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उर्वशी अप्सरा साधना और तंत्र कथा भाग 2

गुरु गंधर कहते हैं। सुनो कपाली उर्वशी का पृथ्वी के कई सारे पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध रहा है। उसने पति पत्नी के समान एक साथ सहवास भी किए हैं। इनमें से मैं तुम्हें उर्वशी और पुरुरवा की कहानी के संबंध में बताता हूं। यह कहानी बहुत ही अधिक प्रसिद्ध है। तभी कपाली ने उनसे प्रश्न किया कि उर्वशी ने जब इतने सारे पुरुषों के साथ संबंध बनाया है तो वह किस प्रकार से शुद्ध हो सकती हैं? इस पर मुस्कुराते हुए। गुरु गंधार ने कहा सुनो कपाली। उर्वशी एक ही स्त्री का नाम नहीं है। स्वर्ग में जाने वाली। उसके बाद मृत्यु पर्यंत विभिन्न लोकों में निवास करने वाली और फिर से जन्म लेने वाली। उस श्रेणी की अप्सराओं को उर्वशी कहा जाता है अर्थात इस ब्रह्मांड में कई सारी उर्वशी मौजूद है। यह शक्ति अप्सरा के रूप में स्वर्ग में निवास करती है। जब कोई साधक इसे सिद्ध कर ले तो यह उसके साथ भी जुड़ जाती है। उर्वशी स्वर्ग को उतरकर। पृथ्वी पर आ जाती है यहां मानवीय रूप में अपने कर्मों अनुसार जीवन जीती है, उसके बाद फिर स्वर्ग लोक में वापस चली जाती है। ऐसे ही पता नहीं ब्रह्मांड में कितने लोक हैं और कितनी सारी उर्वशी मौजूद है? तो अब मैं तुम्हें, उर्वशी की अगली कहानी के संबंध में बताता हूं। कहा जाता है उर्वशी और पुरुरवा पति पत्नी के रूप में साथ साथ रहे थे। पुरुरवा ने जब उर्वशी को देखा तो उसके प्रेम में वह इस प्रकार से। अभिमंत्रित हो गए जैसे कि पिछले जन्म के बिछड़े हुए साथी होते हैं। उन्होंने पूरी कोशिश की कि वह उर्वशी को प्राप्त कर ले। पर यह आसान नहीं था। उन्होंने किसी प्रकार से उर्वशी को प्राप्त कर लिया। उर्वशी पुरुरवा के साथ रहने लगी। लेकिन उर्वशी ने उन्हें एक शर्त दी थी। और वह शर्त यह थी कि किसी भी प्रकार से पूर्व पुरुरवा नग्न अवस्था में उसके साथ ना दिखाई पड़े। जब भी समागम हो तो एक दूसरे के नग्न शरीर को वह ना देखें। जब भी संभोग करें तो अंधेरे में करें। यह बात उर्वशी ने इसलिए कही थी क्योंकि वह जगत में अपनी मर्यादा को कायम रखना चाहती थी। एक अप्सरा के रूप में वह जीवन जी चुकी थी इसलिए मनुष्य के लौकिक व्यवहारों को वह जानती थी। कहते हैं हमेशा अंधेरे में उर्वशी और पुरुरवा समागम करते थे, इनके नौ पुत्र आयु, अमावसु, विश्वायु, श्रुतायु, दृढ़ायु, शतायु आदि उत्पन्न हुए।उनके कुल नौ अलग-अलग नामों के पुत्र हुए थे। काफी समय बीतने पर, स्वर्ग लोक में गन्धर्वों को उर्वशी का ना होना बहुत ही अप्रिय प्रतीत होने लगा। उर्वशी ने यह कहा था कि मेरे साथ मेरे जो दिव्य मेष आए हैं। इनकी रक्षा का भार तुम्हें संभालना होगा। इसीलिए गन्धर्वों ने एक योजना बनाई की उर्वशी के अगर मेष चुरा ले जाएं। तो निश्चित रूप से पुरुरवा को हम दंडित कर सकते हैं और इसी बहाने युक्ति से हम उर्वशी को स्वर्ग वापस बुला सकते हैं। देवताओं ने गन्धर्वों को इस कार्य के लिए नियुक्त किया, गन्धर्वों ने उर्वशी के दो मेष में चुरा लिए। उनको चुराने के कारण उर्वशी बेचैन होकर उस वक्त जब मेषों की आवाज उसने सुनी,उस समय वह पुरुरवा के साथ समागम कर रही थी। यह देख तीव्र स्वर में बोली कि जल्दी से जाकर मेरे मेषो को बचाओ। ध्यान से उतरने के कारण पुरुरवा नग्न अवस्था में ही वहां से भाग पड़ा। उस वक्त नग्न अवस्था में पुरुरवा को उर्वशी ने गन्धर्वों ने सभी देख लिया। क्योंकि गन्धर्वों ने उस वक्त चारों तरफ प्रकाश फैला दिया था जिससे उर्वशी पुरुरवा को नग्न देख ले। उर्वशी की हसरत थी कि जब भी वह पुरुरवा को नग्न देखेगी उसे पृथ्वी को छोड़ कर जाना होगा। जब प्रतिबंध टूटा तो उर्वशी अब स्वर्ग जाने के लिए मुक्त हो गई। पुरुरवा से प्रेम करने वाली उर्वशी अब उन्हें छोड़कर स्वर्ग की ओर निकल पड़ी। पुरुरवा ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन जैसे कि हम जानते हैं कि जो भी वचन होता है उस वचन को भंग नहीं किया जाता। शक्तियां अगर वचन टूट जाए, तो हमेशा के लिए साथ छोड़ देती हैं। और वही हुआ पुरुरवा के साथ।

स्वयं कालिदास ने पुरुरवा और उर्वशी प्रसंग का वैदिक वर्णन बहुत ही अच्छे तरीके से किया है। ऐसा ही वर्णन महाभारत में भी आता है। यह तीसरी कथा है जो उर्वशी से ही संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि देव लोक में सबसे श्रेष्ठ नर्तकी उर्वशी ही थी। इंद्र उसे बहुत ही अधिक प्रेम करते थे। क्योंकि अर्जुन, इंद्रदेव के मानस पुत्र थे इसी कारण से अर्जुन को बुलाकर इंद्रदेव ने शस्त्र और संगीत की शिक्षा देने की बात कही। क्योंकि वह चाहते थे कि उनका पुत्र सभी प्रकार की कलाओं में प्रवीण हो जाए। कहते हैं एक दिन जब चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे। उसी समय वहां इंद्र की सर्व प्रमुख अप्सरा है उर्वशी आई । वह अर्जुन को देखकर मोहित हो गई। अवसर पाकर अकेले में उर्वशी ने अर्जुन से कहा- हे अर्जुन आपको देखकर मेरी कामवासना जागृत हो गई है। मैं आपको पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूं। इसलिए कृपया मेरे साथ बिहार करके मेरी कामवासना को शांत करो। उर्वशी के ऐसे वचन सुनकर अर्जुन बोला- हे देवी हमारे पूर्वज ने आप से विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था। पूर्व वंश की जननी होने के कारण आप हमारी माता के तुल्य हैं। मैं आप से शारीरिक संबंध नहीं बना सकता। मैं आपको माता के रूप में ही प्रणाम करता हूं। अर्जुन की बातों को सुनकर उर्वशी के मन में बहुत ही क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने बार-बार यह प्रयास किया कि अर्जुन उसकी तरफ आकर्षित हो जाए किंतु अर्जुन ने कहा कि वह उसे माता तुल्य मानता है । इस पर क्रोधित होकर उर्वशी ने कहा कि तुम नपुंसक जैसे वचन कहते हो। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम 1 वर्ष तक नपुंसक हो जाओगे। यानी कि दूसरे शब्दों में किन्नर होने का श्राप अर्जुन को मिल गया। यह कहकर उर्वशी क्रोध से वहां से चली गई। इस घटना के बारे में जब इंद्र को ज्ञात हुआ तो वह अर्जुन से बोले – तुमने जो व्यवहार किया वह तुम्हारे योग्य ही था। उर्वशी श्राप, ईश्वर की इच्छा है। यह श्राप तुम्हारे अज्ञातवास के समय में काम आएगा। और अपने 1 वर्ष के अज्ञातवास के समय में जब तुम किन्नर बनकर रहोगे तो तुम्हारी रक्षा होगी । इसी कारण से 1 वर्ष तक अर्जुन स्त्री के रूप में किन्नर स्वरूप में रहे थे। इस प्रकार से यह प्रमुख कथाएं मैं तुम्हें बता दी हैं । इस प्रकार से तुम समझ सकते हो कि उर्वशी न सिर्फ सौंदर्य में अद्वितीय है। उसकी कोई बराबरी नहीं करता वह शक्ति में और सामर्थ्य में भी बहुत ही अधिक है। वह बड़े से बड़े देवता को अपने वशीभूत कर सकती है । किसी भी मनुष्य को कितना भी बड़ा श्राप या वरदान दे सकती है। मूल रूप से वह सब कुछ देने में समर्थ है। इसलिए ऐसी उर्वशी को प्राप्त कर तुम बहुत ही शक्तिशाली हो सकते हो। इस प्रकार गुरु से आज्ञा मिल जाने पर, कपाली ने कहा अब मुझे वह गुरु विधि बताइए जिसके माध्यम से मैं इस अप्सरा को प्राप्त कर सकता हूं। गुरु ने कहा ठीक है। अब मैं तुम्हें वह विधि बताता हूं जिससे तुम इस अप्सरा को प्राप्त कर लोगे। तीसरे भाग में हम लोग जानेंगे अप्सरा को सिद्ध करने की विधि गुरु ने क्या बताई और उनके साथ आगे क्या घटित हुआ? नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स में मैंने लिंक दे रखा है वहां से आप इस साधना को ख़रीद सकते हैं खरीद सकते हैं और बस मैं इतना कहूंगा कि इस साधना को पूरी तरह से गोपनीय रखना है और इसके बारे में किसी से कोई वर्णन नहीं कीजिए । क्योंकि ग्रंथों में यह कहा गया है कि इसे पूरी तरह से गुप्त रखना चाहिए और केवल और केवल अपने शिष्य को ही इसके बारे में बताना चाहिए। किसी अन्य पुरुष को कभी नहीं बताना चाहिए। जो इस साधना को करना चाहता है केवल वही इस साधना को जाने इसके अतिरिक्त कोई नहीं। तो नीचे क्लिक करके आप मेरे इंस्टामोजो अकाउंट में जा सकते हैं और वहां से ही साधना के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तो यह था भाग 2 अगले भाग 3 में हम लोग जानेंगे कि आगे क्या घटित हुआ था? आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

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