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डायन का प्रकोप और मेरी साधनाये भाग 3

डायन-का-प्रकोप-और-मेरी-साधनाये-भाग-3

डायन का प्रकोप और मेरी साधनाये भाग 3

 प्रणाम गुरूजी।

जय माता पराशक्ति चंडिका।
गुरुजी अब मेरे  साथ घटी आगे की कहानी सुनाता हुं।
नमस्कार दोस्तों।
पीछली बार आपने सुना था की श्रीक्षेत्र पूरी में मेरे साथ क्या क्या हुआ। कैसे भैरवी से जुड़ना हुआ, शमशान चंडी मंदिर में पहुंचना हुआ। और अंतिम दिन मुझे जगन्नाथ पुरी से डमरू और रुद्राक्ष की माला मिलना हुआ। अब इस डमरू और रूद्राक्ष की कहानी आगे  के भाग में सुनेंगे। और आगे आपको एक देवी शक्ति की माया के विषय में जानने को मिलेगा।  देखिए आप लोगों को लग सकता है की मैं अपनी प्यार की कहानी सुना रहा हूं। लेकिन यही तो मुख्य कहानी है जो की अनसुलझी है। और इसी कहानी के वजह से न जाने क्या क्या बदल गया। मेरा जिन्दगी तो खतम हो गया इसके साथ साथ हमारे गुरुशिष्यों की परिवार में भी इसका प्रभाव दिखने को मिला। इसीलिए मेरी ये प्रेम कहानी की कुछ हिस्सा आपको सुना रहा हूं।
मेरे साथ घटित कहनी को सुनाने से पहले मैं आपको.. इस एक जाग्रत मंदिर के विषय में बताना चाहता हूं। दोस्तों मैं जिस मंदिर के बारे में बताना चाहता हूं, वो आदिशक्ती मंदिर के नाम से जाना जाता है। और ये एक ऐसा मंदिर है जहां देवी स्वयं अंबिका रूप में पूजित रहती हैं..  आस पास कई मंदिर है, दुर्गा मंदिर, काली मंदिर और अन्य तरह के मंदिर.. लेकिन सिर्फ यही एक मंदिर है जो की आदिशक्ती के रूप में विराजित हैं। इस मंदिर की अतीत बहुत ही अदभुत है। जिसमे देवी की प्राकट्य लोगों को  आश्चर्य चकित करता है। पहले तो कुछ लोगों ने मिलके एक छोटी सी पीठ बसाकर हर संक्रांति पूजा,  चंडीपाठ आदी कर भागवती की पूजन करने के लिए निर्णय लिए थे। फिर 1996 आषाढ़ चतुर्दशी को देवी की आबिर्भाव हुआ था। और जब इनकी प्राकट्य हुआ था तब प्रकृति भी अपने चरम पे थी। बहुत ही अनोखा दृश्य था। तब से धीरे धीरे ये स्थान विख्यात होने लगा। और आगे चलके मंदिर निर्माण हुआ। लोगों का भीड़ बहुत अधिक होने लगा। देवी की कृपा से, यहां जो मूल रुप से जड़ित थे उनके पास कुछ सिद्धियां प्राप्त हुआ था। कई सारे व्यक्तियों का समाधान हो रहा था। बहुत से बांझ लोगों को यहां आने मात्र से संतान प्राप्ति होता था। बडे़ से बड़े समस्या समाधान हो जाता है। यहाँ पहुंचे वाला कभी खाली हात गया नही। यहां कोई भी अगर सच्चे दिल से प्रार्थना करे तो उसकी मनोकामना पूरी होना ही है। बहुत ही अदभुद है यहां की चरित्र गाथा। इस  मंदिर में हर किसी को प्रवेश नहीं मिलता। चाहें कोई पूरी तैयारी से भी मंदिर के लिए निकल ले, पर जब तक देवी की इच्छा न हो कोई भी अंदर पहुंच नही सकता। भ्रमित होकर अलग कार्य में चला जाता है। जो लोग देवी को देखे है, कहते हैं बहुत ही सुंदर है। क्योंकि कोई और कहता तो अलग मेरे दोस्त की मम्मी खुद रात  के  2 बजे देखी है देवी की स्वरुप को। बहुत सुंदर है। बहुत सुंदर गुलाबी होठों के साथ एक दुल्हन के तरह ही। और शक्तिशाली भी हैं। मुझे तो बहुत मायाविनी लगती हैं। इस मंदिर के जो मूल व्यक्ति थे उनको भी कुछ सिद्धियां प्राप्त थी, उनका गुजर जाना अभीतक 6 साल हो गया है, पर आज भी लोग उन्हे ढूंढते ढूंढते आ जाते है। और पूछते हैं की वो जो व्यक्तियों की समस्या हल करते थे वो व्यक्ति कहा हैं। क्योंकि उस व्यक्ति के पश्चात् देवी की चेतना से जुड़ कर लोगों की मदद कर सकें ऐसा कोई साधक नही मिल रहा। जो की कठिन तप कर देवी की कार्य सम्पादन कर सके।
पहले तो नॉर्मल  सा एक पीठ था, फिर एक छोटे सा मंदिर का निर्माण किया गया और देवी को ऐसे ही पूजन किया गया। श्रद्धालु की संख्या बड़ते  गया फिर आगे और planning बढ़ा कर  मंदिर को और आगे  तक  विस्तार किया गया। उसके साथ मूर्ति की स्थापना कर इस मंदिर का नए से प्राण प्रतिष्ठा हुआ। तब लाखों में भिड़ लगी थी। लेकिन इस बार मंदिर की प्रशस्ति करण में गड़बड़ हो गई। मुख्य द्वार का वास्तु और देवी के गर्भगृह की वास्तु बिगड़ गया। इसीलिए  अब देवी के दो प्रकृति, जो  की देव स्वरुपिणी और राक्षसी स्वरुप दोनो देखा गया। इस समस्या के विषय में सबको पता नही है।  केवल मंदिर से जड़ित कुछ व्यक्तियों को पता है। मुझे भी तब इसके बारे में इतना पता नही था। मुझे इस  बात की ज्ञान होते होते बहुत देर हो गया था। तब तक हमारा गुरू परिवार भी टूट गया था। मैं भी सबके सामने गलत बन गया। आगे की कहानी में आप लोग इस बारें में जान पाएंगे।
अब आपको बताता हूं मेरे साथ आगे क्या क्या हुआ।  दोस्तों जब मेरे से साधिका दूर हो गई मैं बहुत अधिक ही टूट चुका था। तब कोई दोस्त नहीं, थे जिनको मैं अपनी आप बीती बताऊं। क्योंकि कुछ ही लोग हमारे लिए खास होते, जिनको हम खुल के बात कर सकते हैं। अब जिनको बहुत अधिक अपना माना था वो ही मुझे सुनना बंद करदिए । इसीलिए अपनी बात अपने भीतर रख कर  अंदर ही अंदर रोते रहना। ये मेरे जिंदगी का हिस्सा था। मेरा कोई भी maintainance नहीं था। लेकिन इसके साथ साथ कुछ अच्छी चीजे भी घटित हुई। सपने  में विशाल  शिव लिंग दिव्य स्थान आदि का दर्शन होना।इन दिनों शिव जी से related कई तरह के चीजे, मुझे मिलने लगा। चार मुखी, पांच मुखी वाला बेल पत्ता मिलना, एक या दो होता तो ठिक था,  8-9 ठो एक साथ मिलना। कुछ अदभुत लग रहा था मुझे। और तो और बेल वृक्ष में फूल न आने वाले के समय में भी एक अदभुत सा बेल की फूल, संजोग से मिलना। जिसके विषय में मैने Rohan और Dev Deep भाई को बताया था। आप लोगों के लिए मैल मैं attach कर दूंगा। और भी इन दिनों जगह  जगह बैल की बांदा दिखना, वो भी सावन के महीने में। प्रकृति की कुछ अलग ही संदेश था।
तो सावन की आखरी सोमवार के लिए मुझे तीन ठो चतुर्मुखी बेल पत्ता मिला था। सोचा जाकर शिव मंदिर में चढ़ा कर आ जाऊं।  सभी तरह की मंदिर में सावन आखरी सोमवार को बहुत भीड़ होता है। फिर भी ऐसे ही मैं 28 जुलाई को मंदिर के लिए निकला 10/11 बजे। कहीं कुछ मन भी नही लग रहा था। इसीलिए ना मंदिर जाने के लिए कोई पूजा सामान लेकर, गया और ना ही कोई फूल। केवल बेल पत्ता लिया था। जब मैं झाड़ेश्वर मंदिर पहुंचा बहुत लंबी लाइन लगी थी। यहां पर ऐसे भी सुनने को मिला की उस दिन सुबह आए लोगों को भी दोपहर  3- 4 बजे तक लाइन में खड़ा रहना पड़ा। क्योंकि यही शिव मंदिर इस क्षेत्र की बहुत ही प्रसिद्ध शिव मंदिर है। स्वयं अविर्भुत लिंग, एक दम जागृत  मंदिर।। इसी लिए ये बहुत खास मंदिर है। जब मैं वहां पे गया तब लाइन देख के हैरान था। पर कैसा ही माया हुआ की मैं  15 मिनट में ही मंदिर के गर्वगृह तक पहुंच गया था। मुझे कोई volunteer देख नहीं पाया और ना ही कोई मुझे आगे जाने में विरोध किया। फिर मैं भगवान शिव जी को बैल पत्र अर्पित करके अपना घर वापस लौटा। और इसी रस्ते में ही आदिशक्ति मंदिर है। जिस  मंदिर से मुझे बचपन से ही कुछ खास लगाव था। नाम सुनते ही मुझे, भगवती की याद आती थी। क्योंकि यही एक नाम है जो मूल नाम से जुड़ा है। इसीलिए ये मुझे बहुत प्रिय था। पर वहा ज्यादा से ज्यादा 4 या 5 बार आया गया रहा हूंगा। मुझे एक अलग सा आकर्षण था इस मंदिर के ऊपर।
तो शिव मंदिर से लौटते वक्त आदिशक्ति मंदिर में रुका। वाहा देवी को प्रणाम करके, जब निकल रहा था। तब देखा की मेरे एक दोस्त वहा पे है। तब वो मुझे देखते ही मेरे पास आए और मंदिर में पूजन समाप्ति तक साथ रुकने को कहे।  वहा  मेरे मित्र को देख कर हैरान हो गया की,  यार मेरे दोस्त इतने बड़े मंदिर में अपनी पत्नी के साथ मुख्य कर्ता के रूप में दोनो एक साथ, देवी के सामने वाली शिवलिंग में रूद्राभिषेक कर रहे हैं। बड़ा आश्चर्य हुआ, और पूछा की कैसे यहां के कर्ता बन गए। तो वे  बताए की, वो लोग,  इस मंदिर के जो  मूल व्यक्ति थे उनके ही रिश्तेदार हैं। और जो यहां  की कमिटी मुख्य हैं, वे सब मंदिर से बहुत दूर रहते हैं। इसीलिए उनको मौका मिल जाता है। फिर  बताए की हर संक्रांति को यहां पूजन और हवन होता है, तो जरुर ही आना। मेरे लिए अच्छा लगा की मुझे मेरे पसंदीदा देवी मंदिर में पूजन करने का मौका मिलेगा। और आगे से मुझे अनजान जैसा feel नही होगा। एक तरह से साधिका का के प्रेम से दूर होने के बाद मेरा हालत बहुत ही खराप था। सोचा मंदिर में आऊंगा तो अच्छा लगेगा। मेरे मंदिर में आने के पिछे और एक कारण था। वो कारण है मेरे गांव की डायनें !! दोस्तों आप को एक बात बता दूं। की मेरे पिताजी भी बहुत पहले माता की बहुत बडी भक्त थे। नवरात्रि जागरण आदि वो भी करते थे। और अब वो नारायण, कृष्ण जी के उपासक हैं। तो ऐसे ही चैत्र नवरात्रि के समय 2022 में एक जगह पर नृशिंग जी का मंदिर प्रतिष्ठा हो रहा था। तो मेरे पिताजी वहा गाए थे।तो मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात्। जब लोगों ने मिलके मूर्ति  को उठाकर अपने वेदी स्थान में रखने वाले थे तो बहुत भारी होने के कारण उठा नही पा रहें थे। उनके साथ मेरे पिताजी भी थे। तब मेरे पिताजी ने अपने सरल भक्ति स्वभाव में प्राथना किए की हम कहा सामर्थ शाली हैं की आपको उठा सकते है। आप कृपा करके एक फूल के जितना हलका हो जाइए ताकि हम आपके कार्य करने में समर्थ हो सकें। उनके प्रार्थना करते ही उनको एक  अलग सा शक्ति का संचार मिला । मानो की कोई शक्ति उनको मिल गया हो। और तब बहुत आसानी से ही मूर्ति को अपने जगह रखा गया। पर उस दिन मेरे पापा घर में आ कर जीस तरह विकट हास कर रहे थे कोई भी सुनेगा तो डर जाएगा। हमारे घर वाले सोचे की मेरे पिताजी पागल हो गए। उसदिन जब मेरे पापा घर आए, तब तक रात को मैं मंत्र जाप के लिए अपने पूजा रूम में चला गया था। और मेरे मंत्र जाप भी आरंभ हो गया था। तो घर में इस तरह का हालत, मेरे पिताजी का पागलों जैसा भयंकर विकट हसीं, और मेरे मम्मी की रोना मुझे बहुत विचलित किया। फिर सोचा की ये मेरे लिए कोई परीक्षा हो सकता है। इसलिए चाहे जो भी हो मैं आसन से नही उठूंगा। इस तरह घरवालों की सभी परेशानी, देख कर भी गुरु मंत्र जाप किया। सुबह 4 बजे के बाद मैं अपनी जाप अंत कर पापा के पास गया तब। वो अपने चेतना से दूर नृषिंग जी के चेतना में थे। तब उसने बात करते करते बहुत से रहस्यों का पता चला था। जो भी ज्ञान गुरूजी के माध्यम से मुझे मिला था वो अब स्पष्ट होने लगा था। ऐसे ही वो बताएं की हमारा गांव में भूतेश्वर की पूजा हो रही है जिस वजह से तामसिक शक्तियां प्रबल हो रहीं है। और वो न्रशिंग जी के शक्ति को भी रोक दे रहे है। ऐसे ही इन डायन  जैसी नकारात्मकता को अगर रोका न जाए तो  गांव भी बर्बाद हो जाएगा। फिर आगे कुछ रहस्य बताने के बाद वो विकट हास करते हुए मेरे पापा के चेतना से अलग हो गए। मैं पिताजी से पूछा की क्या क्या घटना हुआ था जो नार्शिंग जी से जुड़ गए। तब वो सब कुछ कहानी विस्तार से बताएं ।  ये शक्ति मेरे पिताजी के पास सात दीन तक रहे थे और अन्तिम दिन मंगलवार को विदा लिए थे। जिस दिन विदा लिए उसदीन मैं मेरे काम में गया था। और जब वापस आया तो पूरे गांव के हर घर के सामने दीपक जल रहा था। कुछ लोग सोचे की मेरे पिताजी पागल हो गए है। पर असली कहानी तो मुझे पता है। क्योंकि मुझे उस दिन बता दिए थे की गांव में सबको मेरे नाम के दीपक जलाने को बोल दे। मैं मंगलवार को विदा लेकर जाऊंगा। और ये सच भी हुआ। बस मेरा गलती ये था की शर्मिला व्यक्ति होने के कारण मैं किसीसे ये बातें बता नही पाया।
दोस्तों उनके बताने के बाद ही मुझे हमारे गांव की तमाशिक शक्तियोँ के बारे में पता चला। और अब 2023 में कुछ डायन लोग अब मिलित रूप से संक्रांति पूजा करना आरंभ कर दिए थे। जिसमे की उनका शक्ति और भी अधिक होने लगा। बाकी लोगों को तो पता नही था इसीलिए ये सब समझते है की गांव में  देव पूजा हो रहा  है। असल में इसके पीछे भगवान शिव और शक्ति को प्रसन्न करके, डायन लोग और अधिक शक्ति सम्पन्न होना इसका उद्वेश्य है। जो की इसके पीछे  की गुप्त बातें, मुझे पता था ।
इसीलिए अब मेरे भी सोच हो गया की मैं भी अब संक्रांति पर कुछ न कुछ करूंगा नही तो ये लोग सबकुछ बर्बाद कर देंगे। और  फिर निर्णय लिया संक्रांति में आदिशक्ति मंदिर जाऊंगा। और मन्दिर में रह कर मंत्र जाप करूंगा।
फिर क्या अगले ही संक्रांति से  प्रत्येक संक्रांति आदिशक्ति मंदिर जाना आरंभ हो गया था। इसी बीच, धीरे धीरे जब मंदिर के मुख्य संचालक से थोड़ा घुल मिल गया तब वो मुझे बोले की घर में मंत्र जाप करने से अच्छा है मंदिर में जाप करो। ज्यादा ही सिद्धी प्राप्त होता है। देवालय, पर्वत, नदी, जंगल, या शक्ती पीठ पर ज्यादा ही प्रभाव रहता है। तुम आकर यहां पूजा करो। तुम्हारे लिए जगह की चिंता मत करो। आराम से मंदिर में रह कर अपना पूजा साधना करो। जो की मेरे लिए सोने पे सुहागा वाली बात हो गई थी। क्योंकि लोग खुद जाकर पैसा खर्च करके मंदिर में पूजा साधन के लिए गुहार लगाते है पर उनको कोई मौका नहीं मिलता पर मुझे खुदसे बुलावा आ रहा है। मैं बहुत खुस हुआ की इस बार की शारदीय नवरात्रि पूजन मेरे ही पसंदीदा देवी मन्दिर में सम्पन्न होगा।
दोस्तों मंदिर की आगे की घटना बताने से पहले मेरे साथ घटित कुछ घटनाएं आप को बताता हूं। भले ही कुछ गलत decesion था लेकिन साधिका को मैं भुला नहीं पा रहा था। जिस वजह से मैं कभी स्थिर नही रह पता था। कोई भी decesion ठीक है, भूल है, कुछ भी समझ नही आ रहा था। एक लंबी depression, anxiety में चला गया था। सोचा उसके जिंदगी में अब अपनी साया तक पड़ने नही दूंगा। ये सब सोच कर मैंने हमारे गुरुपरिवार से जुड़ी कई सारे ग्रुप छोड़ा था, ऐसे की धर्म रहस्य परिवार वाला Group भी Atul भाई के पास सौंप कर वाहा से दूर हुआ। फिर अंत में सभी लोगों से दूर हो गया। लगभव सबको block कर दिया। बस गिने चुने कुछ लोगों से बाते होती थी। घर में अकेले रह कर मेरा उसकी यादों में रोना, ये सब शायद ही किसीको पता होगा। खुदको संभालना बहुत मुस्कील था मेरे लिए। एक तो मन करता था कही से भी साधिका से बात कर लूं। फिर सोचता था कि मेरे साधिका के जिंदगी में आना उसके खुशी में आग लगा सकता है, मुझे दूर ही रहना सही है। रहने देता हूं। वो बस। खुस रहे इतना ही मेरे लिए काफी है। यह तक की कभी कभी तो मरने तक का खयाल आता था। लेकिन जानता था मैं  अगर अपनी इसी दर्द के साथ मर गया तो मेरी तड़पती आत्मा साधिका को किसी और के साथ नही देख सकता। आत्मा अपना नियंत्रण खो कर साधिका से जुड़े हर एक व्यक्ति का अनिष्ट कर सकता है।  यही सोच कर पीछे हटता था। क्योंकि साधिका अपनी परिजनों को खो कर कभी भी खुशी से नहीं रह सकती।
कहते हैं ना प्रेम में किसी को खो कर जीवन त्यागना तो आसान है, लेकिन सामने वाले की खुशी के लिए सभी दुख दर्द झेल कर जीना सच्चे प्रेम की निशानी है। मेरा कहानी ऐसा ही था। मुझे सब कुछ सह कर उसके लिए जीना था। मैं अगर अपनी संजोग से बनी कहानी सुनाऊंगा तब जानेंगे की,  में किस तरह इस दुनिया में एक अनजान सी व्यक्तिको बचपन से ही ढूंढ रहा था। एक ऐसी frequency जो की मेरे लिए कुछ खास था। आखिर कार मैं जिसे ढूंढ रहा था। ये साधिका वही लड़की थी। बचपन से इसी अंजान लड़की के अलावा मेरा किसीसे, किसी तरह का मोह नहीं था। न मां, न पापा, ना कोई रिश्तेदार। मुझे किसी के प्रति कोई भी लगाव नहीं था। बस मन ही मन इस एक अनजान सक्श को ढूंढ रहा था। पता नहीं, साधिका से मिलने के बाद क्या ही नजर लग गया जो मेरा जीवन अब मरने तक भी सोच रहा था।
14 august के बाद से, बहुत तकलीफ में गया कोई चैन नहीं था, भैरवी तक को अपने से दूर रहने को बोला था, क्योंकि मैं किसीको धोका नहीं दे सकता था।28 august को एक भैया से call आया की दिल्ली चलेंगे क्या। वाहा kitti parti होगा इसीलिए उन्हें बुलाया गया है। दिल्ली में एक ऐसा 30/40 महिलाओं का ग्रुप है जहा लोगो को बुलाकर उनसे संबंध बनाते थे।और ये सब इतने अमीर जादे थे की वो भईया को किसी ने तो blank check तक दे दिया था। मुझे बोलने पर सोचा चलिए ठीक है एक बार बाहर से घूम के आ जाऊं, अच्छा रहेगा, और हामी भरदी, मुझे पता था अगर मैं वहा जाऊंगा तो मेरा संबंध बनने का chance 100% है। क्यूंकि की वो भैया मेरे फोटो भी भेज दिए थे। तो वहा मैं अगर भैया के साथ इतने सारे भूखी शेरनी के पास रहूंगा तो कैसे मैं बच पाता। लेकीन इन दर्द तकलीफ से छुटकारा पाने के लिए मुझे कुछ भी नही सूझ रहा था। घर में एक घुटन सी महसूस हो रही थी। इसीलिए अब कुछ भी हो। अपने आपको रोकना नहीं चाहा। तब दिल्ली से हम दिनो की flight और बाकी खर्चा के लिए पैसा आ गया । रायपुर से हमने अपना flight book किए।  तब शाम को माता से माफ़ी मांगा की मैं जो भी गलती करने जा रहा हूं इसके लिए मुझे माफ कर देना। क्योंकि मेरे जीवन में किसी और को शामिल कर उसे धोका देना नही चाहता। और हाल ही में साधिका के साथ बिताए कुछ यादें के कारण ना ही मैं अपने भीतर की इच्छाओं को शांत कर सकता था। एक दिन तो ये सब करना ही है। जी लेता हूं अपनी जिंदगी। वैसे तो मैरी आधी जिंदगी बरबाद हो चुकी है। अब जी कर भी कोई फायदा नही।  और फिर ऐसे ही रोते रोते ही माता से माफ़ी मांगा। तब रात को 8 बजे हमे घर से निकलना था। तो जब निकल ने ready हो गया था, उस वक्त भैया का कॉल आया की planning cancelled करना होगा क्योंकि वो जो भावी हैं उनके बच्ची School से गिर गई है इसीलिए Hospital में admit है। तब मुझे तो निराशा लगा, की मैं अपने खुशी का कुछ भी नही कर पा रहा हूं। और यहां से मेरे पीछे चलने वाली अदृश्य शक्ती पर पूरा भरोसा हो गया था, की कोई शक्ती है जो मुझे हमेशा इन चीजों से बचा रही है, क्योंकि past में भी ऐसे ही कुछ डिसीजन लिया था लेकिन सारा pllanning आखरी वक्त में fail हो जाते थे। आगे ऐसे ही और दो किस्से हैं आपको सुनाऊंगा जहा मेरा कोन सा परिस्थिती  चल रहा था और किस तरह एक शक्ति ने पूरी कहानी ही बदल दी। इस बात की सच्चाई के लिए आपना Flight booking का Record इस Mail के साथ जोड़ दे रहा हूँ॥
जब हर जगह से मुझे निराशा हात मिला तो इसके बाद मैं न तो पूजा करने का मन था न ही कुछ और करने की। मन में काम इच्छा जाग्रत हो गई थी और वो लोगों ने बताए थे की 14/15 दिन के बाद वापस बुलाएंगे, ओर जब वापस बुलाए, उस वक्त मुझे  इस विषय के प्रति कोई मन नहीं था। वो समय September चल रहा था। इस  बीच बहुत से घटनाएं घटी है जो मेरे लिए बहुत तकलीफ का पल है। अब साधिका के ऊपर न जाने कैसे मेरा गुस्सा बढ़ने लगा था। Next फिर मुझे गुरुमाँ के ID से गुरुजी के Photos और videos मिला तो  एक दोस्त के माध्यम से साधिका के group तक पहुंचाया। क्योंकि साधिका गुरुजी को अपनी पिता जैसा मानती है तो उसके खुशी के लिए खयाल रखना मेरा काम था। उसके बाद जब मुझे realise हुआ की मेरा तो कोई Value है ही नहीं। और ना ही मेरे efforts का। तब मुझे खुद पर घुसा आया और मेरा प्यार अब थोड़ा गुस्से में बदलने लगा था। october 1 के बाद से मैं साधिका को पूरी तरह से नफरत कर चुका था। कहते हैं ना, अगर कोई व्यक्ति किसी को बहुत प्यार करता है तो वो उस व्यक्ति को उतना ही नफरत भी कर सकता है। अब वापस से अष्ट चक्र भैरवी के लिए सोचा। अब उनको लेकर चलना था आगे। भले ही प्यार के बदले नफरत था, पर फिर भी साधिका को भुला नहीं पाया था।
अब 15 अक्टूबर से सुरु हो गया शारदीय नवरात्रि । तब महालया के पुर्व दिन ही, मैं आदिशक्ती मंदिर के आश्रम, अपना सामान पहुंचा दिया था, बस महालया को सुबह से जाकर मंदिर में अपना ध्यान और जाप करना था । दोस्तों इस बार, महालया के साथ साथ ग्रहण भी पड़ने वाला था। जो की मेरे लिए और एक तकलीफ देने वाली विषय था, क्योंकि साधिका के साथ ग्रहण वाली महालया से जुड़ी कुछ यादें मेरे साथ थे हैं ।
 लेकिन इस बार मेरे लिए कुछ अलग ही था। मंदिर के पुजारी मुझे देखते ही मुझे मंदिर की साफ सफाई की काम में लगा दिए। तब मुझे मंदिर गर्भगृह की सफाई का मौका मिला। जब की ये ग्रहण की दिन है लेकिन पुजारी को कोई ज्ञान नहीं था की आज ग्रहण लगने वाली है।। तब सफाई करते करते देवी की मूर्ति को भी सफाई करने को हुआ, उन्हे नहलाना भी हुआ। जब की मैं सोचा भी नही था। मेरे सोच से परे आज पहली बार मैं मूर्ति को स्पर्श किया। वो भी ऐसे ही एक खास दिन। मेरे लिए यादगार है। असल में देखा जाए तो ये भी एक अद्भुत संजोग है। मुझे नहीं पता था की ये देवि शक्ति मेरे साथ एक खास रुप में जुड़ेंगी। आप आगे जान जाएंगे क्यों ये सब बोल रहा हूं। अगर  वो साधिका ये सुन रही है तो उसको तकलीफ हो सकती है, क्यूंकि वो नही जानती की मैं अगर किसी और के बारे में बात करू तो भी उसके आत्मा को दर्द होती है। वो अंदर से सहन नहीं कर पाती। ऐसे की वो अपने सादी के बाद अपनी पति को हजारों लड़कियों के साथ देख सकती है लेकिन मुझे किसीके साथ होना वो अंदर से सहन नही कर पाती। अभी तक उसको इसके पीछे का राज कुछ पता नही। मुझे किसी और के बारे में बात करते, या किसी और के प्रति मेरे प्रेम भाव का प्रकाश करना, उसे पसंद नहीं क्योंकि  वो अंदर से ही दर्द में आ जाती है। उसकी आत्मा को कष्ट मेहसूस होती है। लेकिन कुछ देर बाद अपने इस तरह दर्द के पीछे का कारण किसी न किसी बाहरी बातें से जोड़ कर अपनी खुद के समझ में खो जाती है। हम दोनों की कहानी ही ऐसी है की हम खुद दूसरों की बात करें, या हमारे साथ जुडी अन्य व्यक्ति कुछ भी करे हमे कोई फर्क नही पड़ता। लेकिन अगर मैं साधिका के, सामने किसी अन्य व्यक्ति। के बारे में बात करू या वो किसी और की बात करे तो हम दोनों ही अपने आत्मा से जल उठते है, एक वेचैनी सी महसूस होती है। लेकिन चेतना के स्तर पर हम लोग इस बात को समझ नही पाते थे। ये हम दोनो की एक रहस्य है। शायद वो अभी ग्रहण न कर पाए, हमारे पीछे की रहस्य न जान पाए। लेकिन जब उसकी शादी किसी भी व्यक्ति  से हो जायेगा, यहां तक की एक पेड़ से भी हो जाए। तब जाके वो कुछ जान पाएगी।  क्योंकि अभितक उसकी जन्म कुंडली चल रही थी। शादी के बाद उसकी नया कुंडली अरंभ होगा। जो की उसके कर्म जीवन पे आधारित होगा। और तब मेरी कही हुई हर एक बात को गहराई से समझ पाएगी। सब कुछ खोने के बाद हमे पता चलता है, की हमने क्या खोया। उसके पहले कोई लाख कोशिश भी करले हमे कुछ भी समझ नही आता। ऐसे ही शायद उसकी जिंदगी में लिखा है।
खैर, आगे की विषय बताता हूं। इस वक्त शारदीय नवरात्रि आरम्भ हो गया  था। वाहा मैं अपने साथ अपना नवार्ण यंत्र भी मंदिर में लेके गया था । तो देवी के बगल में रखा ताकि यंत्र और प्रभावी हो और अधिक शक्ति सम्पन्न हो। फिर क्या एक दो दीन जाने के बाद फिर तीसरे दिन की पूजन के लिए कोई कर्ता नही मिला। तब वो कमिटी  के मुख्य सोचे की अब क्या करें,?? क्योंकि कर्ता केवल जोड़ों में बैठते है। यज्ञ केवल एक दंपत्ति ही कर सकते है। लेकीन कोई जोड़ी आज मिला नही। जिनको आना था उनका कुछ प्रोब्लम हो गया। तो अब उनके समस्या का मैं ही एक मात्र उपाय था। लेकिन विडंबना यही था की  बिना बिबहित लोग कर्ता के रूप में नही बैठ सकते। फिर भी जब कर्ता के लिए कोई न मिला तो मुझे कर्ता के रूप में चुना गया। इसीलिए इस चीज को मैं अपना बहुत बड़ा सौभाग्य मानता था। और मुझे पता था की भले ही मैं अकेला हूं पर मेरे साथ कुछ घटित घटनाए है। जहां से मुझे पता चला की मैं बीना शादी के भी किसीसे शादी कर चुका हूं। और वो भी जन्मों से इसीलिए मेरे घर के पित्र भी मुझसे उम्मीद लगाए बैठे हैं, की मैं उनके लिए कुछ करूं। वो लोग मेरे से बहाना कर के पूजा ग्रहण करते हैं। जब की हमारे घर में बीना शादी किए घर के कुलपूजा में हाथ लगाना भी मना है। इसीलिए मेरा बिना शादी के एक करता रुप में चुने जाना भी एक संजोग ही है। क्योंकि किसी को मैं होली के दिन ही अपनी अर्धांगिनी के रूप में ग्रहण किया था। तो ईस कारण से । इस बार की दुर्गा पूजन में मुझे तृतीया और पंचमी दोनो दिन अकेले ही कर्ता रुप में पूजन करने को मिला। फिर षष्ठी को एक जोड़ी के साथ मैं भी शमिल हो गया। ऐसे ही मेरे लिए ये संजोग खास था। लेकिन सच बोलूं, बहुत गुस्सा करने के बाद भी साधिका को भुला नहीं पाया था। जब भी दूसरे जोड़ों को देखता था, मुझे अपनी साधिका की याद आती थी। की हम दोनो भी ऐसे ही मिलके भगवती की पूजा कर रहे होते।एक साथ मील कर हवन कर रहे होते। ऐसे ही उसके यादों में खोया रहता था ।और imotional होकर अकेले में रोता था। Next जब समय आया,  अष्टमी  शाम को, संधी पूजन की, मुझे चामुंडा देवी के निमित्त दीप दान के लिए नियोजित किया गया। मैं अपना काम कर रहा था तब रुद्र पंडित जी आए और बोले की मुझे नही लगता की अभी संधि पूजन के लिए कोई कर्ता आ पाएगा। समय बीतने लगा है। तुम तैयारी करलो, तुम्हे कर्ता बनके संधी पूजन करना है। और सच में जब तक संधी पूजन कर चामुंडा देवी हेतु कुसमांडा बलि समाप्त नहीं हुआ, तब तक बाहर से कोई भी व्यक्ति मंदिर के अंदर पहुंच नही पाया। जैसे ही बली अंत हुआ तब जाके अजके कर्ता और सहयोगी करता की मंदिर के अंदर प्रवेश हुआ।  फिर सब कुछ अंत होने के बाद रुद्र पंडित जी मुझे थोड़ा अलग बुलाकर बोले “देखा देवी की माया जब तक बाली अंत  नही हुआ तब तक किसी को मंदिर के अंदर भी आने नही दिया। क्योंकि वो तुमसे ही पूजन ग्रहण करना चाह रही थी।” तब पहली बार मुझे देवी के ऊपर विश्वास हुआ। क्योंकि जिस तरह से लोगों को हटा कर मुझे कर्ता बनने का मौका मिला रहा था। ओर फिर चामुंडा वली भी मेरे हातों होना बहुत ही आश्चर्यजनक था मेरे लिए। जो की कभी मेरे लिए संभव नहीं था। यहां वो सबकुछ मेरे साथ हो रहा था।
फिर उसके बाद रुद्र पंडित के साथ मंदिर के पुजारी से भी इस वक्त मेरा घनिष्ठता बढ़ गया था । और वो मंदिर की पुजारी मेरे लिए एक कमरा हमेशा के लिए रहने लिए छोड़ दिए। क्योंकि मैं नवरात्रि में अपनी पढ़ाई को भी छोड़ कर भागवती पूजन मैं अपना संपूर्ण समर्पण कर दिया था। मेरा teachership दाखिला का exam आगे 10 नवंबर को था। लेकिन मैं पढ़ाई कहां कर पाता जब भी पढ़ाई पे focus कर रहा था। तब उसकी यादें मेरे पीछा नहीं छोड़ रहें थे। रो रो कर बहुत ही सुख गया था।  लेकिन घर वालों को मेरे हालातों का पता नही था। हर कोई सोच रहा था की घर के अंदर पढ़ रहा है। मेरा exam के पहले दिन हमे दूर तक जाना हुआ। और जाकर हम कुछ दोस्त  होटल में रुके थे। एग्जाम के पहली रात जब मेरे सारे दोस्त शो गए। उसके बाद अपनी साधिका को याद करके रोया था। मेरा पढ़ाई में, exam में, किसी भी जगह मन नहीं था, क्योंकि मुझे अब इस घुटन भरी भौतिक जिंदगी जीने का कोई मन नहीं था। कैसे भी करके, इस बाहरी दुनिया की माया से अलग अपनी अध्यात्मिक दुनियां में जीना था। एग्जाम खतम करके दो  तीन दिन जाने के बाद, 14 तारिख को जब में अपने कुछ काम में घर से बाहर गया तब मुझे एक काली माता की साधिका मिली, संयोग बस ये भी 30साल की उम्र की थी, यानी की मेरे वाली साधिका की alternative।  जिनके माध्यम से सालों पहले मैं अपना बहुत सी समस्याएं उनसे पूछा करता था। वो बताती थी। और उनकी जरूरत के समय मैने पैसों की मदद भी किया था। तो इस बार जब मुझे मिली तब अचानक से उनको देखते ही मेरे मन में प्रबल कामना जाग्रत हुई। जैसे की एक समय साधिका के प्रति मेरा भाव हुआ था। पर यहां मेरा केवल एक शारीरिक वासना था। उस काली साधिका के प्रति इतना आकर्षण हुआ। तब उनसे पूछा आपके  प्रति मेरा इतना प्रबल आकर्षण होना।इसके पीछे का कारण क्या है। तब वो बताई तू खुद बता। क्यों तू मेरे ऊपर आकर्षित है ?? मैं क्या ही जानता। फिर वो बोली तुझे  पता है मैं भी तुझे पसंद करती हूं, और ये आजसे नही बल्कि सालों से तुझे मैं पसंद करती हूं, पर कभी बताया नही। ओर  आकर्षण आदि इस सबके पीछे महाकाली की माया ही है। वही सब खेल करती हैं। फिर उसके बाद हम दोनों में बहुत गहराई से बाते हुई, जैसे गंदी बातें आदि भी।वो बोलती थी तुझे अगर मन है तो करले मेरे साथ जो करना है। मैं उनको बोल रहा था की मुझे आपसे प्रेम नही है। मुझे केवल तुम्हारे शारिरिक के प्रति आकर्षण है। तुम्हें पाने का मन लग रहा है। मगर कोई प्यार नही। इसीलिए माफ करना मैं आपके बारे में ये सब सोच रहा हूं । हालाकि मैं कोई शारीरिक संबंध नहीं बनाऊंगा। बस आपसे बातें करना अच्छा लग रहा है।  फिर बाद में जब मुझे realise हुआ की मैं तो अष्ट चक्र भैरवी के लिए अपना समर्पण रखा हूं। ओर इनके साथ आकर्षण में आ कर गलत बाते कर रहा हूं। तब वाहा से मुझे बहुत ग्लानि महसूस हुआ। की मैं माया में आकर किसी के प्रति धोका कर रहा हूं। और फिर मुझे यहां मेरे साथ  जुडी साधिका के लिए भी बहुत बुरा लगा की। वो भी किसी के प्रति समर्पित थी। और भगवती की माया के वजह से उसके जीवन में मेरा आना हुआ। और हम दोनो का मनोभाव बदल गया। वो भी तो अपने साथी के लिए इस तरह guilty फील कर रही होगी। जब की वो 8 साल से किसी के प्रति पुर्ण समर्पित थी केबल एक ही व्यक्ति के लिए, और मेरा उसके जिंदगी में आना सबकुछ बर्बाद कर दी। फिर  November 17 को मैं अपनी गलतियों पर बहुत रोया। माता महाकाली को याद करते करते बहुत रोया। क्योंकि मेरा जन्म अमावस की रात को हुई थी जिस वजस से मेरे मन के प्रति ज्यादा नियंत्रण नहीं है। और जन्म से लेकर आज तक बहुत ही मुस्किलों का सामना किया है। तब रोते हुए माता से कहा मेरे जिंदगी की हिस्से में परेशानियां तो अपने लिखी है ही।  सारे जहां की दुख और तकलीफे मेरे हिस्से में है। अगर परीक्षा मेरी लेनी है तो उस बेचारी को क्यों दर्द दे रहे हो। वो किसी के प्रति समर्पित थी। मुझे इसके जीवन में लाकर उसकी जीवन में एक पवित्रता को खंडित क्यों किए। अब वो आगे कभी भी इस ग्लानि से मुक्त नहीं हो पाएगी। हमेशा ही पछताएगी की वो किसीको धोका दी है। उसके  हिस्से की खुशी मेरे वजह से क्यूं kharap kar रहे हो। इस तरह रोते हुए माता से मन ही मन बाते करने के बाद । मुझे बहुत दुख हुआ की मेरे वजस से किसी की जिंदगी में खुशियां छीन गई। इसीलिए तभी मैं निर्णय लिया की भले ही मुझे आपनी जिंदगी भर दुःख सहना पड़े.. मुझे श्राप उठानी पड़े। या कुछ भी मेरा बिगड़ जाए मैं वो साधिका को उसके खुशी वापस लाके दूंगा। उसको कोई ग्लानि महसूस न हो इसीलिए हमारे बीच एक झूठी कहानी बनाऊंगा और उसे इस दर्द से आजाद करूंगा।  दोस्तों उस रात बहुत पीड़ा हुआ था मुझे। मानो सारे जहां की दुख मेरे सामने था। और तब मैने गुरुजी बताते हुए साधिका के लिए एक मैल लिखा। जिसमे बताया कि, एक समय जब मेरा और साधिका की मिलना हुआ तब मैं उसके ऊपर वशीकरण प्रयोग किया था। जिसके चलते साधिका मेरे लिए इतना आकर्षण महसूस की। और मेरे साथ वशीभूत  हो कर बहुत गहराई तक गई। फिर सोचा अगर गलती से उनसे जुड़े भैया को इस मैल का पता चलेगा तो उन्हे भी गलत ना लगे इसीलिए। वो  भैया को बताते हुए लिखा था की। साधिका बहुत अच्छी है। वो आपसे बहुत प्यार करती है। क्योंकि मेरे इतने प्रबल वशीकरण में होने के बावजूद भी वो हमेशा वो  आपकी अच्छाई के बारे में बताती थी। और वो आपको कभी भूल नहीं पाई।
इस  तरह  मैल लिखके साधिका को भेजने के बाद अगले दिन साधिका को call किया और मैल चेक करने को बोला तब वो call back की पर मैने उठाया नही, हर तरफ से block कर दिया। फिर जब शाम को सोचा एक बार अखरी call तो कर लेता हूं। जिंदगी में दूर जाने से पहले एक बार सही या गलत जो भी हो अखरी बार ही सही बात कर ही लेता हूं, क्योंकि एक समय था जब मुझे वो साधिका मुझे अखरी बार बात करने के लिए कोई भी मौका नहीं दी थी। जिस वजह  से उसके साथ क्या हुआ। कुछ भी पता नही था। उसके लिए बहुत चिंता था। इसीलिए उससे अखरी बार बात करने के लिए मैं पागल हो गया था। कितना दर्द हुआ था मैं ही जानता हूं। इसीलिए आप  लोगों को भी कहना चाहता हूं। अगर आप लोग भी किसी, व्यक्ति से अगर। जुड़े है, और वो सामने वाला आपको दिल से चाहता है तो कभी भी उसके जिंदगी से ghosting मत करना। एक अखरी call करके उसको आपके हालत के विषय में बता देना अगर वो सचमे आपको दिल से चाहता है तो वो हर एक दर्द सह लेगा लेकिन आपके खुशी के लिए आगे आपको और कभी परेशान भी नहीं करेग, बहुत दूर चला जाएगा आपसे। क्योंकि उसके  लिए आप ही जिंदगी होते हैं।
जब मैं साधिका को call किया। तब वो अपनी बातों के साथ कुछ गर्व से जुड़ी बातें की। जो की मुझे बहुत hurt लगा। सोचा जिसके लिए मैने अपना जिंदगी की आधी खूसिया गवा दी।यहां तक की उसके खुशी के लिए उसकी श्राप  तक झीलने की सोचा उसको कोई नही मतलब नही मेरे लिए। मेरा गलत होना उसको विश्वास था लेकिन इसके साथ घटी अनुभव कैसे झूठे हो सकते है। यही बताई। उसे मेरे लिए कोई चिंता नहीं बल्कि उसके अनुभव के प्रति चिंता देख कर बुरा तो लगा। पर ये  मेरे लिए उसके जिंदगी का अखरी बार बात था। किसी भी तरह मेरा इस पदक्षेप से पीछे हटना नही था। इसीलिए इधर उधर बाते बता कर उसको भारोशा दिलाया की उसके भैरवी से और गुरुजी से जुड़ी सारे अनुभव सत्य हैं।  पर मेरे प्रति आकर्षित होना ये केवल प्रयोग   के कारण ही है। और उसको विश्वास दिलाया की मैं ही गलत था हमारे इस रिश्ते में।
फिर call खतम होने के बाद मुझे बहुत अधिक दुख हुआ। की मैं किसी एक स्वार्थी इंसान के लिए इतना पागल हो रहा था। जब की उसके जिंदगी में मेरा कोई मूल्य नहीं है। फिर भी मैं उसके लिए अपना जीवन भी देना चाह रहा था। उसको मेरे दुख और पीड़ा के ऊपर कोई सहानुभूति नहीं थी उल्टा बोल रही थी की तुम्हारे गलत कर्मो का सजा यही है। तब बहुत दुख लगा था। और सबसे बड़ा दुःख क्या था बताऊं। वो कभी मेरे लिए खयाल तक भी नही की। वो चाहती तो मेरे साथ बात कर सकती थी। लेकिन कभी एक बार भी नही चाही की मेरे से एक दोस्त की तरह बात करले। या किसी को भी मेरे बारे में पूछे की मैं कैसा हूं। क्योंकि जब हम दोनों का जुड़ाव हुआ था तो मैंने मेरा लगभग सब कुछ बताया था। मेरे बीती बातों का। दूसरा कोई भी होता तो मुझे, उसके कैसी भी हालत हो, बस एक बार तो मेरे लिए खयाल किया ही होता। इस  रिश्ते में साधिका की घमंड मुझे कई बार तोड़ के रखा था। फिर भी मैं उसके लिए मेरा प्रेम अंत नही कर पाया था।  लेकिन इस घटना के बाद मेरे प्यार में एक बहुत बड़ा stoppage लग गया। साधिका की इस तरह बेरुखी मुझे अंदर से खतम कर दिया। मेरा प्यार अब बिल्कुल न के बराबर हो गई।
और यहां से आगे, पूरी तरह से अष्ट चक्र भैरवी को अपना सब कुछ समर्पण किया। आगे तैयारी किया अष्ट चक्र भैरवी के लिए। क्योंकि रज संक्रांति को जब देवी अथर्वशीर्ष का एक दिवसीय पुरासचरण का पाठ कर रहा था तब 50 पाठ खतम होने के बाद मेरे सामने Manoj  भैया के माध्यम से एक mssg आया। जो की गुरुजी के वेबसाइट से साधक प्रश्नोत्तरी की link था। और वहा मुझे ज्ञान हुआ की अप्सरा यक्षिणी ये सब, बस क्षण तक साथ देती है, और उनका कार्य पूरा हो जाता है, तब वो साधक को माया में डाल कर उनका साथ छोड़ देती हैं। लेकिन भैरविया कभी साथ नही छोड़ती। अंत तक साधक के साथ रहती है। इसीलिए साधिका से इस तरह hurt होने के बाद, मैं अष्ट चक्र भैरवी के लिए मेरा नया दुनियां देखने लगा।
और साधना वाली इस दुनिया में आगे बढ़ने के लिए आ गया वापस आदिशक्ति मंदिर में। यहां से आरंभ हुआ मेरे आगे की कहानी। जिसमें कहानी आरंभ होता है 5 December भैरव जयंती  से। यहा मेरी कहानी का सुरुवात होता है अष्ट भैरवीयों  की  साधना से।
आगे की कहानी आपको अगले भाग में मिलेगा। जानेंगे मेरे जिंदगी में इस साधना के पश्चात् क्या क्या बदलाव हुआ।
दोस्तों कहानी आगे बताऊं इसके पहले, मैं  अपना कुछ निजी बाते बता देता हूं।ताकि कोई गलत फहमी ना रहे। आप लोग मेरे कहानी सुन कर साधिका को बुरा भला कहना ठीक नहीं है.. और ना ही मैं किसी पे आरोप कर रहा हूं। हम दोनों ही अपना अपना कर्म झेल रहे हैं। ये तो बस, मैं अपने एकतरफा कहनी सुना रहा हूं। इसीलिए आपको वो साधिका गलत लग सकती है। लेकिन क्या पता उसके जगह वो सही हो भी सकती है। क्योंकि  आपने तो उसकी कहानी सुनी नहीं।इसलिए किसी को लेकर किसी तरह का विचार रखना ठीक नही है। सच कहूं तो मैं और वो साधिका इतने कर्म बंधन से घिरे हैं की आप विश्वास नही करेंगे। उतना दूर दूर रहने के बाद भी किसी न किसी तरह फिर एक जगह पहुंच जाते है। हम दोनों में बहुत से कर्म संबंध है। एक कटे तो दूसरा आरम्भ हो जाता है। 1993 वाले age  Group से मेरा क्या नाता है, पता नंही । भले  ही मैं इस Age में जन्म नही हुआ। पर मेरे लाइफ में इस Age Group के मुख्यताः  9 लोगों  से मेरा गहरा कर्म संबंध जुड़ा है,। उनमें से 2 लड़के हैं। और पीछली भाग में जो बताया था काली साधिका, जो सालों से मुझे पसंद करती थी। यहां तक की मेरे समाधान करने बहाने मेरे फोटो तक ले रखी थी.. वो इसी उम्र की है। और अभी जहां  job के लिए आया हूं। वहा भी जो लड़की है वो भी इसी age group की है । ज्यादातर लड़कियां कभी खुल के नही बोलती पर ये job  वाली लड़की मुझे 31 may को बोली की, “पता नही क्या  कारण है जो सुरूवात से आज तक जब भी तुम्हारे साथ बात करती हूं, या तुम आस  पास होते हो। मैं तुम्हारे प्रति बहुत attraction feel कर रही हूं….” । जबकि  वो 1993 की जन्मी  और मैं 1997 का, वे मुझसे  age  में   बडी है, और मेरा physical growth कुछ भी नही। उल्टा बिना खाए पिए बहुत दुबला पतला हूं,  उसके वबाजूद भी मेरे लिए  Attraction feel कर रही है |
 इस विषय के ऊपर ज्यादा नहीं कहूंगा। बस जान लीजिए की मेरा और साधिका का भयंकर कर्म सम्बंध हैं, इसीलिए हम दोनो के बीच जो भी हो रहा है, एक तरफा कहानी सुनकर साधिका को गलत बोलने के पहले, आपको उसके जगह रह कर भी देखना चाहिए। 
 
दोस्तों और एक चीज यहां मैं clear करना चाहता हूं। क्योंकि कुछ गलत फहमी हो सकता है की मैं वासना के पीछे पड़ कर साधिकाओं के पीछे भाग रहा हूं। इसलिए बता रहा हूं। अगर मैने चाहा होता तो पता नही कितने सारे लड़कियों और औरतों साथ अपना शारिरिक संबंध बना कर सुख भोग करलिया होता। क्योंकि जो भैया मुझे दिल्ली लेकर जाना चाह रहे थे। अब वहा दिल्ली से, बहुत बड़े घराने के सुंदर सुंदर औरते यहां हमारे जिल्ले  में आने लगे, वो  भी group में। आपने  कभी सुना है, एक ही घर में 7 निर्वस्त्र औरतें और एक अकेला व्यक्ति उन सबके साथ, संभोग करना । आप लोग कल्पना भी नहीं कर सकते । ये सब हुआ है  हमारे यहां। वो भैया के पास जब दिल्ली से ग्रुप में महिलाएं आने लगे तब वो मुझे Call करके भी बुलाते थे, पर मैं मना करता था। और ये सिर्फ एक बार नही, बल्कि कई बार ऐसा ग्रुप में महिलाओं का ओड़िशा में आना हुआ है। कोई शादी शुदा तो कोई बीना शादी वाले हर तरह की औरते इसमें सामिल थे। एक बार तो College वाली लड़कियां 5/6 ठो आई थी। मैं अगर चाहता तो पता नही कितनो के साथ अपनी दिन गुजारा होता। एक से बड़ कर एक सुंदर। सब के सब बहुत ही अमीर घराने की महिलाए थी। अगर आप लोगों को लगता था की मैं वासना के लिए किसी लड़की के पीछे पड़ा । तो यही एक सच्चाई जिससे आप जान सकते हैं। की मैं अगर चाहता तो रोज नए नए महिलाओं के साथ मेरा संबंध बना होता, लेकिन मैंने कभी इस तरफ गया नही। वो लोग खुद पैसा देकर मेरे साथ संबंध बना रहे होते। यहां की अभी भी चाहूं तो ऐसा contact मुझे पता चला है की आज के समय  में भी रोज मुझे ये सब मिल सकते है। वो लोग खुद अच्छे अच्छे  खाना पीना खिलाकर जिम training दे कर मुझे तैयार करते। ओर साथ में पैसा भी देते। लेकिन मैं ऐसा नहीं चाहता। सुरबात से ही मैं अपना समर्पण मेरे होने वाली पत्नी के लिए रखा हूं..  जो भी होगी उसके साथ जीना है || चाहें  वो कोई मनुष्य हो या कोई शक्ति।।
जय माता पराशक्ति चंडिका। जय गुरूदेव।

डायन का प्रकोप और मेरी साधनाये भाग 4

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