नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। तांत्रिक भैरवी मंजूषा की साधना भाग 2 अभी तक आपने जाना है और इसमें आपने समझा कि किस प्रकार से एक भारतीय नारी को तंत्र में प्रवेश करने के साथ क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं? अब क्योंकि अघोरी गुरु उसे। 1 भोग की सामग्री बनाकर सिद्धियां प्राप्त करना चाहता था। इसी कारण से उसने। मंजूषा को ऐसी अवस्था में डाल दिया था। अब मंजूषा के सामने कोई और विकल्प नहीं था। इसी कारण से वह उस अघोरी गुरु का साथ दे रही थी और उसकी बात मानने को तैयार थी।संबंध बनाने की कोशिश करते रहने पर मंजूषा लगातार परेशान होकर उस का साथ देती रही और अघोरी गुरु अपनी मनमर्जी चलाता रहा। इस प्रकार जब अघोरी गुरु ने पूरी रात उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए इससे वह! परेशान होकर और अपने शरीर को अस्त-व्यस्त देखकर। जीवन को समाप्त करने का विचार कर रही थी। सुबह के समय अचानक से ही वहां पर एक भयानक शक्ति प्रकट हो गई। उस शक्ति ने कहा कि तू मुझसे क्या अभी गुरु ने कहा, मैंने तुझे प्रश्न किया है। इसका शरीर धारण कर और मेरी सदैव के लिए सहायिका बनकर मेरा जीवन सफल कर वह शक्ति कहने लगी। ठीक है, इसकी बलि दे दो।
मैं इसके शरीर में इसकी मृत्यु के बाद आ जाऊंगी क्योंकि इसके अंदर मुझे दिव्य ऊर्जा दिखाई देती है। इसलिए इसका मरना आवश्यक है। यह बातें सुनकर बेसुध पड़ी हुई मंजूषा अंतिम समय की तैयारी कर रही थी। वह जान गई थी। मेरे शरीर को तो छीन लिया गया है लेकिन अब जीवन को भी समाप्त कर दिया जाएगा। वह बेचारी जीवन की ऐसी अवस्था में पहुंच गई थी जहां पर वह कुछ भी नहीं कर सकती थी। जीवन अब उसकी मृत्यु का इंतजार कर रहा था लेकिन पता नहीं कहां से उसके अंदर एक सामर्थ्य आ गई। उसने स्वयं को समझाया और कहा, जो मेरे भाग्य में था। वह तो हो चुका है लेकिन जो मेरे जीवन में मैं कर सकती हूं, वह अवश्य ही करूंगी। उसने गुस्से से अपने आप को इस बात के लिए तैयार किया जो अघोरी मुझे समाप्त कर देना चाहता है। मैं ही उसे समाप्त कर दूं।इधर अघोरी गुरु ने कहा, तू बड़ी भाग्यशाली है। तेरा शरीर मुझे प्राप्त हुआ, तूने मुझे सुख प्रदान किया। अब मरते मरते सिद्धि भी प्रदान कर रही है। सच में। तेरी जैसी लड़की मुझे कहीं और नहीं मिलती। जो अपना सर्वस्व मुझे दे चुकी है और यह कहकर वह अघोरी गुरु हंसने लगा। यह सब बातें उसके लिए एक मजाक से अधिक और कुछ भी नहीं थी। अघोरी मंजूषा को मारने के लिए एक कटार लेकर आया और उस पर कुछ मंत्र अभिमंत्रित करने लगा सामने खड़ी हुई वह भयानक शक्ति इस बात का इंतजार कर रही थी कि कब यह अघोरी गुरु इस लड़की का वध करेगा। अघोरी गुरु ने उसे मारने के लिए। सबसे पहले उस शक्ति को नमन करने की कोशिश की तभी अचानक से मंजूषा शरीर से तीव्रता से उठी। उसने वहां पड़ी हुई कटार को उठाया और अघोरी गुरु की गर्दन काट दी। इस प्रकार अघोरी गुरु की वही तड़पते हुए मृत्यु हो गई। अब सामने खड़ी हुई शक्ति चिल्लाकर गायब हो गई। मंजूषा तेजी से नदी की ओर भागी क्योंकि वहां पर उसके वस्त्र पड़े हुए थे। नदी पे जाकर उसने जल्दी-जल्दी अपने वस्त्र पहने। वह जानती थी अगर अघोरियों को यह बात पता चली तो वह उसे मार डालेंगे। इसीलिए अब उसे नदी पार करना आवश्यक था। उसने! माता का नाम लेते हुए नदी में छलांग लगा दी। क्योंकि वह तैरना जानती थी। इसीलिए उसे भय नहीं था कि वह पानी में डूब जाएगी, लेकिन उसका रात भर की रतिक्रिया के बाद उसका शरीर बहुत अधिक थक चुका था। उसे ज्यादा देर तैरने की सामर्थ्य उसका शरीर प्रदान नहीं कर रहा था। वह करती भी क्या? अब उसके सामने और अन्य विकल्प मौजूद नहीं थे, इसीलिए वह बढ़ती जा रही थी। अचानक से नदी का दूसरा कोना, वहां पहुंच गई और किसी प्रकार अपने थके हारे शरीर को नदी से बाहर निकाला। एक बबूल के पेड़ के नीचे जाकर लेट गई क्योंकि उसे बस वही एक स्थान सुरक्षित दिखाई देता था जो झाड़ियों से घिरा हुआ था। एक पुराना बबूल का पेड़ वहां पर खड़ा हुआ था। उस बबूल के पेड़ के नीचे जाकर मंजूषा सो गई क्योंकि वह अभी तक बहुत अधिक थक चुकी थी।थोड़ी देर बाद! जब?1 दिन बीत गया और वह सोती ही रही। तब अचानक से उसकी आंख खुली सामने एक भयानक रूप वाली स्त्री उसके पास खड़ी थी उसने। मंजूषा की गर्दन दबाना शुरू कर दी। मंजूषा घबराने लगी। मंजूषा को समझ में नहीं आ रहा था। यह स्त्री कौन है जो उसकी गर्दन दबा रही है। मंजूषा के सामने कोई विकल्प नहीं था फिर भी। अपने अंतिम क्षणों को याद करते हुए उसने केवल कुछ अच्छी बातें बोली और सब कुछ बदल गया। उसने कहा, हे मां आप मेरी गर्दन क्यों दबा रही है? मां मुझसे क्या गलती हुई है? सामने जो बबूल के पेड़ पर निवास करने वाली यक्षिणी भयानक रूप में मंजूषा की गर्दन दबा रही थी। मां शब्द सुनते ही शांत पड़ गई और उसने कहा, तूने मुझे मां क्यों कहा?तब उस बेसुध सी हुई मंजूषा ने कहा, आप मुझे मेरी मां जैसी ही दिखती हो, आप मुझे क्यों मारना चाहती हो? तब यक्षिणी ने कहा, मैं इस बबूल के वृक्ष पर निवास करती हूं और तूने मेरा स्थान अपवित्र कर दिया है। तेरे शरीर से रक्त बह रहा है। तब?मंजूषा ने कहा कि मेरी आपबीती तो सुनिए मेरे शरीर से बहने वाला यह रक्त मेरी गलती नहीं है। मेरे साथ बहुत बुरा हुआ है और मेरे शरीर को रात भर छला गया है। इसलिए आप मुझे क्षमा कीजिए। मैंने जानबूझकर यहां शरण नहीं ली थी। मैं सिर्फ अपनी रक्षा के लिए कहीं छिप कर बैठना चाहती थी। यह सब सुनकर यक्षिणी प्रसन्न हो गई। उसने कहा, मैं तेरी सारी कहानी अपनी शक्ति के माध्यम से जान चुकी हूं। ऐसा कर जा यहां से कुछ दूर पर मां दुर्गा का एक तांत्रिक भक्त रहता है। वहीं तेरी समस्याओं को समाप्त कर देगा। जाओ उसके पास तुरंत जाओ और? इस बात के लिए परेशान मत होना कि वह भी तेरे पुराने अघोरी गुरु जैसा निकलेगा।इस प्रकार से उस यक्षिणी ने। मंजूषा के सिर पर हाथ रखा और जैसे कि चमत्कार घटित हो गया, उसके शरीर की सारी थकान समाप्त हो गई। गुप्त अंगो की चोटी भी स्वता ही ठीक हो गई।अब वह पूरी तरह स्वस्थ और शक्तिमान!दिख रही थी। वह तैयार हो गई और उस यक्षिणी के बताए गए मार्ग पर चलने लगी। सामने एक स्थान पर उसे तांत्रिक भक्त मां दुर्गा की पूजा करते हुए मिला। तांत्रिक भक्त को उसने अपनी सारी बातें बता दी। तांत्रिक भक्त ने कहा। ठीक है यदि तू तंत्र विद्या सीखना चाहती हो तो सबसे पहले तुम्हें अपने शरीर को जीतना होगा। मंजूषा ने कहा, आप मार्ग बताएं? सबसे पहले मुझसे गुरु मंत्र की दीक्षा लो। उस तांत्रिक भक्त ने मंजूषा को मां दुर्गा के गुरु मंत्र का जाप करना सिखाया और पहली बार मंजूषा को गुरु मंत्र के रूप में मां दुर्गा के शक्तिशाली मंत्र की प्राप्ति हुई। वह तैयार थी। साधना के अगले स्तर में पहुंचने के लिए, मंजूषा ने कहा गुरुदेव मुझे बहुत अधिक शक्तिशाली शक्तियां प्राप्त करनी है। जीवन में मैंने मृत्यु तक को देखा है। इसीलिए मैं डरा नही करती। मैं कुछ भी करने की सामर्थ्य रखती हूं। चाहे उसमें मेरे प्राण ही क्यों न चले जाए? उसकी ऐसी संकल्प शक्ति को देखकर तांत्रिक भक्त ने उससे कहा ठीक है। मैं तुम्हें सबसे पहले अग्नि परीक्षा के लिए भेजता हूं। उन्होंने! चारों दिशाओं में अग्नि लगा दी और अग्नि धीरे के भीतर बैठकर एक रात्रि जाप करने के लिए भेजा,उस का गुरु मंत्र का जाप इतना आसान नहीं था। चारों ओर से लगी आग भयंकर गर्मी पैदा कर रही थी, लेकिन उसे साधना तो करनी ही थी। और इस प्रकार उसने बहुत ही कठिनता से एक रात्रि पूर्ण कर ली। अगली रात! पर्वत शिखर पर जाकर बहती हुई हवा के बीच। एक पांव पर खड़े होकर उसे साधना करनी थी। बार-बार अपना संतुलन संभालते हुए उसने वह रात्रि भी पूर्ण कर ली। अब तीसरी रात।तांत्रिक भक्त ने उसे नदी में गर्दन भर जल में खड़े होकर जाप करने को कहा। इस प्रकार में पानी में खड़ी होकर पूरी रात जाप करती रही। सुबह के समय अचानक से ही उस नदी में चारों तरफ मगरमच्छ आ गए । चारों तरफ मगरमच्छों के आने के कारण वह बहुत अधिक घबरा गई। लेकिन उसका तांत्रिक गुरु उसके पास भी नहीं था। वह अपनी साधना के तीसरे चरण में क्या सफल हुई जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह कहानी अच्छी लग रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
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तांत्रिक भैरवी मंजूषा साधना सीखना भाग 3
Dharam Rahasya
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