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कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा 5 अंतिम भाग

कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा 5 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आप का एक बार फिर से स्वागत है । जैसे कि हमारी कथा चल रही है और नागा साधु और उनका चिमटा भाग 4 अभी तक आप लोग जान चुके हैं । कि किस प्रकार से सिद्धा बाबा अपनी आगे की कहानी को बढ़ाते हैं और उसमें उनके साथ में अब एक बड़ी चुनौती है मणि को प्राप्त करना वह मणि जिस मणि के माध्यम से जो यक्ष देवता है जो शेर के रूप में स्थित थे और उन्हें खा गए थे । वो एक बार फिर से उन्हें वापस उनकी दुनिया में ले आए लेकिन इसके लिए उन्हें ढूंढना जरूरी था । तो जैसा कि उन्होंने अपने शरीर के माध्यम से एक जगह पहुंच जाते हैं पहाड़ पर बैठकर नागा बाबा एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां पर एक तालाब स्थित था । और उस तालाब में प्रवेश करने के बारे में सोचने लगे तभी वहां से वह बाण गायब हो गया । अब उनके सामने एक नई चुनौती थी जहां पर वह उन्हें विशालकाय एक तालाब दिखाई देता है । जो उस महान नगरी में उस राजमहल से बिल्कुल नजदीक था । संकेतों के आधार पर वह समझ जाते हैं कि इस जगह पर मणि हो सकती है और वह उस जल में प्रवेश करते हैं । तो वह पारदर्शी जल होता है एक ऐसा जल जो अपनी अलग ही चमक लिए हुए था । लेकिन वह पृथ्वी की जल की तरह से नहीं था बिल्कुल पारदर्शक था । जैसे कि कोई ऐसी चीज हो जो खुद का अस्तित्व ही ना रखती हो ।उस जल को देखकर वह अचंभे में पड़ गए की इस प्रकार का भी जल होता है । उस जाल में अंदर उतरने पर उन्हें किसी भी प्रकार से सांस लेने में कोई समस्या नहीं थी ।

क्योंकि वह पारदर्शक था । मनुष्य के लोक में जहां सांस लेने के लिए हमें आवश्यकता होती है प्राणवायु कि । लेकिन यहां पर प्राणवायु की कोई आवश्यकता नहीं पढ़ रही थी और वह उस जल में अंदर चले गए । वह तालाब विशालकाय था जिस तालाब में अंदर जा रहे थे अंदर जाते जाते उन्हें सामने एक सर्प दिखाई दिया । सर्प ने अपने फन को फैलाया और इन्हें काटने के लिए दौड़ा । लेकिन उससे यह भयभीत नहीं हुए और अपने गुरु मंत्र का उच्चारण करने लगे । गुरु मंत्र के उच्चारण से सर्प वही रुक गया और सर्प का जहां फन था उस फन से एक मनुष्य का चेहरा उभरा । उस चेहरे से सर्प ने कहा आप मुझे लगता है किस कार्य से आए आपको निश्चित रूप से मणि की प्राप्ति करनी होगी । लेकिन मणि इसी प्रकार साधारण किसी भी मनुष्य को नहीं दी जा सकती है । और फिर आप यहां क्यों और किस लिए आए हैं । इस पर गुरु सिद्धा बाबा ने कहा कि मैं यहां पर विशेष कार्य को संपादित करने के लिए आया हूं मेरा मणि प्राप्त करने का कोई उद्देश्य नहीं है । किंतु मणि की प्राप्ति के बिना मेरे कार्य सिद्ध नहीं होंगे । असल में मैं चिमटा सिद्धि कर रहा हूं और उस सिद्धि के लिए यक्ष रूपी बाघ देवता ने मुझे निगल लिया था । और उनके निगले जाने के कारण में एक यक्ष लोक में आ गया यहां पर आ कर के उन्होंने मुझे निर्देशित किया है कि मैं मणि को साथ में लेकर आऊ । अगर मणि के साथ में नहीं आता हूं तो वह अपने शरीर से मुझे वापस नहीं उगलेंगे । और अगर उन्होंने मुझे वापस नहीं उगला तो मैं फिर से धरती पर वापस नहीं पहुंच पाउंगा ।

इसलिए यह मेरी आवश्यकता है आप इस बात को समझ सकते है । इस पर सर्प ने कहा ठीक है अगर आपकी ऐसी इच्छा है तो मैं भी आपके साथ चलूंगा । और इस प्रकार सर्प मानव उनके साथ चलने लगा । कुछ दूर चलने के बाद में एक विशाल जगह आ गई जो पानी के अंदर ही थी । वहां पर एक कमल विशालकाय कमल स्थित था । जो कि मनुष्यों की धरती में उगने वाले कमलो से बहुत बड़ा और बहुत विशालकाय था । उस पर कम से कम 50 से 100 लोग बैठ सकते थे । इतना विशालकाय उसके पत्ते थे इतने विशालकाय कमल को देखकर आश्चर्य में पड़ गए सिद्धा बाबा । और  सिद्धा बाबा ने कहा यह तो अजीब ही चमत्कारिक जगह है । ऐसा ना देखा ना सुना ना जाना तो मुझे अब क्या करना चाहिए । उन्होंने काली भूतनी को याद किया काली भूतनी ने उन्हें मार्ग सुझाया कि । इसी में आपको मणी मिलेगी । तभी जैसे ही वह उस पते पर चढ़ने लगे जिसकी सहायता से वह उस कमल तक पहुंच सकते थे । तभी वहां उन्होंने एक बूढ़ा आदमी और एक बूढ़ी औरत को बैठे हुए देखा । बूढ़ा आदमी और बूढ़ी औरत बीच रास्ते में बैठे हुए थे और उनके उन्हें हटाए बिना या उनको अलग किए बिना वहां से कोई अन्य मार्ग नहीं था । जिससे वह उस कमल तक पहुंच पाते कमल की बेल पर बैठे हुए वह दोनों ही अत्यंत मुस्कुराहट भरी एक दूसरे को चेहरे को देख रहे थे । गुरु सिद्धा बाबा उनके पास पहुंच कर उन्हें प्रणाम किया और कहां कि बाबा आप लोग यहां से हट जाईए । ताकि मैं आगे का मार्ग अपने लिए सुगम बना सकूं और उस कमल तक पहुंच सकूं जहां मणि रखी हुई है । इस पर नागा साधु की बात सुनकर वह दोनों बहुत ही ज्यादा आश्चर्य में पड़ गए और उन्होंने एक दूसरे को देखते हुए उससे कहा बात तो सही कहते हो ।

लेकिन समस्या यह है कि अगर यह कार्य को हम संपादित करेंगे तो हम भी समस्या में घिर सकते हैं । इस पर उन्होंने कहा ऐसी कौन सी समस्या आपको आ सकती है । तो उनकी बात को सुनकर के उन दोनों ने उन बूढ़ा आदमी और एक बूढ़ी औरत ने एक बार फिर से उनकी तरफ देखते हुए कहा कि ।हमारे पास हमारा एक छोटा सा बच्चा है यह छोटा सा मानव का बच्चा जैसा होता है । उसी तरह है यहां पर भी बच्चों की उत्पत्ति होती है लेकिन समस्या यह है कि अगर हम इस लोक से बाहर गए तो तुम्हें इसकी बलि देनी होगी ।अगर तुम इस बच्चे की बलि दोगे तभी तुम हम से मुक्त हो सकते हो और हम इस मणि कर्ज से मुक्त हो सकते हैं । इसके बिना नहीं अन्यथा यह मणि तुम्हें प्राप्त नहीं होगी उनकी बात सुनकर के बड़े ही अचरज में सिद्धा बाबा पड़ गए । सिद्धा बाबा ने कहा भला मैं बच्चे की बलि क्यों दूंगा यह तो बहुत ही घोर अपराध है । लेकिन उन दोनों ने कहा इसके अलावा तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है । गुरु सिद्धा बाबा ने सोचा कि यह कैसी मुसीबत आन पड़ी है मुझे कह रहे हैं कि बच्चे की बलि देनी होगी और वह भी मैं ही दूंगा ।यह कैसे संभव है इस पर काली भूतनी ने उनके कान में कहा जैसी माया अभी तक रची गई है मुझे लगता है यह भी कोई माया है । यह ऐसी माया जो आज तक कहीं ना देखी है ना सुनी गई इसलिए सिद्धा बाबा आप इनकी बात को मान लीजिए और अपने बुद्धि का प्रयोग करें । उन्होंने कहा ठीक है मैं इनकी बात को मान लेता हूं और वह उनको साथ में लेकर उस मणि तक पहुंचे । उस मणि को उन्होंने अपने हाथ में धारण किया और उस मणि को प्रणाम करते हुए बूढ़ा स्त्री और बूढ़ा पुरुष साथ साथ उस नाग को लेकर अब ऐसी अवस्था में उसे धीरे करके उस नगरी में फिर से वापस आ गए ।

उस नगरी में इधर-उधर ढूंढने के बावजूद भी उन्हें कहीं पर भी कोई यक्ष शक्ति नहीं दिखाई दी तब उन्होंने कहा एक बार फिर से मुझे लगता है मरना होगा और यह सोचकर उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया और आत्मा को शरीर से अलग किया । अचानक से बयार या हवा सी बही जो एकदम से उन्हें वहां से उठाकर धरती पर पटक दी ।धरती पर आकर सब कुछ सामान्य हो गया एक बार फिर से उन्हें अपना शरीर मिल चुका था । वह बूढ़ी स्त्री और बूढ़ा पुरुष भी साथ में था वह नाग पुरुष भी साथ में था काली भूतनी भी साथ में थी और सामने बाघ के रूप में बड़ा ही विशालकाय यक्ष खड़ा था । यक्ष ने कहा तुमने अत्यंत शुभ कार्य किया है और उस मणि को यहां तक लेकर आ गए हो तुम्हारी सिद्धि पूर्ण होगी लेकिन सबसे पहले मुझे यह मणि प्रदान करो । उनकी बात सुनकर के सिद्धा बाबा ने कहा मैं मणि तो दे दूंगा लेकिन मेरे साथ आए हुए यह दोनों बूढ़े स्त्री व पुरुष मुझसे कह रहे हैं कि कोई भी कार्य करने से पहले मुझे बलि देनी होगी । उसके बाद ही में कोई भी कार्य संपन्न कर पाऊंगा या मणि भी आपके पास तभी आएगी । जब मैं इस बच्चे की बलि दे दू लेकिन मैं यह सोच रहा हूं मैं इस बच्चे की बलि कैसे दूंगा मैं इस बच्चे की बलि नहीं दे सकता हूं । इस पर उस यक्ष ने कहा तुम सही कहते हो छोटे से बालक की बलि किस प्रकार से तुम दोगे इस प्रकार तो तुम्हारी सिद्धि  ऐसी ही रह जाएगी अधूरी रह जाएगी और समाप्त हो जाएगी । तो अब क्या कर सकते हो तो गुरु सिद्धा बाबा ने कहा कोई उपाय तो होगा उन्होंने कहा ठीक है यह एक उपाय है अगर बालक की बलि और तुम स्वयं अपनी भी भली दोनों बलिया एक साथ दे दो तो तुम बच जाओ । और अपने कार्य को संपन्न भी कर लोगे लेकिन इसके बाद तुम्हें कोई शक्ति प्राप्त नहीं होगी । उनकी बात को सुनकर के गुरु सिद्धा बाबा ने कहा मैं समझ नहीं पाया आपने क्या कहा । तो इस बात को यक्ष और साथ ही साथ उन बूढ़े स्त्री पुरुष ने कहा अगर तुम बच्चे की बलि देते हो तुम खुद ही चिमटे में समा जाओगे और बाद में जब कोई व्यक्ति तुम्हारे को पकड़ेगा तो तुम्हारे शरीर सहीत तुम्हारी आत्मा इस चिमटे से बाहर आ जाएगी लेकिन यह कार्य तो तुम्हें संपन्न करना ही होगा । गुरु सिद्धा बाबा ने कहा ठीक है अगर ऐसी बात है तो मैं इस बच्चे की बलि दूंगा लेकिन मैं यह सत्य प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं अपने आपको अपने प्रभु योगेश्वर को समर्पित करता हूं ।

क्योंकि मैं यह गलत कार्य कर रहा हूं और हो सकता है यह कार्य माया हो तथापि मैं गलत काम कर रहा हूं इसलिए मैं बच्चे के साथ स्वयं की बलि भी अपने गुरु योगेश्वर भगवान शिव को समर्पित करता हूं । इस प्रकार उसने वह बच्चा और स्वयं नदी में प्रवेश कर गए । अर्थात उस गंगा नदी में उस रमणीय स्थल में जहां पर प्रयाग बसा हुआ है वह स्थान जहां पर सभी कुंभ में डुबकी लगाते हैं सशरीर दोनों ने डुबकी लगा दी पानी में डूबने की वजह से दोनों की मृत्यु हो गई । मृत्यु के बाद तुरंत शक्ति से नागा साधु का स्वरूप चिमटे में जाकर के समा गया इधर बच्चा पानी से बाहर आया और बड़ा होकर के मुस्कुराने कर हंसने लगा तभी एक बार फिर से उस यक्ष ने उस चिमटे को पकड़ा और चिमटे को पकड़ने के साथ ही उसमें से सिद्धा बाबा से सशरीर वापस निकल आए । सिद्धा बाबा ने देखा कि यह कैसा चमत्कारी जगह है यह सब क्या हुआ है तभी वहां पर जो बूढ़े स्त्री और पुरुष दोनों बैठे हुए थे वह दोनों के दोनों अपने वास्तविक रूप और स्वरूप में आ गए । और वह स्वरूप था भगवान शिव माता पार्वती का माता पार्वती और भगवान शिव वहां पर दोनों ही लोग प्रत्यक्ष दर्शन के रूप में गुरु सिद्धा बाबा को दिखाई दिए । वह विशालकाय यक्ष नंदी थे जो नंदी के रूप में प्रकट हुए और वह बालक गणेश जी थे जो छोटे से बच्चे के रूप में वहां पर प्रत्यक्ष रूप से नजर आए थे । इन सब को देख कर के गुरु सिद्धा बाबा अत्यंत ही खुश हो गए और उन्होंने उनकी पूरी तरह से वंदना और उपासना की ।

यह सारी की सारी प्रक्रिया भगवान शिव और माता पार्वती की योग माया से रची गई थी । इस योग माया में हर प्रकार से गुरु सिद्धा बाबा सफल रहे और इस प्रकार से उन्हें वह अद्भुत चिमटा शक्ति के रूप में प्रदान किया गया । उस चिमटे को प्राप्त करने के बाद में उन्होंने एक बात बताई वह बात भगवान शिव अपने मुख से इस प्रकार से कहते हैं की सुनो । हे सिद्धा बाबा आपको सिद्ध चिमटा दिया गया है आप इससे कुछ भी करने में समर्थ होंगे । लेकिन इसको जितनी कठिनाई से प्राप्त किया गया है उसमें हर एक बात में एक संदेश था अपना स्वयं को नष्ट करना । जब तक आप स्वयं को नष्ट नहीं करेंगे अर्थात अपने आपको आपने अहम को सून्य नहीं कर देंगे । किसी भी प्रकार के क्रोध से किसी भी प्रकार के भय से किसी भी प्रकार के मोह से अपने आप को पूरी तरह से मुक्त नहीं कर देंगे आपको सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती और संसार में किसी को प्राप्त नहीं होती सिद्धि । इसलिए इस बात से सदैव याद रखते हुए आपको यह अद्भुत चिमटा प्रदान करते हैं । इस चिमटे की सिद्धि से आप कुछ भी करने में समर्थ होंगे । लेकिन इसका कल्याण सदैव दूसरों की भलाई के लिए करना अगर आप ऐसा करेंगे तभी आप सफल जिंदगी में होंगे वरना आपकी श्रद्धा और शक्तियां किसी ना किसी समय अवश्य ही छिन जाएगी और यह बात  सदैव हर नाथपंथी हर नागा बाबा पर लागू होगी । अगर वह सिद्धि प्राप्त करता है और उन शक्तियों का प्रयोग व समाज के कल्याण के लिए नहीं करेगा तो उसकी सिद्धिया नष्ट हो जाएंगी ।

तो इस प्रकार से गुरु सिद्धा बाबा को चिमटा की सिद्धि प्राप्त हुई और भगवान योगेश्वर सदा शिव और माता पार्वती उनकी सदैव ही सहायता के लिए उस चिमटे में विराजमान हो गए । और वह अद्भुत शक्ति से संपन्न हुए इस प्रकार से गुरु सिद्धा बाबा को सिद्धि प्राप्त हुई । और उनके पाप स्वता ही नष्ट हो गए यह बात भगवान शिव ने माता पार्वती को बताई और संबोधित करते हुए । गुरु सिद्धा बाबा को कहा कि ब्रह्म हत्या जैसे अपराध से भी जो गंगा नदी में कुंभ के पर्व पर अपना स्नान करते हुए यह कार्य संपन्न करेगा उसके ब्रहम हत्या जैसे पाप भी नष्ट होंगे जैसे कि तुमने योग माया के द्वारा रची माया में भी ब्रह्म हत्या की थी और इस छोटे से बच्चे की जान ली थी । उससे भी तुम मुक्त हो गए क्योंकि एक तो तुम्हारे अंदर कोई स्वार्थ नहीं था और दूसरी बात यह है कि तुमने स्वयं परम पावनी गंगा के अंदर प्रवेश किया और उस महान शक्ति संपन्न मां गंगा के आशीर्वाद से और कुंभ में अमृत मिले होने के कारण जो गंगा में आज भी विराजमान है । आपको यह सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त हुई है और भविष्य में भी जो भी कुंभ के पर्व पर आकर के इस गंगा में आकर स्नान करेगा उसके समस्त पापों का नाश हो जाएगा चाहे उसने कितने भी बुरे कर्म किए हो । लेकिन सदैव तभी जब वह अपने अहम का त्याग करेगा और अपना सर्वस्व नष्ट करने के बारे में सोचेगा अर्थात अपना स्वम नष्ट करेगा अपना अहम शून्य कर देगा तो इस प्रकार से यह कहानी मुझे नागा बाबा साधु से मिली थी । उनके परंपरा में बहुत सालों पहले या यूं कहिए कि हजारों साल पहले गुरु सिद्ध बाबा हुए थे और उनको इस प्रकार से चिमटा सिद्धि प्राप्त हुई थी । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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