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खुशबू वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 17

प्रणाम गुरु जी 🙏🙏🙏

गुरुजी, सभी दर्शकों को भी प्रणाम करता हू. औऱ इतना प्यार औऱ स्नेह देने के लिए सभी दर्शकों का धन्यवाद करता हू. गुरुजी आज के पत्र की शुरुआत, दर्शकों के ही पूछे गए दो महत्वपूर्ण प्रश्नो के साथ करने जा रहा हू. दोनों ही प्रश्न सुरक्षा के दृष्टिकोण से पूछे गए थे. औऱ दादी के ठीक होने के बाद तथा सुगंधा के स्वर्ग से वापस आने के बाद क्या क्या मेरे साथ घटित हुआ. औऱ किस प्रकार सुगंधा ने मुझे योगिनी शक्ति का परिचय दिया. औऱ उनकी साधना करने के दिशा निर्देश दिए. वो सारी जानकारी भी आज के पत्र के माध्यम से दर्शकों के साथ साझा करने जा रहा हू. आशीर्वाद की कामना करते हुए. आपके चरणों को स्पर्श करता हू गुरुजी, औऱ आज का पत्र प्रारंभ करता हू.
 प्रश्न 1:- गुरुजी, कई दर्शकों का प्रश्न था कि आपने जिस प्रकार भाग 15 मे अपनी दादी की रक्षा की. हमारा घर भी प्रेत बाधा से ग्रसित है. घर में हमेशा लड़ाई झगडे होते रहते है, कभी शांति नहीं रहती, हमेशा कोई ना कोई बीमार भी रहता है. औऱ घर में पैसों की भी दिक्कत हमेशा रहती है. अपनी दादी जी को ठीक करने के लिए, आपने जो निग्रह यंत्र बनाया था. आपके बताये अनुसार, हमने भी बनाने की कोशिश की. परंतु बना नहीं पाए. क्या आप वो निग्रह यंत्र बना कर दिखा सकते है. जैसा सुगंधा दीदी ने आपको सिखाया था. हमारे लिए इतना ही काफी होगा प्रतीक भाई की देव लोक की एक अप्सरा के बताये हुए यंत्र के हम दर्शन कर सके. 
 
उत्तर 2:- गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी औऱ मधुर आवाज में मुझसे कहा था कि,  10 रेखा खड़ी खींच कर उनके ऊपर 10 रेखा पडी खींच दे, तो 81 कोष्ठकों का “श्री निग्रह चमत्कारी यंत्र” तैय्यार हो जाता है. गुरुजी मैंने निग्रह यंत्र बना कर भेजा है. ताकि दर्शकों को समझने मे कोई परेशानी ना हो. गुरुजी मध्यम वर्ग के खाली कोष्ठक मे  संबंधित प्रेत योनी का पद नाम लिखना है. यानी जिस भी बाधा से परेशान है आप, जैसे कि भूत, प्रेत, चुड़ैल, डायन, जिन्न, बेताल, पिशाच, ब्रम्हराक्षस, पिशाचनी, राकिनी, शाकिनी, काकिनी, इत्यादि. उसका पद नाम खाली जगह पर लिख दे. निग्रह यंत्र प्रवेश द्वार पर भी बनाया जा सकता है. औऱ पूजा के कमरे पर भी. माँ भगवती की जैसे आप नित्य पूजा अराधना करते है. माता के किसी भी मंत्र को जपते हुए निग्रह यंत्र की भी, नित्य पूजा करनी चाहिए. गुरुजी सुगंधा के अनुसार, दो दो “रं” बीजों के साथ उस प्रेत का पद नाम लिख कर, यंत्र के चारो तरफ “भूृं, क्षूं, छूं, और अंत मे कवच बीज़ हूं” को लिखने के बाद यंत्र के ईशान आदि कोनों में, भीतर की तरफ “कालरात्री मंत्र”, और बाहर की तरफ “यमराज मंत्र” लिखना चाहिए. जिस घर में निग्रह यंत्र मौजूद होता है. वहाँ किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर सकती.
दूसरा गुरुजी ये यंत्र एक प्रकार के ” फिल्टर ” का भी कार्य करता है. बहुत से साधक भाइयों के mail मेरे पास आते है. जिनकी परेशानी रहती है. की हम “यक्षिणी” या “अप्सरा” साधना कर रहे थे प्रतीक भाई. यक्षिणी तो सिद्ध हुई नहीं. उसकी जगह एक पिशाचनी सिद्ध हो गई है. औऱ जीवन अब नर्क बन चुका है. इसलिए प्राणों की रक्षा करते हुए. साधना करना बंद कर चुके है. लेकिन फिर भी वो पिशाचनी हमारा पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है. गुरुजी मैं अपने  सभी साधक भाइयों को बताना चाहता हू, आपकी समस्या का निवारण “श्री निग्रह यंत्र” ही है. साधना बंद करने की कोई आवश्यकता नहीं है. आप भोजपत्र पर यंत्र बना कर. सबसे पहले उसकी पूजा करले, औऱ पूजा करने के बाद बीच के खाली कोष्ठक पर “संबंधित नकारात्मक ऊर्जा” का नाम लिख दे. औऱ कलश के स्थान पर उस यंत्र को रख दे. औऱ अब बिना किसी आशंका या भयभीत हुए बिना. अपनी यक्षिणी साधना पुनः प्रारंभ करे. साधना मे चाहे 1 महीने का समय लगे या 6 महीने का. जब भी आपको अनुभव होगा. वो यक्षिणी ही होगी. औऱ आपकी साधना निश्चित ही सफल होगी. इसके साथ साथ उस पिशाच से आपको मुक्ति भी सदा सर्वदा के लिए मिल जाएगी.
प्रश्न 3 :- गुरुजी, तीसरे प्रकार के प्रश्न मे दर्शकों के उन प्रश्नो को ले रहा हू. जहा साधक भाई बहन, मारण, स्तंभन, उच्चाटन इत्यादि परेशानी से निपटने के लिए कई बार मुझे mail कर चुके है तथा मुझसे सहायता मागी थी.
उत्तर 3:- गुरुजी कई दर्शकों के mail आए थे मेरे पास. औऱ सबसे अधिक mail इसी संबंध मे थे. की हमारे परिचित या परिजनों के ऊपर तंत्र, मंत्र, किया गया है. गुरुजी, ये जो यंत्र मैं बताने जा रहा हू. इस यंत्र का नाम “गौरी यंत्र” है. इसके बारे में ज्ञान सुगंधा ने बहुत पहले मुझको दिया था. लेकिन मेरे साथ समस्या ये थी गुरुजी, कि बहुत सारी बातों को जग जाहिर करने से सुगंधा मुझे रोक देती है. औऱ ये रक्षा यंत्र भी उन्हीं बातों मे से एक था. जिसको सुगंधा ने लाल रंग की पेन से मुझको लिखवाया था. ताकि मुझको याद रहे कि इस यंत्र को सार्वजनिक नहीं करना है. लेकिन गुरुजी जब से खुशबु वाली सुगंधा भाग 15 प्रकशित हुआ है. तब से “तंत्र” से संबंधित सैकड़ों की संख्या में प्रश्न औऱ mail मेरे पास आने लगे थे. औऱ कुछ साधकों को समस्याए वाकई काफी गम्भीर थी.
इसी बीच गुरुजी एक साधिका बहन का mail मेरे पास आया था. उनका नाम मैं यहा पर नहीं लूँगा. उनके पति के ऊपर मारण प्रयोग किया गया था. औऱ सिर्फ 10 दिनों के भीतर उनके पति का 17 किलो वजन घट गया था. गुरुजी, इन्होने अपनी पति का बहुत इलाज कराया. लेकिन reports सारी नॉर्मल थी. औऱ जिस प्रकार से इनके पति का वजन रोज के हिसाब से घटता जा रहा था. ज्यादा से ज्यादा इनके पति चार या पांच दिन औऱ इस दुनिया मे रहते. तब गुरुजी, मैंने सुगंधा से विनती की, कि सुगंधा सिर्फ इस यंत्र को सार्वजानिक करने की अनुमती मुझको देदो. औऱ उनका भेजा हुआ, mail भी मैंने सुगंधा को पढ़ कर सुनाया. तब गुरुजी, सुगंधा ने मुझको अनुमती दी. औऱ मैंने पूरी विधी तथा विधान सहित इस यंत्र के बारे में उस साधिका बहन को mail भेजा. उन्होंने पूरी विधी के अनुसार उस यंत्र को बना कर अपने पति को धारण कराया. औऱ खुद भी धारण किया. औऱ अब इनके पति स्वस्थ है गुरुजी. औऱ जो भी प्रयोग इनके पति के ऊपर किया गया था. वो पूरी तरीके से निष्क्रिय हो चुका है.
गुरुजी, सुगंधा ने अपनी मीठी औऱ मधुर आवाज मे जिस प्रकार श्री गौरी यंत्र की महिमा बतायी थी. वो कुछ इस प्रकार थी. की देवताओ के राजा, देवराज इंद्र भी इस यंत्र को कई बार धारण कर चुके है. खास तौर पर जब जब उनका सामना किसी मायावी असुर से हुआ है. इसी यंत्र के सहारे देवराज ने कई मायावी असुरों को नर्क के द्वार तक पहुचाने मे कामयाब हुए थे. इस यंत्र को धारण करने वाले मनुष्य पर कभी किसी भी प्रकार के तंत्र, मंत्र या अस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ता है. मारण, स्तम्भन, विद्देशन, उच्चाटन इत्यादि बड़े से बड़ा प्रयोग भी, ऐसे साधक को प्रभावित नहीं कर सकते, जिसने इस यंत्र को धारण कर रखा हो. गुरुजी, आज मैं इस यंत्र को धर्म रहस्य चैनल पर सार्वजनिक कर रहा हू. ताकि अन्य साधक भाई बहन, भी इसका लाभ उठा सके.
श्री गौरी यंत्र :-
माता का रक्षा यंत्र बनाने के लिए, गोरोचन कुमकुम से या मलय गिरी चंदन और कपूर से भोजपत्र पर चार पंखुड़ियों का एक कमल बना ले. और कर्णिका मे अपना नाम लिख कर कमल की चारो पंखुड़ियों पर ‘ॐ’ लिख दीजिए. उसके बाद आग्नेय आदि कोणों पर माता का कवच बीज़ हूंकार यानी ‘हूँ’ लिख दीजिए. उसके ऊपर 16 दलों का एक कमल बना लीजिए. और अकराधि 16 स्वरों को लिख लीजिए. यानी अ से लेकर अः तक. उसके ऊपर 34 दल का कमल बना लीजिए. और क से लेकर क्ष तक के सभी बीज़ अक्षरों को लिख दीजिए. औऱ माता की पूजा करते समय, उस यंत्र को सफेद धागे में बाँध कर एक रेशमी कपड़े मे लपेट कर. कलश के स्थान पर रख दीजिए. और सबसे पहले उसकी पूजा कर लीजिए. माता के किसी भी मंत्र से उस यंत्र की पूजा करने के बाद दुर्गा सप्तशती मे “माता कवच” का पाठ करते हुए. उस यंत्र को पहन लीजिए. और माता को दण्डवत प्रणाम कर माता से प्राथना कर लीजिए. की माँ, “मेरी रक्षा करना”. अब कोई भी परेशानी या किसी भी प्रकार का उत्पात ऐसे साधक के समीप नहीं आ सकते. गुरुजी सुगंधा ने जिस प्रकार ये गुप्त यंत्र मुझको बनाना सिखाया था. मैं बना कर उसकी pic भेज रहा हू. ताकि दर्शकों को समझने मे कोई परेशानी ना हो. गुरुजी समय के अभाव के कारण मैं जल्दी जल्दी बना कर भेज रहा हू. जिसके कारण दोनों यंत्र उतने सुन्दर नहीं बन पाये है, जितने सुन्दर सुगंधा बनाती है. परंतु दर्शकों से निवेदन है. आप लोग आराम से बैठ कर बनाए. यंत्र जितना सुन्दर औऱ स्पष्ट होगा. उसके भीतर ऊर्जा भी उतनी ही अत्याधिक होगी.
गुरुजी, दादी के ठीक होने के बाद. मैं अपनी working city वापस आ गया. औऱ फिर से मेरी वही जिंदगी शुरू हो गई. जिसमें रोज सवेरे ब्रम्ह मुहूर्त मे उठना. स्नान ध्यान एवं पूजा करके office जाना. इत्यादि शामिल था. लेकिन इस बार गुरुजी. एक परिवर्तन था. मेरा office जाने का बिल्कुल मन नहीं karta था. उसकी वजह सुगंधा थी. सुगंधा से मैंने विनती की थी. की जब तक आपको इस प्रथ्वी पर रहना है. योगिनी शक्ति के मुताबिक अभी आपको 50 साल औऱ रहना है इस प्रथ्वी पर. मैं चाहता हू आप मेरे साथ रहिए. औऱ सुगंधा मान गई थी गुरुजी. सुगंधा पूजा के कमरे में ध्यान लगा कर पूरा दिन बैठी रहती थी गुरुजी. औऱ मेरा मन होता था. की मैं पूरा दिन सुगंधा को बस यू ही देखता रहूं. यहा तक कि office मे भी मेरा मन नहीं लगता था. औऱ जल्द से जल्द घर जाने की मुझको जल्दी रहती थी. ऑफिस से घर आने के बाद. जब मैं शाम की संध्या एवं माता की आरती करने पूजा के कमरे में जाता तब सुगंधा अपने ध्यान से जागती थी गुरुजी. औऱ उसके बाद लगभग 3 या 4 घंटे तक सुगंधा मेरे साथ, हमेशा की तरह मेरे बिस्तर पर बैठ कर. मुझसे बातें किया करती थी. भोजन इत्यादि करने के बाद. सुगंधा से बातें करते करते ही मैं सो जाता था गुरुजी. औऱ मेरे सोने के बाद सुगंधा फिर से पूजा के कमरे में जा कर अपने ध्यान में पुनः लीन हो जाती थी.
मैं अपने जीवन मे बहुत खुश था गुरुजी. जब तक सुगंधा ने मुझे साधना करने के लिए नहीं कहा. मेरे जीवन मे जो एक खुशी. औऱ जो एक शांति थी. वो तूफान आने के पहले की शांति थी. मेरी जिंदगी में पहला तूफान तब आया जब सुगंधा ने मुझे मेरे जीवन की पहली साधना करने को कहा. औऱ वो साधना थी भगवान सूर्य देव की. जिसके बारे में, औऱ साधना से जुड़े अनुभव मैं पहले ही भाग 13 मे बता चुका हू. साधना काल में गुरुजी, सुगंधा ने मुझको सिर्फ office जाने की अनुमती दी थी. औऱ शाम को घर आने के बाद स्नान इत्यादि कर के मुझे सीधे साधना में बैठना पड़ता था. उन दिनों गुरु जी सर्दियों का मौसम था. औऱ सुगंधा के कहे अनुसार मुझे साधना काल मे किसी सन्यासी की तरह जीवन यापन करना था. जिसका पालन करने मे मुझे बहुत कठिनाई हुई थी.
गुरुजी, सारी कठिनाईयों के बावजूद, भगवान भास्कर की कृपा प्राप्त करने मे, मैं कामयाब रहा. औऱ ना सिर्फ मैंने उनका आशिर्वाद प्राप्त किया बल्कि मैंने उनके बाल स्वरूप के दर्शन भी किए. साधना के पूर्ण हो जाने के बाद गुरुजी, मेरा जीवन खुशियो से भर चुका था. जैसे कि, अब मुझे किसी औऱ चीज की कोई जरूरत ही नहीं थी. मुझे जैसे मोक्ष मिल चुका था गुरुजी. या शायद, मुझे मोक्ष की भी अब कोई आवश्यकता नहीं थी. मुझे नहीं मालूम गुरुजी की उस पूर्णता को किस प्रकार मैं यहा व्यक्त करू. अंधक जैसा सच्चा दोस्त, सुगंधा जैसी पत्नी. औऱ स्वयं सूर्य देव का आशिर्वाद प्राप्त करने के बाद. जीवन मे अब औऱ कुछ प्राप्त करने की इक्षा अब शेष नहीं बची थी.
गुरुजी, मुझे याद है उन दिनों सुगंधा मुझे ज्योतिष शास्त्र तथा राशि एवं नक्षत्र से जुड़े हुए विज्ञान औऱ कई गुप्त बातें सिखा एवं समझा रही थी. औऱ मुझे ये टॉपिक बहुत अच्छा लगता था. ऑफिस से मैं रोज जल्दी घर आने की कोशिश करता था. औऱ जल्दी जल्दी अन्य काम निपटा कर. सुगंधा को उसके ध्यान से जगा देता था. ताकि अन्य गुप्त बातों को मैं जान सकू. जैसे कि हफ्ते मे सात दिन ही क्यु होते है? आठ दिन या 9 दिन भी तो हो सकते थे? इसी तरीके के कई प्रश्न मेरे दिमाग में घूमते रहते थे. औऱ मैं जल्द से जल्द घर आकर. सुगंधा से अपने जवाब प्राप्त करता था. औऱ सुगंधा को बहुत परेशान किया था मैंने उस समय. लेकिन सुगंधा, ने हमेशा बिना गुस्सा किए. या बिना नाराज हुए. बहुत ही प्यार से अपनी मीठी औऱ मधुर आवाज मे, मेरे हर प्रश्न का उत्तर देती जाती थी. औऱ सुगंधा की मीठी वाणी सुनते सुनते मैं गहरी नीद मे सो जाता था. सब कुछ अच्छा चल रहा था गुरुजी. की तभी वो समय आ गया जब एक बार फिर एक महीने के लिए मेरे जीवन मे दूसरा तूफान आना था. तरीक थी 08 Feb 2021. औऱ समय रात के लगभग 10 या सवा दस बज रहे होगे. जब सुगंधा ने मुझे योगिनी माता की साधना करने को कहा.
गुरुजी, उस रोज सुगंधा ने मुझे योगिनी शक्ति या मेरी कुल देवी दोनों मे से किसी एक की साधना करने को कहा. औऱ सबसे पहला सवाल था मेरा गुरुजी, कि प्रत्यक्षीकरण होगा या नहीं? गुरुजी सुगंधा ने कहा इस बार आपको प्रत्यक्षीकरण जरूर होगा. औऱ बालिका स्वरूप में नहीं अपितु उनके वास्तविक स्वरूप के दर्शन आप करेगे. दोनों मे से किसी एक को चुन लीजिए. दोनों ही योगिनी शक्ति है. तथा दोनों ही माता को प्रिय हैं. गुरुजी मैंने अपनी कुलदेवी डोगरा माता की गुप्त प्रतिमा विवाह के समय उस गुफा मे देखी थी. मैं उनके प्रत्यक्षीकरण के बारे में तो सपने मे भी नहीं सोच सकता था. उनकी मूर्ति देख कर ही मेरे दिल धड़कन बढ़ गई थी, प्रत्यक्ष रूप से देखने के बाद मेरा क्या हाल होता. इसलिए मैंने योगिनी माता को चुना. उनके बालिका स्वरूप के दर्शन मैं पहले भी कर चुका था. औऱ सैकड़ों बार माता ने मेरी सहायता भी की थी. इसलिए मैंने सुगंधा को सीधा कह दिया. योगिनी माता की साधना करूगा मैं. गुरुजी, सुगंधा ने मुझसे कहा सोच लीजिए, आप बाद मे अपना निर्णय बदल नहीं पाएंगे. मैंने कहा गुरुजी, सोच लिया है. औऱ योगिनी माता की ही साधना करूगा मैं. तो गुरुजी सुगंधा मुस्काने लगी. मैंने सुगंधा से पूछा भी गुरुजी की, तुम हसी क्यु? सुगंधा ने कहा कुछ नहीं. मुझे थोड़ा शक हुआ गुरुजी उस समय की कहीं मैंने गलत चुनाव तो नहीं कर लिया है. लेकिन फिर मैंने सुगंधा की मुस्कान औऱ अपने संदेह पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्युकी उस समय मेरी आँखों के सामने सिर्फ डोगरा माता की डरावनी मूर्ति का चेहरा बार बार आ रहा था. इसलिए मैं योगिनी शक्ति की ही साधना करने के फैसले पर कायम रहा. औऱ बाद मे मुझे, सुगंधा की मुस्कान को नजरअंदाज करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पडी गुरुजी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. औऱ मैं अपना फैसला तब बदल नहीं सकता था.
गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी आवाज मे मुझसे कहा था. की चार दिन बाद गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ हो जाएगी. औऱ ये साधना चार चरण मे पूरी होगी. शुरुआत के 3 चरण की साधना आपको यही अपने पूजा के कमरे में करनी होगी. औऱ सबसे मुश्किल तथा आखिरी चरण की साधना आपको किसी गुप्त स्थान पर करनी होगी. गुरुजी सुगंधा के बताये अनुसार. 21 दिन की साधना मैंने अपने पूजा के कमरे में पूरी की थी. औऱ आखिरी के 7 दिन जो मैं कभी नहीं भूल सकता. शायद म्रत्यु के बाद भी वो सात दिन मुझे याद रहेगे. क्युकी गुरुजी, म्रत्यु का डर भी उतना डरावना नहीं होता है, जितना डर मुझे उन सात दिनों मे लगा था. औऱ गुरुजी 12 Feb से जो मैंने साधना प्रारम्भ की थी. अगले महीने की 11 तरीक को. यानी 11 मार्च को मेरी साधना पूर्ण हुई, औऱ महाशिवरात्रि की रात, योगिनी माता ने मुझे अपने वास्तविक स्वरूप मे मुझे दर्शन दिए. औऱ माता ने मेरी मनोकामना भी पूरी की.
गुरुजी, शुरुआती तीन चरण की साधना मे तो मुझे कोई समस्या नहीं थी. मुझे सुगंधा द्वारा बतायी पूजन सामाग्री खरीदकर, साधना करने बैठ जाना था. समस्या आखिरी चरण की साधना मे थी. क्युकी गुरुजी सिर्फ चार दिनों के भीतर, पवित्र तीर्थो मे जा कर, उपयुक्त गुप्त स्थान तलाशना कोई आसान काम नहीं था मेरे लिए. औऱ सुगंधा की demand थी. की “वो स्थान पवित्र भी हो, प्रसिद्ध भी हो औऱ भीड़ भाड़ से रहित भी हो”. गुरुजी सुगंधा ने जब ये लाइन मुझे बोली थी. तब ही मैंने कह दिया था. पूरे भारतवर्ष मे नही मिलेगा ऐसा स्थान. गुरुजी, सुगंधा ने फिर मुझको बताया कि ऐसा एक स्थान है. औऱ आपके गांव से लगभग 12 मील की दूरी पर है. गुरुजी सुगंधा ने जैसे ही इतना कहा. मेरा ध्यान मेरे घर से लगभग 35 km की दूरी पर स्थित बाबा वीरभद्र के मंदिर पर गया. मैं उस जगह को, बहुत अच्छे से जानता था गुरुजी. औऱ जिस गांव मे वो मंदिर स्थित है. उस गांव के कुछ बड़े बुजुर्गों को भी मैं बहुत अच्छे से जानता था.
गुरुजी, मेरे पास समय बहुत कम था. औऱ सुगंधा ने मुझे साफ़ साफ़ कह दिया था. की 12 तरीक से पहले पहले आपको साधना के सभी चार चरणों की तयारी कर लेनी चाहिए. अन्यथा बीच मे साधना छोड़ कर आप अन्य बातों पर ध्यान देगे तो साधना खण्डित हो जाएगी. इसके अलावा गुरुजी, सुगंधा ने मुझे बाबा वीरभद्र के मंदिर के सामने घास एवं कुश की “कुटिया” बनवाने के लिए भी बोली. मैंने पूछा गुरुजी सुगंधा से की ये कुटिया किस लिए है?. तो सुगंधा ने मुझे जवाब दिया गुरुजी की अगर 7 दिनों मे किसी एक दिन बारिश हो गई. तो क्या आपकी साधना खण्डित नहीं हो जाएगी? गुरु जी फिर मैंने ज्यादा समय बर्बाद नहीं किया. औऱ अगले दिन मैं उस स्थान पर पहुंच गया.
गुरुजी, मैं जानता था. की घर पर मम्मी पापा के होते हुए मैं रोज 35 km जा कर. अपनी साधना पूर्ण नहीं कर सकता. इसलिए मैंने घर जाने की जगह, होटल मे stay करना ज्यादा बेहतर समझा. मैं अपने hometown मे हू. इस बात की जानकारी मेरे मम्मी पापा को नहीं थी. गुरुजी जब मैं उस गांव मे पहुचा तो गांव की सीमा मे अंदर घुसते ही. मुझे अजीब अजीब प्रकार के अनुभव होने लगे थे. रास्ते भर की थकान,  इतने कम समय मे इतनी तयारी कैसे कर पाऊँगा? इस प्रकार की सभी चिंताए, गुरुजी उस गांव की सीमा मे प्रवेश करते ही समाप्त सी हो गयी. औऱ एक अजीब सी खुशी, एक संतोष मेरे मन मे था. जैसे बरसों से इसी मंजिल की तलाश मे था. औऱ आज अपनी मंजिल तक पहुच चुका हू. इस प्रकार की भावना मेरे भीतर आ रही थी.
गुरुजी, सबसे पहले तो मैंने मंदिर मे जा कर बाबा वीरभद्र के दर्शन किए. औऱ उसके बाद मेरी नजर, उस मंदिर के पुजारी पर पडी. मैंने उनके भी जाकर पैर छुए. गुरुजी, वो पुजारी मुझे देखते ही रह गए. हालाकि पहली नजर में मैं भी उनको देखता ही रह गया था. चिलम के नशे मे धुत लाल आंखे, औऱ ऊपर से नीचे तक मैले कपड़े. उनको देख कर ही मुझे आभास हो गया था गुरुजी, कि पता नहीं कितने दिन हो गए होंगे इन्हें स्नान किए हुए. उनके हाथ पैर के नाखुन बहुत गंदे औऱ बहुत ही बड़े बड़े थे गुरुजी. इसके अलावा वो जब भी बात करते तो उनके मुख से चिलम की बदबू आती. मैं यही सोच रहा था गुरुजी की इतना हैरान परेशान होकर, ये क्या देख रहे है मेरे चेहरे मे. गुरुजी, मैं लगभग 5 minute तक उनके पास खड़ा रहा. मैं उनसे पूछता रहा, कि बाबा आप ठीक तो है? बाबा मुझे साधना करनी है एक. क्या आप मुझे अनुमती देगे? क्या मैं यहा साधना कर सकता हू? अंत मे गुरुजी मुझे यकीन हो गया कि ये व्यक्ती शायद पागल है. मुझे किसी औऱ से पूछना चाहिए. गुरुजी मंदिर में साधना प्रारंभ करने से पहले मुझे अनुमती मिलना बहुत जरूरी था. क्युकी सुगंधा के कहे अनुसार मुझे एक कुशा एवं घास की कुटिया का भी निर्माण करवाना था. मैं नहीं चाहता था कि बाद मे कोई गांव के बड़े बुजुर्ग या उस गांव के सरपंच इत्यादि किसी प्रकार की समस्या मेरे सामने खड़ी कर दे. औऱ मेरी साधना खण्डित हो जाए.
इसलिए, गुरुजी मैं मंदिर से निकलकर गांव की तरफ चल दिया. की, कहीं कोई सही व्यक्ती मिले तो मैं उनसे कुछ पूछ सकू. मैंने पीछे मूड कर देखा गुरुजी तो वो बाबा अभी भी मुझको ही घूरे जा रहा था. मैं अब तक समझ चुका था गुरुजी की ये व्यक्ती वाकई पागल है.
गुरुजी पूछते पूछते मैं उस घर तक पहुच गया जिन्होंने मंदिर बनवाया था. उन लोगों ने साफ़ साफ कह दिया मुझे. की मंदिर हमारे पूर्वजों ने बनवाया था. औऱ मंदिर के बनने के बाद तथा बाबा वीरभद्र की स्थापना के बाद, इस गांव की बहुत सारी परेशानियां स्वतः ही समाप्त हो गई थी. इसलिए ये मंदिर सिर्फ हमारा नहीं अपितु पूरे गांव का है. आपको सरपंच जी से एक बार बात कर लेनी चाहिए.
गुरुजी, मैं उनके साथ गाँव के सरपंच के यहा गया. सरपंच साहब का पहला प्रश्न ही मुझसे था, कि किस प्रकार की पूजा आप हमारे गांव की सीमा के भीतर करना चाहते हैं? मुझे ना चाहते हुए भी गुरुजी उनको सब कुछ बताना पड़ा. मैंने उनको बताया कि सभी वीर सहित, 64 योगिनी औऱ कुछ क्षेत्रपाल शक्तियों की पूजा मुझे लगातार 7 दिन तक उस स्थान मे करनी है. औऱ लगातार 7 दिनों तक अपनी आराध्या देवी जो कि एक योगिनी शक्ति है, उनके मूल मंत्र का जाप मुझे करना है. इसके अलावा मुझे आठ चबूतरे, 108 से अधिक मंडल, 256 से अधिक कलश औऱ उनके ऊपर एक बड़ी सी घास एवं कुशा से बनी कुटिया का निर्माण, मंदिर प्रांगण मे करवाने की भी अनुमती चाहिए.
गुरुजी मेरे इतना कहते ही वहाँ पर सब लोग भड़क गए. सरपंच जी ने मुझसे कहा कि बेटा, देखने में तो ठीक ठाक घर के लगते हो. ये सब बकवास बंद करो औऱ अपने घर जाओ बेटा. गुरुजी मैंने आखिरी कोशिश करने का फैसला लिया. औऱ हाथ जोड़ कर दोबारा निवेदन किया अनुमती के लिए. गुरुजी सरपंच ने इस बार कड़े शब्दों मे मुझे साफ़ साफ़ कह दिया कि देखो “सहरी बाबु”, तुम तो यहा रायता फैला कर चले जाओगे. झेलेगा कौन? हम सब गाँव वाले को ही झेलना पड़ेगा ना?. औऱ आपकी पूजा सात्विक कम औऱ तांत्रिक ज्यादा लगती है. बड़ी मुश्किल से इस गांव मे शांति आयी है. उसको भंग करने का प्रयास ना करे आप. आप जाइए यहां से. किसी पूजा पाठ की अनुमती नहीं मिलेगी आपको. गुरुजी, मैं काफी निराश औऱ हताश होकर, उनके घर से वापस मंदिर आ गया. आखिरी बार, बाबा वीरभद्र के दर्शन करने.
गुरुजी मैं दर्शन करके मंदिर से वापस शहर की तरफ जाने लगा. औऱ मन में यही सोच रहा था कि अभी भी तीन दिन है मेरे पास. सुगंधा जरूर मुझे कोई ना कोई दूसरा मार्ग अवश्य बताएगी. की तभी पीछे से मुझको कुछ लोगों की आवाज आयी जो मुझको पुकार रहे थे. मैंने देखा तो गांव के सरपंच सहित अन्य कुछ लोग मेरी ही तरफ दौड़ते हुए आ रहे थे. मैं कुछ बोल पाता गुरुजी, इससे पहले सरपंच सहित अन्य लोग मुझसे माफ़ी मागने लगे औऱ वापस चल कर अपनी साधना प्रारम्भ करने की बात मुझको कहने लगे. गुरुजी, मैंने सरपंच से पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले आपने मुझे मना कर दिया था चाचा. अचानक से क्या हो गया.?
तो, उन्होंने जवाब दिया तुम्हारे जाने के बाद, मंदिर के पुजारी आए थे हमारे घर. उन्होंने बताया, कि उनको कई हफ्तों से तुम्हारे स्वप्न आ रहे थे. एक नौजवान लड़का मन्दिर प्रांगण मे साधना कर रहा है. औऱ धुएँ की ओट मे एक स्त्री उसे छिप छिप कर देख रही है जिसके साथ एक बड़ा सा कुत्ता होगा. पुजारी जी ने बताया कि तुम ही वो व्यक्ति हो जिसे उन्होंने अपने स्वप्न मे देखा था. सरपंच ने आगे कहा कि अगर आप नाराज होकर यहा से चले गए तो बाबा वीरभद्र इस गांव का सर्वनाश कर देगे. गुरुजी वो सभी लोग मुझसे वापस चलने की विनती करने लगे, औऱ मुझसे माफ़ी मागने लगे.
गुरुजी, उन लोगों के साथ मैं वापस तो चल दिया लेकिन मुझे अब पुजारी से मिलना था. मैं जानना चाहता था. की, धुएँ की ओट मे खड़ी सुगंधा औऱ अंधक को वो कैसे जानते है?. मैं तो आज तक कभी उस पुजारी से मिला नहीं. फिर सुगंधा औऱ अंधक के बारे में वो कैसे जानते है?. मैंने गांव के सरपंच को कहा गुरुजी, क्युकी वो बुरी तरह हांफ भी रहे थे. की चाचा जी आप लोग घर जाइए अपने अपने. मैं पुजारी जी से मिल कर वापस शहर चला जाऊँगा. औऱ कल कुछ मिस्त्री लोगों के साथ आऊंगा. मुझे मंदिर की उत्तर की दिशा मे एक कुटिया का निर्माण करवाना है. औऱ जंगलो से घास काटने के लिए मुझे कुछ मजदूरों की आवश्यकता पड़ेगी. जो भी उनकी दिहाड़ी बनेगी. मैं पैसे दूँगा. गुरुजी सरपंच चाचा ने मुझसे पूछा कि आप पूजा कब प्रारम्भ करने वाले है?. गुरुजी मैंने उनको बताया कि यहा पर पूजा अभी नहीं करनी है. उसमे अभी समय है. मैं तो सिर्फ तयारी करने औऱ आप लोगों से अनुमती प्राप्त करने आया था. गुरुजी सरपंच चाचा ने दोबारा संदेह भरी निगाहों से मुझसे पूछा कि पुजारी जी, जिस लड़की औऱ बड़े से कुत्ते के बारे में बात कर रहे थे. क्या वो भी आएगी आपके साथ साधना स्थल पर.?
गुरुजी, मैंने उनको जवाब दिया. मैं नहीं जानता किसी लड़की या कुत्ते को. पता नहीं पुजारी जी ने ऐसा क्यु कहा. देखिए मैं अकेला आया हू यहा. क्या दिख रही है, आपको कोई लड़की या कोई बड़ा सा कुत्ता.? देखिए चारो तरफ?. मुझे पुजारी जी से यही पूछना है. शायद, वो किसी देवीय शक्ति की बात कर रहे हों. आप लोग अपने अपने घर पर जा कर आराम कीजिए. मैं कल सवेरे मिलूंगा, आप सब से. इतना कहकर गुरुजी मैं मंदिर की तरफ वापस चल दिया. उस पुजारी से मिलने. गुरुजी मंदिर तक सभी गांव वाले मेरे साथ साथ ही आए. तब तक अंधेरा भी होने लगा था गुरुजी. मैंने देखा कि मंदिर के बीच प्रांगण में आग जला कर. उसके चारो तरफ नाच नाच कर, अग्नि पे पत्तियाँ औऱ लकड़ियां डालते डालते पुजारी बाबा जोर जोर से एक गाना गा रहे है. कभी गाते गाते हंसने लगते तो कभी रोने लगते. औऱ मैं ये दृश्य देख कर विचलित हो गया था गुरुजी. पुजारी बाबा का नृत्य या उनकी पागलों जैसी हरकत देख कर नहीं. अपितु जो गाना वो गा रहे थे. वो सुगंधा का favourite गाना था. औऱ मुझे समझ मे नही आ रहा था. की इस गाने के बारे में भी इनको कैसे पता चल गया. सरपंच चाचा ने मुझको बताया गुरुजी की पिछले एक हफ्ते से इन्होंने इस गाने को गाना प्रारम्भ किया है. लेकिन हैरानी की बात है. इन्होंने कभी टीवी या रेडियो का उपयोग अपने जीवन मे नही किया.
गुरुजी, सभी गांव वाले वहां से अपने अपने घर चले गए. औऱ मैं एक पेड़ के नीचे बैठ कर बाबा का वो गीत सुनने लगा. औऱ पुरानी यादों मे जैसे खो सा गया. दरअसल गुरुजी, पहले मेरी बहुत गंदी आदत थी. फोन पर हमेशा सर्च करने की. अप्सरा, यक्षिणी इत्यादि शक्तियों के बारे में, मैं घंटों you tube पर videos देखता रहता था. औऱ इस कारण से सुगंधा एक बार नाराज हो गई थी. औऱ मुझसे बोली थी. की आपके सभी उपकरणों को जला कर भस्म कर दूंगी मैं किसी दिन. एक बार गुरुजी मैं अकेला था घर पर औऱ मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. तो मैंने पुराने गानों के folders खोल कर, पुराने गीत लेटे लेटे सुन रहा था. की तभी सुगंधा की खुशबु मुझे आ गई. औऱ मैंने जल्दी से song बंद करने की कोशिश की. की कहीं सुगंधा फिर से नाराज ना हो जाए. लेकिन सुगंधा ने मुझसे कहा कि चलने दीजिए. अच्छा संगीत है. मैंने आपको संगीत सुनने के लिए मना नहीं किया. अपितु फालतू औऱ मिथ्या चीजों को सुनने से मना किया है. वो गाना था गुरुजी, सिलसिला movie का, “ये कहा आ गए हम, यू ही साथ चलते चलते “. सुगंधा ने कई बार मुझे ये गाना चलाने के लिए बोलती आयी है. औऱ मैंने देखा है. जब भी ये गाना सुगंधा सुनती थी. तो जैसे कहीं खो सी जाती थी.
गुरुजी, इतने मे मैने महसूस किया कि पुजारी बाबा ने गीत गाना बंद कर दिया है. औऱ उस जंगल में चारो तरफ सन्नाटा फैल गया है. औऱ उनकी जलाई हुई अग्नि से चारो तरफ जंगल मे धुआ ही धुआ फैल गया था. औऱ थोड़ी देर बाद मुझे अंधक मेरी तरफ दौड़ता हुआ आता दिखाई दिया. औऱ उसके बाद मुझे सुगंधा की खुशबु पूरे वातावरण मे, उसकी पायल की आवाज सुनाई दी. सुगंधा मुझे मेरी तरफ आती दिखी गुरुजी. सुगंधा ने मुझसे आते ही पूछा कि मान गए सब लोग? मैंने कहा हाँ मान गए. सुगंधा ने हंसते हुए मुझसे कहा कि आज पहली बार आप मुझ पर ध्यान नहीं दे रहे है, आपका ध्यान कहा है?, किसे ढूढ़ रहे है आप? मैंने कहा सुगंधा वो पुजारी बाबा कहा गए? अभी तो खूब नाच नाच कर गाना गा रहे थे.
गुरुजी, मैंने बहुत आवाज दी आसपास, लेकिन वो सन्यासी बाबा मुझे कहीं नहीं मिले. अंधेरा काफी हो चुका था गुरुजी. इसलिए मैंने औऱ सुगंधा ने रात उसी पुराने मंदिर मे बिताई. औऱ सुगंधा ने उस भव्य मंदिर का इतिहास मुझे सुनाया. बाबा वीरभद्र की मूर्ति देखते देखते औऱ सुगंधा की मधुर आवाज सुनते सुनते मुझे कब नीद आ गई मुझे पता ही नहीं चला. शायद मैं इतना थका हुआ था. की उस दिन मैं सोया नहीं था. अपितु बेहोश हो गया था.
गुरुजी पत्र काफी लम्बा हो चुका है. अगले पत्र में साधना के सभी चार चरणों के अनुभव. बताने का पूरा प्रयास करूगा. औऱ सुगंधा के कहे अनुसार मैंने पुजारी बाबा की साधना काल मे किस प्रकार 7 दिनों तक सेवा की. औऱ क्या आशिर्वाद उन्होंने मुझको दिया?. उसके बारे में भी बताऊँगा. औऱ गुरुजी. एक महत्वपूर्ण प्रश्न है साधक भाईयो का. की बंधन किस प्रकार खोला जाए? बहुत से साधक भाइयों के mail मेरे पास आए. पितरो को बाँध दिया गया है, कुल देवी या देवता को बाँध दिया गया है. कई प्रश्न तो दुकान एवं व्यवसाय को लेकर है. तो माता की एक गुप्त साधना भी अगले पत्र में बताऊँगा. जिसको करने के बाद आप बड़े से बड़े बंधन को मात्र तीन फूक मार कर खोल पाएंगे. इसके अलावा गुरुजी वो भव्य मंदिर औऱ मेरे द्वारा बनाई हुई वो कुटिया की pic मैं भेज रहा हू ताकि दर्शक गण दर्शन कर पाए. इच्छा तो मेरी बाबा वीरभद्र की दिव्य मूर्ति की भी फोटो लेने की थी. लेकिन पुजारी बाबा ने मुझे मना कर दिया था.
गुरुजी आशीर्वाद की कामना करते हुए आज का पत्र यही पर समाप्त करता हू. 🙏 🙏 🙏
माता रानी की जय हो 🙏🙏🙏
माता रानी सबका कल्याण करे 🙏🙏🙏
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