नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज माता गंगा की एक साधना के विषय में जानकारी लेंगे और वह जानकारी है उनकी चौपाई की सिद्धि के विषय में माता गंगा पाप हरणी देवी के रूप में प्रसिद्ध है मनुष्य ने चाहे कितने भी जन्मों कैसे भी कर्म किए हैं उन पापों का नाश करने वाली माता गंगा कहलाती है इनकी सिद्धि के लिए आपको बहुत सारे मंत्रों के अनुष्ठान बताए गए हैं लेकिन सर्वजन सभी के लिए जो सरल हो और आसान हो वही चौपाई और दोहे के माध्यम से होने वाली चालीसा की जो साधना है वह सर्वोत्तम है क्योंकि कोई भी व्यक्ति आसानी से इसे कर सकता है । इस साधना के लिए आपको ना कोई माला की आवश्यकता है और ना ही किसी आसन या ऐसी किसी व्यवस्था की आवश्यकता करनी पड़ती है सिर्फ आपको माता गंगा के पास पहुंचना है और साधना के लिए आपको कमर भर पानी में खड़े हो जाना है ।
उसके बाद ध्यान लगाकर माता के इस चालीसा को आप को पढ़ना है और इस चालीसा का आपको एक माला जाप करना है यानी कि 108 बार गिनती गिनने के लिए बाएं हाथ में आप माला पकड़ सकते हैं यह साधना बहुत ही सरल और सात्विक मानी जाती है लेकिन कोई भी सिद्धि आने से पहले आपकी परीक्षा अवश्य ही लेती है यह साधना आपको कुल 40 दिन करनी है 40 वे दिन माता किसी ना किसी रूप में आपके सामने प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देंगी उस दौरान साधक बड़ी सावधानी के साथ में उनसे वरदान मांग सकता है और उनकी सिद्धियां प्राप्त कर सकता है लेकिन कमर भर जल में खड़े होकर की जाने वाली इस साधना में मछलियां और अन्य जीव आपको परेशान कर सकते हैं अधिकतर सिद्धि प्राप्त करने में रोकते हैं अगर आप किसी भी प्रकार से रोज एक माला का जाप करते हुए माता गंगा की इस अनुष्ठान को पूरा कर लेते हैं तो आपको निश्चित रूप से इस सिद्ध चौपाई की और दोहे की और उसके साथ में मूल चालीसा की सिद्धि हो जाती है इसलिए देवी मां को प्रणाम करते हुए इनके इस स्त्रोत को हम लोग शुरू करते हैं और कैसे पढ़ना है कहां पर ऊर्जा मंत्र लगे हुए हैं जिसके माध्यम से वह इस चालीसा को शक्तिशाली बना देता है स्वयं पाठ करके जानते हैं तो चलिए शुरू करते हैं-
॥दोहा॥
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥
॥चौपाई॥
जय जय जननी हराना अघखानी।
आनंद करनी गंगा महारानी॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
धवल कमल दल मम तनु सजे।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई॥ ४ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
वहां मकर विमल शुची सोहें।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जदिता रत्ना कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जग पावनी त्रय ताप नासवनी।
तरल तरंग तुंग मन भावनी॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जो गणपति अति पूज्य प्रधान।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥ ८ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
अगम तरंग उठ्यो मन भवन।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।
धरयो मातु पुनि काशी करवत॥ १२ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
भागीरथी ताप कियो उपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥ १६ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
ताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक,
नाभा, अरु पातारा॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
गईं पाताल प्रभावती नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि॥ २० ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
पन करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
पुरव जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥ २४ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
महा पतित जिन कहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे॥ २८ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
तब गुन गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
उद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥ ३२ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
महं अघिन अधमन कहं तारे।
भए नरका के बंद किवारें॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जो नर जपी गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥ ३६ ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
सब सुख भोग परम पद पावहीं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सूरज प्रताप गंगा कर दासा॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥ ४० ॥
ह्रीं ह्रीं गंगाये नमः
॥ दोहा ॥
नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान॥
संवत भुत नभ्दिशी। राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा किया। हरी भक्तन हित नेत्र॥
इस प्रकार से आप माता गंगा के इस बेहतरीन चालीसा को पढ़ते हुए अपने समस्त पापों का तो हरण करते ही हैं साथ ही साथ में आप माता गंगा की सिद्धि भी प्राप्त कर सकते हैं कमर भर जल में खड़े होना है आपको । लोगों से दूर वह जगह होनी चाहिए, वह स्थान ऐसा होना चाहिए जहां पर लोग आपको किसी भी प्रकार से डिस्टर्ब ना करें और आपका ध्यान एक माला जाप में भंग ना हो । इस प्रकार से अगर आप करते हैं तो निश्चित रूप से माता गंगा की सिद्धि प्राप्त होती इसमें संदेह नहीं है माता के कई सारे अलग मंत्र भी हैं उनकी साधना में कभी और दूंगा फिलहाल सरल और सुगम प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा संपन्न की जा सकने वाली इस चालीसा साधना को मैं आपके लिए लेकर आया हूं । इस प्रकार से आप इसे अगर आपके आसपास माता गंगा विद्यमान है तो इसका प्रयोग आप अवश्य ही कर सकते हैं और इनकी सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें चैनल को आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ॥