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उग्रप्रभा योगिनी साधना

(उग्र प्रभा योगिनी साधना)
नमस्कार दोस्तों आज मैं एक बार फिर आपके लिए योगिनी साधना लेकर आया हूं योगनियो की  संख्या अनंत मानी जाती है यह बहुत ही ज्यादा है लेकिन मुख्य रूप से 64 योगिनी है, और इन्ही चौसठ योगिनीयो  मैं से आज मै जिस योगिनी को आपके लिए लेकर आया हूँ  उनका नाम उग्र  प्रभा है ये शुक्र शक्ति की प्रतीक भी मानी जाती है l

शुक्र ग्रह से इनका तात्पर्य माना जाता है सात्विक शक्ति रूप में भी और तामसीक गूरू होते हुए भी सात्विक शक्ति के रूप में भी इनकी साधना और उपासना मानी जाती है क्योंकि योगियों का मूल माता काली से उत्पन्न है, तामसिक गुरुदेव द्वारा बताया गया इनकी साधना का तरीका सात्विक माना जाता है, इसलिए इन्हें अच्छी योगिनी की संज्ञा दी जा सकती है इनकी साधना करने के ऐश्वर्या आनंद निश्चित रूप से प्राप्त होता है और जीवन में सभी प्रकार के सुख सुविधाओं के साधन आने लगते हैं शक्ति का प्रतीक मानी जाती है l

शुक्र का मनुष्य में निर्माण अधिक होता हैं इस वजह से ये  शुक्र ग्रह से प्रभावित शक्ति के रूप में स्थापित मानी जाती हैं, इनकी साधना से अगर किसी का शुक्र का कमजोर है तो भी वह मजबूत हो जाता है और अगर किसी का शुक्र ग्रह मजबूत हो जाए तो उसके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं रहती है, उसके भौतिक जीवन में संपन्नता व्याप्त हो जाती है धन स्त्री सुख वाहन आदि समस्त संपन्नता सब कुछ प्राप्त हो जाता है देवी की कृपा जो चीजें से नहीं प्राप्त हो रही होती वह सब कुछ प्राप्त होने लग जाती इसलिए इसलिए इनका वर्णन अधिक शुभ माना जाता है l

उग्र प्रभा देवी की साधना में आपको ऐसे स्थान का चयन करना होता हैजहाँ कोई ऐसा मंदिर हो जो  उजडा हुआ हो  जहां दूर-दूर तक जन आबादी ना हो, घर में यह साधना नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस साधना में आपके ऊपर चंद्रमा के किरणों का पडना आवश्यक है, जब आप साधना शुरू करते हैं तब पूर्णिमा होनी चाहिए और जब साधना को पूर्णाहुति देगा समाप्त करेंगे तभी पूर्णिमा होनी चाहिए इतने दिनों तक लगातार आपको उनकी  साधना करनी होती है इनकी  साधना को रात्रि के 9:00 बजे से शुरू कर सकते हैं और याद रखिए कि आपके ऊपर चंद्रमा की किरणें पड़ती रहनी चाहिए l

ऐसा मंदिर जो पुराने जमाने में ऐसे छोटे मंदिर होते हैं थे जो खुले होते थे या यूं कहिए कि बाहर बैठ जाइए मंदिर के मुख्य द्वार पर जहां कभी अब पूजा ना होती हो ऐसा उजड़ा हुआ प्रदेश हो, वन हो सकता है, वन प्रदेश हो सकता है, पहाड़ हो सकता है, पहाड़ों में ये साधना विशेष फलदाई मानी जाती क्योंकि वहां जो भी मंदिर बनते हैं पहाड़ की चोटियों पर होते हैं , ऐसे स्थान पर इनकी साधना को बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है वहां जो सिद्धि प्राप्ति के लक्षण है वह जल्दी प्राप्त होते हैं और सिद्धि भी जल्दी प्रकट होती है अगर देवी कि आप वहां साधना करते हैं और जो वहां छोटे मंदिर होते हैं, आप वहां बैठकर साधना आराम से कर सकते हैं l

बहुत ही छोटे छोटे मंदिर पहाड़ों की चोटियों पर बनाए जाते थे पहले तो यह परंपरा वहां स्थापित रहती है इसलिए योगियों का वह स्थान हो जाता है लेकिन ध्यान रहे ऐसे ही मंदिर का चुनाव करना है जहां पूजा ना होती अकेला एकल स्थान हो ऐसी स्थिति अगर ना हो तो आप सहज रूप में कोई मंदिर बना सकते हैं और उस मंदिर में ना आपने पूजा की हो और ना किसी ने पूजा की हो ऐसे स्थान का चयन कर सकते हैं वह बस एकांत में होना चाहिए जहां कोई व्यक्ति ना जाता हो,ऐसे जगह पर स्थापित होना चाहिए तो आपको निश्चित रूप से लाभ होगा इस तरह की साधना करने से पहले आप ऐसी जगह का चुनाव कर लीजिए l

उसके बाद सफेद धोती जो नीचे पहन कर साधना करे अगर पहनना  चाहे तो सफेद बनियानी पहन सकते हैं या कोई सफेद कपड़ा पहन सकते हैं और इसके लिए आपको सफेद रंग के आसन पर विराजमान होना होगा, सफेद रंग का कंबल आसन के लिए  ले सकते हैं और माला स्फटिक  की या अगर स्फटिक  की माला नहीं है, तो सफेद हकीक की माला ले सकते हैं और उससे आप ये साधना कर सकते हो, इस प्रकार आपका वस्त्र ऊपर से नीचे तक का सफेद होना चाहिए सामने दीपक जलाएंगे और देवी की कोई मूर्ति बनाकर रख लेगे   या किसी प्रकार के किसी सुंदर नारी की प्रतिमा किसी कुम्हार से बनवा लेगे और उसको सामने स्थापित कर लीजिए l

उसके बाद प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और दीपक तब तक चलते रहना चाहिए जब तक आप साधना कर रहे हो और इस प्रकार से आप साधना शुरू कर सकते हैं, मैंने कहा पूर्णिमा के दिन से शुरू करेंगे और वहां बैठकर साधना शुरू करेगे, जन शून्य स्थान पर ही है साधना की जाती है घर पर यह साधना नहीं की जा सकती, घर में या ऐसी जगह पर यह साधना नहीं की जाती है जो कि बंद हो  एकदम खुले स्थान पर साधना होनी चाहिए ताकि जब कभी भी देवी प्रगट हो तब आप उनको खुली आंखों से दर्शन कर सके और वह स्थान भी पवित्र होना चाहिए लेकिन उस जगह लोगों का आना-जाना पूरी तरह से बंद हो यह बहुत ही अनिवार्य आवश्यक बात है l

साधना में जैसा कि होता है कि आप तीनों रूपों में देवी को सिद्ध कर सकते हैं मां बहन पत्नी के रूप में जैसा आपकी इच्छा हो उस प्रकार और बाद में देवी आपको सुख संपत्ति कीर्ति योवन इस प्रकार की शक्तियां देने मे देवी अधिक समर्थ मानी जाती है बाकी जो देवी का मंत्र है वह इस प्रकार है- ओम  ऐ ह्री श्री श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा 

इसी मंत्र को आपको जपना है अब इसका कितना जाप करना है यह सवाल उठता है़, तो आप कम से कम इस मंत्र की 51 मालाओं का जाप करेंगे और लगातार तब तक जाप करना है जब तक एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा ना आ जाए, पूर्णिमा भी  शुभ मुहूर्त वाली होनी चाहिए जब शुरुआत करेंगेl साधना को  ऐसे समय में बिल्कुल नहीं करेंगे जब बरसात हो, क्योंकि इससे साधना खंडित हो सकती है इस बात का ध्यान रखना होता है इस प्रकार जब देवी की साधना करते हैं तो देवी का प्राकट्य होता है हां यह आवश्यक है पहले गणेश मंत्र फिर गुरु मंत्र फिर शिव मँत्रा का जाप और उसके बाद शुक्र ग्रह के लिए शुक्राचार्य के भी मंत्र का एक माला जाप करना आवश्यक होता है l ओम ड्रां ड्रीं ड्रौं सह शुक्राय नमः।। यह शुक्र देवता का मंत्र है l

जब आप तीनों माला जाप कर लेंगे उसके बाद इसका एक माला जाप करेंगे यह करने के पश्चात ही आप उग्र प्रभा योगिनी की साधना के लिए बैठना, भोजन में आप दूध और खीर के पदार्थों का ही ज्यादा सेवन करेंगे और बाकी चीजों का सेवन नहीं करेंगे, इससे आपको सिद्धि मिलने में आसानी रहती है, अगर आप कोई और भोजन करेंगे तो देवी आपसे इतनी प्रसन्नता नहीं रख सकती इस चीज का ध्यान रखना है आपको कि दूध और खीर  यानी कि आपको सफेद चीजों का ही भोजन करना है जब तक कि आपकी साधना जारी रहेगी l

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