नमस्कार गुरुजी,
मैं आपके चेनल “धर्म रहस्य” को काफी वक्त से देख-सुन रहा हूँ। आपके चेनल पर बताये जाने वाले एक्सपीरियंस मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। शुरुआत में, मैं आपके चेनल को सिर्फ अपने मनोरंजन के लिये देखता था। लेकिन लोगो द्वारा शेयर किये गये अनुभवो को सुनकर मुझे भूत प्रेत, तन्त्र मन्त्र पर विश्वास होने लग गया। गुरुजी मैं एक मुस्लिम हूँ लेकिन मैने कभी किसी दुसरे मजहब के भगवान और देवी-देवताओ का मजाक नही बनाया क्युंकि क़ुरान में हमे सख्त तौर पर दुसरे मजहब को बुरा-भला कहने के लिये मना किया गया हैं। इसी वजह से मैं भी अपने अनुभव को आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। मुझे नही पता कि ये कोई अनुभव भी हैं या बस मेरे मन का वहम, इसके बारे में आप ही बताईयेगा। अगर आपको मेरा अनुभव अच्छा लगे तो आप इसपर वीडियो बना सकते हैं। मैं अपने अनुभव को लेकर कहना चाहता हूँ कि ये “8 मार्च 2021” सिर्फ ओर सिर्फ “धर्म रहस्य चेनल” को भेजा जा रहा हैं, इसके अलावा ये कही भी प्रकाशित नही किया गया हैं और इसकी जिम्मेदारी में लेता हू।
ये बात साल 2010 की हैं, हम तीन घनिस्ठ दोस्त थे। मेरा नाम “अली एश अब्राहम” हैं। बाकी दोस्तो में एक का नाम हितेश हैं और दुसरे का नाम सुरेश हैं। हम उदयपुर शहर से साठ किलोमीटर दूर एक बड़े कस्बे के रहने वाले हैं। हमारे बी-कोम फाइनल ईयर के एग्ज़ाम शुरु होने वाले थे। कूल 6 या 7 पेपर होने थे। हमारा एक्ज़ाम सेंटर उदयपुर शहर के बी-एन कॉलेज में था और टाईम सुबह के 7 बजे का था। हितेश, उसके कजिन भाई के साथ, पहले से ही उदयपुर में रुम किराये पर लेकर रह रहा था। उसने हमसे कहा कि सुबह-सुबह बस पकड़कर आने से अच्छा हैं कि उससे पहले की शाम को मेरे यहाँ आ जाओ। हम रात भर पढाई करेंगे और सुबह आराम से एक्ज़ाम देकर आ जाएंगे। मैने ओर सुरेश ने उसकी ये बात मान ली। और हम एक्ज़ाम-डे से पहले की शाम को उसके कमरे पर चले जाते थे। हमारे कस्बे का ही एक और दोस्त मंगल भी हमारे साथ उसके कमरे पर आता था। लेकिन वो सिर्फ मजे करने के लिये आता था। अब हम टोटल पांच लोग हो गये थे। हम उसके रुम पर पढ़ते कम थे और इधर-उधर की बाते ज्यादा करते थे। मुझे छोड़कर बाकी सभी दोस्त सिगरेट पीने के बहुत आदी थे और मुझे भी ये गंदी आदत इन्होने ही लगाई। यहां रात रूककर, थोड़ी बहुत पढ़ाई करके, सुबह जैसे-तैसे हम तीनो एक्ज़ाम दे आते थे और तब तक बाकी के दोनो दोस्त रुम पर ही रूकते थे।
अब मैं आपको उस घर और आसपास के एरिया के बारे में बता देता हूँ। ये घर एक जैन परिवार का था। इसमे शायद चार-पांच लोग ही थे। ये ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और हम फ़र्स्ट फ्लोर पर। ये घर उदयपुर के “यूनिवर्सिटी रोड़” के पीछे नाकोड़ा नगर में हैं। मुझे पक्का उस एरिया का नाम याद नही हैं, लेकिन उस तरफ एक जैन मंदिर हैं और उसके पीछे की गली में ये घर हैं। ये काफी पोर्श एरिया हैं और ये घर गली के काफी अन्दर हैं और आगे के दो-तीन घर के बाद ये गली बन्द हो जाती हैं और दिन का समय हो या रात का समय, ये गली पूरी की पूरी सुनसान ही रहती है। आज की तारीख में ये घर चार मंजिला हैं लेकिन हमारे एक्ज़ाम टाईम के वक्त इसका काम चल रहा था। हर तरफ ईंटे-सीमेंट, फावड़ा ओर सम्बंधित सामान पड़े रहते थे। ये घर इस एरिया का सबसे उंचा घर था। इस घर के सामने जैन मंदिर की उंची उंची दीवारे थी, दायें बायें तरफ पड़ोसियों के घर और पीछे की तरफ बहुत बड़ी खाली जगह थी जिसमे आस-पास की सोसायटी वाले कचरा फेन्कते थे।
सुरेश, मंगल और मैं, एक्ज़ाम से पहले की शाम को हितेश के रुम पर गये। हमने थोड़ी बहुत पढ़ाई की, खाना खाया और फिर हम छ्त पर सिगरेट फूंकने चले गये और फिर इधर उधर की बाते होने लगी। हम सभी दोस्त छत की टंकी पर बैठकर बाते कर रहे थे। रात के 12 बज चुके थे और इतनी उंचाई से हमे वो पुरा एरिया साफ साफ दिखाई दे रहा था। इस घर की गली को छोड़कर पुरे एरिया की लाईट जलती थी। हम बाते कर ही रहे थे कि अचानक हमे तेज खुशबू आने लगी। हम आपस में बात करने लगे की इतनी तेज खुशबू कहाँ से आ रही हैं। हमे लगा कि शायद किसी ने अगरबत्ती या लोबान जलाया हैं, लेकिन खुशबू इतनी तेज थी जैसे की हमारे सामने रखकर ही जलाई हो। फिर हमने एक दुसरे कहा कि इतनी देर रात को कौन अगरबत्ती या लोबान जलाएगा। और हम तो इतना उपर बेठे हुए हैं कि शायद ही वहां तक कोई खुशबू आए। हितेश के कजिन ने हम सबको चुप रहने का इशारा किया और कहा कि कोई अच्छा फरिश्ता या एन्जिल यहां से गुजर रहा हैं और ये उसी का अहसास हैं। इस पर मंगल ने इस खुशबू वाले अहसास का टाईम नोट कर लिया। ये टाईम था “12 बजकर 7 मिनट”। हम कुछ देर चुप रहे फिर इस बारे में बात करने लगे। हम वहां करीब डेढ़-दो घन्टे ओर रुके फिर नीचे आकर सो गये और सुबह एक्ज़ाम देने चले गये। एक्ज़ाम देकर हम सभी दोस्त इधर-उधर घुमे और बाद में मैं, सुरेश और मंगल बस में बेठकर गांव वापस आ गये। हितेश उसके कजिन के साथ रुम पर चला गया।
इसी तरह दिन गुजरते गये, हम सभी दोस्त एक्ज़ाम-डे से पहले रुम पर आते, मस्ती-मजाक, पढ़ाई करते। छत पर भी सिगरेट पीने जाते। और गुरुजी आप यकिन नही करेगे कि 12 बजकर 7 मिनट पर हमे हमेशा वही खुशबू आती। करीब एक मिनट तक वो खुशबू आती रहती और हम सब यही दुआ करते की हम लोग अच्छे इन्सान बने और सबकी मदद करे। गुरुजी इस अहसास की फीलिंग्स को मैं शब्दो में बयाँ नही कर सकता कि हमे कितना सुकून मिलता था और कितना अच्छा लगता था।
खैर अब बुरा अहसास भी आया जिसको सोच-सोचकर मेरा दिमाग खराब हो जाता हैं। और कभी-कभी तो ऐसा लगता हैं कि शायद मैने कोई सपना देखा होगा। लेकिन ये सपना नही था।
आखिरी एक्ज़ाम रह गया था। मंगल की तबियत खराब होने की वजह से हमारे साथ उदयपुर नही आया। मैं और सुरेश ही रुम पर गये। उस दिन शाम को मकान मालिक की छोटी लड़की और उसके पिता सड़क के सामने वाली दीवार पर, एक कुतिया के घर में पड़े बच्चो को देख रहे थे। हम सब भी वहां आये। हमे पता चला कि इस कुतिया ने चार बच्चो में से एक बच्चे को खा लिया क्युंकि किसी ने भी इनको खाना नही डाला था। मकान मालिक भी परिवार के साथ कही बाहर गये थे। और ज्यादातर बार मकान मालिक की लड़की ही इनको खाना डालती थी। अब इतने दिनो तक इस कुतिया को और इसके बच्चो को किसी ने खाना नही दिया था। शायद इसिलिए कुतिया ने अपने बच्चे को खाया होगा। खैर, मकान मालिक की लड़की उनको वापस खाना खिलाती हैं।
हम सब कमरे में आ गये। मैने इस बारे में ज्यादा कुछ नही सोचा लेकिन हितेश कुतिया के बच्चे खाने वाली बात को कई बार दोहराता रहा। शाम को हितेश का कजिन खाना खाने के बाद जल्दी सो गया और सुरेेेश की तबियत भी सही नही लग रही थी तो वो भी सो गया। अब हम दोनो ही बचे।
मैं सिगरेट का पुरा डब्बा लेकर आया था। और किसी भी हाल में इस रात के मजे को नही छोड़ना चाहता था। हमने कमरे पर ही कुछ देर पढ़ाई की। हितेश की भी तबियत भी सही नही लग रही थी। वो ना तो पढ रहा था, ना कुछ बात कर रहा था। मुझे ऐसा लगा की शायद वो कांप रहा हो। लेकिन मेने उस वक्त इतना ध्यान नही दिया।
रात के 11.30 बज गये थे। मेने हितेश को बोला की चलो ऊपर चलते हैं। एक बार तो उसने सुना ही नही। मैने दुसरी बार बोला तो उसने मुझे ये कहते हुए मना कर दिया कि, आज उसका ऊपर जाने का मन नही हैं। मैने उससे पुछा कि क्या बात हैं? सही से बताओ तो उसने कुछ नही कहाँ। लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था, मुझे तो बस उपर जाना था और सूट्टा मारना था। मैं उसको जबरदस्ती ऊपर ले गया। वो बार-बार मुझे ऊपर जाने से मना करता रहा और बोलता रहा कि आज रहने देते हैं, कल चलेंगे।
अब हम ऊपर आ गये। मैने देखा की हितेश बुरी तरह कांप रहा हैं जैसे की सारी सर्दी उसी पर पड़ रही हो लेकिन ये तो गर्मियो के दिन थे। मैने इधर उधर की बाते करना शुरु की लेकिन वो मुझे कोई जवाब नही दे रहा था। मैने उसको पुछा कि आज तू ऐसे बिहेव क्यू कर रहा हैं, तो भी उसने कोई जवाब नही दिया। मैने ऐसा फील किया की शायद वो डर रहा हैं। ऐसे में मैने उसे ओर डराने की सोची और मैं भूत की कहानी सुनाने लग गया। जैसे ही मैने भूत की कहानी सुनानी शुरु की वो गुस्से से लालपिला होने लगा। फिर मैने सोचा कि इसको डराने से अच्छा हैं की मैं इसका डर दूर करु और कुछ मस्ती मजाक़ वाली बात करू वर्ना ये नीचे चला जाएगा।
लेकिन मेरे दिमाग में उस वक्त सिर्फ भूत की बाते चल रही थी, तो मैने उसको एक कॉमेडी कॉमिक्स की कहानी सुनानी चालू कर दी। इस कॉमिक्स में भूतो का जमकर मजाक़ उड़ाया गया था। मैं भी भूतो का मजाक उड़ाकर जोर जोर से हंसने लगा लेकिन हितेश एक कोने में खड़ा चुपचाप सुनता रहा। उसको बिल्कुल भी हंसी नही आ रही थी। अचानक कोने में पड़े हुए सीमेंट के कट्टे गिर गये और जोर की धम्म आवाज आई। इससे हितेश बुरी तरह डर गया और बोला कि “मुझे यहाँ कुछ ठीक नही लग रहा, अपन नीचे चलते हैं।” लेकिन मैने उससे कहाँ कि हो सकता हैं कि बिल्ली ने ये कट्टे गिराये हो, लेकिन वहां कोई बिल्ली नही थी। मैने उन कट्टौ को हिलाने की कोशिश की लेकिन मुझसे वो नही हिले। अचानक ही वो बुरी तरह छटपटाने लगा और चिल्लाने लगा। उसने कोने की तरफ इशारा करते हुए कहा की “देख, ऊधर कोई बेठा हुआ हैं, देख।” मैने उस तरफ देखा तो मुझे कोई नही दिखा। मैने हितेश को कहाँ कि मुझे तो कोई नही दिख रहा। तब हितेश ने फिर से कहाँ कि “वो सामने बेठा हैं काला सा, देख।” मैने वापस उस ओर देखा लेकिन मुझे तब भी कुछ नही दिखा। हितेश ने फिर कहाँ कि “यही बेठा था वो, अभी यही बेठा था।” फिर उसने मुझसे कहाँ की, “अब मैं एक मिनट भी नही रुकुंगा, तू आ रहा हो तो आ, नही तो मैं जा रहा हूँ।”
मुझे भी लगा कि ये बहुत डर गया हैं और अब रुकेगा नही। अब अच्छा यही होगा की हम दोनो नीचे चले जाए। मैने टाईम देखा और हितेश से कहाँ कि 12 सात में, दो मिनट बाकी हैं, अच्छे एन्जिल की खुशबू ले ले, फिर नीचे चलेंगे। मैने उसको पांच मिनट ओर रुकने के लिये कहाँ और मैं टंकी के उपर चढ़ गया। मैने उसको भी बुलाया लेकिन वो ऊपर नही आया। गुरुजी मैं आपको बता नही सकता उस वक्त मेरे साथ क्या हुआ। जैसे ही 12 बजकर 7 मिनट हुए और इतनी तेज और भयानक बदबू आई। ऐसा लगा जैसे की कुछ बहुत बुरी तरह सड़ रहा हो। मैने सोचा की आज शायद एन्जिल की जगह कोई शैतान आ गया हैं। अब मैं भी बुरी तरह डर गया था। मैं फटाफट नीचे उतरा, और अपने दोस्त का हाथ पकड़कर नीचे कमरे में आ गया। कमरे में आने के बाद मुझे जैसे जान में जान आई। सुरेश और हितेश का कजिन घोड़े बेचकर सोये पड़े थे लेकिन उनको सामने देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा।
मैने अपने दोस्त को कहाँ की आज खुशबू के बजाय बहुत बुरी बदबू आ रही थी। अच्छा हुआ की टाईम से नीचे आ गये। मेरे दोस्त ने कोई जवाब नही दिया। मैं बाल्कनी में आ गया और मैने एक सिगरेट जलाई। मेरा दोस्त भी चुपचाप बाल्कनी में आकर खड़ा हो गया। कुछ देर बाद वो अचानक चिल्लाया। “देख उधर देख, वो कुतिया वो अपने बच्चे को खा रही हैं, चल अपन नीचे चलकर देखकर आते हैं।” दोस्त की बात सुनकर मैने देखा की कुतिया दौड़कर नाली के अन्दर मुह मार रही हैं। मैने हितेश को कहाँ की वो कुतिया का बच्चा नही बल्कि कोई चुहा होगा। रात बहुत हो गयी हैं, हम नीचे नही जाएंगे।
तभी मैने देखा कि हितेश बाल्कनी में नही हैं और कमरे का दरवाजा भी खुला हैं। हितेश नीचे चला गया था। मैने बाल्कनी से ही उसे नीचे देखा और उसको उपर आने के लिये कहाँ लेकिन उल्टा वो मुझे नीचे बुलाने लगा। वो काफी डेसपरेट लग रहा था। उसने मुझसे कहाँ जल्दी नीचे आ, अपन देखते हैं कि ये क्या कर रही हैं। मैने अपने सोये हुए दोस्तो को जगाने की कोशिश की लेकिन वो बिल्कुल भी नही हिले। आखिरकार मुझे नीचे जाना पड़ा, मैं उसको ऊलजलूल बकता हुआ नीचे आया।
मैने देखा कि हितेश लोहे का दरवाजा खोलकर बाहर सड़क पर खड़ा हैं। और वो प्यार से मुझे आवाज देता हैं “अली बाहर आओ”, “बाहर आओ ना”, मेरे पास आओ। मुझे अपने दोस्त की आवाज कुछ थोड़ी सी बदली हुई लगी। ऐसा लगा कि उसके शरीर से दो आवाज निकल रही हो। हितेश की ऐसी आवाज सुनकर मैं बहुत डर गया। और मुझे लग गया कि मेरे दोस्त पर कोई भूत-चुड़ैल आ गयी हैं। मैं अन्दर जाने लगा ताकी अपने दोस्त या मकान मालिक, जो मिले उनसे मदद मांग सकूँ। लेकिन बाहर खड़े हितेश ने मुझे अन्दर जाने से मना कर दिया। मेरी हालत ऐसी थी कि मैं हिल भी नही पा रहा था और आवाज भी नही निकल रही थी।
हितेश बड़े ही प्यार से मुझे बाहर आने के लिये विनती कर रहा था। मैने भी हिम्मत करके कहाँ कि पहले तुम अन्दर आओ, फिर साथ में बाहर चलेंगे। लेकिन हितेश नही माना वो मुझे ही बाहर बुलाना चाह रहा था। कुछ सैकेण्ड तक हमारे बीच “पहले तू आ-पहले तू आ चलता रहा”। फिर मैने हितेश को कसम देते हुए कहाँ कि “तुझे पता हैं कि मैने आजतक कोई कसम नही तोड़ी हैं, तो मैं कसम खाके बोलता हूँ कि तू अन्दर आएगा तो मैं तेरा हाथ पकड़कर तेरे साथ बाहर आऊंगा।”
ये सुनकर हितेश ने कहाँ “अच्छा ठीक हैं, मुझे तुझ पर पुरा विशवास हैं। तेरे को कसम है अगर तू मेरे साथ बाहर नही आया तो।” मैने हाँ कर दी। मेरा दोस्त घर के अन्दर आया। अन्दर आकर उसने मुझे हाथ दिया। मैने उसके हाथ को पकड़कर झटके से कंधे पर उठा लिया और उसको कमरे में ले आया। गुरुजी वैसे तो मेरा ये दोस्त बहुत पतला-दुबला हैं लेकिन उस वक्त मुझे ये बहुत भारी लग रहा था और बुरी तरह छटपटा रहा था। कमरे में लाने के बाद में उसको बिस्तर पर पटका और उस पर चादर डाल दी और उसको कसकर पकड़ लिया। हितेेेश पागलो की तरह चिल्लाने लगा “छोड़, छोड़ मुझे छोड़”। वो इतनी जोर से चिल्लाया की मुझे लगा शायद मेरे कान के पर्दे फट गये। लेकिन हैरानी की बात ये थी पास में सो रहे मेरे दोस्तो की नींद उस वक्त भी नही खुली। मेने उनको आवाज दी लेकिन मेरे दोस्त फिर भी नही उठे।
मैने हितेश को कसकर पकड़े रखा, कुछ देर बाद वो धीरे-धीरे चिल्लाना कम हुआ और सो गया। उसके सोने के बाद मुझे भी पता नही कब आंख लग गयी।
सुबह एक्ज़ाम के लिये मेरे बाकी कुम्भकरण दोस्तो ने मुझे उठाया। हितेश भी उठ चुका था और बहुत सारी उल्टियाँ कर रहा था। हम लेट हो रहे थे इसलिये मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ और हम तीनो दोस्त एक्जाम देने चले गये। एक्ज़ाम के बाद मैने रात की बात सुरेश और हितेश दोनो को बताई। दोनो हैरानी से मेरी बाते सुनने लगे, सुरेश ने मुझसे कहाँ कि मुझे उठाना चाहिये था। लेकिन वो समझ नही पाया कि मैने उनको उठाने की कोशिश की थी, लेकिन वो लोग ही नही उठे। हितेश भी यही बोला कि उसे रात के बारे में कुछ याद नही हैं।
कुछ देर बाद हमने खाना खाया फिर मैं और सुरेश गांव के लिये निकल गये। यही पर मेरा अनुभव खत्म होता हैं।
गुरुजी मेरे कुछ सवाल हैं कृपया उनका जवाब देने का कष्ठ करे।
1. 12 बजकर सात मिनट पर आने वाली खुशबू का क्या रहस्य हो सकता हैं और उस रात को आने वाली बदबू के बारे में भी बताईये।
2. मेरे दोस्त के शरीर से मुझे दो तरह की आवाजे आती हुई लगी, क्या सच में ऐसा हो सकता हैं?
3. मेरा दोस्त जब मुझे घर के बाहर बुला रहा था, उस वक्त वो अन्दर आने को तैयार नही था लेकिन बाद में वो अन्दर आ गया। मेरा ऐसा सोचना था कि अगर उसके शरीर में कोई बुरी आत्मा हैं तो वो शायद घर के अनदर ना आ पाये क्युंकि घर पवित्र जगह होती हैं। बुरी शक्ती इतनी आसानी से घर में दाखिल नही हो सकती।
4. और सबसे आखिर इतनी चिल्लचौट के बावजूद किसी को कोई आवाज क्यू सुनाई नही दी।
गुरुजी आपको अगर ये अनुभव अच्छा लगे तो इस पर वीडियो जरुर बनाये। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मेरा पत्र पढ़ने के लिये। अल्लाह आपसे बहुत लोगो के लिये कल्याणकारी काम करवाएगा, ऐसा मेरा यकिन हैं।
धन्यवाद।
आपका एक सब्सक्राईबर
प्रश्नो के उत्तर जानने के लिए नीचे का विडियो भी देखे –
https://youtu.be/SGmvyuQEgmA