नमस्कार दोस्तों! धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अभी तक आपने जाना कि साधक कैसे मूलाधार चक्र में प्रवेश करता है अब आगे की। स्थिति को समझते हैं।
जब साधक किसी प्रकार उस मूलाधार चक्र में अपने एक शरीर के साथ प्रवेश कर गया। तभी वहां उसे सामने एक सुंदर हाथी दिखाई दिया।
हाथी जो की बहुत ही अधिक शक्तिशाली विशालकाय था उसने अंदर आने पर। उस साधक का स्वागत किया। उसने कहा आपको अब यहां से? अपनी यात्रा शुरू करनी है।
इस पर साधक ने उस हाथी से पूछा, आप कौन हैं? उस साधक की बात को सुनकर उस हाथी ने कहा। कि आप अब देव में हो चुके हैं मैं? स्वयं देवराज को धारण करता हूं। और मैं ही! लोको में प्रवेश देता हूं।
मुझे स्वर्ग में एरावत नाम से जाना जाता है। और भगवान गणेश की शक्ति का परिचायक हूं।
मैं बहुत अधिक शक्तिशाली हूं जिसे राजा बनाना होता है, उसे ही प्रवेश देता हूं और स्वयं पर। बिठाता हूं।
चलिए अब आप यहां से आगे चले। मैं आपको भगवान पशुपतिनाथ तक पहुंचाता हूं।
साधक ने पूछा, भगवान पशुपतिनाथ कौन है?
तो उन्होंने यह सत्य को बताया कि यहां पर भगवान महादेव! पशुपति के रूप में निवास करते हैं। यह चक्र उन्हीं का है। और जब तक आप उन्हें प्रसन्न नहीं कर पाएंगे? तब तक आप इससे मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकते हैं।
चलिए मैं आपको लेकर चलता हूं। साधक अब आगे बढ़ गया था। वह उसी स्थान पर पहुंचा जहां पर।
भगवान महादेव अपने जानवरों से गिरे हुए
बैठे हुए थे। उनके बगल में माता पार्वती विराजमान थी। उन्हें देखकर साधक भावभीन हो गया। और उसने प्रणाम करके भगवान महादेव को कहा, हे प्रभु! मुझे ज्ञान दीजिए। मैं? कैसे आगे बढ़ सकता हूं? और आपके कितने और रूप हैं?
उन सब का ज्ञान मुझे यहां पर आप के माध्यम से अगर प्राप्त हो तो सर्वोत्तम होगा।
भगवान शिव ने अपनी आंखें खोल दी।
और मुस्कुराकर कहने लगे। यह तो मेरा! जीव जगत रूप है।
ऐसे अन्य रूप की यात्रा अभी तुम्हें और करनी है।
और मैं तो पशुपतिनाथ ही हूं।
शिव तक पहुंचने की तुम्हारी यात्रा लंबी होगी।
लेकिन? क्योंकि मुझे यह पद प्राप्त है इसलिए मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूं। जो इस संसार में कोई भी नहीं जानता।
भगवान शिव की लाखों वर्ष की तपस्या। कई जन्मों में पूरी कर लेने पर मुझे यह पद प्राप्त हुआ है।
उनकी कृपा से मुझे।
पाशुपत संप्रदाय की सिद्धियां प्राप्त हुई। और अंततोगत्वा शिव स्वरूप को मैंने प्राप्त किया।
यह सुनने में तुम्हें अजीब सा लगेगा लेकिन यही सत्य है।
हम सभी परमात्मा का अंश है।
लेकिन अपनी स्थिति को? इतना अधिक कमजोर कर दिए कि? बह गए और भावना और इच्छाओं में और आत्म स्वरूप को त्यागते चले गए।
आज स्थिति यह है कि सब इतने अधिक कमजोर हो चुके हैं कि मूल तत्व से पूरी तरह भटक चुके हैं।
इस पर साधक ने भगवान शिव को कहा प्रभु! आप यहां पर विराजमान हैं? माया चाहे कोई हो?
किंतु आप मुझे अपने इस पशुपति स्वरूप का अर्थ रहस्य समझाइए।
भगवान शिव मुस्कुराकर कहने लगे।
ध्यान लगाकर।
जो!
इस चक्र का उल्लंघन कर जाता है, वही पशुपति हो पाता है।
पशुपति 3 शब्दों से बना है। पति! पशु और पाश।
पति अर्थात् परमात्मा या आप को आगे ले जाने वाला मूल तत्व है।
पशु अर्थात जीवात्मा है।
जोकि। अपनी स्थिति को भूलकर परमात्मा से अलग हो गई है।
और पाश मल है जो जन्मों की करोड़ों अनंत इच्छाओं से बने हुए हैं जिसकी वजह से।
पशु अर्थात जीवात्मा फंसी रहती है और अपनी मुक्ति को प्राप्त नहीं कर पाती।
देखो! तुमने अपनी साधना के बल पर? इस लोक में प्रवेश किया है। लेकिन मुक्ति को प्राप्त नहीं किया है। मैं स्वयं अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए लगातार ध्यान करता हूं।
और मुझसे कोई गलती अगर हो गई तो मुझे अपने स्वरूप को त्यागना होगा और?
मैं भी इसी जीवात्मा रूप में जन्म लेने को।
प्रस्तुत होना पड़ेगा।
इसलिए अब यहां से आगे बढ़ो। तुम्हें जो जो दिखाई देगा उसे धारण करने से बचना है और केवल! साक्षी भाव का अभ्यास करते हुए आगे बढ़ना है तभी तुम्हारा यह सातवां शरीर समाप्त हो जाएगा।
जिस को समाप्त करने पर ही तुम इससे ऊपर के भावों की ओर गमन कर पाओगे।
साधक के लिए यह सब बातें। ज्ञान के सर्वोच्च श्रेणी की ओर ले जाने वाली थी। लेकिन? उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे संभव होगा। भगवान शिव को प्रणाम कर अब उसने आगे की यात्रा। मूलाधार चक्र में शुरू की।
जैसे ही उसे। थोड़ा सा आगे का दृश्य दिखाई दिया। वह अचरज में पड़ गया।
उसने स्वयं को कई स्त्रियों के साथ भोग करते हुए देखा।
यह देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया। साथ में खड़े हुए उस ऐरावत समान हाथी को। देखकर।
साधक ने पूछा।
आप बताइए यह क्या है क्या यह मैं हूं?
और मैं तो? मन वचन से ब्रह्मचारी हूं।
पर यहां पर तो मैं कई स्त्रियों के साथ। संबंध बनाता दिख रहा हूं।
यह सब क्या है और यह कितने सारे मेरे रूप और स्वरूप हैं?
इस पर हाथी बोला।
यह आपके पूर्व जन्म के कार्य हैं।
जब आपका विवाह किसी स्त्री के साथ हुआ होगा। और उससे अपने पुत्र उत्पत्ति की होगी। यह उसी संबंध को आपको दिखा रहा है। आप के मूलाधार में विद्यमान हैं। यह चक्र हमारे पूर्व जन्म की तीव्र इच्छाओं को दिखाता है जिसमें भोग इच्छाएं सर्वोच्च है। यहां पर आप खुद ही देखिए आपने अभी तक कितनी स्त्रियों के साथ कितने जन्मों में विवाह किया है और उनके साथ? भोग सुख को भोगा है।
इसी कारण से यह सारे दृश्य आपको दिखाई पड़ रहे हैं।
साधक!
मन वचन से ब्रह्मचारी था। इसी कारण से उन दृश्यों को देखकर तनिक भी विचलित नहीं हुआ और उसने कहा, मुझे आगे ले चलो।
इसके बाद वह हाथी उन्हें अपने साथ आगे की ओर ले कर गया।
तभी उन्होंने सामने देखा। की? विभिन्न प्रकार के। दिव्य भोग रखे हुए हैं।
सबसे सुगंध बह रही थी ।
उनकी मदमस्त सुगंध को सुनकर साधक आनंदित हो रहा था।
यह देख कर!
उस हाथी ने कहा यह आपके? कई जन्मों में।
आपके जो मुख्य प्रिय भोजन थे उन सब की सुगंध है।
इनको?
देख कर आपको इसीलिए आनंद हो रहा है।
साधक ने कहा। सावधान!
मैं किसी?
भोग को देखकर। स्वयं में परिवर्तन ना कर लूँ और मुझे कुछ खाने की इच्छा ना हो जाए। इसलिए मुझे यहां से तुरंत ही निकल जाना चाहिए। नहीं! अगर मेरे मन में इनमें से कुछ खाने की इच्छा हो गई तो फिर मैं इसी चक्कर में फंसा रह जाऊंगा।
क्योंकि साधक को पहले ही।
लोक माया देवी ने बता दिया था कि कुछ भी साथ लेकर मत जाना। सब कुछ त्याग देना है। अगर वक्त लगेगा नहीं। तो फिर किस प्रकार से मुक्ति को प्राप्त करेगा? इसीलिए साधक को आगे कुछ भी लेकर नहीं जाना था।
साधक इस गंभीरता को समझता था इसलिए उसने उस हाथी से कहा, अब आप मुझे आगे ले चलिए।
इसके बाद! सामने वह देखते हैं कि एक व्यक्ति उन पर। अपनी तलवार लिए हुए जोर से दौड़ता हुआ आ रहा है।
साधक ने कहा, यह कौन है और यह मुझे मारने के लिए क्यों आ रहा है?
हाथी ने कहा और देखिए यह तो सिर्फ एक है।
तभी साधक ने देखा उसे मारने के लिए करोड़ों लोग अपने हाथों में तलवार वाले भिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लिए हुए दौड़ते हैं आ रहे हैं। साधक ने कहा, क्या मैं इन सब से बच पाऊंगा?
इस पर हाथी ने कहा, यह आपको सोचना है। मैं सिर्फ आपके साथ चल रहा हूं क्योंकि मेरा कार्य तो आपको सिर्फ दर्शन कराना मात्र है।
यह भोगो इच्छाओं, आकांक्षाओं और विभिन्न जन्मों में किए गए कार्यों का।
सम्मिलित स्वरूप स्थान है। यही मूलाधार चक्र है, यही से जीवन की उत्पत्ति होती है। ब्रह्मदेव स्वयं यहां विराजमान रहते हैं और इस लोक के स्वामी। भगवान! पशुपति है।
साधक इससे पहले कि कुछ समझ पाता।
सभी लोगों ने आकर उसे चारों तरफ से घेर लिया और वह उसे मारने क्या प्रयास करने लगे?
साधक इस समस्या से कैसे निकल पाया जानेंगे अगले भाग में? तो अगर आपको यह जानकारी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा सच्ची घटना भाग 9