नहाती हुयी परियां देखना बहुत खतरनाक भाग 3
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग अपने इस कथा को आगे बढ़ाते हुए जानेंगे कि आखिर चंद्रा अप्सरा की साधना का क्या प्रतिफल उसे भगवान शिव? जी ने दिया तो पिछले भाग में आप ने जाना था कि चंद्रा भगवान शिव की कठिन तपस्या करने लगती है। 1 दिन वहां से गुजरते हुए भगवान शिव अपने ही मंत्रों का जाप सुनते हैं और तब उनकी नजर चंद्रा पर पड़ती है जो कि एक देव कन्या थी। एक शक्तिशाली तपस्या करती हुई देवकन्या को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। वह नीचे उतर कर आते हैं और चंद्रा से उसकी इस कठिन तपस्या का क्या उद्देश्य है, यह पूछते हैं तब चंद्रा कहती है। हे प्रभु! मुझे एक ऋषि ने तत्वज्ञान दिया है और बताया है कि यह जीवन दूसरों की सेवा के लिए होना चाहिए। किंतु हम सभी तो स्वर्ग में केवल सुखों को भोगने के बारे में ही सोचते हैं किंतु कोई भी ऐसा नहीं है जो जन के कल्याण के बारे में सोचता हो, मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं यहां रहकर प्रत्येक जन का कल्याण करती रहूं और सदैव मुझे साक्षात मोक्ष जैसा सुख प्राप्त होता रहे। मैं स्वर्ग के नश्वर सुखों को नहीं भोगना चाहती कि बाद में आकर मुझे फिर से जन्म लेना पड़े और यह प्रक्रिया चलती रहे। भगवान शिव जब यह इस 16 वर्षीय कन्या से सुनते हैं तो बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और कहते हैं तुम्हारे अंदर देवकन्या से ज्यादा देवी तत्वों के गुण मौजूद हैं। मैं तुम्हें जगत के कल्याण का वरदान देता हूं।
अब तुम इस ताल में रहकर गंगा नदी के समान ही पवित्र जल अपने में से निकालोगी। तुम चंद्रा नदी बनकर आगे बढोगी और तुम्हारी बहन और मित्र भागा तुम से जल्दी ही मिल जाएगी। इस प्रकार जगत में तुम चंद्रभागा नदी के नाम से विख्यात होगी। आगे भविष्य में तुम्हें ही अस्किनी और चेनाब नदी के रूप में जाना जाएगा। चेनाब नदी के रूप में उन संसार में विख्यात होगी और सभी का भरण पोषण प्रकृति का पोषण, जीवो को जल और सब का कल्याण नदी के रूप में करती रहोगी यह सुनकर। चंद्रा बहुत प्रसन्न हुई। वहां भागा भी आ गई और उसने भी अपनी तपस्या के लिए वरदान मांगा था तो भगवान शिव ने दोनों को ही एक जैसा और एक हो जाने का वरदान दे दिया था। तब से चंद्रभागा नदी ही चिनाब नदी बन कर जगत का कल्याण कर रही है। लेकिन यह सुनकर स्वर्ग की बहुत सारी अप्सराएं परियां और उस क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य दिव्य आत्माये। इस दुर्लभ जल में आकर स्वयं को स्वच्छ करने का विचार करने लगती हैं क्योंकि जो भी इस चंद्रा को छुएगा उसके पाप नष्ट होते थे।
उसे अधिक समय तक स्वर्ग में निवास करने का वरदान अपने आप प्राप्त हो जाता था क्योंकि चंद्रा इतनी ज्यादा पवित्र है। चंद्रा के जल में स्नान करने के लिए तभी से वहां पर स्वर्ग की अप्सरा, परियां, यक्षिणी, योगिनी इत्यादि आने लगी और वहां स्नान करके अपने पूर्व जन्मों के पापों को नष्ट करती ताकि स्वर्ग में अधिक दिन तक उनका निवास हो सके। इस प्रकार वह जगह बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हो गई। यह बात भगवान इंद्र को भी पता चल गई थी और वह जानते थे कि स्वर्ग जाने का मार्ग चंद्रा के पास है इसलिए वह ऐसा व्यक्ति चुन रहे थे जो अब इस मार्ग को हमेशा के लिए आखिरी बार आकर बंद कर दें। तभी युगों का समाप्ति करण होता है। कलयुग का प्रारंभ होता है और इस प्रारंभ से पहले इस स्थान को सुरक्षित करना भी आवश्यक था। इसीलिए महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों के मन में सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा हुई। पांचो पांडव राज पाठ परीक्षित को सौंपकर स्वर्ग की कठिन यात्रा के लिए द्रोपदी के साथ निकल पड़े। यात्रा के दौरान जब पांडव बद्रीनाथ पहुंचे तो वहां से आगे बढ़े तो सरस्वती। नदी के उद्गम स्थल पर नदी को पार करना द्रोपदी के लिए कष्ट कारक हो गया था। ऐसे समय में भीम ने एक बड़ी सी चट्टान उठाकर नदी के बीच में डाल दी। द्रौपदी ने इस चट्टान पर चलकर सरस्वती नदी को पार किया था। माणा गांव में सरस्वती के उद्गम पर आज भी इस चट्टान को देखा जा सकता है।
वर्तमान में भीम पुल के नाम से जाना जाता है। हालांकि अब पांचो पांडव, द्रौपदी और एक कुत्ता उनके आगे चलने लगे। एक जगह द्रौपदी लड़खड़ा कर गिर पड़ी। द्रौपदी को गिरा हुआ देख भीम ने युधिष्ठिर से पूछा। द्रौपदी ने तो कभी कोई पाप नहीं किया तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी। युधिष्ठिर ने कहा, द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को सबसे अधिक प्रेम करती थी। इसलिए ऐसा हुआ ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रोपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए। स्वर्ग यात्रा के दौरान द्रौपदी भीम का सहारा लेकर चलने लगी, लेकिन द्रोपदी भी ज्यादा दूर नहीं चल पाई और उसकी गिरने से उसकी मृत्यु हो गई तब भीम ने पूछा तो द्रोपदी ने कहा था कि मैं सबसे ज्यादा भीम से ही प्रेम करना चाहती हूँ और भीम की पत्नी बनूगी। यह कामना स्वर्ग जाने के लिए उसे रोकने लगी और यह पाप बन गया। इसलिए उसकी मृत्यु गिरकर हुई थोड़ी देर बाद सहदेव भी। नीचे गिर पड़े तब युधिष्ठिर ने कहा, सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था। इसी दोष के कारण स्वर्ग से उसे गिरना पड़ा।
थोड़ी देर बाद नकुल भी गिर गए। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया नकुल को अपने रूप पर अपमान था, इसलिए उसके साथ भी ऐसा हुआ थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़ा। युधिष्ठिर ने भीमसे कहा, अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था और कहा करता था कि मैं एक ही दिन में शत्रु का विनाश कर दूंगा। इसी कारण वह आगे नहीं बढ़ पाया। यही अभिमान अर्जुन की मृत्यु का कारण बना। थोड़ी देर बाद भीम भी गिर गए। तब भीम ने गिरते वक्त युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम? खाते बहुत थे। अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा। इस प्रकार भीम की भी मृत्यु हो गई। लेकिन युधिष्ठिर आगे चलते रहे केवल एक कुत्ता ही उनके साथ आगे चलता रहा। कुछ दूर आगे चले और चंद्रा नदी के रास्ते होते हुए आखिर वह चंद्राताल तक पहुंच गए। यही गोपनीय स्थान था जहां देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। उन्होंने कहा, जल के बीच में चलो। मैं तुम्हें गोपनीय द्वार से इस पृथ्वी से स्वर्ग लेकर जाऊंगा जो कि बहुत पहले यहां निर्मित हो गया है।तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा, मेरे भाई द्रोपदी सभी के सभी गिरे पड़े हैं। वह भी हमारे साथ चलना चाहते थे। ऐसी व्यवस्था कर दीजिए कि वह हमारे साथ चल पड़े। तब इंद्र ने कहा, वह सभी शरीर का त्याग कर चुके हैं। सिर्फ एक व्यक्ति जिसे आप पसंद करते हो उसे मैं शरीर स्वर्ग ले जा सकता हूं। यह युधिष्ठिर की परीक्षा थी तब। युधिष्ठिर ने कहा, ठीक है तो फिर मेरे साथ यह कुत्ता जाएगा।
यह मेरे मार्ग में मेरे साथ ही बना रहा। जब सभी भाइयों और पत्नी ने भी मेरा साथ छोड़ दिया। तब भी यह मेरे साथ था। तब इंद्र ने कहा, कुत्ते को मैं स्वर्ग नहीं ले जा सकता। यह एक निम्न कोटि का प्राणी होता है। लेकिन युधिष्ठिर नहीं माने। उन्होंने कहा कि जो अंतिम समय तक आपका साथ निभाए उसे कभी भी अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। इंद्र प्रसन्न हो गए और तभी वह कुत्ता यमराज के रूप में प्रकट हो गया और यमदेव वहां पर साक्षात रूप में प्रकट होकर कहने लगे। तुम में और मुझ में कोई अंतर नहीं। तुम ही मेरा स्वरूप हो। इस प्रकार युधिष्ठिर इंद्र के बने उस विशालकाय रथ में बैठकर उस चंद्रताल से होते हुए स्वर्ग साक्षात शरीर सहित पहुंच गए जो कि उनके भाई नहीं कर पाए थे। यही चंद्रताल स्वर्ग जाने का मार्ग है और दुनिया की नजर इस गोपनीय द्वार पर ना पड़े इसलिए इंद्रदेव ने इसे अदृश्य कर रखा है। इसी मार्ग से स्वर्ग की अप्सराए और परियां धरती पर आती रहती हैं और यहां स्नान करती हैं लेकिन कहते हैं जो भी इनको नहाते हुए एक बार देख लेता है। अगर उसके मन में पाप हुआ तो फिर अप्सराएं उसे अंदर पानी में खींच लेती है जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यह एक बहुत ही दुर्लभ सत्य है। यह स्थान पर आगे चलकर कलयुग में एक और घटना घटती है। इस घटना का वर्णन इस प्रकार से आता है। एक व्यक्ति जो कि अपनी बकरियां चराता था, इस स्थान पर आकर ठहरता है और तैयारी करता है। आगे अपने मार्ग की ओर जाने के लिए और एक किनारे बैठकर वह कुछ सोचता है। इसके आगे की कथा क्या है? जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर यह जानकारी और कहानी आपको पसंद आ रही है और लाइक करें। शेयर करें। सब्सक्राइब करें, आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।