घटारानी मंदिर का रहस्यमयी शेर भाग 1
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक बार फिर से हम लोग मठ और मंदिरों की कहानी से संबंधित एक कथा को लेकर आए हैं। यह कथा एक प्रसिद्ध मंदिर की है। वहां पर सन 1857 की क्रांति के समय एक विशेष घटना घटित हुई थी। वह घटना क्या थी और इस? रहस्यमई मंदिर का क्या विशेष प्रभाव है यह सभी इस कथा के माध्यम से हम लोग जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं। सन 1857 की क्रांति के समय पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध लोग एकत्र हो रहे थे। इस स्वतंत्रता संग्राम में कई छोटे-छोटे ग्रुप बन गए थे जो अंग्रेजों को लूटते और उन पर हमला करते थे। हालांकि यह पूरी तरह संगठनात्मक नहीं था, लेकिन फिर भी अपने तरीके से सभी यह कोशिश कर रहे थे। कि वह किसी भी प्रकार से अंग्रेजों को क्षति पहुंचा पाए। ऐसे ही गणेश नाम का एक व्यक्ति। जिसने अपने गांव के कुछ लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला करना शुरू किया था। तेजी से अपने कार्यों को करता जा रहा था। इसी में उसे कुछ धनराशि भी प्राप्त हो गई, लेकिन उसी के गांव के किसी व्यक्ति ने अंग्रेजों को जाकर मुखबरी कर दी। इसकी वजह से अंग्रेज अब पूरे गांव को घेर लिये थे । अब ऐसी परिस्थिति में जब यह बात गणेश को पता चली तो उसने सोचा यहां से भाग जाना ही अच्छा होगा। इसलिए गांव में जितने भी जानवर थे उन सब को खोलकर वह उनके बीच से होता हुआ अपने साथियों के साथ भागने लगा। लेकिन अंग्रेज चतुर थे, उन्हें पता चल चुका था। इसलिए उन्होंने वहीं से फायरिंग शुरू कर दी। उनकी गोलियां जानवरों को लगती तो वह भी मारे जाते और उसके साथियों को लगती तो उनकी भी मृत्यु हो जाती। लेकिन तब तक जंगल नजदीक आ चुका था और किसी प्रकार अपने साथियों को खो देने के बावजूद भी गणेश जंगल में प्रवेश कर गया। अंग्रेज गणेश के पीछे अपनी पूरी पलटन के साथ तेज दौड़ लगा रहे थे लेकिन जंगल में आंखों के आगे ओझल होना बहुत ही सरल कार्य है क्योंकि जंगल बहुत घना होता है और उस वक्त के दौर में जंगल बहुत घने होते थे। अंग्रेज अब उसका पता नहीं लगा पाए लेकिन? अंग्रेजों ने छानबीन जारी रखी। इस बात को समझते हुए गणेश जंगल में और अंदर घुसता चला गया और धीरे-धीरे वह एक विशेष और विचित्र स्थान पर पहुंच गया। वह स्थान बहुत ही दुर्लभ था, वहां पर उसने दो गुफाएं देखी। एक गुफा में उसने जाकर विश्राम करने की सोची क्योंकि उसके नजदीक ही बहता हुआ पानी था। इसलिए पानी की व्यवस्था तो वहां से हो जाती और भोजन की व्यवस्था जंगल से हो सकती थी। इसलिए कई दिनों तक वह वहां पर छुप कर रह सकता था। इसलिए अब उसने वहीं पर रहने का पूरा निर्णय ले लिया। गुफा के कारण अंग्रेज उसका पता भी नहीं लगा पाएंगे। इसीलिए वह उस गुफा के अंदर चला गया। अंग्रेज उसे ढूंढते ही रह गए क्योंकि वह उस जंगल के बहुत अंदर चला गया था। अब वह बैठा उस गुफा में आराम ही कर रहा था कि तभी उसे शेर की गर्जना सुनाई देती है और इस बात से वो भयभीत हो जाता है। गुफा के अंदर एक बड़े पत्थर के पीछे जाकर वह छिप जाता है। और उसी जगह छिपकर वह सब कुछ देखने लगता है तभी वह देखता है। एक विशालकाय शेर अंदर की ओर आ रहा है। अब गणेश को लगता है कि मैं अंग्रेजों से तो बच गया लेकिन इस शेर से बचना नामुमकिन है। यह तो कुछ ज्यादा ही बड़ा है और शायद अपने रहने के स्थान पर यह आया है। इसकी गुफा को मैं समझ नहीं पाया। शायद यह इसी की गुफा है। और शेर गुफा के दरवाजे पर आराम से बैठ गया। वहां तेज बारिश हो रही थी। इसीलिए शेर वहां पर आराम करने लगा। गणेश ने सोचा अब बचने का केवल एक ही मार्ग है और वह मार्ग है कि जब तक शेर यहां रहे मैं चुपचाप बिना कोई हरकत किए। इस गुफा के अंदर बैठा रहूं और इस पत्थर के पीछे आराम करता रहूं। जब यह शेर भूखा होगा तब अवश्य ही यह बाहर निकलेगा और यहां से जैसे ही यह बाहर जाएगा। मुझे भी चुपचाप यहां से बाहर निकलना होगा क्योंकि यह वापस फिर से इसी स्थान पर आएगा क्योंकि यह तो इसी के रहने का स्थान है। इस प्रकार चुपचाप वह उसी स्थान पर बैठा रहा कि तभी उसके ऊपर एक कीड़ा गिर गया। इस हड़बड़ाहट में उसने कीड़े को हटाने के प्रयास में शोर कर दिया। उस शोर को सुनकर। अब शेर जान गया और पलट कर इसकी और आया और तेजी से गुर्राने लगा। उसकी गुर्राहट इतनी खतरनाक थी कि किसी की भी आत्मा शरीर छोड़ सकती थी। इसे कुछ समझ में नहीं आया और जय माता कहते हुए उसके आगे उसके पैरों में गिर गया क्योंकि उसे पता था कि वह उस से युद्ध नहीं कर सकता है और शेर अब उसे मार ही देगा क्योंकि यह माता का वाहन है। इसलिए अब माता से ही प्रार्थना कर इसके आगे गिरने में ही समझदारी नजर आती है। वह बेचारा सोच भी क्या सकता था इसलिए वह उसके आगे गिर गया और उसके बाद जो हुआ उसकी कतई कल्पना गणेश ने नहीं की थी क्योंकि शेर ने गुस्से से कहा। तू मेरे रहने के स्थान पर क्यों आया है? यह सुनकर एक समय तो गणेश को विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि शेर मनुष्य की आवाज में कैसे बोल सकता है किंतु यहां पर तो यह घटित हो चुका था। तब शेर! आदमी की आवाज में उससे वार्तालाप करने लगा। उसने कहा मेरे स्थान पर आने के कारण! मैं तुझे जीवित नहीं छोड़ सकता। क्यों यहां पर आया है? सब! गणेश ने माता का नाम लेते हुए कहा, मैं देवी मां का भक्त हूं। ऐसे में अगर तुम मुझे मारोगे तो तुम्हें पाप लगेगा। तुम कोई सिद्ध शक्ति हो क्योंकि शेर मनुष्य की आवाज में नहीं बोल सकते। मैं मृत्यु के डर से इस डरावने वन में आ गया हूं। आप अब अगर मेरे प्राण लेते हैं तो यह आपकी इच्छा! तब? वह शेर कहने लगा कि मैं यहां पर पिछले 5000 वर्ष से निवास कर रहा हूं। देवी मां का एक छोटा सा गण हूँ और इसकी कथा अलग है कि मैं यहां पर कैसे आया? लेकिन? यह संसार तो एक डरावना वन है और इस वन में तू भी भटक गया है। चल मैं तुझे एक कथा सुनाता हूं और एक रहस्य बताता हूं। तब गणेश के सांस में सांस आई क्योंकि अब शायद फिर उसकी हत्या ना करें। तब शेर ने कहा, सुन एक वन था बहुत भयानक एक उसमें भूला भटका हुआ व्यक्ति पहुंचा। मार्ग उसे नहीं मिला। उसने देखा कि वन में शेर चीते रीछ हाथी और कितने ही पशु दहाड़ रहे हैं। वैसे उसके हाथ-पांव कांपने लगे बिना देखे। वह भागने लगा। भागता भागता एक स्थान पर पहुंच गया। वहां देखा कि 5 विषधर सर्प फन फैलाये फुँकार रहे हैं। उनके पास ही एक वृद्ध स्त्री खड़ी है। महा भयंकर सांप जब इसकी और लपका तो वह फिर भागा और अंत में हंफ़ता हुआ 1 घंटे में जा गिरा जो घास और पौधे से ढका हुआ था। सौभाग्य से एक बड़े वृक्ष की शाखा उसके हाथ में आ गई। उसे पकड़कर वह लटकने लगा। तभी उसने देखा कि एक कुआं है और उसमें एक बहुत बड़ा अजगर मुंह खोले हुए बैठा है उसे देख कर वह कांप उठा। शाखा को दृढ़ता से पकड़ लिया कि कहीं गिर कर अजगर के मुख में ना गिर पड़े। परंतु ऊपर देखा तो उससे भी भयंकर दृष्टि से 6 मुख वाला एक हाथी वृक्ष को हिलाने लगा। जिस शाखा को उसने पकड़ रखा था, उसे सफेद और काले रंग के चूहे काट रहे थे।भय से उस का रंग पीला पड़ गया। तो तभी शहद की एक बूंद उसके होठों पर गिरी। उसने ऊपर देखा। वृक्ष के ऊपर वाले भाग में मधुमक्खियों का छत्ता लगा था। उसी से शहद की बूंदे गिरती थी। इन बूंदों का स्वाद लेने लगा। इस बात को भूल गया कि नीचे अजगर है। इस बात को भूल गया कि वृक्ष को एक 6 मुख वाला हाथी खिला रहा है। इस बात को वह भूल गया कि जिस शाखा में वह लटका है उसे सफेद और काले चूहे काट रहे हैं। इस बात को भी कि चारों और भयानक वन है। इसमें भयंकर पशु चिघाड़ रहे हैं। यह कथा महाराज धृतराष्ट्र को विदुर जी सुना रहे थे तब उन्होंने पूछा कि वह अभागा व्यक्ति भयानक वन में पहुंचकर संकट में कैसे फस गया। तब विदुर जी ने कहा कि महाराज यह संसार ही यह एक वन है। मनुष्य ही वह अभागा व्यक्ति है जो संसार में पहुंचते ही वह देखता है कि वह ऐसे वन में है जहां रोग कष्ट और चिंता रूपी पशु या पशु गरज रहे हैं। यहां काम क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पांच प्रकार के विषधर सर्प फैलाएं फुँकार रहे हैं। यही वह बूढ़ी स्त्री रहती है जिसे हम वृद्धावस्था कहते हैं जो रूप और यौवन को समाप्त कर देती है। इन से डर कर के वह व्यक्ति भागा है। वह शाखा इसे जीने की इच्छा कहते हैं। हाथ में आ गई। इस शाखा में लटके लटके। उसने देखा कि नीचे मृत्यु का महासर्प प्रमुख फैलाए बैठा हुआ है। उस तरफ से आज तक कोई नहीं बच पाया। ना राम रावण ना कोई महाराजा और ना ही कोई धनवान और ना ही कोई निर्धन काल रूपी सर्प से आज तक बचा ही नहीं है। 6 मुंह वाला हाथी जो इस वृक्ष को झकझोर रहा है, वह छह ऋतु में है जो कि बार-बार आती जाती रहती हैं और काले और श्वेत रंग के चूहे यह दिन और रात है जो दिन प्रतिदिन आपकी डाली यानी जीवन को कम करते जा रहे हैं। इस प्रकार तू क्या समझा? मुझे बता? यह सुनकर गणेश आश्चर्यचकित था।गणेश ने क्या किया और उस शेर ने आगे क्या कहा जानेंगे? अगले भाग में तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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