नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अभी तक आपने भाग-1 में जाना कि किस प्रकार से एक व्यक्ति जो अपने गांव जाते हैं , वहां पर प्रधान के लड़के के द्वारा उनके परदादा की जीवन में घटित हुई। घटना के बारे में वह जान पाते हैं कि किस प्रकार से एक पिशाचिनी उनके जीवन में प्रवेश कर गई थी। चलिए आगे जानते हैं कि क्या घटित हुआ था?
नमस्कार गुरु जी भाग 1 आप जान ही चुके हैं। मैं भाग 2 आपको बताता हूं। इसके बाद वह लड़का मुझसे बोला कि उसके दादाजी उस लड़की को अपने घर ले चले। पर उसने एक शर्त रखी। उसने कहा कि तुम्हारे घर वालों के अतिरिक्त मेरे बारे में किसी और को नहीं बताना क्योंकि लोग इधर-उधर की बातें करते हैं। दादाजी ने भी उसकी बात को स्वीकार कर लिया क्योंकि उसके दादाजी यह बात जानते थे कि अगर उन्हें किसी स्त्री को सुरक्षित रखना है तो उसकी कही हुई सारी बातों को मानना जरूरी है। यहां पर भी वैसा ही घटित हुआ था। वह औरत अब पूरी तरह से अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रही थी। घर में जब वह पहुंची तो सभी घरवालों ने पूछा, यह कौन लड़की है, यह कहां से आई है? इस पर मेरे परदादा ने कहा। कि ये पास के ही गांव की है लेकिन शायद इसी वजह से रास्ता भटक गई और यह यहां पर आ गई है।
सभी लोगों ने मेरे दादाजी की बात को स्वीकार कर लिया क्योंकि लड़की बहुत अधिक सुंदर थी। इसी कारण से उस पर किसी ने भी शक नहीं किया। कोई भी व्यक्ति उसको संदेह की दृष्टि से नहीं देख रहा था। उसका प्रभाव ही इतना अधिक था। किंतु उस जमाने में जब स्नान किया जाता था तो? ऐसी जगह होती थी जहां पर पुरुष नहीं जाते थे। लेकिन स्त्रियां ऐसी जगहों पर स्नान करती थी जो खुली जगह ही होती थी। वह! काफी दिनों से स्नान नहीं कर रही थी। तो घर में ही मेरे परदादा की माता ने कहा कि यह अभी तक नहाई क्यों नहीं है? ऐसा क्या कारण है जिसकी वजह से यह नहा नहीं रही है ? इस पर मेरे दादाजी ने उससे पूछा कि तुम? काफी दिन से रह रही हो लेकिन अभी तक नहाई क्यों नहीं हो? पर वह बोली मुझे पानी से बहुत ही अधिक कष्ट हो जाता है। पानी हर जगह का अलग अलग होता है जिसकी वजह से नुकसान हो जाता है।
इस पर मेरे दादाजी ने कहा नहीं। मैं तुम्हारे लिए गुलाब जल का प्रबंध कर दूंगा। उससे जब तुम नहाओगी तो सब कुछ सही हो जाएगा। मेरे दादाजी की जिद के आगे उसे मानना पड़ा। उसको नहाने के लिए जाना पड़ा जो वह नहीं करना चाहती थी। मेरे दादाजी की माताजी ने एक बाल्टी में पूरी फूलों की एक लड़ियां सी डाल दी। यानी कि? उसके अंदर उन्होंने बहुत सारे गुलाब के फूलों की। पत्तियां और बाकी गुलाब के टुकड़े-टुकड़े करके,उसमें डाल दिए ताकि वह पानी गुलाब का हो जाए। लेकिन इसके साथ ही साथ उनके मन में पता नहीं क्या सूझा और उन्होंने? अपने पास रखा हुआ थोड़ा सा गंगाजल का पानी भी उस बाल्टी में डाल दिया। यही शायद बहुत बड़ी बात होनी थी ! जैसे ही वो नहाने गई जो जोर से चिल्ला कर भागी। उसको भागते देख। दादा जी की माताजी ने उसे पकड़ा और कहा बिटिया क्या हुआ? वह कहने लगी। पानी में कुछ न कुछ गड़बड़ है जिसकी वजह से मेरी त्वचा जल गई है और सच में उसकी पीठ जल गई थी।
यह देख कर के सब को बड़ा आश्चर्य हुआ। खुद दादाजी ने मलहम ला कर उसकी पीठ पर लगाया। इसी दौरान दोनों लोगों में प्रेम भी होने लगा। वह कहने लगी, आप बहुत अच्छे हैं। अब मैं वापस नहीं जाना चाहती। इस पर मेरे दादाजी ने उससे पूछा कि ऐसी क्या वजह है जिसकी वजह से तुम उस जगह मुझे मिली थी और अब क्यों वापस नहीं जाना चाहती? वह कहने लगी मेरे घर में। सारा काम मुझे ही करना पड़ता था। मेरे घर में रहने वाली मेरी माता और बहुत सारी भाभियां मुझे बहुत कष्ट देती थी। मैं रो-रोकर सभी के काम करती थी। कोई भी मुझ पर दया नहीं दिखाता था। इसीलिए एक रात में भाग करके इस तालाब के पास आ गई। जहां से आप मुझे मिले हैं। अब कृपया कर मुझे वहां वापस ना जाने दीजिए। मैं यही सब की सेवा करूंगी।
मेरे दादाजी, क्योंकि अब वह उस से प्रेम करने लगे थे। कहते हैं कि तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम हमारे घर में हमेशा के लिए रह सकती हो और क्योंकि इतनी अधिक सुंदर स्त्री उस वक्त उस गांव में कोई नहीं थी। इसी वजह से कहीं ना कहीं मेरे दादा के मन में यह विचार उत्पन्न हो रहा था कि मैं इससे भविष्य में विवाह कर लूं। लेकिन परिवार वालों की रजामंदी भी आवश्यक थी और ऐसा करने के लिए घर के सभी लोगों को एक मत होना आवश्यक था। इसी कारण से वह अभी तक चुप बैठे हुए थे। कुछ ही दिनों में उसने अपनी मेहनत भरे कार्यों से और सब का ख्याल रख कर, सबका दिल जीत लिया। इसी के कारण से परिवार के सारे सदस्य उसे बहुत ही अधिक मानने लगे। इसी वजह से जब एक दिन उसने मेरे दादाजी को प्रेम के संबंध में कहा तो मेरे दादा ने झट से स्वीकार कर उससे शादी करने की बात। सभी! लोगों को बता दी।
यह बहुत ही आश्चर्य भरी बात थी। लेकिन सबको पता था। इसी कारण से किसी ने भी इस संबंध को मना नहीं किया और सभी लोग तैयार हो गए कि अब हमें इन दोनों की शादी कर देनी चाहिए। लेकिन शादी से ठीक पहले एक रात को जब यह दोनों टहल रहे थे। तब उसने एक शर्त मेरे दादाजी से रखी। उसने कहा। अग्नि के फेरे मैं नहीं लूंगी। आप मेरी मांग किसी मंदिर में भर दीजिए लेकिन अग्नि के फेरे मै नहीं लूंगी। इस पर मेरे दादा को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा ऐसी क्या वजह है जिसके कारण तुम अग्नि का फेरा नहीं लेना चाहती हो? तो वह कहने लगी। हमारे खानदान में जितनी भी लड़कियों ने अग्नि का फेरा लिया वह असमय मृत्यु को प्राप्त हो गई है। एक ज्योतिषी ने भी मुझे बताया था कि अगर तुमने कभी अग्नि का फेरा लिया तो तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाओगी। यह सुनकर मेरे दादा आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने कहा, मैं अपने यहां के पंडितों से पूछूंगा। लेकिन वह इनकी बात से संतुष्ट नहीं हुई।
उसने कहा, मुझसे विवाह करने के लिए आप मुझे किसी मंदिर में ले जाकर किसी पेड़ के नीचे मंगलसूत्र और सिंदूर पहना दीजिए। सिंदूर लगा कर के आप उस पेड़ के साथ सात फेरे लेकर मुझे अपनी अर्धांगिनी स्वीकार कर लीजिए। लेकिन मैं अग्नि फेरे नहीं लेना चाहती? उसकी बात को सुनकर मेरे दादाजी को आश्चर्य हुआ था। लेकिन उसने कहा तो मेरे दादा ने मान लिया। किसी प्रकार से घरवालों को राजी किया गया लेकिन सभी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि ऐसा इसने क्यों कहा है? लेकिन मेरे दादा की जिद के आगे परिवार वालों की एक नहीं चली और सब ने यह स्वीकार कर लिया कि जैसे यह कह रही है, वैसे ही विवाह संपन्न कर लिया जाए। गांव के बाहर एक पीपल के पेड़ के नीचे दोनों की शादी संपन्न करा दी गई जहां उन्होंने पीपल के पेड़ के साथ चक्कर लगा लिया। इस प्रकार मेरे दादा की शादी हो गई।
शादी! मैं सुहागरात के समय वह उस स्त्री के साथ जब बैठे हुए थे तब उसने कहा कि इससे पहले कि हम लोगों के बीच में संबंध बने। मैं आपको कुछ देना चाहती हूं। इस पर मेरे दादा ने कहा क्या? उसने कहा जिस तालाब के किनारे आप मुझे देखे थे उसी के पास में एक खजाना है। उस खजाने को मैं आपको दिलवा सकती हूं। इस पर मेरे दादा ने उससे पूछा कि किस प्रकार तुम्हें पता है कि वहां पर कोई खजाना है? वह कहती है अक्सर मेरे पिता और भाई लोग उसी स्थान से खुद, सोने के सिक्के लाया करते थे। इसी कारण से मैं उस जगह को जानती हूं। लेकिन उसकी एक विधि होती है। आप जब खजाने के पास आप पहुंच जाएं तो अपनी पत्नी की मांग का सिंदूर उस जगह पर गिरा दे। तभी वो खजाना आपके लिए खुलता है नहीं तो वह कभी नहीं खुलता। मेरे दादाजी को बड़ा ही आश्चर्य हो रहा था। की ऐसी घटनाएं भी होती हैं। पर किंतु उनकी जिद के आगे अब वह कह भी क्या सकते थे? उन्होंने कहा, ठीक है लेकिन अभी तो मुझे प्रेम करने दो।
उस सुहागरात मे दोनों के बीच में प्रेम संबंध बने। इस प्रकार से वह रात व्यतीत हुई सुबह के समय। मेरे दादाजी उठे तो देखते हैं कि वह वैसी ही बनी हुई है जैसे कि कल रात जोड़ा पहनके आते वक्त थी। उसकी सुंदरता में सोने के बाद भी कोई कमी नहीं थी। यह बड़े ही आश्चर्य की बात थी। अक्सर इसलिए जब सुबह उठती हैं तो उनका श्रंगार बिगड़ जाता है। पर उसका तो बिल्कुल भी नहीं बिगड़ा था। अब इस प्रकार वह दिन भी व्यतीत हो गया। उन्होंने पूरे घर की गृहस्थी को संभाल लिया था। उन्होंने जो बात कही थी कि उस खजाने के बारे में उन्होंने कहा कि आज से 4 दिन बाद मैं आपको उस जगह का पता बताऊंगी।
इधर! एक दिन खाना बनाते समय। अचानक से ही इनके कपड़ों में आग लग गई। तभी वहां पर। मेरे दादा जी की माता जी यह देखकर आश्चर्य में पड़ गई। वह जा करके उनकी साड़ी की आग बुझाने की कोशिश करने लगी। लेकिन तब तक साड़ी बहुत जल चुकी थी। जैसे ही उन्होंने अपने हाथ उनकी साड़ी में लगाए, वह आग तुरंत ही बुझ गई। उन्होंने देखा कि अंदर शरीर को कुछ भी हानि नहीं हुई है। यह देखकर आश्चर्य में पड़ गई। उन्होंने कहा, तुम्हारा शरीर जला क्यों नहीं? मैंने खुद देखा तुम्हारे कपड़े पूरी तरह जल गए थे और तुम्हारे शरीर पर कुछ भी नहीं हुआ है। बताओ तुम कौन हो? कहते हैं उन दोनों के बीच में क्या बातें हुई कुछ नहीं पता चला। अगले दिन सुबह सुबह गांव में खबर आई और वह खबर थी कि मेरे दादा जी की माता जी का निधन हो गया है। ऐसा क्यों हुआ था मैं इसको आपको अगले भाग में बताऊंगा? नमस्कार गुरु जी!
संदेश – यहां पर देखिए इन्होंने! इस कथा में आगे बताया है कि किस प्रकार उनके दादाजी के जीवन में एक पिशाचिनी आ चुकी थी और उनकी माता का भी निधन हो गया। आगे जानेंगे अगले भाग में कि आगे क्या घटित हुआ था। अगर आपको यह वीडियो पसंद आ रहा है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें।आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
पिशाचिनी बनी प्रेमिका 3 अंतिम भाग