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दातियाना शिव मंदिर की कुलसुंदरी भूतनी साधना भाग 4

दातियाना शिव मंदिर की कुल सुंदरी भूतनी साधना भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है दतियाना शिव मंदिर की कुल सुंदरी भूतनी साधना भाग-3 अभी तक आपने जाना है यह भाग चौथा है अभी तक संक्षेप में अपने जाना की किस प्रकार से जगतपाल एक कुल सुंदरी भूतनी नाम की साधना करते हैं जिसमें उसे सफलता भी प्राप्त होती है लेकिन कुछ कमियों के कारण और धन सही जगह खर्च ना करने के कारण जगतपाल को कुल सुंदरी से हाथ धोना पड़ता है ऐसा जब उनके साथ दोबारा हुआ तो उन्हें समझ में नहीं आ रहा था आखिर उन्होंने तो एक गरीब व्यक्ति को दान दिया है लेकिन गरीब व्यक्ति को दान देने के कारण भी कुल सुंदरी नहीं आ रही इसका मतलब कहीं ना कहीं दान दक्षिणा में फिर से गड़बड़ी हो गई है पर यह बात उनकी समझ से परे थी ।

एक बार फिर से वह अपने गुरु प्रदीप के पास पहुंचे और सारी बात उन्होंने समझाए गुरु प्रदीप ने उन्हें कहा जब कुल सुंदरी वापस आ गई थी उसके बावजूद भी तुमने धन दिया तो कहीं ना कहीं धन देने में तुम से कोई गलती हुई होगी इस पर जगतपाल ने कहा ऐसा नहीं है गुरु जी मैंने सच में जो एक गरीब व्यक्ति है उसी को धन दिया है और अब वह मुझे नजर नहीं आ रही है अब मैं क्या करूं तब गुरु प्रदीप ने कहा अब हमारे पास कोई मार्ग नहीं है एक बार फिर से हमें तांत्रिक के पास चलना होगा वही दोबारा से बता सकते हैं कि आखिर गड़बड़ी हुई कहां है गुरु प्रदीप और जगतपाल दोनों लोग उस तांत्रिक की कुटिया की तरफ जाने लगे कुछ देर बाद वहां पहुंच गए एक बार फिर से उन्हें रात भर खड़े रहना पड़ा और सुबह जाकर के तांत्रिक ने अंदर आने की अनुमति प्रदान की क्योंकि रात्रि को तांत्रिक अधिकतर अपनी पूजा उपासना किया करता था

इसी कारण से वह अंदर किसी को आने नहीं दिया करता था और जो सुबह तक रुकता था उसी को ही अपनी कुटिया में प्रवेश देता था वह उनके धैर्य की परीक्षा भी ले लिया करता था और अपने सारे कार्य को संपादित भी कर लिया करता था सुबह सुबह जब उनका बुलावा आया तब जगतपाल और गुरु प्रदीप दोनों के दोनों तांत्रिक की कुटिया में अंदर चले गए तांत्रिक के पास पहुंचते ही तांत्रिक से पूछा की ऐसी ऐसी बात हो चुकी है अब क्या हो सकता है क्या कूल सुंदरी वापस आएगी या फिर हमने उसे हमेशा के लिए दोबारा खो दिया है इस तरह की बातें जब तांत्रिक को बताई गई तो तांत्रिक ने कहा ठीक है कि अपने हाथ का मल मुझे दो जगतपाल ने अपने हाथों को रगड़ा और उससे जो हल्का फुल्का मल निकला ।

वह उस तांत्रिक को दे दिया तांत्रिक ने उसे अपने हाथ में लिया और कुछ मंत्र बूदबूदाए और कहा कुछ छड़ रुकिए तकरीबन 15 से 20 मिनट वह ध्यान करता रहा इसके बाद उस तांत्रिक ने अपनी आंखें खोल दी और बताने लगा कि तुमसे आखिर गलती हुई कहा इसके बाद ने तांत्रिक ने कहना शुरू किया पता है सामने एक बर्तन रखा हुआ है मैं उसमें अगर तुम्हें पानी दूं तो क्या तुम उसे पीलोगे जगतपाल ने कहा हां अवश्य ही आपके पास रखा है बर्तन तो मैं अवश्य ही पी लूंगा तो तांत्रिक में उस बर्तन में पानी डाल दिया और वह पानी पीने के लिए जगतपाल को दे दिया जब जगतपाल ने उस पानी के बर्तन को उठा करके देखा तो उसमें कीड़े मकोड़े तैर रहे थे जगतपाल ने उसे छोड़ दिया और कहा यह तो गंदा पानी है इस पर तांत्रिक ने कहा तुम्हारा जो बर्तन है यह तो बाहर से बहुत साफ था पर फिर भी तुम पानी नहीं पी रहे हो जगतपाल ने कहा अंदर से तो साफ नहीं है देखिए इसमें कितने कीड़े मकोड़े पढ़े हुए हैं जब आपने इसमें पानी डाला तो सब के सब तैरने लगे हैं अब भला मैं इस पानी को क्यों पियू तांत्रिक ने मुस्कुराते हुए कहा यही तुम्हारे साथ हो गया है तुमने जिसे पात्र समझा वह पात्र नहीं था अर्थात जिस गरीब व्यक्ति को तुमने सोचा कि मैं एक अच्छा दान दे रहा हूं जिससे मुझे पुण़्य की प्राप्ति होगी वह नहीं हो पाया है जगतपाल ने आश्चर्य से पूछा कि आखिर तांत्रिक महोदय क्या हुआ है ।

मुझे इसके बारे में बताइए तांत्रिक ने कहा जिस गरीब व्यक्ति को तुमने दिया है वह उस धन को लेकर तुरंत ही पास के मदरालय में चला गया वहां से उसने 5 या 10 बोतलें शराब ली उन्हें पिया और पीने के बाद उसने अपनी पत्नी से मारपीट की उसे घर से भगा दिया और धन के कारण से अब वह किसी की नहीं सुन रहा है जो भी उसके पास जाता है उन्हें बोतले फेक कर मारता है इस तरह का व्यवहार वह कर रहा है मदिरा के कारण उसके मन में बहुत ही अधिक घमंड आ गया है इसीलिए कहा जाता है कि हमेशा ध्यान पूर्वक दान देना चाहिए दान वहां देना चाहिए या उसे देना चाहिए जो उसका सच में पात्र को और उसका उपयोग भी सही ढंग से करें वरना दान का फल नष्ट होता ही है साथ ही साथ आपके अभी के पुण़्य भी नष्ट हो जाते हैं किसी शराबी को दान देने से जो उसके गलत कर्म है उनका प्रभाव भी तुम पर आता है और यही हुआ इसी कारण से कुल सुंदरी तुमसे दूर जा चुकी है ।

अब या तो तुम इस चीज को ठीक करो या फिर अपनी गलती को सुधारने के लिए कुछ और प्रयास करो इससे बड़ा कोई दान करो इस पर जगतपाल ने कहा दान देने की क्षमता मेरे पास नहीं है मेरे पास तो धन था ही कहा सब कुछ तो कुल सुंदरी का दिया हुआ था कुल सुंदरी ने अपने वस्त्र आभूषण जो वह उतार कर चली जाती थी उन्हीं को दान में प्रयोग करता था इस पर तांत्रिक ने कहा ठीक है तो फिर अब स्थिति को सुधारो जाकर जगतपाल और गुरु प्रदीप तांत्रिक के पास से वापस आ गए गुरु प्रदीप ने कहा मैं तुम्हें एक सुझाव देता हूं जाओ सबसे पहले उस शराबी की पत्नी के पास जाओ अगर वह बेघर है उसने भोजन नहीं किया है ।

तो उसे अपने घर पर ले जाओ उसे भोजन कराओ और उसे अच्छे वस्त्र दो क्योंकि यह जो पहला पाप हुआ है इस पाप को सबसे पहले दूर करना आवश्यक है गुरु प्रदीप की बात को मान करके जगतपाल उस स्त्री को ढूंढता हुआ एक जंगल में पहुंचा जहां वह फटे हाल में पेड़ों के पत्ते खा रही थी क्योंकि भूख उसे इतनी अधिक लगी हुई थी भोजन में कुछ और नहीं मिलने के कारण और पति के द्वारा बाहर निकाल दिए जाने की वजह से बहुत ही ज्यादा वह परेशान थी जगतपाल उसके पास गया उसकी दयानी हाल को देखकर बहुत ही ज्यादा परेशान हुआ और सोचने लगा कि मेरा धन गलत कार्य में खर्च हो गया है उसने अपने घर आने का उसे न्योता दिया।

उसे लेकर के वह अपने घर आया उसे नए वस्त्र आभूषण दिए भोजन कराया और कहा कि आप यहां मेरा इंतजार कीजिए मैं आपके पति के पास जाता हूं उसके बाद वह उसके पति के पास पहुंचा जो शराब पीकर के मस्त था वह शराब पिए ही उसे देखता है और नमस्कार करते हुए उसके पास आता है और कहता है कि आपके दिए हुए पैसों से मेरे जीवन में कितनी रौनक आ गई है मैं हर वक्त आनंदमय में बना रहता हूं जगतपाल ने तुरंत की एक तमाचा उस शराबी को जोर से मारा और गुस्से से आकर कहा मेरा धन कहां है बताओ मुझे डर के मारे उस भिकारी ने तुरंत ही बता दिया कि उसने उनका आधा बचा हुआ धन कहां पर रखा हुआ है ।

वह सारा धन जगतपाल ने उठा लिया और उसे पकड़ कर उसकी पत्नी के पास लेकर के गया और कहने लगा देख तेरे कर्मों की वजह से मैंने जो तुझे दान दिया था उसकी वजह से सब कुछ नष्ट हो गया है मेरी सिद्धि मेरी साधना सब चली गई है चल अपनी पत्नी को वापस अपने घर ले जा इसका सही से ख्याल रखना इसी बात पर मैं तुझे छोड़ता हूं शराबी ने माफी मांगी और कहा कि मैं ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगा और वह अपनी पत्नी को वापस घर लेकर चला गया और कमा कमा कर फिर से उसने खाना शुरु कर दिया कुछ धन जगतपाल ने उसके पास छोड़ दिया था लेकिन अधिक से अधिक धन जगतपाल ने अपने पास ले लिया था ।

कहते हैं दान दी हुई चीज वापस नहीं लेनी चाहिए लेकिन जगतपाल के पास मजबूरी थी आखिर वह करता भी क्या उसके पास और कोई विकल्प नहीं था अगर कोई सुंदरी को वापस प्राप्त करना था तो कुछ ना कुछ उसे अच्छा करना ही था नहीं तो सब उसके हाथ से निकल जाता अब जगतपाल गुरु प्रदीप के पास वापस आ जाते हैं और पूछने लगते हैं अब इस बचे हुए धन को मैं कहां दान करूं किसे दो जिससे मुझे पुण्य की प्राप्ति हो गुरु प्रदीप कहते हैं या तो ब्राह्मणों को इसे दान कर दो या फिर किसी ऐसे को भोजन कराओ जिससे तुम्हें सच में तुम्हें पुण्य की प्राप्ति की हो जगतपाल सोचने लगा पता नहीं मैं किस ब्राह्मण को कराओ और वह इतना पवित्र होगा कि वह सच में हृदय से इतना पवित्र हो अगर नहीं हुआ तो क्या होगा यही उधेड़बुन में था तभी मंदिर में दौड़ती हुई छोटी छोटी बालिकाओं को देखकर जगतपाल के मन में एक विचार आया जगतपाल ने सोचा क्यों ना मैं कन्या भोज कराओ ।

क्योंकि कन्या स्वता ही मन से पवित्र होती है क्योंकि यह बच्चियां है तो इनका मन पूरी तरह से पवित्र होगा अगर मैं इन्हें दान दक्षिणा भोजन वस्त्र आभूषण दू तो अवश्य ही मुझे पुण्य की प्राप्ति होगी जगतपाल ने अपने दिमाग का पूरी तरह से इस्तेमाल किया और उसने उस गांव और उसके आसपास के क्षेत्रों के सभी 8 वर्ष के नीचे की सभी कन्याओं को आमंत्रित किया लोग अपनी अपनी कन्याओं को लेकर के उस मंदिर के पास आ गए धीरे-धीरे देखते देखते कुल 108 कन्याओं को उस में चयन कर लिया गया बाकियों को अलग से भोजन कराने की व्यवस्था की लेकिन इन 108 कन्याओं को पूजन के साथ में उसने भोजन कराने का संकल्प लिया उन सभी कन्याओं को पैर धुले और उन सभी कन्याओं को लाल वस्त्र अर्पित किए लाल चुन्नी या उन पर चढ़ाई गई भोजन में अच्छे पकवान खिलाए गए और उन 108 कन्याओं को जब उसने पूजन किया ।

उसके तुरंत बाद ही जब 108 वी कन्या का पूजन कर रहा था तभी उसके बगल में एक स्त्री आई और बैठ गई कहने लगी मुझे भी भोजन कराइए जगतपाल कहने लगा मैं सिर्फ कन्याओं को ही भोजन कर आता हूं इसके अलावा मैं और किसी को भोजन नहीं कराता पर वह कहने लगी अरे मुझे तो कराओ क्या मैं उतनी पवित्र नहीं हूं जगतपाल बड़े ही आश्चर्य से उस स्त्री को देख रहा था जो देखने में अत्यंत ही सुंदर थी उसका शरीर चमक सा रहा था पर वह स्त्री आखिर कन्याओं के भोग में क्यों बैठ गई थी जगतपाल को यह बात समझ में नहीं आ रही थी जगतपाल कहने लगा हे देवी मैं आपको अलग से भोजन अवश्य करा दूंगा किंतु यह स्थान कन्याओं के लिए है आपके लिए नहीं है कृपया आप यहां से हटिए वह स्त्री भी अड़ गई ।

उसने कहा नहीं मुझे कहीं और भोजन नहीं चाहिए मैं भोजन करूंगी इसी स्थान पर और आपको मुझे भोजन कराना होगा जगतपाल एक बार फिर से उस स्त्री को आश्चर्य से देखने लगता है कि आखिर यह अति सुंदर स्त्री कौन है और यह बार-बार मुझसे इस तरह से आग्रह क्यों कर रही है जगतपाल ने एक बार फिर से गुरु प्रदीप के पास जाना उचित समझा वह गुरु प्रदीप को मिलने पहुंच गए और सारी बात समझाई गुरु प्रदीप कहने लगे कि कौन सी स्त्री है और कहां पर है जगतपाल और गुरु प्रदीप जब उस स्थान पर वापस आए तो वहां पर कुछ भी नहीं था कोई स्त्री नहीं थी जगतपाल ने कहा अभी अभी यहां पर एक स्त्री बैठी हुई थी जो इस बात की हट कर रही थी कि मुझे भोजन कराओ वह कहां चली गई है गुरु प्रदीप कहने लगे ओहो लगता है तुमसे एक बार फिर से गलती हो गई है आखिर वह गलती क्या थी जानने के लिए हम लोग अगले भाग को देखेंगे तो अगर आपको यह वीडियो कहानी पसंद आ रही हो तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

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