कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा भाग 3
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसे कि अभी तक आपने कुंभ कथा प्रयागराज में नागा साधु और उनका चिमटा भाग 1 और भाग-2 के बारे में आपने जाना । किस प्रकार से कहानी आगे बढ़ रही थी । काली भूतनी गुरु सिद्धा बाबा की पूरी तरह से मदद कर रही थी । लेकिन बकरे की मुंह वाली मुरना देवी जब प्रकट हुई तो उन्होंने एक शर्त रख दी कि मुझे घास खिला और जो मैं खाऊंगी वही तुझे खाना होगा अगर तू वही नहीं खाएगा तो मैं तेरी साधना को सफल नहीं होने दूंगी । इसलिए हरी पत्ती वाली कोई भी खास मुझे खिला और जो तू खाएगा वही मैं खाऊंगी मैं जो खाऊंगी वही तू खाएगा और तब तक खाएगा जब तक कि इसकी सिद्धि नहीं होती है । चिमटा सिद्धि के लिए गुरु सिद्धा बाबा सोच में पड़ गए और वो यह सोचने लगे कि अब क्या होगा । यह बकरे के मुंह वाली मुरना देवी मेरी बहुत ही बुरी परीक्षा ले ली है अब मैं क्या करूं । इसके लिए उन्होंने एक बार काली भूतनी को आवाहित किया और उस आवाहन से काली भूतनी ने उनके कान के बाल में जाकर बैठ कर उन्हें कुछ बताया । उनकी बात को सुनकर के एक बार फिर से गुरु सिद्धा बाबा जी बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गए । उन्होंने सोचा कि लगता है आज मेरा कार्य संपन्न हो जाएगा उनके चेहरे की मुस्कुराहट यही बता रही थी । उन्होंने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया और बकरे की मुंह वाली मुरना देवी की आराधना करने को कहा साथ ही साथ मुरना देवी से कहा कि मैं जल्दी ही आपके लिए भोजन की व्यवस्था करता हूं । मैं अवश्य ही आपके लिए भोजन लेकर आऊंगा और मैं वचन देता हूं कि जो पत्ते मैं खा खाऊंगा वही पत्ते आपको भी खिलाऊंगा ।
बकरे की मुंह वाली मुरना देवी ने कहा मैं हरे पत्ते ही खाती हूं इसलिए हरे पत्ते ही मुझे खिलाना और जो मैं खाऊंगी वही तुझे खाना होगा अब चाहे वह भोजन तेरे को पचे या ना पचे यह तेरी समस्या है । लेकिन मुझे यह कार्य तभी मैं संपन्न करूंगी इस मार्ग में अब तभी तुझे आगे बढ़ाऊंगी तेरी चिमटा सिद्धि का अगला भाग शुद्ध तभी करूंगी जब तू यह कार्य को संपन्न करेगा । बकरे की मुंह वाली मुरना देवी से बात सुनकर के अब गुरु सिद्धा बाबा जंगल की ओर निकल गए । आगे बढ़ते जा रहे थे उन्हें एक विशेष स्थान पर जाना था । जिसके बारे में काली भूतनी ने बताया था वहां पहुंच कर एक व्यक्ति के खेत के नजदीक पहुंच गए । उस खेत के व्यक्ति के पास पहुंच कर उन्होंने अपने कुछ बातें उनसे कहीं वह उनके चरणों में प्रणाम करके उस खेत के व्यक्ति ने कहा अवश्य मैं आपके सारे कार्य संपन्न करूंगा । आपको इस बारे में किसी भी प्रकार समझने और परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है । मैं आपका यह कार्य अवश्य ही करूंगा और तभी वह व्यक्ति अपने घर की ओर बढ़ गया । बाबा वहीं पर खड़े रहे और सोचते रहे कि आगे उन्हें आगे क्या करना है तभी वह व्यक्ति एक बड़ी सी बोरी ले आया और उस बड़ी सी बोरी में उसने खेत में रखी हुई अपनी फसल को तोड़ना शुरू कर दिया और पूरी की पूरी वह उस बोरी में भर लिया । बोरी में भर लेने के बाद अब सहायता के लिए एक दो और व्यक्ति आ गए । और उस बड़ी सी बोरी को लेकर के बाबा सिद्धा के साथ वह चलने लगे । बाबा सिद्धा धीरे-धीरे करके उस स्थान पर पहुंचे। जहां बकरे की मुंह वाली मुरना देवी अदृश्य रूप में उपस्थित थी । जिनकी साधना और पूजा उनके दो शिष्य कर रहे थे । गांव वालों से उन्होंने कहा कि विशेष स्थान पर उस बोरी को रख दो ।
और बकरे की मुंह वाली मुरना देवी वहां पर प्रकट हुई यह सब वो देख रही थी । उन्होंने मुस्कुराकर गुरु सिद्धा बाबा को देखा और कहा कि यह सब को विदा कर यह मेरी बातें नहीं सुन सकते है लेकिन तू मेरी बात सुन सकता है इन सब को हटा और अपनी साधना के लिए तैयार हो जा । इस प्रकार से बकरे की मुंह वाली मुरना देवी की आज्ञा पा कर के गुरु सिद्धा बाबा ने सब को आशीर्वाद देकर उन गांव वालों को विदा कर दिया । वहां पर जो बोरी रखी हुई थी उस बोरी को जैसे ही खोला गया और उससे फिर काटा गया काटने के बाद में वह अर्पित की गई मुरना देवी को । और मुरना देवी ने प्रसन्नता से कहा तू वास्तव में चतुर है तू मेरे लिए यह बंद गोभी लेकर आया है जो पत्ते की ही बनी हुई होती है । और हरे रंग की होती है इस कारण मैं खाना स्वीकार करती हूं ।और तू चतुर है क्योंकि मनुष्य भी इसे खाते हैं तो इसे कच्चा तू कच्चा भी खा और मैं ही भी खाती हूं । और तब तक तेरी साधना और उपासना चलती रहेगी लेकिन मैं परीक्षा अवश्य लेती हूं । इसलिए मेरी परीक्षा का अगला चरण सुन गुरु सिद्धा बाबा ने कहा अवश्य ही देवी आप जो भी आज्ञा करेंगी मैं अवश्य ही उस बात को मानूगा । आपकी इस परीक्षा में सफल हो चुका हूं । क्योंकि मुझे पता है कि सबसे अच्छी पत्ती बंदगोभी हो सकती है हरे रंग की बंद गोभी की सब्जी सभी मनुष्य खाते हैं और आप भी । उसी को खाने के लिए मैंने आपको अर्पित किया है । मुरना देवी ने कहा तूने चतुराई दिखाई है और मुझे पता है तूने किसी की सहायता भी ली है इसलिए अब मैं तेरी दूसरी परीक्षा लेती हूं ।
अगर तूने आसन बांधा नहीं तो तेरी मृत्यु हो जाएगी याद रख आसन बांधना आवश्यक है । जब तू साधना करने बैठेगा इस बकरे की खाल पर तो तुझे आसन अवश्य बांधना होगा । अगर तूने आसन नहीं बांधा तो तेरी मृत्यु हो जाएगी और आसन बंधन का मंत्र मैं तुझे नहीं बताऊंगी । इस पर बड़ी ही समस्या प्रकट हो गई एक बार फिर सिद्धा बाबा सोचने लगे कि किस प्रकार से उन्हें आसन बंधन मंत्र को याद करना है । उन्होंने इसके लिए अपने नाथ गुरु को याद किया और उन्होंने ध्यान में उन्हें इस मंत्र को बताया मंत्र को बांधने के लिए उन्होंने विशेष प्रकार की शक्ति और सामर्थ्य की आवश्यकता को बताया जो उन्होंने कि । उन्होंने उस स्थान को कीलित किया और अपने आसन को बांधने के लिए विशेष प्रकार की प्रक्रिया की । और जलो को छिड़का और साथ ही साथ अपने शिष्य को विशेष विशेष कार्य सौंपा । जिससे कि वह आसन बंधन मंत्र को पढ़ सकें इसके बाद गुरु ने अर्थात सिद्धा बाबा ने उस आसन को बांधने के लिए मंत्र पढ़ना शुरू किया । मुरना देवी ने उसके मंत्र बोलने से पहले कहा अगर तुमने आसन बंधन का गलत मंत्र पढ़ा तो निश्चित रूप से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी । इसलिए सोच विचार कर शुद्ध उच्चारण के साथ मंत्र को पढ़ना । तो सिद्धा बाबा ने कहा मुझे यह मंत्र अपने गुरु के माध्यम से ही प्राप्त हुआ है इसलिए मैं इसको पढ़ता हूं और आपको समर्पित करता हूं । अपनी रक्षा को समर्पित करता हूं अपने आसन को समर्पित करता हूं और अपनी इस चिमटे को समर्पित करता हूं कहते हुए ।
उन्होंने शुरू किया ओम जय रघुनंदन आसन पधारम् ब्रह्मा विष्णु शिवम जगत धारणम सूर्य अग्नि पृथ्वी आकाश जलम प्रकारम् संसारम् उद्धारम् धर्मपारम संसारम नरप्राणी जगधारणम कवच धारणीयम् भग वस्त्रा धारण अग्नि प्रविश्यति भुवा भुवा स्वाहा यतींद्र देवा शंभणीवाणी प्रज्ञा विश्वामित्रा शिष्यम् संसारम् अवतारम् धर्म पारम आ गच्छयंती आ गच्छयंती कवचम् मणि उत्तीणम् पधारम् धरती धारम् युगपुरुष गावत प्रति साख्यम् युग युगांत्रम् आसन त्रिशूलम् उत्तर कामो शीघ्रतम् नमो नमो नमः इती सिद्धम् । मंत्र को पढ़ने के बाद जैसे ही उन्होंने इनका उच्चारण किया मुरना देवी प्रसन्न हो गई और कहा कि तू इस कार्य में सफल होगा । क्योंकि तूने आज बंधन नाथ मंत्र उच्चारण किया है । और इस मंत्र का उच्चारण करने से निश्चित रूप से आसन बंधता है । इसलिए मैं तुझ से प्रसन्न हूं और तुझे तुलसी आज्ञा प्रदान करती हूं की इस चिंमटा सिद्धि की विधि को आगे बढ़ा ।उसकी बात को सुन करके प्रसन्नता से गुरु सिद्धा बाबा साधना करने लगे साधना करते हुए । इसी प्रकार छह सात दिन बीत गए और वह भोजन के रूप में केवल हरी घास को ही खाते थे । यानी कि उस बंद गोभी कि सब्जी को कच्चा ही उन्हें खाना होता था । क्योंकि वह बकरे के मुंह वाली मुरना देवी को समर्पित करते थे । मुरना देवी इधर भोजन करती थी उधर सिद्धा बाबा भोजन करते थे दोनों लोग इसी प्रकार से भोजन करते रहे । और अपने शरीर में ऊर्जा को बनाए रखें इस प्रकार कई सारे दिन बीते चले गए अचानक से वहां पर एक दिन एक विशालकाय बड़ा सा बाघ नजर आया । वह बाघ चलता हुआ उधर आने लगा बाघ ने तीव्रता से मुरना देवी पर हमला कर दिया । मुरना देवी उससे लड़ने लगी और लड़ते-लड़ते घायल हो गई जैसे ही वह घायल हुई मुरना देवी वहां से गायब हो गई ।
यह बात गुरु सिद्धा बाबा को कुछ भी समझ में नहीं आई और गुरु सिद्धा बाबा अपनी साधना में लगे रहे । क्रोध से और गुस्से से भयंकर आवाज करते हुए उस बाघ ने तीव्रता से गुरु सिद्धा बाबा की ओर अपने चरण बढ़ाएं । वह कितना बड़ा बलवान और शक्तिशाली लग रहा था कि कोई साधारण शक्ति उसे रोकने की सामर्थ्य नहीं रखती थी ।उसको देख कर के गुरु सिद्ध बाबा ने सोचा क्यों मुझे मुरना देवी ने आसन बंधन मंत्र बताया था अपनी रक्षा और सुरक्षा के लिए आसन को मैंने बांध लिया है । अब इस आसन के अंदर इस आसन पर मुझे कोई हरा नहीं सकता कोई हटा नहीं सकता । और आसन बंधन के कारण अब मेरे को कोई शक्ति नुकसान नहीं पहुंचा सकती है । और हुआ भी वही नजदीक आने के बावजूद वह बाघ गुरु सिद्धा बाबा का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाया और क्रोध से उसने भयंकर ध्वनि की । ध्वनि करने के बाद शांत पडकर उसने मनुष्य की आवाज में बोला के हे सिद्धा बाबा यहां से भाग जा तु । नहीं जानता है कि तू क्या कर रहा है यह चिमटा भी मुझे दे दे । मैं शक्ति पुरुष हूं और महान यक्ष हूं और मैं नहीं चाहता कि कोई मेरा चिमटा ले ले । यह चिमटा में धारण करूगा इसलिए तू यहां से भाग जा । अगर अपने आप को जीवित देखना चाहता है तो यहां से भाग जा । देख मुरना देवी को मैंने कितनी आसानी से पराजित कर दिया और तू अब घास खाने लायक भी नहीं रहेगा ।
क्योंकि तुझे मैं भी खा जाऊंगा इस बात को सुनकर के सिद्धा बाबा ने कहा कि हे यक्ष आप जो भी हैं आप परेशान मत होइए । किसी भी प्रकार से मैं आपको कष्ट नहीं देने वाला हूं मैं केवल अपने साधारण सी साधना कर रहा हूं । इस कुंभ महोत्सव में आकर के मुझे समय मिला है तो मैं यहां कुछ महीने या कुछ दिन यहां पर बिताना चाहता हूं । और उसमें साधना करके सिद्धियां प्राप्त करना चाहता हूं । मुझे ऐसा पता चला है कि चिमटा सिद्धि से बहुत सारी सिद्धियां मेरे अधीन हो जाएंगी । और इस चिमटे से मैं बहुत ही अधिक शक्तिशाली हो जाऊंगा ।इसलिए कृपया मुझे इस बात की आज्ञा प्रदान कीजिए कि मैं इस साधना को संपन्न कर पाऊं । कुछ तो ऐसा अवश्य है जिसके कारण से मैं सफल अभी तक रहा हूं । अन्यथा मैं प्रथम चरण ही नहीं पार कर पाता । आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करूंगा मैं । आपकी सेवा भी करना चाहता हूं कृपया मेरे वचनों पर ध्यान दीजिए इतनी नम्रता से बोले गए शब्दों को सुनकर के उस बाघ के रूप में बने हुए यक्ष ने मनुष्य रूप धारण किया । और उससे कहा ठीक है तू मेरी पूजा तो करेगा मैं मानता हूं लेकिन अगर तूने मेरी पूजा में कोई गलती की या मैंने जो जो कहा वह तूने नहीं किया तो मैं निश्चित रूप से तेरी साधना तुझसे भंग तो करूंगा ही बल्कि अपनी भूख भी मिटाऊंगा ।
क्योंकि मैं अधिकतर बाघ के रूप में ही रहता हूं इसलिए जब मुझे भूख लगती है तो मैं भक्षण करता हूं और मुझे तुझसे अधिक अच्छा मनुष्य कहा मिलेगा । जो शक्तियों से भी संपन्न है और उसके पास अधिक आध्यात्मिक ऊर्जा भी है । तुझे खा कर के मुझे और अधिक आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति होगी । इसलिए सावधान हो जा अगर तू मेरी साधना करना चाहता है उपासना करना चाहता है तो निश्चित रूप से कर लेकिन अगर तूने मुझे किसी भी प्रकार से नाराज किया किसी भी प्रकार से मुझे छोड़ दिया या किसी भी प्रकार से मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया तो मैं तेरे प्राण ले लूंगा । इसलिए अब संभल कर इस कार्य को जगा इसलिए सबसे पहले तू पृथ्वी तत्व को त्याग अगर तूने पृथ्वी तत्व नहीं त्यागा तो मैं तेरा वध कर दूंगा ।ऐसा कह कर के बाबा एक बार फिर से समस्या में घिर गए । एक बार फिर से उन्होंने अपने गुरु को याद किया और उन्होंने एक और मंत्र बताया कि जिससे पृथ्वी तत्व की त्यागन शक्ति प्राप्त होती थी । अर्थात धरती से संपर्क टूटता था धरती से संपर्क टूटने पर ही वह यक्ष लोक की शक्तियों को धारण कर सकता था । इसीलिए सिद्धा बाबा ने उनसे पूछा तो उनके गुरु ने मंत्र बताया । ओम पृथ्वी तत्व प्राणी अघम् परित्यागम् आस्था नियम पूर्वधवात्म निवासम् पृथ्वी नवम त्यागम् शरीरम् महानितीवतम् प्रभु आदेशा अनुसरम् आदेश आदेश । इस प्रकार से उन्होंने पृथ्वी तत्व त्याग दिया और एक बार फिर से वह सिंह के रूप में यक्ष बदल गया ।और वहां सामने ही बैठ करके उसने कुछ कहना शुरू किया उसने क्या आदेश दिया । और उसने कौन से कार्य उनसे संपन्न कराएं । यह हम जानेंगे अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।