काल या मृत्यु को जान लेने की विधि
नमस्कार दोस्तों धर्म से चैनल में आपका स्वागत है । एक बार की बात है कि जब दत्तात्रेय जी भगवान शिव से मिलने के लिए जा रहे थे । तो रास्ते में एक व्यक्ति बूढ़ा सा पडा हुआ था । और वह बूढ़ा व्यक्ति करहा रहा था । उसका करहाते हुए व्यक्ति को देखकर के दत्तात्रेय को उस पर बहुत दया आ गई और उसके पास जाकर के बात करने लगे । और पूछने लगे कि क्या भाई क्या समस्या है तुम्हें । तो वह बूढ़ा आदमी कहा कि मैं बहुत बुढा हो चुका हूं और पता नहीं कब मृत्यु आ जाए काश कि मैं जवान होता और जीवन के और भी सुखों को भोग करता । मैंने जीवन में बहुत ही कर्म करने की कोशिश की लेकिन भाग्य ने साथ ही नहीं दिया और हमेशा मैं भाग्य को कोसता रहा मेरा भाग्य मेरे लिए इतना बुरा क्यों है हमेशा इन बातों को सोचते सोचते ही भाग्य देखते हुए मैं इतना बुढा हो चुका हूं । और अब मैं अपने मरने का इंतजार कर रहा हूं यह सब बुढ़ापे का ही असर है । तो इस पर दत्तात्रेय को उन पर दया आ गई और दत्तात्रेय ने कहा ठीक है मेरे पास अनेक सारी विद्याय हैं सोचता हूं तुम्हें एक दे दो मैं तुम्हें जवान होने की विद्या देता हूं । और अभिमंत्रित करके तुम पर जल छिड़कुंगा कुछ ही देर बाद तुम निश्चित रूप से जवान हो जाओगे । ऐसा कह करके बड़ी ही प्रसन्नता के साथ उन्होंने अपने कमंडल को निकाला और अपने अभिमंत्रित मंत्रों के द्वारा उस व्यक्ति के ऊपर जल को छिड़क दिया जल छिड़कने के साथ ही वह व्यक्ति फिर से जवान हो गया । और दत्तात्रेय थोड़ी ही दूर आगे बढे थे कि तब तक उन्होंने उसी व्यक्ति कि कराने की आवाज फिर से सुनी दत्तात्रेय वापस मुड़े और उसकी तरफ जाने लगे । लेकिन जब तक उस व्यक्ति को उन्होंने जवान बनाया था वह बूढ़े व्यक्ति के पास पहुंचे तब तक उसके मुंह से खून गिर रहा था ।
और उसी के साथ उसके प्राण पखेरू उड़ गए । दत्तात्रेय ने तुरंत ही मंत्रों का प्रयोग उस पर करना चाहा तुरंत ही वहां पर यमदूत प्रकट हो गए । दोनों ही यमदूत ने उनसे कहा आप ऐसा कुछ ना करें क्योंकि इसका काल तो आ चुका था इसके जवान होने से भी कोई भी फायदा नहीं है क्योंकि इसका काल इसके सम्मुख था इसको मृत्यु तो होनी ही थी । आपकी मंत्र शक्ति से ही यह जवान तो हो गया लेकिन अपने प्राण को नहीं बचा पाया ।इसलिए आप अपने मार्ग पर जाइए और हमें अपना कार्य करने दीजिए । क्योंकि यह प्रकृति का नियम है दत्तात्रेय जी ने सोचा यह कैसी विडंबना है मेरे सामने उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और मैं कुछ भी नहीं कर पाता हूं । उनके मन में ऐसा भाव जागा की काल ज्ञान उन्हें होना चाहिए था । इस हेतु वह भगवान शिव के कैलाश पर्वत चल दिए और अंतर्ध्यान हो गए । तुरंत ही वहां जाकर प्रकट हो गए और भगवान शिव से बोले । हे प्रभु आप मुझे काल ज्ञान यानी आयु संबंधी ज्ञान है या निर्णय है या शक्तियां है उनके संबंध में मुझे बताइए । क्योंकि आज मैंने एक व्यक्ति देखा जिसे मैंने जवान बनाया लेकिन वह मृत्यु से तब भी नहीं बचा तब भगवान शिव ने कहा ठीक है । मैं तुम्हें आयु संबंधी और अपनी मृत्यु को जान लेने ज्ञान है वह तुम्हें समझाता हूं । यह गोपनीय विधि है और हर व्यक्ति से समझ सकता है जान सकता है ।
तो सुनो मैं जो जो बातें तुम्हें बतलाऊंगा यह अगर प्राणियों तक पहुंचेगी निश्चित रूप से अपनी मृत्यु देख पाएंगे और जान पाएंगे की मृत्यु कब होने वाली है । तो भगवान शिव शुरू करते हैं । कहते हैं हे दत्तात्रेय सुनो । जिस मानव को अपनी नासिका का अद्रभाग दिखाई ना पड़े वह 6 माह के भीतर ही काल कलवित हो जाता है यानी की मर जाता है । उसे अपने नाक के आगे हिस्सा ना दिखाई दे रहा हो । इसी तरह जिसको नवो मंडल में सप्त ऋषि के मध्य अरुंधति तारा नहीं दिखाई पड़ता है तो वह भी 6 माह पूरे होने के पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । यानी कि वह अपनी मृत्यु को जान लेता है । स्नान के बाद यदि कोई नहा कर निकला है उसके बाद अगर उसका ह्रदय शुष्क हो जाए यानी की उसका जो दिल है वह सुस्त महसूस करें वह भी 6 माह के अंदर ही उसे मौत आ जाती है । रात्रि में वाम स्वर जिसे हम चंद्र स्वर भी कहते हैं हम जिस नाक से स्वास लेते हैं तो इसी तरह दिन में तक्षिणेश्वर यानी सूर्य स्वर अगर 30 दिन तक अनवर चले यानी कि लगातार यह है कि एक ही स्वर बना रहे यानी कि दाएं से बाएं नासिका बाएं से दाएं नासिका ऐसा बदलाव नहीं होता और 30 दिन तक यही प्रक्रिया चलती रहती है तो ऐसा प्राणी 6 माह के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । अगर केवल दाया स्वर ही चले लगातार आपका दाहिना ही स्वर चल रहा है 15 दिन तक लगातार वह चलता ही रहे तो भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है 15 दिन के ही भीतर । जिस प्राणी का एक स्वर 6 माह या 15 दिन 3 माह या पांच रात्रि अनवरत चलती रहे यानी कि लगातार चलती रहे ।
वह स्वर उसका बदले ही नहीं यानी कि नाक का जो दाहिना छेद होता है इसी तरह नाक का बहिना छेद होता है इनमें से 1 ही छेद लगातार सांस लेते हुए दूसरा छेद कभी बदले ही नहीं इतने दिनों में तो उसकी भी मृत्यु हो जाती है । शुल्क पक्ष में बाया और कृष्ण पक्ष में दया स्वर दोनों पक्षों में दोनों स्वर तीन तीन दिन तक चलते रहते हैं पंच भूतों से निर्मित इस शरीर रूपी दीपक में तेल रूपी वाम नाड़ी यानी जिसे चंद्र स्वर्ग कहा जाता है और और तक्षिण नाड़ी यानी इस को सूर्य स्वर कहा जाता है । वायु से दीपक की रक्षा करते हैं इसी से जीव में प्राण शक्ति बनी रहती है यानी इसी की वजह से यह स्वर आपस में बदलते रहते हैं कहीं इसके कारण ही जीव में जान बनी रहती है । अगर एक तरह का स्वर चलता रहेगा तो निश्चित रूप से उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी । आत्मा रूपी दीपक में सूर्य रूपी ज्योति की आयु रूपी तेल से यह जो है परिपूर्ण माना जाता है इसलिए काल रूप काजल यानी अंधेरा इस पर जरूर पड़ता है देह की वृत्ति मनुष्य की मृत्यु के समान जानी चाहिए । ऐसा भगवान शिव कहते हैं । यदि कोई प्राणी बुद्धि ज्ञान और क्रिया से हीन हो जाए तथा नेत्र क्रिया कष्टकारी हो जाए तो भी ऐसे प्राणी की 2 मास के भीतर मृत्यु हो जाती है ।
यानी कि उसकी बुद्धि ना काम कर रही हो उसका ज्ञान काम ना कर रहा हो वह क्रिया ना कर पाए चल फिर ना पाए और उसकी आंखों से भी उसे दिखना बंद हो जाए तो 2 माह के भीतर ही उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है । आगे कहते हुए शिव बोलते हैं हे मुनि योगी कर रात्रि में बाया दिन में दाया सर चकराने की क्रिया को अभ्यस्त होते हैं यह योगी लोग करते हैं । यदि चलते समय पैर डगमगाने लगे और धूल में पैर सने दिखाई पड़े तो ऐसे प्राणी भी एक मास के अंदर काल का आभास हो जाता है । 12 दल के एक पंखुड़ियों का चित्र बनाकर उसमें मृत्यु काल को देखना चाहिए ऐसी विधि बताई गई है उसकी पद्धति यह है कि चेत्र के 12 मासो चक्र के 12 12 दलों में अंकित करके मेंसदी 12 लिखकर नव ग्रहों को अंकित करना चाहिए फिर उसमें जन्म राशि नक्षत्र को मृत्यु काल को चक्र में देखना चाहिए । शनि मंगल राहु केतु से राशि को वेद होने से शारीरिक पीड़ा होती है जबकि नक्षत्र और राशि के वेद होने से प्राणी एक मास के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । सूर्यभेदन से मन की पीड़ा होती है बुध के भेदन से सुख की प्राप्ति होती है ।
बृहस्पति के भेदन तीर्थ होता है यानी कि तीर्थों की यात्रा करने को मिलती है चंद्र के वेदन से स्त्री की ओर से सुख संपत्ति प्राप्त होती है । अहर्निश एक ही स्वर चलने लगे यानी कि लगातार एक ही स्वर चलने लगे तो प्राणी 3 वर्ष तक ही जीवित रहता है ।जिसकी पिंगला नाड़ी यानी दक्षिणी नाड़ी वह दो रात और 2 दिन तक चले तो ऐसा प्राणी वह 2 वर्ष तक ही जीवित रहता है । जिस प्राणी का 3 रात्रि तक एक ही स्वर चले कहते हैं कि वह एक ही वर्ष तक जीवित रहता है । जिस प्राणी को चंद्रमा की छाया ध्रुव तारा नक्षत्र मात्र चक्र ना दिखाई पड़े तथा कीचड़ में पैर रखने से वह खंडित उसे लगे और जल में कफ गिरने से पेंदे में बैठ जाए यानी कि कफ उसका गिरे और सीधे जमीन के अंदर चला गया पानी में अंदर चला जाए । तो यह लक्षण अशुभ माने जाते हैं इससे काल के असर होने की संभावना नजर आती है । जो प्राणी एकाएक भोजन करने लगे अच्छे या बुरे उसे आभास ना हो अर्थात अच्छे बुरे का कोई मतलब ना समझ पाय । नेत्र मूंदने पर यानी कि अगर वह आंखें बंद करता है तो उसे चंद्र यानी कि गोल बिंदु सहित तिलवार यानी कि तिल वाला जो सिद्ध मोर अगर नहीं दिखाई पड़ता है ।
तो भी यह अशुभ लक्षण होता है उसकी मृत्यु की संभावना नजर आती है । जो रोगी है जल में पूर्ण चंद्रमा और सूर्य के प्रतिबिंब परछाई में जैसे कोई भी रोगी है वह रोग से ग्रसित है और उसके बारे में जानना है । तो उसके बारे में भगवान शिव कह रहे हैं तो अगर पूर्ण चंद्रमा और सूर्य के प्रतिबिंब परछाई में पूर्व की ओर दक्षिण और उत्तर पश्चिम में मात्र एक छिद्र दिखाई दे ।तो वह 6 या 2 या 3 या 1 मांस तक ही जीवित रह पाता है । सूर्य और चंद्रमा का प्रतिबिंब जिस प्राणी को धुंधला दिखाई दे जो सूर्य चंद्रमा का प्रतिबिंब है किसी व्यक्ति को अगर धुंधला दिखाई दे तो वह मात्र 10 दिन ही जीवित रहता है । जो प्राणी सूर्य और चंद्रमा की परछाई मैं ज्वाला निकलती दिखे वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । काल ज्ञाता ने यही निर्णय बताया है । तो इस प्रकार से भगवान शिव ने मौत को जानने के लिए बहुत सारी विधियां बताई हैं कि कैसे कोई व्यक्ति यह जान सकता है कि उसकी मृत्यु कब आने वाली है । इस हेतु वह अपने ईस्ट के मंत्रों का जाप कर सकता है साथ ही साथ अपने जीवन में सत कर्मों को कर सकता है । ताकि काल आए भी तो उससे ईश्वर ही ले जाए उसका नर्क में वास ना हो तो यह गोपनीय विधि भगवान शिव द्वारा बताई गई है । दत्तात्रेय को अगर आपको यह विधि संस्कार पसंद आया होगा ।
धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।