घटारानी मंदिर का रहस्यमयी शेर भाग 2
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है घटारानी मंदिर का रहस्यमई शेर। आपने अभी तक इस कहानी में जाना कि गणेश को एक रहस्यमई शेर जीवन के रहस्यों को बता रहा था। जब गणेश ने यह सारी बातें सुनी, तब उसने उस शेर से पूछा, आप कोई सिद्ध साधु या संत की तरह बात कर रहे हैं। आप अपने बारे में बताएं या फिर ना बताएं। लेकिन इस वास्तविक भौतिक जीवन में इन बातों का क्या लेना-देना व्यक्ति यहां पैदा होता है। अपनी इच्छा अनुसार जीवन जीता है और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। लेकिन यह सारी बातें एक सामान्य व्यक्ति के लिए किसी भी प्रकार से महत्वपूर्ण नहीं हो सकती। यह तो केवल एक कथा है और कथा से जीवन नहीं चलता। तब उस रहस्यमई शेर ने कहा। तुम्हें ऐसा लगता है लेकिन जीवन स्वयं एक कथा है और मृत्यु के बाद तुम भी केवल एक कथा के रूप में ही जीवित रह पाओगे। इसलिए कोई भी कथा जीवन के रहस्य को बताती है। महाभारत को ही ले लो। इसमें भी ज्ञान का पूरा भंडार भरा हुआ है। लेकिन व्यक्ति ज्ञान से क्या प्राप्त करता है और कथा को वह केवल मनोरंजन के लिए सुनता है या फिर ज्ञान के लिए यह उसी पर निर्भर करता है? तब गणेश ने कहा, महाभारत तो मैंने भी सुनी है लेकिन उसमें ज्ञान वाली कौन सी बात थी? एक भाई ने दूसरे भाई का हक मार दिया और इसी के लिए सारा युद्ध हो गया। जिसका हक मारा गया था, उसने अपना बदला ले लिया इस प्रकार से यह कहानी खत्म हो जाती है। तब? उस शेर ने कहा, ऐसा नहीं है। जीवन के रहस्य को समझना आवश्यक है। कथा में रहस्य भी बताया गया है। अब चलो एक प्रश्न पूछता हूं। इस महाभारत को किसने कहा और किसने लिखा ? तब गणेश ने कहा, इसे वेदव्यास जी ने कहा और भगवान गणेश ने इसे लिखा था। तब शेर ने कहा, इसका अर्थ क्या है? गणेश ने कहा, इसमें अर्थ समझने वाली बात क्या है? अगर आप इसके विषय में जानते हैं तो फिर इसके आध्यात्मिक रहस्य को मुझे बताइए तब वह कहने लगे। पात्र और कठिनाई जीवन की और उस से बनी हुई कहानी को तो सब सुनते हैं लेकिन वास्तविक मर्म को कोई ही जान पाता है। वेदव्यास हमारा ज्ञान है और भगवान गणेश हमारी बुद्धि है, जीवन की गाथा लिखने के लिए । आपके अंदर ज्ञान होना चाहिए जोकि वेदव्यास का प्रतीक है और आपकी बुद्धि ही आपको जीवन की कथा लिखने को आगे बढ़ा सकती है ताकि आप जीवन में कामयाब हो सके। तब गणेश ने कहा, अच्छा तो फिर आप पांडव, कौरव, भगवान श्री कृष्ण इत्यादि के रहस्य को भी जरा बताइए। तब उस शेर ने कहा सुनो अब इस दर्शन को जानो जो पूरी महाभारत का सार है और शायद ही कोई व्यक्ति जिसने महाभारत सुनी हो, इस अर्थ को जानता हो। पांडव कुछ और नहीं बल्कि मनुष्य के शरीर में निवास करने वाली पांच इंद्रियां है। दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श, श्रवण गणेश ने पूछा, फिर कौरव कौन है तब उस शेर ने कहा, कौरव ऐसे सौ तरह के विकार हैं जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं। आप उनसे लड़ भी सकते हैं और जीत भी सकते हैं। तब गणेश ने पूछा आप भगवान कृष्ण के विषय में फिर बताइए कि वह फिर कौन है? शेर ने कहा, जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं तो वह आप की आंतरिक आवाज आपकी आत्मा और आपका मार्गदर्शक ईश्वरीय प्रकाश हैं। जब व्यक्ति अपने जीवन की बागडोर किसी परमात्मा स्वरूपा शक्ति को सौंप देता है तो फिर व्यक्ति को चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं रहती और यही परमात्मा, माता-पिता और शक्ति स्वरूप किसी भी रूप में आपकी हर प्रकार से मदद करता हुआ आपको ऐसा लगता है जैसे अर्जुन ने स्वयं सारे कर्म किए किंतु सारे कर्म करवाने वाले भगवान श्रीकृष्ण थे। इसी तरह मनुष्य भी यही समझता है कि सारे कर्म वही कर रहा है किंतु उसको सारे कर्म करवाने वाला वही शक्ति है। जो कि उसके आगे उसके मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में आत्मा के रूप में आंतरिक आवाज के रूप में उसके साथ चल रही है। गणेश ने कहा, यह सब तो ठीक है। अच्छा तो फिर यह बताइए कौरवों के लिए द्रोणाचार्य और भीष्म क्यों लड़ रहे थे? शेर ने कहा, भीष्म हमारे अहंकार का प्रतीक है। इसी तरह अश्वत्थामा हमारी भावनाएं हैं और इच्छाएं हैं जो कि जल्दी नहीं मरती हैं। दुर्योधन हमारी संसार की वासनाओं और विभिन्न प्रकार की इच्छाओं का प्रतीक है। द्रोणाचार्य हमारे अंदर मौजूद संस्कार हैं। जयद्रथ हमारे शरीर के प्रति राग का प्रतीक है। यानी कि मैं यह शरीर हूं इसका भाव । राजा द्रुपद वैराग्य के प्रतीक हैं। अर्जुन स्वयं की आत्मा है। मैं ही अर्जुन हूं। कृष्ण हमारे परमात्मा है। पांडव नीचे के चक्र हैं जैसे कि मूलाधार से लेकर विशुद्धि चक्र तक देवी द्रोपदी कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक। जिसके पांच पति हैं, पांच चक्र है। ओम नाम का शब्द उच्चारण कृष्ण का पंचजन्य शंखनाद है जो आत्मा को बलवान बनाता है और बुराइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। हमारे अंदर इच्छा सांसारिक वासनाए आंतरिक शत्रुओं यानी कौरवों से सदैव हमारी लड़ाई चल रही है और यह कभी नहीं रुकने वाली किंतु परमात्मा रूपी ज्ञान का सहारा लेकर अपने मन को नियंत्रित करते हुए हम पांचों इंद्रियों की सहायता से इन सभी शत्रुओ का नाश कर सकते हैं। 72000 नाड़ीयों में भगवान अपनी चैतन्य शक्ति भर देते हैं। यह चैतन्यता जब जागृत हो जाती है तो यह लगता है कि अन्न से बना हुआ यह शरीर में नहीं हूं। मैं एक आत्मा हूं। ईश्वर को अपनी माता को परा शक्ति को प्राप्त करना कि मेरे जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। यह शरीर ही धर्म क्षेत्र है। इसे ही कुरुक्षेत्र कहते हैं। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ हमारा मन कहलाता है और संजय आप के आध्यात्मिक गुरु हैं जो वास्तविक ज्ञान दिखाते रहते हैं लेकिन अगर व्यक्ति धृतराष्ट्र की तरह ज्ञान को समझने को तैयार ना हो तो सदैव अंधा ही बना रहता है। इसी तरह यह रहस्य जानकर अब गणेश कहने लगा। वास्तव में आपने तो पूरी महाभारत के आध्यात्मिक अर्थ को ही बता दिया। लेकिन एक व्यक्तित्व छूट गया। आप बताइए कि यह कर्ण कौन है तब? उस विद्वान और शक्तिशाली शेर ने कहा, कर्ण आपकी इंद्रियों का भाई है। वह इच्छा है। वह सांसारिक सुख के प्रति आपके राज्य का प्रतीक है। वह आपका ही एक हिस्सा है, लेकिन वह अपने पति हमेशा अन्याय महसूस करता है और आपके विरोधी विकारों के साथ सदैव खड़ा दिखाई देता है। हर समय विकारों के विचारों के साथ खड़े रहने के कोई ना कोई कारण और बहाने वह बनाता रहता है। क्या आपकी इच्छा आप के विकारों के वशीभूत होकर उन में बह जाने या अपनाने के लिए स्वयं को प्रेरित लगातार नहीं करते रहती है तब गणेश ने सिर हिलाकर कहा हां! इसका अर्थ यही है कि इस जीवन रूपी महाभारत को समझना है। अपने मन को नियंत्रित करते हुए पांचों इंद्रियों के माध्यम से समस्त प्रकार के विकारों को नष्ट करना है और माता परा शक्ति को प्राप्त करने का प्रयास करना है। वह ऊर्जा बनकर शरीर की 72000 नाड़ीयों में दौड़ रही हैं। यही पूरे शरीर को शुद्ध करेंगी और वास्तविक ज्ञान देते हुए पूर्ण मुक्ति प्रदान करेंगी। इस रहस्य को समझो! गणेश अब इस शेर को देखता ही रह गया। वह समझ चुका था कि यह तो कोई देवता है जिसके पास एक महान ज्ञान भी उपलब्ध है। आखिर यह कौन है गणेश अब उस शेर के पैरों पर गिर चुका था? और उनके पैर छूते हुए उनसे कहने लगा। आपने मुझे आध्यात्मिक ज्ञान दिया है। आप ही हर प्रकार से मेरी रक्षा करने वाले हैं। बताइए आप कौन हैं? आखिर वह शेर कौन था? जानेंगे हम लोग अगले भाग में अगर यह कहानी और किवदंती आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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