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हिंगलाज माता पुत्र लांगुर वीर साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज मैं आप लोगों के लिए एक विशेष प्रकार की साधना लेकर आया हूं जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं यह लांगुर वीर साधना है जो कि आप हनुमान जी की ही साधना की तरह समझ सकते हैं । क्योंकि जितनी भी वीर साधना होती हैं इस श्रेणी में वो हनुमान जी की ही हैं । आज मैं आप लोगों के लिए लेकर आया हूं हनुमान जी की एक साधना जो कि लांगुर वीर रूप मै है, जिसका विवरण माता के साथ मिलता है और पाकिस्तान में भी मिलता है और इनकी प्रसिद्धि भी पाकिस्तान में बहुत ज्यादा है ।

सबसे पहले मां का अस्तित्व है इसलिए सबसे पहले मां की ही बात करेंगे उसके बाद पुत्र की साधना के बारे में तो आज मैं आप लोगों को हिंगलाज माता शक्तिपीठ है के बारे में थोड़ा सा बता देता हूं और इनकी पूजा बहुत आवश्यक इनकी साधना में इनका मंत्र है –
मँत्रः ॐ ह्रिं हिगलाज देव्ये नमः।। 
इस मंत्र का जाप आपको अवश्य करना  है हर रोज करनी साधना करनी होगी एक माला या दो  माला माता से आज्ञा लेकर ही करनी होगी । माता मै आपके पुत्र लंगूर वीर की साधना वीर के रूप में करने जा रहा हूं, आप मुझे आज्ञा प्रदान करें और मुझे इसमें सफल होने का आशीर्वाद दीजिए इसका आपको ध्यान रखना होगा और जान लीजिए कि  हिंगलाज माता है कौन और उनके पुत्र के रूप में वहां कैसे स्थित है ।असल में जो हिंगलाज माता मंदिर हे वह पाकिस्तान के बलूचिस्तान पर एक राज्य है वहां पर यह स्टेट एक राज्य है सिंध राज्य वही पर बलूचिस्तान स्थित है ।वही पर माता का मंदिर स्थित और पाकिस्तान की जो राजधानी है, कराची से 120 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम की दिशा में जाएंगे तब आपको वह जगह मिलती है ।

यहाँ जो नदी है हिंगोली नदी कहलाती  है हिंगोली नदी के तट पर ही लयरी तहसील के मकराना में एक प्रसिद्ध हिंगलाज माता का मंदिर घोषित है । वहां पर मुसलमान कम्यूनिटी ज़्यादा है पाकिस्तान में यह एकमात्र हिंदू मंदिर ऐसा है जिसे मुसलमान लोग भी अच्छा मानते हैं ।यह माता के 51 शक्ति पीठ में से एक माना जाता है कहते हैं कि जब भगवान शिव माता सती का शरीर लेकर ब्रम्हांड में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उनके शरीर के टुकडे कर दिए थे और उन्हीं के शरीर के टुकडे जहां जहां गिरे हुए शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गए । जब भगवान शिव में वैराग्य उत्पन्न हो गया और जो इधर-उधर भागते फिरते हैं और जो उनके अंदर प्रेम उत्पन्न हुआ था उस से वे व्याकुल हो चुके थे और अपना मूल कार्य जो सङ्घार था वह उसे भूल चुके थे । सभी यह कहानी जानते हैं यहां पर जो है इस स्थान पर माता था ब्रम्ह रंधः यानी सर गिरा था ।

इसलिए इस भवानी शक्तिपीठ की बहुत ज्यादा महिमा है और इतना ही नहीं इसका पौराणिक विवरण भी मिलता है ।चारण वंश की जो कुलदेवी थी वह हिंगलाज माता थी उनका निवास स्थान बलूचिस्तान प्रांत में था ।हिंगलाज माता का निवास स्थान आगे चलकर मैं आप लोगों के लिए माता से संबंधित जो विवरण और कथा है वह लेकर आऊंगा, क्योंकि जो प्राचीन मंदिर मठों की कहानियां है जहां से भी मुझे थोड़ा सा भी ज्ञान मिलता है वह मैं आप लोगों के लिए लाया करता हूं । यहाँ माता के गीत गाए जाते हैं और कहा जाता है कि सातों दीपो मैं जब सब शक्तियां रात्रि को रास्ता चाहती हैं तब रात होते ही सारी शक्तियां माता के गुफा मे यहां पर आती है माता के दर्शन करने और यहां पर जो श्लोक है  इस तरह से है कि-  

श्लोक:   सातों दीप शक्ति सब रात को रचावत रास। प्रातः आप तिहु  मात हिगलाज गिर मे।। 

आठवीं शताब्दी में सिधं प्रात मे एक जगह थी मामर नाम से वहा पर यह आवढ के रुप मे इनका प्राकटय माना जाता है ।ये सात बहने थी आवढ गुणो  रेपयली हुली  आछो चचीक और लधवी । ये तो बहुत सुंदर थी और कहा जाता है कि जो यमन  का शासक था हमीर, वह इनपर मुग्ध  हो गया था और इनके पास अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा पर इनके पिता ने अस्वीकार कर दिया था ।उसने पिता को बंदी बना लिया यह देखकर 6 देवी सिंध से तामरा पर्वत पर आ गई पर एक देवी काठयावाढ के दक्षिणी क्षेत्र में तात्रीणिया नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी । यह भावनगर की कुलदेवी आज भी मानी जाती है और समस्त काठियावाड़ में इन देवी के भक्ति भाव से पूजा होती है । जब आवधवडी देवी ने तामर पर्वत पर आपना स्थान बना लिया तब अनेक चरणों का इनके दर्शन के लिए आगमन होने लगा और बाद में यही इन्होंने तैमरा नामक राक्षस का वध किया था अतः ईनहे तेमरणी भी कहा जाता है ।

आवढ जी का जो मुख्य स्थान है वह जयसलमेर से लगभग बीस मील दुर है एक पहाड़ी पर बना है और लगभग 15 वी शताब्दी में राजस्थान जब छोटे छोटे राज्यों में वीभक्त तथा तब जगीरदारो मे परस्पर बड़ी खीच तान लगी रहती थी आर्य लोग एक दूसरे की रास्तों हैं हमला करके उनका पैसा रुपए छीन लेते थे इसलिए वहां के लोगों को बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पडता था । इस कष्ट के ही निवारण के लिए महाशक्ति हिंगलाज ने सूवाप राव के चारण मेह जी कि धर्म पत्नी देवल देवी के गर्भ से श्री करणी के रूप में अवतार लिया और माता करणी के जो स्वरुप और कथा है उसके बारे में मैं आपको बाद मे बताऊंगा उस संबंध में एक भक्ति गीत आती है आंसोज  माल उज्जवल पक्षषः सातम शुक्रवार चौदह सौ चमबावँ वल करणी लीयो अवतार माता करणी की जो प्रसिद्धि है ।

पाकिस्तान में जो हिंगलाज माता है जहां पर उनका शक्तिपीठ बना हुआ है वहां पर इनको बीबी देवी के नाम से मुसलमान द्वारा पूजा जाता है वहां दोनों ही धर्म के लोग इनकी पूजा करते है इन्हीं के पुत्र लांगुर वीर हैं जिनकी साधना माता की आज्ञा के बिना नहीं जी जाती है । माता से आज्ञा लेकर ही उनकी साधना की जाती है । एक माला आप इनके मंत्रों का करेंगे । इस कहानी के माध्यम से यही बताने का मेरा कारण था तो सबसे पहले आप यहां जान लीजिए कि जो लांगुर वीर है वह हनुमान जी का ही रूप है। हनुमान जी के नियमानुसार ही आपको इनकी साधना करनी होगी ।

आप इसके लिए लाल वस्त्र बनवा लीजिए और अपने साधना के लिए ऐसी जगह चुन लीजिए जो जगह एकदम उजाड़ हो जहां कोई आता जाता नहीं हो, वही पर आप हनुमान जी की लाल मिर्ची की स्थापना कर भी करे और जो लाल बूंदी का लड्डू होता है पूजा के बाद आप इसी लड्डू का भोग उनको लगाएंगे तो मंत्र यह है –
मंत्रः ॐ नमो आदेश गुरू को लागुर वीर बडा रणधीर दुर्गा माई को पुत सब आफत के काल जहा सुमीरो तहा हाजीर खडा ना आवै तो दुहाई माता हिगलाज कि ।।
 तो यह एक शाबर मंत्र है यहां पर लांगुर को माता हिंगलाज के दुहाई दे कर ही बुलाया जा रहा है तो इसकी सिद्धि आपको निश्चित रूप के होगी अगर आप साधना करते हैं तो इसके लिए आप माला रुद्राक्ष की या लाल चंदन की माला ले सकते हैं । गुप्त रुप से आपको रात्रि में जाकर ही  यह साधना करनी होंगे इस मंत्र का 41 माला का जाप 41 दिनों तक करना है 41 वे दिन वीर प्रकट हो जाएंगे और उससे पहले भी प्रकट हो सकते हैं और आपकी परीक्षा भी लगे । आपको इसमें सरसों के तेल का दीपक जलाना होगा और तब तक दीपक जलते रहना चाहिए जब तक आप की साधना पूरी ना हो जाए क्योंकि साधना खुले स्थान में की जाती है इसलिए आपको दीपक को बचाकर रखना होगा क्योंकि दीपक देवता का प्रतीक होता है आप यह साधना घर में नहीं कर सकते अगर आप घर में ही करना चाहते हैं तो आपको एकांत कमरा अपने लिए रखना होगा उसमें कोई भी ना जाने पाय जब तक कि आप की साधना चलती रहे ।

आपको अपने ही हाथ से खाना बनाना है और खाना है अपने हाथ ही अपने कपड़े धोने हैं यानि की अपना सारा काम आपको खुद से ही करना है और आपके शरीर को कोई छूने ना पाए और इसमे पूरी तरह से ब्रम्हचर्य का पालन तो होगा ही , हनुमान जी की किसी भी साधना में ब्रम्हचर्य अनिवार्य होता है आप रात्रि के समय 8 या 9 बजे करे मगर याद रखे आप जिस समय से शुरु करेंगे उसी समय पर रोज करेंगे । आप इसे मंगलवार से शुरु करेंगे तो बहुत ही अच्छा है 41 दिन तक आपको यह साधना करनी है अगर आप चाहें तो इसमें हवन भी कर सकते हैं ।

अगर आप हवन करेंगे तो दुहाई माता हिंगलाज की बाद स्वाहा लगाकर लाल फूलों से हवन कर लेंगे तो इस प्रकार से यह साधना संपन्न हो जाएगी और जब भी देवता प्रकट हो आपको तीन वचन मांग लेना चाहिए और इन्हीं वचनों के अनुसार आपको आगे की साधना करनी चाहिए साधना के बाद आप एक माला रोज उनके मंत्र की कर सकते हैं या आपकी और देवता के बीच में जो भी नियम वचन हो उसके हिसाब से कर सकते आप किसी गुरु से ही साथ जो हनुमान जी के भक्तों हो और उन्होंने वीर सिद्धि की हो तो यह बहुत ही अच्छी बात होगी या तो अगर हनुमान जी के कोई बड़े भक्त है तो भी आप उनको गुरु  के रूप में चुन  सकते हैं अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो धन्यवाद।।

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