जैसे कि बेताल की कहानी अभी चली रही है ,बेतूल नाम का जो शख्स था वह एक आघोर आचार्य था, अच्छी तरह से अघोरी कपाली क्रिया करने वाला जानने वाला था l उसने एक राजा को उसका राज्य पाठ वापस लौटा दिया था और अपनी तांत्रिक क्रियाओं की वजह से राजा ने अपना राज्य फिर से प्राप्त किया था l राजा उसके एहसानो को बड़ी ही सरलता से भूल गया इस वजह से उसने सैनिक भेजे थे लेकिन उसमें गर्व का अंश मौजूद था बेतुल यानी कि बाद में जो बेताल बना जिसे हम बेताल नाम से संबोधित कर रहे हैं।उसे अच्छा नही लगा l
बेताल ने इस बात के लिए मन ही मन राजा से रोष व्यक्त किया ,लेकिन फिर भी उसने यह सोचा चलो ठीक है कम से कम राजा नहीं तो, उसने अपने सैनिकों को भेजा ही है, मैं उससे खुद ही मिल करके उसकी गलती के लिए उसे समझाऊगा और अपने गुरु के प्रति अश्रद्धा दिखाने का जो नुकसान होता है उसके बारे में भी बताऊंगा। सैनिक के निवेदन पर बेतूल नगर की ओर चलने लगा नगर पहुंचते ही वह धीरे-धीरे राजा के महल में पहुंचा ,राजा को सामने सिंहासन पर बैठे देखा, राजा ने भी बड़े गर्वीले अंदाज में कहा गुरुदेव वेताल आपने कमाल कर दिया , आपकी कृपा से यह राज्य नगरी मुझे प्राप्ति हो चुकी है । आप मेरे इस राज्य के मेहमान हैं कृपया करके इस राज्य का आतिथ्य प्राप्त कीजिए ।राजा के आदेश से बेतूल ने कहा चलो ठीक है, आखिर अतिथि को सम्मान दे ही रहा है किंतु राजा अपने सिंहासन से नीचे नहीं उतरा और उसने ना ही बैतूल के पैर छुए ,मन ही मन बेतूल को बुरा लग रहा था लेकिन बहुत सारे लोगों के कारण उसने इस बात को ज्यादा मन में नहीं लिया। राजा द्वारा बताए गए राज प्रसाद महल में वहां अतिथि बनकर रहा, अतिथि भवन में उसके साथ बहुत सारे लोग हर प्रकार से बेताल की सेवा करने लगे । बेताल धीरे-धीरे करके सेवा से संतुष्ट होने लगा तब तक यह बात कुछ गुप्तचरो द्वारा बताई गई कि जो पूर्व अमात्य का बेटा था बेताल आया हुआ है और इसी ने ही तुम्हारे पिता के वध में राजा की सहायता की है, इसी की वजह से तुम्हारे पिता का वध हुआ है । तो इस बात को समझते हुए उसके कुछ रिश्तेदार अमात्य के रूप में स्थित थे उनके माध्यम से बेताल के पास कई लोग सेवा सत्कार के लिए गए उन्हें भड़काने की कोशिश करने लगे सेवा करते-करते कई सारे अमात्यों ने कहा राजा तो बहुत ही शक्तिशाली है ,उनके लिए तांत्रिकों की कोई आवश्यकता नहीं है वह तो स्वयं ही सब कुछ करने में समर्थ है और बार-बार इस तरह की प्रताड़ना देने की कोशिश करने लगे।
इस बात से धीरे धीरे करके बेताल में रोष बढ़ता गया । बेताल को लगा कि यह ठीक नहीं है मुझे तो जंगल में जाकर फिर से तांत्रिक क्रिया करनी चाहिए इन सब प्रपंचो में नहीं पड़ना चाहिए और कई दिन हो गए हैं स्वयं मैंने माता काली की भक्ति नहीं की है । यह सोचकर जल्दी ही बेताल प्रस्थान करने की सोचने लगा l इधर इन्हीं अमात्यों ने राजा को सलाह दी बेताल ने आपको सुंदर स्त्री प्रदान की और बैतूल के आने पर वह शक्ति उन्होंने वापस ले ली जो रानी के रूप में आपके साथ स्थिति थी वह गायब हो चुकी है । इतनी अद्भुत शक्ति संपन्न व्यक्ति को स्त्री देना अशुभ नहीं होगा आप इस राज्य की सबसे सुंदर नगर वधु को उसके लिए बेताल को समर्पित करिए ताकि वह उसकी सेवा करें ताकि वह भी उनको हर प्रकार के भौतिक सुख प्रदान करें ।
उस जमाने में नगर वधू एक ऐसा पद होता था, जो एक प्रमुख वेश्या होती थी जो सबसे अधिक सुंदर होती थी उसको नगर वधू कहा जाता था और वह हर प्रकार से बड़े राजाओं को सेवा प्रदान करती थी । राजा ने उनकी बात मान ली और प्रमुख नगर वधु को बेताल के पास भेज दिया । रात्रि के समय अपने कमरे में स्त्री को देखकर बेताल को बड़ा क्रोध आया उसने क्रोधित हो करके उसे डांटते हुए वहां से भगा दिया और कहने लगा मूर्ख अगर मुझे स्त्री चाह होती तो अब तक मैं हजारों स्त्रियां खड़ी कर सकता था l जब मैं पिशाचनियाँ पैदा कर सकता हूं तो ऐसी हजारों स्त्रियां तुझसे ज्यादा अधिक खूबसूरत ला सकता था और वैसे भी इस हड्डी मांस के शरीरों का क्या लाभ है ऐसे तो मैं हजारों शरीर पैदा करके, अपने उपभोग के लिए पैदा कर सकता हूं । इस प्रकार रोते हुए नगर वधू वहां से निकल गई इस बात से क्रोधित होकर बेताल भी रात को ही नगर छोड़ने का फैसला कर लिया ,वह फिर से अपने साधना के लिए प्रस्थान कर गया जहां वह रहा करता था। यह बात सुबह जब राजा को पता चली तो राजा को मंत्रियों ने इस प्रकार भड़काया उसने आपकी दी हुई चीजों का इस तरह अपमान किया है बल्कि वह एक तांत्रिक भी है मेरी बात मानिए आपने अगर उस तांत्रिक को नहीं रोका तो वह बहुत बड़ी मुसीबत पैदा कर सकता है और वह जिस तरह राज्य आपको दिला सकता है आपका राज्य कभी भी छीन सकता है।
राजा को बात समझ में आ गई उसने सोचा हां ऐसा हो सकता है वह बहुत ही शक्तिशाली है वह यह कार्य संपन्न कर सकता है मेरा नुकसान भी कर सकता है । राजा ने आमत्य से पूछा इसकी कोई काट तो होगी तो आमत्य ने कहा की काली पहाड़ी पर कपालकुंडला नाम की एक योगिनी साधिका बहुत ही शक्तिशाली है उसके पास जाइए और उस से सहायता मांगिए। इस बेताल को रोकने के लिए कि भविष्य में यह आपका कुछ बिगाड़ ना सके l यहां पर यह बात समझने वाली है थी कि काली पहाड़ी की वह कपालकुंडला बहुत ही ताकतवर शक्तिशाली थी तामसिक तांत्रिक क्रियाओं में उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था। उससे आमत्य का लड़का पहले ही मिल आया था उसने ही यह सारा षड्यंत्र रचा था ,कि किस प्रकार से कपालकुंडला के झांसे में राजा आ जाए और बेताल से दूर हो जाए इस कारण से ही उसने षड्यंत्र रचा था।
राजा भूल कर गया की जिसने राजा का सहयोग किया था उस बेतुल की ना सोच कर ना समझ कर अब वह नए तांत्रिक के पास जा रहा था। आमत्यो ने किस प्रकार उसे मूर्ख बनाया था कि राजा किस प्रकार उसके पास ना जा करके कपाल कुंडला से जा मिला ,कपालकुंडला ने कहा ठीक है मैं तेरे लिए कृत्या निर्माण करूंगी और समय आने पर उस बेताल का वध भी कर दूंगी बशर्ते यह है कि तुम मुझे अपने राज्य का दसवें अंश के बराबर स्वर्ण प्रदान करोगे ताकि मैं सहजता से यहां पर अपनी साधना कर सकूं किसी कार्य के लिए परिश्रम करने की आवश्यकता ना पड़े राजा ने कहा ठीक है ।
जैसा तुम्हें अच्छा लगे वैसा करो और जो भी तुम्हारी आज्ञा होगी वह मैं पूरा करूंगा । हंसते और मुस्कुराते हुए वह कपालकुंडला ने कहा ठीक है । आज से मैं अत्यंत ही सुंदर रुप धारण करूंगी और इस प्रकार कपाल में रखे मदिरा को उठाकर वह 10 घूट मदिरा पी गयी और अत्यंत सुंदर स्त्री के रूप में बदल गई l उसने कहा ठीक है अब मैं जाती हूं बेताल के पास तू देख मेरे तंत्र को मेरी विद्या को तो खुद ही समझ जाएगा कि मैंने किस प्रकार से तेरे हर प्रकार के कांटे को निकाल बाहर कर दिया है । राजा ने खुश होते हुए अग्रिम राशि के रूप में काफी सारा सोना जो वो अपने साथ लेकर आया था उसे दे दिया । अब इसे राजा की मूर्खता ही कहेंगे की जिस पर उसे पहले भरोसा था उस पर अब भरोसा नहीं था और एक नए स्त्री तांत्रिक पर भरोसा कर लिया लेकिन कहानी बहुत ही जल्दी पलटने वाली थी इस बात की संभावना से वह मूर्ख बन चुका था इस बात को वह नहीं समझ पा रहा था, जिसने उसे बिना किसी स्वार्थ के उसका राज पाठ दिलाया था उसके पास जाना चाहिए था उसकी सेवा सत्कार करनी चाहिए थी किंतु हुआ ऐसा जैसा प्रकृति को मंजूर था और राजा उस कपालनी के षड्यंत्र में आ गया ।
अब बड़ी ही सावधानी से राजा के कानों में कुछ बता कर कहने लगी की जाओ तुम राज्य करो और मैं जा रही हूं तांत्रिक के पास । जैसे ही वह तांत्रिक के पास आगे जाने को निकली थोड़ी देर बाद राजा भी वहां से चला गया बीच जंगल में राजा का प्रमुख वहां का जो मंत्री था उसने कपालकुंडला से मिलने का प्रबंध कर रखा था। आधी रात्रि के समय जल्दी ही जलती मसालों के बीच एक बैठक हुई ,उस बैठक में आमात्य का वही लड़का आया और हंसते हुए कहने लगा कपालकुंडला तुम्हारी माया तो बड़ी गजब है। तुमने वह कार्य सिद्ध कर दिया जो कोई नहीं कर सकता था तुमने बेताल और उस राजा को ही आपस में दुश्मन बना दिया। बहुत ही जोर से हंसते हुए कपालकुंडला ने कहा रक्त लाओ उसके लिए हिरण का रक्त लाया गया l हिरण का रक्त कपाल खंड में डाला, जैसे मनुष्य की खोपड़ी होती है उसी तरह कपाल खंड में रक्त डाला गया और उसने वह रक्त घूट-घूट पी लेने के बाद कहा मैंने विद्वेषण क्रिया की थी एक उल्लू का पंख कौवे के पंख और दोनों के पैरों की धूल लेकर यह प्रयोग किया था तेरे कहने पर और देख दोनों एक दूसरे के विद्वेश हो गए हैं एक दूसरे के दुश्मन हो गए हैं।
दोनों ही एक दूसरे को मारने में तुले हैं पर दोनों ही यह नहीं जानते हैं कि दोनों पर एक भयंकर तांत्रिक प्रयोग किया गया है , जिसमें दोनों एक दूसरे के दुश्मन हो जाते हैं । इस क्रिया को विद्वेषण क्रिया कहते हैं इस क्रिया में कौवा उल्लू के पंखो का प्रयोग किया जाता है चरण की धूल का प्रयोग भी किया जाता है l मंत्रों से साधक जो दो मित्र हो उन पर क्रिया किया जाता है । इस प्रयोग से दो लोगो की दोस्ती हमेशा के लिए दुश्मनी में बदली जा सकती है जो उस कपाल कुंडली ने किया था ,अभिमंत्रित मंत्रों का प्रयोग करके अब बेताल और वह राजा एक दूसरे के दुश्मन बन चुके थे मन ही मन एक दूसरे को दुश्मन की तरह देख रहे थे।
ईधर अपने साधना स्थल पर पहुंचने पर बेताल के मन में भयंकर क्रोध उत्पन्न हुआ । उसने कहा लगता है मुझे इसे दिखाना होगा की सुंदर स्त्रियां क्या होती है सुंदर स्त्रियों का क्या रूप और स्वरूप होता है। मैं भी एक ऐसी सुंदर स्त्री बनाऊंगा, उसे ऐसी सुंदर स्त्री दिखाऊंगा कि यह देखता रह जाएगा । अब वह साधना में जुट गया, माता काली की साधना करने लगा, मंत्रों का जोर जोर से उच्चारण करने लगा l इधर कपालकुंडला ने कहा मेरा समय हो चुका है उस तांत्रिक के पास जा रही हू खेल का अगला भाग शुरू करने के लिए और इसके बाद सभी लोगों ने एक दूसरे को विदा दिया । कपालकुंडला धीरे-धीरे करके उस तांत्रिक के पास बढ़ने लगी इसके बाद मोहनी मंत्र का उच्चारण करके कपालकुंडला ने अत्यंत ही रूपवान स्वरूप बना लिया इतना अधिक रूपवान के स्वयं इंद्रलोक की अप्सराए भी शरमा जाए कपालकुंडला उसके पास पहुंची….