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तांत्रिक गुप्त गणेश मंत्र साधना और कथा पीडीएफ भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज बात करेंगे एक तांत्रिक गुप्त गणेश मंत्र साधना और कथा के बारे में और उसकी pdf अब आपको इंस्टामोजो अकाउंट में मिल जाएगी। क्योंकि यह अत्यंत ही गोपनीय साधना है। गणेश मंत्र साधना जिसे हम कहेंगे और इसके जो रचनाकार थे वह एक महान संत और ऋषि श्री गणक जी थे। इन्हीं गणक ऋषि की कहानी मैं आज आपको सुना रहा हूं और इस मंत्र का प्रयोग उन्होंने कैसे किया। इसके बारे में भी आज के वीडियो में जानेंगे।

ऋषि गणक अपने समय के एक महान विद्वान और तांत्रिक गुरु थे। एक बार वह अपने शिष्यों के बीच में उन्हें तंत्र मंत्र के ज्ञान की शिक्षा दे रहे थे। तभी वहां पर एक शिष्य ने उनसे वशीकरण और विभिन्न प्रकार के तंत्रों में सफलता का राज पूछा। तब उन्होंने कहा कि अगर! 37 अक्षरीय गुप्त तांत्रिक गणेश मंत्र की साधना की जाए तो अवश्य ही इसमें सफलता मिलती है। इस पर उनके शिष्य ने पूछा, क्या इसका कोई उदाहरण भी आपके पास उपलब्ध है? ऋषि गणक ने कहा। अवश्य ही मैं तुम्हें राजकुमार उज्जवल की कथा सुनाता हूं जो मेरे पास इसी पर्याय से आए थे।

उन्होंने कहना शुरू किया राजकुमार उज्जवल दिखने में सुंदर था और अधिकतर शिकार खेलने के लिए वन में जाता रहता था। 1 दिन वन में एक हिरण के पीछे वह अपनी छोटी सी सैन्य टुकड़ी के साथ जा रहा था। हिरण तेजी से भाग रहा था इसलिए राजकुमार उज्जवल उसे पकड़ नहीं पा रहा था। थोड़ी देर बाद एक सरोवर के किनारे उसे एक अत्यंत ही सुंदर कन्या दिखाई दी जो अपनी सखी और सहेलियों के साथ में वहां विहार कर रही थी। उसे देखकर राजकुमार उस से अत्यधिक प्रभावित हो गया। तभी वही हिरन दौड़ता हुआ उस राजकुमारी के पास पहुंच गया। राजकुमार ने अब निशाना उस हिरण पर साधा। लेकिन गलती से वह बाण उस राजकुमारी के पैर में जा लगा। इससे घबराकर राजकुमार उज्जवल उस और दौड़ा।

उसके पास पहुंच कर उसने उस राजकुमारी से माफी मांगी। और कहा मैं आपका उपचार अभी कर देता हूं? उसने अपने साथ। जो उसके वैद्य चलते थे, उनके द्वारा उस सुंदर सी कन्या का इलाज कर दिया। कन्या ने कहा, उसके राजमहल लौटने का समय हो चुका है। इस पर राजकुमार उज्जवल ने कहा कि? उसे अब वह दोबारा क्या नहीं मिलेगी? इस पर राजकुमारी ने कहा, आप शायद नहीं जानते आप मेरे राज्य की सीमा में है। मैं इस सरोवर पर कभी कभार आती रहती हूं। यह हमारे राज्य में पड़ता है। मैं इस राज्य की राजकुमारी हूं। अगर आपको मुझसे मिलने आना है तो राजभवन में आये।

कुछ दिनों बाद राजकुमार उज्जवल उसके नगर में गया। क्योंकि उसके हृदय से उस राजकुमारी का चित्र मिट नहीं रहा था। वह उसे बार-बार याद करता था। उसकी सुंदरता में खो जाया करता था। जब राजकुमार उससे मिलने राजा के पास पहुंचा। तो राजा ने तुरंत ही क्रुद्ध होकर कहा। यहां से तुरंत चले जाओ राजकुमार उज्जवल। मैं तुम्हें यहां दोबारा ना देखूं। राजकुमारी को हम आपको किसी भी प्रकार से नहीं दे सकते। मैं इस विवाह संबंधों को अस्वीकार करता हूं। संबंधों को ना बनने देने की क्या वजह थी, इसके बारे में राजकुमार उज्जवल नहीं जानते थे? लेकिन अपने गुप्तचरो से उन्हें पता चला कि? राज्य का ही महामंत्री राजा को भड़का चुका है। इसी कारण से राजा ने ऐसा निर्णय लिया है।

राजकुमार उज्जवल। राजकुमारी की एक झलक देखने के लिए। परकोटे से होता हुआ जा रहा था। राजकुमारी भी उसे देखकर समझ गई कि वह आया हुआ है इसलिए वह भी उसे देखने वहां आ गई। दोनों की नजरें मिली। प्रेम सच्चा था । लेकिन अचानक से राजकुमारी को गुस्सा आ गया और उसने वहां से एक मटका उठाकर राजकुमार की ओर फेंका और जोर से चिल्ला कर बोली, यहां से चले जाओ। यह बात राजकुमार उज्जवल को कुछ समझ में नहीं आई। आखिर यह सब क्या है? वह! एक ऋषि के पास। गया जो कि एक सिद्ध गुरु थे। उनके पास जाकर राजकुमार उज्जवल ने अपने हृदय की बात बताई। तब उसे ऋषि ने उन्हें कहा कि उस राजकुमारी और राजा पर तंत्र प्रयोग किया गया है। इसी कारण से वह एक महामंत्री के अधीन ही है अब ! राजकुमार उज्जवल को चिंता होने लगी। क्योंकि ऋषि ने कहा, जल्दी ही महामंत्री अपने पुत्र से ही राजकुमारी का विवाह करा देगा। इसीलिए उसने यह सारा तंत्र प्रयोग किया है।

इस पर राजकुमार उज्जवल ने कहा, क्या ऐसा कोई अन्य मार्ग नहीं है जिसके माध्यम से मैं राजकुमारी को प्राप्त कर सकूं? इस पर उस ऋषि ने कहा कि आपको ऋषि गणक के पास जाना होगा। अर्थात मेरे पास! और वह राजकुमार मेरे पास अगली ही रात्रि को पहुंच गया। उसने अपने हृदय की सारी बात मुझे बताई। मैं समझ गया है, इसका प्रेम सच्चा है और यह राजकुमारी को प्राप्त करना चाहता है। मुझे पता था कि राजकुमारी राजा की एकलौती संतान है। इसी कारण से जो भी राजकुमारी से विवाह करेगा वह राज्य का स्वामी और उत्तराधिकारी होगा। इसी कारण से उस महामंत्री ने उन दोनों पर तंत्र प्रयोग किया हुआ है। मैंने जब यह बातें राजकुमार उज्जवल को बताई तो राजकुमार ने मुझसे कहा, गुरुदेव आप ही कोई तंत्र प्रयोग मुझे बताइए। कोई ऐसी साधना करवाइए जिसके कारण से मैं राजकुमारी को प्राप्त कर सकूं।

तब मैंने उसे! 37 अक्षरीय तांत्रिक गुप्त गणेश मंत्र साधना के विषय में उसे बताया। मैंने कहा, अगर यह साधना तुम संभव कर पाएं। तो निश्चित रूप से भगवान गणेश के प्रसाद से और उनकी सिद्धि के माध्यम से आप राजकुमारी को तो प्राप्त करेंगे ही अपने शत्रुओं का भी संघार कर पाएंगे। इसको सिद्ध करने के बाद । कैसे तंत्र प्रयोग करना है ? वह सब कुछ भी मैं आपको बताऊंगा। यह कह कर जब मैं उठा तो मेरे चरणों में गिरकर राजकुमार ने मुझसे कहा, गुरुदेव आप जो भी कहेंगे, मैं वह करने को तैयार हूं। मेरा हृदय द्रवित हो रहा है। बार-बार उसका चेहरा मेरे सामने आता है। मुझे लगता है, मैं उसे देखे बिना जीवित नहीं रह सकता। इसलिए आप जो भी मार्ग बताएंगे वह मैं अपने प्राणों पर खेलकर भी उस कार्य को पूरा करूंगा।

जब मैंने ऐसा संकल्प उस राजकुमार में देखा तो मैं भी उसे उस सिद्धि की दीक्षा देने को तैयार हो गया। अब मैंने उसे एक सरोवर से जल लाने को कहा। वह सरोवर पर जाकर। जल लेकर आ गया। जल लेकर फिर मैंने अपने पैर उससे धुलवाए। पैरों को धोने के पश्चात मेरा गुरु पूजन उसने किया क्योंकि किसी भी साधना से पहले। गुरु पूजन करना अनिवार्य होता है। मुझसे उस मंत्र की दीक्षा लेने के बाद और मेरा पूजन करने के पश्चात मैं उसे एक वृक्ष के नीचे ले गया और उस मंत्र का गोपनीय विधान बताया। उस गोपनीय मंत्र के लिए उसे कृष्ण पक्ष की अष्टमी से। लगातार रोज मंत्र जाप करना और सिद्धि प्राप्त करने का विधान शुरू करना था।

नदी के जल से अभिमंत्रित कर मुख प्रक्षालन करके वह राज्यसभा में जाए। ऐसा मैंने उससे कहा था। क्योंकि इस मंत्र की सिद्धि इसी प्रकार से होती है। भगवान गणेश की मूर्ति के लिए। श्वेत मदार! को प्राण प्रतिष्ठित कर विधि पूर्वक अपनी साधना में प्रयुक्त करना था। इसी कारण से उसे मैंने इस कार्य हेतु आगे बढ़ाया। मैंने उससे कहा कि वशीकरण के लिए और शत्रुओं के नाम उनके उच्चाटन, राज्य पर अपने नियंत्रण करने के लिए उसे निम्न प्रकार के प्रयोग करने होंगे। लेकिन सबसे पहले उसे इस मंत्र की सिद्धि करनी होगी।

इसलिए सबसे पहले मैंने उससे कहा कि तुम्हें भगवान गणेश के रक्षा मंत्र को सिद्ध कर लेना चाहिए। और एक ही दिन में भगवान गणेश रक्षा मंत्र उसने सिद्ध कर लिया। अब बारी थी मूल साधना की। इस मूल साधना को करने के लिए अब वह तैयार था। मैंने भी उसे सारी विधि विधान बता दी। मुझ से आज्ञा लेकर के। मेरे ही आश्रम के निकट उसने एक स्थान चुना जहां पर वह जाकर इस गोपनीय! गणेश मंत्र को सिद्ध करने लगा । विधान क्या था और आगे क्या कथा में हुआ यह हम लोग भाग 2 में जानेंगे। अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आ रही है तो लाइक शेयर करे, आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

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तांत्रिक गुप्त गणेश मंत्र साधना और कथा पीडीएफ 2 अंतिम भाग

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