प्रणाम गुरुजी
गुरुजी पिछले पत्र मे कुछ बाते रह गई थी. तो ये तीसरा पत्र है मेरा. अभी संसार से धर्म खत्म नहीं हुआ गुरु जी. क्युकी पिछले पत्र मे आए हुए कमेंट्स मैंने पढ़े. जहा लगभग सभी लोग और जानना चाहते है. की मैंने अभी तक सुगंधा से क्या क्या नियम और क्या क्या विधियां सीखी है. अभी भी समाज मे लोग धर्म से जीना चाहते है. और इसका श्रेय मैं आपको देता हू.
गुरूजी पिछले पत्र मे मैने आपको बताया था कि सुगंधा ने मुझको सिखाया कि मनुष्य को अपना जीवन किस तरह जीना चाहिए. और ब्रह्ममुहूर्त मे ही क्यु उठना चाहिए, पूजा पाठ की सही बिधि क्या है, और यम, नियम का पालन क्यु करना चाहिए. अभी मैं ज्यादा तो नहीं सीख पाया हू गुरुजी. लेकिन धीरे धीरे मैं कोशिश कर रहा हू. सुगंधा की बताई बातों पर चलने की. और सुगंधा भी एक दम से सब कुछ मुझको नहीं बताती है कोई भी बात. जब उसकी बतायी हुई पिछली बात को मैं ढंग से करना सीख जाता हू तभी वो अगली कोई नई बात सिखाती है.
गुरुजी सुगंधा की सारी बातें संस्कृत मे थी. तो मैं हिन्दी मे परिवर्तन कर सब बातों को लिख रहा हू. लेकिन बहुत से शब्द ऐसे है जिनकी हिन्दी मुझे गूगल ट्रांसलेट पे भी नहीं मिली. तो उन शब्दों को मैंने सीधे सीधे लिख दिया है. आपको प्रणाम करके. मैं आज एक महत्त्वपूर्ण विधि आपके द्वारा दर्शकों को बताता हू.
गुरूजी ये अभी कुछ दिन पहले की ही बात है. सुगंधा मेरे साथ ही थी. दर-असल एक दो बार सपने मे सुगंधा को मैंने पूजा करते हुए पीछे से देखा था सफेद सारी मे वो मन्त्रों का उच्चारण अपनी मधुर आवाज से करती है . और मैं पीछे से देख रहा हू उसको पूजा करते हुए. तभी मेरी नींद खुल जाती . और उसके बाद उसका शंख बजाना.
. तो मेरी नीद पूरी तरह से खुल जाती. लेकिन नीद खुलने के बाद मेरे कमरे मे कोई नहीं होता. भोर होते ही सुगंधा मुझको इसी तरह जगाती है. लेकिन एक बात मैंने notice की. उसकी पूजा और मेरी पूजा मे जमीन और आसमान का अन्तर था. तो मैंने अगली रात सुगंधा जब आयी मेरे पास. तो मैंने उसके आते ही. सीधे पूजा पाठ करने की सही विधि बताने के लिए बोला. मैंने कहा कि तुम्हारे कहने पे मैं भगवान को घर पर तो ले आया. लेकिन मुझे तो अभी पूजा करना आता ही नहीं. सुगंधा ने हंसते हुए कहा कि आपको पूजा करना मैं बाद मे सीखा दूंगी. परन्तु आप पहले स्नान करना तो सीख लीजिए. मैंने कहा मैं रोज नहाता हू. कैसे बोल रही हो तुम?
सुगंधा ने जवाब दिया कि आपके नहाने या न नहाने मे कुछ खास अन्तर नहीं है. और हंसने लगीं. मेरे सर पे हाथ फेरते हुए उसने कहा, कोई भी पूजा करने से पहले, ढंग से स्नान करना चाहिए. बिना स्नान किए पूजा कभी सफल और मनोरथ देने वाली नहीं होती. और ना देवता कभी नैवेद्य स्वीकार करते है . स्नान कई प्रकार के होते हैं. और मैं पेन और डायरी उठा कर लिखने लगा.
फिर सुगंधा ने कहा:- मैं आपको नित्य और नैमित्तिक स्नान के बारे मे बताती हू.
नित्य स्नान :- किसी तालाब या पोखर से अस्त्र मंत्र (फ़ट) के उच्चारण पूर्वक आठ अंगुल मिट्टी खोद कर निकाल ले. उसे सम्पूर्ण रूप से ला कर उसी मंत्र के द्वारा उसकी पूजा करे ले .
इसके बाद शिरो मंत्र (स्वाहा) से उस मिट्टी को जलाशय के तट पर रखकर अस्त्र मंत्र के द्वारा उसका शोधन करे. फिर शिखा मंत्र से (वसट) के उच्चारण पूर्वक उसमे से कंकड पत्थर निकल दे.
उसके बाद कवच मंत्र (हूम) से उस मिट्टी को नाभि से लेकर पैर तक लगाए. उसके बाद दोबारा अस्त्र मंत्र के उच्चारण करते करते नाभि के ऊपर मस्तक तक मिट्टी लगा ले. और दोनों हाथो से कान नाक आदि इन्द्रियों के छिद्रों को बंद कर सास रोक कर मन ही मन काल अग्नि के समान तेजोमय अस्त्र का चिंतन करते हुए पानी मे डुबकी लगा कर स्नान करे. सुगंधा ने मेरे बालो को सहलाते हुए कहा ये शारीरिक मेल को दूर करने वाला नित्य स्नान कहलाता है.
अब मैं आपको किसी खास पूजा या यज्ञ करने से पहले का स्नान बताती हू. मिट्टी उसी प्रकार आठ अंगुल खोद कर निकाल ले. और बताएं गए सभी मन्त्रों के द्वारा उस मिट्टी की पूजा करले. मिट्टी पांच महा भूतों मे से एक है. इसलिए मनुष्य को मन्त्रों का जाप हृदय से करना चाहिए. देव रूप समझ कर. उस मिट्टी की पूजा करनी चाहिए. उसके बाद ह्रदय मंत्र के उच्चारण पूर्वक अंगकुश मुद्रा के द्वारा प्रयाग आदि तीर्थों मे से कोई एक तीर्थ का मन मे चिंतन करे. फिर संहारमुद्रा के द्वारा उस तीर्थ का आव्हान उस जलाशय मे करे. की हे गंगा माँ इस जलाशय मे आकर प्रविष्ट हो जाओ. इस जलाशय को पवित्र कर दो माँ. मैं आपका आव्हान करता हू.
इस बार मिट्टी के तीन भाग कर ले. नाभि तक जल के भीतर प्रवेश करे और उत्तर मुखी हो कर बायी हथेली पर उसके तीन भाग कर ले.
दक्षिण भाग की मिट्टी को अंग न्यास संबंधी मन्त्रों द्वारा. (अर्थात ओम ह्रदयया नमः, सिरसे स्वाहा, शिखाये वसट, कवचाय हुं, नेत्रत्राय वोसट, तथा अस्त्रय फट) सिर्फ एक बार जाप कर ले. पूर्व भाग की मिट्टी को (अस्त्रय फट) इस मंत्र से सात बार जाप कर ले. तथा उत्तर भाग की मिट्टी को ओम नमः शिवाय – इस मंत्र से दस बार जाप कर ले. इसके बाद सभी भागों की मिट्टी को आपस मे मिला ले. उसके बाद सभी दिशाओं मे थोड़ी थोड़ी मिट्टी छोड़े.
छोड़ते समय (अस्त्रय हू फट) का जाप करते रहे. इसके बाद ओम नमः शिवाय और ओम सोमाय स्वाहा – इस मंत्र का जप करके जल मे अपनी भुजाओं को घुमा कर उस जलाशय को शिव तीर्थ बना दे.
उसके बाद सारी मिट्टी इकट्ठी करके दो भाग कर ले . पहले हिस्सा नाभि से नीचे पैरों तक और phir बाकी नाभि से ऊपर मस्तक तक अच्छी तरह मिट्टी का लेप लगा कर. और अंग न्यास संबंधित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से बाये हाथ तक ह्रदय, सिर, शिका और आदि सारे छिद्रों को बंद करके सम्मुखी करन मुद्रा द्वारा bhagwan शिव, आदि शक्ति, नारायण और माता गंगा का सुमिरन करे. और फिर जल मे गोता लगा कर स्नान करे.
ओम ह्रदयया नमः, सिरसे स्वाहा, शिखाये वसट, कवचाय हुं, नेत्रत्राय वोसट, तथा अस्त्रय फट मन्त्रों का जाप मन मे करते रहे.
ईन इंद्र के समान तेजस्वी मन्त्रों का जाप कर जल मे स्थिर हो जाए. और दोनों हाथो से कुंभ मुद्रा द्वारा अभिषेक करे. फिर रक्षा के लिए सभी दिशाओं मे जल छोड़े. सुगंधित फूलों के रस को शरीर मे लगा कर स्नान करना चाहिए. हवन कुंड या यज्ञ कुंड की राख लगा कर भी स्नान करना चाहिए. स्नान के बाद जल से बाहर निकल आए और संहारनी मुद्रा धारण कर. जो भी तीर्थ अपने उस सरोवर को माना हो. उस तीर्थ का धन्यबाद करे.
आग्नेय स्नान :- तीनों संध्या के समय, निषिद्ध काल मे, वर्षा के पहले, और पीछे, सोकर, खाकर, परस्त्री को गलती से भी छू जाने पर, नपुंसक, शूद्र, बिल्ली, शव, चूहे, या कुत्ते का स्पर्श हो जाने पर आग्नेय स्नान करना चाहिए चुल्लू भर पवित्र जल आचमन करके पी ले. यही आग्नेय स्नान है.
महेंद्र स्नान :- सूर्य की किरनों के दिखाई देते समय यदि आकाश से जल की वर्षा हो रही हो. तो पूर्व दिशा की ओर मुड़ कर, दोनों भुजाएं ऊपर उठा कर, ईशान मंत्र का उच्चारण करते हुए, सात कदम चल कर, उस वर्षा के जल से स्नान करे, इस प्रकार के स्नान को महेंद्र स्नान कहा जाता है.
पावन स्नान :- गौ माता के समूह के मध्य भाग मे स्थित होकर, उनकी खुरों से उड़ने वाली धूल से, माँ कामधेनु का स्मरण करके, कवच मंत्र (हुं) का जाप करते हुए, उस धूल से स्नान करने को पावन स्नान कहा गया है..
फिर सुगंधा ने मुस्कुराते हुए कहा . अब आप ही बताइए, आप इनमे से कोन सा स्नान करते है? मेरे पास कोई जवाब नहीं था. लेकिन फिर सुगंधा ने मुझसे कहा कि आप अगर इस प्रकार आज से स्नान करेगे. तो मैं आने वाले होली के त्योहार को आपकी एक मनोकामना पूरी करूंगी. कोई भी एक मनोकामना. इतना बोल कर सुगंधा ने मुझको सुला दिया.
और अगले दिन मैंने नित्य स्नान करने की कोशिश की. मिट्टी की जगह मैंने बेसन लिया, फ़ूलों के रस की जगह मैंने गुलाब जल लिया, और भस्म मेरे पास नहीं थी तो. धूप बत्ती और अगर बत्ती की राख ले लिया एक कटोरी. जिस बाल्टी मे पानी भरकर नहा रहा था. उसी बाल्टी के जल मे माँ गंगा का आव्हान किया. और सभी मन्त्रों को बिल्कुल ठीक ढंग से पढ़कर नहाने की कोशिश की. रात मे जब सुगंधा आयी तो उसने कहा मैं खुश हू आपसे. होली के दिन कोई एक मनोकामना मैं आपकी पूरी करूंगी .
पिछले भाग मे मैने ये बताया था गुरुजी आपको. की इस बार की होली मैंने सुगंधा के साथ बिताई. और बहुत ही अच्छी, या कह सकते है कि मेरे जीवन की सबसे यादगार होली थी. 10march 2020.
होली के दिन मैं घर पे ही था पूरा दिन. और ऑफिस की भी छुट्टी थी. तो दोपहर को खाना खा कर मैं टीवी देख रहा था. टीवी देखते देखते ही मुझे ऐसा लगा कि नींद सी आ रही मुझको. सुगंधा तो हमेशा रात मे ही आती थी तो उसको याद करने का कोई सवाल पैदा ही नहीं होता. मैं टीवी बंद करके. बेड पे चला गया सोने के लिए. और लाइट, और खिड़की के पर्दे भी बंद कर दिए ताकि थोड़ा अंधेरा हो जाए. जैसे ही मैंने सोने के लिए आंखे बंद की, मेरे कमरे मे बेडरूम मे अचानक से एक तेज रोशनी प्रकट हुई. इतनी तेज रोशनी की मेरी आँखों को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मुझको. और फिर मुझे सुगंधा की खुशबु आयी. और वो इससे पहले कि अपनी पीली और सफेद सारी मे प्रकट होती मैंने अपनी आंखे बंद कर ली. और पलट कर लेट गया. मेरे लेटने के बाद. सुगंधा ने अपना तेज कम किया. और फिर से कमरे मे पहले जैसी समान्य हल्की रोशनी हो गई.
सुगंधा मेरे बेड के पास आ कर बोलती है. मैं आपकी मनोकामना पूरी करने आयी हू. और आप सो रहे है. और इतना बोल कर वो मेरे सिरहाने बैठ कर मेरे सिर को और गर्दन को सहलाने लगी. मैंने कहा मुझे लगा तुम रात मे आओगी. सुगंधा ने फिर मुझसे मेरी मनोकामना पूछी. मैंने कहा मेरी कोई मनोकामना नहीं है. तुम मेरे साथ हो यही बहुत है मेरे लिए. इसके अलावा और कुछ नहीं चाहिए मुझे. लेकिन फिर सुगंधा के जिद करने पे मैंने एक वचन मांगा था सुगंधा से. बेड पे उल्टा लेटे लेटे ही मैंने सुगंधा से एक वचन मागा और सुगंधा ने मुझको वो वचन दिया भी. और फिर सुगंधा मेरे कंधे पर सिर रख कर पूरी दोपहर मेरे साथ ही लेटी रही. यहा पे मैं बता नहीं सकता हू गुरुजी उस वचन के बारे मे. क्युकी सुगंधा ने ही कुछ चीजें किसी को भी बताने से मना की है.
गुरूजी कुछ जानकारी और भी है मेरे पास जो कि अभी हाल फ़िलहाल मे ही सुगंधा ने मुझे बताया कि माता रानी के किन किन रूपों की पूजा और उपासना करने से सबसे ज्यादा फल मिलता है. और किन किन शक्तियों की उपासना नहीं करनी चाहिए. वो मैं अगले पत्र मे जरूर बताऊँगा. और कब बातों बातों मे मुझे ऐसा लगा कि सुगंधा एक अप्सरा है. हालाकि सुगंधा ने अभी तक मुझको ये नहीं बताया है कि वो कोन सी शक्ति है. ये भी एक बहुत प्यारी घटना है तो इसके बारे मे भी बताऊँगा.
गुरूजी आपसे एक प्रश्न भी पूछना था. कोई भी शक्ति से जब आप को कोई वरदान देती है या मनोकामना पूरी होती है तो उसको लोगों को क्यु नहीं बताना चाहिए? क्या बताने से वो वरदान या वो सिद्धि नष्ट हो जाती है??
Guruji आपको प्रणाम करके मैं अपना पत्र खत्म करता हू. Mata rani ki jai hoMata rani sabka kalyan kare