प्रणाम गुरुजी …गुरुजी 01 october जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं, आशा करता हू. अब आपकी सेहत पहले से और अधिक अच्छी होगी. और माता रानी से यही प्राथना है गुरुजी. की जल्द से जल्द आप पूरी तरह स्वस्थ हो जाए. और धर्म रहस्य चैनल के सभी दर्शकों के जीवन मे भी माता रानी अपना शुभ आशीष बरसाती रहे. ऐसी मेरी माँ से प्राथना है.
गुरुजी, आज के पत्र मे दर्शकों के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न लेकर आया हू. सुगंधा से जुड़े हुए मेरे अनुभव के बारे में दर्शकों के बहुत सारे प्रश्न है. तो जितना आज तक सुगंधा को समझ पाया हू. उसी के अनुसार उत्तर देने की कोशिश करूगा. और कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जिनके उत्तर स्वयं सुगंधा ने दिए थे. वो भी बताऊँगा.
गुरुजी दर्शकों के प्रश्न बहुत सारे है. पिछले 10 भागों मे जितने भी comments आए है. Maximum उनमे प्रश्न ही पूछे गए है. और दर्शकों ने mail के माध्यम से भी बहुत सारे प्रश्न मुझसे पूछे है. हर एक ‘साधक-श्रेष्ठ’ का नाम लेकर उनके प्रश्न का उत्तर मैं नहीं लिख सकता था गुरुजी, क्युकी पत्र काफी लम्बा हो जाता. इसलिए मैंने दस प्रकार मे प्रश्नो को विभाजित कर दिया है. हो सकता है, शब्द अलग हो. लेकिन दर्शकों के प्रश्न और जिज्ञासा वही है. आशीर्वाद की कामना करते हुए. आपके चरणों को स्पर्श करता हू गुरुजी और आज का पत्र शुरू करता हू. .
1):- गुरुजी, ये प्रश्न मुझसे सबसे ज्यादा बार पूछा गया है, अप्सरा, यक्षिणी तथा योगिनी साधना के बारे मे. की कैसे हम साधना करे कि किसी “अप्सरा” या “यक्षिणी” का प्रत्यक्षीकरण हो सके? इसके अलावा कुछ भाईयो ने प्रश्न पूछा है. कि जब भी हम इस प्रकार की कोई साधना पूछते है? तो ‘आप या तो कोई reply नहीं करते’ या ‘गुरु बना कर साधना करने की बात कह कर’ अपना पल्ला झाड़ लेते है.?? आप ऐसा क्यु करते है?
उत्तर :- गुरुजी, सबसे पहले तो मैं माफी माँगना चाहता हू सभी दर्शकों से. अगर कभी मेरी किसी बात का दर्शकों को बुरा लगा हो या मेरे reply न देने के कारण दर्शकों को बुरा लगा हो? . तो मैं माफी मांगता हू सभी दर्शकों से . दूसरी बात ये है गुरुजी, की अभी तक सुगंधा ने मुझे किसी प्रकार की कोई साधना विधी नहीं बतायी है. अभी सिर्फ नित्य पूजा करना और ध्यान लगाना ही सीख रहा हू. अभी मुझे साधनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
इसके अलावा सुगंधा मुझे कुछ ही बाते बताने की अनुमती देती है. बहुत सी ऐसी गुप्त बाते है गुरुजी. जिनको मुझे बताने की अनुमती नहीं मिलती है. या तो वो बाते अत्यंत गोपनीय होती है. या देव लोक से संबंधित होती है. और इस तरह की बातों को मुझे किसी को भी बताने की अनुमती नहीं है. और इसीलिए मैं अपनी डायरी लिखते समय दो तरह की पेन का उपयोग करता हू. जो बातें मैं बता सकता हू. उनको मैं नीले रंग की पेन से लिखता हू. और जिन बातों को बताने की अनुमती नहीं होती उन्हें लाल रंग की कलम से लिखता हू. ताकि गलती से भी सुगंधा या देवलोक के नियमों का उल्लंघन न हो. इसलिए पुनः माफ़ी मांगते हुए, दर्शकों से कहना चाहता हू गुरुजी. की अगर आगे सुगंधा मुझे तामसिक, राजसिक या सात्विक साधनाओं के बारे मे जानकारी देती है. तो मैं अवश्य ही वो जानकारी पत्र के माध्यम से सभी दर्शकों के साथ साझा करूगा. और जहा तक अनुमती का सवाल है, तो मुझे पूरा यकीन है. की सात्विक साधनाओं को बताने की अनुमती जरूर सुगंधा मुझे दे देगी.
गुरुजी, इसके अलावा मैं सभी साधक भाईयों से ये प्राथना भी करना चाहता हू. की गुरु बना कर ही आप साधना करे. भले आप सात्विक साधना ही क्यु न कर रहे हों. क्युकी जो मेरा अनुभव रहा है, 30 सालो का ! वो बहुत ही डरावना और भय से युक्त रहा है. और भय भी कोई छोटा मोटा नहीं था ! मैं हर पल, हर दिन अपने प्राणों की सुरक्षा को लेकर भयभीत रहा हू. और उस डर की सिर्फ एक ही वज़ह थी. “की मेरे पास गुरु का सानिध्य नहीं था”. आज सुगंधा की करीबी मेरे लिए शायद इस दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है गुरुजी. मगर बचपन मे ऐसा नहीं था. एक समय था, जब सुगंधा मेरे आसपास भी होती थी. तो मेरा शरीर पूरा सुन्न पड़ जाता था. और मेरी आत्मा तक भयभीत हो जाती थी.
गुरुजी, हो सकता है. की अन्य साधकों के अप्सरा साधना के अनुभव बहुत ही शीतल और सुन्दर रहे हो. लेकिन मेरे लिए सुगंधा के अनुभव, किसी डरावने सपने से कम नहीं थे. भाग 1 और भाग 2 मे बचपन से लेकर job लगने तक के अनुभव बता चुका हू. सबसे ज्यादा पीड़ा मुझे तब होती थी. जब सुगंधा मेरे करीब आती थी. हालाकि मैंने हमेशा एक दूरी बना कर रखी सुगंधा से. क्युकी मैं दोबारा जलना नहीं चाहता था. भाग 1 मे मैने बताया था गुरुजी. एक बार सुगंधा ने मेरी पीठ को touch किया था. और मेरी पीठ जल गई थी. और तीन दिनों तक मुझे बुखार भी आयी थी. सुगंधा हमेशा मेरी पीठ के पीछे तरफ आकर बैठती थी. और मैं दूसरी तरफ face करके बैठता था. और जैसे ही सुगंधा मेरे flat मे आती थी. मेरे हाथ पैर सुन्न पड़ जाते थे. हड्डियों और मांसपेशियों मे एक अजीब सी जकड़न होने लगती थी. जैसे पूरा शरीर मेरा paralyse हो जाएगा. बहुत समय लगाया, मेरे इस मानवीय शरीर ने गुरुजी. और धीरे धीरे जब मेरे शरीर ने सुगंधा के स्पर्श को स्वीकार कर लिया. तो अब मुझे सुगंधा के स्पर्श से कोई समस्या नहीं होती.
गुरुजी, सभी भाइयों से अपने एक बात बोलना चाहता हू. की, पढ़ने और सुनने में, (जैसे कि बाकी you tube channels पर बताया जाता है. “की साधना के आखिरी रोज. अप्सरा आएगी, उसको पान खिला देना , अप्सरा को माला पहना देना . अप्सरा का हाथ पकड़ कर वचन माग लेना. अपनी प्रेमिका या पत्नी बना लेना. इत्यादि”. ये सब बातें पढ़ने और सुनने मे बहुत अच्छी लगती है. मगर हकीकत कुछ और ही है) . क्युकी जब एक देवीय शक्ति आपके सामने प्रकट होती है. तो बड़ो बड़ो के भी पसीने छूट जाते है. पान खिलाना, माला पहनाना, तो बहुत दूर की बात है. ‘हाथ पैर बिल्कुल मृत जैसे हो जाते है’, ‘गले से आवाज नहीं निकलती’, और ‘मष्तिष्क भी काम करना बंद कर देता है’. उस समय सिर्फ दिल की धड़कन सुनाई देती है. और आपके ह्रदय का धड़कना एक एहसास को जीवित बनाए रखता है. की आप अभी तक जिंदा है. और ‘उस समय अगर आपकी कोई मदद कर सकता है, तो वो है आपके गुरु’.
और गुरुजी योगिनी शक्तियों के दर्शन के समय इस अनुभव को मैंने झेला है. और सुगंधा ने मुझे सम्भाला था. अगर सुगंधा मेरे साथ नहीं होती तो शायद वो दिन अंतिम दिन होता मेरे जीवन का. और शायद इसीलिए बाद मे सुगंधा ने मुझसे वचन भी माग लिया था. की अब आप कभी बेवजह उन शक्तियों को नहीं बुलाएंगे. और सुगंधा ने मुझे बहुत डाटा था एक बार गुरुजी. की वो कोई छोटी मोटी शक्तिया नहीं है. माता का अंश है. बड़े बड़े सिद्ध संत भी उनका तेज झेल नहीं पाते. अपने होश, अपनी चेतना सब कुछ गवां देते है. और तब मैंने सुगंधा को वचन दिया था कि मैं कभी बेवजह उनका आह्वान नहीं करूगा.
इसके अलावा, मैंने जब सुगंधा के दर्शन किए. उससे पहले मैं सुगंधा से बहुत सारी बातें कर चुका था. और ये भी जान चुका था कि सुगंधा मुझे इस जीवन के पहले से जानती है. और मुझसे बहुत प्रेम करती है. और शायद इसीलिए सुगंधा को प्रत्यक्ष देखने के बाद, मुझे उतना डर नहीं लगा. सुगंधा जब पहली बार मेरे सामने प्रत्यक्ष हुई थी वो घटना भाग 5 मे पहले ही बता चुका हू. और फिर से गुरुजी, सभी साधक भाईयो से पुनः निवेदन करूगा. गुरु बना कर ही आप किसी भी प्रकार की साधना गुरु की अनुमती लेकर करे. ताकि आप लोगों को मेरी तरह बुरे और डरावने अनुभव न हो. और अप्सराओ का, या यक्षिणी इत्यादि शक्तियों का प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है,.इसमे कोई संदेह नहीं है. बस भावना सही रखियेगा माता या मार्ग दर्शिका रूप में उनकी साधना करके जीवन को सही दिशा मे ले जाया जा सकता है. और समय आने पर उनसे मोक्ष का मार्ग भी प्राप्त किया जा सकता है.
2):- गुरुजी इस दूसरे प्रकार के प्रश्न मे दर्शकों ने अन्य सम्प्रदायों के बारे में मुझसे बहुत सारे सवाल पूछे है. और ये प्रश्न comment section मे सबसे ज्यादा बार पूछा गया है. उत्तर :- गुरुजी मैं किसी सम्प्रदाय या सभ्यता का नाम नहीं लूँगा. और आपके माध्यम से गुरुजी मैं सभी संप्रदाय और आज तक कि मृत्यु लोक मे जन्मी सभी सभ्यताओं को प्रणाम करता हू.
गुरुजी जितने भी देशों के बारे मे हम आज के भूगोल के हिसाब से जानते है. की “tectonic plates” के लगातार खिसकने से. सात महाद्वीपों का निर्माण हुआ है. जैसे कि अफ्रीका, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, एशिया, यूरोप, उत्तरी अमरिका और दक्षिणी अमेरिका. लेकिन गुरुजी सुगंधा के मुताबिक जब सृष्टि की सरंचना हुई. तब म्रत्यु लोक यानी हमारी पृथ्वी का जन्म हुआ. और इस प्रथ्वी पर मनुष्यों के रहने के लिए जिन सात द्वीपो का निर्माण किया गया था वो है :- प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, क्रौचं द्वीप, शाक द्वीप, पुष्कर द्वीप तथा जम्बू द्वीप .
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा था कि सबसे पहले सनातन धर्म की स्थापना जिस द्वीप पर हुई उसका नाम जम्बूद्वीप था. सुगंधा ने जम्बूद्वीप का विस्तार बताने के लिए globe मे जहा जहा उंगली रखी थी. आज के मानचित्र के हिसाब से गुरु जी उन देशों के नाम है. मिस्त्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक़, इजराइल, कज़ाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और आज का हमारा भारत. इस पूरे विस्तार को वेदों मे तथा पुराणों मे जम्बूद्वीप के नाम से संबोधित किया गया है.
गुरुजी सुगंधा अपनी मधुर आवाज मे मुझे समझाते हुए बोली कि, जम्बूद्वीप के भी नौ खंड थे यानी नौ राज्य थे. जिनके नाम है :- इलाव्रत, भद्राव्श्र, किंपुरूष, भरत , हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु तथा हिरण्यमय. भगवान नारायण ने कई बार अवतार लेकर इन राज्यों को दुष्टों के आतंक से मुक्त किया था. गुरुजी सुगंधा के बताये हुए इन नौ राज्यों मे सबसे पवित्र राज्य और किसी पवित्र धाम की तरह पूज्यनीय राज्य था भरत खंड. यानी आज का हमारा भारत देश. जहा कभी देवता भी निवास करते थे. गुरुजी सुगंधा के मुताबिक भारत राज्य की सरहदें तब पारस (यानी ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, आज का हमारा हिन्दुस्तान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, थाइलैंड, मलेशिया, कंबोडिया, वियतनाम और लाओस तक का कुछ हिस्सा भारत राज्य कहलाता था. इसी खंड को आर्यावर्त भी कहा जाता है.
गुरुजी मैंने सुगंधा से कहा कि, “सुगंधा तुम अगर कुछ कह रही हो तो मेरे लिए तो स्वयं माँ भगवती ही कह रही है”. परंतु मुझे एक बात पूछना है, क्युकी ?…. गुरुजी मेरा प्रश्न अभी समाप्त भी नहीं हुआ था. की, सुगंधा ने उत्तर दे दिया कि वायु पुराण के 31वे अध्याय के 37वे तथा 38वे श्लोक मे सभी द्वीपों के बारे में आपको जानकारी मिल जाएगी. इसके अलावा ब्रम्ह पुराण के 18 वे अध्याय के 21वे, 22वे तथा 23वे श्लोक मे भी सभी द्वीप समुहो के बारे मे विस्तृत वर्णन किया गया है. इसके बाद सुगंधा ने बताया गुरु जी की ऋग्वेद मे भी जम्बूद्वीपे भारतखंडे आर्यवृत मे बहने वाली नदियों के साथ साथ भारत खंड की पवित्रता का विस्तृत वर्णन ऋग्वेद (नदी सूक्त) के 10वे अध्याय मे 75वें सूक्त से प्रारम्भ हो जाता है.
गुरुजी सुगंधा के मुताबिक, जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है. तब से लेकर आज तक ‘धर्म सिर्फ एक ही था, एक ही है, और एक ही रहेगा’. और वो है सनातन धर्म. जिसकी स्थापना स्वयं परम पिता परमेश्वर ने की थी. और इसीलिए गीता मे भगवान खुद कहते है कि जब जब धर्म की हानि होगी अर्जुन, धर्म की पुनः स्थापना, ऋषि मुनियों के कल्याण तथा पापियों को दंड देने हेतु मैं अवतरित होता रहूँगा. गुरुजी सुगंधा का मानना है कि जबसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई, तब से लेकर आज तक न जाने कितने सम्प्रदाय, तथा सभ्यताएं जन्मी है और अपना समय पूरा हो जाने के पश्चात विलुप्त हो गई. लेकिन धर्म कभी विलुप्त नहीं हो सकता. क्युकी सनातन धर्म ईश्वर के संरक्षण मे है.
मेरे एक अन्य सवाल पर सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझे उत्तर दिया था गुरुजी. की चाहे क्रौचं द्वीप (आज के मानचित्र के हिसाब से अफ्रीका) पर किसी कबीले के सदस्य की मृत्यु हो, चाहे शाक द्वीप (आज के हिसाब से यूरोप) मे किसी की म्रत्यु हो. चाहें गंगा माँ के तट पर बैठे किसी सन्यासी की म्रत्यु भरत खंड मे हो. सबका लेखा जोखा देव चित्रगुप्त ही रखते है. समस्त म्रत्यु लोक के पाप और पुण्य उन्हीं की कलम मे समाहित है. और “धर्मराज (यमराज) धर्म के अनुसार पापियों को दंड सुनाते है”. सबसे पहले, स्वीकार कराया जाता है जीवात्मा से . (की स्वीकार करो. ये ये गलतिया तुमने की थी अपने जीवन मे, ये ये पाप किए थे. और जीवात्मा रोती और विलाप करती हुई, बारंबार क्षमायाचना करती हुई हर पाप अपना स्वीकार करती है.) गुरुजी सुगंधा ने बताया कि अलग अलग पापो के लिए अलग अलग दंड के विधान है. और यमराज के अलावा वहां ज़न लोक, महर लोक के ऋषि मुनि तथा धर्म के जानकार भी यमराज के साथ वहां बैठे होते है. और विचार विमर्श करके उपयुक्त दंड उस जीवात्मा को दिया जाता है.
3):- गुरुजी तीसरे प्रकार के इस प्रश्न मे. दर्शकों ने कई बार प्रश्न पूछा है, कि सुगंधा तो संस्कृत मे बात करती है? आप वार्तालाप कैसे करते है.?? गुरुजी ये प्रश्न mail मे भी पूछा गया और comment section मे भी कई बार repeat हुआ था.
उत्तर :- गुरुजी, दर्शकों को बताना चाहता हू. की सुगंधा को हर भाषा आती है. English, जर्मन, चाइनीज, स्पेनिश, इत्यादि जितनी भी भाषायें इस धरती पर बोली जा रही है. या कभी बोली जाती थी. और जिन पुरानी सभ्यताओं के साथ आज उनकी भाषा भी अब विलुप्त हो चुकी है. वो भाषा भी सुगंधा को आती है. लेकिन सुगंधा मुझसे सिर्फ संस्कृत मे ही बात करती है. उसके पीछे की वज़ह ये है कि मैं भी संस्कृत सीखने का प्रयास करू. सुगंधा का मानना है, कि इस दुनिया की हर भाषा संस्कृत से ही निकली है. और संस्कृत ही देव भाषा है. यहा तक कि सुगंधा ने कई बार मुझे ‘मंत्र’ के साथ ‘बीज पदों’ का विनियोग कैसे किया जाता है. जब सुगंधा वो नियम मुझे सीखा रही थी तब कई बार सुगंधा ने मुझे बताया था. की संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं है. संस्कृत मे लिखे एक मंत्र को अगर एक खास लय मे बार बार जपा जाए. तो इंद्र के सिंहासन को भी हिलाया जा सकता है. और इसीलिए सुगंधा मुझे संस्कृत पढ़ा भी रही है काफी समय से. हालाकि मेरी vocabulary अभी भी बहुत कमजोर है संस्कृत की. जिसके लिए मुझे रोज किसी एक topic पर संस्कृत मे निबंध भी लिखना पड़ता है. और सुगंधा शाम को आकर मेरी व्याकरण और मात्राओं की गलतिया मुझे बताती है. तो अब ज्यादा समस्या नहीं होती है. सुगंधा की बातों को हिन्दी मे translate करने मे. हाँ पहले बहुत दिक्कत आती थी. जिसके लिए मैं dictionary और Google का उपयोग करता था. और एक एक शब्द का मुझे हिन्दी मे meaning ढूँढ कर लिखना पड़ता था. या फिर library मे बैठ कर. ग्रंथो मे उन विधियों को ढूंढना पड़ता था..
4) :- गुरुजी ये चौथा प्रश्न एक साधक का है? इन्होंने संकल्प लेने की विधी पूछी थी मुझसे. गुरुजी इनका कहना था कि (“मेरे गुरु ने हर चीज मुझको बतायी है, लेकिन सुगंधा दीदी की बात ही कुछ अलग है. सिर्फ संकल्प, मैं सुगंधा दीदी के बताये हुए शब्दों से लेना चाहता हू, और साथ ही साथ उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करना चाहता हू.”) ऐसा इन्होंने मुझे mail भेजा था .मुझे लगा गुरुजी की इस जानकारी को सभी के साथ भी साझा करना चाहिए.? इसलिए इस प्रश्न को शामिल कर रहा हू.
उत्तर :- गुरुजी, बहुत पहले सुगंधा ने मुझे समझाते हुए कहा था कि, संकल्प का अर्थ होता है प्रतिज्ञा. और कभी भी कोई प्रतिज्ञा यू ही नहीं कर लेनी चाहिए. अर्जुन ने भी एक बार आवेश में आकर एक संकल्प ले लिया था. ” की अगर कल का सूरज ढलने तक जयद्रथ का वध मैंने नहीं किया तो आत्मदाह कर लूंगा”,. और तब भगवान को अर्जुन की सहायता करनी पडी थी. सुगंधा ने मुझसे कहा था गुरुजी, की कभी भी गुरु की आज्ञा के बिना कोई भी संकल्प नहीं लेना चाहिए.
संकल्प लेने की विधी :- गुरुजी, सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा था कि, भगवान ब्रम्हा, विष्णु तथा महेश. त्रिदेवो का आशीर्वाद प्राप्त करके आचार्य को अनंत स्वरूप मान कर. गुरु से भी आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. तथा जिस भी कर्मकांड के लिए संकल्प लेने जा रहे है. उसकी पूरी जानकारी गुरु से आशीर्वाद के साथ ही प्राप्त कर लें. तत्पश्चात, इस प्रकार संकल्प ले कि { आज प्रवर्त्तमान, श्री ब्रम्हा के द्वितीय परार्ध्द मे, श्री श्वेत वाराह कल्प मे, वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाइसवें कलियुग के प्रथम चरण मे, जम्बूद्वीप के अंतर्गत भरत खंड मे, आर्यावर्त के अंतर्गत ब्रम्हावर्थ के पुण्यप्रद पवित्र राज्य मे, वौध्दावतार के ‘अमुक’ संवत्सर मे (इस साल जो संवत्सर चल रहा है उसका नाम प्रमादी है, हर साल संवत्सर अलग अलग होते है, जैसे अगले साल ‘आनंद’ लग जाएगा, उसके बाद ‘राक्षस’ नाम का संवत्सर लगेगा, तो जो भी संवत्सर लगा हो उसका नाम लेना है.) तत्पश्चात अमुक अयन मे, (भाग 5 मे अयन के बारे मे पहले ही बता चुका हू, स्वर्ग लोक मे 6 महीने का दिन होता है और 6 महीने की रात्रि. यानी प्रथ्वी का 1 साल स्वर्ग लोक के 1 दिन के बराबर होता है. इसी को अयन कहते है. अयन साल मे दो होते है. प्रथ्वी पर उत्तरायण सूर्य और दक्षिणायन सूर्य के नाम से हम जानते है) अमुक पक्ष मे, अमुक दिन से युक्त, अमुक तिथी मे, तथा अमुक नक्षत्र मे, अमुक राशि के स्थित सूर्य मे, और अमुक राशियों, ग्रहो की स्थिति एवं दशा के अनुसार अमुक शुभ योग मे, अमुक शुभ करण मे, तथा अमुक पुण्य तिथी मे, ( गुरुजी ये सारी जानकारी दर्शकों को पंचांग से प्राप्त हो जाएगी.)
समस्त वेदों, पुराणों, श्रुतियों, स्मृतियों, सूक्त एवं संहिताओं मे कहे गए फल की प्राप्ति का अभिलाषी, अमुक गोत्र मे उत्पन्न, अमुक माता पिता का पुत्र, मैं प्रतीक त्रिपाठी अमुक कर्मकांड का संकल्प लेता हू.} गुरुजी, इस प्रकार सुगंधा ने संकल्प लेने के लिए बताया था. दर्शकों से फिर से एक बार निवेदन है. बिना अपने गुरु की अनुमती के कोई संकल्प न ले. क्युकी अगर उसे पूरा नहीं करेगे. तो उसके दुष्परिणाम भी हमको भुगतने पड़ते है. इसके अलावा संकल्प लेते समय वाणी मे दृण निश्चय, स्थितप्रज्ञ मन, तथा मस्तिष्क मे स्पष्ट लक्ष्य का होना आवश्यक है. अन्यथा संकल्प अधूरा माना जाता है.
5):- गुरुजी एक प्रश्न मुझसे पूछा गया था अभी हाल ही मे. कि, यात्रा करते समय बिल्ली का रास्ता काट देना, या यात्रा के आरंभ मे छीक आ जाना, पुराने बुजुर्ग लोग इन्हें आज भी अपशकुन मानते है. देवी का इस बारे में क्या विचार है? क्या ये सब सच है या लोगों ने बस यू ही बना लिया है? उत्तर :- सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा गुरुजी. की कोई भी मान्यता यू ही नहीं बन जाती, उसके पीछे हज़ारों वर्षों के अनुभव छुपे होते है. सुगंधा ने सबसे पहले अपशकुन अशुभ संकेतों के बारे में बताया गुरुजी. उसके बाद शुभ संकेतों को.
अशुभ संकेत :- गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि. यात्रा के दौरान श्वेत वस्त्र का दिखाई देना, मार्ग के किनारे सफेद कपास या रुई, सूखे गोबर यानी कंडा या उपले का टुकड़ा, मार्ग मे पड़ा हुआ धन, सिर मुंडवा कर शरीर मे तेल लगाता हुआ साधु, चमड़ा, गर्भवती स्त्री के खुले बाल, पागल मनुष्य, हिजडा, चांडाल, किसी शव की अंतिम यात्रा, खोपड़ी एवं हड्डी (चाहे किसी पशु की हो या मनुष्य की), तथा फूटा हुआ बर्तन. अगर यात्रा के दौरान दिखाई दे जाए तो ये अशुभ संकेत होता है. किसी अनिष्ट की संभावना होती है. अच्छा यही है कि उस समय यात्रा टाल दे. अगर किसी विवशता के कारण यात्रा नहीं टाली जा सकती. तो पूरी यात्रा में, गुरुमंत्र का मन ही मन जाप करते रहे. या अपने इष्ट का सुमिरन करते रहे.
गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि “चले आओ”- यह शब्द अगर सामने की ओर से सुनाई पड़े तो उत्तम है. परंतु पीछे की ओर से आवाज आयी हो तो अशुभ होता है. (भले कोई किसी और को बोल रहा हो. परंतु आपको आवाज पीछे से आयी है. तो अशुभ ही है)
“चले जाओ”- यह शब्द पीछे की ओर से आ रहा हो तो उत्तम है. परन्तु आपके सामने से ये आवाज अगर आयी है. और आपने सुन लिया है तो अपशकुन है.
“कहा जाते हो”, “ठहरो”, “न जाओ”, “वहा जाने से तुम्हें क्या लाभ” – ऐसे शब्दों को सुन लेना, चाहे आपसे कोई बोल रहा हो या आपने सुना हो. ऐसे वाक्यों को सुन लेना अनिष्ट का सूचक होता है.
किसी महत्वपूर्ण यात्रा की तयारी करते समय यदि सिर पर चोट लग जाये, यात्रा के वाहन या गाड़ी पर यदि मांसाहारी पक्षी चील इत्यादि बैठ जाए. मार्ग के किनारे किसी पुराने खंडहर पर चील, काक, काली बिल्ली या उल्लु अगर दिखाई पड़ जाए. एवं, चांडाल मांस भक्षण करता दिख जाए. तो तत्काल यात्रा रोक देनी चाहिए. तथा भगवान शिव की स्तुति एवं वंदना करके पुनः यात्रा प्रारम्भ करे. अगर दोबारा इसी प्रकार के अनुभव हो. तो वापस घर लौट जाए. उस दिन यात्रा न करे. क्युकी इस प्रकार के अपशकुन अकाल म्रत्यु का कारण बनते है.
शुभ संकेत :- यात्रा के समय श्वेत पुष्प के दर्शन, जल से भरे हुए घड़े का दिखाई देना, तो बहुत ही उत्तम है. दूर का कोलाहल या शोर जैसे किसी के यहा उत्सव हो रहा हो, गौ, घोड़े, हाथी या हाथियों का झुंड, देव प्रतिमा, प्रज्वलित अग्नि, ताजा गोबर, रत्न (अगर पैसे पड़े दिखाई देते है तो अशुभ होता है, परंतु सोना, चांदी इत्यादि अगर मार्ग पर दिख जाए तो शुभ संकेत है). इसके अलावा वैश्या का मार्ग मे दिखाई दे जाना भी शुभ संकेत है
औषधीया, मधुमक्खियों का छत्ता, ईख (खेत मे न लगी हो, खेत से काट कर ले जायी जा रही हो या आपकी नजर फसल की कटाई पर पड़ जाए तो शुभ होता है ), शुभ सूचक वचन, भक्त पुरूषों का गाना बजाना, मेघ की गंभीर गर्जना, बिजली की चमक, तथा मन का संतोष ये सब शुभ शकुन है. गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा कि, अशुभ तो इतने सारे संकेत है. पर शुभ संकेत तो थोड़े से ही है? गुरुजी सुगंधा ने अपनी मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि, इसीलिए कोई भी यात्रा करने से पहले बड़े बुजुर्ग का आशीर्वाद तथा गुरु से आज्ञा प्राप्त करनी चाहिए. किस दिशा की ओर किस दिन जाना है? , किस मुहूर्त मे निकलना है? , रास्ते मे विश्राम के लिए पड़ाव, किस किस स्थान पर होना चाहिए? ये सारा विचार-विमर्श, यात्रा आरंभ करने से पहले गुरु से कर लेना चाहिए.
6):- गुरुजी, एक साधक है. जिन्होंने मुझसे द्वादश अक्षर मंत्र के बारे मे जानकारी मागी थी. और मुझसे पूछा था कि, (क्या मैं इस मंत्र का जाप कर सकता हू? इसकी विधी क्या है?) तो गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछ कर इनको उत्तर दिया था. और द्वादश अक्षर मंत्र का नाम सुन कर ही सुगंधा बहुत खुश हो गई थी गुरुजी. मुझे लगा ये जानकारी मुझे यहा भी साझा करनी चाहिए. ताकि भगवान नारायण के भक्तजन भी इसका लाभ उठा सके. इसलिए इस प्रश्न को मैंने शामिल किया गुरुजी. उत्तर :- गुरुजी दर्शकों को बताना चाहता हू, की भगवान नारायण की पूजा विधी वही रहेगी जैसी सुगंधा ने भाग 7 मे बतायी थी. बस भगवान की वंदना द्वादश अक्षर स्तोत्र पढ़ते हुए करे. और पूजा भी द्वादश अक्षर मंत्र के द्वारा करे. इसके अलावा अगर आप चाहें तो इस मंत्र और इस स्तोत्र का जाप भी कर सकते है. और जिसके परिणाम स्वरूप आप भोग और मोक्ष दोनों को एक साथ प्राप्त कर लेगे. हालाकि ये असंभव है, मोक्ष को प्राप्त करने के लिए भोग को छोड़ना ही पड़ता है. परंतु ये मंत्र इतना शक्तिशाली है. की असंभव को भी सम्भव कर देने मे सक्षम है. और साधक के ऊपर स्वयं श्रीजी (यानी माता लक्ष्मी) की कृपा, सावन की तरह बरसती है. और जब स्वयं माता लक्ष्मी धन की वर्षा कर रही हो, और परम पिता नारायण का आशीर्वाद भी साधक को प्राप्त हो चुका हो. तो भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति एक साथ हो जाती है. ऐसा सुगंधा ने मुझसे कहा था गुरुजी.
द्वादश अक्षर स्तोत्र :- गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे मुझसे कहा कि ओंकार स्वरूप केशव अपने हाथो मे पद्म, शंख, गदा और चक्र धारण करते है. आपको आँख बंद करके प्रभु के चतुर्भुज रूप का ध्यान करना चाहिए. और ध्यान मे आप प्रभु के दाहिने भाग के नीचे वाले हाथ से लेकर बाये भाग के नीचे वाले हाथ तक प्रभु के अस्त्रों को निहारें. अर्थात, केशव के दाएं भाग के निचले हाथ मे पद्म को देखिए , ऊपर वाले हाथ मे शंख. बाएं भाग के ऊपर वाले हाथ मे चक्र को देखिए , और नीचे वाले हाथ मे गदा को निहारें.
तत्पश्चात, आप प्रभु के 24 रूपों का ध्यान करके इसी प्रकार दाएं भाग के निचले हाथ मे पद्म को देखिए , ऊपर वाले हाथ मे शंख. बाएं भाग के ऊपर वाले हाथ मे चक्र को देखिए , और नीचे वाले हाथ मे गदा को निहारें. अर्थात “केशव, वासुदेव, नारायण, माधव, गोविंद, श्री विष्णु, मधुसूदन, त्रिविक्रम, वालवटुरुपधारी भगवान वामन, श्रीधर, हृषीकेश, भगवान पद्मनाभ, दामोदर, वासुदेव, संकर्षण, युद्ध कुशल भगवान प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सुरेश्वर पुरुषोत्तम, भगवान अधोछज, नरसिंह देव, अच्युत, जनार्दन, यज्ञ स्वरूप श्री हरि, तथा भोग और मोक्ष दोनों एक साथ देने वाले प्रभु श्री कृष्न”. इन सभी 24 स्वरूप के दाएं भाग के निचले हाथ मे पद्म को देखिए , ऊपर वाले हाथ मे शंख. बाएं भाग के ऊपर वाले हाथ मे चक्र को देखिए, और नीचे वाले हाथ मे गदा को निहारें.
गुरुजी सुगंधा अपनी मधुर आवाज मे मुझसे बोली कि, आदि मूर्ति भगवान वासुदेव है. वासुदेव से केशव, नारायण से माधव, संकर्षण से गोविंद, विष्णु से मधुसूदन, प्रद्युम्न से त्रिविक्रम, वामन से श्रीधर, अनिरुद्ध से हृषीकेश, तथा पद्मनाभ से दामोदर. की अभिव्यक्ति हुई थी. गुरुजी सुगंधा ने आगे बताया कि चौबीस मूर्तियों की स्तुति से युक्त इस द्वादश अक्षर स्तोत्र का जो पाठ करता है, वह निर्मल होकर सम्पूर्ण मनोरथ को प्राप्त कर लेता है. तथा मोक्ष का अधिकारी बनता है.
_ॐ_ रूपः केशवः पद्म शंख चक्र गदा धरः। नारायणः शंख पद्म गदा चक्री प्रदक्षिणम्।। 1
_न_तो गदो माधवोरी शंख पद्म नमामि तम्। चक्र कौमोदकी पद्म शंखी गोविंद ऊर्जितः।। 2
_मो_क्षदः श्री गदी पद्मी शंखी विष्णुच् चक्र धृक।शंख चक्राब्ज गदिनं मधुसूदन मानमे।। 3
_भ_क्त्या त्रिविक्रमः पद्म गदी चक्री च शंख्यापि। शंख चक्र गदा पदमी वामनः पातु मां सदा।। 4
_ग_दितः श्रीधरः चक्र शार्ङगी च शंख्यापि। हृषीकेशो गदा चक्रौ पदमी चक्र शंखी च पातु न।। 5
_व_रदः पद्मनाभस्तु शंखब्जा रिगदा धरः ।दामोदरः पद्म शंख गदा चक्रौ नमामि तम्।। 6
_ते_ने गदी शंख चक्री वासुदेवो-ब्ज-भृज्जगत्। संकर्षणो गदी शंखी पदमी च पातु वः।। 7
_वा_दी चक्री शंख गदी प्रद्युम्नः पद्मभृत प्रभुः। अनिरुद्ध च्श्रक्र गदी शंखी पदमी च पातु न।। 8
_सु_रेशौर्य-ब्ज-शंखाय श्री गदी पुरुषोत्तमः। अधोक्षजः पद्म गदी शंखी चक्री च पातु वः।। 9
_दे_वो नरसिंह चक्राब्ज गदा शंखी नमामि तम् । अच्युतः श्री गदी पदमी चक्री शंखी च पातु वः।। 10
_वा_ल रूपी शंख गदी उपेंद्र-चक्र-पद्मयापि। जनार्दन: पद्म चक्री शंखधारी गदाधरः।। 11
_य_ज्ञ शंखी पद्म चक्री च हरिः कौमोदकी धरः। कृष्न शंखी गदी पद्मी चक्री मे भुक्ति मुक्ती दः।। 12
आदिमुर्ति वासुदेवस्त स्मात संकर्षणो भवत्। संकर्षणाच्च प्रद्युम्न प्रद्युम्ना-द-अनिरुद्धकः ।।
केशवादि प्रभेदेन एकैकस्य त्रिधा क्रमात्।
द्वादशा क्षरकं स्तोत्रं चतुर्विशति मूर्तिमत्। यः पठेच्छणु याद्रापि निर्मलः सर्वमान् प्रुयात।।
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज मे इस स्तोत्र को गा कर सुनाया था. जिसे सुन कर मेरी आत्मा को बहुत शांति मिली थी. सुगंधा ने आगे बताया गुरुजी की इस स्तोत्र मे, शुरू के 12 श्लोक स्तुति के लिए है. प्रत्येक श्लोक मे भगवान के दो – दो स्वरूपो की स्तुति और वंदना की गई है. तथा इन बारहों श्लोकों के प्रथम अक्षरो को एक साथ जोड़ने से “द्वादश अक्षर मंत्र” बनता है. अर्थात (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) यही द्वादश अक्षर मंत्र है. एवं द्वादश अक्षर स्तोत्र को चौबीस मूर्तियों का स्तोत्र भी कहते है.
7):- गुरुजी सातवे प्रकार मे उन प्रश्नो को लिया है. जहा दर्शकों ने सुगंधा का देव लोक का नाम, एवं सुगंधा दिखती कैसी है, पूछा है?. इसके अलावा सिद्ध गुरु की प्राप्ति कैसे हो.? ये सवाल comment section मे भी कई दर्शकों ने पूछा है? और mail के माध्यम से भी.? उत्तर :- गुरुजी, दर्शकों से दोबारा माफी मांगता हू. सुगंधा का देव लोक का नाम बताने की अनुमती मुझको नहीं है. और भी ऐसी बाते है जिनकी अनुमती मुझको नहीं दी गई है गुरुजी. जैसे कि, ‘ऐसे किसी भी व्यक्ती से मिलने की या फोन पर बात करने की अनुमती भी नहीं है, जो सुगंधा के बारे में जानता हो. जहा तक, सिद्ध गुरु की बात है. तो गुरुजी, मैं दर्शकों से निवेदन करना चाहता हू. की आप लोग ऐसा मत सोचिए कि आज के समय मे सिद्ध पुरुष है ही नहीं. आज भी हमारे भारत देश मे ऐसे ऐसे सिद्ध जन है. जिनकी शक्तियां हमारी सोच से भी परे है. लेकिन हमे उनके पास जाना पड़ेगा, उन्हें ढूढ़ना पड़ेगा. और उसके लिए हमे अपने bedroom से बाहर निकल कर, बीहड़, सुनसान जंगल, या पर्वतों की ओर जाना पड़ेगा. जहा वो रहते है. क्युकी, ऐसे सिद्ध ज़न ऐसे ही स्थानो पर रहते है. क्युकी उनके इष्ट को भी एकांत ही पसंद है. भारत मे ऐसे कई मंदिर है, जो शहरो की जगमगाहट से दूर एकांत मे है. और लगभग हर प्रख्यात मंदिर ऐसे ही स्थानो पर बने है. इसके अलावा कुछ साधनाएं नदी तालाब के किनारे बैठ कर ही की जाती है, तो कुछ श्मशान मे बैठ कर, ये भी एक प्रमुख वज़ह है, ऐसे सिद्ध जनों के एकांत वास करने की. और माता का आशीर्वाद अगर प्राप्त हो जाए. तो cities मे भी योग्य गुरु मिल जाते है. ये तो मेरा मंतव्य था गुरुजी. लेकिन सुगंधा ने भी एक बार रिश्तों को लेकर एक बात कही थी. जिसे मैंने अपनी डायरी मे नोट कर लिया था.
सुगंधा ने मुझसे एक बार कहा था गुरुजी. की “विश्वामित्र जैसा गुरु, सीता जैसी पत्नी, लक्ष्मण जैसा भाई, दशरथ जैसा पिता, जीवन मे तभी मिल पाते है, जब आप राम जैसे बन जाओ”. और मैंने सुगंधा के आगे हाथ जोड़ कर कहा था. की सुगंधा, मैं इस जीवन मे राम जैसा बन पाउंगा या नहीं.? मैं नहीं जानता, लेकिन तुम माँ सीता जैसी पवित्र जरूर हो. मैं तुम्हारी पवित्रता को प्रणाम करता हू. और सुगंधा ने मेरे हाथ पकड़ लिए थे गुरुजी.
इसलिये गुरुजी, दर्शकों के इस प्रश्न का एक ही लाइन मे उत्तर दिया जा सकता है. (कि, आप राम जैसे बन जाइए, विश्वामित्र जैसे गुरु भी आपको मिल जायेगे). क्युकी कभी कभी, ऐसा होता है. की विश्वामित्र जैसे गुरु सामने ही होते है, मगर हम उन्हें पहचान नहीं पाते. इसलिए पहले हमे खुद को बदलना चाहिये.
(इसके अलावा सुगंधा की सुन्दरता को शब्दों मे नही बताया जा सकता. उसकी नीली आंखे, उसका मासूम चेहरा, उसके लम्बे रेशमी केश, उसके गुलाबी अधर, उसकी मीठी वाणी, उसकी मधुर मुस्कान. मेरे पास उपयुक्त उतने सुन्दर शब्द ही नहीं है, कि उस सोंदर्य को यहा व्यक्त कर सकू. या ‘शायद व्याकरण मे इतने सुन्दर शब्द बनाए ही नहीं गए. जो सुगंधा की सुंदरता को व्यक्त कर सके’ . उसकी खुशबु इतनी निर्मल और शीतल है. की मैं कितना भी थका रहूं पूजा पाठ या ऑफिस के काम के कारण. उसकी खुशबु आते ही मेरी सारी थकान दूर हो जाती है. और उसका प्यारा सा चेहरा देखने के बाद तो. मैं एक जन्म और लेने के लिए तैयार हो जाता हू.)
गुरुजी. पत्र बहुत लंबा हो चुका है. इसलिए बाकी के तीन प्रश्न अगले पत्र मे बता दूँगा. और यही आशा है, कि ये जानकारियां दर्शकों के बहुत काम आएगी. गुरुजी, आशीर्वाद की कामना करते हुए, आपके चरणों को स्पर्श करता हू. और आज का पत्र यही समाप्त करता हू. माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे