उग्र योनिका यक्षिणी साधना
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक अति गोपनीय साधना लेकर आप लोगों के सामने उपस्थित हुआ हूं और यह साधना एक ऐसी गोपनीय यक्षिणी की साधना है जिसकी सिद्धि प्राप्त कर सभी प्रकार के षट कर्म किए जा सकते हैं और सिद्धि होने पर साधक महा बलवान हो जाता है। इस साधना को करने के लिए आपके पास विशेष रूप से गुरु मंत्र की सिद्धि या आपके गुरु द्वारा आपको? साधना की पूर्व विद्या अवश्य प्रदान की गई हो ताकि आपको इसमें परेशानी ना आए क्योंकि जो लोग नए हैं, वह इस साधना को नहीं कर पाएंगे। जो लोग इसके अभ्यस्त हो चुके हैं। केवल वही इस साधना को पूरी तरह कर पाने में सक्षम हो पाते हैं।लेकिन इस साधना के विषय में जो सबसे महत्वपूर्ण बात है आपको एक ऐसी कुंवारी कन्या ढूंढनी है जिसका मासिक धर्म आता हो लेकिन वह कुमारी हो उसका विवाह ना हुआ हो। उस कन्या को पहले आप पूजा करेंगे और विधिवत देवी की तरह उसका पूजन करने के पश्चात जब महावारी का समय उसका निकट हो। तब? उस वक्त उसे एक लाल रंग का कपड़ा देंगे। सूती वस्त्र होना चाहिए और उससे कहेंगे कि अपनी योनि से निकलने वाला जो भी रक्त है, वह उस कपड़े में पोछ्कर मुझे प्रदान कर दे। अब उस कपड़े को आप जब प्राप्त कर लेंगे तो इसी कपड़े से आपकी साधना शुरू होती है इसलिए यह एक कठिन कार्य है और उस कन्या को भी इस बात को आप को समझाना होगा। यह तांत्रिक विद्या के लिए ही किया जा रहा है। अब इसका जो दूसरा चरण शुरू होता है इस साधना में आपको अति एकांत कोई वन या फिर कोई पुराना शमशान या कोई ऐसी खंडहर नुमा जगह हो जहां पर व्यक्तियों का आना जाना पूरी तरह से शून्य हो, चुना जाता है। अब उस स्थान को आप जब आप चयन कर लेते हैं तो वहां पर बैठकर किसी स्थान पर आप सबसे पहले देवी की एक मिट्टी की मूरत बनवा लेते हैं। आप चाहे तो स्वयं भी देवी की मिट्टी की मूरत बना सकते हैं अथवा किसी मूर्तिकार से भी बनवा सकते हैं। मुट्ठी की जो मूरत है उसका स्वरूप देखने में कैसा होगा यह मैंने आपको इस फोटो या इस चित्र के माध्यम से जो मैंने थंबनेल में लगाया है। स्पष्ट कर दिया। आप समझ सकते हैं कि इसमें योनि भाग को विशेष रुप से प्रदर्शित किया गया है। इसीलिए इस यक्षिणी का नाम योनिका है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली यक्षिणी मानी जाती हैं और गुप्त यक्षणियों में शामिल हैं। इनका वर्णन केवल गुरु शिष्य परंपरा में ही बताया जाता है इसके अलावा ग्रंथों में इनका वर्णन नहीं मिलता है। इसी तरह की मिट्टी की मूरत आप जब इसे बना लेंगे इसके बाद इस पर सिंदूर लगाकर देवी का आवाहन करेंगे और कहेंगे कि यहां विराजित है योनिका देवी आप आकर इस मूर्ति में विराजित हो जाएं। इसलिए मैं अब आपको आपके प्रिय वस्तु प्रदान करता हूं और जो कपड़ा आपने उस कन्या के माध्यम से प्राप्त किया था। उसे आप इस मूर्ति के चारों तरफ लपेटकर बांध देंगे। इससे अब वहां पर विराजमान योनिका यक्षिणी। उस मूर्ति में आंशिक रूप से प्रवेश कर जाती है। अब यहां से शुरू होता है साधना का तीसरा चरण। इनके सामने शुद्ध देसी घी का दीपक जला कर के लाल वस्त्र पहन कर। लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठकर आपको साधना करनी है। आपने जो इन की मूर्ति स्थापित की है वह एक बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर स्थापित की गई हो और उन्हें उस? कन्या का वही वस्त्र पहनाया गया है जो कि रक्त से रंजित है। अब यहां से आपको इनके मंत्र का जाप शुरू करना होगा इसके लिए सबसे पहले! आप अपने गुरु से आज्ञा ले ले कि मैं यह उग्र साधना शुरू करने जा रहा हूं क्योंकि यह एक शक्तिशाली और उग्र साधना है और देवी हर प्रकार से भयभीत करने की कोशिश करती है। इस शक्ति का मूल उद्देश्य आपको साधना में डराकर भगाना होता है। जब साधक इस साधना को करता है अगर वह नहीं डरता है तो उसकी दूसरी परीक्षा कामुकता की होती है। उसमें अधिकतर साधक असफल हो जाते हैं। याद रखें किसी भी प्रकार से आप अपना वीर्य नष्ट नहीं कर सकते। ऐसा होते ही आपकी साधना भंग हो जाएगी। इसलिए इसका ध्यान रखें क्योंकि ना सिर्फ यह यक्षिणी बल्कि इसकी सहायक अनुचर शक्तियां भी आकर साधक से संभोग करने की कोशिश करती हैं और तब साधक अगर अपना नियंत्रण खो दें तो उसकी साधना भंग हो जाती है। इस प्रकार आप जब इनकी साधना करना शुरू करते हैं तो सबसे पहले भगवान गणेश के मंत्र का सात बार उच्चारण करें। गुरु मंत्र का उच्चारण करें। भगवान शिव के किसी भी मंत्र का सात बार उच्चारण करें। कुबेर जी के मंत्र का 21 बार उच्चारण करें और इसके उपरांत जिस स्थान पर आप बैठे हैं, उसके चारों तरफ किसी सुरक्षा मंत्र से चारों ओर चाकू से घेरा बना ले और उस घेरे के अंदर बैठकर इस मंत्र का जाप शुरू करें। तो इनका जो मंत्र है वह इस प्रकार से है। ॐ ह्री ह्री उग्र योनिका आगच्छ आगच्छ शीघ्र सिद्धि स्वाहा। मंत्र को एक बार फिर से सुन लीजिए। ॐ ह्री ह्री उग्र योनिका आगच्छ आगच्छ शीघ्र सिद्धि स्वाहा।इस मंत्र का आपको 51 माला प्रति रात्रि 10:00 बजे से साधना करना है। साधना काल में जो घी का दीपक है, वह जलता रहे और यह अखंड दीपक पूरे 25 दिन तक जलना आवश्यक है। 25वीं रात्रि को आप वह कपड़ा जो उनके शरीर पर बंधा है, उसे खोलकर दशांश हवन करें और उस कपड़े को किसी लकड़ी में लपेटकर अंतिम आहुति के रूप में स्वाहा कर दें तो वह वस्त्र उस उग्र योनिका यक्षिणी को प्राप्त हो जाता। इस प्रकार से जैसे ही उन्हें यह वस्त्र प्राप्त होता है, वह यज्ञ कुंड से बाहर निकलकर साक्षात खड़ी हो जाती हैं और तब आपसे आपकी इच्छा पूछती हैं। तब साधक को चाहिए कि वह प्रेम निवेदन करते हुए उन्हें अपनी मित्र पत्नी अथवा प्रेमिका तीनों में से किसी एक संबंध में बांध ले और उनसे कोई निशानी अवश्य प्राप्त करें ताकि जब भी उस देवी को बुलाना हो तो उस निशानी के माध्यम से उनके मंत्र का 11 बार उच्चारण करने मात्र से वह साक्षात वहीं पर प्रकट हो जाए। इसके अलावा अगर साधक उन्हें पत्नी बना लेता है तो साधक के साथ आजीवन प्रत्यक्ष रूप में निवास करती है और इसके लिए यह आवश्यक है कि साधक संसार की प्रत्येक स्त्री से अपना संबंध त्याग दें अथवा मां और बहन के रूप में ही केवल स्थापित करें।सिद्ध हो जाने के बाद यक्षिणी जिस स्थान पर आपको रहने और निवास करने के लिए कहे केवल वही आप रहे और निवास करें क्योंकि वह अपनी सहूलियत के हिसाब से आपको वही रखती हैं जहां वह प्रत्यक्ष रुप में आपके साथ रह सके। इस प्रकार! देवी आपके साथ रहने लगती हैं। इनकी सिद्धि बड़ी प्रबल है और संसार की प्रत्येक स्त्री को आप अपने वश में कर सकते हैं। इनकी सिद्धि प्राप्त होने के बाद स्त्रियों को वशीभूत करके कोई गलत कार्य ना करें, अन्यथा पाप के भागी होंगे। इसके अलावा पर स्त्री से कभी संबंध आप नहीं बनाएंगे अन्यथा आपकी सिद्धि भी चली जाएगी और यह देवी मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, स्तंभन इत्यादि सभी प्रकार के कार्य आपकी इच्छा अनुसार करती रहेंगी। देवी को सबसे ज्यादा प्रिय है किसी भी कुंवारी कन्या का रक्त अगर आप उन्हें यह अर्पित करते हो तो वह बहुत अधिक प्रसन्न होती है। इस प्रकार इस साधना को उग्र योनिका यक्षिणी साधना के नाम से जाना जाता है और इसकी सिद्धि प्राप्त कर साधक बहुत बलवान हो जाता है। माला, आप रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल कर सकते हैं अन्यथा बिना माला के भी इनके मंत्र का जाप किया जा सकता है। 25 दिन तक अखंड दीपक जलना अनिवार्य है। इसकी व्यवस्था करके हमेशा रखें और अपने गुरु से पूर्ण आज्ञा और परामर्श करने के बाद ही इस साधना को करें क्योंकि इस साधना में भयानक अनुभव हो सकते हैं। और साधक अगर इन अनुभवों को सहने में सक्षम नहीं तो अपना मानसिक संतुलन खो सकता है तो यह था एक यक्षिणी का गुप्त विधान जिससे उग्र योनिका नाम की यक्षिणी सिद्ध होती है। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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