नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अभी तक आपने बंगाली जादू सीखने वाली कहानी में जाना है कि किस प्रकार से? अगर आप किसी साधना को करने जा रहे हैं तो न सिर्फ उसकी पूरी जानकारी। उस से पड़ने वाले प्रभाव! आपके ऊपर और आपके परिवार के ऊपर! दोनों के ही संबंध में पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसके अलावा आप किसी योग्य गुरु की ही शरण लीजिए ताकि आपको कोई समस्या ना आए।
चलिए पढ़ते हैं इनके पत्र को। और जानते हैं कि इनके पिता के जीवन में और क्या-क्या घटित हुआ था?
पत्र – प्रणाम गुरु जी, मैं आपका तहे दिल से धन्यवाद करता हूं। आपने मेरे असभ्य शब्दों को इतने सुंदर और स्पष्ट रूप में प्रकट किया है। गुरुजी कहानी कुछ लंबी है। मुझे लिखने का समय भी कम ही मिलता है। मैं कोशिश करूंगा की कहानी को जल्दी ही आप तक पहुंचा हूं। गुरु जी जैसा कि मैंने अब तक बताया था कि मेरे पापा जी का शरीर किस तरह से अकड़ गया था उसी दिन शाम को। मेरी मां मेरे दादा जी को बुला कर ले आई क्योंकि! मेरी मां को लगा कि उनमें शायद मोहन राम बाबा से बात करने की क्षमता है। गुरु जी मेरी मां के कहने पर वह हमारे घर पर आ भी गए। उन्होंने कहा कि हमें भी बाबा मोहन राम के दर्शन ना सही उनसे बात करने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
जिन लोगों ने पिछला भाग देखा है वह जानते होंगे कि बाबा मोहन राम कौन थे और कैसे उन्होंने इनके पिता की रक्षा की थी?
गुरुजी शाम होने को आने वाली थी।
मैं बाहर से खेल कर घर आया और हाथ मुंह धो कर अपनी मां से खाना लाने को कहने लगा।
और यह कहकर मैं अपनी बहन के साथ खेलने लग गया था।
उस दौरान खेल-खेल में ही मैंने जैसे बच्चे हाथों से बंदूक की आकृति बनाकर खेलते हैं। ठीक वैसे ही उस दौरान में कुछ कर रहा था। मैंने अपने पापा की तरफ अपनी उंगलियों से बना भी बंदूक कर दी थी।
इस बात पर भी वह काफी गुस्सा हो गए और कहने लगे कि कौन है यह जो मेरा मजाक बना रहा है।
मैं इसे सजा दूंगा। मेरी मां उस वक्त खाना बना रही थी। इस प्रकार आवाज सुनकर वह देखने के लिए आए कि आखिर हुआ क्या है? उन्होंने मेरे पापा से पूछा कि क्या हुआ? उन्होंने कहा कि यह लड़का मुझे उंगली दिखा रहा है। मैं इसे छोडूंगा नहीं।
तब मेरी मां ने यह समझाते हुए कहने लगी कि यह बाबा मोहन राम है।
इस प्रकार से मुझे यह समझाया गया कि जिस व्यक्ति की तरफ में उंगली कर रहा हूं, वह शख्सियत मोहन राम जी हैं।
उन्होंने कहा कि वह बालक है खेल खेल में आप की तरफ उंगली कर दी होगी। इस पर? मेरी मां उन्हें समझा रही थी। उन्होंने कहा, कृपया उसे आप माफ कर दें।
उन्होंने मुझे बताया। कि आप कौन हो तब उन्होंने?
भूंभिया खेड़ा और माई का जयकारा। लगाते हुए बताया कि मैं ही मोहनराम हूं।
तब तक वह मेरे दादा जी भी आ गए थे। यानी कि जिन को बुलाने के लिए माता ने उनको अपने घर पर आमंत्रित किया था। बाबा मोहन राम ने चिलम मांगी जो मैंने आपको बताई थी। वह चिलम मेरी मां ने उसी प्रकार से तैयार करके रखी हुई थी। उन्होंने वह चिलम उनको दी। फिर उन्होंने बताया कि आम आदमी को ऐसी शमशानी साधना और सिद्धियां नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति को सिर्फ जो ग्रहस्थ है, प्रभु का नाम पूजा पाठ अपने नित्य कर्मों के साथ करते रहना चाहिए। या फिर कोई श्रेष्ठ गुरु हो? जिसे उसने इस बात का पूरा ज्ञान दिया हो उनकी। निगरानी में साधना और उपासना और अपने आध्यात्मिक गुरु पूजन और मंत्र पूजन को आगे बढ़ाना चाहिए।
इसके बाद मेरे उन दादाजी ने पूछा, महाराज जी जो इसने गलती की है उसका कुछ उपाय बताइए। इस पर?
बाबा मोहन राम जी ने चिलम में भरते हुए कहा कि उपाय है। अगर यह वह करें तो इससे इसका पीछा छूट जाएगा। गुरुजी इन्होंने कहा कि किसी दरिया के पास जाकर उस हड्डी को सामने रखकर यह मंत्र बोलकर उसे विदा कर सकते हैं।
यानी कि एक प्रकार से उन्होंने एक ऐसा मार्ग बताया जिसके माध्यम से की गई साधना और सिद्धि को विदा किया जा सकता है। जो भी साधना सिद्धि आप अनियंत्रित होकर?
उसको साधना साध ना पाए तो उस साधना को विसर्जित कर देना ही उपयुक्त होता है। गुरुजी वह मंत्र जो उन्होंने लिखवाया था वह अब हमारे पास नहीं है क्योंकि वह जिस कागज पर लिखा था वह पता नहीं अपने साथ कब खो गया था? गुरु जी इतना कहकर वह चले गए।
गुरुजी असली खेल यहीं से शुरू होता है हमारे घर की बर्बादी का। अगले दिन हमने यानी कि मेरी मां ने मेरे पापा को बताया और कहा कि इससे पीछा छुड़ाना है और आपको आगे के काम संभालने हैं।
लेकिन गुरु जी मेरे पापा ने मेरी मां की कोई बात नहीं मानी और उन्होंने वह उपाय भी नहीं किया। उसके बाद गुरु जी मुझे लगता है कि उस आत्मा ने मेरे पापा के शरीर! पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था।
जिसकी वजह से ही वह ऐसा करने के लिए मना कर रहे थे। गुरुजी उस दिन के बाद से ही मेरे पापा को खुद पर कुछ ज्यादा ही घमंड हो गया था। इसी बात का फायदा उस आत्मा ने भी उठाया। उस आत्मा ने मेरे पापा का मन ऐसा बना दिया था कि वह किसी भी व्यक्ति की कोई भी बात सुनते ही नहीं थे। गुरुजी उस आत्मा ने मेरे पापा के कुछ ही काम सफल किए। उसके बाद उसने हर काम! पर?
बलि मांगनी शुरू कर दी थी।
और यह कर पाना हर बार संभव नहीं हो पाता था।
उसको बली ना देने की वजह से उसने मेरे पापा के द्वारा चोरी करवानी शुरू करवा दी थी। गुरुजी एक!
यही बात महत्वपूर्ण है कि किसी से सलाह लिए बिना। शुरू की गई साधनों का दुष्परिणाम इसी प्रकार घटित होता है। गुरुजी मेरा अनुरोध है आपसे और आप और धर्म रहस्य से जुड़े हुए सभी साधकों और दर्शकों से कृपया धीरज रख कर इस कहानी को सुनें। क्या पता आप सब की कृपा से मेरे मन का बोझ हल्का हो जाए और मैं इस दुख से बाहर निकल सकूं।
ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ जबकि मैं और मेरी मां काफी व्रत पूजा पाठ किया करते थे। गुरु जी मैं बताना चाहता हूं कि गांव में भूंभिया खेड़ा जी!
इसके बारे में मैंने आपको बताया, वह एक ऐसी शक्ति है जो हमारे गांव की सीमा पर पहरा देती है।
और माई आदेश का भी पालन वो करती रहती है।
उनकी आज्ञा के बिना कोई भी शक्ति गांव में अपनी मर्जी से प्रवेश नहीं कर सकती। गुरुजी आगे की कहानी भी जल्द भेजता हूं प्रणाम गुरुजी!
संदेश- देखे यहां पर। इनके पिता के जीवन में जिस बुरी शक्ति ने प्रवेश किया है वह अपने अधीन इनको करती चली जा रही है। कुछ सकारात्मक शक्ति भी है। वह भी इनके शरीर में आकर रक्षा करती है।
दोनों ही एक प्रकार से आवाहन है। पर यह आवाहन होते हैं जब हम मंत्र जाप करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं। जीवन में तो इस तरह की शक्तियां आप से जुड़ जाती हैं। नकारात्मक शक्ति भी जुड़ जाती है और पूजा पाठ से सकारात्मक शक्तियां भी जुड़ जाती हैं। वहीं यहां पर देखने को मिल रहा है। आगे क्या घटित होगा यह इनके अगले पत्र के माध्यम से आप सभी लोगों को पता चल जाएगा।
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