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गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि भाग 1

गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । आज मैं आप लोगों के सामने एक ऐसी कहानी लेकर आया हूं जो आपने ना कभी सुनी होगी ना जानी होगी । और ऐसी कहानियां और सच्ची घटनाएं छुप गई । जिनके बारे में आप कोई वर्णन नहीं है । और मैं बहुत ही रिसर्च करके इस कहानी को निकाला हूं । आप पढोगे और हैरान हो जाएंगे परेशान हो जाएंगे ऐसा होता था हमारे देश में ऐसी कहानियां है । मैं कुछ नहीं रिफरेंस और कुछ अलग से नहीं दूंगा । आप पढ़िए और मजा लीजिए ज्ञान लीजिए साथ ही साथ में । बाकी यह गोपनीय बात है कुछ भी मैं आपको इस बारे में नहीं बताऊंगा । आपको सिर्फ जानना है और समझना है इन बातों को । तो चलिए शुरू करते हैं यह कहानियां बहुत खतरनाक है यह सच्ची घटनाएं ऐसी है कि जिनको सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे । तो चलिए शुरू करते हैं मैं बात कर रहा हूं भारत के आजाद होने से पहले की यह कथा है । तो यह जो गोपनीय बातें हैं इसके साथ कैसे घटित हुई मैं आज आपको बताऊंगा । तो सन 1947 की बात है होली की रात में । मैं गोरखपुर में था और वहां पर क्योंकि यह मैंने नहीं लिखी है ।

इसलिए गोरखपुर में मैं जो था इसका मतलब यह मत समझना मैं था यह किसी और की कथा है यह एक तांत्रिक है जिसके बारे में । मैं आपको बताऊंगा । तो यह गोरखपुर में थे । तो इन्होंने सोचा कि गोरखपुर मंदिर के पाम में जाया जाए और वहां जाकर दर्शन वगैरह किए जाए । तो फिर शाम का समय हो चुका था धीरे-धीरे इन्होंने वहां पर पूजा वगैरह की । पूजा कर लेने के बाद में फिर अचानक इनका मन हुआ कि चलिए मंदिर के पीछे कोई हिस्सा था उसमें घुमा जाए । और काफी इधर-उधर वह ऐसे ही चलते चले गए । वहां पर बहुत सारे पेड़ लगे हुए थे पीपल बरगद आम वगैरा के पेड़ थे । यह 1947 की बात है धीरे-धीरे इनको एक पगडंडी सी दिखाई पड़ी  और वह यह गांव की तरफ जाती थी । फिर पता नहीं इनके मन में क्या आया । इन्होंने सोचा धीरे-धीरे घने पेड़ों और झाड़ियों से गुजरते हुए और जो सूखी पत्तियां होती है उन पर पैर रखते हुए पत्तियों पर पैर रखने पर चर चर की आवाज भी आती है इस तरह से चलते हुए । धीरे-धीरे करके वह अंदर जाने लगे एक समय आया जब जहां पर खुली खुली हरी हरी घास का मैदान आ गया ।

और उनको बड़ा अच्छा लगने लगा और वहां थोड़ी दूर पर एक काली माता का मंदिर था वह काफी पुराना था और काफी खराब स्थिति में था । मंदिर का दरवाजा भी टूटा हुआ था उस पर लाल रंग वगैरा गिरा हुआ था चारों तरफ अजीब सी एक विचरता थी  वहां पर । तो यह अंदर वहां पर जाने लगे । धीरे-धीरे करके आगे बढ़ने पर इन्होंने देखा वहां जो मंदिर है उसके अंदर से थोड़ा सा उजाला भी आ रहा था । तो वह मंदिर के पास गए और देखा तो दीपक जल रहे थे और दीपक माता के सामने जलाया हुआ था । वह पर माता काली की काफी बड़ी विकराल स्वरूप में मूर्ति थी काफी भयानक सा उनका चेहरा और एकदम से रूद्र रूप में माता दिखाई पड़ती है । उसी तरह वह मूर्ति नजर आ रही थी । फिर धीरे-धीरे करके आगे बढ़े और इन्होंने देखा की यहां पर लाल रंग थोड़ा गिरा पड़ा हुआ है । ध्यान से देखने पर उन्हें लगा कि किसी जमाने में यहां पर नर बलि दी जाती होगी या फिर कोई बलि दी जाती होगी । इसीलिए वहां पर खून वगैरह पड़े थे वहां पर पंच मुंडी का आसन था मां का । जिस पर वह भयंकर स्वरूप में प्रतीत हो रही थी चारों तरफ जो है चौमुखा एक दीपक था जल रहा था । इन्होंने सोचा कि यह तो कोई बड़ी ही विचित्र जगह है एक थाली भी रखी हुई थी वहां पर और एक नारियल भी रखा हुआ था माला थी पुष्प थे । लोबान सिंदूर वगैरह सब वहां पर देखने के बाद ।

तब तक इनको किसी ने पुकारा और चिल्लाया सुदर्शन कुमार इधर आओ । तो यह इधर-उधर देखने लगे । कि आखिर मुझे कौन पुकार रहा है । तो इन्होंने जाकर देखा तो एक ओघड साधु जो है शेर की खाल के ऊपर बैठा हुआ इनको पुकार रहा है । उसका जो शरीर का रंग था वह बिल्कुल काला था मस्तक पर उसने सिंदूर का टीका लगा रखा था जैसे बाबा लोग होते हैं उसी तरह माला रुद्राक्ष की स्फटिक की हड्डियों की पूरा पूरा भरा हुआ था छाती है । इस तरह की मालाओं से । तो यह कोई कपाली तंत्र का साधु लग रहा था । धीरे-धीरे करके जैसे ही यह उनके पास गए इन्होंने प्रणाम किया उनको जैसे ही इन्होंने प्रणाम किया वह हंसने लगा । तब तक उसके बगल में जो कपाल खंड होता है जो कपाली लोग ज्यादातर कपाल खंड रखते हैं । उस कपाल खंड में नर कपाल जो होता है उसमें डाली शराब और वह व्यक्ति पी गया आदमी की खोपड़ी में से । और अपना फिर मुंह को पोछा और कहने लगा की मैं तो आज तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था । तो इनको जो है कि थोड़ा सा अजीब या विचित्र सा लगा कि सोचा कि यह मेरे को कैसे जानता है । और यह कैसे कह रहा है कि मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था । फिर उसने कहा बेटा मैं तो तुम्हारी प्रतीक्षा काफी समय से कर रहा हूं देखो कितना समय निकल गया है । मैंने कहा यह दारू पिया बैठा हुआ है यह कोई अध पगला सा साधु हो । तो इसने कहा नहीं जो तुम सोच रहे हो ऐसा कुछ नहीं है और उसने कहा चल मेरे साथ मां तेरा कल्याण करेगी । मैं जानता हूं तू माता का भक्त है ।

मैंने कहा ठीक है अगर यह ऐसा मुझे कुछ कह रहा है । तो मैंने उनसे कहा महाराज मैं गलती से जिज्ञासा वर्ष मंदिर से गुजरता हुआ मंदिर के पीछे से यहां तक आ गया मैं कुछ जान नहीं पाया हूं आप मुझे रास्ता बता दीजिए मैं भटक गया हूं । तब उसने कहा भटके कहां हो तुम तू तो सही जगह आया है रे । यहीं पर तुझे सारा सब कुछ जानने को मिलेगा अब मैंने देखा कि यह मुझसे कह रहा है कि बाहर चलिए । तो मैंने कहा ठीक है चलिए मैं इसके साथ चल ही देता हूं । तो मैं इसके साथ धीरे-धीरे करके मंदिर से बाहर निकला वहां पर एक पीपल का पेड़ था और पेड़ के चारों तरफ एक चबूतरा सा बना हुआ था । चबूतरे पर बैठने को उसने कहा मैं चुपचाप बैठ गया । और उसने जो है तो उसने पूछा तुम तो मां के भक्त होना तो तुम मदन सिंह से मिल आए हो । मैंने कहा कौन मदन सिंह आप किस मदन सिंह की बात कर रहे हैं । तो वह हंसने लगा और कहा तुझे मदन सिंह के बारे में नहीं मालूम अरे मदन सिंह राजा । तो मैंने कहा राजा मदन सिंह क्या कह रहे हो बाबा । उसने कहा मदन सिंह को नहीं जानता है रे गधे तू । उसने कहा मदन सिंह यहां का राजा है गोरखपुर का सारा क्षेत्र उसके अधिकार में है । तो मैंने कहा मदन सिंह राजा लेकिन मुझे थोड़ा बहुत कुछ पता था तो फिर मैं हंसने लगा । मदन सिंह राजा तो यहां हुआ था लेकिन वह तो हजार साल पहले की बात है ।

वह सन 900 से 950 ईसवी में गोरखपुर के शहर का राजा था । एक थारू राजा के नाम से वह जाना जाता था । तो वह कहने लगा गधा मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं सही कह रहा हूं तू क्या उससे मिलकर नहीं आया । मैंने कहा नहीं बाबा यह तो हजार साल पहले की बात है । तो आप ऐसी गोलमोल बातें कर कैसे रहे हो । तो वह कहने लगा अच्छा तो बताएं यह कौन सा सन है । मैने कहा यह संन तो 1947 ईस्वी है । तो कहने लगा तू झूठ बोलता है अरे यह तो 900 ईस्वी सदी है वह शायद इस सदी की बात कर रहा था 900 ईस्वी की । मैंने कहा यह पागल तो नहीं है लेकिन उसने कहा । अरे अच्छा तो ऐसी बात है मैं तुझे बताऊं मेरी साधना सफल हो गई है इसमें कोई संदेह नहीं रहा । मैंने कहा कैसी साधना आप कौन सी साधना की बात कर रहे हैं । तो वह आश्चर्यचकित होकर कहने लगा कि मूर्ख मैं त्रिकाल शक्ति कर रहा था । मैंने मां तारा के सामने त्रिकाल शक्ति करने की प्रतिज्ञा ली थी और यह त्रिकाल शक्ति का ही असर है देख मैं भविष्य में आ गया हूं । और तू वर्तमान को पीछे छोड़कर भूतकाल में आ गया है ।

मैंने कहा यह कैसी बात आप मुझे बता रहे उन्होंने कहा त्रिकाल सिद्धि होने पर साधक अपनी इच्छा अनुसार भूत भविष्य और वर्तमान तीनों किसी भी काल में प्रवेश कर सकता है । वह हजारों वर्ष पीछे भी जा सकता है और भविष्य में भी जा सकता है । वह त्रेता में जा सकता है द्वापर में जा सकता है कलयुग में भी हो सकता है । वह कहीं पर भी कभी भी प्रवेश कर जाएगा । मैंने जब यह सब सुना तब बाबा क्यों मजाक कर रहे हो । उसने कहा तू तो मूर्ख है ही है और तू जानता है मैंने इसके लिए स्वयं नरबलि दे दी थी । मैंने कहा नरबलि । तो उसने कहा हां मैंने नरबलि भी दी थी और यह तो देना आवश्यक होता है वरना माता तारा प्रसन्न कैसे होती  । मैंने यही बलि देकरक के  सिद्धि प्राप्त हो गई है । आज देख मैं भविष्य में खड़ा हूं मैं तुझे बताता हूं । मैंने कहा बाबा मुझे तंत्र की भाषा समझ में नहीं आती है तंत्र क्या है और कैसे इतनी बड़ी शक्तियां और सिद्धियां हो सकती है । तो वह बोला देख मूर्ख हमारा शरीर दो भागों से बना हुआ होता है एक होता है ज्ञान वाला भाग और दूसरा होता है कर्म वाला भाग । जो गर्दन का ऊपर वाला हिस्सा होता है उसे हम ज्ञान वाला भाग कहते हैं ।

और जो गर्दन के नीचे वाला हिस्सा होता है वह हमरा कर्म वाला भाग होता है । अर्थात गर्दन से ऊपर हम अपने ज्ञान को संचय रखते हैं यानी इखट्टा रखते हैं । अगर ऊपर का भाग ना हो तो हमारा ज्ञान हमें प्राप्त ना हो और अगर नीचे वाला भाग ना हो तो हम कोई कर्म नहीं कर पाएंगे ठीक वैसे खाली सर हो तो सिर्फ एक ज्ञान से भरा होगा वह कुछ कर नहीं पाएगा । और अगर खाली नीचे का हिस्सा धड़ हो तो वह कुछ भी नहीं सोच पाएगा उसके पास कोई भी ज्ञान नहीं होगा । यही मोक्ष और बंधन का कारण है नरबलि होने पर दोनों में से एक की प्राप्ति हो जाती है अर्थात ज्ञान खंड बढ़ जाता है या फिर कर्म खंड पर बढ़ जाता है । मैने कहा आपकी बातें सुनकर आश्चर्यचकित  हुआ हूं । तो अब वह तांत्रिक कहने लगा मैंने 20 साल तक कठोर तांत्रिक साधना माता तारा रानी की । उसके बाद नरबलि देकर उन्हें प्रसन्न किया । फिर मुझे सन 927 ईसवी में ।

मैं तेरे आज के समय के अनुसार मुझे भूतकाल की शक्ति प्राप्त हुई । फिर मैं भविष्य काल के लिए शक्ति प्राप्त करने के लिए कठिन साधना में बैठ गया और जब मैं उठूंगा तब मुझसे भविष्य की सिद्धि भी प्राप्त हो चुकी होगी । अब देख मुझे भविष्य की सिद्धि भी मिल चुकी है और अब मैं आज से भविष्य के समय मैं हमेशा के लिए प्रवेश कर जाऊंगा । अब बलि देकर मैंने कहा मैं समझा नहीं बाबा अब तो तू आ ही चुका है ना अब तेरी ही बली में दे कर के भविष्य काल में सदैव के लिए प्रवेश कर जाऊंगा । और जब चाहे मैं भूतकाल में आ जाऊंगा । मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई यह तो मेरी ही बलि देने की बात कर रहा है यह पागल हो गया है । यह मेरी बलि देकर कहीं मुझे जान से ना मार दे । इसका आगे का भाग जानेंगे दूसरे में ।

आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि भाग 2

 

 

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