अनुरागिनी यक्षिणी का प्रकट होना सच्चा अनुभव
नमस्कार गुरु जी सबसे पहले आपका विशेष रूप से धन्यवाद गुरु जी मेरे गुरु जी की अभी अभी कुछ दिनों पहले मृत्यु हुई है। इसलिए मैं आपसे गुरु दीक्षा लेना चाहता हूं। आपके कहे अनुसार अगर गुरु जीवित ना हो तो गुरु दीक्षा ली जा सकती है। इसलिए मैं आपसे गुरु दीक्षा लेना चाहता हूं। इसका एक विशेष कारण यह भी है क्योंकि आपके द्वारा आपके इंस्टामोजो अकाउंट में उपलब्ध करवाई गई यह साधना जिसे अनुरागिनी यक्षिणी साधना कहा जाता है। मैंने खरीदी थी और क्योंकि मैं पहले से ही गुरु मंत्र दीक्षा से पूरी तरह से साधना कर चुका था और मंत्रों का जाप भी 25 लाख से ज्यादा था। इसी कारण से अब मेरे मन में इस साधना को करने का पूरा विचार था। अपने गुरु से आज्ञा लेकर मैंने यक्षिणी साधना करने की कोशिश की और जो अनुभव मेरे साथ घटित हुआ है वहीं आज आपको इस ईमेल पत्र के माध्यम से लिख कर भेज रहा हूं। गुरु जी इस पर वीडियो अवश्य बनाएं। यह कहीं भी अन्य प्रकाशित नहीं किया गया है इसकी पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं, गुरु जी आप के बताए गए अनुसार इसकी विधि के लिए पहले मैंने यह सोचा कि अवश्य ही अनुरागिनी यक्षिणी के कवच को सिद्ध कर लिया जाए ताकि यक्षिणी के आने में कोई समस्या ना हो तो मैंने बहुत ही वीरान जंगल में इसकी साधना की थी। उसको कर लेने के बाद में अब मेरे मन में इसे अपनी प्रेमिका बनाकर सिद्ध करने का विचार आया था क्योंकि अनुरागिनी का अर्थ ही प्रेम होता है। इसलिए जिसका अर्थ ही प्रेम हो उसे प्राप्त करने के लिए उसी के मूल स्वरूप को ही धारण करना चाहिए। लोग कहेंगे मां बहन पर मैं कहूंगा नहीं, क्योंकि जो जिसका स्वभाव है उसके अनुसार ही वह व्यवहार भी करता है। इसी कारण से मैंने इन्हें प्रेमिका रूप में सिद्ध करने की कोशिश की थी। आपकी बताई गई विधि से मूर्ति इत्यादि बनाकर मैंने एक घनघोर जंगल में कुटी बनाकर इनकी साधना शुरू की थी। विधि यहां पर मैं नहीं बताना चाहूंगा क्योंकि यह आपका! अपमान होगा और मैं सभी साधकों से यह बात भी कहना चाहूंगा कि आपने चाहे कोई साधना विधि विद्या किसी भी गुरु से प्राप्त की हो। उसकी गरिमा बनाए रखें और किसी के सामने भी स्पष्ट ना करें। केवल अगर अनुभव भेजना चाहते हैं तो गुरु से आज्ञा लेकर या फिर अगर गुरु नही है
तो ऐसे ही मंच पर भेजे जैसे कि यह धर्म रहस्य चैनल है जहां पर आप निश्चिंत होकर के अपनी जानकारी और पहचान छुपाकर पूरी तरह से कोई भी साधना का अनुभव लिख कर भेज सकते हैं। मैंने एक नहीं कई सारे अनुभव के विषय में पता किया है। गुरु जी कभी भी किसी का भी अनुभव और उसकी जानकारी किसी के साथ शेयर नहीं करते हैं। केवल अनुभव में घटित घटना को प्रत्येक जनता तक पहुंचाते हैं ताकि साधना करने वाले के लिए आसानी हो जाए। अब मैं अपने अनुभव पर आता हूं। गुरु जी मैंने गुरु मंत्र, गणेश मंत्र, भगवान शिव के मंत्र और यक्षराज के मंत्र इत्यादि पढ़कर रोजाना साधना शुरू कर दी थी और इस प्रकार मैंने पूरे 1 महीने तक यह साधना की लेकिन सफलता नहीं मिली तो मैंने दोबारा से इसी विधि को फिर से किया। इस बार वर्षा की वजह से वह स्थान बहुत ही गड़बड़ हो गया था। भोजन इत्यादि की बड़ी ही परेशानी हो रही थी लेकिन मुझे। तो साधना करनी ही थी। इस प्रकार मैंने दूसरा चरण भी शुरू किया और 15 ही दिन हुए थे कि अचानक एक रात में बहुत तेज बारिश हो गई जो कुटी मैंने बनाई थी। उस पर इतनी तेज बारिश हो रही थी कि उसमें छेद हो गया और पानी गिरना शुरू हो गया। तब मेरी पूजा का समय हो चुका था। इसलिए मैं साधना करने बैठ गया और पहली बार अपनी आंखों के सामने चमत्कार घटित होते हुए देखा क्योंकि जिस जगह पर मैंने पूजन विधि की सामग्री और मूर्ति इत्यादि रखी थी। उसके सामने बैठने के स्थान की जगह ही ऊपर से छेद हो गया था जहां से पानी तेजी से टपक रहा था और तब मैंने साधना करते वक्त यह समझ लिया कि आज मुझे तो पूरी तरह भीगना ही होगा। लेकिन मैंने साधना ना छोड़ने का निर्णय लिया और ना ही जगह बदलने की कोशिश की क्योंकि मैं जानता था। संसार में कोई भी चीज आसानी से किसी को नहीं मिलती। अगर सिद्धि प्राप्त करनी है तो कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है।
वह वापस चला आया और रोज की तरह साधना की व्यवस्था करने लगा और पूजा शुरू करने ही वाला था कि तभी अचानक से मैंने द्वार पर किसी ने खटखटाया। तब मैंने अपनी झोपड़ी का वह दरवाजा खोला और देखता हूं कि एक अत्यंत ही सजी-धजी स्त्री खड़ी है, जिसके हाथ में कुछ भोजन की सामग्री वगैरह थी। तब मैंने उनसे पूछा, आप कौन है तो उसने कहा, मैं उन्हीं दुकानदार की लड़की हूं। असल में मुझे अपने ससुराल जाना था और मैं सज धज के निकलने ही वाली थी कि तभी एक व्यक्ति ने कहा कि आप तक मुझे भोजन पहुंचाना चाहिए। तब मैंने कहा, चलो ठीक है, पिताजी बीमार है। इसलिए चलो भोजन की सामग्री आप तक पहुंचा देती हूं। आप परेशान मत होइए, तब मैंने उनसे कहा, आप इस जंगल में अकेले नहीं आना चाहिए तब हंसकर कहने लगी, ऐसा नहीं है। देखिए तो पीछे मेरे साथ मेरी और भी सहेलियां है और वहां पर मैंने जब बाहर निकल कर देखा तो वहां पर पांच है और स्त्रियां मौजूद थी। सभी साज और श्रंगार से पूरी तरह भरी हुई थी। तब मैंने कहा, आज तो मुझे देर हो गई है। मैं अपनी पूजा में बैठ जाने वाला हूं। आप भोजन की सामग्री रख दीजिए। मैं स्वयं भोजन निर्मित कर लूंगा। तब वह कहने लगी। अरे साधु महाराज आप परेशान क्यों होते हैं। अब जब यहां तक में आ ही गई हूं तो क्या अपनी सेवा का अवसर भी प्रदान नहीं करेंगे। आप मुझे आपका भोजन स्थान दिखाइए। जहां पर आप भोजन बनाते हैं तब मैंने उनसे कहा देवी मैं पूरी तरह ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहा हूँ । एक सन्यासी के पास स्त्रियों का इस प्रकार से मेरे घर में आना बहुत ही बुरा है और ऐसे में मेरी साधना में मन भी नहीं लगेगा। तब वह हंसकर कहने लगी। आप क्या सब स्त्रियों से ऐसे ही बात? करते हैं आप ऐसा कीजिए। आप अपनी साधना कीजिये और मुझे बस मेरा काम करने दीजिए। मैं अवश्य ही तुरंत भोजन बनाकर आप को संतुष्ट कर दूंगी और आपके साधना पूरी तरह कर लेने के बाद ही मैं यहां से जाऊंगी। तब मैंने कहा, इसकी आवश्यकता नहीं है। आप ऐसा कीजिए भोजन बनाकर चली जाइए और ज्यादा रात ना होने पाए क्योंकि जंगल किसी के लिए भी सुरक्षित नहीं होता है। तब वह कहने लगी। ठीक है जाइए, आप अपना काम कीजिए।
मै अपना काम करती हूं तब वह जाकर भोजन बनाने लगी। मैं साधना करने बैठ गया। जब मैं उठा तो मैंने देखा। पहली बार वहां पर भोजन में कई प्रकार की विधिवत सामग्री रखी हुई थी और तब मुझे एक एहसास हुआ। उस जगह तेज खुशबू भरी हुई थी। वहां पर भोजन की 12 से 13 सामग्रियां रखी हुई थी। इसके अलावा उस जगह पर एक विशेष बात मैंने जो देखी। वह यह थी कि वहां पर एक सिंदूर की डिबिया भी रखी हुई थी। तब मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैंने बाहर जाकर देखा।
तो अचानक से ऐसा लगा जैसे कि सब कुछ गायब सा हो गया है। सामने अजीब सा दृश्य था वहां पर एक बहुत ही सजी-धजी स्त्री अपनी पालकी में बैठी हुई कह रही थी कि मेरे प्रियतम अब आओ तो मैं तो तुम्हारे यहां तक आई थी। मैंने बस कुछ ही क्षण दृश्य अपनी खुली आंखों से देखा होगा और फिर सब कुछ गायब हो गया। मुझे कुछ समझ में नहीं आया और फिर मैं अंदर गया। पूजा क्योंकि मैंने पूर्ण कर ली थी। इसलिए अब मैंने भोजन किया। भोजन बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट और गर्म था। उसको करने के बाद फिर मैं सो गया। तभी एक बहुत ही बुरी बात घटित हो गई। इसी प्रकार साधना के 7 दिन और बीत गए थे कि तभी तक मेरी माता की मृत्यु हो गई जिसकी वजह से लोगों ने मुझे वापस बुला लिया। मुझे अपनी साधना छोड़कर जाना पड़ा लेकिन मैं बिल्कुल इस बात से।
आशान्वित हूं कि यह कोई साधारण बात नहीं थी। निश्चित रूप से अनुरागिनी यक्षिणी ही उस दिन दुकानदार की पुत्री बनकर आई थी और उसके बाद का दृश्य भी उसी ने दिखाया था। भविष्य में दोबारा अगर मौका मिला। इस साधना को फिर से करने की कोशिश करूंगा और इन देवी को सिद्ध करने की कोशिश जारी रखूंगा क्योंकि जब से मैं घर वापस आया, मुझे दोबारा मौका ही नहीं मिला। ऐसे एकांत स्थल में जाकर दोबारा साधना करने का आपका विशेष रूप से धन्यवाद। ऐसी गोपनीय साधनाओं को संसार के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए प्रणाम गुरुजी आपका विशेष रूप से धन्यवाद