नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अनुभव की श्रृंखला में। अभी तक हमने बहुत सारे अनुभव देखें। ज्यादातर उत्सुकता के कारण ही।
भिन्न प्रकार के अनुभव हमको देखने को मिलते हैं और उनका ज्ञान भी प्राप्त होता है। लेकिन कभी-कभी उत्सुकता जीवन में खतरों को भी ले आती है। ऐसा ही एक अनुभव आज हम को प्राप्त हुआ है जहां पर। एक व्यक्ति की उत्सुकता ने उन्हें खतरे में डाल दिया। चलिए जानते हैं कौन सा और क्या अनुभव है पढ़ते हैं इनके पत्र को।
पत्र – धर्म रहस्य चैनल को मेरा प्रणाम गुरुजी मेरा नाम वीरेंद्र सिंह है। मैं मेरे परिवार से जुड़ी हुई एक सच्ची घटना का वर्णन यहां पर कर रहा हूं। क्योंकि मैं आपकी बातों से धर्म रहस्य से जुड़े साधकों के अनुभव को सुनकर काफी प्रभावित हुआ हूं। गुरु जी मैं पहले आपको घटना के बारे में बताना चाहता हूं। तो बात इस प्रकार है। मुझे यह बात मेरी मां ने ही बताई है। मेरे पापा आज से 12 साल पहले पानीपत में काम किया करते थे। उस समय में 9 साल का था।
वहां पर एक बार एक बंगाल का जादूगर खेल दिखाने आया हुआ था। ज्यादातर बंगाली लोग। विभिन्न प्रकार के जादू और सिद्ध विद्याओं को जानते हैं। इनकी सिद्धि के कारण ही यह लोग अधिकतर। इन्हीं चीजों से पैसे भी कमाते हैं। बंगाली जादूगरों को आपने कई जगह देखा होगा। यह जादूगर अपनी गुप्त विद्या का प्रदर्शन करते हैं। लोगों का मनोरंजन भी करते हैं। आज भी बड़े-बड़े लोग इनके चमत्कारिक प्रयोगों को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं क्योंकि यह विभिन्न प्रकार की गुप्त विद्याओं के अच्छे जानकार होते हैं। इसी प्रकार कुछ वह जादूगर भी अपने खेल को दिखा रहा था।
वह विशेष तरह का एक प्रयोग कर रहा था। जिसको देखकर अचानक से मेरे पापा के मन में न जाने क्या आया वह उस जादूगर से कहने लगे कि मैं भी यह वाला जादू सीखना चाहता हूं। मेरे पापा की बात सुनकर उस जादूगर ने कहा कि यह कार्य! आपके लिए ठीक नहीं है। क्योंकि इससे आपकी और आपके परिवार की जिंदगी खराब भी हो सकती है।
लेकिन मेरे पापा उस बात को नहीं माने। उन्होंने उस बात की जिद करनी शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि इस विद्या के बारे में मुझे अवश्य ही सिखाओ तब? जादूगर ने कहा कि अगर तुम यही चाहते हो तो फिर इस विद्या के बारे में सुनो- शनिवार की रात को शमशान में जाकर किसी जलती हुई चिता से हड्डी निकाल कर ले आना और उसकी 41 दिन तक पूजा करना। और भी उसने उनको कई गोपनीय विधियां बताई थी। जिनके बारे में मेरे पापा ने भी मेरी मां को नहीं बताया था। क्योंकि अधिकतर हम लोग ऐसा जानते हैं कि कोई भी तांत्रिक कार्य जब किया जाता है। तो उसे किसी और को बताना उपयुक्त नहीं समझा जाता। इससे साधना में भी कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए उन्होंने शायद मेरी मां को नहीं बताया था। शनिवार की रात को शमशान में जाकर जलती चिता से हड्डी निकाल कर ले आने को उसने कहा। उन्होंने वैसा ही किया। उन्होंने उस हड्डी की शायद पूजा करनी शुरू कर दी थी।
ऐसा करते हुए उन्हें लगभग 30 दिन हो चुके थे। इसी बीच वह घर आए और घर में पैसे देने के लिए। उन्होंने अपना! जो कार्य था वह किया, लेकिन एक परिवर्तन देखने में मिला। उनका व्यवहार काफी बदल चुका था। मेरे पापा काफी ज्यादा शराब पीने लगे थे। यह शायद उस साधना का ही असर रहा होगा। यह बात मेरी मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई, लेकिन उन्होंने मेरे पापा को पूछ उस समय कुछ भी नहीं कहा था। उसके बाद वह वापस पानीपत दोबारा नहीं गए। वह गांव में ही रुक गए थे। इस बीच उनको गांव में ही 40 दिन हो गए।
40 दिन तक सब कुछ ठीक चला था। फिर 40वे दिन रात को अचानक मेरे पापा कहने लगे कि मुझे बचा लो मुझे बचा लो बहुत सारे पगड़ी वाले लोग मुझे ले जाने की बात कर रहे हैं।
मेरी मां ने उठकर देखा तो वहां पर कोई भी नहीं था। वह चारपाई पर लेटे हुए थे। यह कहते हुए बड़बड़ा रहे थे।
क्योंकि हमारे घर में तीन नीम के पेड़ हैं। इसी कारण गर्मियों में हम सब नीम के नीचे। बैठकर आंगन में ही सो जाया करते हैं। वह बार-बार नीम के पेड़ की तरफ इशारा कर रहे थे। उस समय मेरी मां काफी पूजा-पाठ और व्रत किया करती थी। इसी कारण उन्हें जो समझ में आया।
उन्होंने वह कार्य कर दिया।
उनके दिमाग में एक विचार अचानक से ही आया। उन्होंने चारपाई के चारों पाए पर नमक मिर्च गंगाजल और अन्न के दाने लगाकर खुद वहीं बैठ कर अपने इष्ट भगवान का नाम लेने लगी। और इसका चमत्कार भी सामने ही दिखाई दिया। मेरे पापा शांति से अब सो गए थे।
अब अगले दिन मेरी मां मेरे पापा की।
इसी प्रकार रक्षा और सुरक्षा करती रही। और उनके मन में एक विचार आया कि उन्हें? किसी भगत को उन्हें दिखाना चाहिए।
मेरे गांव में ही मेरे ताऊ लगते थे। उनको! भगत कहते थे। उनके पास उन्हें वह ले गई।
उन्होंने जैसे ही मेरे पापा को कुछ कहा तो मेरे पापा अचानक से ही उठ कर बैठ गए और बोले। तू मुझसे ताकतवर नहीं है इसलिए तू मेरे और इसके बीच में मत आ! इसने मेरी पूजा की है। और आज आखिरी दिन है। अगर इसने यह पूजा नहीं की तो मैं इसे खत्म कर दूंगा।
यह एक प्रकार से उस प्रेतात्मा द्वारा दी गई चुनौती थी जिसके कारण से। भगत जी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ और इस बात को सुनकर भगत जी पीछे हट गए। उन्होंने कहा, मैं कुछ नहीं कर सकता। इसे पूजा तो करनी ही होगी। वहां से जाने के बाद मेरे पापा को याद नहीं था। उनके साथ में क्या कुछ घटित हुआ है? जब मेरी मां ने बताया कि यह सब क्या चल रहा है? तब मेरे पिताजी ने मेरी मां को वह सारी बातें बताई। जो अभी तक उनके साथ में घटित हुई थी।
मेरी मां ने मेरे पापा को आखिरी दिन की पूजा करने के लिए भेज दिया। क्योंकि वह आखिरी पूजा श्मशान घाट में ही होनी थी।
उस शमशान साधना में भोग में मेरे पिता को एक बोतल शराब की और एक मुर्गा बली के रूप में देना था।
यह काम करने के बाद फिर वापस पलट कर नहीं देखना था। गुरुजी उन्होंने कुछ ज्यादा गहरी बातें तो नहीं बताई थी लेकिन उन्होंने वहां से निकलते समय। जब शमशान के गेट पर वह पहुंचे तो उन्होंने सोचा कि इस बोतल को लेकर कौन जाएगा? उन्होंने पीछे पलट कर देखा और तुरंत ही फिर अचानक से किसी शक्ति ने उन्हें पकड़ लिया। और उन्हें शमशान की ओर अंदर खींचने लगा।
इस प्रकार से एक बार फिर वह मुसीबत में आ चुके थे। लेकिन उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि जिंदगी में कोई भी साधना यूं ही नहीं शुरू करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने पर अधिकतर बड़ा ही नुकसान देखने को मिलता है। बिना गुरु मंत्र साधना के तांत्रिक साधना में कूदना सदैव हानिकारक रहता है।
संदेश- यह था एक अनुभव जो इन्होंने यहां पर बताया है। और यहां से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि तामसिक साधनाएं और प्रेत आत्माओं को सिद्ध करना। हमेशा आसान नहीं होता है। इन साधना को करने से पहले अपनी स्वयं की सुरक्षा करना अनिवार्य है साथ ही साथ गुरु मंत्र से अपने आपको सदैव के लिए। सुरक्षित कर लेना भी आवश्यक है। इसीलिए मैंने सदैव यह कहा है कि पहले गुरु मंत्र की साधना द्वारा पूर्ण अनुष्ठान कर लें। तभी इस प्रकार की साधना में उतरे और ऐसी भयानक शक्तियों को अपने वश में, तभी करने के बारे में सोचें।
तो यह था आज का अनुभव अगर आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।