अनुरागिनी यक्षिणी सिद्धि का चमत्कारिक अनुभव भाग 1
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम एक यक्षिणी की साधना के अनुभव को लेने जा रहे हैं और इनका नाम अनुरागिनी यक्षिणी है। चलिए पढ़ते हैं इस पत्र को और जानते हैं। इस अनुभव में इनके साथ क्या घटित हुआ था? नमस्ते, गुरुजी, कृपया, मेरा नाम, ईमेल इत्यादि प्रकाशित ना करें। कृपया मेरे पत्र को भी ना दिखाएं। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी कारणवश मुझसे कोई शक्ति रूठ जाए। आप समझ सकते हैं। यह मेरा सत्य अनुभव है और आप के अतिरिक्त इसे कहीं और प्रकाशित नहीं करवाया गया है। नमस्ते गुरुजी, मैं अपने अनुरागिनी यक्षिणी साधना के अनुभव को आज आपको बताना चाहता हूं। मैंने यह साधना काफी लंबे समय तक की तकरीबन मुझे 1 वर्ष इस साधना को करते हो चुका है। फिर भी मैं नहीं रुका और मुझे इसमें सफलता भी मिली, लेकिन कई बार मेरी साधना नष्ट भी हुई। गुरु जी आपने इस साधना का विधान इंस्टामोजो पर उपलब्ध करवा रखा है इसीलिए मैंने! इस साधना को करने के लिए बहुत पहले ही मन बना लिया था। गुरु जी यह सभी प्रकार की सिद्धि देने वाली शक्ति है। लेकिन? कोई भी साधक अगर इसकी साधना करना चाहता है तो मेरी तरह किसी भी महीने से शुरू ना करें बल्कि उसके लिए अच्छा होगा कि वह आषाढ़ नवरात्रि यानी गुप्त नवरात्रि से शुरू करें और इससे भी पहले भगवान शिव और यक्षराज कुबेर की साधना अवश्य कर ले। आपने अपने इन्स्टामोजो में जो मंत्र बताया है वह सर्वोत्तम है। क्योंकि इस बारे में मैंने यक्षिणी से वार्तालाप कर रखा था। तब मुझे पता चला कि आपका दिया गया मंत्र बहुत उत्तम है। गुरु जी इस साधना को शुरू करने से पहले अपने गुरु से आज्ञा ले ले। जैसे कि मैंने अपने गुरु से ली थी। यानी आपसे! किंतु गुरु जी! इन सब बातों के विषय में और साधना को किसी को नहीं बताना चाहिए। साधक सबसे पहले अपने गुरु मंत्र का अनुष्ठान पूरा कर लें तभी इस तरह की साधना शुरू करें। साधक के पास लाल वस्त्र और लाल कंबल का आसन होना चाहिए। यह जरूरी है बाकी बातें हैं, वह पीडीएफ से जान सकता है। गुरु जी इस प्रकार से जैसे कि आपने विधि में बताया था। मैंने बिल्कुल वैसे ही इस साधना को शुरू किया था। तो सबसे पहले तो मेरे लिए समस्या थी कि मैं यह साधना कहां करूं? क्योंकि मेरे लिए कोई विशेष स्थान उपलब्ध नहीं था तो मैंने! अब सोचा कि मुझे यह साधना घर पर ही करनी चाहिए। तो मैंने एक कमरे में इस साधना को करने के विषय में सोचा। लेकिन उस कमरे में सभी लोग आते थे। इसलिए मैंने घरवालों को कहा कि मैं कुछ विशेष पूजा और अनुष्ठान करने जा रहा हूं। कृपया इस दौरान मुझे बिल्कुल भी डिस्टर्ब ना करें। और मेरे कमरे में किसी का भी प्रवेश वर्जित रहेगा। मैंने यह बातें जब घर वालों को कहीं तो सबसे पहले मेरी पत्नी और बाकी लोग इस बात से नाराज हो गए। मेरे सामने कोई विकल्प नहीं था तो मैंने गुस्से से यही कहा, मैं घर छोड़कर चला जाऊं। क्या आप लोग यही चाहते हैं इसलिए अगर मैं कोई साधना करने जा रहा हूं तो कृपया कान ना लगाएं और ना ही मुझे किसी भी प्रकार से डिस्टर्ब करें। मैं इसी घर में रहकर रोज खुद अपना भोजन बनाकर। यहां बैठकर साधना करूंगा। मैं यहीं पर सो जाया करूंगा और इस कमरे में कोई भी ना जाए। सभी को मैंने यह बातें बता दी थी तो सभी ने मेरी बातें मान ली। और मैं अपनी साधना अब शुरू कर सकता था। मैं कमरे को अंदर से बंद कर लेता था और अगले दिन जब घर से बाहर निकलता तो उस कमरे में ताला डाल देता था। घरवाले सोचते थे पता नहीं कौन सी तांत्रिक साधना का फितूर इसके ऊपर चढ़ चुका है? यह पूरी तरह पागल हो रहा है। तब भी मैंने उनकी बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। कहते हैं ऐसे में अपनी पत्नी से दूर रहना चाहिए क्योंकि ब्रम्हचर्य सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान है। इसी कारण से मैं भोजन भी अपने लिए स्वयं ही बनाता था। अपने काम से लौटकर आता और स्वयं अपने लिए भोजन बनाता है और साधना में लग जाता था। इस प्रकार मैंने यह साधना शुरू कर दी। मैं पहले ही कुबेर जी और भगवान शिव की आपकी बताई गई विधि से साधना कर चुका था। अब चरण था अनुरागिनी की शुरुआत करने का। मेरे मन में एक प्रश्न था कि आखिर मैं यक्षिणी को किस रूप में धारण करूंगा? तब मेरे मन में ख्याल आया कि मेरी तो पत्नी है। अब ऐसे में मैं किस रूप में उसे बुलाऊं? तो मैंने उसे मित्र रूप में साधने के लिए स्वयं संकल्प लिया था। क्योंकि मुझे पता था एक दोस्त ही दूसरे दोस्त को समझ सकता है। दोस्त प्रेमिका भी हो सकती है और माता के समान कल्याणकारी भी। बहन के समान समझाने वाली भी। इसीलिए मैंने उससे मित्र रूप में साधने की कोशिश की। गुरुजी साधना के दौरान मुझे विभिन्न प्रकार के अनुभव हुए। कुछ विशेष अनुभव मैं आपको नहीं बता सकता लेकिन जो खतरनाक अनुभव हुए हैं। जिन से साधकों को सावधान रहने की आवश्यकता है, उन्हें मैं बता रहा हूं। एक दिन जब मैं साधना कर रहा था तो मेरे दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज जोर जोर से आने लगी। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। और फिर भी वह दरवाजे पर खटखटाहट नहीं बंद हो रही थी। मुझे लगा घर वाले अब मुझे परेशान कर रहे हैं। मुझे साधना नहीं करने दे रहे। जब वह दरवाजा पीटना बंद नहीं हुआ तो मुझे लगा लगता है। घर में कोई समस्या आ गई है। इसीलिए शायद यह लोग मेरी साधना की परवाह न करते हुए मुझे बुलाना चाहते हैं। तो मैंने बीच में साधना रोककर जाकर दरवाजा खोला। देखा तो वहां कोई भी नहीं था। चारों ओर घूम कर देखा सभी सो रहे थे। तब मुझे समझ में आया कि मेरी साधना भंग कर दी गई है। एक बार अगर साधना बीच में रुक जाए टूट जाए या ब्रह्मचर्य खंडित हो जाए। इनसे साधना भंग होना ही मानते हैं। इसीलिए मुझे उस दिन से साधना फिर से शुरू करनी पड़ी। क्योंकि मैं समझ चुका था। यह कोई शक्ति थी जिसने मेरा दरवाजा पीटा ही इसीलिए था ताकि मेरी साधना को वह भंग कर सके। अब मैंने दोबारा से फिर साधना शुरू की। इस बार जिस स्थान पर मैं बैठा था, वहां पर चारों तरफ चीटियां इकट्ठा हो गई। मैं उन्हें रोज हटाता था। लेकिन वह वहां से नहीं भागती थी। और रोज वहां पर बहुत संख्या में चीटियां आ जाती थी। एक दिन तो साधना करते समय हद ही हो गई। चीटियों ने मेरे शरीर के अंदर मेरे कपड़ों के माध्यम से घुसना शुरू कर दिया। और एक चींटी ने मेरे लिंग पर काट लिया। दर्द असहनीय था, लेकिन फिर भी मैं साधना कर रहा था लेकिन जब लगा कि कई सारी चीटियां मेरे शरीर के अंदर घुस रही हैं तो मुझे साधना छोड़कर वहां से उठना पड़ा। मैं तेजी से उठा अपने शरीर को झाड़ा। कपड़ों को झाड़ा और फिर नहाने के लिए चला गया। इस प्रकार यह साधना उस दिन भंग हो गई। इसीलिए दूसरी बार जब साधना भंग हुई तो मुझे फिर से साधना शुरू करनी पड़ी। लेकिन जितना ज्यादा साधना भंग हो रही थी, मेरा गुस्सा उतना ही ज्यादा प्रबल होता जा रहा था। और मेरा! अब साधना में अब तीव्रता से लगता था। इसीलिए चाहे कुछ हो जाए, चाहे मुझे हजार बार प्रयास करना पड़े। मैं साधना छोड़ने वाला नहीं था। इसीलिए मैंने वह साधना जारी रखी। इसी प्रकार यह मेरा तीसरे महीने का तीसरा प्रयास था। जब अचानक से 1 दिन मैं जब साधना कर रहा था तो वहां का सारा दृश्य बदल गया। मैंने अपने आप को एक श्मशान में साधना करते हुए पाया। और वहां पर थोड़ी दूर में ढोल नगाड़े तेजी से बज रहे थे। मुझे इस बात का ध्यान ही नहीं था कि मैं घर में बैठकर साधना कर रहा हूं। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि माया की रचना इतनी तीव्र होती है। और कोई साधक इस बात को नहीं समझ पाता है। उस वक्त क्योंकि वह तो साधना में ध्यान भंग नहीं कर सकता। इधर उधर नहीं देख सकता। याद रखें जितनी देर मंत्र जाप चले। उतनी देर आंखें बंद होना आवश्यक है। आपने ही बताया है और अगर आंखें बंद होगी तो ध्यान लगेगा और ध्यान में आप ऐसे खो जाते हैं कि आपको पता ही नहीं रहता कि आप कहां पर साधना कर रहे थे? अगर खुद पर ध्यान देंगे तो कभी साधना में सफल नहीं हो पाएंगे। साधना में रमना पड़ता है। यह मै समझ चुका था। तब गुरु जी मुझे ऐसा लगा कि ढोल नगाड़े जहां से बज के आ रहे हैं। उधर से कई सारे बैलों के झुंड आते हुए दिखाई पड़ रहे थे। इसके साथ कई खोपड़ी वाले भूत आ रहे थे। एक ऊंट के ऊपर बैठी ने एक महा सुंदरी। मेरी ओर आ रही थी। लेकिन वह इस प्रकार बैठी थी जैसे उसने लाल रंग के वस्त्र पहने हो। मुंह में पान खाती हुई नाक में नथनी पहनी हुई लंबी भुजाएं। हाथों की अंगुली की बाहिश्त बड़ी-बड़ी एक हाथ में कृपाण और एक में मुंडमाला भयंकर रूप में। लेकिन वह बहुत अधिक सुंदर थी। चलती चली आ रही थी। उसके बाद क्या हुआ, मैं आपको अगले भाग में बताऊंगा? नमस्कार गुरु जी! संदेश-तो देखिए यहां पर इन्होंने अनुरागिनी यक्षिणी की साधना का विधान और अनुभव बताने की चेष्टा की है। अगले भाग में हम जानेंगे आगे क्या घटित हुआ था तो अगर आपको यह वीडियो पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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