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अघोर साधना के रहस्य अघोर साधना की 18 सिद्धियां

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अघोर साधना के रहस्य अघोर साधना की 18 सिद्धियां

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज बात करेंगे। अघोर पंथ के अघोरियों की रहस्य में खतरनाक अट्ठारह सिद्धियों और उनके जो सिद्धि के विभिन्न प्रकार हैं उनके विषय में क्योंकि कई दर्शकों ने इसके बारे में पूछा था कि अघोरी सिद्धियां किस प्रकार कार्य करती है और मुख्य मुख्य अघोरी सिद्धियां क्या है कि हम लोग जानते हैं? अघोर पंथ अघोर मत यह अघोरियों का एक संप्रदाय है। हिंदू समाज में और इसका पालन करने वाले अघोरी कहलाते हैं। इस के प्रवर्तक भगवान शिव अघोर नाथ माने जाते हैं। श्वेता स्वर उपनिषद में अघोरा के रूप में मंगलमई  कहा गया है। वैसे तो अघोरी शब्द से हम खतरनाक समझने लगते हैं। लेकिन अघोर का मतलब है जो घोर नहीं है यानी कि जो सरल भाव वाला व्यक्ति है, वही अघोरी होता है। लेकिन अघोरियों के विषय में समय के साथ में बहुत ज्यादा परिवर्तन देखने को मिलता है और धीरे-धीरे सिद्धियों के कारण और इनकी क्रियाकलापों के कारण इन्हें समाज से बिल्कुल अलग ही समझा जाने लगा।

प्रसिद्ध बाबा कीनाराम के माध्यम से हम लोग कई प्रकार के चमत्कारों को देखते चले आ रहे हैं। कहते हैं अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव जी थे।

अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोर शास्त्र का गुरु हम लोग मानते हैं। यह भगवान शिव के अवतार भी माने जाते हैं। इनके अंदर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का ही अंश था। अघोर संप्रदाय के संत बाबा कीनाराम की भी पूजा की जाती है।

क्योंकि संसार के हर पदार्थ में। शिव का वास माना जाता है। इसीलिए अघोरी किसी भी चीज से घ्रणा नहीं करते हैं। उनके लिए मिट्टी पत्थर सुवर्ण यहां तक कि मल मूत्र इत्यादि।

त्याज्य जिसे कोई छू न सके, ऐसी कोई चीज नहीं है। उनके लिए सब एक समान पवित्र हैं ।

अगर बात की जाए अगर स्थानों की तो हमारे देश में काशी! इसके अलावा जहां पर भी विशेष तरह की तांत्रिक साधनाएं की जाती, वह सारे स्थान जैसे कि गुजरात का जूनागढ़ है जहां पर अवधूत भगवान दत्तात्रेय की तपस्या स्थली माना जाता है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के शमशान भूमि सारे अघोर प्रमुख स्थान माने जाते हैं।

विभिन्न प्रकार के चमत्कारिक स्वरूपों के कारण अघोरियों के संबंध में बहुत सारी भ्रांतियां भी प्रचलित है। जैसे कि हम जानते हैं कि लोगों में प्रचलित है कि अघोरियों और संप्रदाय के साधक मृतक व्यक्ति के मांस का भक्षण भी करते हैं। जबकि मांस स्वयं अस्पर्श्य है लेकिन मृतक का मांस तो कितना ज्यादा अस्पृश्यता वाला होगा, लेकिन वहां से एक प्राकृतिक पदार्थ के रूप में देखते हैं।

कहते हैं सिद्धियों का प्रयोग जब अघोर साधक करता है तो मृत मांस से भी शुद्ध शाकाहारी मिठाईयां बनाते हुए उन्हें देखा गया है। इस प्रकार की चमत्कार दिखाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।

किस प्रकार अघोर विभिन्न प्रकार की साधना में रत रहकर के अनेक प्रकार से चमत्कार दिखाते रहे हैं और यह पंथ आज भी बहुत ज्यादा चमत्कारिक माना जाता है। समाज में स्थित है।

कहते हैं इसमें जो दीक्षा की परंपरा है।

कई प्रकार से होती है।

और? जब दीक्षा की परंपरा इसमें दी जाती है तो तीन प्रकार से मुख्य रूप से यहां पर दीक्षा दी जाती है। गुरु!

स्त्री और पुरुष दोनों को दीक्षा दे सकता है।

विभिन्न प्रकार के मंत्र दिए जाते हैं और खासतौर से मृत शरीर और आत्माओं से संबंधित शक्तियों को प्रदान करने की विधि जाती है। दीक्षा तीन प्रकार से होती जिसमें एक दीक्षा हिरत दीक्षा के नाम से जानी जाती है। इस हिरत दीक्षा में गुरु, गुरु मंत्र या बीज मंत्र को कान में देता है। अपने शिष्य को जिसे मंत्र फूंकना भी कहते हैं या मंत्र फुकन के नाम से किसे जाना जाता इस तरह दिखता होती है। इसे कोई भी ले सकता है। इसमें गुरु शिष्य के बीच कोई नियम बंधन नहीं होते हैं। अधिकतर अघोरी लोग यही दीक्षा प्राप्त करते हैं। दूसरी होती है शरद दीक्षा दीक्षा में गुरु नियम के अनुसार वचन लेते हैं और उसकी कमर गले या भुजा में काला धागा बांधते हैं। पुरुष की दाई और उनकी बाईं भुजा में धागा बांधकर बीज मंत्रों से दिया जाता है। गुरु अपने हाथ में जल लेकर शिष्य मंत्र जाप कराता है। इसमें गुरु शिष्य के बीच कुछ नियम होते हैं जिन्हें गुरु निर्धारित करते हैं। यह नियम बहुत ही तीव्र और तीसरी प्रकार की जो दीक्षा होती, उसको हम रमत दीक्षा के नाम से जानते हैं। रमत दीक्षा अघोर तंत्र में इसके नियम बहुत कठिन होते हैं। गुरु भी रमत दीक्षा बहुत ही विलक्षण लोगों को देता है। इस दीक्षा को लेने वाले शख्स पर गुरु का पूरा अधिकार हो जाता है। सिर्फ गुरु ही दीक्षा को वापस लेकर शिष्य को अपने बंधन से मुक्त कर सकता है। गुरु दीक्षा देने से पहले कई प्रकार की जो। कसौटी है उनमें पड़ता है जो रमत दिखता है। यह! विशेष प्रकार के शिष्य को ही दिया जाता है और उत्तराधिकारी इसी के माध्यम से बनाया भी जाता है कि गुरु को जब अटूट विश्वास हो जाए। धीरे-धीरे जैसा साधना व्यक्ति करता चला जाता है। उसे 18 प्रकार की सिद्धियां मिलती है। कहते हैं सब एक प्रकार की जो सिद्धियां है वह अलग-अलग प्रभाव दिखाती है। मैं यहां पर आपको प्रमुख विधियों के विषय में बता रहा हूं। अलग की सिद्धियों की संख्या 18 लेकिन मुख्य का ज्ञान होना आवश्यक है। बाकी गोपनीय होती हैं और उनकी रहस्यमई असर आपको अलग-अलग प्रकार से दिखाई भी पढ़ते हैं तो सबसे पहले जो सिद्धि प्राप्त होती है एक अघोरी को उसे कहते हैं

रक्षण सिद्धि-अघोर पंथ में सबसे पहले जाप और पुण्य की रक्षा करने की शक्ति प्राप्त होती है। शक्ति को शिष्य गुरु के मंत्रों के जाप से प्राप्त कर लेता है। रक्षण सकती मिलने पर वह स्वयं की और असहाय लोगों की सहायता करने में सक्षम हो जाता है और इस सत्य के मिलने के बाद साधक के ऊपर जब कोई परेशानी आती है तो वह इस मंत्र के माध्यम से उसको नष्ट कर सकता है। उसके प्रभाव को कम कर सकता है। किसी की भी रक्षा करने की शक्ति कहलाती है। दूसरी शक्ति होती है
गति शक्ति- एक ऐसी शक्ति है जो कि गुरु दीक्षा से पहले जिस योग और ध्यान में असफल होता है उसे दीक्षा के मंत्र के माध्यम से निरंतर जाप करते हैं। साधना में गति आ जाती है। जिसके कारण से साधक को जल्दी सिद्धियां प्राप्त होने लगती हैं, उसे गति शक्ति कहते हैं। इन्हीं गति प्राप्त करना किसी भी कार्य में किसी भी पूजा पाठ था क्योंकि अब वह स्वयं सिद्ध होने लगता है। तीसरी शक्ति आती है

कांति शक्ति- यह जो कांति शक्ति है यह साधना पथ में अनिका अघोरी साधना पथ जो है। उसमें आगे बढ़ने पर साधक का जो मन है वह उज्जवल हो जाता है।

शांत सौम्य और शिव तत्व की ओर बढ़ता है। उसके पूर्व जन्म वाले संस्कार नष्ट हो जाते हैं। कांति शक्ति मिलने के बाद साधक के लिए सभी एक समान हो जाते हैं। उनके मन में किसी व्यक्ति के लिए ग्रहण और द्वेष का भाव समाप्त हो जाता है। चौकी शक्ति जो है,

प्रीति शक्ति- प्राप्त होती है। इस शक्ति के साधक जैसे-जैसे मंत्रों का जाप करता जाता है, उसकी अपने मनचाहे देवता के प्रीति लगातार बढ़ती जाती है। यह साधना पूरी हो जाती है तब साधक की प्रीति सिद्धि उसे प्राप्त हो जाती है इस शक्ति के प्रति प्रीति

अघोरी की सामर्थ्य शक्ति बढ़ जाती है और उस देवता का भी पूरा आकर्षण अपने इस साधक के प्रति हो जाता है यानी कि यहां जैसे। एक अघोरी का प्रेम अपने देवता के प्रति होता है। वैसे ही देवता का भी प्रेम अगोरी के प्रति उतना ही हो जाता है। पांचवी शक्ति है

तृप्ति शक्ति- तृप्ति जैसे अघोरी मंत्र का जाप करते हैं। वैसे वैसे उसकी अंतरात्मा में संतोष और तृप्ति बढ़ती चली जाती है। जब अघोरियों शक्ति को प्राप्त कर लेगा है तो वह संतुष्टि को प्राप्त करता है। यानी उसके अंदर भी बहुत सारे तेज और विभिन्न प्रकार की तत्व अपने आप आ जाते जैसे कि उसकी वाणी के अंदर सामर्थ्य आ जाता है। अगर इसे समझा जाए तो जब वह कोई बात कहता है तो उसकी जो। कही हुई बात है यानी की भविष्यवाणी है। वह सच में बदल जाती है। यानी सत्य वह होने लगता है इसीलिए। शाप और वरदान उसका फलित होने लगता है।

यही कारण है कि इस तरह की सख्ती के कारण लोग अघोरियों से बहुत डरते हैं क्योंकि अघोरी क्रोधित होकर जब किसी को श्राप देते हैं तो वह जरूर फलित हो जाता है। अगर कोई सच्चा और सिद्ध अघोरी है तो? हालांकि आजकल समाज में अघोरी बनकर बैठे हुए कई लोग ऐसे भी जो अपराधी होते हैं। और अपने अपराध के बाद बचने के लिए। अघोरियों का ही वेश धारण कर लेते हैं जिससे कि ना तो उन्हें सरकार, नाहीं कोई जनता का व्यक्ति छेड़ पाए और वह गुपचुप तरीके से अपने अपराध के कार्य को करते रहे और इन्हीं की वजह से जो मूल अघोरी लोग हैं, वह बदनाम हो जाते हैं।

यह बातें भी हर व्यक्ति को पता होनी चाहिए कि हमारे को यह भी जानना है कि साधु और राक्षस में क्या अंतर होता है तो जब तक आप किसी को अच्छी तरह परखना ले तब तक उसे साधु मानने की गलती भी नहीं करनी चाहिए। छठी शक्ति जिसको हम

अवगम शक्ति- के नाम से जानते हैं। अवगम शक्ति को सिद्ध करने के बाद अघोरियों को दूसरे की मन की बातें भी पता चलने लगती हैं। उसके अगले और पिछले की पूरी जानकारी होने लगती है। यहां तक कि उन्हें यह भी पता चल जाता है कि उनसे मिलने आया व्यक्ति किस भाव से आया है और तांत्रिक सब्जियों में इसको हम कर्ण पिशाचिनी करण मातंगिनी।

विभिन्न प्रकार के करण के साथ।

इत्यादि शक्तियां इसी का एक अलग स्वरूप है।

क्योंकि यह जब साक्षात सिद्धि में यह चीजें बदल जाती है तब?

साधु या अघोरी को यह सिद्धि अपने आप मिल जाती है और उसके पास आकर के वार्तालाप करने लगती है और उस वार्तालाप की वजह से। जो व्यक्ति है वह बहुत सारी बातों को समझने लगता है और फिर वह कोई भी व्यक्ति जब से मिलने के लिए आता तो उसके विषय में बहुत अच्छी तरह वह बता देता है।

इसके अलावा दिया है और भी बहुत सारी होती हैं जिनको समय के साथ साधक प्राप्त करने लगता है जिसमें उच्च स्तर की सिद्धियां के राशियों के बारे में तो यहां पर वर्णन करना ठीक भी नहीं है। सिर्फ मैं आपको हल्की-फुल्की जानकारी देता हूं जैसे कि वायु गमन सिद्धि यानी हवा में उड़ना।

खेचरी मुद्रा इत्यादि बनाने के कारण और विभिन्न प्रकार के अन्य प्रयोगों की कहानियां प्राप्त होती है। इसी प्रकार जल गमन सिद्धि के ऊपर चल सकने की, हवा पानी के ऊपर रहती है। वैसे ही वह व्यक्ति भी उड़ता हुआ चल सकता है पानी के ऊपर।

जल के अंदर रह सकने की शक्ति अर्थात वह जल के अंदर जाकर के रह सकता है। और पानी के अंदर जाकर के बैठ कर के तपस्या भी कर सकता है। इसके अलावा मनोवांछित स्थान पर प्रकट होने की सिद्धि। जब वह व्यक्ति इच्छा करता है तो आज मान लिया बहुत। बनारस में बैठा हुआ है और उसकी इच्छा है कि वह कालीघाट में पहुंचे तो अगले ही क्षण वह कालीघाट में प्रकट हो सकता है।

इसके अलावा!

किसी भी पदार्थ को प्रकट करने की शक्ति! वह अपनी इच्छा के अनुसार! जब उसकी इच्छा हुई कि कुछ विशेष खाना है। उसके मन में इच्छा है कि मैं।

जलेबी खाओ, वह भी गरम-गरम किसी वक्त या किसी को वह देना चाहता है तो वह बड़े आसानी से इस प्रकार के चमत्कार दिखाता है जिसमें वह जलते हुए चिता का कोई टुकड़ा उठाता है और उसे गरमा गरम जलेबी में बदलकर स्वयं भक्षण करता है और अपनी शिष्यों को भी खिला सकता है। इस प्रकार के दृश्य के व्यक्ति देखता है तो अचंभित हो जाता है और तब वह अद्भुत रूप से उस व्यक्ति के सामने उसके चरणों में के चमत्कार दिखाता है। व्यक्ति तो नियम बंधन के हिसाब से उसकी सिद्धि सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं की जा सकती है। विशेष परिस्थितियों में कभी-कभी कर सकते हैं। अन्यथा सिद्धियां नष्ट होती है जैसे कि यह नियम है। मैं पहले भी बता चुका हूं कि सिद्धियों का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने वाले की सिद्धि अपने आप ही नष्ट हो जाती है।

जब तक कि कुछ विशेष वचन ना हो जैसे कि गुरु परंपरा से कोई सिद्धि प्राप्त है और गुरु का आदेश है कि इससे आप भले कार्य कीजिए, लेकिन कुछ विशेषता थी तब भी वह प्रयोग वह कर सकता है।

ज्यादा करेगा तभी सिद्धि चली जाती है। क्योंकि यह नियम है। क्या उनका सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं?

इसके अलावा।

एक! परकाया प्रवेशन विधि होती है जिसमें हम अपने शरीर से दूसरे के शरीर में जाने की विद्या प्राप्त कर लेते हैं। कभी-कभी!

अघोरी लोग क्या करते हैं कि किसी नव युवक या नवयुवती जो कि अभी अभी मरी हो। लाश पानी में बहाई गई। वह उसको बाहर निकाल कर उसे जीवित कर देते हैं। और?

कभी-कभी वह स्वयं उसी के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और कोई विशेष कार्य कर लेते हैं। उसके बाद फिर से उसके शरीर से बाहर निकल कर अपने पुराने शरीर में वापस लौटा आटे हैं।

दूर दृष्टि अर्थात आप यहां से बैठे-बैठे। हजारों किलोमीटर दूर किसी विशेष स्थान पर घट रही घटना को देख सकते हैं।

तक जैसे कि अभी इस वक्त। किसी विशेष यानी मुंबई में किसी कॉलोनी में क्या घटित हो रहा है आप यहां से बैठे-बैठे! देख सकते हैंलेकिन यह सारी सिद्धियां जो है, यह उच्च स्तर की है जो मैंने मुख्य सिद्धियों के विषय में आपको बताया था।

वह सिद्धियाँ जो है वही मूल में और व्यक्ति को लगभग प्राप्त हो जाती हैं। जो भी अच्छी श्रेणी का साधक है, लेकिन उससे ऊपर उच्च स्तर पर पहुंचने के लिए आपकी कुंडलिनी शक्ति का जागृत होना अनिवार्य है। भीषण तपस्या की आवश्यकता है। साधक पूरी तरह संसार को त्याग चुका हो केवल तभी इस प्रकार की सिद्धियां जागृत होती है। उच्च श्रेणी की सारी सिद्धियां मानी जाती है।

इन के माध्यम से हम अद्भुत चमत्कारों को देख सकते हैं। साधना में ऐसा व्यक्ति शराब।

मुर्गा! बकरा। इन चीजों को जब प्रदान करता है तो उस वक्त उस शक्ति को भी वह रूपांतरित कर देता है। लेकिन? हर की बस की बात नहीं है। साधारण व्यक्ति जब इस प्रकार की साधना करता है तो जब वह बकरे की बलि देता है तो उसे बकरे की बलि की हत्या का पाप भी लगता है और पिशाच शक्तियां उससे मुर्गा देने वालों के लिए सिद्ध होती हैं  विभिन्न प्रकार की शक्तियों से संपन्न साधक करता है। इसकी कुंडली शक्ति जागृत है। यही चीज अलग प्रकार से घटित होती है। इसीलिए कोई इस तरह से कुछ समझ नहीं पाता होता यह है कि जैसे उसने बकरे की बलि दी। बकरा मुक्त होकर के। किसी? विशेष प्रकार के देवीय बकरी में बदल जाता है शरीर की समाप्ति होते ही वह देव तुल्य यानी कि किसी। शक्ति का वाहन! बनकर प्रकट होता है जिसकी बुद्धि देवताओं के समान होती है और वह सेवा में सदैव के लिए उस साधक के साथ हो जाता है। शरीर केवल उसका मरता है क्योंकि वह तो खुद ही पंचभूत से बना था, लेकिन उसकी आत्मा दैवीय तत्व को धारण करती है। इस प्रकार वक्त उस पर कल्याण ही करता है। इसका पाप भी नहीं लगता और यह सिद्धि के रूप में सिद्ध हो जाता है। सदैव उसके कार्यों को करने के लिए तत्पर रहता है।

यह बातें हर एक के लिए अलग-अलग है साधारण व्यक्ति उस चीज को। अपने स्वार्थ के लिए ग्रहण करता है। जबकि एक दैवीय साधक उसी चीज को जनकल्याण और उस!

इसकी बहुत देवियता दे रहा है, उसके लिए ग्रहण करता है और दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। इसीलिए अघोरी साधक हमें चमत्कारिक नजर आते हैं जैसे कि राजा शिवि उन्होंने दान में अपने ही शरीर के अंगों को काट काट कर देना प्रारंभ कर दिया था और इसीलिए इस अवस्था को प्राप्त किए हुए साधक अपने शरीर को भी कुछ नहीं समझते और वह भी अपने शरीर के अंगों की भी बड़े आराम से काट देते हैं। और उन्हें इस चीज से कोई प्रभाव भी नहीं पड़ता है जब सामान्य मन हो जाता है तब पाप मुक्त होता है, सिद्धिवान होता है और शरीर से परे हो जाता है। यह वर्णन था आज का अघोर पंथ में विभिन्न प्रकार की 18 खतरनाक सिद्धियों के विषय में। और उनके चमत्कारों के बारे में।

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