है। इनकी साधना विभिन्न प्रकार के तांत्रिक कर्मों को नष्ट करने के लिए भी की जाती है। इनके संबंध में कथा में वर्णन आता है कि जब मां त्रिपुर सुंदरी ने इनका स्मरण किया था तब इन्होंने हरिद्रा गणपति के स्वरूप में प्रकट होकर भंडासुर के द्वारा किए गए अभीचारिक यंत्र को नष्ट कर दिया था।

इसीलिए इनका यह स्वरूप संसार में पूजनीय हो गया। असल में हल्दी को ही हरिद्रा कहा जाता है और यह बात तो सभी जानते हैं कि किसी भी वैवाहिक या मांगलिक कार्य में हल्दी का लेप और उसका पाउडर लगाना अनिवार्य माना जाता है क्योंकि हल्दी को अति शुभ सुख सौभाग्य दायक विघ्नविनाशक माना जाता है। हल्दी अनेकों बीमारियों को दूर करती हैं और प्राकृतिक एंटीबायोटिक के रूप में जानी जाती है। इसीलिए हरिद्रा गणपति को अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इनकी साधना से मनोवांछित विवाह पुत्र की प्राप्ति और मनोवांछित फलों की प्राप्ति के साथ शत्रु को वश में किया जा सकता है। साधक को चाहिए कि वह संकल्प लेकर भगवान हरिद्रा गणपति का विनियोग करते हुए उनकी साधना करें। इनकी साधना करने के लिए क्या विधान है इसमें गुड़ और हल्दी को पीसकर पेस्ट या केवल फिर? अगर हल्दी ही है तो केवल हल्दी के चूर्ण से भगवान गणपति की प्रतिमा बनानी चाहिए। इसी का आपको पंचोपचार पूजन करना चाहिए। इसमें संकल्प के रूप में 400000 मंत्रों का जाप करना चाहिए जो कि 1 माह में अथवा इससे अधिक समय का संकल्प लेकर साधक कर सकता है। अब इनके चार लाख मंत्रों का जाप विधिवत तरीके से रोजाना करते हुए दशांश हवन 40000 मंत्रों से करना चाहिए। हवन के लिए सामग्री के रूप में चावलों में इसी हल्दी और थोड़ा सा शुद्ध घी मिलाकर हवन करना चाहिए इसके उपरांत। तर्पण अर्पण मार्जन और अंत में ब्राह्मण भोज कराना चाहिए।

इसके बाद यह मंत्र समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाला एक सिद्ध मंत्र बन जाता है। इसकी प्रयोग विधि के लिए किसी भी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि अथवा सबसे उत्तम गणेश चतुर्थी को कुमारी कन्या द्वारा इसी गई हल्दी का पेस्ट बनाकर अपने शरीर पर उसका लेप करना चाहिए। उसके पश्चात अच्छे प्रकार से नहाकर हरिद्रा गणपति का पूजन करें। गणेश जी के सामने बैठकर मंत्र के अंत में तर्पयामी शब्द लगाकर गणेश जी का तर्पण करें और उसके उपरांत मंत्र का 1008 की संख्या में जाप करें। जाप के बाद तो मालपूए की आहुतियां देकर ब्रह्मचारीयों को भोजन कराएं और कन्याओं तथा गुरुदेव को संतुष्ट कर के अपने अभीष्ट की प्राप्ति करें। कहते हैं लाजा की सामग्री से होम करने पर कन्या को उत्तम वर की प्राप्ति और वर्ग को उत्तम कन्या की प्राप्ति होती है। जिस किसी भी स्त्री की संतान ना होती हो तो ऐसी स्त्री को चाहिए कि वह रितु स्नान अथवा जिसे हम मासिक धर्म कहते हैं, उसके उपरांत गणपति का पूजन करके 4 तोला लगभग 50 ग्राम गोमूत्र में दूध वच यानी दूध में भिगो ही गई वच एवं हल्दी पीस करके उसे एक हजार बार गणपति के मंत्र से अभिमंत्रित करें। फिर कन्या एवं बटु को अर्थात छोटी उम्र के लड़कों को खिला कर स्वयं द्वारा द्वारा तैयार की गई उपरोक्त दवाई का पान करें तो उसे योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस मंत्र की उपासना करने से बैरियो की वाणी स्तंभित हो जाती है। उनकी गतिविधियां भी स्तंभन के प्रभाव में आती हैं। इस मंत्र के प्रभाव से अगर पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है तो व्यक्ति जल अग्नि चोर शेर अस्त्र इन सभी को भी स्तंभित करके रोक सकता है। इसलिए यह कोई साधारण साधना नहीं मानी जाती है। भगवान का यह स्वरूप बहुत शक्तिशाली माना जाता है और गणेश जी हरिद्रा गणपति के रूप में सिद्ध होकर साधक के मनोवांछित सभी कार्यों को कर देते हैं। इनकी पूर्ण सिद्धि प्राप्त साधक विभिन्न प्रकार के कर्म अर्थात सट कर्मों में निपुण हो जाता है। इनकी साधना के लिए विनियोग इस प्रकार से करेंगे-

विनियोग :- ओम् अस्य श्री हरिद्रा गणनायक मंत्रस्य मदन ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, हरिद्रागणनायको देवता आत्मनो-अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। षडंग न्यास :ओम् हुं गं ग्लौं हृदयाय नमः। ओम् हरिद्रागणपतये शिरसे स्वाहा। वरवरद शिखायै वषट्, सर्वजन हृदयं कवचाय हुम्। स्तम्भय-स्तम्भय नेत्र त्रयाय वौषट्। स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यान पाशांकुशौ मोदकमेकदन्तं, करैर्दधानं कनकासनस्थम्।

हरिद्राखण्ड-प्रतिमं त्रिनेत्रं, पीतांशुकं रात्रि गणेश मीडे।। अर्थात् जो अपने दाहिने हाथों में अंकुश और मोदक तथा बांये हाथों में पाश एवं दन्त धारण किये हुए सोने के सिंहासन पर विराजित हैं- ऐसे हल्दी जैसी आभा वाले, तीन नेत्रों वाले तथा पीले वस्त्र धारण करने वाले हरिद्रा गणपति की मैं वन्दना करता हूँ।

मन्त्र :- ओम् हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वरवरद सर्वजन हृदयं स्तम्भय-स्तम्भय स्वाहा।

इस मंत्र का आपको रोज संकल्प लेकर जाप करना है और एक माह और अधिक समय का भी संकल्प लेकर के इस मंत्र के 400000 मंत्र जाप करने पर मंत्र सिद्ध होता है कि बाद! आप दशांश हवन करके इसकी ऊर्जा को पूरी तरह प्राप्त कर सकते हैं इसके बाद साधक में सभी प्रकार के दुश्मनों को अपने वश में करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है और संसार को जीतने की शक्ति उसके अंदर विद्यमान हो जाती है। अपने गुरु से आज्ञा लेकर उचित प्रकार से इसका अनुष्ठान करना चाहिए। इससे अवश्य ही साधक का कल्याण होता है तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है। लाइक करें, शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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