तारापीठ महाचिता साधना अनुभव शमशान में हाहाकार मचा
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जो अनुभव लेने जा रहे हैं, यह तारापीठ महा चिता साधना का एक अनुभव है। ऐसी साधना जो कि चिता पर की जाती है। हालांकि आज के समय में ऐसी साधना सरकार के द्वारा बंद की जा चुकी है। लेकिन फिर भी गुपचुप तरीके से यह रहस्यमई और बहुत ही शक्तिशाली साधना आज भी लोग करते हैं और इसमें विभिन्न प्रकार के अनुभव होना बिल्कुल तय माना जाता है। इन स्थानों को जिन्हें हम विशेष रूप से तांत्रिक साधना ओं के लिए जानते हैं, उसमें तारापीठ का नाम बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध एक ऐसा स्थान है। जहां पर तंत्र की विशेष साधनाएं बहुत ही सहज और सरल भाव से करने पर भी सिद्धि प्राप्त हो जाती है। जो भी शमशान भूमि 500 वर्षों से अधिक पुरानी होती है वहां पर अत्यधिक मात्रा में। तामसिक और राज्सी शक्तियों का वास होता है। ऐसी जगहों पर की जानेवाली साधनाएं बहुत अधिक प्रभावी मानी जाती है तांत्रिक साधना में महा चिता साधना एक विशेष प्रकार की अभिषेक संस्कार के द्वारा की जाने वाली साधना है जिसमें हमें माता तारा की सिद्धि प्राप्त करने और उनकी विभिन्न योगिनी शक्तियों का।
प्रभाव और उनकी सामर्थ्य प्राप्त करने का मौका मिलता है। आज का यह अनुभव इसी प्रकार के एक अनुभव से संबंधित है। तो चलिए जानते हैं तारापीठ महा चीता साधना की इस अनुभव को और पढ़ते हैं इनके ईमेल पत्र को।
नमस्कार श्री श्री सूरज प्रताप जी को मेरा प्रणाम स्वीकार हो। जय काली मां मेरा नाम तारानंद है। मैं बंगाल के बीरभूम से हूं। आज मैं आपको मेरे गुरु भाई द्वारा किए गए एक साधना का अनुभव बताने जा रहा हूं जो कि तारापीठ महा शमशान की चिता पर किया गया था। किसी दूसरे चैनल पर प्रकाशित नहीं होगा और आप चाहे तो इस पर वीडियो बना सकते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षा प्राप्त हो सके।
मेरे कुछ प्रश्न जिज्ञासा है जिन पर कृपया आप प्रकाश अवश्य डालें। साधना का अनुभव इस प्रकार है। मेरी गुरु भाई वीरभूम से तारापीठ चिता साधना करना चाहते थे, परंतु हमारे गुरुदेव ने उनको चिता का शिकार नहीं किया था। गुरुदेव ने जो उनको मंत्र दिया था, वह भगवान शिव कर दिया था क्योंकि हमारे कॉल आचार पंथ और संप्रदाय में जब तक शाक्त अभिषेकम पुराना हो जाए तब तक चिता पर बैठने का अधिकार नहीं दिया जाता है। सबसे पहले साधक को श्वेतांबर के साथ गुरु मंत्र किया जाता है जो कि साधकों को 1 साल तक जाप करके सिद्ध करना होता है। फिर साधक की योग्यता देख कर उनको रक्त अंबर के साथ महा साथ अभिषेक संस्कार दिया जाता है ताकि साधना शक्ति। उत्कर्ष हो क्योंकि जब तक साधक का शाक्त अभिषेकम पूरा ना हो तब तक वह माता शक्ति के किसी भी मंत्र का जाप करने का पात्र नहीं माना जाता है। इसी चीज को मध्य में रखते हुए हमारे गुरु ने उनको पहले गुरु मंत्र दिया था और बोला कि 1 साल तक बस इसका ही तुमको जाप करना है और किसी मंत्र को मत छोड़ना परंतु मेरे गुरु भाई को देव साधनों से ज्यादा प्रेत साधना तो हमेशा से गुरु को बोलते थे। मुझे यक्षिणी साधना करनी है। यह साधना करनी है। वह साधना करनी है पर हमेशा उसे मना कर दिया करते थे। फिर उनके पास एक आदमी विद्वेषण का काम लेकर के आया।
और उनसे बोला कि ₹50000 देंगे पर एक पति और पत्नी का जोड़ा है, उनको अलग करना है। लालसा के वशीभूत हो गए। उन्होंने तब गुरु से भी परामर्श नहीं लिया क्योंकि उनको पता था कि गुरु ऐसे काम के लिए कभी स्वीकृत नहीं देंगे तो वह खुद ही बिना गुरु का आदेश किए। तारापीठ की चिता पर क्रिया करने के लिए चल दिए। वह रात्रि का समय था करने महाचिता पर बैठ गए। उन्होंने किताब खरीदी जिसे देखकर वह क्रिया करने लग गए थे। चिता पर अग्नि जलाकर जागरण करने की क्रिया उन्होंने आरंभ किया। धीरे-धीरे शमशान के जागरण होने के साथ-साथ श्मशान में हाहाकार मचने लगा। उनके आसपास से विभिन्न प्रकार की आवाजें आने लगी जैसे क्रिया आगे बढ़ रही थी। अनुभव डरावने होने लगे थे। आप विश्वास नहीं करेंगे जब अंतिम आहुति होने वाली थी तभी चिता पर एक बड़ा ब्लास्ट हुआ। यह ब्लास्ट! धमाका इतनी जोर से हुआ कि पूरा शमशान कापने लगा और गुरु भाई चिता से दूर छिटक कर जा गिरे। धमाके से श्मशान जितने भी अघोरी साधक थे साधक के पास सब दौड़कर आ गए। उन्होंने उनको चार-पांच डंडे भी मार दिए। वहां से एक अघोरी बोला साले तू अपने गुरु से इजाजत लेकर आया है। क्या तुझे चिता का अधिकार किसने दिया है? उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि सभी हैरान थे कि अब बच कैसे गया है उनको हॉस्पिटल में लेकर जाया गया। वहां से फिर 3 से 4 दिन लगे उनको ठीक होने में फिर एक दिन जब वह गुरु को यह बात बताने आए उनको देखकर गुरु बोले क्यों साले हो गया। तेरा काम अच्छे से जो तू करने गया था। वह यह देखकर हैरान हो गए कि उन्होंने तो कुछ भी नहीं बताया। फिर गुरु को कैसे पता चल गया। फिर गुरु ने उनको बोला।
तुझे क्या लगता है कि तू नहीं बताएगा तो मुझे पता नहीं चलेगा? तू क्या जानता है क्या करता है, मुझे सब पता चल जाता है और उस दिन क्या तुझे क्या तेरे बाप ने बचाया था? मैंने बाबा से बोल कर तुझे बचाया वरना तो तू वहीं पर टपक जाता। फिर गुरु भाई को अपनी करनी पर बहुत ज्यादा पछतावा हो रहा था। यही था उनका अनुभव जो मुझे लगा कि आप के माध्यम से सभी दर्शकों और ने साधकों को बताना चाहिए ताकि सभी को इससे सबक प्राप्त हो सके।
गुरूजी क्या आपका टेलीग्राम पर अकाउंट है, अगर है तो कृपया सबको को सूचित करें।
क्योंकि आपका नाम लेकर कई लोगों ने टेलीग्राम पर फेक अकाउंट भी बना रखे हैं।
सन्देश- यहां तक इन्होंने इस अनुभव को बताया है अब! इस अनुभव से हमें जो सीख मिलती है वह यही है कि जब तक गुरु से आज्ञा ना मिल जाए तब तक कोई भी तांत्रिक विशेष और खास तौर से श्मशान साधनाये तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। शमशान का सीधा संबंध। जीवन और मृत्यु के बीच की अवस्था से होता है जहां से शरीर नष्ट हो जाता है और बचती है तो केवल एक आत्मा!
शमशान वह द्वार है जहां से हम उस दूसरी दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं। इसीलिए जब तक आप पूरी तरह योग्य ना हो। पूरी तरह इस बात में निपुण ना हो जाए। ऐसी तांत्रिक साधनाएं नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसे में आप जैसे महाराज त्रिशंकु फंस गए थे, वैसे ही फंस सकते हैं। ना तो स्वर्ग जा पाए और ना ही पृथ्वी पर वापस लौट पाए। इसी तरह इस तरह की साधनाओं को जिन्हें हम अपने वश में करना चाहते हैं, उसके योग्य होना आवश्यक होता है। योग्यता लगातार साधना करने गुरु के निर्देशन में बहुत समय तक तपस्या करने। बहुत बड़ी आध्यात्मिक विद्या को प्राप्त करने के बाद ही हासिल होती है।
हर कोई बामाखेपा जैसा। पूरी तरह समर्पण से युक्त नहीं होता।
कहते हैं यह वही स्थान है। जहां पर आज भी शक्ति साधना की जाती है। कुछ तांत्रिकों ने तो यहां तक देखा है कि टीवी तारा की छाया।
जहां! पड़ती है वहां पर उन्हें उन्हीं बकरों का खून पीते देखा गया है जिनका वहां पर वध किया जाता है और बलि दी जाती है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि स्वयं देवी के स्वरूप वाली जोगनिया रक्त पीने स्वयं आती है। यह बहुत ही दिव्य स्थान है और एक पागल संत जिन्हें हम बामाखेपा के नाम से ही जानते हैं। वह देवी तारा के परम भक्त थे। इतने बड़े भक्त कि उन्हें लोग पागल तक कहे।
कहते हैं एक बार की बात है।
किसी कारण से। तारा मां नाडोल की महारानी के सपने में दिखाई दी रानी!
अन्नादा सुंदरी देवी ने उनसे कहा कि वह पहले संत को भोजन कराएं क्योंकि व उनके पुत्र हैं। इस घटना के बाद बामाखेपा को सबसे पहले मंदिर में भगवान से पहले भोजन कराया जाता है।
क्योंकि अब वही बामाखेपा है। जिन को माता तारा ने स्वयं अपने सीने से लगाया था, लेकिन उससे पहले उन्हें भयंकर रौद्र रूप में दर्शन भी दिए थे। वही माता तारा जिन्होंने भगवान शिव को हलाहल से मुक्ति दिलवाई थी और स्वयं अपना दूध पिला कर। बटुक भैरव का प्रादुर्भाव किया था।
भगवान शिव बटुक भैरव के रूप में पहली बार उन्हीं का दूध पिए थे।
देवी माता तारा अद्भुत रहस्यमई है। इनका सामर्थ आप नहीं समझ सकते जो स्वयं शिव को बालक बना दें।
बटुक भैरव जैसे आनंद भैरव स्वरूप।
भैरव शक्ति को उत्पन्न कर दें। वह माता तारा है और उनके ही ऐसे महा चिता श्मशान में।
उनकी अद्भुत शक्तियां क्यों है हर व्यक्ति उसे प्राप्त करने के लिए दौड़ता रहा है और आगे भी प्रयास करते रहेंगे लेकिन संपूर्ण समर्पण और जब तक आपकी गुरु का आप पर पूर्ण?
प्रभाव ना हो। आपने वर्षों तक साधना ना की हो तो ऐसी तामसिक शक्तियां आपका नुकसान कर सकती हैं तो यह था आज का अनुभव अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।