नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक अनुभव लेंगे कनक वती यक्षिणी साधना से रिलेटेड और पढ़ते हैं इनके पत्र को जानते हैं कि आखिर यह कैसा अनुभव है?
नमस्कार गुरु जी, मैं अघोर पद्धति में दीक्षित हूं। मेरे गुरु से मैंने यह कथा सुनी थी और उनके जो गुरु है। उनकी ही जीवन में यह कहानी घटित हुई थी। आप अपने चैनल पर? सभी लोगों के अनुभव प्रकाशित करते हैं जो कि तंत्र और गोपनीय रहस्यों से भरे होते हैं। इसके लिए आपका धन्यवाद करते हुए मैं भी अपनी ही परंपरा में घटित एक अनुभव को आपको भेज रहा हूं। आशा करता हूं कि आप इसे प्रकाशित करेंगे और?
सभी जन तक इस कथा को पहुंचाएंगे।
जैसा कि मैंने आपसे कहा कि हमारी परंपरा में हम अघोर पद्धति में दीक्षित हैं। इसके अलावा और कुछ बताने का औचित्य नहीं है, लेकिन मैं एक साधना के विषय में और उस दौरान घटित अनुभव को आपको बताना चाहता हूं। मैंने जब अपने गुरु से दीक्षा ली थी तब गुरु जी से मैंने यक्षिणी साधना के विषय में जानकारी प्राप्त की थी। तब उन्होंने कनक वती यक्षिणी के विषय में बताया था कि यह यक्षिणी धन संबंधी परेशानी को खत्म कर देती है। क्योंकि इसका नाम ही कनक है। यानी कि सोना?
मैंने पूछा, क्या किसी ने यह साधना की हुई है? तो उन्होंने कहा कि मैंने तो नहीं की लेकिन मेरे गुरु ने यह साधना की थी और उनके जीवन में विशेष अनुभव।
जो घटित हुआ था वह कथा रूप में मैं तुम्हें बताता हूं। उन्होंने बताया कि उन्होंने! इस यक्षिणी को पूर्णता सिद्ध कर लिया था।
वह! एक जंगल में इस यक्षिणी की साधना के लिए गए थे।
उन्होंने इसके मंत्र ओम ह्री आगच्छ कनकवती स्वाहा।
का जब उन्होंने जंगल में बैठ कर के किया था। जिस जंगल में वह यह साधना कर रहे थे, वहां पर एक पुराना वटवृक्ष था। उसी पेड़ के नीचे बैठकर के इन्होंने यह साधना की थी। यद्यपि! लोग इस साधना के विषय में कहते हैं कि 1 महीने तक इसका जाप और पूजन करने से यक्षिणीप्रत्यक्ष प्रकट हो जाती है किंतु यह बात सत्य नहीं है। मेरे गुरु को स्वयं 11 माह लगे थे।
11 महीने तक उन्होंने इस साधना को किया था। और तब जाकर कहीं वह प्रत्यक्ष प्रकट हुई थी।
एक बात मैं स्पष्ट रूप से बता देना चाहता हूं। यक्षिणी साधना में जो यक्षिणी जितनी जल्दी प्रकट हो जाएगी, उसकी शक्ति उतनी ही कम होगी और आपके पास वह कम ही समय तक टिकेगी। और जिस भी साधना में अधिक समय लगेगा उसकी शक्ति भी ज्यादा होगी और वह आपके पास भी। काफी समय तक रहेगी।
तो गुरुजी उन्होंने वट वृक्ष के नीचे चंदन का एक सुंदर मंडल बनाया उस मंडल पर देवी की एक प्रतिमा के निर्माण किया और उसका उन्होंने पूजन और उसमें नैवेद्य समर्पित किया।
उस साधना में उन्होंने अपने आगे एक!
तेल का दीपक जलाया था। और क्योंकि यह साधना तामसिक है इसलिए इसमें उन्होंने! शशक के मांस?
और आसव से पूजा किया था।
इसके लिए उन्होंने पहले ही। एक पिंजरे में शशक को पकड़ लिया था और जब उनका जाप समाप्त होता था वह उसके सिर को काट कर उस। वट वृक्ष के नीचे जहां पर देवी की प्रतिमा स्थापित थी।
उनके चरणों में समर्पित कर देते थे।
इस प्रकार उन्होंने प्रत्येक रात्रि!
तकरीबन 9-10 बजे के बाद से। एक हजार की संख्या में जाप किया था। इस तरह से! धीरे-धीरे करके उन्हें।
उस जंगल में अनित्य के स्वर सुनाई देने लगे थे। वह चारों तरफ देखते तो वहां कई सारी प्रेत आत्माएं मांस प्राप्त करने के लिए। उन से गुहार लगाते थे। और कहती थी कि इस शशक का मांस?
तुरंत मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हारा गला दबा दूंगा या दबा दूंगी। लेकिन वह भी बहुत ही पक्के थे। क्योंकि वह भगवान शिव के।
सिद्ध मंत्रों का सदैव उच्चारण करते थे इसलिए उनके शरीर को कोई छू भी नहीं सकता था।
वह एकलिंग महादेव की बचपन से आराधना करते आए थे। और भगवान शिव के गुरु मंत्र को उन्होंने अपने गुरु से प्राप्त किया था। इसी कारण वह अपने चारों ओर जब चाकू से सुरक्षा घेरा लगा लेते थे तो किसी शक्ति की सामर्थ्य नहीं थी कि उस सुरक्षा घेरे के अंदर आ सके। लेकिन साधना में साधक को भय दिखता ही है। चारों तरफ! उनके।
रक्त और मांस की वर्षा होने लगती थी। चारों तरफ से नग्न पिशाचिनी या उनके चारों तरफ घूमते हुए नृत्य करती थी और भोग के लिए अपने शरीर को आगे कर देती थी। यह सारी चीजें उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती थी। किंतु अपने मंत्र जाप के बीच में वह कभी भी। साधना को रोकना नहीं चाहते थे।
लेकिन एक बात जो कम ही साधक जानते हैं। वह यह है कि साधना समय और साधना काल। दोनों में फर्क होता है। साधना समय के दौरान तो व्यक्ति अपने ऊपर कड़ा नियंत्रण रखकर। साधना पूरी कर लेता है लेकिन साधना काल। अर्थात वह समय जब से उसने साधना करनी शुरू की है और जब तक वह देवता प्रकट नहीं होगा उसके बीच का समय जैसे कि इस साधना में पूरे 11 महीने था।
वह करना और उसको संभालना बड़ा ही कठिन होता है क्योंकि इस दौरान वीर्य रक्षण से लेकर। भय और शक्तियों द्वारा रचा जाने वाला मायाजाल आपको झेलना पड़ता है।
उनके साथ भी ऐसा ही हुआ था।
उनके पिंजरे में शशक गायब हो गए जब साधना का आखिरी दिन था। और वहां पर एक मोटा शशक आ गया।
उस को जब इन्होंने! मंत्र जाप करने के बाद काटना चाहा। तो वह उसे काट ही नहीं पाए। उसकी गर्दन कटने को तैयार ही नहीं थी। थोड़ी देर बाद वह शशक अपने मुंह से बोलने लगा। और कहने लगा। मुझे काटना संभव नहीं है और अगर तुमने मुझे काट दिया। तो आज देवी प्रकट हो जाएगी।
इस कारण से तुम्हारा काटना भी जरूरी है, लेकिन अगर तुम काट नहीं पाए। तो तुम्हारी गर्दन खुद कट जाएगी और यह मैं सत्य कह रहा हूं। तो बताओ क्या करोगे? यह सुनकर मेरी गुरु! बहुत ही अधिक परेशान हो गए। वह सब कुछ देख रहे थे चारों ओर।
पिशाचिनिया खड़ग लेकर खड़ी हो गई। अपने खड़ग को तैयार करके वह जोर-जोर से हंसते हुए कहने लगी। कि अब तो हम तेरा सिर काट लेंगे। क्योंकि वचन अनुसार! अगर तूने इस शशक का सिर नहीं काटा? तो तुझे अपना सिर कटाना पड़ेगा।
और अगर तूने अपना सिर काट दिया। तो तू तो हम लोगों के साथ ही शामिल हो जाएगा और मर जाएगा। यह सुनकर मेरे गुरु को अब कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। आखिर शशक की गर्दन क्यों नहीं कट रही? और अगर इसकी गर्दन नहीं कटी। तो मेरी गर्दन क्यों कट जाएगी?
आखिर यह कनकवती यक्षिणी! क्या करवाना चाहती है? उन्हें इस बात का कुछ भी पता नहीं था कि अब उनके साथ क्या घटित होने वाला है?
भाग 2 में मैं आपको इसके आगे की कहानी भेज दूंगा। नमस्कार गुरु जी!
संदेश – यहां पर इन्होंने कनक वती यक्षिणी की साधना के विषय में अपने गुरु का अनुभव भेजा है जो कि दुर्लभ है और बहुत ही स्पष्ट भाषा में इन्होंने यहां पर वर्णन किया है। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
गुरु की कनकवती यक्षिणी साधना भाग 2