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मार्कण्डे कृत लघु सप्तशती दुर्गा स्त्रोत्र

मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत फलदायी बताया गया है। नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ बहुत अच्छा माना जाता है, इसलिए मां के भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करते हैं। सप्तशती में कुल तेरह अध्याय हैं जो तीन चरित्रों यानी भागों में विभाजित हैं। पहला किरदार जिसमें मधु कैटभ वध की कहानी है। मध्य पात्र में सेना सहित महिषासुर के वध की कथा है और उत्तरी पात्र में शुंभ निशुंभ के वध और सुरथा और वैश्य को देवी के आशीर्वाद की कहानी है।बड़ी दुर्गा सप्तशती को सभी जाने हैं किन्तु छोटी भी उतनी ही प्रभावशाली है मै यहाँ पर इसको की प्रस्तुत कर रहा हूँ –

ॐ वींवींवीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता, स्वानंदेमंदरुपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम् । हंसः सोहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे, ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ।। १ ।। ॐ ह्रीं-कारं चोच्चरंती ममहरतु भयं चर्ममुंडे प्रचंडे, खांखांखां खड्गपाणे धकध्रक,किते उग्ररुपे स्वरुपे । हुंडंहुं-कार-नादे गगन-भुवि तथा व्यापिनी व्योमरुपे, हंहहं-कारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्रि ।। २ ।। ऐं लोके कीर्तयंती मम हरतु भयं चंडरुपे नमस्ते, घ्रां घ्रां घ्रां घोररुपे घघघघघटिते घघर घोररावे । निर्मांसे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेत्रे त्रिनेत्रे, हस्ताब्जे शूलमुंडे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते ।। ३ ।। क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले, मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारि गुह्ये। तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने, ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते ।। ४ ।। ॐ व्रां ह्रीं बुं बूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरुपेण चक्रे, त्रिःशक्त्या युक्तवर्णादिककरनमिते दादिवंपूर्णवर्णे। ह्रीं-स्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशितैस्तास्तुपत्रे स्वच्छंदं कष्टनाशे सुरवरवपुषे गुह्यमुंडे नमस्ते ।। ५ ।। ॐ घ्रां भ्रीं धूं घोरतुंडे घघघघघघघे घर्घरान्यांघ्रिघोषे, ह्रीं क्रीं द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते सर्वबोधप्रधाने । द्री तीर्थे द्रीं तज्येष्ठ जुगजुगजजुगे म्लेच्छदे कालमुंडे, सर्वांगे रक्तघोरामथनकरवरे वज्रदंडे नमस्ते ।। ६ ।। ॐ क्रां क्रीं क्रू वामभित्ते गगनगडगडे गुह्ययोन्याहिमुंडे, वज्रांगे वज्रहस्ते सुरपतिवरदे मत्तमातंगरुढे । सूतेजे शुद्धदेहे ललललललिते छेदिते पाशजाले, कुंडल्याकाररुपे वृषवृषभहरे ऐंद्रि मातर्नमस्ते ।। ७ ।। ॐ हुंइंहुंकारनादे कषकषवसिनी मांसि वैतालहस्ते, सुंसिद्धषैः सुसिद्धिढढढढढढढः सर्वभक्षी प्रचंडी ।जूं सः सौं शांतिकर्मे मृतमृतनिगडे निःसमे सीसमुद्रे, देवि त्वं साधकानां भवभयहरणे भद्रकाली नमस्ते ।। ८ ।। ॐ देवि त्वं तुर्यहस्ते करधृतपरिघे त्वं वराहस्वरुपे, त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेंद्री। ऐं ह्रीं ह्रीं कारभूते अतलतलतले भूतले स्वर्गमार्गे, पाताले शैल,गे हरिहरभुवने सिद्धिचंडी नमस्ते ।। ९ ।। हंसि त्वं शौंडदुःखं शमितभवभये सर्वविघ्नांतकार्ये, गांगींगूंगैंषडंगे गगनगटितटे सिद्धिदे सिद्धिसाध्ये । यूँ क्रू मुद्रागजांशो गसपवनगते त्र्यक्षरे वै कराले, ॐ हीं हूं गां गणेशी गजमुखजननी त्वं गणेशी नमस्ते ।। १० ।। ।। इति मार्कण्डेय कृत लघु-सप्तशती दुर्गा स्तोत्रं ।।

 

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