दिल्ली कनॉट प्लेस हनुमान मंदिर मठ कथा अंतिम भाग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा कि अभी तक दिल्ली कनॉट प्लेस वाली कथा चल रही है । उसमें आप लोगों ने अभी तक पड़ा कि किस प्रकार से एक राक्षसी ने सेवा राम की पत्नी को जंगल में जाकर के बांध करके छोड़ दिया कि उसे जंगली जानवर खा जाए । लेकिन जब साथ में ईश्वर की सत्ता मौजूद हो उसकी कृपा मौजूद हो तो निश्चित रूप से कोई किसी का हित नहीं कर सकता । अपने उस घर में वर्चस्व बना चुकी वह शक्तिशाली दानवी राक्षसी को और उसके प्रभाव को जानते ना हुए सेवाराम उसे अपनी पत्नी ही समझ रहा था ।लेकिन वह साधना में था इसलिए उसके हर प्रकार के षड्यंत्रो और प्रपंच से बच जा रहा था । लेकिन उसकी पत्नी के साथ बुरा हादसा हो चुका था । उसके बारे में उसे पता नहीं था । अगली रात को पूजा करने के लिए फिर से घर से चलने के लिए तैयारी करने लगा । तभी उसकी पत्नी आई जो कि दानवी राक्षसी थी । उसने कहा क्यों आप रात को इस प्रकार से साधना करने रोज जाते रहते हैं और भला इन साधना से क्या होने वाला है । आपको तो अपने पत्नी का भी ध्यान नहीं है कितना समय हुआ आपको मुझसे प्रेमालाप किए हुए । कृपया कभी मेरी ओर भी ध्यान दिया कीजिए । मुस्कुराते हुए सेवाराम ने कहां इतना क्या कम है कि हमारे इतने सारे बच्चे हैं ।
और भला मैं अपनी आर्थिक स्थिति से ही तो बाहर निकलने के लिए यह सारे कार्य कर रहा हूं । मुझे पता है निश्चित रूप से हनुमान जी मेरी साधना से प्रसन्न होकर अवश्य ही प्रकट होंगे । और मुझे कोई न कोई शक्ति प्रदान करेंगे । मुझे इस विश्वास पर पूरी तरह से टिके रहना और चाहे कितना भी समय लग जाए । मैं इस प्रकार हनुमान जी की साधना को करता रहूंगा । उनकी बात को सुनकर के अब वह कहने लगी कि मुझे नहीं लगता है इन साधनाओ से कुछ होता है । जीवन तो जीने के लिए है भला साधनाओ में उसे बर्बाद करने से क्या मिलेगा । साधना करके अपना समय बर्बाद करना ध्यान में बैठे रहना और चिल्लाना कि हमें धन मिल जाएगा । तो क्या पता इससे धन मिल सकता है धन कमाने के लिए धन के पीछे जाना पड़ेगा । धन की प्राप्ति के लिए धन के पीछे ही जाना होगा । मुझे नहीं लगता कि आप इस कार्य में सफल होंगे ।अपनी पत्नी के मुंह से अजीब तरह की बातें सुनकर ।सेवाराम ने कहा ऐसा नहीं है हां मैं यह मानता हूं कि कार्य को करने से उस कार्य का फल मिलता है । लेकिन उस कार्य को प्राप्त करने के लिए भी कुछ आधार होना चाहिए ।अपने अंदर ऊर्जा अपने अंदर अपने उत्साह अपने अंदर सामर्थ्य और सही दिशा यह सब इष्ट देते हैं । मुझे विश्वास है हनुमान जी मेरी सहायता करेंगे । और मुझे इस तरह की कोई राह दिखाएंगे ।
जिससे मैं धन कमा सकूंगा । लेकिन वह तभी संभव होगा जब मैं उनकी साधना करूंगा उपासना करूंगा । तो उनकी बात को सुनकर अब तर्क में न जीतते हुए उसने कहा । ठीक है जाइए लेकिन अपनी पत्नी और बच्चों को भी ना भूले । आपकी जिम्मेदारी हमारे प्रति भी है । मेरी भी कुछ भावनाएं मैं भी कुछ चाहती हूं । वह कहने लगा ठीक है चिंता ना करो साधना जब संपूर्ण हो जाएगी तो अवश्य ही मैं तुम्हारी हर इच्छाओ को पूरी करूंगा । इस प्रकार सेवाराम जी से वार्तालाप करने के बाद फिर से उस मंदिर में जहां पर पीपल का वृक्ष हुआ था साधना करने बैठ जाते है । आज राक्षस ऊपर ही एक बार फिर से पेड़ पर आकर बैठता है । और वह सोचता है कि आज मुझे इसकी ऊर्जा सारी छीन लेनी है । इसके लिए चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े । अपनी दिव्य ऊर्जा से एक रहस्यमई सर्प का वह निर्माण करता है । जो कि हवा का बना था । और जैसे ही साधना करने सेवाराम जी बैठते हैं उनके अंदर उस सर्प को डाल देता है । सास के द्वारा वह सर्प सेवाराम जी के अंदर चला जाता है । और वहां से अपनी योगिक क्रिया द्वारा राक्षसी माया द्वारा अपने मणिपुर चक्र को वह राक्षस जोड़ लेता है । अब जो भी मंत्र सेवाराम जपता था । उसका सीधा प्रभाव और शक्ति उसकी राक्षसी ऊर्जा में बदल करके उस राक्षस तक पहुंचने लगी । काफी देर जाप करने के बाद सेवाराम को अजीब सा महसूस होने लगा । उसे लग रहा था जैसे उसकी शक्ति कहीं खींच कर चली जा रही है । बहुत दिनों से साधना करने पर इस तरह का अनुभव उन्हें नहीं हुआ था ।
वह दुख से व्याकुल होने लगा और मन ही मन हनुमान जी को पुकारने लगा । तभी अचानक से किसी ने पीछे से आकर के उनकी पीठ पर जोर से डंडा मारा और उनकी आंखे खुल गई । ध्यान अवस्था टूटी पीछे एक वृद्ध आदमी खड़ा था । और वह कहने लगा अरे मूर्ख तू यहां बैठा साधना कर रहा है । और तुझे अपनी पत्नी की चिंता नहीं है । वह जंगल में पड़ी हुई है । ऐसा कहकर सेवाराम की साधना टूट गई थी । सेवाराम ने कहा आपने मेरी साधना तोड़ दी है आप कौन हैं । और इस तरह की हरकत करने का क्या तात्पर्य है । इस पर उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा जिसे अपनी पत्नी बच्चों की चिंता ना हो वह आदमी क्या कर सकता है । और तू यहां साधना उन्ही के लिए ही तो साधना कर रहा है । तू पहले जाकर अपनी पत्नी को तो देख । सेवाराम ने कहा मेरी पत्नी तो घर में है । उसने कहा नहीं मैं तुझे वहां लिए चलता हूं और आकर फिर तू साधना कर लेना । विश्वास रख मेरी बातों पर क्योंकि सर्प उस वार से उनके मुंह से निकल के बाहर गिर पड़ा था और भस्म हो गया था । तो राक्षस को अजीब सा लगा । राक्षस जो शक्तियां ले रहा था वह सारी शक्तियां रुक गई । क्योंकि साधना टूट चुकी थी और ऊर्जा के प्रभाव से सीधे-सीधे उस तक नहीं पहुंच रही थी । क्योंकि सर्प को उसने अपने मणिपुर चक्र से जोड़ कर उसके मुंह में डाला था ।
वह सर्प ही नष्ट हो गया था उस डंडे के वार से । उस बूढ़े व्यक्ति ने उस शक्ति को नष्ट कर दिया था । वह बूढ़ा व्यक्ति कहने लगा बेटा बहुत उम्र हो गई है । हजारों सालों से पृथ्वी पर रह रहा हूं । तुम यकीन नहीं करोगे लेकिन क्या करूं यह राम भक्ति है जो छूटती ही नहीं । यह राम भक्ति पता नहीं मुझे कहां लेकर जाएगी । तो इस पर उसने कहा अच्छा तो आप राम भक्त हैं । इस पर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा हां मैं राम भक्त हूं । और पता नहीं कब से कितने रूपों में कितने जन्मों से ऐसे ही भटक रहा हूं बस स्वामी की आज्ञा है तो वही किए जा रहा हूं । उन्होंने पूछा किस स्वामी की आज्ञा है । अरे राम जी की आज्ञा और किस कि आज्ञा ।सेवाराम ने कहा आपने मेरी साधना तोड़ दी है क्या मुझे वचन देते हैं कि आप मेरी साधना को पूर्ण करा देंगे । तभी मैं आपके साथ चलूंगा । वह कहने लगे अरे तू बड़ा निरा मूर्ख है जब मैं कह रहा हूं तो तुम्हें यकीन करना चाहिए । फिर भी मैं तुझे वचन देता हूं कि मैं तेरी साधना पूरी करवा दूंगा । तो अब क्या करना होगा बाबा मुझे बताइए । कि तब वह बूढ़ा व्यक्ति ने कहा कि देख मैं तो बूढ़ा हो चुका हूं इस डंडे के सहारे ही चलता हूं । इसलिए मेरे साथ जंगल में चल तेरी पत्नी वहां है । ऐसा कहने पर उनके साथ जंगल के लिए निकल पड़े सेवा राम जी । जंगल में जाते जाते जब थोड़ी दूर पहुंचे । सेवाराम जी ने अपनी पत्नी को एक पेड़ के नीचे बांधे हुए पाया । उसके नजदीक ही बहुत सारे भेड़िए उसे खाने के लिए लपक रहे थे । बड़ी ही भयंकर भय के कारण वह डरी हुई सी थी । और किसी वक्त भेड़िए उसके शरीर को चीर फाड़ करके खा जाते ।
वह दौड़ता हुआ गया और उन्हें हटाने की कोशिश कर रहा था । लेकिन इतने सारे भेड़िए कभी भी उसे भोजन बना लेते तभी उस बूढ़ा व्यक्ति ने अपना डंडा उसकी ओर फेंका और कहा । बेटा मैं बूढ़ा हो चुका हूं लेकिन तू इस डंडे से इन सब भेड़ियों को भगा दे । सेवाराम ने जब वह डंडा चलाया वह चमत्कारी डंडा है । ऐसे चलने लगा जैसे कि स्वयं सेवाराम कहीं से डंडा चलाने की प्रेरणा ली हो । ऐसे ऐसे करतब कर कूदने लगे और ऐसे ऐसे डंडा चलाने लगे । जैसे लाठी चलाने की ट्रेनिंग आर एस एस वाले लेते हैं । अब किसी भी तरह से कोई भी क्रिया करके डंडे को इधर-उधर मोड़ सकते हैं । डंडा चलाने की प्रक्रिया आज की नहीं बल्कि बहुत पुरानी है । और इस पारंगत विद्या में सेवाराम जी ऐसे पारंगत हो गए । यह सेवाराम जी को भी समझ में नहीं आ रहा था । अब सोचने वाली बात थी यह सब हो क्या रहा है । लेकिन सेवाराम जी उछल उछल कर के वह डंडा चलाने लगे और डंडा भी ऐसा जब वह किसी को लगता है या किसी भेड़ियों को लगता । भेड़िया कम से कम 10 फुट दूर जाकर के गिरता । इस तरह 15 या 20 भेड़ियों को वहां से भगा दिया । जैसे कि उनके हाथ में कोई विशेष प्रकार की शक्ति आ गई हो । बड़ी ही स्थिति को खतरनाक देखते हुए सारे भेड़िए भाग गए । भला कौन डंडे के प्रहार को सह सकता था । सभी खून में लथपथ और उन्होंने वहां से भाग जाना ही उचित समझा । अब उसने अपनी पत्नी के पैर के सारे बंधन खोलें । और इनको खोल लेने के बाद अब उन बूढ़े व्यक्ति के पास जाकर के उनसे कहा की है आप वृद्ध कौन है । मुझे अपना परिचय दीजिए आपका नाम क्या है ।तो वह हंसते हुए कहने लगे मेरा नाम संकटमोचन है और मैं इधर उधर घूमता फिरता रहता हूं ।
अपने स्वामी की भक्ति करता हूं और क्या मैं तुम्हें बताऊं । लेकिन अभी तुम्हारी क्रिया और काम पूरा नहीं हुआ है आज की साधना रहने दो । मैंने तुम्हें वचन दिया है इसलिए चलो मुझे तुम अपने घर ले चलो बहुत भूखा हो गया हूं कुछ खाना चाहता हूं । उनकी बात को समझते हुए सेवाराम जी ने कहा अगर आप मुझे वचन दे रहे हैं कि आप मेरी पूजा पूर्ण कर आएंगे । तो मैं अब आपको अपने घर ले चलता हूं । और अपनी पत्नी को इस प्रकार छोड़कर अपनी साधना के लिए वापस नहीं जा सकता । इसलिए चलिए आप मैं आपके साथ चलता हूं और अपने घर ले चलता हूं । और भोजन मेरी बेटियां ही बना देगी ऐसा कह कर के वह वहां से निकल लिए । और जब वह घर पहुंचे वहां पहले से ही उनकी पत्नी मौजूद थी । जिसे देखकर वह फिर से बहुत भोचक्के हो गए । अपने को देखकर अपनी पत्नी को देखें और फिर अपनी दूसरी पत्नी को देखें । उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था । तभी संकट मोचन जी ने कहा अरे तुम्हारी दो दो पत्नियां है चलो दो है तो उससे फर्क नहीं पड़ता । अपनी दूसरी पत्नी से कहो कि भोजन बनाए और जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करवाओ ।सेवाराम ठगे से दोनों को देखते हुए दूसरी पत्नी से कहने लगे भोजन बनाओ । और वह भोजन बनाने अंदर चली गई तुरंत ही भोजन लेकर के आ गई और कहने लगी मैंने भोजन पहले से ही बना रखा था । सबसे पहले सेवाराम ने वह पात्र संकट मोचन जी को दिया संकट मोचन जी ने जैसे ही हाथ में उस पात्र को लिया । और उस पात्र को जमीन में फेंक दिया और कहा भला मेरे जैसा शुद्ध शाकाहारी मांसाहारी भोजन कैसे करेगा । यह मांस खाने वाली तुम्हारे घर में क्या कर रही है । इस पर सेवाराम फिर से आश्चर्यचकित हुए और वह कहने लगे मुझे यह समझ में नहीं आ रहा मेरी दो-दो पत्नियां कहां से हो गई ।
और ऊपर से यह मास भोजन मुझे तो सब शाकाहारी ही दिखाई दे रहा है । तो एक बार फिर से संकट मोचन जी ने कहा कि अच्छा यह बात है और उन्होंने उठा कर के एक डंडा उसकी पत्नी दूसरी पत्नी जो घर में थी पहले से उसे मारा । उसे ऐसे डंडा लगा वह अपने असली रूप में और भयानक चुड़ैल के रूप में आ गई । और वह कहने लगी यह मेरा घर है तू कौन है यहां क्यों आया है । और यह सेवाराम को अपने मन से इसे स्वीकार कर चुकी हूं यह मेरा पति है मैं इसकी सारी उर्जा लूंगी । ऐसा कहने पर संकटमोचन ने कहा देख मैं दिखने में वृद्ध हूं मेरा एक वार त्रिलोकी सह नहीं सकता है । और उन्होंने एक बार फिर से उठाकर के डंडा उसके पेट पर इस तरह से मारा वह आकाश में पता नहीं कितनी दूर जाकर के गिरी और शायद इसी के साथ उसके प्राण पखेरू हो गए ।इतने अधिक तेजी से किए हुए वार के कारण इस ध्वनि को वहां के पूरे क्षेत्र सभी अमानवीय शक्तियों ने जरूर सुना ।क्योंकि अमानवीय शक्तियों को सुनने की क्षमता कहीं अधिक होती है । उसके भाई ने भी यह सारी बातें सुनी और क्रोध से लप-लपाता हुआ तुरंत ही सेवाराम के घर में प्रकट हो गया ।
और उसने अपना असली रूप धारण करके सेवाराम को पकड़ लिया । इसी बीच उस वृद्ध व्यक्ति ने अपने असली रूप में आकर के अपने गधा की वार से उसके सिर के बीच में प्रहार किया और उसका सिर फट गया और इसी के साथ उसकी मृत्यु हो गई । सेवाराम जी खड़े खड़े उस वृद्ध को देख रहे थे । वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे वह स्वयं हनुमान जी थे । और हनुमान जी ने स्वयं प्रकट होकर कहा तेरी भक्ति से मैं कभी प्रसन्न हो गया था । लेकिन परीक्षा चाहे मैं लूं फिर चाहे ऐसे विधि विधान से किए गए तत्व जैसे कि यह राक्षस और राक्षसी या यूं ही बीच में आ के मेरी जगह इन दोनों ने परीक्षा ले ली । लेकिन फिर भी मैं तेरी पूजा पाठ से प्रसन्न हूं । तूने जिस स्थान पर मेरी पूजा की है भविष्य में वहां पर एक स्थाई मंदिर बनेगा ।भविष्य में वहां पर मेरे एक बहुत ही महान और बहुत ही शुभ श्लोक की रचना भी की जाएगी । क्योंकि वह स्थान तुम्हारी भक्ति के कारण शुद्ध हो चुका है बहुत पवित्र हो चुका है । वहां पर सदैव ही मेरा स्थाई विराजमान होगा मैं स्वयंभू रूप से वहां स्थापित रहूंगा । मैं तुझे वचन देता हूं साथ ही साथ घर के पिछवाड़े पर जमीन में खोद । वहां पर तुझे धन मिलेगा और उससे तू अपनी बेटियों का विशेष रूप से विवाह कर पाएगा । और बड़े बड़े अच्छे खानदानओं में उनका विवाह होगा । मैं तुझे आशीर्वाद देता हूं तेरी सिद्धि तुझ पर बनी रहेगी ।
लेकिन सिद्धियों का प्रयोग दुष्ट प्रयोग ना करना और सदैव खुश रहना प्रसन्न रहना । और जीवन में सब की भलाई करते रहना । इस सिद्धि के बारे में लोगों को ना बताना और यह गोपनीय कथा को भी छुपाए रखना । लेकिन भविष्य में यह कहानी धीरे-धीरे उजागर होती रहेगी लेकिन बहुत ही कम लोगों के माध्यम से आज मैं वही कथा आप लोगों को बता रहा हूं । इस प्रकार से इस कथा का वहां पर अंत हो जाता है । और आज हम देखते हैं किसी जमाने में एक बहुत ही प्राचीन मंदिर था बाद में हनुमान का मंदिर बना और वह मंदिर में एक बार तुलसीदास जी आए । उन्होंने यहां पर हनुमान चालीसा की रचना की इस हनुमान चालीसा को घर-घर में आज गाया जाता है । और उसके बाद अब वह भव्य रूप में वहां पर एक मंदिर बन चुका है । और उस जगह पर ही बहुत सारी शक्तियों का वास है । साथ ही वह इतना ज्यादा प्रसिद्ध मंदिर हो चुका है । वहां पर श्री राम जय राम जय जय राम के जो है अखंड मंत्र जाप इस समय जाप किया जाता है ।इसी तरह की ऑडियो सेट की गई है यह सब बहुत सी ऐसी अद्भुत चीजें हैं । हमारे देश में पौराणिक उनके बारे में ना लिखा गया है और ना कुछ बताया गया है । लेकिन किंवदंतियों के रूप में सुनी सुनाई बातों के रूप में कुछ लोग साधनाओं के बल पर हम उन छोटे-छोटे रहस्य को निकालकर के अलग ही रूप में इकट्ठा करके लेकर आ रहे हैं । आगे भी लाते रहेंगे । अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो राम भक्त हनुमान जी की जय करें । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।