कायाकल्प करने और शिवरात्रि मोहिनी सिद्धि प्रयोग सच्चा अनुभव 5 वां अंतिम भाग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। शिवरात्रि मोहिनी साधना सच्चा अनुभव यह भाग 5 है। अभी तक आपने जाना कि साधक महोदय, एक विचित्र और विकट परिस्थिति में फंस चुके थे। क्योंकि यह अपने वास्तविक पुरुष स्वरूप को प्राप्त करना चाहते थे और उस कन्या के शरीर से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे थे, किंतु वह ऐसा नहीं कर पा रहे थे।अब आगे इनकी पत्र को पढ़ते हुए आगे की कहानी के विषय में जानते हैं।
अब मेरे सामने कोई विकल्प मौजूद नहीं था। मैंने तो आज सांस द्वार से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन मैं वहां से बाहर नहीं निकल पा रहा था। मैं नहीं जानता, ऐसा क्यों हो रहा था? मुझे यह भी नहीं पता कि तंत्र विद्या के जो गुप्त रहस्य हैं, उनकी सीमा क्या होती है। मैं सांस के रास्ते से इस कन्या के शरीर में प्रवेश किया था, लेकिन वास्तव में इसी द्वार से मैं वापस नहीं जा पा रहा था क्योंकि जीवन द्वार मृत्यु द्वार बनाने पर, आत्मा सदैव के लिए शरीर को छोड़ देती है। इसलिए मुझे कोई और मार्ग ढूंढना था। मैंने शरीर में कोशिश किया और नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की तो मुझे पता चला शरीर में प्रवेश करने के कुछ ही द्वार होते हैं। जैसे नाक आंख, कान मुंह योनि द्वार मलद्वार, इनके अलावा और कौन सा मार्ग हो सकता है। मैं ढूंढ रहा था पर मुझे कोई दिखाई ही नहीं दिया। अब मेरी शक्तियां धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही थी और मेरे अंदर स्त्री तत्व प्रबल होता जा रहा था। स्त्री होने की कमी यह होती है कि जैसे आप अपनी सोच पुरुष के रूप में रखते हैं। स्त्री रूप में वह पूरी तरह बदल जाती है और जिसका भी शरीर आपने ग्रहण किया होता है उसके जैसे ही आप बनने लग जाते हैं। मैंने शरीर से बाहर निकलने के लिए कोशिश जारी रखी। लेकिन मैं कहीं से बाहर नहीं निकल पा रहा था। मुझे अब जल्दी ही कुछ करना था क्योंकि देवी मोहिनी आखिर कब तक मेरे शरीर की रक्षा करती और एकमात्र वही थी जिनकी वजह से मैं जीवित था और वास्तव में अपने शरीर में वापस दोबारा जा सकता था और कहीं अगर उन्होंने मेरा साथ छोड़ दिया तो मैं इस कन्या के शरीर में हमेशा के लिए कैद हो जाऊंगा और मैं स्त्री बन जाऊंगा। मेरे सामने परिस्थितियां बराबर कठिन होती जा रही थी। मैंने अब कोशिश की कि मैं मुंह से बाहर निकल जाऊ। लेकिन मुझसे वह नहीं हो पा रहा था। लड़की के मुंह से बाहर निकलने के लिए उसका मुंह खुला होना आवश्यक था। पर? यह तो हो ही नहीं पा रहा था। मैंने कान के माध्यम से बाहर निकलने की कोशिश की पर यह भी मुझसे नहीं हो पाया। वहां भी कोई चीज मुझे रोक रही थी। मैंने ध्यान लगाकर देखा तो उसके कान में कई तरह के शब्द चल रहे थे मुह तो पहले से ही बंद था। नाक के रास्ते सांस ली जाती है। इसलिए मैं वहां से वापस नहीं जा सकता था। अब मैंने शरीर के बाकी अंगों को टटोलना शुरू किया। फिर मैंने आंखों की ओर ध्यान दिया, लेकिन वह भी बंद थी और उनमे भी मानसिक दृष्टि चल रहा था। उस दृश्य में उस लड़की के जीवन में घटित हुई घटनाये वह स्वयं सपने के माध्यम से देख रही थी और जिसे मैं पूरी तरह महसूस कर रहा था यानी कि अब मैं यह समझ चुका था कि गर्दन के ऊपर का सारा हिस्सा मेरे लिए बेकार है और मैं इस किसी भी द्वार से शरीर के बाहर नहीं निकल सकता हूं। अब मुझे शरीर के निचले अंग की ओर दृष्टि करनी आवश्यक थी मैं शरीर में सभी जगह आत्मा रूप में दौड़ रहा था। मैं मलद्वार के पास पहुंचा लेकिन वहां भी इस जन्म में स्थापित गंदगी जमा थी। अब उसमें भी मैं कुछ नहीं कर सकता था। वह द्वार भी बंद था। अब केवल एक मात्र योनि द्वार ही खुला हुआ था और यह हमेशा खुला ही रहता है। लेकिन इस रास्ते से बाहर निकलने के लिए मुझे इस द्वार को पूरी तरह खुलवाना आवश्यक था। अब इस जगह को कैसे खोला जाए। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। शरीर में भोजन या पानी मौजूद नहीं था। इसी कारण से इस द्वार को खुलने में भी समस्या थी। तभी मैंने एक चीज महसूस की कि हर स्त्री के शरीर को प्राप्त करने की इच्छा हमेशा से ही पुरुषों के मन में रहती है और इस इच्छा को हम कामवासना के नाम से जानते हैं। लेकिन इस शरीर को कौन पुरुष प्राप्त करना चाहेगा? मैंने नजर दौड़ा कर देखा तो मेरे लिए अब एक आसान काम बन रहा था और वह था। वहां पर प्रेतों की मौजूदगी अपने जीवन में जो भी पुरुष प्रेत कामवासना से भरा हुआ हमेशा ही किसी स्त्री की कामना करता रहा हो। अगर वह इस स्त्री के साथ भोग करे तो शायद इस स्त्री के कारण मैं इसके शरीर से बाहर निकल पाऊं। हर प्रेत यह चाहता था और मृत्यु के बाद भी। प्रेत आत्माएं आपस में भोग किया करती हैं लेकिन जब तक! मस्तिष्क इतना कमजोर ना हो कि शरीर और उसको धारण करने की शक्ति किसी प्रेत में आ ना जाए। तब तक यह भी होना संभव नहीं होता है। इसलिए सबसे पहले मैंने इस लड़की के मन में कामवासना जगा दी। इसकी वजह से शरीर से एक तरह की अदृश्य। सुगंधित मोहिनी शक्ति निकलने लगी। यह जीवित पुरुषों के लिए नहीं अपितु मृत आत्माओं के लिए थी। मानसिक पटल में हम जो कुछ भी सोचते हैं, उसका प्रभाव भी देखने को मिलता है। और इस मन में की गई कल्पना का प्रभाव उन आत्माओं पर अवश्य ही पड़ता है। चारों ओर आत्मा है तो वैसे ही घूम रही थी क्योंकि मैं कायाकल्प और परकाया प्रवेशन विधि को कर रहा था। इस विधि के कारण ही आत्माएं शरीर को हासिल करना चाहती थी और मन में काम की कल्पना जब एक कुंवारी कन्या करती है तो निश्चित रूप से पुरुष आत्माएं उस की ओर लपकने लगती हैं। ऐसा ही कुछ वहां पर हो रहा था और मैंने उस भावना को और अधिक तीव्र कर दिया। लड़की के शरीर से निकलती काम ऊर्जा आसपास प्रेत आत्माओं को नजदीक खींचने लगी। तभी प्रेत अब लड़की के साथ भोग करना चाहते थे। उस काम की इच्छा से कई प्रेत आत्माएं उसके शरीर के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दी जिसके कारण योनी द्वार धीरे-धीरे खुलने लगा। मेरे लिए बस यही मौका था। मैंने अब अपनी सारी शक्ति इखट्टा की देवी मोहिनी का ध्यान किया और उन साधु महाराज गुरुदेव को याद किया और उनके सारे दिए गए मंत्रों का आवाहन किया क्योंकि उन्हीं मंत्रों के माध्यम से मैंने एक लड़की के शरीर में प्रवेश किया था और अब उन्हीं मंत्रों के कारण मैं इस शरीर से बाहर निकल सकता था। इस प्रकार मैंने अपनी सारी शक्ति लगा दी। और उस जबरदस्त काम क्रीडा के कारण उस द्वार से मैं बहुत ही तेजी के साथ बाहर निकल गया। अब मेरे सामने उस मृत कन्या का शरीर पड़ा था और उसी के पास मेरा शरीर भी देवी की रक्षा के कारण सुरक्षित था। मैंने अब फिर से मंत्रों का जाप किया और एक बार फिर से नाक के रास्ते ही अपने शरीर में प्रवेश किया। मैं अपने शरीर में जैसे ही पहुंचा, मुझे बहुत जोर का झटका लगा और अपने आप को जीवित पाकर मैं अब संतुष्ट था। इस बात से मैं यह तो समझ गया कि सिद्धियों के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए और प्रत्येक सिद्धि अपने आप में एक बड़ा मायाजाल होती है तो अगर आप पूरी तरह से सिद्धहस्त नहीं है तो फिर ऐसे कार्यों को करने से सदैव बचें। गुरुजी का मूल उद्देश्य नए शरीर की प्राप्ति थी और उनका जवान बने रहना था। इसीलिए उन्होंने कायाकल्प विधि करने के लिए परकाया प्रवेशन विधि का प्रयोग किया था और उसमें वह सिद्ध भी हुए। इसके बाद देवी मोहिनी मेरे सामने आकर कहने लगी कि आज से मैं तुम्हारा साथ छोड़ रही हूँ। इसके अलावा यह सारे मंत्र भी तुम भूल जाओगे। और यह कहकर वहां से अदृश्य होकर गायब हो गई। मैं सिर्फ आज अनुभव के साथ रह गया। और सब कुछ मेरे लिए एक सपने जैसा था जिसमें मैंने देवी मोहिनी की सिद्धि प्राप्त की, परकाया प्रवेश किया और जीवन के एक महान रहस्य को समझा। यहां पर मेरा यह अनुभव भी इसीलिए मैंने लिख कर भेजा है ताकि आप सभी लोग जीवन के वास्तविक रहस्य को समझें और साधनाओ के विचित्र रहस्य को समझिये गुरु के रूप में मैंने इस विद्या को सीखा और फिर भूल भी गया। आज मुझे इस विद्या का एक भी मंत्र याद नहीं है। शायद इसलिए ताकि मैं इसका कभी दुरुपयोग ना कर पाऊं तो ईश्वर जो कुछ भी करता है वह आप के कल्याण के लिए ही करता है। मेरा यहां पर यही बताना मूल उद्देश्य था। आप सभी का धन्यवाद और श्री सूरज प्रताप जी को विशेष धन्यवाद जिन्होंने मेरा यह अनुभव प्रकाशित किया है जिससे सभी साधक भाई बहनों का कल्याण होगा। जय मां शेरावाली। संदेश-तो देखिये यहां पर इन्होंने अपने अनुभव को बताया है। जीवन कैसा है और इसकी वास्तविकता क्या है? और सिद्धि का क्षेत्र कितना विशाल है? और इस पर मायाजाल क्यों डाला गया है तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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