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कालभैरव अष्टमी व्रत और साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज कालभैरव अष्टमी है और कालभैरव जयंती भी है ईसी विषय में एक ईमेल भी मुझे आया है और पुछा है कि काल भैरव कि तामसिक साधना राजसीक साधना होती है उसके संदर्भ में बताइए । यह दिन बहुत ही  शुभ माना जाता है काल भैरव की उपासना के लिए अगर आप इनकी साधना उपासना करते हैं तो आपके लिए यह फलदाई माना जाता है । पौराणिक काल से ही इनकी पूजा चली आ रही है । यह मान्यता पौराणिक काल से चली आ रही है अगर आप सुबह किसी नदी या सरोवर में पित्रों का तर्पण करके, भैरव जी की साधना करते हैं तो आपके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं आपको दीर्घायु की प्राप्ति होती है ।

आपको ध्यान रखना चाहिए कि यह जो कलाष्टमी का जो व्रत है यह सप्तमी को भी हो सकता है इसलिए अष्टमी तिथि को इसको मनाना चाहिए और अष्टमी तिथि को ही इसका पारण करना चाहिए । कालाषटमी  रात्रि 12:00 बजे विशेष समय होता है साधना उपासना के लिए, दिव्य ऊर्जा प्राप्त होती है क्योंकि यह इनकी जयंती मानी जाती है । चलिए जानते हैं कि इस दिन क्या-क्या होता है और कैसे इनकी पूजा उपासना की जाती है । कालअष्टमी है हिंदू धर्म का एक विशेष पर्व माना जाता है और प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है और काल भैरव जयंती आपके पंचाङ्ग अनुसार मार्ग शीश महीने में आर्य दक्षिणी भारतीय अमानत पंचांग कहलाता है उसके हिसाब से कार्तिक के महीने में पढ़ती है । दोनों को एक ही दिन में माना जाता है जब भगवान शिव काल भैरव के रूप में होते हैं महाकाल होते हैं उस दिन को काल भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है । अगर आज की भाषा में कहा जाए तो यह दिन काल भैरव का बर्थडे है । यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है और आपके पाप और कष्ट इससे दूर होते हैं ।मनवांछित फल की प्राप्ति होती है ।

इनका पूजन षोडशोपचार विधी से करना चाहिए।इनके दर्शन से भी आपके मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है इसलिए इनके दर्शन को भी महत्वपूर्ण माना जाता है इसमें आपको करना क्या होता है कि आपको भैरव जी की षोडशोपचार  पूजा करनी होती है और अरघ  भी देना होता है ।रात्रि के समय आपको जागरण करना चाहिए और भगवान शंकर माता पार्वती की कथा सुननी चाहिए ।  भैरव जी की मूल कथा सुननी चाहिए और जब मध्य रात्रि हो जाए तब घंटा  शंख नगाड़े बजाकर भैरव जी की आरती भी करनी चाहिए तब आपको इनकी प्रसन्नता प्राप्त होती है ।इनका जो वाहन आपने देखा होगा वो कुत्ता  है और कुत्ता सभी जानवरों में वफादार होता है इसी प्रकार से कहते हैं कि अगर आप भैरव पूजा करते हैं तो किसी भी प्रकार से वह पूजा आपके लिए असफल नहीं होती है ।कहा जाता है जैसा जिसका वाहन होता है उसका रूप स्वरुप को भी उसी प्रकार होता है कुत्ता  इनका वाहन होने के कारण जैसे, कुत्ता वफादार होता है । यह भी आपके प्रति हमेशा ही वफादार रहेंगे। और भयंकर रुप में आपकी रक्षा सुरक्षा करते हैं जैसे की कुत्ता  करता है।

जो भी देवी देवता है उनके जो वाहन है वह उनके शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं इसलिए भैरव साधना हमेशा ही उत्तम मानी जाती है ऐसा नहीं है कि आप भैरव साधना करे और आपको सफलता न मिले आपको सफलता निश्चित ही मिलती है । इनकी साधना से भूत प्रेत, काल का भय है और अगर आपको भयंकर से भयंकर बीमारी भी है तो उससे भी आपको छुटकारा मिल जाता है । इनकी साधना के दिन माता काली की भी पूजा आपको करनी चाहिए क्योंकि माता काली के साथ उनकी शक्ति के रूप में उनके सहायक रूपों में उनके साथ रहते हैं ।इनकी पूजा हमेशा माता काली के साथ करनी चाहिए इसीलिए कालरात्रि के दिन इनकी पूजा का विशेष विधान भी माना जाता है । भेरुजी की साधना मे जो  भैरव तंत्र उक्त कवच काल भैरव स्त्रोत्र है  ब्रम्ह कवच है इन सब से भी आपको ग्रहों से छुटकारा मिलता है और बुरे कर्मो से भी छुटकारा मिलता है । भैरो अष्टमी और काल अष्टमी एक पौराणिक कथाएं जोड़ा हुआ है ।

ब्रह्म और विष्णु मे से श्रेष्ठ कौन हैं एक बार जब इन दोनों लोगो ने विवाद हुआ कि, दोनों में से कौन बड़ा है तब खुद भगवान शंकर को एक सभा का आयोजन करना पड़ा इस सभा में विद्वान ऋषि मुनि सिद्ध विद्वान सभी उपस्थिति और सभा में लिए  निर्णय से भगवान विष्णु को उत्तम बताया गया ।इस पर ब्रम्हाजी भगवान शिव से भी कुपीत  हो गए और भगवान शिव की भी निंदा करने लगे इस पर भगवान शंकर क्रोधित हो गये और अपने रुद्र रूप में आ गए उनका यह रूप देख कर सभी भयभीत हो गए इसी भयंकर रुप में से भगवान काल भैरव उत्पन्न हुए थे भैरव जी एक शवान  पर विराजमान थे और उनके एक हाथ में दंड था इसी कारण होने दंडाधिपती कहा जाता है उनके पास यह अधिकार है कि वह किसी की भी गलती का उसे दंड दे सकते हैं ।

वह क्रोधित रूप में आए और उन्होंने ब्रहमा जी के ऊपर प्रहार कर दिया तब जाकर ब्रहमा जी को अपनी गलती का अनुमान हुआ और उन्होंने भगवान शिव और भैरव जी की वंदना की और सभी देवी देवताओं ने इनकी वंदना की तब जाकर यह शांत हुए । यहां पर जो पर मूल बात यह  है कि जो इनका मंत्र है और इनकी साधना है वह आपको कैलेंडर में देखकर करनी चाहिए इनकी जो साधना है वह किस प्रकार से की जाती है रविवार और शनिवार का दिन इसमें विशेष रुप से माना जाता है ।रात्रि में इनके मंत्र का जाप करना स्तोत्र पढ़ना विशेष फलदाई माना जाता है अगर आप इसमें काले कुत्ते को गुलगुला बनाकर खिलाएंगे तो भी आपको भेरुजी की प्रसन्नता मिलती है और इनके मंदिर जाकर इनके दर्शन करेंगे तो भी अच्छा होगा । इसके साथ ही साथ अगर आप भैरव जी के मंदिर में सिंदूर और सरसों के तेल को चढाएंगे और साथ ही साथ अगर आप इनको मदिरा का भोग भी लगाएंगे तो और भी प्रसन्नता मिलेगी । मैंने पहले भी वीडियो बनाया है महाकाल साधना के नाम से शायद आपको ना मिले इसलिए मैं यहां पर मंत्र दोबारा दे देता  हूं तो इनका मंत्र जान लेते हैं मंत्र इस प्रकार से है।
मँत्रः  ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नमः।। 
यह काल भैरव का मूल् मंत्र है जैसा आपका लिए रात्रि के समय आपको यह मंत्र  जाप करना है  और पूरब दिशा की ओर मुंह करके  एक लकड़ी का पट्टा लेंगे  और इस पर एक लाल कपड़ा रखेंगे इस पर आप भैरव जी की फोटो या प्रतिमा रख सकते हैं। आप ईशान कोण में सरसों के तेल का एक दीपक लाएंगे और उसके आगे लाल कंबल बिछाएंगे और उस पर बैठकर आप अपनी हाथ में जल लेकर संकल्प लेंगे आप जितना जाप कर सके  21 या 51 माला  जितना आपको सुलभ लगे एक बार मुझे एक ईमेल मिला था उसमें किसी ने बताया था कि अब सिर्फ और सिर्फ तामसिक साधना में ही सफलता मिलती है तामसिक साधना ही अच्छी है जल्दी सफलता मिलती है सात्विक साधना नहीं ऐसा नहीं है । हां यह जरुर है कि तामसिक शक्तिमान साधना है  इसलिए उनकी साधना करने पर वह शीघ्र आ जाती है क्योंकि वह धरती पर ही भटकती रहती हैं साधना करने वाले को लगता है कि यह उपयुक्त है उसके लिए और  जल्दी सिद्ध हो जाती है ।

भूत प्रेत इनका जोड़ा हो जाता है आपसे क्योंकि इनके पास दिव्यतम शरीर नहीं है । तामसिक मंत्रों से यहा बहुत ही तीव्रता के साथ आपके पास आती है साधना करने वाले को लगता है कि इनकी साधना में शीघ्र सफलता मिलती है और ज्यादा प्रभावशाली है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है ।तामसिक साधना ,सात्विक साधनाओं के मुकाबले नहीं टिक सकती बस फर्क सिर्फ इतना है कि तामसिक साधना शीघ्र प्रभाव दिखाती है, राजसिक साधना और समय लेती है और सात्विक साधना बहुत ज्यादा समय लेती है सिद्ध होने में क्योंकि उसके लिए जो आपका मंत्र है उसको ब्रम्हांड में गुंजायमान होना चाहिए जितना वह गुंजायमान होगा उतना ही आपको शक्तियां मिलेंगी। जितनी भी तामसिक आत्माए हैं वह सब आपके करीब रहती हैं और जितनी भी राजसिक आत्मा हैं वह और दूर रहती हैं और जो सात्विक आत्मा वह और भी दूर रहती है सात्विक आत्मा तक पहुंचने के लिए कई वर्ष लग जाते हैं कभी-कभी तो पूरा जीवन हीं लग जाता है ।कभी-कभी तो कई सारे जन्म अलग जाते हैं पर उनका प्रतिफल बहुत ही शुभ होता है ।

परंतु तामसिक साधनाओं का आपके लिए सिर्फ उस समय अच्छा हो, बाद में आपका काम बिगाड़ देगा जैसा कि कर्ण पिशाचिनी साधना में आपको तुरंत सफलता मिलती है आप चमत्कारीक पुरुष बन जाते हैं पर बाद में यह आपको नीचे गिरा देती है । जब तक आप साधना को अपने कंट्रोल में रखते हैं तब तक तो सब ठीक रहता है परंतु जब साधना आपको अपने कंट्रोल में कर पाते है तो सब कुछ ले डूबता है ।ऐसा इसलिए होता है कि मनुष्य सदैव ब्रहमचारी नहीं रह पाता और सदैव वह काम क्रोध मद मोह लोभ  पर नियंत्रण नहीं रख पाता जब भी आप कोई गलती करते हैं तो वह शक्ति आपको ले डूबती है ।भगवान शिव की महाकाल की साधना शुभ फलदाई है आप इसको राजसिक तरीके से  भी कर सकते हैं मेरे हिसाब से आप अगर इनकी राजसिक तरीके से साधना करते हैं, तो आप तामसिक तरीके से भी बच सकते हैं और सात्विक साधना की लंबी प्रक्रिया से भी बच जाते हैं । आप इसमें उनको शराब चढ़ा सकते हैं आप इनको भोजन के रूप में कुछ भी दे सकते हैं पर आप उसको ग्रहण नहीं करेंगे इससे वह राजसीक स्वरूप में ही रहेंगे और आपका सारा काम करेंगे । इस प्रकार से आप किसी भी देवी देवता की राजसिक साधना कर सकते हैं विशेष तौर पर अगर वह उग्र देवता है तो आप सभी के लिए उपयुक्त रहता है अगर आपको यह जानकारी पसंद आई है तो धन्यवाद।।

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