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कुम्भकर्ण महाराक्षस सिद्धि साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग बात करेंगे कुंभकरण महारक्षक की सिद्धि के विषय में जानते हैं कि किस प्रकार कुंभकरण महारक्षक की साधना की जा सकती है।

गुरु जी आज काफी लंबे टाइम के बाद मैंने कोई साधना भेजी है। आज गुरुजी लगभग 8 महीने के बाद मैंने फिर से एक पोस्ट भेजा है और रोजी आज जो पोस्ट है वह बहुत ही इंटरेस्टिंग है और सबसे हटके है क्योंकि आज मैं जो साधना शेयर करने जा रहा हूं, यह अब तक की ना ही किसी इंटरनेट पर और ना ही यूट्यूब चैनल पर कहीं प्रकाशित की गई है। आज मैं जो साधना भेज रहा हूं वह पूरी और पूरी यूट्यूब! को हिला कर रख देने वाली साधना है क्योंकि यह साधना है जो पूरी यूट्यूब में कहीं पर भी आपको नहीं मिलेगी।

आज मैं जो साधना शेयर करने जा रहा हूं, यह साधना कुंभकरण महाराक्षस की साधना है। कुंभकरण महा राक्षस को हम कुंभकरण महाराज भी बोल सकते हैं। कुंभकरण महाराज लंका के राजा रावण के छोटे भाई थे और बहुत ही शक्तिशाली थे। इनकी शक्ति रावण के समान ही मानी जाती है। मैं आज इस मंत्र की और इस साधना की पूर्ण विधि-विधान आपको दे रहा हूं। यह ना हीं नेपाल की साधना है और ना ही इंडिया की साधना है। यह साधना सीधे श्रीलंका की साधना है। श्रीलंका में इस साधना को बहुत सारे गुप्त तांत्रिक करते हैं और विशेष रूप से श्रीलंका के जो तांत्रिक ओझा गुनी है और पंडित जैसे लोग होते हैं। इतनी साधना करते हैं ताकि? मारण मोहन वशीकरण स्तंभन, उच्चाटन विद्वेषण आकर्षण सम्मोहन। रसायन और इसी प्रकार के कार्यों को चुटकियों में किया जा सके। कुंभकरण महाराज साधक के सामने प्रत्यक्ष रूप से आ जाते हैं यानी कि महाशक्तिशाली स्वरूप में सामने आकर। प्रकट होते हैं इस साधना में निश्चित रूप से उग्रता है। उग्रता का मतलब कुंभकरण महाराज तो साधक को नहीं डर आएंगे। लेकिन आसपास जो शक्तियां होती हैं, वह साधक को डरा सकती है। इसलिए गुरु के मार्गदर्शन में ही यह साधना करें और गुरु का मतलब कोई यूट्यूब के गुरु नहीं बल्कि गुरु, परशुराम आदि शंकराचार्य गुरु गोरखनाथ। जैसे गुरु जिन्होंने वाकई में तपस्या करके अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की हो। ऐसा ही होना चाहिए और इसके साथ साधक को इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए गुरु मंत्र को पहले से ही सिद्ध करके रखना पड़ता है। और कोई भी गणेश मंत्र भी सिद्ध किया हुआ होना चाहिए और हनुमान जी महाराज का निर्भय बनाने वाला मंत्र भी सिद्ध किया होना आवश्यक है। कुंभकरण महाराज के बारे में ज्यादा कुछ बताने से उनको परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। कुंभकरण महाराज लंका के सबसे भयंकर राक्षस थे और इनका शरीर अत्यंत ही विशाल था। इनका जो वजूद है वह 1000 वृक्ष के समान माना गया है। यह इतने बलशाली दानव थे। के हिमालय पर्वत भी इनसे कापता था। इनमें इतना अधिक शारीरिक बल था। इनकी ताकत एक हजार हाथियों के बराबर मानी जाती है। शारीरिक बल की बात करें तो हम हनुमान महाराज पहले नंबर पर आते हैं तो द्वितीय स्थान पर कुंभकरण महाराज को रख सकते हैं।

यह तो एक महा पंडित थे और धर्म के प्रकांड विद्वान भी थे। इनके शरीर विशाल होने के कारण यह राक्षस रूप में ज्यादा प्रसिद्ध हुए। और रावण ने ही राक्षस! समुदाय के जो तंत्र और मंत्र और विचार के संपूर्ण शक्तियां और विजय प्राप्त करने की कोशिश की थी, इसलिए राक्षस की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए कुंभकरण को भी हम राक्षस की सही में ही रखते हैं। कुंभकरण महाराज 6 महीने तक यानी 6 महीने सोते और 6 महीने के बाद जागते थे। इन को जगाने के लिए नगाड़ा इत्यादि चीजें मंगा कर के। इनको जगाया जाता था।

तो अब बाकी बातें पर समय व्यतीत ना करते हुए सीधे-सीधे साधना विधि पर आता हूं जो कि इस प्रकार से है।

कुंभकरण महाराज की साधना यानी कि इनकी यह जो साधना है, बड़े ही मजेदार तरीके से होगी। इनकी साधना अमावस्या से शुरू होती है। यह साधना घर पर नहीं होगी। इस साधना को करने के लिए साधक को एक बियाबान जंगल में जाना होगा। इस साधना में साधक को ढाई सौ ग्राम जलेबी भोग के रूप में कुंभकरण महाराज को अर्पित करना होगा और जलेबी चीनी की ही बनी होनी चाहिए। गुड़ से बनी हुई नहीं होनी चाहिए और अगर किसी में ढाई सौ ग्राम जलेबी अर्पित करने की सामर्थ्य नहीं है तो वह 100 ग्राम से लेकर डेढ़ सौ ग्राम तक जलेबी भी अर्पित कर सकता है और दो बर्फी का भोग भी साधक को लगाना है। दूध और मट्ठे! के घड़े में इसे रखना है और वह भी अर्पित करना है। यह सब साधक को रात्रि में यानी कि रात को करना होता है। साधक को उसके बाद आटे का एक पुतला तैयार करना है और जो घड़ा है वह किसी भी पेड़ पर लटका देना है और उसके अंदर कम से कम एक से डेढ़ लीटर दूध या मट्ठा डाल देना है और थोड़ा सा शक्कर भी डाल देना है और उसको।

उसके बाद! लटका देना है और उसको छोड़ देना है। जिस तरह से भगवान शिव के शिवलिंग पर बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है ठीक उसी प्रकार गुनगुन या बूंद-बूंद मट्ठा उस पुतले पर टपकते रहना चाहिए और वह मटका खाली नहीं होना चाहिए। यानी कि जैसे ही दूधिया मट्ठा। कम होता। वैसे ही थोड़ा-थोड़ा उस पर दूध का मट्ठा डालते रहना चाहिए। जब तक यह साधना खत्म नहीं हो जाती है। साधक को इस तरह से जिलेबी बर्फी दूध और मट्ठा अर्पित करने के बाद शिवलिंग की स्थापना भी करनी चाहिए और शिवलिंग का पंचोपचार पूजन भी करना है। लेकिन पहले उस पुतले को अर्पण तर्पण मार्जन कर्म करना चाहिए और उसके बाद ही शिवलिंग की स्थापना और पंचोपचार पूजन करना चाहिए। शिवलिंग पथर या मिट्टी का होना चाहिए।

उसके बाद पुतले को संस्कारित करें और एक संस्कारित रुद्राक्ष माला से। यानी जागृत रुद्राक्ष माला से पहले एक माला गुरु मंत्र एक माला गणेश मंत्र एक माला भगवान शिव का मंत्र एक माला गायत्री मंत्र और एक माला सुरक्षा मंत्र का जाप कर लेना चाहिए। और इसके साथ-साथ साधक को एक मीठी पूरी भी लेकर जाना है और उस पर कपूर रखकर चलाना है और एक पान का बीड़ा भी लेकर जाना है और एक लाल कपड़ा भी लेकर वहां जाना है और उस पुतले और पान के पेड़े। भी उसी लाल कपड़े पर रख देने हैं। अब लास्ट में साधक को घी का दीपक जलाना है और गूगल सुलगा देना है।

अगरबत्ती जलाकर भगवान शिव और कुंभकरण महाराज की पूजा करनी है । रावण की भी पूजा करनी है। कुंभकरण महाराज की यह साधना 41 दिन की साधना है और एक बार पेड़ पर  लटकाने के बाद 41 दिन तक उस मटके को और पुतले को वहां से निकालना नहीं है। साधक को प्रतिदिन वहां जाना है और रात के 7:00 बजे से लेकर 8:00 बजे साधना शुरू करना है और इनको गुरु पिता या मित्र के रुप में सिद्ध करना पड़ता है। लेकिन इन इनको गुरु रूप में सिद्ध करना सबसे उत्तम रहता है क्योंकि यह बहुत ही अच्छा मार्गदर्शन करेंगे और साधक को इनका जो मूल मंत्र है, उसका अट्ठारह माला जाप करना है। इस साधना का प्रभाव साधक को दसवे दिन या 11 दिन दिखना शुरू हो जाएगा। कुंभकरण महाराज के प्रत्यक्ष दर्शन साधक को होने लग जाता है, लेकिन कभी-कभी 9 दिन से भी शुरू हो सकता है। कभी 12 दिन भी लग सकते हैं। कुंभकरण महाराज की एक हाथ में गधा होगी और दूसरे हाथ में पांच अंकुश होगा और यह बड़े ही सुंदर वस्त्र, आभूषण इत्यादि से अलंकृत होंगे।

और रोज यह आएंगे और सुरक्षा घेरे के पास आते ही अदृश्य हो जाएंगे। यानी कि गायब हो जाएंगे, इस तरह से क्रम चलता रहेगा और 41 वें दिन प्रत्यक्ष रूप से साधक के सामने प्रकट होकर साधक से बात करने लगेंगे और साधना की इच्छा पूछेंगे। उस समय साधक को पहले जलेबी और बर्फी कुंभकरण महाराज को खाने के लिए देना है और कुंभकरण महाराज से वचन भी लेना है और अपनी इच्छा भी बोल देना है। उसके बाद कुंभकरण महाराज खुश होकर प्रसन्न होकर तथास्तु बोल देंगे और उस समय साधक को उनको फिर से बुलाने के लिए कोई अंगूठी या कोई भी निशानी मांग लेनी है। उसके बाद जब भी साधक किसी संकट में फंस गया हो जैसे कि 100 दुश्मनों से और राक्षसों से घिरा हो और तब अगर वह साधक कुंभकरण महाराज का आवाहन करता है तो कुंभकरण महाराज उसी समय गदा सहित साक्षात रुप में प्रत्यक्ष होकर उन सब का विनाश कर देंगे। तो दोस्तों की तरह यह साधना संपन्न होती है। इस साधना का मंत्र यानी कि कुंभकरण महाराज का मंत्र इस प्रकार से है।

ॐ अशोक कुंभकरण महा राक्षस कहकशा गर्व संभूत शीघ्र जन्मे जन्मे दीर्घ दीर्घ शीघ्र आवे आवे प्रगट प्रगट फलोदी, फलोदी शत्रु विनाशक विनाशक पर सैन्य स्तंभन महा बलवान रुद्र आज्ञा पति स्वाहा।

तो इस पोस्ट में यहां पर मैं खत्म करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि पोस्ट आपको बहुत अच्छा लगेगा। गुरु जी अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगे तो बहुत जी प्लीज इसका एक वीडियो बनाकर जरूर इसे पोस्ट करें। गुरु जी जय श्री राम जय महावीर हनुमान।

यह था आज का यह पोस्ट कुंभकरण साधना से संबंधित अगर आपको यह पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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