क्या आपको पता है की आदिमानव जंगलों और गुफाओं में रहता था तो उसके पास साधन नहीं थे। वह पूरी तरह प्रकति पर निर्भर था। उसे घनघोर जंगल में जानवरों का सामना करना पड़ता था। भोजन जुटाना पड़ता था। गुफाओं में छिप कर अपनी रक्षा करनी पढ़ती थी। आंधी-तूफान और वर्षा से बचना पड़ता था। शायद तब उसने सोचा होगा कि काश कोई उसकी मदद करता। उसे जंगली जानवरों से बचाता। उसके लिए भोजन जुटाता। उसे भी चिड़ियों की तरह उड़ने के लिए पंख देता। उसे जगमगाते चांद-सितारों तक पहुंचाता। उसके हाथ में ऐसी जादुई लकड़ी थमा देता जिससे इशारा करने पर कछ भी गायब हो जाता या कुछ भी मिल जाता!
अपने सुख-दुःख में मदद करने और दुष्टों को दंड देने के लिए उसने ‘परियों’ की कल्पना की- लाल परी, नीली परी, हरी परी, सुनहरी परी, छोटी परी, बड़ी परी…यानी तरह-तरह की परियां। जब उसकी कल्पना में परियां उतर आईं तो उसने उनकी कथा अपने दूसरे साथियों को सुनाई। इस तरह उन्हें कल्पना में किसी का सहारा मिल गया। बस, उसी दिन से परियां आकर उसके मन को सहारा देने लगीं। मनोरंजन करने लगीं। तो शायद इस तरह परियों का जन्म हो गया।
लेकिन जब तंत्र के माध्यम से उन्हे सिद्ध किया गया तो अद्भुत आश्चर्य प्रकट हुआ और सच मे इनके अस्तित्व का ज्ञान प्रकट हुआ जो बाते अब तक कथा कहानियों तक सीमित थी आज उनको प्रत्यक्ष किया जा सकता था हालांकि तंत्र पर सबका विश्वास इसलिए नही हो पाता क्यूंकी साधना सरल नही होता है जब व्यक्ति सफल नही हो पाता है तो इन अशरीरी शक्तियों को झूठा समझने लगता है और तंत्र साधनाएँ इतनी ही सरल होती तो सारे लोग यही कार्य करने लगते आज मैआपके लिए एक परी की साधना लेकर आया हूँ –
परी साधनाओं के नियम :-
1.परी साधना में वज्रासन का प्रयोग किया जाता है,जैसे नमाज अदा करने के लिए बैठते है ।
2. वस्त्र स्वच्छ एवं धुले हुए इस्तेमाल करने चाहिए ।
3. असत्य भाषण से बचना चाहिए और यथासंभव कम बोलना चाहिए क्योंकि हम जितना ज्यादा बोलेंगे मुख से असत्य तो निकलेगा ही साथ ही साथ हमारी उर्जा भी ज्यादा नष्ट होगी ।
4. साधना स्थल साफ़ एवं शांत होना चाहिए । साधना स्थल पर गंदगी नहीं फैलानी चाहिए । हर रोज़ पोछा लगाना चाहिए । एक बात का विशेष ध्यान रखें कि शौचालय के पास कभी साधना नहीं करनी चाहिए और कमरे में भी शौचालय नहीं होना चाहिए ।
5. साधक को मन , वचन एवं कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।
6. साधक को शौच के बाद स्नान और लघु शंका के बाद हाथ पैर धोने चाहिए ।
7. परी साधनाओं और अमलों में चमड़े से बनी हुई वस्तुओं से परहेज़ रखना चाहिए ।
8. इन साधनाओं को करने के दिनों में गायत्री मंत्र जप नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे साधना में जो शक्ति संचार होता है उसका क्रम अवरोधित हो जाता है ।
9. अगर साधना में पुष्पों का प्रयोग करना हो तो हमेशा तीव्र सुगन्धित पुष्पों का ही उपयोग करना चाहिए । गुलाब और चमेली के पुष्प इस दृष्टि से उत्तम हैं ।
10. साधना करने के बाद कुछ मिष्ठान का वितरण हमेशा करना चाहिए । इस बात को लोग हमेशा नज़र अंदाज़ कर देते हैं ,वो लोग यह नहीं जानते कि येसा करने से उनकी सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है ।
11.लोहबान धुप का ही प्रयोग करें । लोहबान को हर परी साधना में इस्तेमाल करने से साधना अपना पूर्ण प्रभाव देती है ।
12. साधना में सूती आसन का ही उपयोग करना चाहिए ।
परी सामने आकर हमारे कार्यो को सम्भाल लेती है। उसका रूप अत्यंत सुंदर होता है,उसके शरीर हमेशा सुगंध से महेकता रहेता है। उसकि आंखो मे देखने से साधक अपना सबकुछ भुल जाता है और परी का दिवाना हो जाता है। जब वो स्पर्श करती है तो येसे लगता है जैसे सारी ख्वाहिश पुर्ण हो गयी हो,उनका शरीर हमेशा थंडा होता है और वो जब स्वयं हमे स्पर्श करे तो उसका शरीर गरम हो जाता है परंतु हमारे स्पर्श से उसका शरीर गरम नही होता है।
परी साधक को कभी नाराज नही करती है,उसकी प्रत्येक कामना पुर्ण करती है। ये साधना कोइ भी कर सकता है जैसे शादी-शुदा पुरुष भी कर सकते हैं।
एकांत कमरे मे रात्रि 10 बजे से 12 बजे तक मंत्र जपे।सुगँधीत धुप दीप जला कर शुक्रवार से शुरु करे और तेतिस (33) दिन नित्य जाप करे। जाप करते समय मिठाई हाथ मे ही रखे। जब परी प्रकट हो तब सबसे पहले उसे अंगुठी पहनाये और मिठाई उसे देकर उसके हाथ को चुमते हुए उसको अपनी प्रेमिका बनने का रिश्ता कायम रखने का वचन ले। परी प्रसन्न होने पर साधक कि प्रत्येक इच्छा पुर्ण करेगी ।
१०१ बार दरूद शरीफ पढ़े ।
“अल्लाह हुम्मा सल्ले अला सैयदना मौलाना मुहदिव बारीक़ वसल्लम सलातो सलामोका या रसूलअल्लाह सल्ललाहो ताला अलैह वसल्लम”
परी मंत्र सिद्धि हेतु माला का आवश्यकता नही है और बिना माला के रोज 72 मिनिट जाप करना है। परी सामने आने के बाद जब तक हम उसको अंगुठी नही पहनाते है तब तक वो हमारे वश मे नही हो सकती है। उसको अंगुठी पहनाने से वो हमारी प्रेमिका बन जाती है और हमे सभी सुख देती है। बिना अंगुठी के तो शादी का रिश्ता तक नही जुडता है तो सोचिये तुम्हे परी कैसे रिश्ता जोडेगी ?
आकाश परी मंत्र:-
।। बिस्मिल्लाह रहेमाने रहिम आकाश परि के पाव मे घुंगरु,नाचति आवे-बजाती आवे,सोति हो तो जागकर आवे,जागती हो तो जल्द आवे,छमा छम करे-बादल मे घोर करे,मेरा हुकुम नही माने तो परि लोक से जमीन पर गीरे,हज साल जहन्नुम भोगे,लाख लाख बिच्छुन कि पिडा भोगे,दुहाई सुलेमान पैगम्बर कि,दुहाई हसन-हुसैन साहब की,मेरी भक्ति गुरु कि शक्ति,फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ।।
साधना मे सिर्फ सफेद वस्त्र,आसन,मिठाई का प्रयोग करे।सर के बाल ढके हुए हो इसलिए सफेद रुमाल सर पर बांधे और गुलाब का इत्र वस्त्रो पर लगाना है। साधना हेतु पच्छिम दिशा के तरफ मुख करके बैठना है। जाप के समय बीच मे उठना नही चाहिये और साधना करने के बाद ही आप आसन से उठ सकते है।